Monday 6 June 2022

Father’s Day 2022: मेरे पापा सिर्फ आप हैं- भाग 1

आशीष बेतरह उदास था. मां की तस्वीर के आगे चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. बार-बार आंखें आंसुओं से छलछला उठती थीं. बाइस साल के इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना पाले मां ने अचानक ही आंखें मूंद ली थीं. उनके जाने का किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था. न आशीष को, न उसके पापा संजीव को और न ही परिवार के अन्य सदस्यों को. आज मां की तेरहवीं थी. बैठक के कमरे में सोफे हटा कर जमीन पर गद्दे डाल सफेद चांदनी बिछा दी गयी थी. सामने एक छोटी मेज पर मां फोटो में मुस्कुरा रही थी. पापा बार-बार उसके आसपास अगरबत्तियां लगा रहे थे. दरअसल इस बहाने से वो अपने आंसुओं को दूसरों की नजरों से छिपा रहे थे. अभी कल तक तो भली-चंगी थी. कभी ब्लडप्रेशर तक चेक कराने की जरूरत नहीं पड़ी, और अचानक ही ऐसा कार्डिएक अटैक पड़ा कि डॉक्टर तक बुलाने की फुर्सत नहीं दी उसने. खड़े-खड़े अचानक ही संजीव की बाहों में झूल गयी. संजीव चीखते रह गये, ‘रागिनी, रागिनी… आंखें खोलो… क्या हुआ… आंखें खोलो रागिनी…’ मगर रागिनी होती तब तो आंखें खोलती… वह तो एक झटके में अनन्त यात्रा के लिए प्रस्थान कर चुकी थी. पापा की चीखें सुन कर आशीष अपने कमरे से बदहवास सा भागा आया… पापा मां को तब तक जमीन पर लिटा चुके थे. आशीष ने भी मां को झकझोरा, मगर मां जा चुकी थी. जिसने भी सुना आश्चर्यचकित रह गया. कितनी भली महिला थी. हर वक्त हंसती-मुस्कुराती रहती थी. कभी किसी ने रागिनी को ऊंची आवाज में बात करते नहीं सुना था. मधुर वाणी, शालीन व्यवहार वाली रागिनी हरेक की मदद के लिए हर वक्त तैयार रहती थी. घर को तो उसने स्वर्ग बना कर रखा था. पति संजीव और बेटे आशीष पर उसका स्नेह हर वक्त बरसता था. दोनों ही उसके प्रेम की डोर में बंधे जीवन-आनन्द में डूबे थे कि अचानक ही यह डोर टूट गयी.

बैठक में काफी लोग जमा थे. सभी के चेहरों पर उदासी थी. बड़े-बूढ़े बारी-बारी से आकर आशीष के सिर पर हाथ फेर कर उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे. अचानक एक हाथ आशीष के सिर पर काफी देर तक रुका रहा. आशीष ने सिर उठा कर पास खड़े सज्जन का चेहरा देखा तो एकटक देखता ही रह गया. वो हू-ब-हू उसकी ही तरह दिख रहे थे, बल्कि यूं कहें कि आशीष हू-ब-हू उनकी तरह था… जैसे उनकी कार्बन कॉपी. बैठक में बाकी लोग भी आश्चर्यचकित से इस आगन्तुक को देख रहे थे. इससे पहले तो इन्हें कभी इस घर में नहीं देखा गया. कौन थे ये? और आशीष से इनका चेहरा और कदकाठी इसकदर कैसे मिलती है, बिल्कुल जैसे उसके बड़े भाई हों. आशीष का चेहरा-मोहरा न तो उसकी मां से मिलता था और न ही उसके पापा संजीव की कोई झलक उसमें थी, मगर इस आगन्तुक से वह इतना ज्यादा रिजेम्बल कैसे कर रहा है? हरेक की आंखों में यही सवाल था. आशीष और संजीव की आंखों में भी कि – आप कौन हैं?

आगन्तुक ने आगे बढ़कर रागिनी की फोटो पर फूल चढ़ाये और हाथ जोड़कर वहीं संजीव के निकट ही बैठ गया. उसने धीरे से संजीव के कानों के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा. फिर दोनों के बीच खामोशी पसर गयी. काफी देर तक वह आगन्तुक वहीं संजीव के पास ही बैठा रहा. बीच में धीरे-धीरे दो-चार बातें भी कीं. करीब आधे घंटे बाद वह उठे और संजीव व आशीष से विदा लेकर चले गये. गमगीन माहौल था, लिहाजा लोगों ने उस वक्त आगन्तुक के विषय में कोई सवाल नहीं किया, मगर लोगों के बीच फुसफुसाहट जरूर होती रही. शाम तक सभी लोग जा चुके थे. बैठक खाली हो गयी थी. बस संजीव और आशीष ही रागिनी की तस्वीर के साथ रह गये थे. तभी आशीष ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, ‘पापा, वो अंकल कौन थे, जो बिल्कुल मेरी तरह दिख रहे थे?’

संजीव ने गहरी नजरों से आशीष के चेहरे की ओर देखा और बोले, ‘वो… वो तुम्हारी मम्मी के कॉलेज टाइम के दोस्त हैं. अभय… अभय नाम है उनका. मैं भी आज पहली बार ही मिला हूं उनसे… वो कल फिर आएंगे.’

