Friday 17 June 2022

जुनून: जंगल में कैसे आग लगी?

दिन में 11 बजने वाला था. धीर सुबह की पैट्रोलिंग कर लौटा ही था. उसे अभी अपने कपड़े बदलने तक का अवसर नहीं मिला था और न हीं एक चाय ही नसीब हुई थी. वह केवल बाहर कुरसी निकाल कर उस पर बैठ ही पाया था कि तभी 2 ग्रामीण दौड़तेहांफते आए और जंगल में आग लगने की सूचना दी. सूचना पाते ही धीर ने फटाफट अपने चारों साथियों को सूचना दी और जंगल की ओर दौड़ लगा दी.

अप्रैल का महीना अपने अंत की ओर था. हलकीहलकी हवा चल रही थी. दौड़ते हुए धीर के दिमाग में कई विचार भी दौड़ लगा रहे थे कि आग बुझाने के उस के पास अच्छे संसाधन नहीं है, न ही पर्याप्त व्यक्ति. इसीलिए वह एक साथी को वहीं चौकी पर छोड़ आया था, जिस से कि वह उच्चाधिकारियों को इस बात की इतला दे सके, जिस से संभव है कि कुछ संसाधन आग बुझाने के उसे मुहैया हो सकें और दोनों ग्रामीणों से अनुनयविनय कर वह उन्हें भी अपनी सहायता के लिए साथ ले गया था.

अभी तो अपने साथियों के साथ धीर जंगल से लौटा था. तब कहीं पर आग नहीं लगी थी. फिर अचानक से यह आग कैसी लगी? जरूर किसी अराजक तत्त्व का इस में हाथ था जो उसे परेशान होते देखना चाहता था. ऐसा होने के कारण भी थे क्योंकि उस ने आसपास के दर्जनों वन अपराधियों की नाक में नकेल डाल रखी थी. उन सब की आंखों में धीर एक कांटे की तरह चुभ रहा था.

आज हलकी हवा चलते देख अराजक तत्त्वों ने धीर को सबक सिखाने की ही नियत से संभवतया यह करतूत की हो. आग ने कहीं विकराल रूप न धारण कर लिया हो. कैसे वह उसे बुझाएगा? आज उसे सस्पैंड होने से कोई बचा नहीं सकता. अचानक लगी आग निश्चित रूप से बड़ा नुकसान कर सकती है. उस पर कार्यवाही एक अलग बात है, पर न जाने कितने वन्यजीव आज इस आग की भेंट अकारण चढ़ जाएंगे, यह सब सोच कर वह परेशान था.

विचारों में ही दौड़ लगाते हुए आखिरकार धीर अपने साथियों व ग्रामीणों के साथ मौके पर पहुंच गया था. आग वास्तव में तेजी से फैल रही थी. अब थोड़ीथोड़ी देर भी उन की बहुत बड़ी मुश्किल बढ़ाने वाली थी. इसलिए उन सब ने तेजी से हरी झाड़ी के कईकई लंबे पौधे काट लिए और आग को पीटना प्रारंभ किया, जिस से कि आग बुझ सके. इस उपाय के अतिरिक्त आग से बचाव का उन के पास उस समय और कोई विकल्प न था.

धीर ने एक ग्रामीण और एक अपने साथी को एक तरफ से जिधर आग तेजी से बढ़ रही थी उस तरफ बटिया काटने के लिए कहा, जिस से कि आग आगे न बढ़ सके. दोनों साथी उसी तरफ बटिया काटने के लिए बढ़े, परंतु हवा के कारण लपटें तेज उठ रही थीं. सूखे पत्ते उड़उड़ कर दूरदूर तक फैल रहे थे. बटिया काटना मुमकिन नहीं हो पा रहा था.

आग भयानक रूप से बढ़ रही थी. सारे साथी तितरबितर हो गए थे. धीर पसीने से तरबतर था. उस के सिर पर एक जनून सवार था. वह आग को पीटपीट कर निरंतर बुझाने का प्रयत्न कर रहा था. उसे तेज प्यास लगी हुई थी, परंतु उस के पास अवसर कहां था जो वह पानी पी सकता. उसे चक्कर जैसा महसूस हो रहा था. बावजूद इस के, वह लगातार आग को पीटपीट कर उसे बुझाने में मशगूल था.

