Tuesday 21 June 2022

जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती- भाग 1: शादी के बाद खुशमन क्यों बदल गया?

‘‘खुशी…’’चिल्लाते हुए खुशमन बोला, ‘‘मेरे सामने बोलने की हिम्मत भी न करना. मैं कभी सहन नहीं कर पाऊंगा कि कोई मेरे सामने मुंह भी खोले और तुम जैसी का तो कभी भी नहीं.’’

पता नहीं और क्याक्या बोला खुशमन ने. ‘तुम जैसी को तो कभी भी सहन नहीं कर सकता,’ यह वाक्य तो खुशमन ने पता नहीं इन 5 वर्षों में कितनी बार दोहराया होगा. पर मैं पता नहीं क्यों फिर भी वहीं की वहीं थी. वैसे की वैसी… जिस पर जितना मरजी पानी फेंको, ठोकरें मारो कोई फर्क नहीं पड़ता था या फिर मेरा वजूद भी खत्म हो गया था.

शादी को 5 साल हो गए थे. पता नहीं क्याक्या बदल गया था? जब याद करती हूं कि यह वही खुशमन है जिसे मैं आज से 5 साल पहले मिली थी तो खुद को कितनी खुशहाल समझी थी. वह लड़की जिस से दोस्ती के लिए भी हाथ बढ़ाने को सब तरसते थे और वह खुशमन के पीछे चलती हुई न जाने कब उस की जीवनसंगिनी बन गई थी.

मांबाप की इकलौती संतान थी खुशी. बड़े नाजों से, लाड़प्यार से पाला था उस के मांबाप ने. पापा शहर के जानेमाने बिल्डर थे. इमारतें बना कर बेचना बड़ा काम था उन का. खुशी के जन्म के बाद तो उन का व्यवसाय इतना बढ़ा कि उन्होंने इस का श्रेय उसे दे दिया. खुशी के मुंह से निकली कोई इच्छा खाली नहीं जाती थी. शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ने के बाद खुशी ने अपने ही शहर के सब से अच्छे कालेज में बीएससी साइंस में दाखिला ले लिया. पढ़ाई में तो होशियार थी ही, साथ ही साथ खूबसूरत भी थी.

कालेज में पहले ही दिन उस के कई दोस्त बन गए. खुशी कालेज के प्रत्येक समारोह में भाग लेती. पढ़ाई में भी प्रथम स्थान पर रहती. इसी कारण वह अध्यापकों की भी चहेती बन गई थी. हर कोई उस की प्रशंसा करता न थकता. इतने गुण होने के बावजूद भी खुशी में घमंड बिलकुल नहीं था. घर में भी सब से मिल कर रहना और मातापिता का पूरा ध्यान उस के द्वारा रखा जाता था.

एक बार पापा को दिल का दौरा पड़ा तो खुशी ने ऐसे संभाला कि एक बेटा भी ऐसा न कर पाता. एक दिन पापा जैसे ही शाम को घर पहुंचे तो खुशी रोज की तरह पापा को पानी देने आई तो पापा को सोफे पर गिरा पड़ा पाया. खुशी ने हिलाया, पर पापा के शरीर में कोई हलचल न थी. नौकरों और मां की सहायता से कार से तुरंत अस्पताल ले गई और पापा को बचा लिया. तब से मातापिता का उस पर मान और भी बढ़ गया था. तब पापा ने कहा भी था कि लड़की भी लड़का बन सकती है. जरूरी नहीं कि लड़का ही जिंदगी को खुशहाल बनाता है. तब खुशी को महसूस हुआ कि उन के परिवार में कुछ भी अधूरा नहीं है.

बीएससी करने के बाद खुशी ने एमएससी में दाखिला लेना चाहा पर मां की इच्छा थी कि अब उस की शादी हो जाए, क्योंकि पापा को अपने व्यवसाय को संभालने के लिए सहारा चाहिए था. लड़का तो कोई था नहीं. इसलिए उन का विचार था कि खुशी का पति उन के साथ व्यवसाय संभाल लेगा. मगर खुशी चाहती थी कि वह आगे पढ़े. अत: मातापिता ने उस की जिद मान ली.

