Sunday 26 June 2022

हमारी बहू इवाना- भाग 1: क्या शैलजा इवाना को अपनी बहू बना पाई?

“लो, तुम्हारी गोरी बहू लाने की तमन्ना पूरी हो गई,” मोबाइल पर आंखें गड़ाए  दिनेश सोफे से उठ कर किचन में सब्जी काट रही शैलजा के पास जा पहुंचा.

दिनेश के शब्दों को सुन शैलजा के हाथ रुक गए. चेहरा उत्सुकता से स्वयं ही दिनेश के मोबाइल की ओर मुड़ गया.

“अरे वाह, यह तो सचमुच गोरी है,” बेटे विशाल द्वारा व्हाट्सएप पर भेजी फोटो देख शैलजा आह्लादित हो उठी.

“होगी क्यों नहीं? गोरी जो है, मतलब विदेशी,” ठहाका लगाते हुए दिनेश अपने शब्दों का उत्तर शैलजा की भावभंगिमाओं में खोजने लगा. शैलजा की आंखों में दिख रही चमक और मुखमंडल की आभा यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि उसे विशाल की पसंद पर गर्व सा हो रहा था.

“मैं विशाल से कहना चाहती हूं कि जल्द से जल्द इस गौरवर्णा को मेरी बहू बनाने की तैयारी कर ले. अभी फोन कर लो न.”

“कुछ देर बाद करता हूं. आज संडे है तो वह घर पर ही होगा,” दिनेश उत्सुकता दबा मोबाइल पर अन्य मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया.

शैलजा को आज अचानक जैसे पंख लग गए. धरती से आसमान में पहुंच गई हो वह. कुछ अकाल्पनिक सा घटित हो रहा है उस के साथ. फ्रांस में रहने वाले 32 वर्षीय बेटे विशाल के लिए कब से वह जीवनसंगिनी की तलाश में थी. कितनी लड़कियों के फोटो देखे थे उस ने. रिश्तेदारों और सहेलियों को बारबार याद दिलाती कि उसे एक मनभावन कन्या की तलाश है. विभिन्न मैरिज साइट्स के माध्यम से भी एक योग्य बहू पाने की उस की तलाश पूरी नहीं हो पा रही थी. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती, तो किसी का बायोडेटा या फोटो देख विशाल बात आगे बढ़ाने से मना कर देता. जहां सब की रजामंदी हुई वहां शैलजा और दिनेश गए भी, लेकिन निराशा हाथ लगी. आदर्श बहू के गुणों में उस का रंग गोरा होना शैलजा की प्राथमिकता थी. दिनेश से वह कहती कि जब किसी लड़की की प्रोफाइल ठीकठाक होती तो न जाने क्यों सांवला रंग चिढ़ाने आ जाता है, लेकिन उस ने भी ठान लिया है कि बहू तो गोरी ही लाएगी वह.

दिन रात एक करने के बाद भी बात न बनने से शैलजा को चिंता सताने लगी थी कि परदेश में बैठे विशाल ने यदि अपने लिए स्वयं ही कोई लड़की पसंद कर ली तो क्या होगा? वह मानदंडों पर खरी न उतरी तो उस की नाक कट जाएगी. पड़ोस में रहने वाली मिसेज तनेजा की बहू का डस्की कौम्प्लेक्शन देख नाकभौं सिकोड़ने वालों में वह भी सम्मिलित थी.

दिनेश के मित्र सिंह साहब के बेटे की सगाई के अवसर पर दबी जबान में मेहमान उस विजातीय विवाह की आलोचना कर रहे थे. ऐसी किसी लड़की का विशाल द्वारा चुन लिया जाना शैलजा के लिए कितना पीड़ादायक होगा, इस की कल्पना कर ही वह सिहर उठती.

आज जब उस ने विशाल द्वारा भेजी तसवीर देखी तो बागबाग हो उठी. गोरे रंग में डूबी काया सभी को चकाचौंध कर देगी और जातिपांति की बात भी कोई नहीं उठाएगा जब बहू विदेशी होगी. उस का मन प्रसन्नता से नाचने लगा. बस एक समस्या उसे थोड़ी चुभन दे रही थी.

“होने वाली बहू न तो हिंदी बोल पाएगी और शायद समझ भी न पाए. यही थोड़ा तकलीफदेह लग रहा है, बाकी तो सब ठीक ही है,” सब सोचनेसमझने के बाद वह दिनेश से बोली.