वह अपने चारों तरफ की गतिविधियों से बेखबर, बेखौफ एक ही धुन में, बस, आग बुझाए जा रहा था. वह आग बुझाने में इतना तल्लीन था कि उसे पता ही नहीं चला कि वह आग से तीन तरफ से घिर चुका है और जल्द ही चौथी तरफ से भी घिरने वाला है.

दुर्भाग्य से इसी बीच उसे एक हिरन चिल्लाते हुए दिखाई दिया. धीर का ध्यान टूटा. तीन तरफ से आग से घिरे बीचोंबीच में एक हिरन का बच्चा पहुंच गया था. उस का पीछा करते हुए उस की मां हिरनी अपनी जान की परवा किए बिना उसी ओर बढ़ी जा रही थी. धीर ने हिरनी को रोकने का प्रयत्न किया. परंतु वह हिरनी को आगे बढ़ने से रोक नहीं पाया.

धीर एक मां की ममता का अंदाजा लगा चुका था. हिरनी और उस के बच्चे की मौत उसे साफ दिखाई दे रही थी. वह किसी तरह से इस प्यारे बच्चे व उस की हताश, परेशान मां को बचाना चाहता था. उस ने मां को रोकने के बजाय स्वयं बच्चे की तरफ दौड़ लगा दी. उसे यह लग रहा था कि वह बच्चे को इस आग से बाहर निकाल देगा तो उस की मां खुद ही बाहर चली जाएगी.

पर हुआ धीर की सोच के विपरीत. धीर ने जैसे ही अपने कदम बच्चे की तरफ बढ़ाए, बच्चा डर के मारे आग की तरफ बढ़ने लगा. हिरनी चिंघाड़ी. स्थिति का अंदाजा लगाते हुए धीर ने चक्कर लगाते हुए बहुत तेज दौड़ लगा दी. वह बच्चे के पास तो पहुंच गया पर इस के साथ ही वह आग के भी बहुत नजदीक पहुंच गया था. आग की तपिश से वह अपनेआप को बचा नहीं पाया था.

उस ने बच्चे को उठाया और बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. अनुमान के अनुसार बिलकुल ठीक वैसा ही हुआ था. हिरनी भी बच्चे के साथ बाहर आ गई थी. धीर ने बच्चे और उस की मां को तो बाहर निकाल दिया था. पर यह क्या, जहां से उस ने बच्चे और उस की मां को अभीअभी बाहर निकाला था उसी तरफ 2 छोटे अवयस्क हिरन फिर पहुंच गए.

धीर ने अपना माथा पकड़ लिया. अब उस तरफ जाना बिलकुल ही खतरे को आमंत्रित कर के नहीं, बल्कि खतरे को साथ ले कर जाने जैसी स्थिति थी. पर धीर कल्पना मात्र से ही अपनेआप को रोक न पाया था. जान को हथेली पर रख कर वह भी उसी तरफ चकमा दे कर पहुंच गया था. चकमा दे कर सीधे पीछे जाने के बजाय थोड़ा घूम कर जाने की वजह से वह बच्चों को घुमाने की स्थिति में पहुंच गया था.

धीर का प्रयास रंग लाया था. बच्चों ने चौथी तरफ भी बड़ी तेजी से बढ़ रही आग की खुली जगह से जंप लगा दी थी. दोनों बच्चे आग के बाहर पहुंच चुके थे. इस से पहले कि धीर आग से बाहर निकल पाता, एक तेज लपट ने उस का रास्ता रोक लिया. वह चारों तरफ से आग से घिर गया. उस से बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे दिखाई नहीं दे रहा था.

चारों तरफ आग से घिरे धीर को सिर्फ आग की लपटें और उन की तपिश, उस का दम घोंट रहा धुंआं ही दिखाई दे रहा था. उसे चक्कर आ रहा था. वह बीच में चारों तरफ घूमा, पर उसे कोई निकलने का मार्ग सूझ नहीं रहा था. अब उस की आंखें धीमेधीमे बंद हो रही थीं. वह उसी आग के मध्य गिर गया था.