एमएससी खुशी के शहर के कालेज में नहीं थी. इस के लिए उसे दूसरे शहर के कालेज में दाखिला लेना पड़ता था. इस के लिए भी पापा ने अपनी हरी झंडी दिखा दी. खुशी ने दाखिला ले लिया. रोजाना बस से ही कालेज जातीआती थी. पापा ने यह देख कर उसे कार ले दी. अब वह कार से कालेज जाने लगी. उस की सहेलियां भी उस के साथ ही जाने लगीं. समय पर कालेज पहुंचती, पूरे पीरियड अटैंड करती, यहां पर भी खुशी की कई सहेलियां बन गईं. होनकार विद्यार्थी होने के कारण अध्यापकों की भी चहेली बन गई.

कालेज जौइन कर समय का पता ही नहीं चला कि कब 4 महीने बीत गए. खुशी को कई बार महसूस होता कि कोई उसे चुपके से देखता है, उस का पीछा करता है, परंतु कई बार इसे वहम समझ लेती. मगर यह सच था और वह शख्स धीरेधीरे उस के सामने आ रहा था.

रोजाना की तरह उस दिन भी खुशी कक्षा खत्म होने के बाद लाइब्रेरी चली गई. वह वहां किताबें देख ही रही थी कि कोई पास आ कर उसी अलमारी में से पुस्तकें देखने लगा. खुशी घबरा कर पीछे हो गई. जब पलट कर देखा तो यह वही था जो उस के आसपास ही रहता था. उस ने खुशी की तरफ मुसकरा कर देखा, पर खुशी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चली गई. अब तो वह खुशी को रोजाना नजर आने लगा. वह कहीं न कहीं खुशी को मिल ही जाता.

एक दिन खुशी लाइब्रेरी में बैठ कर एक पुस्तक पढ़ रही थी. उस की एक ही कापी लाइब्रेरी में थी जिस कारण उसे इश्यू नहीं किया गया था. तभी अचानक वह वहीं खुशी के पास आ कर बैठ गया और फिर कहने लगा, ‘‘इस पुस्तक को तो मैं कब से ढूंढ़ रहा था और यह आप के पास है.’’

खुशी घबरा गई. ‘‘अरे, घबराएं नहीं. मैं भी आप की ही तरह इसी विद्यालय का छात्र हूं. खुशमन नाम है मेरा और आप का?

‘‘खुशी, मेरा नाम खुशी है,’’ कह कर खुशी बाहर आ गई.

खुशमन भी साथ ही आ गया और फिर चला गया. अब रोज मिलते. हायहैलो हो जाती. धीरेधीरे कालेज की कैंटीन में समय बिताना शुरू कर दिया. खुशमन ने अपने परिवार के बारे में काफी बातें बतानी शुरू कर दीं. काफी होशियार था वह पढ़ने में. कालेज का जानामाना छात्र था. उस के मातापिता नहीं थे. एक भाई था, जो पिता का व्यवसाय संभालता था. पैसे की कमी न थी. खुशमन शुरू से ही होस्टल में पढ़ा था, इसलिए घर से लगाव भी कम ही था. शहर में कालेज होने पर भी होस्टल में ही रहता था. भाई ने शादी कर ली थी, परंतु खुशमन अभी पढ़ना चाहता था. इंजीनियरिंग का बड़ा ही होशियार छात्र था. उसे कई कंपनियों से नौकरी के औफर थे. बड़ीबड़ी कंपनियां उसे लेने के लिए खड़ी थीं. खुशी का अब काफी समय उस के साथ बीतने लगा. पता ही नहीं चला कि कब 1 साल बीत गया और कब उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

खुशी के पापा का व्यवसाय काफी अच्छा चल रहा था, परंतु अब वे ज्यादा बोझ नहीं उठा पाते थे, क्योंकि अब उन की उम्र और दूसरा शायद बेटा न होने की चिंता. मगर उन्होंने यह खुशी को पता नहीं चलने दिया.