“हां, हिंदी में उसे दिक्कत होगी, लेकिन इंगलिश का सहारा तो है ही. तुम अपनी पैंतीस साल की नौकरी के दौरान फर्राटेदार न सही कामचलाऊ इंगलिश तो बोल ही लेती हो. फिर क्या सोचना?” बेफिक्री के अंदाज में दिनेश ने जवाब दिया.

“उन लोगों का लहजा कुछ अलग ही होता है. दूसरी बात यह है कि मेरा काम औफिस में कर्मचारियों की छुट्टियों का हिसाब रखना, उन के द्वारा जमा बिलों की सत्यता की जांच और उन की अर्जियों को आगे बढ़ाने का ही है. इंगलिश में बातें करने का मौका न के बराबर ही मिलता है.”

शैलजा फिर सोच में पड़ गई. कुछ देर की माथापच्ची के बाद सिर झटकते हुए वह बोली, “मैं भी क्या ले कर बैठ गई. बहू से ज्यादा बोलने की नौबत आएगी ही कहां? फोन पर तो ज्यादा बातें विशाल से ही होंगी. रही यहां आने की बात तो दो महीने के लिए ही आएगा विशाल. उसी दौरान शादी कर देंगे, कुछ दिन वे साथसाथ घूमेंगे, फिरेंगे, फिर वापस चले जाएंगे.

“चलो ठीक है, बहू के साथ बात हो न हो, बस रिश्तेदारों और अड़ोसपड़ोस में नाक ऊंची हो जाए, इतना ही बहुत है,” मन ही मन होने वाली बहू के प्रति की लोगों की आंखों में प्रशंसा के भावों की कल्पना कर शैलजा गदगद हुए जा रही थी.

कुछ देर बाद उन्होंने विशाल को वीडियो काल किया. थोड़ी घबराई, थोड़ी संकोची सी मुद्रा में लड़की भी विशाल के पास बैठी थी. विशाल ने मम्मीपापा और भावी जीवनसंगिनी इवाना का परस्पर परिचय करवाया.

इवाना बेहद आकर्षक, सौम्य दिख रही थी. हर्षातिरेक से शैलजा व दिनेश एकसाथ “हेलो” बोल खिलखिला कर हंस पड़े.

इवाना के गुलाबी होंठ खिल उठे. चांद से उस के चेहरे पर लाल लिपस्टिक खूब फब रही थी. सुनहरी बालों में खोंसा हुआ उज्जवल डेजी का फूल मोतियों सी दमकती धवल ड्रैस के साथ मैच कर रहा था.

शैलजा का ह्रदय तरंगित होने लगा. स्वयं से कह उठी, ‘अरे वाह, गुलबहार लगाया है बालों में. यह तो मेरा प्रिय फूल है और इस फूल सी खूबसूरत, सलोनी है इवाना.’

दिनेश भी इवाना से प्रभावित हो टकटकी लगाए स्क्रीन की ओर देख रहा था.

उन दोनों को अभी एक और अचरज मिलना बाकी था. बातें शुरू हुईं, तो यह देख उन की प्रसन्नता असीमित हो चली कि इवाना हिंदी में बात कर पा रही है और हिंदी भी ऐसी कि आसानी से समझ में आ जाए.

शैलजा व दिनेश की लगभग हर बात समझते हुए वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उत्तर दे रही थी. हिंदी भाषा पर इवाना की इतनी पकड़ का कारण पूछने पर पता लगा कि उस के पिता एक भारतीय हैं.

इवाना ने बताया कि उस की मां इटली की रहने वाली हैं, लेकिन वे भी हिंदी समझती हैं और थोड़ाबहुत बोल भी लेती हैं, क्योंकि उन्होंने कई वर्ष भारत में बिताए हैं. पिता फ्रांस की एंबेसी में एक महत्वपूर्ण पद पर थे.

“तुम्हारे पापा का पूरा नाम क्या है? मैं एजुकेशन डिपार्टमेंट में होने के कारण उस एंबेसी में काम करने वाले लोगों को जानता हूं. भारत में फ्रेंच भाषा के प्रचारप्रसार को ले कर मुझ से वे मशवरा करते रहते हैं,” दिनेश इवाना की बात सुन उत्सुक हो पूछ बैठा

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“लो, तुम्हारी गोरी बहू लाने की तमन्ना पूरी हो गई,” मोबाइल पर आंखें गड़ाए  दिनेश सोफे से उठ कर किचन में सब्जी काट रही शैलजा के पास जा पहुंचा.