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आशीष बेतरह उदास था. मां की तस्वीर के आगे चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. बार-बार आंखें आंसुओं से छलछला उठती थीं. बाइस साल के इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना पाले मां ने अचानक ही आंखें मूंद ली थीं. उनके जाने का किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था. न आशीष को, न उसके पापा संजीव को और न ही परिवार के अन्य सदस्यों को. आज मां की तेरहवीं थी. बैठक के कमरे में सोफे हटा कर जमीन पर गद्दे डाल सफेद चांदनी बिछा दी गयी थी. सामने एक छोटी मेज पर मां फोटो में मुस्कुरा रही थी. पापा बार-बार उसके आसपास अगरबत्तियां लगा रहे थे. दरअसल इस बहाने से वो अपने आंसुओं को दूसरों की नजरों से छिपा रहे थे. अभी कल तक तो भली-चंगी थी. कभी ब्लडप्रेशर तक चेक कराने की जरूरत नहीं पड़ी, और अचानक ही ऐसा कार्डिएक अटैक पड़ा कि डॉक्टर तक बुलाने की फुर्सत नहीं दी उसने. खड़े-खड़े अचानक ही संजीव की बाहों में झूल गयी. संजीव चीखते रह गये, ‘रागिनी, रागिनी… आंखें खोलो… क्या हुआ… आंखें खोलो रागिनी…’ मगर रागिनी होती तब तो आंखें खोलती… वह तो एक झटके में अनन्त यात्रा के लिए प्रस्थान कर चुकी थी. पापा की चीखें सुन कर आशीष अपने कमरे से बदहवास सा भागा आया… पापा मां को तब तक जमीन पर लिटा चुके थे. आशीष ने भी मां को झकझोरा, मगर मां जा चुकी थी. जिसने भी सुना आश्चर्यचकित रह गया. कितनी भली महिला थी. हर वक्त हंसती-मुस्कुराती रहती थी. कभी किसी ने रागिनी को ऊंची आवाज में बात करते नहीं सुना था. मधुर वाणी, शालीन व्यवहार वाली रागिनी हरेक की मदद के लिए हर वक्त तैयार रहती थी. घर को तो उसने स्वर्ग बना कर रखा था. पति संजीव और बेटे आशीष पर उसका स्नेह हर वक्त बरसता था. दोनों ही उसके प्रेम की डोर में बंधे जीवन-आनन्द में डूबे थे कि अचानक ही यह डोर टूट गयी.

बैठक में काफी लोग जमा थे. सभी के चेहरों पर उदासी थी. बड़े-बूढ़े बारी-बारी से आकर आशीष के सिर पर हाथ फेर कर उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे. अचानक एक हाथ आशीष के सिर पर काफी देर तक रुका रहा. आशीष ने सिर उठा कर पास खड़े सज्जन का चेहरा देखा तो एकटक देखता ही रह गया. वो हू-ब-हू उसकी ही तरह दिख रहे थे, बल्कि यूं कहें कि आशीष हू-ब-हू उनकी तरह था… जैसे उनकी कार्बन कॉपी. बैठक में बाकी लोग भी आश्चर्यचकित से इस आगन्तुक को देख रहे थे. इससे पहले तो इन्हें कभी इस घर में नहीं देखा गया. कौन थे ये? और आशीष से इनका चेहरा और कदकाठी इसकदर कैसे मिलती है, बिल्कुल जैसे उसके बड़े भाई हों. आशीष का चेहरा-मोहरा न तो उसकी मां से मिलता था और न ही उसके पापा संजीव की कोई झलक उसमें थी, मगर इस आगन्तुक से वह इतना ज्यादा रिजेम्बल कैसे कर रहा है? हरेक की आंखों में यही सवाल था. आशीष और संजीव की आंखों में भी कि – आप कौन हैं?

आगन्तुक ने आगे बढ़कर रागिनी की फोटो पर फूल चढ़ाये और हाथ जोड़कर वहीं संजीव के निकट ही बैठ गया. उसने धीरे से संजीव के कानों के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा. फिर दोनों के बीच खामोशी पसर गयी. काफी देर तक वह आगन्तुक वहीं संजीव के पास ही बैठा रहा. बीच में धीरे-धीरे दो-चार बातें भी कीं. करीब आधे घंटे बाद वह उठे और संजीव व आशीष से विदा लेकर चले गये. गमगीन माहौल था, लिहाजा लोगों ने उस वक्त आगन्तुक के विषय में कोई सवाल नहीं किया, मगर लोगों के बीच फुसफुसाहट जरूर होती रही. शाम तक सभी लोग जा चुके थे. बैठक खाली हो गयी थी. बस संजीव और आशीष ही रागिनी की तस्वीर के साथ रह गये थे. तभी आशीष ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, ‘पापा, वो अंकल कौन थे, जो बिल्कुल मेरी तरह दिख रहे थे?’

संजीव ने गहरी नजरों से आशीष के चेहरे की ओर देखा और बोले, ‘वो… वो तुम्हारी मम्मी के कॉलेज टाइम के दोस्त हैं. अभय… अभय नाम है उनका. मैं भी आज पहली बार ही मिला हूं उनसे… वो कल फिर आएंगे.’

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June 07, 2022 at 09:00AM

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