Thursday 16 June 2022

छोटी सी जिंदगी- भाग 1: रोहित को कौन-सी बीमारी हुई थी?

आरती और सनाया दोनों सहेलियां बचपन से ही सगी बहनों की तरह रहती हैं. आरती के परिवार में सिर्फ उस के पापा हैं जो प्रतिष्ठित उद्योगपति हैं. उस के पापा ने उसे मां और पापा दोनों का प्यार दिया है. आरती में उन की जान बसती है. जबकि सनाया के परिवार में उस के बड़े भैया व भाभी हैं. उस के भैया एक कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उन की कोई संतान नहीं है. वे सनाया को ही अपनी संतान सम?ाते हैं.

दोनों सहेलियां एक ही यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रही हैं. रोहित, आरती का मंगेतर, भी उसी यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वह एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है. उस के मातापिता दिनरात एक कर के अपने बेटे के सपने पूरे करने में लगे रहते हैं. इस के बावजूद वह बहुत ही रंगीनमिजाज है.

एक दिन आरती और सनाया यूनिवर्सिटी की कैंटीन में बैठे बतिया रही थीं. अचानक उन की नजर एक कोने में बैठे एक जोड़े पर पड़ी और वे सकते में आ गईं. आरती के तो होश ही उड़ गए. वह लड़का रोहित ही था जो किसी और लड़की के साथ बांहों में बांहें डाले बैठा था. कुछ क्षण वह उन दोनों की बेशर्मी को एकटक निराश मन से देखती रही. फिर थोड़ा रुक कर वह रोहित के पास गई और उसे एक जोर का तमाचा जड़ दिया. साथ ही, उस से अपने सारे रिश्ते तोड़ लिए.

आरती आगेआगे और रोहित उस के पीछेपीछे. ‘‘आरती सुनो तो, तुम ने जो भी कुछ देखा वह गलतफहमी है और कुछ नहीं.’’ आरती बिना कुछ सुने कार में बैठ घर को चल दी.

रात के खाने पर उस के पापा को आरती के चेहरे पर उदासी दिखाई दे रही थी. उन्होंने नोटिस किया कि वह उन से नजरें चुरा रही है. उस के होंठ कुछ कहना चाह रहे हैं, पर जबान साथ नहीं दे रही.

‘‘कोई बात हुई है बेटा, तुम ठीक तो हो?’’ आरती के पापा ने पूछा.

‘‘नहीं पापा, कुछ नहीं. बस, यों ही, थोड़ी थकान हो रही है,’’ आरती ने दबी सी आवाज में जवाब दिया.

‘‘ठीक है, खाना खा कर आराम करना बेटा,’’ कह कर उस के पापा चुप हो गए, पर मन ही मन वे आरती को ले कर चिंता से घिर गए.

देररात आरती के पापा का मोबाइल बजता है. उन के कौल रिसीव करते ही आवाज आई, ‘‘जी, हैलो, अंकल मैं होस्टल से बोल रहा हूं. रोहित ने आत्महत्या करने की कोशिश की है. उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आए हैं, आप तुरंत आएं यहां,’’ और फोन कट जाता है. आरती और उस के पापा हौस्पिटल जाते है. आरती मन ही मन अपराधबोध से भरी होती है, कांपती हुई रोहित के पास जाती है. रोहित के पास होते हुए भी वह खामोश ही रहती है. यूनिवर्सिटी के दृश्य उस की आंखों के सामने घूम रहे होते हैं.

कुछ देर की खोमोशी को तोड़ते हुए रोहित बोल पड़ता है, ‘‘तुम्हें अब भी मु?ा पर यकीन नहीं आरती. वह सब छलावा था और तुम सच. आरती, तुम अभी आराम करो, इतना मत सोचो. छोड़ो ये सब, भूल जाओ सबकुछ. मैं तुम से नाराज नहीं.’’ इतने में आरती के पापा आ जाते हैं, ‘‘बेटा रोहित, मैं आरती को घर छोड़ कर वापस आता हूं तुम्हारे पास.’’ वे सारी बातों से अनजान थे.

‘‘आरती, चलें बेटा?’’

‘‘जी पापा.’’

