Monday 6 June 2022

मातहत: क्या नेहा को मिल पाया रमेश से छुटकारा

मांकी खराब सेहत ने नेहा को अत्यधिक चिंता में डाल दिया. डाक्टर ने आवश्यक परीक्षण के लिए शाम को बुलाया था. छोटी बहन कनिका को आज ही दिल्ली लौटना था. वे साशा के साथ बैठ कर सभी आवश्यक कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर रही थीं.

तभी रमेश का फोन आया, ‘‘मैडम, मैं आप की गाड़ी सागर ले जाऊं? आप तो अभी यहीं हैं.’’

‘‘हां, मैं यहीं हूं. लेकिन मेरी मां बहुत बीमार हैं. गाड़ी तुम्हें कैसे दे सकती हूं? मुझे जरूरत है,’’ नेहा बोली.

‘‘लेकिन मुझे दोस्त की शादी में सागर जाना है. बताया तो था आप को.’’

‘‘बताया था, लेकिन मैं ने गाड़ी सागर ले जाने की अनुमति तो नहीं दी थी… यह कहा था कि यदि मुझे ज्यादा दिन रुकना पड़ा तो तुम गाड़ी वापस बालाघाट ले जाना. बहरहाल मैं अधिक दिन नहीं रुक रही हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ने आप के कारण सागर के टिकट कैंसिल करा दिए. अब क्या करूं?’’

‘‘रमेश मैं ने साफ कहा था कि मां के पास ज्यादा दिन रुकने की स्थिति में गाड़ी वापस भेज दूंगी. लेकिन गाड़ी सागर ले जाने की बात तो नहीं हुई थी… वैसे भी उधर की सड़क कितनी खराब है, तुम्हें मालूम है… मैं गाड़ी नहीं दे सकती. मां को चैकअप के लिए ले जाने के अलावा और बीसियों काम हैं,’’ नेहा का मूड बिगड़ गया.

नेहा को दफ्तर में ही मां की बीमारी की सूचना मिली थी और वे बलराज से बात कर ही रही थीं कि रमेश ने सुन लिया और झट से बोल पड़ा, ‘‘मैडम, मैं आप को छुट्टी की दरख्वास्त देने आया था. सागर जाना है दोस्त की शादी में. अब आप कार से भोपाल जा रही हैं तो मैं भी साथ चलूं? अकेला ही हूं. बीवीबच्चे अंकल के घर में ही हैं अभी… उन्हें वापस भी लाना है.’’

नेहा ने स्वीकृति दे दी यह सोच कर कि वह उन का मातहत है. साथ ले जाने में क्या बुराई है? वैसे भी वे अकेली जाएंगी कार में. बच्चों को साथ नहीं ले जाया जा सकता. उन की पढ़ाई का नुकसान होगा और फिर क्या पता वहां कितने दिन रुकना पड़े.

नागपुर पहुंचने पर रमेश ने कहा, ‘‘मैडम, कुछ देर के लिए मेरे घर चलिए न. मम्मीपापा से मिल लूंगा… आप भी थोड़ा आराम कर लेंगी.’’

‘‘आराम नहीं… वैसे मिलने चलना है तो चलो… रुकेंगे नहीं,’’

नेहा ने कार रुकवा कर थोड़ी मिठाई खरीद ली. आखिर वे बौस हैं. खाली हाथ उस के घर जाते क्या अच्छा लगेगा?

घर के लोग बैठक में जमा हो कर बातचीत में व्यस्त हो गए थे. रमेश ने किसी से नेहा का परिचय नहीं कराया. जाने उन लोगों ने क्या समझा हो. मिठाई का डब्बा उन्होंने एक बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया. चाय आने पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक लेने से मना कर दिया. फिर वे रास्ते भर अपने विचारों में खोई रहीं.

‘सारे भाईबहन अपने जीवन में व्यवस्थित हैं, पर पिता की मृत्यु के बाद से मां ही अव्यवस्थित हो गई हैं. वे किसी एक जगह जम कर नहीं रहतीं. जहां भी रहती हैं, बच्चे उन की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं. उन के कमरे में ही टीवी, टैलीफोन, म्यूजिक सिस्टम और लिखनेपढ़ने का सारा इंतजाम रहता है. वे खूब लिखती हैं- अंगरेजी, हिंदी, बंगला तीनों भाषाओं में.

