Monday 25 April 2022

कैनवास: सुलिवान मैडम का कैसा व्यक्तित्व था

राइटर-  मिस अलका तुहिना राजपूत

‘‘अलका, आज नो स्कूल डे की मौज ले,’’ शमीका मोबाइल पर खुशी जाहिर कर रही थी.

‘‘मतलब क्या है तेरा?’’ मैं असमंजस में थी.

‘‘अरे सुन, आज सुबहसुबह राजन सर की हार्टअटैक से मौत हो गई. सो, आज छुट्टी है स्कूल की,’’ शमीका ने खुशी जाहिर की.

‘‘यह ठीक है कि राजन सर को हम पसंद नहीं करते, मगर इस पर खुश होना ठीक नहीं शमीका. यह गलत है. एक तो वे नौजवान थे और उन की फैमिली भी थी. प्लीज, ऐसा मत बोल,’’ मैं ने शमीका को सम?ाने की कोशिश की.

‘‘हेलो यार, छोटीछोटी गलतियों पर सारे लड़कों के सामने हम लड़कियों को ‘डम्ब’ और ‘डंकी’ कहते थे, तब,’’ शमीका बड़बड़ाती रही अपनी रौ में. मैं ने फोन काट दिया.

ठीक है हमारे इंग्लिश टीचर राजन सर थोड़ा ज्यादा ही रूड थे और खासकर लड़कियों को अकसर नीचा दिखाते थे, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन की एकाएक डैथ हो जाए और हम खुश हों. उन के बारे में सुन कर दिल भारी हो गया. अभी कुछ दिनों पहले ही तो उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी रिम्पी का पहला बर्थडे मनाया था और उस की फोटो अपने फेसबुक प्रोफाइल में डाली थी. उस बच्ची के लिए मैं उदास थी.

मेरा इंग्लिश मीडियम स्कूल एक को-एड स्कूल था और मेरे क्लास के सारे साथी 11-13 उम्र वर्ग से थे जब सारे लड़केलड़कियों के तनमन में अजीब सी सनसनाहट शुरू हो जाती है और एकदूसरे के लिए अजीब अजीब खयाल उठना शुरू हो जाता है.

जब लड़कों में ईगो बढ़ने लगता है और उन की सोच में ऐंठन आने लगती है. वहीं लड़कियां आईने के सामने ज्यादा समय अपने को सजानेसंवारने में लगाती हैं. यहां तक कि  स्कूल यूनिफौर्म में भी अपने को घुमाफिरा कर चोरीचोरी ये सम?ाने की कोशिश करती हैं कि क्लास के लड़के उन के लुक्स और उभरते शरीर को देख कर नर्वस होते हैं या नहीं. लड़के और लड़कियों के बीच एकदूसरे से बेहतर साबित करने का मौन कंपीटिशन चलता रहता है. प्रौब्लम यह भी है कि जबतब किसी का भी किसी पर क्रश हो जाता है.

खैर, 2 दिनों तक स्कूल बंद रहने के बाद फिर सोमवार को स्कूल खुला. हिंदी और मैथ के पीरियड्स के बाद थर्ड पीरियड इंग्लिश का था और हम निश्ंिचत थे कि यह पीरियड औफ ही रहेगा तो हम शोरगुल मचाने लगे थे. जब हमारा उत्पात और शोर चरम पर था तो एकाएक शांति छा गई.

एक बहुत ही सुंदर और सौम्य लेडी, जो उन दिनों अपनी उम्र के तीसरे दशक के आसपास थी, अपनी हाई हील की खटखट की आवाज करती हुई क्लास में पधारीं. उन के बदन के ज्वारभाटा, लहराते हुए लंबे व खुले बाल और काजल खींची हिरणी सी आखें उन के चारों तरफ एक आभा फैला रही थीं. बड़े सलीके से पहनी हुई उन की सुनहरी बूटीदार मैरून साड़ी, पूरे शबाब के साथ उभरे सीने पर रखा हुआ, मोतियों का नैकलैस, डीप रैड लिपस्टिक और डस्की त्वचा एक अजीब सी मादकता पैदा कर रही थी.