रोहित को जाने का इशारा कर आरती अपने पापा के साथ वहां से चल देती है. उस के अंदर कशमकश चल रही होती है- दिल रोहित पर भरोसा करना चाहता है, तो दिमाग बिलकुल नहीं.

अस्पताल से बाहर आते ही उसे याद आता है कि वह अपना मोबाइल कमरे में ही भूल आई है.

‘‘पापा, मैं अपना मोबाइल तो अंदर ही भूल आई हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, फिर चल के ले आते हैं.’’

वे दोनों वापस अंदर जाते हैं. तभी रोहित और उस का दोस्त बातें कर रहे होते हैं, ‘‘वाह यार, क्या आइडिया दिया तू ने आरती को फिर से यकीन दिलाने का. अब तो ऐश ही ऐश होंगे, एक तरफ घरवाली तो दूसरी तरफ बाहरवाली.’’

आरती और उस के पापा ये सब सुन कर दंग रह जाते हैं. कोई इतना भी गिर सकता है भला. आरती के पापा के सामने अब सबकुछ साफ हो जाता है. वे अपनी बेटी की परेशानी की वजह सम?ा जाते हैं और उसे हाथ पकड़ कर वहां से ले जाते हैं.

‘‘गाड़ी में बैठो बेटा.’’

?‘‘जी पापा,’’ नजरें ?ाकाए आरती इतना ही कह पाती है और गाड़ी में बैठ जाती है. वह बहुत शर्मिंदा रहती है, उसे याद आता है, कैसे उस ने अपने पापा को दुखी कर के रोहित से रिश्ता जोड़ा था और उस के पापा ने अपनी बेटी की खुशी के सामने घुटने टेक दिए थे.

आज वही बेटी अपने पिता से अपनी नजरें चुरा रही है. आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. बापबेटी दोनों चुप रहते हैं. चारों ओर सन्नाटा सा पसरा हुआ होता है. दोनों ही मन की उधेड़बुन में लगे होते हैं. तभी घर आ जाता है.

‘‘पापा, वो…’’

‘‘बेटा, अभी तुम आराम करो, सुबह बात करते हैं.’’

इतनी बातचीत के बाद दोनों ही खामोशी से अपनेअपने कमरे में चले जाते हैं.

जब रोहित और उस का वही दोस्त अगले दिन सुबह आरती के घर आते हैं तो देखते हैं कि वहां बहुत भीड़ जमा है और खामोशी छाई हुई है. वहीं, लोगों का एक समूह एक अर्थी को फूलों से सजा रहा होता है. आरती के पापा और सनाया खामोशी से उस अर्थी को देखे जा रहे हैं. उन की आंखों से अश्रु की धारा मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रही.

‘‘जहां रोहित खड़ा होता है वहीं पास ही में 2 लोग आपस में बात कर रहे होते हैं कि सुना है पंखे से लटक कर जान दी है लड़की ने. जरूर दाल में कुछ काला है भाई.’’ यह सुन कर रोहित के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मारे डर के वह अपने दोस्त को साथ ले वहां से भाग खड़ा होता है.

‘‘जिंदगीभर तुम्हें बेइंतहा प्यार करने के बावजूद मैं तुम्हें दर्द सहना नहीं सिखा पाया, बेटा. तुम्हारे इस तरह से जाने के बाद एक पल भी चैन से जी न सकूंगा मैं. मैं तुम्हारी यादों को इस शहर में अकेला छोड़ कर जा रहा हूं या यों कहो कि इस भरी दुनिया में तुम ने मु?ो अकेला छोड़ दिया, बेटा.’’ आरती के पापा एक तसवीर से बातें कर रहे हैं.

अब उन्होंने बेसहारा लड़कियों को आसरा देने के लिए एक एनजीओ बनाने का निर्णय ले लिया.

साहिल रोहित का रूममेट है और उस का जिगरी दोस्त भी. रोहित साहिल की हरेक चीज हक से उपयोग भी करता है. पर साहिल का चरित्र बिलकुल श्वेत है और दिल एकदम सोने सा. उस के अलावा घर में परिवार के नाम पर उस की मां और चाचा हैं. उस की मां का नाम मुंबई के नामी उद्योगपतियों की गिनती में आता है.

रोहित साहिल को आरती के बारे में सबकुछ बताता है.