औक्सीजन मास्क चढ़ा हुआ था. बोतल चढ़ रही थी. बच्चे, मम्मी, पापा, पत्नी और वहां पर मौजूद सभी ईष्ट मित्रों की आंखें नम थीं. धीर की आंख खुली तो उसे असहनीय पीड़ा का एहसास हुआ. उस ने अपनेआप को अस्पताल में पाया.

धीर की खुली आंख देख कर बच्चा चिंहुक उठा. ‘‘मां, पापा ने आंखें खोल दीं.‘‘

वहां हलकी आवाजें सुन कर नर्स पहुंच चुकी थी. स्थिति को देख कर वह डाक्टर को बुला लाई थी. डाक्टर ने परीक्षण करते हुए औक्सीजन का मास्क निकाल दिया था. सामान्य स्थिति होने पर धीर ने पूंछा, ‘‘आखिर मैं यहां कैसे पहुंचा क्योंकि जिस समय मैं मूर्च्छित हुआ था, उस समय तो वहां और आसपास कोई नहीं था.‘‘

‘‘यह तुम्हारी दूरदर्शी सोच का परिणाम था, धीर जिस ने तुम्हें बचा लिया,‘‘ कमरे में दाखिल होते हुए दरोगा आकाश ने कहा, ‘‘सच में तुम ने यदि त्रिलोचन को चौकी पर उच्च स्तर को सूचित करने एवं पीछे से मदद पहुंचाने के लिए न रोका होता तो सचमुच आज हम तुम से मुलाकात न कर पाते और न मुलाकात कर पाते तुम अपने परिवार और ईष्ट मित्रों से.‘‘

‘‘आप के जाने के बाद हम सब को सूचित करते हुए कुछ ग्रामीणों को इकट्ठा कर मौके की ओर रवाना हुए. जब आप हिरन के बच्चे और हिरनी को बाहर छोड़ कर दूसरे बच्चों को बाहर करने तीन तरफ से घिरी आग में प्रवेश कर रहे थे, तब हम लोगों ने आप को पीछे, दूर, से देख लिया था. सो, हम लोग वहां पहुंच कर बड़ी मशक्कत से आप को बाहर ला पाए थे. परंतु तब तक आप बुरी तरह से आग से झुलस चुके थे,‘‘ पीछे से प्रवेश कर रहे त्रिलोचन ने कहा.

‘‘हां धीर, त्रिलोचन के ही कहने पर मैं तब बाइक से उस ओर जा रहा था. त्रिलोचन और इन के साथियों के कोलाहल ने हमें उन तक पहुंचने में मदद की थी. पूरे 6 महीने बाद छुट्टी पर जा रहा था, यार. तूने वो भी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. हम लोग तुम्हें बाइक पर किसी तरह ले कर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पहुंचे थे. तुम्हारी हालत देख कर वहां से यहां रैफर कर दिया गया. बहरहाल तुम बच गए मेरे शेर,‘‘ आकाश ने कहा.

‘‘पर जंगल तो पूरा जल गया हो गया,” कराहते हुए धीर ने कहा.

‘‘यह तुम्हारा जनून तुम्हारे साथसाथ एक दिन पूरे परिवार को खत्म कर देगा,‘‘ उस की पत्नी ने कहा.

‘‘नहीं यार, जिस समय हम लोग तुम्हें निकाल कर जंगल से बाहर आ रहे थे उस समय बाकी लोग आग बुझा रहे थे और ठीक तुम्हारे प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पहुंचते ही वहां स्टाफ उच्च स्तर से अन्य संसाधन ले कर पहुंच गया. कोई ज्यादा क्षति नहीं हुई मेरे शेर. हम सब के लिए बड़ी सुकून की बात है. हम गर्व से कह सकते हैं, सिर्फ तुम्हारी वजह से कोई भी वन्यजीव इस भीषण आग से नहीं मरा,‘‘ आकाश ने कहा.

धीर ने राहत की सांस ली थी. उसे सामान्य स्थिति में देख कर सब ने भी राहत की सांस ली थी.

