Friday 29 April 2022

क्रंदन: पीयूष की शराब की लत छुड़वा पाई कोकिला

पीयूष ने दोनों बैग्स प्लेन में चैकइन कर स्वयं अपनी नवविवाहित पत्नी कोकिला का हाथ थामे उसे सीट पर बैठाया. हनीमून पर सब कुछ कितना प्रेम से सराबोर होता है. कहो तो पति हाथ में पत्नी का पर्स भी उठा कर चल पड़े, पत्नी थक जाए तो गोदी में उठा ले और कुछ उदास दिखे तो उसे खुश करने हेतु चुटकुलों का पिटारा खोल दे.

भले अरेंज्ड मैरिज थी, किंतु थी तो नईनई शादी. सो दोनों मंदमंद मुसकराहट भरे अधर लिए, शरारत और झिझक भरे नयन लिए, एकदूसरे के गलबहियां डाले चल दिए थे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने. हनीमून को भरपूर जिया दोनों ने. न केवल एकदूसरे से प्यार निभाया, अपितु एकदूसरे की आदतों, इच्छाओं, अभिलाषाओं को भी पहचाना, एकदूसरे के परिवारजनों के बारे में भी जाना और एक सुदृढ़ पारिवारिक जीवन जीने के वादे भी किए.

हनीमून को इस समझदारी से निभाने का श्रेय पीयूष को जाता है कि किस तरह उस ने कोकिला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया. एक सुखीसशक्त परिवार बनाने हेतु और क्या चाहिए भला? पीयूष अपने काम पर पूरा ध्यान देने लगा. रातदिन एक कर के उस ने अपना कारोबार जमाया था. अपने आरंभ किए स्टार्टअप के लिए वैंचर कैपिटलिस्ट्स खोजे थे. न समयबंधन देखा न थकावट. सिर्फ मेहनत करता गया. उधर कोकिला भी घरगृहस्थी को सही पथ पर ले चली.

‘‘आज फिर देर से आई लीला. क्या हो गया आज?’’ कामवाली के देर से आने पर कोकिला ने उसे टोका.

इस पर कामवाली ने अपना मुंह दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, कल रात मेरे मर्द ने फिर से पी कर दंगा किया मेरे साथ. कलमुंहा न खुद कमाता है और न मेरा पैसा जुड़ने देता है. रोजरोज मेरा पैसा छीन कर दारू पी आता है और फिर मुझे ही पीटता है.’’

‘‘तो क्यों सहती है? तुम लोग भी न… तभी कहते हैं पढ़लिख लिया करो. बस आदमी, बेटे के आगे झुकती रहती हो… कमाती भी हो फिर भी पिटती हो…,’’ कोकिला आज के समय की स्त्री थी. असहाय व दयनीय स्थिति से समझौते के बजाय उस का हल खोजना चाहती थी.

शाम को घर लौटे पीयूष के हाथ में पानी का गिलास थमाते हुए कोकिला ने हौले से उस का हाथ अपने पेट पर रख दिया.

‘‘सच? कोकी, तुम ने मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर दिए हैं. हमारी गृहस्थी में एक और सदस्य का जुड़ना मुझे कितनी प्रसन्नता दे रहा है, मैं बयां नहीं कर सकता. बोलो, इस खुशी के अवसर पर तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘मुझे जो चाहिए वह आप सब मुझे पहले ही दे चुके हैं,’’ कोकिला भी बहुत खुश थी.

‘‘पर अब तुम्हें पूरी देखभाल की आवश्यकता है.’’ पीयूष उसे मायके ले गया जो पास ही था.

इस खुशी के अवसर पर कोकिला के मायके में उस के और पीयूष के स्वागत में खानेपीने की ए वन तैयारी थी. उन के पहुंचते ही कोकिला की मम्मी उन्हें गरमगरम स्नैक्स जोर दे कर खिलाने लगीं और उधर कोकिला के पापा पीयूष और अपने लिए 2 गिलासों में शराब ले आए.