रोहित बोलता है, ‘‘यार, वह आरती…’’

साहिल कहता है, ‘‘क्या, आरती ने तु?ा से सारे रिश्ते तोड़ लिए, यही न. अच्छा ही हुआ. और कितनी लड़कियों के साथ फ्लर्ट करोगे तुम, कब तक सब को धोखा दोगे? जिंदगी में कभी तो सीरियस हुआ करो, मेरे भाई.’’

रोहित बोला, ‘‘वह बात नहीं है, यार.’’

‘‘तो क्या बात है, अब कौन सा कांड कर दिया तुम ने?’’ साहिल ने हैरत

से पूछा.

‘‘आरती ने सुसाइड कर लिया है,’’  रोहित ने साहिल को गले लगाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या… हाथ नहीं लगाना मु?ो,’’ साहिल ने रोहित को धक्का देते हुए कहा.

‘‘ऐसे मत बोल यार, मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘तु?ो अंदाजा भी है कि तू ने एक मासूम लड़की की जान ले ली है. दूर हो जाओ मेरी नजरों से,’’ कहते हुए साहिल बैग निकाल सामान पैक करने लगता है.

रोहित अब कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि मैं आरती का गुनाहगार हूं.’’

साहिल बोला, ‘‘तुम सिर्फ आरती के ही नहीं, उस के पापा के भी गुनाहगार हो. तुम ने उन्हें एक जिल्लतभरी जिंदगी दे दी है.’’

अब रोहित बोला, ‘‘मु?ो माफ कर

दे, यार.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम मु?ा से क्यों माफी मांग रहे हो. माफी मांगनी है आरती के पापा से मांगो.’’

रोहित कहने लगा, ‘‘तू मेरा सब से अच्छा दोस्त है. हम ने पूरे 4 साल साथ में बिताए हैं. ऐसे मु?ो छोड़ कर मत जा. जिंदगी बहुत बो?िल हो गई है यार. इन दोचार दिनों में ऐसा लग रहा है मानो कई सालों का दर्द ?ोल लिया हो मैं ने.’’

‘‘अभी तो शुरुआत है, तुम जैसे बदकिरदार और बेशर्म लड़के को मैं अपना दोस्त नहीं मानता. अब तो मैं यही चाहूंगा कि तुम्हें भी आरती की तरह ही दर्दनाक मौत मिले. तुम मौत मांगो और तुम्हें मौत नसीब न हो,’’ कह कर साहिल हमेशा के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ कर चला जाता है.

‘‘चाचा, मैं घर आ रहा हूं, मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है. बिजनैस में अब आप का साथ देना चाहता हूं,’’ साहिल रोते हुए फोन पर बात करता है.

‘‘हां बेटा, पर यों अचानक यह डिसीजन? तुम तो आगे पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, क्या हुआ साहिल, सब ठीक तो है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘नहीं चाचा, वह मेरी एक अच्छी दोस्त की डैथ हो गई है.’’ साहिल ने जवाब दिया.

चाचा बोले, ‘‘ओह, बहुत अफसोस

है बेटा.’’

साहिल ने आगे कहा, ‘‘मैं घर आ कर बात करता हूं.’’

चाचा बोले, ‘‘ठीक है बेटा.’’ उन के फोन रखते ही साहिल की मां वहां आ जाती है. ‘‘क्या हुआ भैया, क्या कह रहा था साहिल?’’

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस, उस की एक दोस्त की डैथ हो गई है और अब वह वापस घर आना चाहता है.’’

‘‘मेरा तो कलेजा कांप जाता है यह सुन कर भैया. जवान बच्चों की मौत उन के मांबाप पर क्या कहर ढाती होगी. मैं अभी साहिल को फोन करती हूं.’’

‘‘नहीं भाभी, अभी नहीं. घर आए तो आराम से बात कीजिएगा. आप तो जानती हैं, बहुत सैंसिटिव लड़का है.’’

‘‘जी भैया, आप सही कह रहे हो.’’

साहिल अपने घर लौट घर का बिजनैस संभालने लगता है. गायत्री देवी (साहिल की मां) और साहिल साथ में किसी प्रोजैक्ट पर डिस्कशन कर रहे होते हैं. साहिल बारबार अपनी नाक को टिश्यू पेपर से साफ कर रहा होता है.