हां, यही वे मिसेज अम्बर सुलिवान थीं जो हमारे दिवंगत राजन सर की जगह हमें इंग्लिश पढ़ाने के लिए नियुक्त की गई थीं.

मिसेज सुलिवान के रूप और पर्सनैलिटी का जादू मेरे ऊपर तुरंत चढ़ गया. मैं उन्हें देखती ही रही और मन ही मन अपनी जवानी के दिनों में वैसी ही बनने की ठान ली. मैं ने चोर निगाहों से क्लास के सब से मवाली लड़कों- रोहन, अदीब और पीयूष की तरफ देखा. वे सब भी बिलकुल डंब हो गए थे. उन की हालत देख कर मैं मन ही मन इतनी खुश हुई कि पूछो मत.

मैडम की पर्सनैलिटी से वे क्लीनबोल्ड हो कर भीगी बिल्ली बन गए थे. एक और जोर का बिजली का ?ाटका तब लगा जब उन्होंने अपनी गजब की सुरीली आवाज में हम लोगों को विश किया. वैसे ही अपने मादक रूपरंग से वे किसी को भी मार सकती थीं, ऊपर से ऐसी जलतरंग सी आवाज. क्लास के हम सारे 40 लड़के व लड़कियां तत्काल ही मिसेज सुलिवान के प्यार में डूब गए.

इस के बाद उन्होंने अपने बारे में थोड़ी सी जानकारी दी और फिर ‘द फाउंटेन’ कविता को इतने रसीले अंदाज में पढ़ाया कि सारे शब्द भाव बन कर हमारे दिल में उतर गए. नोट लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूरे समय तक क्लास में पिनड्रौप साइलैंस बना रहा और हम पीरियड खत्म होने की घंटी बजने के साथ ही होश में आए.

जब मिसेज सुलिवान क्लास छोड़ कर जाने लगीं तो 80 आंखें उन की अदाओं पर चिपकी हुई थीं. वाह, कुदरत ने भी क्या करिश्मा किया है. रूप और गुणों से मैडम को बेइंतहा लैस किया है.

फोर्थ पीरियड अब फिजिकल ट्रेनिंग का था. जैसे ही पीटी टीचर की विस्सल बजी, हम सब तरतीब से लाइन में खड़े हो गए. हमारे पीटी टीचर मिस्टर असलम एकदम रफटफ लंबेतगड़े और बिलकुल गुलाबी रंगत के थे. उन्हें भी हम खूब पसंद करते थे मगर उस की एक दूसरी वजह थी. उन्हें इंग्लिश में बोलना निहायत पसंद था और उन की बेधड़क इंग्लिश भी ऐसी थी कि बड़ेबड़े अंग्रेजीदां लोगों को भी अपनी भाषा बोली रिसेट करने की जरूरत पड़ जाए.

एक दिन उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘यू नो, आई हैव टू डौटर्स एंड बोथ आर गर्ल्स. आई डोंट हैव अ सन.’’ (तुम्हें पता है मेरी दो जुड़वां बेटियां हैं और दोनों लड़कियां हैं. मेरा कोई लड़का नहीं है). उन की बात खत्म होते ही हंसी का फौआरा छूट गया. हमारी हंसी रुके ही न.

असलम सर बेचारे अपना मासूम सा चेहरा लिए यह सम?ाने की कोशिश में थे कि उन्होंने ऐसी कौन सी बात कह दी कि बच्चों को इतना आनंद आ गया. मगर कुछ भी हो, न उन की स्पोकन इंग्लिश छूटी और न ही उन के आत्मविश्वास में कमी आई. हम लोगों ने भी कभी उन को चिढ़ाया नहीं, उन से लगाव जो था.

इसी तरह एक बार टीचर्स डे के अवसर पर प्रार्थना सभा में ही उन्होंने अपनी भारी आवाज में ऐलान किया-‘‘ब्रिंग योर पेरैंट्स टुमारो, एस्पेशली योर फादर्स एंड मदर्स.’’ (कल अपने पेरैंट्स को साथ लाना, खासतौर पर अपने माता और पिता को). अब पूरी असेंबली में हीही हुहु मच गई और प्रिंसिपल मैडम का चेहरा लाल हो गया. स्थिति संभालने के लिए सुलिवान मैडम आगे आईं और अपनी चुस्त इंग्लिश व मोहक मुसकान से सब को चुप कराया. असलम सर तब भी चौड़े हो कर हंस रहे थे.