आज 6 माह से अधिक का समय व्यतीत हो चुका था. राज्य स्तरीय आयोजित वन्य प्राणी सप्ताह कार्यक्रम में संचालक ने अपनी भूमिका में कहा, ‘‘इस जगत में जीने का सब का बराबर का अधिकार है. यह सब जानते हैं, परंतु आज के परिवेश में क्षात कराने जा रहे हैं एक ऐसे ही वन्यजीव रक्षक दिलेर से. आइए, हम इंसान ही इंसान को खत्म करने के लिए उतारू है. ऐसे में इंसानों से अपने प्राणों को दांव पर लगा कर जीवजंतुओं की रक्षा करना किसी कल्पना से कम नहीं है. परंतु आज हम आप सब का सामंच पर स्वागत करते हैं. धीर, वन्यजीव रक्षक का, जिन्होंने अपने प्राणों की बिना परवा किए जंगल के साथसाथ वन्यजीवों के जीवन की सब से विकटतम स्थिति में भी रक्षा की.‘‘

बदन पर आधे वस्त्रों के साथ मंच पर पहुंचे धीर के शरीर पर पुराने जले घावों की कई जगह की चमड़ी सफेद पड़ चुकी थी. कुछ ठीक हो गई थी. परंतु अभी कुछ हिस्से अभी भी ठीक हो रहे थे. इसलिए वह पूरे वस्त्र पहनने में असमर्थ था. हाथ में चमचमाती ट्रौफी, प्रशस्तिपत्र मुख्य अतिथि के हाथों से लेते हुए उन के द्वारा पूछे जाने पर धीर ने कहा, ‘‘सर, यह सम्मान पा कर अच्छा लग रहा है, परंतु मुझे यह पुरस्कार तो उसी दिन मिल गया था जब हमें अस्पताल में सूचना मिली थी कि मेरे द्वारा बचाए हुए चारों वन्यजीव उस भयानक आग से बच गए थे और उस आग से कोई वन्यजीव हताहत नहीं हुआ था.‘‘

आज हर तरफ धीर के जनून की कहानियों के चर्चे हो रहे थे. अगले दिन के लगभग सभी अखबारों में उस की इस कहानी के किस्से छपे हुए थे. धीर ने अपने पूरे जीवन में जो नहीं कमाया था, वह एक दिन में पा लिया था. उसे लग रहा था, उसे बहुत कम खो कर बहुत कुछ मिल गया है.

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दिन में 11 बजने वाला था. धीर सुबह की पैट्रोलिंग कर लौटा ही था. उसे अभी अपने कपड़े बदलने तक का अवसर नहीं मिला था और न हीं एक चाय ही नसीब हुई थी. वह केवल बाहर कुरसी निकाल कर उस पर बैठ ही पाया था कि तभी 2 ग्रामीण दौड़तेहांफते आए और जंगल में आग लगने की सूचना दी. सूचना पाते ही धीर ने फटाफट अपने चारों साथियों को सूचना दी और जंगल की ओर दौड़ लगा दी.

अप्रैल का महीना अपने अंत की ओर था. हलकीहलकी हवा चल रही थी. दौड़ते हुए धीर के दिमाग में कई विचार भी दौड़ लगा रहे थे कि आग बुझाने के उस के पास अच्छे संसाधन नहीं है, न ही पर्याप्त व्यक्ति. इसीलिए वह एक साथी को वहीं चौकी पर छोड़ आया था, जिस से कि वह उच्चाधिकारियों को इस बात की इतला दे सके, जिस से संभव है कि कुछ संसाधन आग बुझाने के उसे मुहैया हो सकें और दोनों ग्रामीणों से अनुनयविनय कर वह उन्हें भी अपनी सहायता के लिए साथ ले गया था.

अभी तो अपने साथियों के साथ धीर जंगल से लौटा था. तब कहीं पर आग नहीं लगी थी. फिर अचानक से यह आग कैसी लगी? जरूर किसी अराजक तत्त्व का इस में हाथ था जो उसे परेशान होते देखना चाहता था. ऐसा होने के कारण भी थे क्योंकि उस ने आसपास के दर्जनों वन अपराधियों की नाक में नकेल डाल रखी थी. उन सब की आंखों में धीर एक कांटे की तरह चुभ रहा था.