यह देख कर गायत्री बोलीं, ‘‘मैं देख रही हूं बेटा, तुम जब से होस्टल से आए हो, ठीक नहीं रहते हो. मैं भैया से कहती हूं कि तुम्हें अभी डाक्टर के पास ले जाएं.’’

साहिल हंसते हुए बोला, ‘‘अभी… ऐसी कोई बात नहीं है मां, बस, थोड़ा फ्लू है, शायद कोई डस्ट एलर्जी है.’’

गायत्री ने कहा, ‘‘अरे, टैंपरेचर भी तो रहता है.’’

साहिल बोला, ‘‘फ्लू में टैंपरेचर तो नौर्मल रहता ही है न मां.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसे नहीं चलेगा,’’ कहते हुए गायत्री अनुपमजी (साहिल के चाचा) को आवाज लगाती हैं.

शाम को घर लौटते वक्त अनुपमजी साहिल को फैमिली डाक्टर के पास ले जाते हैं. डाक्टर साहब साहिल का चैकअप करते हैं.

‘‘अनुपमजी ने डाक्टर को बताया कि साहिल को डस्ट इन्फैक्शन वाला जुकाम हरारत के साथ लगभग रहता ही है और पेट भी खराब रहता है.’’

वहीं, साहिल ने कहा, ‘‘हां, कुछ गलत खा लूं तो पेट खराब हो जाता है और फ्लू 10-15 दिनों में फिर से हो ही जाता है.’’

‘‘यह कब से हो रहा है?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘करीबन एक साल से.’’

डाक्टर साहिल को लिटा कर चैकअप करते हुए बोले, ‘‘जरा तेज सांस लो. हम्म… कुछ नहीं, बस, साधारण सा जुकाम ही है, दवाई लिख देता हूं. यदि कोई और परेशानी हो तो वापस आ जाना  दवाइयां खरीद कर.’’ चाचा और भतीजा दोनों ही घर लौट जाते हैं.

‘‘क्या हुआ? क्या कहा डाक्टर ने?’’ गायत्री पूछती हैं.

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आरती और सनाया दोनों सहेलियां बचपन से ही सगी बहनों की तरह रहती हैं. आरती के परिवार में सिर्फ उस के पापा हैं जो प्रतिष्ठित उद्योगपति हैं. उस के पापा ने उसे मां और पापा दोनों का प्यार दिया है. आरती में उन की जान बसती है. जबकि सनाया के परिवार में उस के बड़े भैया व भाभी हैं. उस के भैया एक कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उन की कोई संतान नहीं है. वे सनाया को ही अपनी संतान सम?ाते हैं.

दोनों सहेलियां एक ही यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रही हैं. रोहित, आरती का मंगेतर, भी उसी यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वह एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है. उस के मातापिता दिनरात एक कर के अपने बेटे के सपने पूरे करने में लगे रहते हैं. इस के बावजूद वह बहुत ही रंगीनमिजाज है.

एक दिन आरती और सनाया यूनिवर्सिटी की कैंटीन में बैठे बतिया रही थीं. अचानक उन की नजर एक कोने में बैठे एक जोड़े पर पड़ी और वे सकते में आ गईं. आरती के तो होश ही उड़ गए. वह लड़का रोहित ही था जो किसी और लड़की के साथ बांहों में बांहें डाले बैठा था. कुछ क्षण वह उन दोनों की बेशर्मी को एकटक निराश मन से देखती रही. फिर थोड़ा रुक कर वह रोहित के पास गई और उसे एक जोर का तमाचा जड़ दिया. साथ ही, उस से अपने सारे रिश्ते तोड़ लिए.

आरती आगेआगे और रोहित उस के पीछेपीछे. ‘‘आरती सुनो तो, तुम ने जो भी कुछ देखा वह गलतफहमी है और कुछ नहीं.’’ आरती बिना कुछ सुने कार में बैठ घर को चल दी.

रात के खाने पर उस के पापा को आरती के चेहरे पर उदासी दिखाई दे रही थी. उन्होंने नोटिस किया कि वह उन से नजरें चुरा रही है. उस के होंठ कुछ कहना चाह रहे हैं, पर जबान साथ नहीं दे रही.