दिनेश के शब्दों को सुन शैलजा के हाथ रुक गए. चेहरा उत्सुकता से स्वयं ही दिनेश के मोबाइल की ओर मुड़ गया.

“अरे वाह, यह तो सचमुच गोरी है,” बेटे विशाल द्वारा व्हाट्सएप पर भेजी फोटो देख शैलजा आह्लादित हो उठी.

“होगी क्यों नहीं? गोरी जो है, मतलब विदेशी,” ठहाका लगाते हुए दिनेश अपने शब्दों का उत्तर शैलजा की भावभंगिमाओं में खोजने लगा. शैलजा की आंखों में दिख रही चमक और मुखमंडल की आभा यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि उसे विशाल की पसंद पर गर्व सा हो रहा था.

“मैं विशाल से कहना चाहती हूं कि जल्द से जल्द इस गौरवर्णा को मेरी बहू बनाने की तैयारी कर ले. अभी फोन कर लो न.”

“कुछ देर बाद करता हूं. आज संडे है तो वह घर पर ही होगा,” दिनेश उत्सुकता दबा मोबाइल पर अन्य मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया.

शैलजा को आज अचानक जैसे पंख लग गए. धरती से आसमान में पहुंच गई हो वह. कुछ अकाल्पनिक सा घटित हो रहा है उस के साथ. फ्रांस में रहने वाले 32 वर्षीय बेटे विशाल के लिए कब से वह जीवनसंगिनी की तलाश में थी. कितनी लड़कियों के फोटो देखे थे उस ने. रिश्तेदारों और सहेलियों को बारबार याद दिलाती कि उसे एक मनभावन कन्या की तलाश है. विभिन्न मैरिज साइट्स के माध्यम से भी एक योग्य बहू पाने की उस की तलाश पूरी नहीं हो पा रही थी. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती, तो किसी का बायोडेटा या फोटो देख विशाल बात आगे बढ़ाने से मना कर देता. जहां सब की रजामंदी हुई वहां शैलजा और दिनेश गए भी, लेकिन निराशा हाथ लगी. आदर्श बहू के गुणों में उस का रंग गोरा होना शैलजा की प्राथमिकता थी. दिनेश से वह कहती कि जब किसी लड़की की प्रोफाइल ठीकठाक होती तो न जाने क्यों सांवला रंग चिढ़ाने आ जाता है, लेकिन उस ने भी ठान लिया है कि बहू तो गोरी ही लाएगी वह.

दिन रात एक करने के बाद भी बात न बनने से शैलजा को चिंता सताने लगी थी कि परदेश में बैठे विशाल ने यदि अपने लिए स्वयं ही कोई लड़की पसंद कर ली तो क्या होगा? वह मानदंडों पर खरी न उतरी तो उस की नाक कट जाएगी. पड़ोस में रहने वाली मिसेज तनेजा की बहू का डस्की कौम्प्लेक्शन देख नाकभौं सिकोड़ने वालों में वह भी सम्मिलित थी.

दिनेश के मित्र सिंह साहब के बेटे की सगाई के अवसर पर दबी जबान में मेहमान उस विजातीय विवाह की आलोचना कर रहे थे. ऐसी किसी लड़की का विशाल द्वारा चुन लिया जाना शैलजा के लिए कितना पीड़ादायक होगा, इस की कल्पना कर ही वह सिहर उठती.

आज जब उस ने विशाल द्वारा भेजी तसवीर देखी तो बागबाग हो उठी. गोरे रंग में डूबी काया सभी को चकाचौंध कर देगी और जातिपांति की बात भी कोई नहीं उठाएगा जब बहू विदेशी होगी. उस का मन प्रसन्नता से नाचने लगा. बस एक समस्या उसे थोड़ी चुभन दे रही थी.

“होने वाली बहू न तो हिंदी बोल पाएगी और शायद समझ भी न पाए. यही थोड़ा तकलीफदेह लग रहा है, बाकी तो सब ठीक ही है,” सब सोचनेसमझने के बाद वह दिनेश से बोली.

