Monday 27 June 2022

ऐनी तुम कहां हो- भाग 1: आखिर ऐनी का क्या संदेश था?

ऐनी !

यही नाम था उस का. जब से वह कालेज में आई थी, एक प्रोफैसर के तौर पर मैं ने अपनेआप को ज्यादा व्यवस्थित पाया था. उस ने कब मेरे दिल को छू लिया था… याद नहीं. मेरे लिए वह एक रटारटाया समीकरण थी…प्यारी, हंसती, खिलखिलाती…इज इक्वल टू…ऐनी.

ऐनी कौन थी?

ऐनी एक दक्षिण भारतीय लड़की थी. कुछ दूसरी लड़कियों की तरह ही अबोध, किंतु नादानी में विलक्षण. बिंदास भी. साउथ इंडियन टच उस के लहज़े को और भी आकर्षक बना देता था. ऐनी कब क्या पूछेगी, खुद उसे भी नहीं मालूम होता था. वह अचानक इस तरह प्रश्न करती कि प्रोफैसरों के निर्विकार चेहरे भी खिलखिला उठते थे. उस के प्रश्न बेलगाम थे. कहना न होगा कि नादानी की अबोध पुनरावृत्तियां उस की पहचान थीं. मैं और मेरे साथी प्रोफैसर उस के औचित्यहीन सवालों को उस का आत्मविश्वास कहते थे, जो उस में कूटकूट कर भरा था. जिस के प्रदर्शन का एक ही जरिया था उस की भोलीभाली हरकतें. वह स्टाफरूम में चर्चा का स्थायी विषय थी.

ऐनी ने अपनी पहली छाप तब छोड़ी थी जब प्रो. शर्मा छुट्टी पर जा रहे थे. मिसेज शर्मा पूरे पेट से थीं. कालेज में किसी स्टूडैंट नें नहीं पूछा सिवा ऐनी के. ‘सर, मैडम का अंतिम समय चल रहा है?’ सब हंस दिए थे. शर्मा जी बोले, ‘ऐनी, अंतिम नहीं, पूरा समय चल रहा है.’

ऐनी कुछ ऐसी ही थी…प्यारी…हंसती…खिलखिलाती…

प्रिंसिपल मेहता को पितृशोक हुआ. ऐनी जिद कर मेरे साथ उन के घर पहुंच गई थी. ‘सर, आप का पिताजी मर गया, भोत दुख हुआ,’ एनी ने कहा था. मैं घबरा गया, उसे रोक कर बाहर लाया था. मैं ने समझाया, ‘देखो ऐनी, तुम कुछ भी कह देती हो. तुम्हें कहना था आप के पिताजी नहीं रहे, सुन कर दुख हुआ. किसी दिन मरवाओगी.’ फिर प्यार से कहा था, ‘ऐनी जी, अब चलिए यहां से.’ मेरा हाथ कब प्यार से उस के कंधे पर रखा गया, खुद मुझे भी पता न चला लेकिन यह जरूर पता चला कि प्रथम स्पर्श की अनुभूति अमिट होती है. इन सब बातों से बेखबर ऐनी की मुझे यह पहली सौगात थी.