जो वैविध्यपूर्ण जीवन उन्होंने अपने ब्रिगेडियर पिता और कर्नल पति के सान्निध्य में जिया, उस के अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की स्मृतियों और घटनाओं को शब्दों में पिरोती रहती हैं. पर कभी कुछ छपवाया नहीं आज तक. घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

वे कितना मधुर गाती हैं इस उम्र में भी. चर्चा, परिचर्चाएं उन्हें अपार सुख देती हैं, पर आजकल किस के पास फुरसत है इतनी कि बैठ कर उन्हें सुनें? शायद भीतर का अकेलापन अब निगल रहा है उन्हें. भौतिक सुविधाएं आत्मिक प्रसन्नता तो नहीं दे सकतीं न? ऐसे में उन्हें कुछ हो गया तो?’ सोच नेहा घबरा उठी थीं.’

भोपाल पहुंचने पर रमेश को उस के अंकल के यहां छोड़ने शाहपुरा जाना पड़ा. रात हो चुकी थी. उस ने कार से सामान उतारते हुए चाय के लिए रुकने का आग्रह किया था पर नेहा टाल गई. दरवाजा खुलते ही उस की पत्नी, आंटीअंकल सब बाहर आ गए. रमेश ने तब भी उन से किसी का परिचय नहीं करवाया. पत्नी से भी नहीं. बहुत अजीब लगा था उन्हें.

तब उन्होंने खुद ही संकेत करते हुए पूछ लिया था, ‘‘ये तुम्हारी…’’

‘‘पत्नी है दिशा,’’ लेकिन नेहा का परिचय पत्नी को देने की आवश्यकता नहीं समझी उस ने. उसे छोड़ने के बाद वे मां के घर चली आईं और अब वह गाड़ी मांग रहा था ताकि पत्नी व बच्चों के साथ शान से दोस्त की शादी में जा सके.

कितना खुदगर्ज है यह आदमी? नेहा का मन खिन्न हो गया. रमेश दफ्तर में कभी उन्हें अभिवादन नहीं करता. वह सोचता है कि यह नौकरी कर के वह एहसान कर रहा है… वह तो क्लास वन के लायक है… इतनी काबिलीयत है उस में. दिन ही खराब थे वरना आईएएस की लिखित परीक्षा में तो निकल गया था, मौखिकी में ही रह गया… फिर भी अपनेआप को आईएएस औफिसर से कम नहीं समझता.

नेहा को महसूस हुआ कि अपने मातहत पुरुषों से कभी निजी या घरपरिवार की परिस्थितियों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए. वैसे भी महिला बौस को वे अमूमन गंभीरता से नहीं लेते. उन के अधीन काम करना वे अपनी तौहीन समझते हैं. लाख महिला सशक्तीकरण की बातें की जाएं, विश्व महिला दिवस मनाया जाए, नारी स्वतंत्रता के नारे लगाए जाएं, पुरुष आसानी से स्त्री की सत्ता थोड़े ही स्वीकार कर लेगा.

साशा ने नेहा को गंभीर देख कर टोका, ‘‘छोडि़ए भी, नाहक क्यों मूड बिगाड़ती हैं अपना? कनिका दीदी नहा कर आती ही होंगी. खाने की मेज पर चलें? उन्हें शताब्दी से निकलना है. अभी 12 बजे हैं.’’

नेहा ने घड़ी पर निगाह डाली. शताब्दी ऐक्सप्रैस दोपहर 2 बजे निकलती है. कितनी तेजी से बीत रहा है समय. पंख लगा कर उड़ रहा हो मानो…अभी तो मिल कर जी तक नहीं भरा और बिछुड़ना होगा… उन्होंने ठंडी सांस ली. अगले ही क्षण टैलीफोन की घंटी बज उठी.

