Sunday 12 June 2022

एक गलती- भाग 1: क्या उन समस्याओं का कोई समाधान निकला?

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं संकर्षण को क्या जवाब दूं कि उस का पिता कौन है? संकर्षण मेरा बेटा है, पर उस के जीवन की भी अजब कहानी रही. वह मेरी एक गलती का परिणाम है जो प्रकृति ने कराई थी. मेरे पति आशीष के लंदन प्रवास के दौरान उन के बपचन के मित्र गगन के साथ प्रकृति ने कुछ ऐसा चक्र चलाया कि संकर्षण का जन्म हो गया. कोई सोच भी नहीं सकता था कि गगन या मैं आशीष के साथ ऐसी बेवफाई करेंगे. हम ने बेवफाई की भी नहीं थी बस सब कुछ आवेग के हाथों घटित हो गया था.

मुझे आज भी अच्छा तरह याद है जब गगन की पत्नी को हर तरफ से निराश होने के बाद डाक्टर के इलाज से गर्भ ठहरा था. पर पूर्ण समय बाद एक विकृत शिशु का जन्म हुआ, जो अधिक देर तक जिंदा न रहा.

होटल के कमरे में थके, अवसादग्रस्त और निराश गगन को संभालतेसंभालते हम लोगों को झपकी आई और कब हम लोग प्रकृति के कू्रर हाथों के मजाक बन बैठे समझ ही नहीं पाए. फिर संकर्षण का जन्म हो गया. मैं ने उसे जन्म देते ही गगन और उन की पत्नी को उसे सौंप दिया ताकि यह राज आशीष और गगन की पत्नी को पता न चले. गगन की पत्नी अपनी सूनी गोद भरने के कारण मेरी महानता के गुण गाती और आशीष मेरे इस त्याग को कृतज्ञता की दृष्टि से देखते.

हां, मेरे मन में जरूर कभीकभी अपराधबोध होता. एक तो संकर्षण से अपने को दूर करने का और दूसरा आशीष से सब छिपाने का. पर इसी में सब की भलाई थी और सबकुछ ठीकठाक चल भी रहा था. गगन और उन की पत्नी संकर्षण को पा कर खुश थे. वह उन के जीवन की आशा था. मेरे 2 बच्चे और थे कि तभी वह घटना घटी.

संकर्षण तब 10 वर्ष का रहा होगा. वह, गगन और उन की पत्नी कार से कहीं से लौट रहे थे कि उन की कार का ऐक्सिडैंट हो गया. गगन की पत्नी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. गगन को भी काफी चोटें आईं. हां, संकर्षण को 1 खरोंच तक नहीं आई.

काफी दिन हौस्पिटल में रहने के बाद गगन स्वस्थ हो गए पर दुनिया से विरक्त. एक दिन उन्होंने मुझे और आशीष को बुला कर कहा, ‘‘मैं ने अपनी सारी संपत्ति संकर्षण के नाम कर दी है. अब मैं संन्यास लेने जा रहा हूं. मेरी खोजखबर लेने की कोशिश मत करना.’’

हम लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की पर संकर्षण को हमारे हवाले कर के एक दिन वे घर छोड़ कर न जाने कहां चले गए. आशीष को गगन के जाने का गम जरूर था, पर संकर्षण अब हमारे साथ रहेगा, यह जान कर वे बहुत खुश थे. उन के अनुसार हम दोनों ने इतने दिन पुत्रवियोग सहा. तब से आज तक 10 साल बीत गए थे, लेकिन संकर्षण हम लोगों के साथ था.

हालांकि जब से उसे पता चला था कि गगन और उन की पत्नी, जिन के साथ वह इतने वर्ष रहा, उस के मातापिता नहीं हैं, मातापिता हम लोग हैं, तो वह हम से नाराज रहता. कहता, ‘‘आप लोग कैसे मातापिता हैं, जो अपने बच्चे को इतनी आसानी से किसी दूसरे को दे दिया? अगर मैं इतना अवांछनीय था, तो मुझे जन्म क्यों दिया था?’’