इसी बेलगाम किंतु प्यारे तूफान से रोज क्लास में सामना करना था. संकट गहरा था. वह मुंह खोलती और मेरी धड़कनें बढ़ जातीं. तीनसाढ़ेतीन साल के मेरे अध्यापनकाल में ऐनी ऐसी पहली स्टूडैंट थी जिस के लिए मैं हमेशा यही मनाता था कि, बस, वह चुपचाप बैठी रहे. लेकिन आमतौर पर जो चाहो वह होता नहीं है. जल्द ही मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं ऐनी की कक्षा में शरीर के स्नायुतंत्र और पृष्ठ भाग का विवरण पढ़ा रहा था. इसी संदर्भ में मेरे द्वारा किए गए पुट्ठे शब्द के साधारण उल्लेख को ऐनी ने जटिल बना दिया था. मुझे आज भी याद है, उस ने अनायास ही पूछा था, ‘सर, यह पुट्ठा क्या होते हैं?’ उस का उच्चारण छात्रों के लिए हंसी का लायसैंस था. सहज भाव से पूछे गए इस सवाल पर मैं भी अचकचा गया था. मेरी चुप्पी ने उस से कहीं ज्यादा मुझे छात्रों के बीच हंसी का पात्र बना दिया था. मुझे तब भी उस पर क्रोध नहीं, प्यार ही आया था. ऐनी ने मेरी प्रतिक्रिया को नोट किया था.  बाद में मुझ से कहा था, ‘‘सर, तुम दूसरों से थोड़ा अलग है…सौरी.’ मैं ने कृतज्ञता की मीठी आंच महसूस की थी.

चार वर्षों में मैं यह जान चुका था कि ऐनी बुरे से बुरे व्यक्ति की उपेक्षा करने में भी सर्वथा असमर्थ है. उस के लिए यह असंगत था कि वह पहले व्यक्ति का चयन करे, फिर बात कहे. उस के लिए सब बराबर थे. वह सही अर्थों में प्रेमपूर्ण थी समग्र रूप से…सब के साथ…सब के लिए.

चार साल!…चार साल तक ऐसे चरित्र के साथ बिना बदले रह पाना मुश्किल था. मुझे खुद पता नहीं चला कि मैं कब धीरेधीरे ऐनी की तरह ही हो रहा हूं. उस के बर्थडे पर वह नई ड्रैस में कालेज आई थी. मैं उसे देखते ही बोल उठा था, ‘ऐनी, तुम भोत अच्छा दिख रहा है.’ मेरे लहजे़ पर वह मुसकरा दी थी. मैं उस के सामने प्रोफैसर के तौर पर खास होने का एहसास खो चुका था. ऐनी मेरे लिए सबकुछ थी. यह प्यार में किसी के लिए प्रथम हो जाने की नई अनुभूति थी. मुझे ऐसा लगता जैसे वह हवाओं की तरह अनिवार्य है…और पलपल हर पल मुझ में समा रही है. मैं उस से खुल कर बात कहना चाहता था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई. वह हमेशा मुझे एक समानांतर शिखर पर ही नज़र आई. मुझे ऐसा कोई सेतु भी नज़र नहीं आया जो मुझे उस के शिखर तक पहुंचा सके. हमारे बीच फासला अमिट था.

मैं तर्कनिष्ठ था, वह घोर अतार्किक.

मैं लोगों को अस्वीकार करता, पराजित करता और सम्मान पाता था, वह स्वीकार करती, अपमानित होती, फिर भी आनंदित रहती.

मैं हर बात का जवाब था, वह सिर्फ एक सवाल थी.

हां, यह अलग बात थी कि ऐनी नाम के इस सवाल को मैं हल नहीं कर पा रहा था…फिजियोलौजी, फार्मेकोलौजी, मैडिसिन, एनाटौमी, एंकोलौजी, ऐनी.

ऐनी…ऐनी मानो मेरे लिए एक सब्जैक्ट बन गई थी. मुझे भी लग रहा था कि मैं इस ‘सब्जैक्ट’ में कुछ ज्यादा ही चिंतन कर रहा हूं. मैं बेबस था. मैं हाथ मलता, सिर धुनता लेकिन मेरे मन के पंख तो वहीं लिपटे हुए थे. दूसरे ही दिन ऐनी मुझ से कालेज के गेट पर ही टकरा गई थी. वह आदतन बोली, ‘सर, बहोत ठंडा है.’

मैं हाज़िरजवाबी के चक्कर में उलझ गया, ‘ऐनी, ठंडा नहीं है बल्कि ठंड बहुत है.’