‘‘पापा यह आप क्या कर रहे हैं?’’ उन की इस हरकत से कोकिला अचंभित भी थी और परेशान भी. उसे अपने पापा की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

किंतु पीयूष को बुरा नहीं लगा. बोला, ‘‘तुम्हारे पापा ने इस मौके को सैलिब्रेट करने हेतु ड्रिंक बनाया है, तो इस में इतना बुरा मानने की क्या बात है?’’

फिर तो यह क्रम बन गया. जब भी कोकिला मायके जाती, पीयूष और उस के पापा पीने बैठ जाते. कोकिला अपने मायके जाने से कतराने लगी. किंतु उस की स्थिति ऐसी थी कि वहां आनाजाना उस की मजबूरी थी.

समय बीतने के साथ पीयूष और कोकिला के घर में जुड़वां बच्चों का आगमन हुआ. दोनों की प्रसन्नता नए आयाम छू रही थी. शिशुओं की देखभाल करने में दोनों उलझे रहते. शुरूशुरू में बच्चों की नित नई बातें तथा बालक्रीड़ाएं दोनों को खुशी से व्यस्त रखतीं. रोज शाम घर लौटने पर कोकिला पीयूष को कभी हृदय की तो कभी मान्या की बातें सुनाती. दोनों इसी बहाने अपना बचपन एक बार फिर जी रहे थे.

एक शाम घर लौटे पीयूष से आ रही गंध ने कोकिला को चौंकाया, ‘‘तुम शराब पी कर घर आए हो?’’

‘‘अरे, वह मोहित है न. आज उस ने पार्टी दी थी. दरअसल, उस की प्रमोशन हो गई है. सब दोस्तयार पीछे पड़ गए तो थोड़ी पीनी पड़ी,’’ कह पीयूष फौरन कमरे में चला गया.

1-2 दिन की बात होती तो शायद कोकिला को इतनी परेशानी न होती, किंतु पीयूष तो रोज शाम पी कर घर आने लगा.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, पीयूष? तुम तो रोज ही पी कर घर आने लगे हो. पूछने पर कभी कहते हो फलां दोस्त ने पिला दी, कभी फलां के घर पार्टी थी, कभी किसी दोस्त की शादी तय होने की खुशी में तो कभी किसी दोस्त की परेशानी बांटने में साथ देने हेतु. शायद तुम

देख नहीं पा रहे हो कि तुम किस राह निकल पड़े हो. तुम्हारी सारी मेहनत, इतने परिश्रम से खड़ा किया तुम्हारा कारोबार, हमारी गृहस्थी सब बरबाद हो जाएगा. शराब किसी को नहीं छोड़ती,’’ कोकिला को भविष्य की चिंता खाए जा रही थी.

‘‘तुम्हारा नाम भले ही कोकिला है पर तुम्हारी वाणी अब कौए समान हो गई,’’ पीयूष झल्ला कर बोला.

‘‘तो क्या रोजरोज पी कर घर आने पर टोकना गलत है?’’ कोकिला भी चिल्लाई.

गृहकलह को शांत करने का उपाय भी पीयूष ने ही खोजा. अगली सुबह सब से पहले उठ कर चाय बना उस ने कोकिला को जगाया और फिर हाथ जोड़ कर उस से क्षमायाचना की, ‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. देखो, यदि तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो मैं आज से नहीं पीऊंगा. अब तो खुश?’’

और वाकई पीयूष ने शराब त्यागने का भरपूर प्रयास शुरू कर दिया. वे दोस्त छोड़ दिए जिन के साथ वह पीता था. जब उन के फोन आते तब पीयूष कोई न कोई बहाना बना देता. कोकिला बहुत खुश हुई कि अब इन की यह लत छूट जाएगी.

अभी 1 हफ्ता ही बीता था कि पीयूष के चाचाजी जो अमेरिका में रहते थे, 1 हफ्ते के लिए उन के घर रहने आए. वे अपने साथ एक महंगी शराब की बोतल लाए. किसी लत से लड़ते हुए इनसान के सामने उसी लत का स्रोत रख दिया जाए तो क्या होगा? ऐसा नहीं था कि पीयूष ने बचने का प्रयास नहीं किया.

‘‘चाचाजी, मैं ने शराब पीनी छोड़ दी है… मुझे कुछ परेशानी होने लगी है लगातार पीने से,’’ पीयूष ने चाचा को समझाने की कोशिश की.