‘‘कोई बात हुई है बेटा, तुम ठीक तो हो?’’ आरती के पापा ने पूछा.

‘‘नहीं पापा, कुछ नहीं. बस, यों ही, थोड़ी थकान हो रही है,’’ आरती ने दबी सी आवाज में जवाब दिया.

‘‘ठीक है, खाना खा कर आराम करना बेटा,’’ कह कर उस के पापा चुप हो गए, पर मन ही मन वे आरती को ले कर चिंता से घिर गए.

देररात आरती के पापा का मोबाइल बजता है. उन के कौल रिसीव करते ही आवाज आई, ‘‘जी, हैलो, अंकल मैं होस्टल से बोल रहा हूं. रोहित ने आत्महत्या करने की कोशिश की है. उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आए हैं, आप तुरंत आएं यहां,’’ और फोन कट जाता है. आरती और उस के पापा हौस्पिटल जाते है. आरती मन ही मन अपराधबोध से भरी होती है, कांपती हुई रोहित के पास जाती है. रोहित के पास होते हुए भी वह खामोश ही रहती है. यूनिवर्सिटी के दृश्य उस की आंखों के सामने घूम रहे होते हैं.

कुछ देर की खोमोशी को तोड़ते हुए रोहित बोल पड़ता है, ‘‘तुम्हें अब भी मु?ा पर यकीन नहीं आरती. वह सब छलावा था और तुम सच. आरती, तुम अभी आराम करो, इतना मत सोचो. छोड़ो ये सब, भूल जाओ सबकुछ. मैं तुम से नाराज नहीं.’’ इतने में आरती के पापा आ जाते हैं, ‘‘बेटा रोहित, मैं आरती को घर छोड़ कर वापस आता हूं तुम्हारे पास.’’ वे सारी बातों से अनजान थे.

‘‘आरती, चलें बेटा?’’

‘‘जी पापा.’’

रोहित को जाने का इशारा कर आरती अपने पापा के साथ वहां से चल देती है. उस के अंदर कशमकश चल रही होती है- दिल रोहित पर भरोसा करना चाहता है, तो दिमाग बिलकुल नहीं.

अस्पताल से बाहर आते ही उसे याद आता है कि वह अपना मोबाइल कमरे में ही भूल आई है.

‘‘पापा, मैं अपना मोबाइल तो अंदर ही भूल आई हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, फिर चल के ले आते हैं.’’

वे दोनों वापस अंदर जाते हैं. तभी रोहित और उस का दोस्त बातें कर रहे होते हैं, ‘‘वाह यार, क्या आइडिया दिया तू ने आरती को फिर से यकीन दिलाने का. अब तो ऐश ही ऐश होंगे, एक तरफ घरवाली तो दूसरी तरफ बाहरवाली.’’

आरती और उस के पापा ये सब सुन कर दंग रह जाते हैं. कोई इतना भी गिर सकता है भला. आरती के पापा के सामने अब सबकुछ साफ हो जाता है. वे अपनी बेटी की परेशानी की वजह सम?ा जाते हैं और उसे हाथ पकड़ कर वहां से ले जाते हैं.

‘‘गाड़ी में बैठो बेटा.’’

?‘‘जी पापा,’’ नजरें ?ाकाए आरती इतना ही कह पाती है और गाड़ी में बैठ जाती है. वह बहुत शर्मिंदा रहती है, उसे याद आता है, कैसे उस ने अपने पापा को दुखी कर के रोहित से रिश्ता जोड़ा था और उस के पापा ने अपनी बेटी की खुशी के सामने घुटने टेक दिए थे.

आज वही बेटी अपने पिता से अपनी नजरें चुरा रही है. आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. बापबेटी दोनों चुप रहते हैं. चारों ओर सन्नाटा सा पसरा हुआ होता है. दोनों ही मन की उधेड़बुन में लगे होते हैं. तभी घर आ जाता है.

‘‘पापा, वो…’’

‘‘बेटा, अभी तुम आराम करो, सुबह बात करते हैं.’’

इतनी बातचीत के बाद दोनों ही खामोशी से अपनेअपने कमरे में चले जाते हैं.