अपने बड़े भाईबहन से भी संकर्षण का तालमेल न बैठ पाता. उस की रुचि, सोच सब कुछ उन से अलग थी. उस की शक्ल भी गगन से बहुत मिलती थी. कई बार अपने दोनों बच्चों से इतनी भिन्नता और गगन से इतनी समरूपता आशीष को आश्चर्य में डाल देती. वे कहते, ‘‘हैरत है, इस का सब कुछ गगन जैसा कैसे है?’’

मैं कहती, ‘‘बचपन से वहीं पला है… व्यक्ति अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखता है.’’

आशीष को आश्चर्य ही होता, संदेह नहीं. मैं और गगन दोनों ही उन के संदेह की परिधि के बाहर थे. यह सब देख कर मुझे खुद पर और क्षोभ होता था और मन करता था आशीष को सबकुछ सचसच बता दूं. लेकिन आशीष क्या सच सुन पाएंगे? इस पर मुझे संदेह था.

वैसे संकर्षण आशीष की ही भांति बुद्धिमान था. केवल उस के एक इसी गुण से जो आशीष से मिलता था, आशीष का पितृत्व संतुष्ट हो जाता, पर संकर्षण उस ने तो अपने चारों तरफ हम लोगों से नाराजगी का जाल बुन लिया और अपने को एकाकी करता चला गया.

पता नहीं यह कारण था अथवा कोई और संकर्षण अब बीमार रहने लगा. अस्थमा जैसे लक्षण थे. मर्ज धीरेधीरे बढ़ता गया.

हम लोग अब तक कोचीन में सैटल हो गए थे, पर कोचीन में ही नहीं बाहर भी अच्छे डाक्टर फेल हो गए. हालत यह हो गई कि संकर्षण कईकई घंटे औक्सीजन पर रखा जाता. मैं और आशीष दोनों ही बड़े परेशान थे.

अंत में ऐक्सपर्ट डाक्टरों की टीम की एक मीटिंग हुई और तय किया गया कि यह अल्फा-1 ऐंटीट्राइप्सिन डिजीज नामक बीमारी से पीडि़त है, जोकि जेनेटिक होती है और इस के  लक्षण अस्थमा से मिलतेजुलते हैं. हालांकि यह बीमारी 30 साल की उम्र के बाद होती है पर शायद संकर्षण को समय से पहले हो गई हो और इस के लिए पिता का डीएनए टैस्ट होना है ताकि यह तय हो सके कि वह उसी बीमारी से पीडि़त है और उस का सही इलाज हो सके.

आशीष का डीएनए टैस्ट संकर्षण से मेल नहीं खाया. मेल खाता भी कैसे? आशीष अगर उस के पिता होते तब न.

आशीष तो डीएनए रिपोर्ट आते ही बिना मेरी ओर देखे और बिना संकर्षण की बीमारी की परवाह किए कार स्टार्ट कर घर चले गए. संकर्षण की आंखों में उठते मेरे लिए नफरत के भाव और उस का यह प्रश्न करना कि आखिर मेरे पिता कौन हैं, मुझे अंदर तक झकझोर गया. मैं तो अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी ही थी, गगन को संकर्षण की नजरों से गिराने की इच्छा न हुई अत: मैं चुप रही.

संकर्षण बोला, ‘‘आज तक मैं अपने को अवांछनीय समझता रहा जिस के मातापिता उसे बड़ी आसानी से किसी और की गोद में ऐसे डाल देते हैं, जैसे वह कोई निर्जीव वस्तु हो. पर आज पता चला कि मैं अवांछनीय होने के साथसाथ नाजायज औलाद भी हूं, अपनी चरित्रहीन मां और पिता की ऐयाशी की निशानी. आप ने आशीष अंकल को भी इतने दिन तक अंधेरे में रखा, जबकि मैं ने देखा है कि वे आप पर कितना विश्वास करते हैं, आप को कितना चाहते हैं.’’

मैं ने विरोध करना चाहा, ‘‘बेटा ऐसा नहीं है.’’

‘‘मत कहिए मुझे बेटा. इस से अच्छा था मैं बिना यह सत्य जाने मर जाता. कम से कम कुछ भ्रम तो बना रहता. अब हो सके तो कृपा कर के मेरे पिता का नाम बता दीजिए ताकि मैं उन से पूछ सकूं कि अपने क्षणिक सुख के लिए मुझे इतनी बड़ी यातनाक्यों दे डाली, जिस से निकलने का भी मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,’’ संकर्षण बोला.