‘‘मैडम, कब निकलना है वापस बालाघाट? मुझे रिंग कर दीजिएगा,’’ रमेश कह रहा था.

नेहा बुरी तरह खीज उठीं. बोलीं, ‘‘देखो रमेश तुम्हारी छुट्टी सिर्फ आज तक है. कल रविवार है. तुम सोमवार को जौइन कर लेना. मेरा अभी कुछ तय नहीं वापस जाने का.’’

‘‘लेकिन मैं तो आया ही इसलिए हूं कि आप के साथ लौट जाऊंगा कार से. आप ही की वजह से मैं ने वापसी के भी टिकट कैंसिल करा दिए हैं.’’

‘‘रमेश, मैं अपनी बीमार मां को देखने आई हूं यहां, कोई पिकनिक मनाने नहीं. अपनी सहूलत से वापस जाऊंगी,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया.

‘यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया. उस के बात करने का अंदाज तो देखो… कहता है, आप की वजह से टिकट कैंसिल कराए. टिकट कराए कब थे? झूठ की भी हद होती है,’ सोच नेहा भीतर ही भीतर उबल पड़ीं.’’

‘‘दीदी, अपने मातहतों को ज्यादा मुंह लगाना अच्छा नहीं होता. उसे आप का तनिक भी लिहाज नहीं. वह तो ऐसे बात कर रहा है जैसे आप उस की बौस नहीं, वह आप का बौस हो… ऐसे ढीठ आदमी को सपरिवार साथ ले कर वापस जाएंगी आप?’’

साशा के इस कथन से नेहा क्षुब्ध हो उठीं. बोलीं, ‘‘अब क्या करूं? वह रईसी तो बहुत झाड़ता है. कह रहा था कि उस के अंकल तो हैलीकौप्टर खरीदना चाहते हैं पर सरकार अनुमति नहीं दे रही है… दोस्त को ठाट दिखाने और झूठी शान बघारने के लिए मेरी गाड़ी से सपत्नीक शादी में सागर जाना चाहता था. शायद पत्नी पर रोब गांठने के लिए कह दिया हो कार से लौटेंगे… अब कार्यक्रम गड़बड़ाने से खीज रहा… जब मैं ने कह दिया कि तुम जौइन कर लेना, तो इस का मतलब है मैं उस के साथ वापस नहीं जाऊंगी. फिर भी फोन करने का दुस्साहस किया. ढिठाई की हद है.’’

‘‘आप नाहक कार से आईं,’’ कनिका ने खाने की मेज पर नजर डालते हुए कहा.

‘‘अरे, कर्नल साहब घर में होते तो ट्रेन से ही आना पड़ता. वे तो 10 दिनों के लिए हैदराबाद में हैं इसलिए मैं ने सोचा…’’

सहसा मां की उपस्थिति से सब का ध्यान उन पर केंद्रित हो गया. साशा ने उन्हें आहिस्ता से कुरसी पर बैठाया, खाने की मेज पर मां का सान्निध्य कितना सुखद लगता है… पर ऐसा संयोग अब कम ही होता है. शादी के बाद सब बेटियां एकत्र नहीं हो पातीं. मां अब ज्यादा चलतीफिरती नहीं. वे जल्दी ही थक जाती हैं. अब तो बीमारी के कारण वे आग्रहपूर्वक अपने हाथों से बना कर कुछ नहीं खिला पातीं.

नेहा स्टेशन पर कनिका को विदा कर लौटीं तो मन बहुत उदास हो गया. शाम को साशा के साथ मां को डाक्टर को दिखाने ले गईं तो वहां भीड़ थी. एक बार फिर प्रतीक्षा के क्षणों में चर्चा के दौरान रमेश छाया रहा.

घर लौटने पर साशा ने उखड़े स्वरों में कहा, ‘‘मैं तो तंग आ गई इस रमेश पुराण से.

दीदी, आप उस के साथ हरगिज नहीं लौटेंगी. उसे मोबाइल पर स्पष्ट शब्दों में कह दीजिए… वह कोई उम्मीद न करे.’’

‘‘लेकिन साशा, वह दफ्तर में कहता फिरेगा… मैडम ने धोखा दिया.’’

