Tuesday 7 June 2022

ऐसी जुगुनी- भाग 1: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.

उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’

नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’

शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.

बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.

बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’

उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’

पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’

तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…

उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.

विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’

तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’

जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’

तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.

लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.

अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’

अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’

बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’

बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’

अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’

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‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.

उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’

नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’

शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.

बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.

बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’

उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’

पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’

तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…

उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.

विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’

तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’

जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’

तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.

लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.

अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’

अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’

बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’

बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’

अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’

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June 08, 2022 at 09:45AM

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