किंतु चाचाजी ने एक न सुनी, ‘‘अरे क्या यार, इतनी सस्ती शराब पीता है, इसलिए तुझे परेशानी हो रही है. अच्छी, महंगी शराब पी, फिर देख. हमारे अमेरिका में तो रोज पीते हैं और कभी कुछ नहीं होता.’’

चाचाजी इस बात पर ध्यान देना भूल गए कि बुरी चीज बुरी होती है. फिर उस की क्वालिटी कैसी भी हो. जब रोज पूरीपूरी बोतल गटकेंगे तो नुकसान तो होगा ही न.

बस, फिर क्या था. पीयूष की आदत फिर शुरू हो गई. कोकिला के मना करने, हाथ जोड़ने, प्रार्थना करने और लड़ने का भी कोई असर नहीं.

‘‘तो क्या चाहती हो तुम? चाचाजी के सामने कह दूं कि आप अकेले पियो, मैं आप का साथ नहीं दूंगा? तुम समझती क्यों नहीं हो… मैं साथ ही तो दे रहा हूं. अब घर आए मेहमान का अपमान करूं क्या? चिंता न करो, जब चाचाजी लौट जाएंगे तब मैं बिलकुल नहीं पीऊंगा. मैं वादा करता हूं.’’

कुछ समय बिता कर चाचाजी चले गए. किंतु पीयूष की लत नहीं गई. वह पी कर घर आता रहा. एक रात कोकिला ने दरवाजा नहीं खोला, ‘‘तुम अपने सारे वादे भूल जाते हो, किंतु मुझे याद हैं. अब से जब भी पी कर आओगे, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी.’’

‘‘सुनो तो कोकिला, बस इस बार घर में आने दो. आइंदा से बाहर से पी कर घर नहीं आया करूंगा. घर में ही पी लिया करूं तो इस में तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है न?’’

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे पीयूष?’’

‘‘तो ठीक है, मैं बाहर गैरेज में बैठ कर पी लिया करूंगा.’’

वह कहते हैं न कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, जिसे पीने की लत लग जाए, वह कैसे न कैसे पीने के अवसर ढूंढ़ ही लाता है. घर में सहर्ष स्वीकृति न मिलने पर पीयूष ने गैरेज में पीना आरंभ कर दिया. रोज शाम गैरेज में दरवाजा बंद कर शराब पीता और फिर सोने के लिए लड़खड़ाता घर चला आता. ‘‘कल रात फिर तुम ने पूरी बोतल पी? कुछ तो खयाल करो, पीयूष. तुम शराबी बनते जा रहे हो,’’ कोकिला नाराज होती.

‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. आज से बस 2 पैग लिया करूंगा,’’ सुबह होते ही पीयूष फौरन क्षमा मांगने लगता. लेकिन शाम ढलते ही उसे सिर्फ बोतल नजर आती.

उस रात जब फिर पीयूष लड़खड़ाता हुआ घर में दाखिल हुआ तो कोकिला का पारा 7वें आसमान पर था. उस ने पीयूष को कमरे में घुसने से साफ मना कर दिया, ‘‘मेरे और लीला के पति में इतना ही अंतर है कि वह उस के पैसे से पी कर उसे ही मारता है और तुम अपने पैसे से पी कर चुपचाप सो जाते हो, लेकिन गृहस्थियां तो दोनों ही उलझ कर रह गई हैं न… कल से पी कर आए, तो कमरे में आने की जरूरत नहीं है.’’

कोकिला के इस अल्टीमेटम के चलते दोनों में बहस छिड़ गई और फिर दोनों अलगअलग कमरे में सोने लगे. धीरेधीरे पीयूष और कोकिला एकदूसरे से और भी दूर होते चले गए. कोकिला पीयूष से नाराज रहने लगी. बारबार पीयूष के झूठ के कारण वह उस की ओर से हताश हो चुकी थी. हार कर उस ने उसे समझाना ही छोड़ दिया.