आज हलकी हवा चलते देख अराजक तत्त्वों ने धीर को सबक सिखाने की ही नियत से संभवतया यह करतूत की हो. आग ने कहीं विकराल रूप न धारण कर लिया हो. कैसे वह उसे बुझाएगा? आज उसे सस्पैंड होने से कोई बचा नहीं सकता. अचानक लगी आग निश्चित रूप से बड़ा नुकसान कर सकती है. उस पर कार्यवाही एक अलग बात है, पर न जाने कितने वन्यजीव आज इस आग की भेंट अकारण चढ़ जाएंगे, यह सब सोच कर वह परेशान था.

विचारों में ही दौड़ लगाते हुए आखिरकार धीर अपने साथियों व ग्रामीणों के साथ मौके पर पहुंच गया था. आग वास्तव में तेजी से फैल रही थी. अब थोड़ीथोड़ी देर भी उन की बहुत बड़ी मुश्किल बढ़ाने वाली थी. इसलिए उन सब ने तेजी से हरी झाड़ी के कईकई लंबे पौधे काट लिए और आग को पीटना प्रारंभ किया, जिस से कि आग बुझ सके. इस उपाय के अतिरिक्त आग से बचाव का उन के पास उस समय और कोई विकल्प न था.

धीर ने एक ग्रामीण और एक अपने साथी को एक तरफ से जिधर आग तेजी से बढ़ रही थी उस तरफ बटिया काटने के लिए कहा, जिस से कि आग आगे न बढ़ सके. दोनों साथी उसी तरफ बटिया काटने के लिए बढ़े, परंतु हवा के कारण लपटें तेज उठ रही थीं. सूखे पत्ते उड़उड़ कर दूरदूर तक फैल रहे थे. बटिया काटना मुमकिन नहीं हो पा रहा था.

आग भयानक रूप से बढ़ रही थी. सारे साथी तितरबितर हो गए थे. धीर पसीने से तरबतर था. उस के सिर पर एक जनून सवार था. वह आग को पीटपीट कर निरंतर बुझाने का प्रयत्न कर रहा था. उसे तेज प्यास लगी हुई थी, परंतु उस के पास अवसर कहां था जो वह पानी पी सकता. उसे चक्कर जैसा महसूस हो रहा था. बावजूद इस के, वह लगातार आग को पीटपीट कर उसे बुझाने में मशगूल था.

वह अपने चारों तरफ की गतिविधियों से बेखबर, बेखौफ एक ही धुन में, बस, आग बुझाए जा रहा था. वह आग बुझाने में इतना तल्लीन था कि उसे पता ही नहीं चला कि वह आग से तीन तरफ से घिर चुका है और जल्द ही चौथी तरफ से भी घिरने वाला है.

दुर्भाग्य से इसी बीच उसे एक हिरन चिल्लाते हुए दिखाई दिया. धीर का ध्यान टूटा. तीन तरफ से आग से घिरे बीचोंबीच में एक हिरन का बच्चा पहुंच गया था. उस का पीछा करते हुए उस की मां हिरनी अपनी जान की परवा किए बिना उसी ओर बढ़ी जा रही थी. धीर ने हिरनी को रोकने का प्रयत्न किया. परंतु वह हिरनी को आगे बढ़ने से रोक नहीं पाया.

धीर एक मां की ममता का अंदाजा लगा चुका था. हिरनी और उस के बच्चे की मौत उसे साफ दिखाई दे रही थी. वह किसी तरह से इस प्यारे बच्चे व उस की हताश, परेशान मां को बचाना चाहता था. उस ने मां को रोकने के बजाय स्वयं बच्चे की तरफ दौड़ लगा दी. उसे यह लग रहा था कि वह बच्चे को इस आग से बाहर निकाल देगा तो उस की मां खुद ही बाहर चली जाएगी.

पर हुआ धीर की सोच के विपरीत. धीर ने जैसे ही अपने कदम बच्चे की तरफ बढ़ाए, बच्चा डर के मारे आग की तरफ बढ़ने लगा. हिरनी चिंघाड़ी. स्थिति का अंदाजा लगाते हुए धीर ने चक्कर लगाते हुए बहुत तेज दौड़ लगा दी. वह बच्चे के पास तो पहुंच गया पर इस के साथ ही वह आग के भी बहुत नजदीक पहुंच गया था. आग की तपिश से वह अपनेआप को बचा नहीं पाया था.