मजे की बात यह हुई कि अब तक लगभग पूरे शहर को पता चल गया था कि असलम सर बुरी तरह सुलिवान मैडम पर फिदा हैं और सुलिवान मैडम के दिल में भी असलम सर के लिए कुछकुछ होता है. किसी भी बहाने से एकदूसरे के करीब बैठते हैं और तुर्रा तो यह कि असलम सर उन से इंग्लिश में ही बात करते हैं. हालांकि दोनों ही शादीशुदा थे और दोनों के बच्चे भी थे मगर दिल ने कब दुनियावी रोकटोक को माना है.

हुआ यह कि मैडम सुलिवान के 29वें बर्थडे के दिन असलम सर ने स्कूल के कौरिडोर के दूसरे छोर से ही ऊंची आवाज में मैडम को विश किया- ‘‘हैप्पी बर्थडे मैडम, मे गौड ब्लास्ट यू.’’ (हैप्पी बर्थ डे मैडम, ईश्वर आप को फाड़ें). जब सारे टीचर्स और स्टूडैंट्स इस पर खुल कर हंसने लगे, मैडम ने ?ोंपती हुई मुसकरा कर अपनी भारी पलकें ?ाका लीं. जाहिर है, असलम सर ने कभी ‘ब्लेस्स’ और ‘ब्लास्ट’ के अंतर पर ध्यान नही दिया.

हर एक बीते दिन के साथ ही हम सब बच्चे जवान हो रहे थे. मेरी कुछ सहेलियों ने तो ‘नारित्व’ का पहला पड़ाव भी छू लिया था और उन का चहकनामचलना भी एकाएक शांत हो गया था. अब उन की आंखें क्लास के लड़कों में कुछ और चीज की तलाश करने लगी थीं.

प्रकृति का अपना एक षड्यंत्र है. क्यूपिड का अदृश्य तीर तनमन में सुनामी लाता ही है. कितनी ही बार हम लोगों ने गौर किया है कि असलम सर की चोर निगाहें सुलिवान मैडम के स्तनों और साटन की साड़ी में लिपटी नितंबों पर अटकी हुई हैं. सही में असलम सर की इस बेबसी पर हमें दया आती थी.

उसी साल क्रिसमस डे के ठीक पहले सुलिवान मैडम ने सूचित किया कि वे अपने गृहनगर त्रिवेंद्रम लौट रही हैं क्योंकि उन्हें वहां के संत जोसफ कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई है. उन की इस छोटी सी सूचना ने हम लोगों को अंदर तक हिला दिया और असलम सर के तो दिल के हजार टुकड़े लखनऊ की सड़कों पर बिखर गए. सुलिवान मैडम ने अपने सौम्य व्यवहार और आकर्षक व्यक्तित्व से पूरे स्कूल के वातावरण में एक अजीब सी रौनक ला दी थी.

प्रिंसिपल से ले कर चपरासी तक उन के मुरीद हो चुके थे. इन कई महीनों की सर्विस में न तो उन्होंने कोई छुट्टी ली थी और न ही किसी से नाराज हुई थीं. खैर, जो होता है वह तो हो कर रहता है. वह दिन भी आ ही गया जब उन का फेयरवैल होना था.

असलम सर ने बड़ी मेहनत से अपने दिल में बसे समस्त आवेग और रचनात्मकता उड़ेल कर सुलिवान मैडम के लिए तैयार किया गया एक बड़ा सा ग्रीटिंग कार्ड और लालपीले गुलाबों से सजा एक गुलदस्ता ला कर उन्हें गिफ्ट किया. स्वाभाविक था कि सब में यह जिज्ञासा थी कि उस में उन्होंने कैसे अपने दिल की जबां को व्यक्त किया है.