‘‘तो कहता फिरे.’’

‘‘इस बार चली जाती हूं. आइंदा उसे कभी साथ ले कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘बरदाश्त कर लेंगी उस के कुनबे को पूरे 12 घंटे?’’

‘‘हां, यह बात तो है. मन मार कर चुपचाप बैठे रहना होगा.’’

‘‘तो फिर उसे मना कर दीजिए,’’ कह साशा ने उन्हें मोबाइल फोन थमा दिया.

‘‘लेकिन साशा, मैं तो कह ही चुकी हूं कि मेरे वापस जाने का अभी तय नहीं… तुम सोमवार को जौइन कर लेना,’’ नेहा बोलीं.

‘‘तो एक बार और कह दीजिए. वह बेवकूफ है,’’ साशा बेहद गुस्से में थी.

तभी अचानक मां की आवाज सुनाई दी.

‘‘अच्छा, थोड़ी देर बाद कह दूंगी, कह कर नेहा मां के पास चली गईं.’’

मां बहुत उदास थीं. उन के आग्रह पर वे 2 दिन और रुक गईं. तय किया कि रात को सफर शुरू करेंगी. बलराज खापी कर दिन भर सो लेगा ताकि रात को परेशानी न हो.

मां की तीमारदारी से संबंधित सारी हिदायतें शीतल और साशा को देने के बाद नेहा कुछ निश्चिंत थीं. अब सूटकेस में अपना सामान रख रही थीं, तभी कौलबैल बजी. द्वार पर रमेश खड़ा था.

‘‘सोचा, फोन कर के आप को परेशान करना ठीक नहीं, इसलिए घर चला आया पूछने. कब निकलना है? मैं भी रुक गया हूं. सोचा, अर्जित अवकाश ले लूंगा. दरअसल, दिशा भी यही चाहती है कि आप के साथ ही लौटें,’’

वह बोला.

‘‘उफ,’’ कह नेहा ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

The post मातहत: क्या नेहा को मिल पाया रमेश से छुटकारा appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/uogUheP

मांकी खराब सेहत ने नेहा को अत्यधिक चिंता में डाल दिया. डाक्टर ने आवश्यक परीक्षण के लिए शाम को बुलाया था. छोटी बहन कनिका को आज ही दिल्ली लौटना था. वे साशा के साथ बैठ कर सभी आवश्यक कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर रही थीं.

तभी रमेश का फोन आया, ‘‘मैडम, मैं आप की गाड़ी सागर ले जाऊं? आप तो अभी यहीं हैं.’’

‘‘हां, मैं यहीं हूं. लेकिन मेरी मां बहुत बीमार हैं. गाड़ी तुम्हें कैसे दे सकती हूं? मुझे जरूरत है,’’ नेहा बोली.

‘‘लेकिन मुझे दोस्त की शादी में सागर जाना है. बताया तो था आप को.’’

‘‘बताया था, लेकिन मैं ने गाड़ी सागर ले जाने की अनुमति तो नहीं दी थी… यह कहा था कि यदि मुझे ज्यादा दिन रुकना पड़ा तो तुम गाड़ी वापस बालाघाट ले जाना. बहरहाल मैं अधिक दिन नहीं रुक रही हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ने आप के कारण सागर के टिकट कैंसिल करा दिए. अब क्या करूं?’’

‘‘रमेश मैं ने साफ कहा था कि मां के पास ज्यादा दिन रुकने की स्थिति में गाड़ी वापस भेज दूंगी. लेकिन गाड़ी सागर ले जाने की बात तो नहीं हुई थी… वैसे भी उधर की सड़क कितनी खराब है, तुम्हें मालूम है… मैं गाड़ी नहीं दे सकती. मां को चैकअप के लिए ले जाने के अलावा और बीसियों काम हैं,’’ नेहा का मूड बिगड़ गया.