कुहरा बहुत था. क्लासेस लगने में समय था. ऐनी परीक्षाओं के संबंध में प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रही थी. मैं भी यंत्रवत उत्तर दे रहा था. दरअसल, अंदर ही अंदर मैं भी ऐनी से कुछ पूछने के लिए अपनेआप को तैयार कर रहा था. बस, हिम्मत और मौके की तलाश में था. हम बात करतेकरते मैदान की हलकी रोशनी में आ गए थे. वह पलभर के लिए चुप हुई और मैं पूछ बैठा, ‘ऐनी, तुम बहुत सवाल करती हो. आज मैं भी तुम से एक सवाल पूछना चाहता हूं?’ वह तपाक  से बोली, ‘सर, मुझे तो जवाब देना आता ही नहीं.’

‘ऐनी, मेरी खातिर…’ यह कहतेकहते मेरी दिल कांप गया था क्योंकि मैं और सिर्फ मैं ही जानता था कि यह ऐनी के प्रति मेरे प्यार की सांकेतिक किंतु सब से भयभीत अभिव्यक्ति थी. मे…री…खा…ति…र…उसे बुरा भी न लगे और थोड़ा अनौपचारिक भी हो लूं. वह थोड़ा शरमाई, मुसकराई भी. मुझे ऐसा लगा जैसे वर्षों पहले ऐनी की तरफ उठा मेरा पहला कदम इत्मीनान से जमीन पर रखा गया हो. आज मैं ऐनी की दिशा में एक कदम चल चुका था. उस ने सन्नाटे को हकेलते हुए कहा, ‘एनीवे, पूछिए सर क्वेशचन.’

मैं वापस लौटा, पूछा, ‘ऐनी, जिंदगी के बारे में तुम क्या सोचती हो?’

‘अरे बाप रे, ड्रोन अटैक सर. इतने छोटे ऐनी से इतना बड़ा सवाल?’

‘ऐनी, प्लीज, डायवर्ट मत करो, जवाब दो.इस साल तुम डाक्टर हो जाओगी. जिंदगी के बारे में तुम से बेहतर कौन जानेगा?’

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ऐनी !

यही नाम था उस का. जब से वह कालेज में आई थी, एक प्रोफैसर के तौर पर मैं ने अपनेआप को ज्यादा व्यवस्थित पाया था. उस ने कब मेरे दिल को छू लिया था… याद नहीं. मेरे लिए वह एक रटारटाया समीकरण थी…प्यारी, हंसती, खिलखिलाती…इज इक्वल टू…ऐनी.

ऐनी कौन थी?

ऐनी एक दक्षिण भारतीय लड़की थी. कुछ दूसरी लड़कियों की तरह ही अबोध, किंतु नादानी में विलक्षण. बिंदास भी. साउथ इंडियन टच उस के लहज़े को और भी आकर्षक बना देता था. ऐनी कब क्या पूछेगी, खुद उसे भी नहीं मालूम होता था. वह अचानक इस तरह प्रश्न करती कि प्रोफैसरों के निर्विकार चेहरे भी खिलखिला उठते थे. उस के प्रश्न बेलगाम थे. कहना न होगा कि नादानी की अबोध पुनरावृत्तियां उस की पहचान थीं. मैं और मेरे साथी प्रोफैसर उस के औचित्यहीन सवालों को उस का आत्मविश्वास कहते थे, जो उस में कूटकूट कर भरा था. जिस के प्रदर्शन का एक ही जरिया था उस की भोलीभाली हरकतें. वह स्टाफरूम में चर्चा का स्थायी विषय थी.

ऐनी ने अपनी पहली छाप तब छोड़ी थी जब प्रो. शर्मा छुट्टी पर जा रहे थे. मिसेज शर्मा पूरे पेट से थीं. कालेज में किसी स्टूडैंट नें नहीं पूछा सिवा ऐनी के. ‘सर, मैडम का अंतिम समय चल रहा है?’ सब हंस दिए थे. शर्मा जी बोले, ‘ऐनी, अंतिम नहीं, पूरा समय चल रहा है.’