अब पीयूष की तबीयत अकसर खराब रहने लगी. वह बहुत कमजोर होता जा रहा था. जब तक डाक्टर के पास पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पता चला कि पीयूष को शराब के कारण गैलपिंग सिरोसिस औफ लिवर हो गया है. अस्पताल वालों ने टैस्टों की लंबी सूची थमा दी. रातदिन डाक्टरों के चक्कर काटती कोकिला बेहाल लगने लगी थी. बच्चे भी कभी किसी रिश्तेदार के सहारे तो कभी किसी मित्र के घर अपना समय काट रहे थे.

देखते ही देखते अस्पताल वालोें ने क्व18 लाख का बिल बना दिया. कोकिला और पीयूष दोनों ही कांप उठे. कहां से लाएंगे इतनी रकम… इतना बड़ा बिल चुकाने हेतु सब बिक जाना पक्का था. जमीन, शेयर, म्यूचुअल बौंड, यहां तक कि घर भी.

एक शाम पैसों का इंतजाम करने हेतु पने निवेश के दस्तावेज ले कर पीयूष और कोकिला गाड़ी से घर लौट रहे थे. कोकिला बेहद उदास थी. उस की आंखें बरस रही थीं, ‘‘यह क्या हो गया है, पीयूष? हमारी गृहस्थी कहां से कहां आ पहुंची है… काश, तुम पहले ही होश में आ जाते.’’

कोकिला की बातें सुन, उस की हालत देख पीयूष की आंखें भी डबडबा गईं कि काश, उस ने पहले सुध ली होती. अपनी पत्नी, बच्चों के बारे में जिम्मेदारी से सोचा होता. डबडबाई आंखों से राह धुंधला जाती है. गाड़ी चलाते हुए आंखें पोंछने को जैसे ही पीयूष ने नीचे मुंह झुकाया सामने से अचानक तेजी से आते एक ट्रक ने उन की गाड़ी को टक्कर मार दी. पीयूष और कोकिला की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

नन्हे हृदय और मान्या अब इस संसार में बिलकुल अकेले रह गए. कौन सुध लेगा इन नन्ही जानों की? जब नाविक ही नैया को डुबोने पर उतारू हो तो उस नाव में सवार अन्य लोगों की जिंदगी डोलना लाजिम है.

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पीयूष ने दोनों बैग्स प्लेन में चैकइन कर स्वयं अपनी नवविवाहित पत्नी कोकिला का हाथ थामे उसे सीट पर बैठाया. हनीमून पर सब कुछ कितना प्रेम से सराबोर होता है. कहो तो पति हाथ में पत्नी का पर्स भी उठा कर चल पड़े, पत्नी थक जाए तो गोदी में उठा ले और कुछ उदास दिखे तो उसे खुश करने हेतु चुटकुलों का पिटारा खोल दे.

भले अरेंज्ड मैरिज थी, किंतु थी तो नईनई शादी. सो दोनों मंदमंद मुसकराहट भरे अधर लिए, शरारत और झिझक भरे नयन लिए, एकदूसरे के गलबहियां डाले चल दिए थे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने. हनीमून को भरपूर जिया दोनों ने. न केवल एकदूसरे से प्यार निभाया, अपितु एकदूसरे की आदतों, इच्छाओं, अभिलाषाओं को भी पहचाना, एकदूसरे के परिवारजनों के बारे में भी जाना और एक सुदृढ़ पारिवारिक जीवन जीने के वादे भी किए.

हनीमून को इस समझदारी से निभाने का श्रेय पीयूष को जाता है कि किस तरह उस ने कोकिला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया. एक सुखीसशक्त परिवार बनाने हेतु और क्या चाहिए भला? पीयूष अपने काम पर पूरा ध्यान देने लगा. रातदिन एक कर के उस ने अपना कारोबार जमाया था. अपने आरंभ किए स्टार्टअप के लिए वैंचर कैपिटलिस्ट्स खोजे थे. न समयबंधन देखा न थकावट. सिर्फ मेहनत करता गया. उधर कोकिला भी घरगृहस्थी को सही पथ पर ले चली.

‘‘आज फिर देर से आई लीला. क्या हो गया आज?’’ कामवाली के देर से आने पर कोकिला ने उसे टोका.