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मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं संकर्षण को क्या जवाब दूं कि उस का पिता कौन है? संकर्षण मेरा बेटा है, पर उस के जीवन की भी अजब कहानी रही. वह मेरी एक गलती का परिणाम है जो प्रकृति ने कराई थी. मेरे पति आशीष के लंदन प्रवास के दौरान उन के बपचन के मित्र गगन के साथ प्रकृति ने कुछ ऐसा चक्र चलाया कि संकर्षण का जन्म हो गया. कोई सोच भी नहीं सकता था कि गगन या मैं आशीष के साथ ऐसी बेवफाई करेंगे. हम ने बेवफाई की भी नहीं थी बस सब कुछ आवेग के हाथों घटित हो गया था.

मुझे आज भी अच्छा तरह याद है जब गगन की पत्नी को हर तरफ से निराश होने के बाद डाक्टर के इलाज से गर्भ ठहरा था. पर पूर्ण समय बाद एक विकृत शिशु का जन्म हुआ, जो अधिक देर तक जिंदा न रहा.

होटल के कमरे में थके, अवसादग्रस्त और निराश गगन को संभालतेसंभालते हम लोगों को झपकी आई और कब हम लोग प्रकृति के कू्रर हाथों के मजाक बन बैठे समझ ही नहीं पाए. फिर संकर्षण का जन्म हो गया. मैं ने उसे जन्म देते ही गगन और उन की पत्नी को उसे सौंप दिया ताकि यह राज आशीष और गगन की पत्नी को पता न चले. गगन की पत्नी अपनी सूनी गोद भरने के कारण मेरी महानता के गुण गाती और आशीष मेरे इस त्याग को कृतज्ञता की दृष्टि से देखते.

हां, मेरे मन में जरूर कभीकभी अपराधबोध होता. एक तो संकर्षण से अपने को दूर करने का और दूसरा आशीष से सब छिपाने का. पर इसी में सब की भलाई थी और सबकुछ ठीकठाक चल भी रहा था. गगन और उन की पत्नी संकर्षण को पा कर खुश थे. वह उन के जीवन की आशा था. मेरे 2 बच्चे और थे कि तभी वह घटना घटी.

संकर्षण तब 10 वर्ष का रहा होगा. वह, गगन और उन की पत्नी कार से कहीं से लौट रहे थे कि उन की कार का ऐक्सिडैंट हो गया. गगन की पत्नी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. गगन को भी काफी चोटें आईं. हां, संकर्षण को 1 खरोंच तक नहीं आई.

काफी दिन हौस्पिटल में रहने के बाद गगन स्वस्थ हो गए पर दुनिया से विरक्त. एक दिन उन्होंने मुझे और आशीष को बुला कर कहा, ‘‘मैं ने अपनी सारी संपत्ति संकर्षण के नाम कर दी है. अब मैं संन्यास लेने जा रहा हूं. मेरी खोजखबर लेने की कोशिश मत करना.’’

हम लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की पर संकर्षण को हमारे हवाले कर के एक दिन वे घर छोड़ कर न जाने कहां चले गए. आशीष को गगन के जाने का गम जरूर था, पर संकर्षण अब हमारे साथ रहेगा, यह जान कर वे बहुत खुश थे. उन के अनुसार हम दोनों ने इतने दिन पुत्रवियोग सहा. तब से आज तक 10 साल बीत गए थे, लेकिन संकर्षण हम लोगों के साथ था.

हालांकि जब से उसे पता चला था कि गगन और उन की पत्नी, जिन के साथ वह इतने वर्ष रहा, उस के मातापिता नहीं हैं, मातापिता हम लोग हैं, तो वह हम से नाराज रहता. कहता, ‘‘आप लोग कैसे मातापिता हैं, जो अपने बच्चे को इतनी आसानी से किसी दूसरे को दे दिया? अगर मैं इतना अवांछनीय था, तो मुझे जन्म क्यों दिया था?’’

अपने बड़े भाईबहन से भी संकर्षण का तालमेल न बैठ पाता. उस की रुचि, सोच सब कुछ उन से अलग थी. उस की शक्ल भी गगन से बहुत मिलती थी. कई बार अपने दोनों बच्चों से इतनी भिन्नता और गगन से इतनी समरूपता आशीष को आश्चर्य में डाल देती. वे कहते, ‘‘हैरत है, इस का सब कुछ गगन जैसा कैसे है?’’