हम सब ने उस कार्ड के अंदर ताक?ांक की और पाया कि सुनहरे ग्लिटर से लिखा था, ‘‘मैरी क्रिसमस, डियर सुलिवान मैडम.’’ (क्रिसमस से विवाह करें, प्रिय सुलिवान मैडम). हम सब ने चुपचाप अपनी हंसी दबा ली.

असलम सर ने कभी ‘मेरी’ और ‘मैरी’ के बीच का अंतर न सम?ा था. सुलिवान मैडम ने बड़ी नजाकत के साथ कार्ड को स्वीकार किया, टैक्स्ट को पढ़ा और संयत ढंग से मुसकरा कर असलम सर को थैंक्स कहा.

फेयरवैल के बाद सुलिवान मैडम ने असलम सर को एक खाली क्लासरूम में एकांत में बुलाया और कार्ड के लेखन में हुई गलती को बड़े प्रेम से सम?ाया और हौले से उन के गाल पर एक चुंबन दे दिया. मैडम की तरफ से असलम सर के लिए यह एक छोटा सा गुडबाई रिटर्न गिफ्ट था. असलम सर की बड़ीबड़ी आंखों से सावन की धार बह निकली. क्यूपिड का खेल इसी तरह ओवर हो गया. हम में से कुछ शरारती बच्चे, जो खिड़की की ओट से इस छोटी सी घटना के रोमांटिक एंड का नजारा देख रहे थे, अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए और दबे कदमों से वहां से भाग लिए.

आज जब मैं खुद अपना 29वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रही हूं, एक सफल जर्नलिस्ट के रूप में शोहरत कमा चुकी हूं. मेरे मन के कैनवास पर असलम सर की स्पोकन इंग्लिश के साथसाथ सुलिवान मैडम के उज्ज्वल व्यक्तित्व की अमिट छाप, उन की हर अदा और पढ़ाने का अंदाज, उन का रोमांस और हर पल में उन की उपस्थिति मु?ो प्रेरित कर रही है.

आज मैं जो कुछ भी हूं और आगे जीवन में जो कुछ भी हासिल करूंगी, उस में मेरी चहेती सुलिवान मैडम का योगदान और आशीर्वाद दोनों रहेंगे.

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राइटर-  मिस अलका तुहिना राजपूत

‘‘अलका, आज नो स्कूल डे की मौज ले,’’ शमीका मोबाइल पर खुशी जाहिर कर रही थी.

‘‘मतलब क्या है तेरा?’’ मैं असमंजस में थी.

‘‘अरे सुन, आज सुबहसुबह राजन सर की हार्टअटैक से मौत हो गई. सो, आज छुट्टी है स्कूल की,’’ शमीका ने खुशी जाहिर की.

‘‘यह ठीक है कि राजन सर को हम पसंद नहीं करते, मगर इस पर खुश होना ठीक नहीं शमीका. यह गलत है. एक तो वे नौजवान थे और उन की फैमिली भी थी. प्लीज, ऐसा मत बोल,’’ मैं ने शमीका को सम?ाने की कोशिश की.

‘‘हेलो यार, छोटीछोटी गलतियों पर सारे लड़कों के सामने हम लड़कियों को ‘डम्ब’ और ‘डंकी’ कहते थे, तब,’’ शमीका बड़बड़ाती रही अपनी रौ में. मैं ने फोन काट दिया.

ठीक है हमारे इंग्लिश टीचर राजन सर थोड़ा ज्यादा ही रूड थे और खासकर लड़कियों को अकसर नीचा दिखाते थे, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन की एकाएक डैथ हो जाए और हम खुश हों. उन के बारे में सुन कर दिल भारी हो गया. अभी कुछ दिनों पहले ही तो उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी रिम्पी का पहला बर्थडे मनाया था और उस की फोटो अपने फेसबुक प्रोफाइल में डाली थी. उस बच्ची के लिए मैं उदास थी.

मेरा इंग्लिश मीडियम स्कूल एक को-एड स्कूल था और मेरे क्लास के सारे साथी 11-13 उम्र वर्ग से थे जब सारे लड़केलड़कियों के तनमन में अजीब सी सनसनाहट शुरू हो जाती है और एकदूसरे के लिए अजीब अजीब खयाल उठना शुरू हो जाता है.