उस ने बच्चे को उठाया और बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. अनुमान के अनुसार बिलकुल ठीक वैसा ही हुआ था. हिरनी भी बच्चे के साथ बाहर आ गई थी. धीर ने बच्चे और उस की मां को तो बाहर निकाल दिया था. पर यह क्या, जहां से उस ने बच्चे और उस की मां को अभीअभी बाहर निकाला था उसी तरफ 2 छोटे अवयस्क हिरन फिर पहुंच गए.

धीर ने अपना माथा पकड़ लिया. अब उस तरफ जाना बिलकुल ही खतरे को आमंत्रित कर के नहीं, बल्कि खतरे को साथ ले कर जाने जैसी स्थिति थी. पर धीर कल्पना मात्र से ही अपनेआप को रोक न पाया था. जान को हथेली पर रख कर वह भी उसी तरफ चकमा दे कर पहुंच गया था. चकमा दे कर सीधे पीछे जाने के बजाय थोड़ा घूम कर जाने की वजह से वह बच्चों को घुमाने की स्थिति में पहुंच गया था.

धीर का प्रयास रंग लाया था. बच्चों ने चौथी तरफ भी बड़ी तेजी से बढ़ रही आग की खुली जगह से जंप लगा दी थी. दोनों बच्चे आग के बाहर पहुंच चुके थे. इस से पहले कि धीर आग से बाहर निकल पाता, एक तेज लपट ने उस का रास्ता रोक लिया. वह चारों तरफ से आग से घिर गया. उस से बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे दिखाई नहीं दे रहा था.

चारों तरफ आग से घिरे धीर को सिर्फ आग की लपटें और उन की तपिश, उस का दम घोंट रहा धुंआं ही दिखाई दे रहा था. उसे चक्कर आ रहा था. वह बीच में चारों तरफ घूमा, पर उसे कोई निकलने का मार्ग सूझ नहीं रहा था. अब उस की आंखें धीमेधीमे बंद हो रही थीं. वह उसी आग के मध्य गिर गया था.

औक्सीजन मास्क चढ़ा हुआ था. बोतल चढ़ रही थी. बच्चे, मम्मी, पापा, पत्नी और वहां पर मौजूद सभी ईष्ट मित्रों की आंखें नम थीं. धीर की आंख खुली तो उसे असहनीय पीड़ा का एहसास हुआ. उस ने अपनेआप को अस्पताल में पाया.

धीर की खुली आंख देख कर बच्चा चिंहुक उठा. ‘‘मां, पापा ने आंखें खोल दीं.‘‘

वहां हलकी आवाजें सुन कर नर्स पहुंच चुकी थी. स्थिति को देख कर वह डाक्टर को बुला लाई थी. डाक्टर ने परीक्षण करते हुए औक्सीजन का मास्क निकाल दिया था. सामान्य स्थिति होने पर धीर ने पूंछा, ‘‘आखिर मैं यहां कैसे पहुंचा क्योंकि जिस समय मैं मूर्च्छित हुआ था, उस समय तो वहां और आसपास कोई नहीं था.‘‘

‘‘यह तुम्हारी दूरदर्शी सोच का परिणाम था, धीर जिस ने तुम्हें बचा लिया,‘‘ कमरे में दाखिल होते हुए दरोगा आकाश ने कहा, ‘‘सच में तुम ने यदि त्रिलोचन को चौकी पर उच्च स्तर को सूचित करने एवं पीछे से मदद पहुंचाने के लिए न रोका होता तो सचमुच आज हम तुम से मुलाकात न कर पाते और न मुलाकात कर पाते तुम अपने परिवार और ईष्ट मित्रों से.‘‘

‘‘आप के जाने के बाद हम सब को सूचित करते हुए कुछ ग्रामीणों को इकट्ठा कर मौके की ओर रवाना हुए. जब आप हिरन के बच्चे और हिरनी को बाहर छोड़ कर दूसरे बच्चों को बाहर करने तीन तरफ से घिरी आग में प्रवेश कर रहे थे, तब हम लोगों ने आप को पीछे, दूर, से देख लिया था. सो, हम लोग वहां पहुंच कर बड़ी मशक्कत से आप को बाहर ला पाए थे. परंतु तब तक आप बुरी तरह से आग से झुलस चुके थे,‘‘ पीछे से प्रवेश कर रहे त्रिलोचन ने कहा.