इस पर कामवाली ने अपना मुंह दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, कल रात मेरे मर्द ने फिर से पी कर दंगा किया मेरे साथ. कलमुंहा न खुद कमाता है और न मेरा पैसा जुड़ने देता है. रोजरोज मेरा पैसा छीन कर दारू पी आता है और फिर मुझे ही पीटता है.’’

‘‘तो क्यों सहती है? तुम लोग भी न… तभी कहते हैं पढ़लिख लिया करो. बस आदमी, बेटे के आगे झुकती रहती हो… कमाती भी हो फिर भी पिटती हो…,’’ कोकिला आज के समय की स्त्री थी. असहाय व दयनीय स्थिति से समझौते के बजाय उस का हल खोजना चाहती थी.

शाम को घर लौटे पीयूष के हाथ में पानी का गिलास थमाते हुए कोकिला ने हौले से उस का हाथ अपने पेट पर रख दिया.

‘‘सच? कोकी, तुम ने मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर दिए हैं. हमारी गृहस्थी में एक और सदस्य का जुड़ना मुझे कितनी प्रसन्नता दे रहा है, मैं बयां नहीं कर सकता. बोलो, इस खुशी के अवसर पर तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘मुझे जो चाहिए वह आप सब मुझे पहले ही दे चुके हैं,’’ कोकिला भी बहुत खुश थी.

‘‘पर अब तुम्हें पूरी देखभाल की आवश्यकता है.’’ पीयूष उसे मायके ले गया जो पास ही था.

इस खुशी के अवसर पर कोकिला के मायके में उस के और पीयूष के स्वागत में खानेपीने की ए वन तैयारी थी. उन के पहुंचते ही कोकिला की मम्मी उन्हें गरमगरम स्नैक्स जोर दे कर खिलाने लगीं और उधर कोकिला के पापा पीयूष और अपने लिए 2 गिलासों में शराब ले आए.

‘‘पापा यह आप क्या कर रहे हैं?’’ उन की इस हरकत से कोकिला अचंभित भी थी और परेशान भी. उसे अपने पापा की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

किंतु पीयूष को बुरा नहीं लगा. बोला, ‘‘तुम्हारे पापा ने इस मौके को सैलिब्रेट करने हेतु ड्रिंक बनाया है, तो इस में इतना बुरा मानने की क्या बात है?’’

फिर तो यह क्रम बन गया. जब भी कोकिला मायके जाती, पीयूष और उस के पापा पीने बैठ जाते. कोकिला अपने मायके जाने से कतराने लगी. किंतु उस की स्थिति ऐसी थी कि वहां आनाजाना उस की मजबूरी थी.

समय बीतने के साथ पीयूष और कोकिला के घर में जुड़वां बच्चों का आगमन हुआ. दोनों की प्रसन्नता नए आयाम छू रही थी. शिशुओं की देखभाल करने में दोनों उलझे रहते. शुरूशुरू में बच्चों की नित नई बातें तथा बालक्रीड़ाएं दोनों को खुशी से व्यस्त रखतीं. रोज शाम घर लौटने पर कोकिला पीयूष को कभी हृदय की तो कभी मान्या की बातें सुनाती. दोनों इसी बहाने अपना बचपन एक बार फिर जी रहे थे.

एक शाम घर लौटे पीयूष से आ रही गंध ने कोकिला को चौंकाया, ‘‘तुम शराब पी कर घर आए हो?’’

‘‘अरे, वह मोहित है न. आज उस ने पार्टी दी थी. दरअसल, उस की प्रमोशन हो गई है. सब दोस्तयार पीछे पड़ गए तो थोड़ी पीनी पड़ी,’’ कह पीयूष फौरन कमरे में चला गया.

1-2 दिन की बात होती तो शायद कोकिला को इतनी परेशानी न होती, किंतु पीयूष तो रोज शाम पी कर घर आने लगा.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, पीयूष? तुम तो रोज ही पी कर घर आने लगे हो. पूछने पर कभी कहते हो फलां दोस्त ने पिला दी, कभी फलां के घर पार्टी थी, कभी किसी दोस्त की शादी तय होने की खुशी में तो कभी किसी दोस्त की परेशानी बांटने में साथ देने हेतु. शायद तुम

देख नहीं पा रहे हो कि तुम किस राह निकल पड़े हो. तुम्हारी सारी मेहनत, इतने परिश्रम से खड़ा किया तुम्हारा कारोबार, हमारी गृहस्थी सब बरबाद हो जाएगा. शराब किसी को नहीं छोड़ती,’’ कोकिला को भविष्य की चिंता खाए जा रही थी.