जब लड़कों में ईगो बढ़ने लगता है और उन की सोच में ऐंठन आने लगती है. वहीं लड़कियां आईने के सामने ज्यादा समय अपने को सजानेसंवारने में लगाती हैं. यहां तक कि  स्कूल यूनिफौर्म में भी अपने को घुमाफिरा कर चोरीचोरी ये सम?ाने की कोशिश करती हैं कि क्लास के लड़के उन के लुक्स और उभरते शरीर को देख कर नर्वस होते हैं या नहीं. लड़के और लड़कियों के बीच एकदूसरे से बेहतर साबित करने का मौन कंपीटिशन चलता रहता है. प्रौब्लम यह भी है कि जबतब किसी का भी किसी पर क्रश हो जाता है.

खैर, 2 दिनों तक स्कूल बंद रहने के बाद फिर सोमवार को स्कूल खुला. हिंदी और मैथ के पीरियड्स के बाद थर्ड पीरियड इंग्लिश का था और हम निश्ंिचत थे कि यह पीरियड औफ ही रहेगा तो हम शोरगुल मचाने लगे थे. जब हमारा उत्पात और शोर चरम पर था तो एकाएक शांति छा गई.

एक बहुत ही सुंदर और सौम्य लेडी, जो उन दिनों अपनी उम्र के तीसरे दशक के आसपास थी, अपनी हाई हील की खटखट की आवाज करती हुई क्लास में पधारीं. उन के बदन के ज्वारभाटा, लहराते हुए लंबे व खुले बाल और काजल खींची हिरणी सी आखें उन के चारों तरफ एक आभा फैला रही थीं. बड़े सलीके से पहनी हुई उन की सुनहरी बूटीदार मैरून साड़ी, पूरे शबाब के साथ उभरे सीने पर रखा हुआ, मोतियों का नैकलैस, डीप रैड लिपस्टिक और डस्की त्वचा एक अजीब सी मादकता पैदा कर रही थी.

हां, यही वे मिसेज अम्बर सुलिवान थीं जो हमारे दिवंगत राजन सर की जगह हमें इंग्लिश पढ़ाने के लिए नियुक्त की गई थीं.

मिसेज सुलिवान के रूप और पर्सनैलिटी का जादू मेरे ऊपर तुरंत चढ़ गया. मैं उन्हें देखती ही रही और मन ही मन अपनी जवानी के दिनों में वैसी ही बनने की ठान ली. मैं ने चोर निगाहों से क्लास के सब से मवाली लड़कों- रोहन, अदीब और पीयूष की तरफ देखा. वे सब भी बिलकुल डंब हो गए थे. उन की हालत देख कर मैं मन ही मन इतनी खुश हुई कि पूछो मत.

मैडम की पर्सनैलिटी से वे क्लीनबोल्ड हो कर भीगी बिल्ली बन गए थे. एक और जोर का बिजली का ?ाटका तब लगा जब उन्होंने अपनी गजब की सुरीली आवाज में हम लोगों को विश किया. वैसे ही अपने मादक रूपरंग से वे किसी को भी मार सकती थीं, ऊपर से ऐसी जलतरंग सी आवाज. क्लास के हम सारे 40 लड़के व लड़कियां तत्काल ही मिसेज सुलिवान के प्यार में डूब गए.

इस के बाद उन्होंने अपने बारे में थोड़ी सी जानकारी दी और फिर ‘द फाउंटेन’ कविता को इतने रसीले अंदाज में पढ़ाया कि सारे शब्द भाव बन कर हमारे दिल में उतर गए. नोट लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूरे समय तक क्लास में पिनड्रौप साइलैंस बना रहा और हम पीरियड खत्म होने की घंटी बजने के साथ ही होश में आए.

जब मिसेज सुलिवान क्लास छोड़ कर जाने लगीं तो 80 आंखें उन की अदाओं पर चिपकी हुई थीं. वाह, कुदरत ने भी क्या करिश्मा किया है. रूप और गुणों से मैडम को बेइंतहा लैस किया है.