जब रोहित और उस का वही दोस्त अगले दिन सुबह आरती के घर आते हैं तो देखते हैं कि वहां बहुत भीड़ जमा है और खामोशी छाई हुई है. वहीं, लोगों का एक समूह एक अर्थी को फूलों से सजा रहा होता है. आरती के पापा और सनाया खामोशी से उस अर्थी को देखे जा रहे हैं. उन की आंखों से अश्रु की धारा मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रही.

‘‘जहां रोहित खड़ा होता है वहीं पास ही में 2 लोग आपस में बात कर रहे होते हैं कि सुना है पंखे से लटक कर जान दी है लड़की ने. जरूर दाल में कुछ काला है भाई.’’ यह सुन कर रोहित के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मारे डर के वह अपने दोस्त को साथ ले वहां से भाग खड़ा होता है.

‘‘जिंदगीभर तुम्हें बेइंतहा प्यार करने के बावजूद मैं तुम्हें दर्द सहना नहीं सिखा पाया, बेटा. तुम्हारे इस तरह से जाने के बाद एक पल भी चैन से जी न सकूंगा मैं. मैं तुम्हारी यादों को इस शहर में अकेला छोड़ कर जा रहा हूं या यों कहो कि इस भरी दुनिया में तुम ने मु?ो अकेला छोड़ दिया, बेटा.’’ आरती के पापा एक तसवीर से बातें कर रहे हैं.

अब उन्होंने बेसहारा लड़कियों को आसरा देने के लिए एक एनजीओ बनाने का निर्णय ले लिया.

साहिल रोहित का रूममेट है और उस का जिगरी दोस्त भी. रोहित साहिल की हरेक चीज हक से उपयोग भी करता है. पर साहिल का चरित्र बिलकुल श्वेत है और दिल एकदम सोने सा. उस के अलावा घर में परिवार के नाम पर उस की मां और चाचा हैं. उस की मां का नाम मुंबई के नामी उद्योगपतियों की गिनती में आता है.

रोहित साहिल को आरती के बारे में सबकुछ बताता है.

रोहित बोलता है, ‘‘यार, वह आरती…’’

साहिल कहता है, ‘‘क्या, आरती ने तु?ा से सारे रिश्ते तोड़ लिए, यही न. अच्छा ही हुआ. और कितनी लड़कियों के साथ फ्लर्ट करोगे तुम, कब तक सब को धोखा दोगे? जिंदगी में कभी तो सीरियस हुआ करो, मेरे भाई.’’

रोहित बोला, ‘‘वह बात नहीं है, यार.’’

‘‘तो क्या बात है, अब कौन सा कांड कर दिया तुम ने?’’ साहिल ने हैरत

से पूछा.

‘‘आरती ने सुसाइड कर लिया है,’’  रोहित ने साहिल को गले लगाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या… हाथ नहीं लगाना मु?ो,’’ साहिल ने रोहित को धक्का देते हुए कहा.

‘‘ऐसे मत बोल यार, मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘तु?ो अंदाजा भी है कि तू ने एक मासूम लड़की की जान ले ली है. दूर हो जाओ मेरी नजरों से,’’ कहते हुए साहिल बैग निकाल सामान पैक करने लगता है.

रोहित अब कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि मैं आरती का गुनाहगार हूं.’’

साहिल बोला, ‘‘तुम सिर्फ आरती के ही नहीं, उस के पापा के भी गुनाहगार हो. तुम ने उन्हें एक जिल्लतभरी जिंदगी दे दी है.’’

अब रोहित बोला, ‘‘मु?ो माफ कर

दे, यार.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम मु?ा से क्यों माफी मांग रहे हो. माफी मांगनी है आरती के पापा से मांगो.’’

रोहित कहने लगा, ‘‘तू मेरा सब से अच्छा दोस्त है. हम ने पूरे 4 साल साथ में बिताए हैं. ऐसे मु?ो छोड़ कर मत जा. जिंदगी बहुत बो?िल हो गई है यार. इन दोचार दिनों में ऐसा लग रहा है मानो कई सालों का दर्द ?ोल लिया हो मैं ने.’’