‘‘तुम्हारा नाम भले ही कोकिला है पर तुम्हारी वाणी अब कौए समान हो गई,’’ पीयूष झल्ला कर बोला.

‘‘तो क्या रोजरोज पी कर घर आने पर टोकना गलत है?’’ कोकिला भी चिल्लाई.

गृहकलह को शांत करने का उपाय भी पीयूष ने ही खोजा. अगली सुबह सब से पहले उठ कर चाय बना उस ने कोकिला को जगाया और फिर हाथ जोड़ कर उस से क्षमायाचना की, ‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. देखो, यदि तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो मैं आज से नहीं पीऊंगा. अब तो खुश?’’

और वाकई पीयूष ने शराब त्यागने का भरपूर प्रयास शुरू कर दिया. वे दोस्त छोड़ दिए जिन के साथ वह पीता था. जब उन के फोन आते तब पीयूष कोई न कोई बहाना बना देता. कोकिला बहुत खुश हुई कि अब इन की यह लत छूट जाएगी.

अभी 1 हफ्ता ही बीता था कि पीयूष के चाचाजी जो अमेरिका में रहते थे, 1 हफ्ते के लिए उन के घर रहने आए. वे अपने साथ एक महंगी शराब की बोतल लाए. किसी लत से लड़ते हुए इनसान के सामने उसी लत का स्रोत रख दिया जाए तो क्या होगा? ऐसा नहीं था कि पीयूष ने बचने का प्रयास नहीं किया.

‘‘चाचाजी, मैं ने शराब पीनी छोड़ दी है… मुझे कुछ परेशानी होने लगी है लगातार पीने से,’’ पीयूष ने चाचा को समझाने की कोशिश की.

किंतु चाचाजी ने एक न सुनी, ‘‘अरे क्या यार, इतनी सस्ती शराब पीता है, इसलिए तुझे परेशानी हो रही है. अच्छी, महंगी शराब पी, फिर देख. हमारे अमेरिका में तो रोज पीते हैं और कभी कुछ नहीं होता.’’

चाचाजी इस बात पर ध्यान देना भूल गए कि बुरी चीज बुरी होती है. फिर उस की क्वालिटी कैसी भी हो. जब रोज पूरीपूरी बोतल गटकेंगे तो नुकसान तो होगा ही न.

बस, फिर क्या था. पीयूष की आदत फिर शुरू हो गई. कोकिला के मना करने, हाथ जोड़ने, प्रार्थना करने और लड़ने का भी कोई असर नहीं.

‘‘तो क्या चाहती हो तुम? चाचाजी के सामने कह दूं कि आप अकेले पियो, मैं आप का साथ नहीं दूंगा? तुम समझती क्यों नहीं हो… मैं साथ ही तो दे रहा हूं. अब घर आए मेहमान का अपमान करूं क्या? चिंता न करो, जब चाचाजी लौट जाएंगे तब मैं बिलकुल नहीं पीऊंगा. मैं वादा करता हूं.’’

कुछ समय बिता कर चाचाजी चले गए. किंतु पीयूष की लत नहीं गई. वह पी कर घर आता रहा. एक रात कोकिला ने दरवाजा नहीं खोला, ‘‘तुम अपने सारे वादे भूल जाते हो, किंतु मुझे याद हैं. अब से जब भी पी कर आओगे, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी.’’

‘‘सुनो तो कोकिला, बस इस बार घर में आने दो. आइंदा से बाहर से पी कर घर नहीं आया करूंगा. घर में ही पी लिया करूं तो इस में तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है न?’’

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे पीयूष?’’

‘‘तो ठीक है, मैं बाहर गैरेज में बैठ कर पी लिया करूंगा.’’