फोर्थ पीरियड अब फिजिकल ट्रेनिंग का था. जैसे ही पीटी टीचर की विस्सल बजी, हम सब तरतीब से लाइन में खड़े हो गए. हमारे पीटी टीचर मिस्टर असलम एकदम रफटफ लंबेतगड़े और बिलकुल गुलाबी रंगत के थे. उन्हें भी हम खूब पसंद करते थे मगर उस की एक दूसरी वजह थी. उन्हें इंग्लिश में बोलना निहायत पसंद था और उन की बेधड़क इंग्लिश भी ऐसी थी कि बड़ेबड़े अंग्रेजीदां लोगों को भी अपनी भाषा बोली रिसेट करने की जरूरत पड़ जाए.

एक दिन उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘यू नो, आई हैव टू डौटर्स एंड बोथ आर गर्ल्स. आई डोंट हैव अ सन.’’ (तुम्हें पता है मेरी दो जुड़वां बेटियां हैं और दोनों लड़कियां हैं. मेरा कोई लड़का नहीं है). उन की बात खत्म होते ही हंसी का फौआरा छूट गया. हमारी हंसी रुके ही न.

असलम सर बेचारे अपना मासूम सा चेहरा लिए यह सम?ाने की कोशिश में थे कि उन्होंने ऐसी कौन सी बात कह दी कि बच्चों को इतना आनंद आ गया. मगर कुछ भी हो, न उन की स्पोकन इंग्लिश छूटी और न ही उन के आत्मविश्वास में कमी आई. हम लोगों ने भी कभी उन को चिढ़ाया नहीं, उन से लगाव जो था.

इसी तरह एक बार टीचर्स डे के अवसर पर प्रार्थना सभा में ही उन्होंने अपनी भारी आवाज में ऐलान किया-‘‘ब्रिंग योर पेरैंट्स टुमारो, एस्पेशली योर फादर्स एंड मदर्स.’’ (कल अपने पेरैंट्स को साथ लाना, खासतौर पर अपने माता और पिता को). अब पूरी असेंबली में हीही हुहु मच गई और प्रिंसिपल मैडम का चेहरा लाल हो गया. स्थिति संभालने के लिए सुलिवान मैडम आगे आईं और अपनी चुस्त इंग्लिश व मोहक मुसकान से सब को चुप कराया. असलम सर तब भी चौड़े हो कर हंस रहे थे.

मजे की बात यह हुई कि अब तक लगभग पूरे शहर को पता चल गया था कि असलम सर बुरी तरह सुलिवान मैडम पर फिदा हैं और सुलिवान मैडम के दिल में भी असलम सर के लिए कुछकुछ होता है. किसी भी बहाने से एकदूसरे के करीब बैठते हैं और तुर्रा तो यह कि असलम सर उन से इंग्लिश में ही बात करते हैं. हालांकि दोनों ही शादीशुदा थे और दोनों के बच्चे भी थे मगर दिल ने कब दुनियावी रोकटोक को माना है.

हुआ यह कि मैडम सुलिवान के 29वें बर्थडे के दिन असलम सर ने स्कूल के कौरिडोर के दूसरे छोर से ही ऊंची आवाज में मैडम को विश किया- ‘‘हैप्पी बर्थडे मैडम, मे गौड ब्लास्ट यू.’’ (हैप्पी बर्थ डे मैडम, ईश्वर आप को फाड़ें). जब सारे टीचर्स और स्टूडैंट्स इस पर खुल कर हंसने लगे, मैडम ने ?ोंपती हुई मुसकरा कर अपनी भारी पलकें ?ाका लीं. जाहिर है, असलम सर ने कभी ‘ब्लेस्स’ और ‘ब्लास्ट’ के अंतर पर ध्यान नही दिया.

हर एक बीते दिन के साथ ही हम सब बच्चे जवान हो रहे थे. मेरी कुछ सहेलियों ने तो ‘नारित्व’ का पहला पड़ाव भी छू लिया था और उन का चहकनामचलना भी एकाएक शांत हो गया था. अब उन की आंखें क्लास के लड़कों में कुछ और चीज की तलाश करने लगी थीं.

