Tuesday 26 April 2022

सिसकी- भाग 1: रानू और उसका क्या रिश्ता था

राइटर- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिंटू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की तीली से चूल्हा जला लेता. उसे अभी गैस लाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार तीलियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानी भरा पतीला उस के ऊपर रख देता और नूडल्स का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उसे संशी से पकड़ कर पतीला उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि पतीला ठंडा न हो जाता. वह सावधानीपूर्वक पतीला उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता. रानू दूर बैठी अपने भाई को नूडल्स बनाते देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिंटू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिंटू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितना नूडल्स बच जाता वह चिंटू खा लेता. अकसर नूडल्स कम ही बच पाते थे. दादाजी नूडल्स नहीं खाते, उन के लिए चिंटू चाय बना देता. फिर चिंटू दोनों की प्लेट, चाय का कप और पतीला साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते.

इस कमरे में ही दादाजी का पलंग बिछा था जिस में वे लेटे रहते. उन्हें लकवा लगा हुआ था, इस कारण उन से चलते नहीं बनता था. हालांकि थरथराहट के साथ वे बोल तो लेते थे पर उन की इस भाषा को चिंटू कम ही सम?ा पाता था. चिंटू ही उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम तक ले जाता और फिर बिस्तर पर छोड़ देता. वे असहायी नजरों से चिंटू को देखते रहते. उन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बात के गवाह थे कि वे बहुत कष्ट में हैं.

इस कमरे में ही चिंटू के मातापिता की फोटो लगी थी जिस पर फूलों का हार डला था. फोटो देख कर वे मम्मीपापा की यादों में खो जाते.

‘मम्मी, बहुत जोरों की भूख लगी है.’

‘हां, अभी रोटी सेंकती हूं, तब तक नूडल्स बना दूं क्या?’

‘रोजरोज मैगी, मैं तो बोर हो गया हूं, आप तो परांठे बना दो.’

‘अच्छा, चलो ठीक है. पहले तुम को परांठा बना देती हूं, बाद में काम कर लूंगी,’ यह कहती हुई मम्मी अपना हाथ धो कर किचन में चली जातीं.

कुछ ही देर में वे प्लेट में परांठा, अचार और शक्कर रख कर ले आतीं. ‘शक्कर कम खाया करो, चुनमुना काटते हैं,’ वे हंसती हुई कह देतीं.

‘‘पर मु?ो बगैर शक्कर के परांठा खाना अच्छा नहीं लगता, मम्मी.’

‘अचार तो है, उस से खाओ.’

‘अचार, तेल वाला और फिर कितनी मिर्ची भी तो है उस में,’ चिंटू नाक सिकोड़ लेता.

‘अच्छा बाबा, तुम को जो पसंद है वह खाओ,’ यह कहती हुईं वे रानू को गोद में उठा लेतीं, ‘तुम क्या खाओगी?’

‘मु?ो दूध चाहिए, चौकलेट वाला.’

‘दूध ही दूध पीती हो, एकाध परांठा भी खा लिया करो.’

The post सिसकी- भाग 1: रानू और उसका क्या रिश्ता था appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/mTZpSsL

राइटर- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिंटू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की तीली से चूल्हा जला लेता. उसे अभी गैस लाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार तीलियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानी भरा पतीला उस के ऊपर रख देता और नूडल्स का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उसे संशी से पकड़ कर पतीला उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि पतीला ठंडा न हो जाता. वह सावधानीपूर्वक पतीला उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता. रानू दूर बैठी अपने भाई को नूडल्स बनाते देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिंटू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिंटू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितना नूडल्स बच जाता वह चिंटू खा लेता. अकसर नूडल्स कम ही बच पाते थे. दादाजी नूडल्स नहीं खाते, उन के लिए चिंटू चाय बना देता. फिर चिंटू दोनों की प्लेट, चाय का कप और पतीला साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते.

इस कमरे में ही दादाजी का पलंग बिछा था जिस में वे लेटे रहते. उन्हें लकवा लगा हुआ था, इस कारण उन से चलते नहीं बनता था. हालांकि थरथराहट के साथ वे बोल तो लेते थे पर उन की इस भाषा को चिंटू कम ही सम?ा पाता था. चिंटू ही उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम तक ले जाता और फिर बिस्तर पर छोड़ देता. वे असहायी नजरों से चिंटू को देखते रहते. उन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बात के गवाह थे कि वे बहुत कष्ट में हैं.

इस कमरे में ही चिंटू के मातापिता की फोटो लगी थी जिस पर फूलों का हार डला था. फोटो देख कर वे मम्मीपापा की यादों में खो जाते.

‘मम्मी, बहुत जोरों की भूख लगी है.’

‘हां, अभी रोटी सेंकती हूं, तब तक नूडल्स बना दूं क्या?’

‘रोजरोज मैगी, मैं तो बोर हो गया हूं, आप तो परांठे बना दो.’

‘अच्छा, चलो ठीक है. पहले तुम को परांठा बना देती हूं, बाद में काम कर लूंगी,’ यह कहती हुई मम्मी अपना हाथ धो कर किचन में चली जातीं.

कुछ ही देर में वे प्लेट में परांठा, अचार और शक्कर रख कर ले आतीं. ‘शक्कर कम खाया करो, चुनमुना काटते हैं,’ वे हंसती हुई कह देतीं.

‘‘पर मु?ो बगैर शक्कर के परांठा खाना अच्छा नहीं लगता, मम्मी.’

‘अचार तो है, उस से खाओ.’

‘अचार, तेल वाला और फिर कितनी मिर्ची भी तो है उस में,’ चिंटू नाक सिकोड़ लेता.

‘अच्छा बाबा, तुम को जो पसंद है वह खाओ,’ यह कहती हुईं वे रानू को गोद में उठा लेतीं, ‘तुम क्या खाओगी?’

‘मु?ो दूध चाहिए, चौकलेट वाला.’

‘दूध ही दूध पीती हो, एकाध परांठा भी खा लिया करो.’

The post सिसकी- भाग 1: रानू और उसका क्या रिश्ता था appeared first on Sarita Magazine.

April 27, 2022 at 09:00AM

No comments:

Post a Comment