वह कहते हैं न कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, जिसे पीने की लत लग जाए, वह कैसे न कैसे पीने के अवसर ढूंढ़ ही लाता है. घर में सहर्ष स्वीकृति न मिलने पर पीयूष ने गैरेज में पीना आरंभ कर दिया. रोज शाम गैरेज में दरवाजा बंद कर शराब पीता और फिर सोने के लिए लड़खड़ाता घर चला आता. ‘‘कल रात फिर तुम ने पूरी बोतल पी? कुछ तो खयाल करो, पीयूष. तुम शराबी बनते जा रहे हो,’’ कोकिला नाराज होती.

‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. आज से बस 2 पैग लिया करूंगा,’’ सुबह होते ही पीयूष फौरन क्षमा मांगने लगता. लेकिन शाम ढलते ही उसे सिर्फ बोतल नजर आती.

उस रात जब फिर पीयूष लड़खड़ाता हुआ घर में दाखिल हुआ तो कोकिला का पारा 7वें आसमान पर था. उस ने पीयूष को कमरे में घुसने से साफ मना कर दिया, ‘‘मेरे और लीला के पति में इतना ही अंतर है कि वह उस के पैसे से पी कर उसे ही मारता है और तुम अपने पैसे से पी कर चुपचाप सो जाते हो, लेकिन गृहस्थियां तो दोनों ही उलझ कर रह गई हैं न… कल से पी कर आए, तो कमरे में आने की जरूरत नहीं है.’’

कोकिला के इस अल्टीमेटम के चलते दोनों में बहस छिड़ गई और फिर दोनों अलगअलग कमरे में सोने लगे. धीरेधीरे पीयूष और कोकिला एकदूसरे से और भी दूर होते चले गए. कोकिला पीयूष से नाराज रहने लगी. बारबार पीयूष के झूठ के कारण वह उस की ओर से हताश हो चुकी थी. हार कर उस ने उसे समझाना ही छोड़ दिया.

अब पीयूष की तबीयत अकसर खराब रहने लगी. वह बहुत कमजोर होता जा रहा था. जब तक डाक्टर के पास पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पता चला कि पीयूष को शराब के कारण गैलपिंग सिरोसिस औफ लिवर हो गया है. अस्पताल वालों ने टैस्टों की लंबी सूची थमा दी. रातदिन डाक्टरों के चक्कर काटती कोकिला बेहाल लगने लगी थी. बच्चे भी कभी किसी रिश्तेदार के सहारे तो कभी किसी मित्र के घर अपना समय काट रहे थे.

देखते ही देखते अस्पताल वालोें ने क्व18 लाख का बिल बना दिया. कोकिला और पीयूष दोनों ही कांप उठे. कहां से लाएंगे इतनी रकम… इतना बड़ा बिल चुकाने हेतु सब बिक जाना पक्का था. जमीन, शेयर, म्यूचुअल बौंड, यहां तक कि घर भी.

एक शाम पैसों का इंतजाम करने हेतु पने निवेश के दस्तावेज ले कर पीयूष और कोकिला गाड़ी से घर लौट रहे थे. कोकिला बेहद उदास थी. उस की आंखें बरस रही थीं, ‘‘यह क्या हो गया है, पीयूष? हमारी गृहस्थी कहां से कहां आ पहुंची है… काश, तुम पहले ही होश में आ जाते.’’

कोकिला की बातें सुन, उस की हालत देख पीयूष की आंखें भी डबडबा गईं कि काश, उस ने पहले सुध ली होती. अपनी पत्नी, बच्चों के बारे में जिम्मेदारी से सोचा होता. डबडबाई आंखों से राह धुंधला जाती है. गाड़ी चलाते हुए आंखें पोंछने को जैसे ही पीयूष ने नीचे मुंह झुकाया सामने से अचानक तेजी से आते एक ट्रक ने उन की गाड़ी को टक्कर मार दी. पीयूष और कोकिला की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

नन्हे हृदय और मान्या अब इस संसार में बिलकुल अकेले रह गए. कौन सुध लेगा इन नन्ही जानों की? जब नाविक ही नैया को डुबोने पर उतारू हो तो उस नाव में सवार अन्य लोगों की जिंदगी डोलना लाजिम है.

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