प्रकृति का अपना एक षड्यंत्र है. क्यूपिड का अदृश्य तीर तनमन में सुनामी लाता ही है. कितनी ही बार हम लोगों ने गौर किया है कि असलम सर की चोर निगाहें सुलिवान मैडम के स्तनों और साटन की साड़ी में लिपटी नितंबों पर अटकी हुई हैं. सही में असलम सर की इस बेबसी पर हमें दया आती थी.

उसी साल क्रिसमस डे के ठीक पहले सुलिवान मैडम ने सूचित किया कि वे अपने गृहनगर त्रिवेंद्रम लौट रही हैं क्योंकि उन्हें वहां के संत जोसफ कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई है. उन की इस छोटी सी सूचना ने हम लोगों को अंदर तक हिला दिया और असलम सर के तो दिल के हजार टुकड़े लखनऊ की सड़कों पर बिखर गए. सुलिवान मैडम ने अपने सौम्य व्यवहार और आकर्षक व्यक्तित्व से पूरे स्कूल के वातावरण में एक अजीब सी रौनक ला दी थी.

प्रिंसिपल से ले कर चपरासी तक उन के मुरीद हो चुके थे. इन कई महीनों की सर्विस में न तो उन्होंने कोई छुट्टी ली थी और न ही किसी से नाराज हुई थीं. खैर, जो होता है वह तो हो कर रहता है. वह दिन भी आ ही गया जब उन का फेयरवैल होना था.

असलम सर ने बड़ी मेहनत से अपने दिल में बसे समस्त आवेग और रचनात्मकता उड़ेल कर सुलिवान मैडम के लिए तैयार किया गया एक बड़ा सा ग्रीटिंग कार्ड और लालपीले गुलाबों से सजा एक गुलदस्ता ला कर उन्हें गिफ्ट किया. स्वाभाविक था कि सब में यह जिज्ञासा थी कि उस में उन्होंने कैसे अपने दिल की जबां को व्यक्त किया है.

हम सब ने उस कार्ड के अंदर ताक?ांक की और पाया कि सुनहरे ग्लिटर से लिखा था, ‘‘मैरी क्रिसमस, डियर सुलिवान मैडम.’’ (क्रिसमस से विवाह करें, प्रिय सुलिवान मैडम). हम सब ने चुपचाप अपनी हंसी दबा ली.

असलम सर ने कभी ‘मेरी’ और ‘मैरी’ के बीच का अंतर न सम?ा था. सुलिवान मैडम ने बड़ी नजाकत के साथ कार्ड को स्वीकार किया, टैक्स्ट को पढ़ा और संयत ढंग से मुसकरा कर असलम सर को थैंक्स कहा.

फेयरवैल के बाद सुलिवान मैडम ने असलम सर को एक खाली क्लासरूम में एकांत में बुलाया और कार्ड के लेखन में हुई गलती को बड़े प्रेम से सम?ाया और हौले से उन के गाल पर एक चुंबन दे दिया. मैडम की तरफ से असलम सर के लिए यह एक छोटा सा गुडबाई रिटर्न गिफ्ट था. असलम सर की बड़ीबड़ी आंखों से सावन की धार बह निकली. क्यूपिड का खेल इसी तरह ओवर हो गया. हम में से कुछ शरारती बच्चे, जो खिड़की की ओट से इस छोटी सी घटना के रोमांटिक एंड का नजारा देख रहे थे, अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए और दबे कदमों से वहां से भाग लिए.

आज जब मैं खुद अपना 29वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रही हूं, एक सफल जर्नलिस्ट के रूप में शोहरत कमा चुकी हूं. मेरे मन के कैनवास पर असलम सर की स्पोकन इंग्लिश के साथसाथ सुलिवान मैडम के उज्ज्वल व्यक्तित्व की अमिट छाप, उन की हर अदा और पढ़ाने का अंदाज, उन का रोमांस और हर पल में उन की उपस्थिति मु?ो प्रेरित कर रही है.

आज मैं जो कुछ भी हूं और आगे जीवन में जो कुछ भी हासिल करूंगी, उस में मेरी चहेती सुलिवान मैडम का योगदान और आशीर्वाद दोनों रहेंगे.

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April 26, 2022 at 09:02AM

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