ऐनी कुछ ऐसी ही थी…प्यारी…हंसती…खिलखिलाती…

प्रिंसिपल मेहता को पितृशोक हुआ. ऐनी जिद कर मेरे साथ उन के घर पहुंच गई थी. ‘सर, आप का पिताजी मर गया, भोत दुख हुआ,’ एनी ने कहा था. मैं घबरा गया, उसे रोक कर बाहर लाया था. मैं ने समझाया, ‘देखो ऐनी, तुम कुछ भी कह देती हो. तुम्हें कहना था आप के पिताजी नहीं रहे, सुन कर दुख हुआ. किसी दिन मरवाओगी.’ फिर प्यार से कहा था, ‘ऐनी जी, अब चलिए यहां से.’ मेरा हाथ कब प्यार से उस के कंधे पर रखा गया, खुद मुझे भी पता न चला लेकिन यह जरूर पता चला कि प्रथम स्पर्श की अनुभूति अमिट होती है. इन सब बातों से बेखबर ऐनी की मुझे यह पहली सौगात थी.

इसी बेलगाम किंतु प्यारे तूफान से रोज क्लास में सामना करना था. संकट गहरा था. वह मुंह खोलती और मेरी धड़कनें बढ़ जातीं. तीनसाढ़ेतीन साल के मेरे अध्यापनकाल में ऐनी ऐसी पहली स्टूडैंट थी जिस के लिए मैं हमेशा यही मनाता था कि, बस, वह चुपचाप बैठी रहे. लेकिन आमतौर पर जो चाहो वह होता नहीं है. जल्द ही मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं ऐनी की कक्षा में शरीर के स्नायुतंत्र और पृष्ठ भाग का विवरण पढ़ा रहा था. इसी संदर्भ में मेरे द्वारा किए गए पुट्ठे शब्द के साधारण उल्लेख को ऐनी ने जटिल बना दिया था. मुझे आज भी याद है, उस ने अनायास ही पूछा था, ‘सर, यह पुट्ठा क्या होते हैं?’ उस का उच्चारण छात्रों के लिए हंसी का लायसैंस था. सहज भाव से पूछे गए इस सवाल पर मैं भी अचकचा गया था. मेरी चुप्पी ने उस से कहीं ज्यादा मुझे छात्रों के बीच हंसी का पात्र बना दिया था. मुझे तब भी उस पर क्रोध नहीं, प्यार ही आया था. ऐनी ने मेरी प्रतिक्रिया को नोट किया था.  बाद में मुझ से कहा था, ‘‘सर, तुम दूसरों से थोड़ा अलग है…सौरी.’ मैं ने कृतज्ञता की मीठी आंच महसूस की थी.

चार वर्षों में मैं यह जान चुका था कि ऐनी बुरे से बुरे व्यक्ति की उपेक्षा करने में भी सर्वथा असमर्थ है. उस के लिए यह असंगत था कि वह पहले व्यक्ति का चयन करे, फिर बात कहे. उस के लिए सब बराबर थे. वह सही अर्थों में प्रेमपूर्ण थी समग्र रूप से…सब के साथ…सब के लिए.

चार साल!…चार साल तक ऐसे चरित्र के साथ बिना बदले रह पाना मुश्किल था. मुझे खुद पता नहीं चला कि मैं कब धीरेधीरे ऐनी की तरह ही हो रहा हूं. उस के बर्थडे पर वह नई ड्रैस में कालेज आई थी. मैं उसे देखते ही बोल उठा था, ‘ऐनी, तुम भोत अच्छा दिख रहा है.’ मेरे लहजे़ पर वह मुसकरा दी थी. मैं उस के सामने प्रोफैसर के तौर पर खास होने का एहसास खो चुका था. ऐनी मेरे लिए सबकुछ थी. यह प्यार में किसी के लिए प्रथम हो जाने की नई अनुभूति थी. मुझे ऐसा लगता जैसे वह हवाओं की तरह अनिवार्य है…और पलपल हर पल मुझ में समा रही है. मैं उस से खुल कर बात कहना चाहता था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई. वह हमेशा मुझे एक समानांतर शिखर पर ही नज़र आई. मुझे ऐसा कोई सेतु भी नज़र नहीं आया जो मुझे उस के शिखर तक पहुंचा सके. हमारे बीच फासला अमिट था.