The post जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती- भाग 1: शादी के बाद खुशमन क्यों बदल गया? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/IVr3THJ

‘‘खुशी…’’चिल्लाते हुए खुशमन बोला, ‘‘मेरे सामने बोलने की हिम्मत भी न करना. मैं कभी सहन नहीं कर पाऊंगा कि कोई मेरे सामने मुंह भी खोले और तुम जैसी का तो कभी भी नहीं.’’

पता नहीं और क्याक्या बोला खुशमन ने. ‘तुम जैसी को तो कभी भी सहन नहीं कर सकता,’ यह वाक्य तो खुशमन ने पता नहीं इन 5 वर्षों में कितनी बार दोहराया होगा. पर मैं पता नहीं क्यों फिर भी वहीं की वहीं थी. वैसे की वैसी… जिस पर जितना मरजी पानी फेंको, ठोकरें मारो कोई फर्क नहीं पड़ता था या फिर मेरा वजूद भी खत्म हो गया था.

शादी को 5 साल हो गए थे. पता नहीं क्याक्या बदल गया था? जब याद करती हूं कि यह वही खुशमन है जिसे मैं आज से 5 साल पहले मिली थी तो खुद को कितनी खुशहाल समझी थी. वह लड़की जिस से दोस्ती के लिए भी हाथ बढ़ाने को सब तरसते थे और वह खुशमन के पीछे चलती हुई न जाने कब उस की जीवनसंगिनी बन गई थी.

मांबाप की इकलौती संतान थी खुशी. बड़े नाजों से, लाड़प्यार से पाला था उस के मांबाप ने. पापा शहर के जानेमाने बिल्डर थे. इमारतें बना कर बेचना बड़ा काम था उन का. खुशी के जन्म के बाद तो उन का व्यवसाय इतना बढ़ा कि उन्होंने इस का श्रेय उसे दे दिया. खुशी के मुंह से निकली कोई इच्छा खाली नहीं जाती थी. शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ने के बाद खुशी ने अपने ही शहर के सब से अच्छे कालेज में बीएससी साइंस में दाखिला ले लिया. पढ़ाई में तो होशियार थी ही, साथ ही साथ खूबसूरत भी थी.

कालेज में पहले ही दिन उस के कई दोस्त बन गए. खुशी कालेज के प्रत्येक समारोह में भाग लेती. पढ़ाई में भी प्रथम स्थान पर रहती. इसी कारण वह अध्यापकों की भी चहेती बन गई थी. हर कोई उस की प्रशंसा करता न थकता. इतने गुण होने के बावजूद भी खुशी में घमंड बिलकुल नहीं था. घर में भी सब से मिल कर रहना और मातापिता का पूरा ध्यान उस के द्वारा रखा जाता था.

एक बार पापा को दिल का दौरा पड़ा तो खुशी ने ऐसे संभाला कि एक बेटा भी ऐसा न कर पाता. एक दिन पापा जैसे ही शाम को घर पहुंचे तो खुशी रोज की तरह पापा को पानी देने आई तो पापा को सोफे पर गिरा पड़ा पाया. खुशी ने हिलाया, पर पापा के शरीर में कोई हलचल न थी. नौकरों और मां की सहायता से कार से तुरंत अस्पताल ले गई और पापा को बचा लिया. तब से मातापिता का उस पर मान और भी बढ़ गया था. तब पापा ने कहा भी था कि लड़की भी लड़का बन सकती है. जरूरी नहीं कि लड़का ही जिंदगी को खुशहाल बनाता है. तब खुशी को महसूस हुआ कि उन के परिवार में कुछ भी अधूरा नहीं है.

बीएससी करने के बाद खुशी ने एमएससी में दाखिला लेना चाहा पर मां की इच्छा थी कि अब उस की शादी हो जाए, क्योंकि पापा को अपने व्यवसाय को संभालने के लिए सहारा चाहिए था. लड़का तो कोई था नहीं. इसलिए उन का विचार था कि खुशी का पति उन के साथ व्यवसाय संभाल लेगा. मगर खुशी चाहती थी कि वह आगे पढ़े. अत: मातापिता ने उस की जिद मान ली.