“हां, हिंदी में उसे दिक्कत होगी, लेकिन इंगलिश का सहारा तो है ही. तुम अपनी पैंतीस साल की नौकरी के दौरान फर्राटेदार न सही कामचलाऊ इंगलिश तो बोल ही लेती हो. फिर क्या सोचना?” बेफिक्री के अंदाज में दिनेश ने जवाब दिया.

“उन लोगों का लहजा कुछ अलग ही होता है. दूसरी बात यह है कि मेरा काम औफिस में कर्मचारियों की छुट्टियों का हिसाब रखना, उन के द्वारा जमा बिलों की सत्यता की जांच और उन की अर्जियों को आगे बढ़ाने का ही है. इंगलिश में बातें करने का मौका न के बराबर ही मिलता है.”

शैलजा फिर सोच में पड़ गई. कुछ देर की माथापच्ची के बाद सिर झटकते हुए वह बोली, “मैं भी क्या ले कर बैठ गई. बहू से ज्यादा बोलने की नौबत आएगी ही कहां? फोन पर तो ज्यादा बातें विशाल से ही होंगी. रही यहां आने की बात तो दो महीने के लिए ही आएगा विशाल. उसी दौरान शादी कर देंगे, कुछ दिन वे साथसाथ घूमेंगे, फिरेंगे, फिर वापस चले जाएंगे.

“चलो ठीक है, बहू के साथ बात हो न हो, बस रिश्तेदारों और अड़ोसपड़ोस में नाक ऊंची हो जाए, इतना ही बहुत है,” मन ही मन होने वाली बहू के प्रति की लोगों की आंखों में प्रशंसा के भावों की कल्पना कर शैलजा गदगद हुए जा रही थी.

कुछ देर बाद उन्होंने विशाल को वीडियो काल किया. थोड़ी घबराई, थोड़ी संकोची सी मुद्रा में लड़की भी विशाल के पास बैठी थी. विशाल ने मम्मीपापा और भावी जीवनसंगिनी इवाना का परस्पर परिचय करवाया.

इवाना बेहद आकर्षक, सौम्य दिख रही थी. हर्षातिरेक से शैलजा व दिनेश एकसाथ “हेलो” बोल खिलखिला कर हंस पड़े.

इवाना के गुलाबी होंठ खिल उठे. चांद से उस के चेहरे पर लाल लिपस्टिक खूब फब रही थी. सुनहरी बालों में खोंसा हुआ उज्जवल डेजी का फूल मोतियों सी दमकती धवल ड्रैस के साथ मैच कर रहा था.

शैलजा का ह्रदय तरंगित होने लगा. स्वयं से कह उठी, ‘अरे वाह, गुलबहार लगाया है बालों में. यह तो मेरा प्रिय फूल है और इस फूल सी खूबसूरत, सलोनी है इवाना.’

दिनेश भी इवाना से प्रभावित हो टकटकी लगाए स्क्रीन की ओर देख रहा था.

उन दोनों को अभी एक और अचरज मिलना बाकी था. बातें शुरू हुईं, तो यह देख उन की प्रसन्नता असीमित हो चली कि इवाना हिंदी में बात कर पा रही है और हिंदी भी ऐसी कि आसानी से समझ में आ जाए.

शैलजा व दिनेश की लगभग हर बात समझते हुए वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उत्तर दे रही थी. हिंदी भाषा पर इवाना की इतनी पकड़ का कारण पूछने पर पता लगा कि उस के पिता एक भारतीय हैं.

इवाना ने बताया कि उस की मां इटली की रहने वाली हैं, लेकिन वे भी हिंदी समझती हैं और थोड़ाबहुत बोल भी लेती हैं, क्योंकि उन्होंने कई वर्ष भारत में बिताए हैं. पिता फ्रांस की एंबेसी में एक महत्वपूर्ण पद पर थे.

“तुम्हारे पापा का पूरा नाम क्या है? मैं एजुकेशन डिपार्टमेंट में होने के कारण उस एंबेसी में काम करने वाले लोगों को जानता हूं. भारत में फ्रेंच भाषा के प्रचारप्रसार को ले कर मुझ से वे मशवरा करते रहते हैं,” दिनेश इवाना की बात सुन उत्सुक हो पूछ बैठा

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June 27, 2022 at 10:28AM

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