मैं कहती, ‘‘बचपन से वहीं पला है… व्यक्ति अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखता है.’’

आशीष को आश्चर्य ही होता, संदेह नहीं. मैं और गगन दोनों ही उन के संदेह की परिधि के बाहर थे. यह सब देख कर मुझे खुद पर और क्षोभ होता था और मन करता था आशीष को सबकुछ सचसच बता दूं. लेकिन आशीष क्या सच सुन पाएंगे? इस पर मुझे संदेह था.

वैसे संकर्षण आशीष की ही भांति बुद्धिमान था. केवल उस के एक इसी गुण से जो आशीष से मिलता था, आशीष का पितृत्व संतुष्ट हो जाता, पर संकर्षण उस ने तो अपने चारों तरफ हम लोगों से नाराजगी का जाल बुन लिया और अपने को एकाकी करता चला गया.

पता नहीं यह कारण था अथवा कोई और संकर्षण अब बीमार रहने लगा. अस्थमा जैसे लक्षण थे. मर्ज धीरेधीरे बढ़ता गया.

हम लोग अब तक कोचीन में सैटल हो गए थे, पर कोचीन में ही नहीं बाहर भी अच्छे डाक्टर फेल हो गए. हालत यह हो गई कि संकर्षण कईकई घंटे औक्सीजन पर रखा जाता. मैं और आशीष दोनों ही बड़े परेशान थे.

अंत में ऐक्सपर्ट डाक्टरों की टीम की एक मीटिंग हुई और तय किया गया कि यह अल्फा-1 ऐंटीट्राइप्सिन डिजीज नामक बीमारी से पीडि़त है, जोकि जेनेटिक होती है और इस के  लक्षण अस्थमा से मिलतेजुलते हैं. हालांकि यह बीमारी 30 साल की उम्र के बाद होती है पर शायद संकर्षण को समय से पहले हो गई हो और इस के लिए पिता का डीएनए टैस्ट होना है ताकि यह तय हो सके कि वह उसी बीमारी से पीडि़त है और उस का सही इलाज हो सके.

आशीष का डीएनए टैस्ट संकर्षण से मेल नहीं खाया. मेल खाता भी कैसे? आशीष अगर उस के पिता होते तब न.

आशीष तो डीएनए रिपोर्ट आते ही बिना मेरी ओर देखे और बिना संकर्षण की बीमारी की परवाह किए कार स्टार्ट कर घर चले गए. संकर्षण की आंखों में उठते मेरे लिए नफरत के भाव और उस का यह प्रश्न करना कि आखिर मेरे पिता कौन हैं, मुझे अंदर तक झकझोर गया. मैं तो अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी ही थी, गगन को संकर्षण की नजरों से गिराने की इच्छा न हुई अत: मैं चुप रही.

संकर्षण बोला, ‘‘आज तक मैं अपने को अवांछनीय समझता रहा जिस के मातापिता उसे बड़ी आसानी से किसी और की गोद में ऐसे डाल देते हैं, जैसे वह कोई निर्जीव वस्तु हो. पर आज पता चला कि मैं अवांछनीय होने के साथसाथ नाजायज औलाद भी हूं, अपनी चरित्रहीन मां और पिता की ऐयाशी की निशानी. आप ने आशीष अंकल को भी इतने दिन तक अंधेरे में रखा, जबकि मैं ने देखा है कि वे आप पर कितना विश्वास करते हैं, आप को कितना चाहते हैं.’’

मैं ने विरोध करना चाहा, ‘‘बेटा ऐसा नहीं है.’’

‘‘मत कहिए मुझे बेटा. इस से अच्छा था मैं बिना यह सत्य जाने मर जाता. कम से कम कुछ भ्रम तो बना रहता. अब हो सके तो कृपा कर के मेरे पिता का नाम बता दीजिए ताकि मैं उन से पूछ सकूं कि अपने क्षणिक सुख के लिए मुझे इतनी बड़ी यातनाक्यों दे डाली, जिस से निकलने का भी मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,’’ संकर्षण बोला.

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June 13, 2022 at 09:26AM

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