एमएससी खुशी के शहर के कालेज में नहीं थी. इस के लिए उसे दूसरे शहर के कालेज में दाखिला लेना पड़ता था. इस के लिए भी पापा ने अपनी हरी झंडी दिखा दी. खुशी ने दाखिला ले लिया. रोजाना बस से ही कालेज जातीआती थी. पापा ने यह देख कर उसे कार ले दी. अब वह कार से कालेज जाने लगी. उस की सहेलियां भी उस के साथ ही जाने लगीं. समय पर कालेज पहुंचती, पूरे पीरियड अटैंड करती, यहां पर भी खुशी की कई सहेलियां बन गईं. होनकार विद्यार्थी होने के कारण अध्यापकों की भी चहेली बन गई.

कालेज जौइन कर समय का पता ही नहीं चला कि कब 4 महीने बीत गए. खुशी को कई बार महसूस होता कि कोई उसे चुपके से देखता है, उस का पीछा करता है, परंतु कई बार इसे वहम समझ लेती. मगर यह सच था और वह शख्स धीरेधीरे उस के सामने आ रहा था.

रोजाना की तरह उस दिन भी खुशी कक्षा खत्म होने के बाद लाइब्रेरी चली गई. वह वहां किताबें देख ही रही थी कि कोई पास आ कर उसी अलमारी में से पुस्तकें देखने लगा. खुशी घबरा कर पीछे हो गई. जब पलट कर देखा तो यह वही था जो उस के आसपास ही रहता था. उस ने खुशी की तरफ मुसकरा कर देखा, पर खुशी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चली गई. अब तो वह खुशी को रोजाना नजर आने लगा. वह कहीं न कहीं खुशी को मिल ही जाता.

एक दिन खुशी लाइब्रेरी में बैठ कर एक पुस्तक पढ़ रही थी. उस की एक ही कापी लाइब्रेरी में थी जिस कारण उसे इश्यू नहीं किया गया था. तभी अचानक वह वहीं खुशी के पास आ कर बैठ गया और फिर कहने लगा, ‘‘इस पुस्तक को तो मैं कब से ढूंढ़ रहा था और यह आप के पास है.’’

खुशी घबरा गई. ‘‘अरे, घबराएं नहीं. मैं भी आप की ही तरह इसी विद्यालय का छात्र हूं. खुशमन नाम है मेरा और आप का?

‘‘खुशी, मेरा नाम खुशी है,’’ कह कर खुशी बाहर आ गई.

खुशमन भी साथ ही आ गया और फिर चला गया. अब रोज मिलते. हायहैलो हो जाती. धीरेधीरे कालेज की कैंटीन में समय बिताना शुरू कर दिया. खुशमन ने अपने परिवार के बारे में काफी बातें बतानी शुरू कर दीं. काफी होशियार था वह पढ़ने में. कालेज का जानामाना छात्र था. उस के मातापिता नहीं थे. एक भाई था, जो पिता का व्यवसाय संभालता था. पैसे की कमी न थी. खुशमन शुरू से ही होस्टल में पढ़ा था, इसलिए घर से लगाव भी कम ही था. शहर में कालेज होने पर भी होस्टल में ही रहता था. भाई ने शादी कर ली थी, परंतु खुशमन अभी पढ़ना चाहता था. इंजीनियरिंग का बड़ा ही होशियार छात्र था. उसे कई कंपनियों से नौकरी के औफर थे. बड़ीबड़ी कंपनियां उसे लेने के लिए खड़ी थीं. खुशी का अब काफी समय उस के साथ बीतने लगा. पता ही नहीं चला कि कब 1 साल बीत गया और कब उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

खुशी के पापा का व्यवसाय काफी अच्छा चल रहा था, परंतु अब वे ज्यादा बोझ नहीं उठा पाते थे, क्योंकि अब उन की उम्र और दूसरा शायद बेटा न होने की चिंता. मगर उन्होंने यह खुशी को पता नहीं चलने दिया.

The post जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती- भाग 1: शादी के बाद खुशमन क्यों बदल गया? appeared first on Sarita Magazine.

June 22, 2022 at 10:27AM

No comments:

Post a Comment