‘‘हां धीर, त्रिलोचन के ही कहने पर मैं तब बाइक से उस ओर जा रहा था. त्रिलोचन और इन के साथियों के कोलाहल ने हमें उन तक पहुंचने में मदद की थी. पूरे 6 महीने बाद छुट्टी पर जा रहा था, यार. तूने वो भी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. हम लोग तुम्हें बाइक पर किसी तरह ले कर प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पहुंचे थे. तुम्हारी हालत देख कर वहां से यहां रैफर कर दिया गया. बहरहाल तुम बच गए मेरे शेर,‘‘ आकाश ने कहा.

‘‘पर जंगल तो पूरा जल गया हो गया,” कराहते हुए धीर ने कहा.

‘‘यह तुम्हारा जनून तुम्हारे साथसाथ एक दिन पूरे परिवार को खत्म कर देगा,‘‘ उस की पत्नी ने कहा.

‘‘नहीं यार, जिस समय हम लोग तुम्हें निकाल कर जंगल से बाहर आ रहे थे उस समय बाकी लोग आग बुझा रहे थे और ठीक तुम्हारे प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पहुंचते ही वहां स्टाफ उच्च स्तर से अन्य संसाधन ले कर पहुंच गया. कोई ज्यादा क्षति नहीं हुई मेरे शेर. हम सब के लिए बड़ी सुकून की बात है. हम गर्व से कह सकते हैं, सिर्फ तुम्हारी वजह से कोई भी वन्यजीव इस भीषण आग से नहीं मरा,‘‘ आकाश ने कहा.

धीर ने राहत की सांस ली थी. उसे सामान्य स्थिति में देख कर सब ने भी राहत की सांस ली थी.

आज 6 माह से अधिक का समय व्यतीत हो चुका था. राज्य स्तरीय आयोजित वन्य प्राणी सप्ताह कार्यक्रम में संचालक ने अपनी भूमिका में कहा, ‘‘इस जगत में जीने का सब का बराबर का अधिकार है. यह सब जानते हैं, परंतु आज के परिवेश में क्षात कराने जा रहे हैं एक ऐसे ही वन्यजीव रक्षक दिलेर से. आइए, हम इंसान ही इंसान को खत्म करने के लिए उतारू है. ऐसे में इंसानों से अपने प्राणों को दांव पर लगा कर जीवजंतुओं की रक्षा करना किसी कल्पना से कम नहीं है. परंतु आज हम आप सब का सामंच पर स्वागत करते हैं. धीर, वन्यजीव रक्षक का, जिन्होंने अपने प्राणों की बिना परवा किए जंगल के साथसाथ वन्यजीवों के जीवन की सब से विकटतम स्थिति में भी रक्षा की.‘‘

बदन पर आधे वस्त्रों के साथ मंच पर पहुंचे धीर के शरीर पर पुराने जले घावों की कई जगह की चमड़ी सफेद पड़ चुकी थी. कुछ ठीक हो गई थी. परंतु अभी कुछ हिस्से अभी भी ठीक हो रहे थे. इसलिए वह पूरे वस्त्र पहनने में असमर्थ था. हाथ में चमचमाती ट्रौफी, प्रशस्तिपत्र मुख्य अतिथि के हाथों से लेते हुए उन के द्वारा पूछे जाने पर धीर ने कहा, ‘‘सर, यह सम्मान पा कर अच्छा लग रहा है, परंतु मुझे यह पुरस्कार तो उसी दिन मिल गया था जब हमें अस्पताल में सूचना मिली थी कि मेरे द्वारा बचाए हुए चारों वन्यजीव उस भयानक आग से बच गए थे और उस आग से कोई वन्यजीव हताहत नहीं हुआ था.‘‘

आज हर तरफ धीर के जनून की कहानियों के चर्चे हो रहे थे. अगले दिन के लगभग सभी अखबारों में उस की इस कहानी के किस्से छपे हुए थे. धीर ने अपने पूरे जीवन में जो नहीं कमाया था, वह एक दिन में पा लिया था. उसे लग रहा था, उसे बहुत कम खो कर बहुत कुछ मिल गया है.

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June 18, 2022 at 10:20AM

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