मैं तर्कनिष्ठ था, वह घोर अतार्किक.

मैं लोगों को अस्वीकार करता, पराजित करता और सम्मान पाता था, वह स्वीकार करती, अपमानित होती, फिर भी आनंदित रहती.

मैं हर बात का जवाब था, वह सिर्फ एक सवाल थी.

हां, यह अलग बात थी कि ऐनी नाम के इस सवाल को मैं हल नहीं कर पा रहा था…फिजियोलौजी, फार्मेकोलौजी, मैडिसिन, एनाटौमी, एंकोलौजी, ऐनी.

ऐनी…ऐनी मानो मेरे लिए एक सब्जैक्ट बन गई थी. मुझे भी लग रहा था कि मैं इस ‘सब्जैक्ट’ में कुछ ज्यादा ही चिंतन कर रहा हूं. मैं बेबस था. मैं हाथ मलता, सिर धुनता लेकिन मेरे मन के पंख तो वहीं लिपटे हुए थे. दूसरे ही दिन ऐनी मुझ से कालेज के गेट पर ही टकरा गई थी. वह आदतन बोली, ‘सर, बहोत ठंडा है.’

मैं हाज़िरजवाबी के चक्कर में उलझ गया, ‘ऐनी, ठंडा नहीं है बल्कि ठंड बहुत है.’

कुहरा बहुत था. क्लासेस लगने में समय था. ऐनी परीक्षाओं के संबंध में प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रही थी. मैं भी यंत्रवत उत्तर दे रहा था. दरअसल, अंदर ही अंदर मैं भी ऐनी से कुछ पूछने के लिए अपनेआप को तैयार कर रहा था. बस, हिम्मत और मौके की तलाश में था. हम बात करतेकरते मैदान की हलकी रोशनी में आ गए थे. वह पलभर के लिए चुप हुई और मैं पूछ बैठा, ‘ऐनी, तुम बहुत सवाल करती हो. आज मैं भी तुम से एक सवाल पूछना चाहता हूं?’ वह तपाक  से बोली, ‘सर, मुझे तो जवाब देना आता ही नहीं.’

‘ऐनी, मेरी खातिर…’ यह कहतेकहते मेरी दिल कांप गया था क्योंकि मैं और सिर्फ मैं ही जानता था कि यह ऐनी के प्रति मेरे प्यार की सांकेतिक किंतु सब से भयभीत अभिव्यक्ति थी. मे…री…खा…ति…र…उसे बुरा भी न लगे और थोड़ा अनौपचारिक भी हो लूं. वह थोड़ा शरमाई, मुसकराई भी. मुझे ऐसा लगा जैसे वर्षों पहले ऐनी की तरफ उठा मेरा पहला कदम इत्मीनान से जमीन पर रखा गया हो. आज मैं ऐनी की दिशा में एक कदम चल चुका था. उस ने सन्नाटे को हकेलते हुए कहा, ‘एनीवे, पूछिए सर क्वेशचन.’

मैं वापस लौटा, पूछा, ‘ऐनी, जिंदगी के बारे में तुम क्या सोचती हो?’

‘अरे बाप रे, ड्रोन अटैक सर. इतने छोटे ऐनी से इतना बड़ा सवाल?’

‘ऐनी, प्लीज, डायवर्ट मत करो, जवाब दो.इस साल तुम डाक्टर हो जाओगी. जिंदगी के बारे में तुम से बेहतर कौन जानेगा?’

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June 28, 2022 at 10:20AM

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