नेहा को दफ्तर में ही मां की बीमारी की सूचना मिली थी और वे बलराज से बात कर ही रही थीं कि रमेश ने सुन लिया और झट से बोल पड़ा, ‘‘मैडम, मैं आप को छुट्टी की दरख्वास्त देने आया था. सागर जाना है दोस्त की शादी में. अब आप कार से भोपाल जा रही हैं तो मैं भी साथ चलूं? अकेला ही हूं. बीवीबच्चे अंकल के घर में ही हैं अभी… उन्हें वापस भी लाना है.’’

नेहा ने स्वीकृति दे दी यह सोच कर कि वह उन का मातहत है. साथ ले जाने में क्या बुराई है? वैसे भी वे अकेली जाएंगी कार में. बच्चों को साथ नहीं ले जाया जा सकता. उन की पढ़ाई का नुकसान होगा और फिर क्या पता वहां कितने दिन रुकना पड़े.

नागपुर पहुंचने पर रमेश ने कहा, ‘‘मैडम, कुछ देर के लिए मेरे घर चलिए न. मम्मीपापा से मिल लूंगा… आप भी थोड़ा आराम कर लेंगी.’’

‘‘आराम नहीं… वैसे मिलने चलना है तो चलो… रुकेंगे नहीं,’’

नेहा ने कार रुकवा कर थोड़ी मिठाई खरीद ली. आखिर वे बौस हैं. खाली हाथ उस के घर जाते क्या अच्छा लगेगा?

घर के लोग बैठक में जमा हो कर बातचीत में व्यस्त हो गए थे. रमेश ने किसी से नेहा का परिचय नहीं कराया. जाने उन लोगों ने क्या समझा हो. मिठाई का डब्बा उन्होंने एक बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया. चाय आने पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक लेने से मना कर दिया. फिर वे रास्ते भर अपने विचारों में खोई रहीं.

‘सारे भाईबहन अपने जीवन में व्यवस्थित हैं, पर पिता की मृत्यु के बाद से मां ही अव्यवस्थित हो गई हैं. वे किसी एक जगह जम कर नहीं रहतीं. जहां भी रहती हैं, बच्चे उन की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं. उन के कमरे में ही टीवी, टैलीफोन, म्यूजिक सिस्टम और लिखनेपढ़ने का सारा इंतजाम रहता है. वे खूब लिखती हैं- अंगरेजी, हिंदी, बंगला तीनों भाषाओं में.

जो वैविध्यपूर्ण जीवन उन्होंने अपने ब्रिगेडियर पिता और कर्नल पति के सान्निध्य में जिया, उस के अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की स्मृतियों और घटनाओं को शब्दों में पिरोती रहती हैं. पर कभी कुछ छपवाया नहीं आज तक. घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

वे कितना मधुर गाती हैं इस उम्र में भी. चर्चा, परिचर्चाएं उन्हें अपार सुख देती हैं, पर आजकल किस के पास फुरसत है इतनी कि बैठ कर उन्हें सुनें? शायद भीतर का अकेलापन अब निगल रहा है उन्हें. भौतिक सुविधाएं आत्मिक प्रसन्नता तो नहीं दे सकतीं न? ऐसे में उन्हें कुछ हो गया तो?’ सोच नेहा घबरा उठी थीं.’

भोपाल पहुंचने पर रमेश को उस के अंकल के यहां छोड़ने शाहपुरा जाना पड़ा. रात हो चुकी थी. उस ने कार से सामान उतारते हुए चाय के लिए रुकने का आग्रह किया था पर नेहा टाल गई. दरवाजा खुलते ही उस की पत्नी, आंटीअंकल सब बाहर आ गए. रमेश ने तब भी उन से किसी का परिचय नहीं करवाया. पत्नी से भी नहीं. बहुत अजीब लगा था उन्हें.

तब उन्होंने खुद ही संकेत करते हुए पूछ लिया था, ‘‘ये तुम्हारी…’’

‘‘पत्नी है दिशा,’’ लेकिन नेहा का परिचय पत्नी को देने की आवश्यकता नहीं समझी उस ने. उसे छोड़ने के बाद वे मां के घर चली आईं और अब वह गाड़ी मांग रहा था ताकि पत्नी व बच्चों के साथ शान से दोस्त की शादी में जा सके.