‘‘अभी तो शुरुआत है, तुम जैसे बदकिरदार और बेशर्म लड़के को मैं अपना दोस्त नहीं मानता. अब तो मैं यही चाहूंगा कि तुम्हें भी आरती की तरह ही दर्दनाक मौत मिले. तुम मौत मांगो और तुम्हें मौत नसीब न हो,’’ कह कर साहिल हमेशा के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ कर चला जाता है.

‘‘चाचा, मैं घर आ रहा हूं, मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है. बिजनैस में अब आप का साथ देना चाहता हूं,’’ साहिल रोते हुए फोन पर बात करता है.

‘‘हां बेटा, पर यों अचानक यह डिसीजन? तुम तो आगे पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, क्या हुआ साहिल, सब ठीक तो है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘नहीं चाचा, वह मेरी एक अच्छी दोस्त की डैथ हो गई है.’’ साहिल ने जवाब दिया.

चाचा बोले, ‘‘ओह, बहुत अफसोस

है बेटा.’’

साहिल ने आगे कहा, ‘‘मैं घर आ कर बात करता हूं.’’

चाचा बोले, ‘‘ठीक है बेटा.’’ उन के फोन रखते ही साहिल की मां वहां आ जाती है. ‘‘क्या हुआ भैया, क्या कह रहा था साहिल?’’

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस, उस की एक दोस्त की डैथ हो गई है और अब वह वापस घर आना चाहता है.’’

‘‘मेरा तो कलेजा कांप जाता है यह सुन कर भैया. जवान बच्चों की मौत उन के मांबाप पर क्या कहर ढाती होगी. मैं अभी साहिल को फोन करती हूं.’’

‘‘नहीं भाभी, अभी नहीं. घर आए तो आराम से बात कीजिएगा. आप तो जानती हैं, बहुत सैंसिटिव लड़का है.’’

‘‘जी भैया, आप सही कह रहे हो.’’

साहिल अपने घर लौट घर का बिजनैस संभालने लगता है. गायत्री देवी (साहिल की मां) और साहिल साथ में किसी प्रोजैक्ट पर डिस्कशन कर रहे होते हैं. साहिल बारबार अपनी नाक को टिश्यू पेपर से साफ कर रहा होता है.

यह देख कर गायत्री बोलीं, ‘‘मैं देख रही हूं बेटा, तुम जब से होस्टल से आए हो, ठीक नहीं रहते हो. मैं भैया से कहती हूं कि तुम्हें अभी डाक्टर के पास ले जाएं.’’

साहिल हंसते हुए बोला, ‘‘अभी… ऐसी कोई बात नहीं है मां, बस, थोड़ा फ्लू है, शायद कोई डस्ट एलर्जी है.’’

गायत्री ने कहा, ‘‘अरे, टैंपरेचर भी तो रहता है.’’

साहिल बोला, ‘‘फ्लू में टैंपरेचर तो नौर्मल रहता ही है न मां.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसे नहीं चलेगा,’’ कहते हुए गायत्री अनुपमजी (साहिल के चाचा) को आवाज लगाती हैं.

शाम को घर लौटते वक्त अनुपमजी साहिल को फैमिली डाक्टर के पास ले जाते हैं. डाक्टर साहब साहिल का चैकअप करते हैं.

‘‘अनुपमजी ने डाक्टर को बताया कि साहिल को डस्ट इन्फैक्शन वाला जुकाम हरारत के साथ लगभग रहता ही है और पेट भी खराब रहता है.’’

वहीं, साहिल ने कहा, ‘‘हां, कुछ गलत खा लूं तो पेट खराब हो जाता है और फ्लू 10-15 दिनों में फिर से हो ही जाता है.’’

‘‘यह कब से हो रहा है?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘करीबन एक साल से.’’

डाक्टर साहिल को लिटा कर चैकअप करते हुए बोले, ‘‘जरा तेज सांस लो. हम्म… कुछ नहीं, बस, साधारण सा जुकाम ही है, दवाई लिख देता हूं. यदि कोई और परेशानी हो तो वापस आ जाना  दवाइयां खरीद कर.’’ चाचा और भतीजा दोनों ही घर लौट जाते हैं.

‘‘क्या हुआ? क्या कहा डाक्टर ने?’’ गायत्री पूछती हैं.

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June 16, 2022 at 10:09AM

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