कितना खुदगर्ज है यह आदमी? नेहा का मन खिन्न हो गया. रमेश दफ्तर में कभी उन्हें अभिवादन नहीं करता. वह सोचता है कि यह नौकरी कर के वह एहसान कर रहा है… वह तो क्लास वन के लायक है… इतनी काबिलीयत है उस में. दिन ही खराब थे वरना आईएएस की लिखित परीक्षा में तो निकल गया था, मौखिकी में ही रह गया… फिर भी अपनेआप को आईएएस औफिसर से कम नहीं समझता.

नेहा को महसूस हुआ कि अपने मातहत पुरुषों से कभी निजी या घरपरिवार की परिस्थितियों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए. वैसे भी महिला बौस को वे अमूमन गंभीरता से नहीं लेते. उन के अधीन काम करना वे अपनी तौहीन समझते हैं. लाख महिला सशक्तीकरण की बातें की जाएं, विश्व महिला दिवस मनाया जाए, नारी स्वतंत्रता के नारे लगाए जाएं, पुरुष आसानी से स्त्री की सत्ता थोड़े ही स्वीकार कर लेगा.

साशा ने नेहा को गंभीर देख कर टोका, ‘‘छोडि़ए भी, नाहक क्यों मूड बिगाड़ती हैं अपना? कनिका दीदी नहा कर आती ही होंगी. खाने की मेज पर चलें? उन्हें शताब्दी से निकलना है. अभी 12 बजे हैं.’’

नेहा ने घड़ी पर निगाह डाली. शताब्दी ऐक्सप्रैस दोपहर 2 बजे निकलती है. कितनी तेजी से बीत रहा है समय. पंख लगा कर उड़ रहा हो मानो…अभी तो मिल कर जी तक नहीं भरा और बिछुड़ना होगा… उन्होंने ठंडी सांस ली. अगले ही क्षण टैलीफोन की घंटी बज उठी.

‘‘मैडम, कब निकलना है वापस बालाघाट? मुझे रिंग कर दीजिएगा,’’ रमेश कह रहा था.

नेहा बुरी तरह खीज उठीं. बोलीं, ‘‘देखो रमेश तुम्हारी छुट्टी सिर्फ आज तक है. कल रविवार है. तुम सोमवार को जौइन कर लेना. मेरा अभी कुछ तय नहीं वापस जाने का.’’

‘‘लेकिन मैं तो आया ही इसलिए हूं कि आप के साथ लौट जाऊंगा कार से. आप ही की वजह से मैं ने वापसी के भी टिकट कैंसिल करा दिए हैं.’’

‘‘रमेश, मैं अपनी बीमार मां को देखने आई हूं यहां, कोई पिकनिक मनाने नहीं. अपनी सहूलत से वापस जाऊंगी,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया.

‘यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया. उस के बात करने का अंदाज तो देखो… कहता है, आप की वजह से टिकट कैंसिल कराए. टिकट कराए कब थे? झूठ की भी हद होती है,’ सोच नेहा भीतर ही भीतर उबल पड़ीं.’’

‘‘दीदी, अपने मातहतों को ज्यादा मुंह लगाना अच्छा नहीं होता. उसे आप का तनिक भी लिहाज नहीं. वह तो ऐसे बात कर रहा है जैसे आप उस की बौस नहीं, वह आप का बौस हो… ऐसे ढीठ आदमी को सपरिवार साथ ले कर वापस जाएंगी आप?’’

साशा के इस कथन से नेहा क्षुब्ध हो उठीं. बोलीं, ‘‘अब क्या करूं? वह रईसी तो बहुत झाड़ता है. कह रहा था कि उस के अंकल तो हैलीकौप्टर खरीदना चाहते हैं पर सरकार अनुमति नहीं दे रही है… दोस्त को ठाट दिखाने और झूठी शान बघारने के लिए मेरी गाड़ी से सपत्नीक शादी में सागर जाना चाहता था. शायद पत्नी पर रोब गांठने के लिए कह दिया हो कार से लौटेंगे… अब कार्यक्रम गड़बड़ाने से खीज रहा… जब मैं ने कह दिया कि तुम जौइन कर लेना, तो इस का मतलब है मैं उस के साथ वापस नहीं जाऊंगी. फिर भी फोन करने का दुस्साहस किया. ढिठाई की हद है.’’

‘‘आप नाहक कार से आईं,’’ कनिका ने खाने की मेज पर नजर डालते हुए कहा.

‘‘अरे, कर्नल साहब घर में होते तो ट्रेन से ही आना पड़ता. वे तो 10 दिनों के लिए हैदराबाद में हैं इसलिए मैं ने सोचा…’’

सहसा मां की उपस्थिति से सब का ध्यान उन पर केंद्रित हो गया. साशा ने उन्हें आहिस्ता से कुरसी पर बैठाया, खाने की मेज पर मां का सान्निध्य कितना सुखद लगता है… पर ऐसा संयोग अब कम ही होता है. शादी के बाद सब बेटियां एकत्र नहीं हो पातीं. मां अब ज्यादा चलतीफिरती नहीं. वे जल्दी ही थक जाती हैं. अब तो बीमारी के कारण वे आग्रहपूर्वक अपने हाथों से बना कर कुछ नहीं खिला पातीं.

नेहा स्टेशन पर कनिका को विदा कर लौटीं तो मन बहुत उदास हो गया. शाम को साशा के साथ मां को डाक्टर को दिखाने ले गईं तो वहां भीड़ थी. एक बार फिर प्रतीक्षा के क्षणों में चर्चा के दौरान रमेश छाया रहा.

घर लौटने पर साशा ने उखड़े स्वरों में कहा, ‘‘मैं तो तंग आ गई इस रमेश पुराण से.

दीदी, आप उस के साथ हरगिज नहीं लौटेंगी. उसे मोबाइल पर स्पष्ट शब्दों में कह दीजिए… वह कोई उम्मीद न करे.’’

‘‘लेकिन साशा, वह दफ्तर में कहता फिरेगा… मैडम ने धोखा दिया.’’

‘‘तो कहता फिरे.’’

‘‘इस बार चली जाती हूं. आइंदा उसे कभी साथ ले कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘बरदाश्त कर लेंगी उस के कुनबे को पूरे 12 घंटे?’’

‘‘हां, यह बात तो है. मन मार कर चुपचाप बैठे रहना होगा.’’

‘‘तो फिर उसे मना कर दीजिए,’’ कह साशा ने उन्हें मोबाइल फोन थमा दिया.

‘‘लेकिन साशा, मैं तो कह ही चुकी हूं कि मेरे वापस जाने का अभी तय नहीं… तुम सोमवार को जौइन कर लेना,’’ नेहा बोलीं.

‘‘तो एक बार और कह दीजिए. वह बेवकूफ है,’’ साशा बेहद गुस्से में थी.

तभी अचानक मां की आवाज सुनाई दी.

‘‘अच्छा, थोड़ी देर बाद कह दूंगी, कह कर नेहा मां के पास चली गईं.’’

मां बहुत उदास थीं. उन के आग्रह पर वे 2 दिन और रुक गईं. तय किया कि रात को सफर शुरू करेंगी. बलराज खापी कर दिन भर सो लेगा ताकि रात को परेशानी न हो.

मां की तीमारदारी से संबंधित सारी हिदायतें शीतल और साशा को देने के बाद नेहा कुछ निश्चिंत थीं. अब सूटकेस में अपना सामान रख रही थीं, तभी कौलबैल बजी. द्वार पर रमेश खड़ा था.

‘‘सोचा, फोन कर के आप को परेशान करना ठीक नहीं, इसलिए घर चला आया पूछने. कब निकलना है? मैं भी रुक गया हूं. सोचा, अर्जित अवकाश ले लूंगा. दरअसल, दिशा भी यही चाहती है कि आप के साथ ही लौटें,’’

वह बोला.

‘‘उफ,’’ कह नेहा ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

The post मातहत: क्या नेहा को मिल पाया रमेश से छुटकारा appeared first on Sarita Magazine.

June 07, 2022 at 09:00AM

No comments:

Post a Comment