Thursday 21 April 2022

चिड़िया खुश है: बड़े घर की बहू बनते ही अपनी पहचान भूल गई नमिता

लेखिका- दीपा प्रभु 

नमिता और अजय की आज शादी है. हमारे शहर के सब से बड़े उद्योगी परिवार का बेटा है अजय, जो अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर के अपना कारोबार संभालने हिंदुस्तान आ गया है. अजय के बारे में अखबारों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला था. उस की उद्योग विस्तार की योजना, उस की सोच, उस की दूरदृष्टि वगैरहवगैरह और नमिता, हमारे साथ पढ़ने वाली बेहद खूबसूरत लड़की. नमिता की खूबसूरती और उस के कमिश्नर पापा का समाज में रुतबा, इसी के बलबूते पर तो यह शादी तय हुई थी.

कला, काव्य, संगीत आदि सारे रचनात्मक क्षेत्रों में रुचि रखने वाली और पढ़ाई कर के कुछ बनने की चाह रखने वाली नमिता ने अजय जैसा अमीर और पढ़ालिखा वर पाने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. रईस खानदान में शादी की तुलना में पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं रहा.

शादी में पानी की तरह पैसा बहाया गया. शादी के फोटो न केवल भारत में बल्कि विदेशी पत्रिकाओं में भी छपवाए गए. नमिता की खूबसूरती के बहुत चर्चे हुए. नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए कहां गया, इस के भी चर्चे अखबारों में हुए. फिर आए दिन नमिता की तसवीरें गौसिप पत्रिकाओं में छपने लगीं. लोग उसे रईस कहने लगे और वह पेज 3 की सदस्य बन गई.

एक दिन उस्ताद जाकिर हुसैन का तबलावादन का कार्यक्रम हमारे शहर में था. हम दोस्तों ने नमिता को फोन किया और पूछा, ‘‘चलोगी उस्ताद जाकिर हुसैन का तबला सुनने?’’

हंस कर वह बोली, ‘‘मैं तो कल शाम ही उन से मिलने होटल में गई थी. हमारे बिजनैस हाउस ने ही तो यह कार्यक्रम आयोजित किया है. आज रात उन का खाना हमारे घर पर है. अजय चाहते हैं घर की सजावट खास भारतीय ढंग से हो और व्यंजन भी लजीज हों. इसलिए आज मुझे घर पर रह कर सभी इंतजाम देखने होंगे. आप लोग तबलावादन सुन कर आओ न. हां, आप लोगों को फ्री पास चाहिए तो बताना, मैं इंतजाम कर दूंगी.’’

हम दोस्तों ने उस का आभार मानते हुए फोन रख दिया.

एक दिन पेज 3 पर हम ने उस की तसवीरें देखीं. बेशकीमती साड़ी पहने, मेकअप से सजीधजी गुडि़या जैसी नमिता अनाथालय के बच्चों को लड्डू बांट रही थी. ऐसे बच्चे, जो एक वक्त की रोटी के लिए किसी के एहसान के मुहताज हैं. उन के पास जाते हुए कीमती साड़ी व गहने पहन कर जाना कितना उचित था? वह चाहे गलत हो या सही, मगर बड़े उद्योगी परिवार की सोच शायद यही थी कि बहू की फोटो अनाथों के साथ छपेगी तो वह ऐसी ही दिखनी चाहिए.

उस के जन्मदिन पर बधाई देने के लिए हम ने उसे फोन मिलाना चाहा. काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला, तो हम ने सोचा नमिता अजय के साथ अपना जन्मदिन मना रही होगी. दोनों कहीं बाहर घूमने गए होंगे.

2 घंटे बाद उस का फोन आया, ‘‘मैं तो फलां मंत्रीजी की पत्नी के साथ चाय पार्टी में व्यस्त थी.’’

‘‘मगर उस मंत्री की बीवी के साथ तुम क्या कर रही थीं, वह भी आज के दिन? काफी देर तक तुम ने फोन नहीं उठाया, तो हमें लगा तुम और अजय कहीं घूमने गए होगे.’’

‘‘नहीं रे, अजय एक नई फैक्टरी शुरू करना चाहते हैं. कल उसी फैक्टरी के प्रोजैक्ट की फाइल मंत्रीजी के दफ्तर में जाने वाली है. सब काम सही ढंग से हो जाए, इस के लिए मंत्रीजी की पत्नी से मैं मिलने गई थी. जब पापा कमिश्नर थे, तब इन मंत्रीजी से थोड़ीबहुत जानपहचान थी. अजय कहते हैं, ऐसे निजी संबंध बड़े काम आते हैं.’’

‘‘फिर भी नमिता… शादी के बाद अजय के साथ यह तुम्हारा पहला जन्मदिन है?’’

‘‘अजय ने तो सवेरे ही मुझे सरप्राइज गिफ्ट दे कर मेरा जन्मदिन मनाया. पैरिस से मेरे लिए औरेंज कलर की साड़ी ले कर आए थे.’’

‘‘नमिता, औरेंज कलर तो तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं है. क्या वाकई तुम्हें वह साड़ी अच्छी लगी?’’ हम ने पूछा.

‘‘अजय चाहते थे कि मैं औरेंज कलर के कपड़े पहन कर मंत्रीजी की पत्नी से मिलने जाऊं. मंत्रीजी बीजेपी के हैं न.’’

शादी को 1 साल हो गया, तो नमिता के बंगले के लौन में ही बड़ी सी पार्टी का आयोजन था. हम दोस्तों को भी नमिता ने न्योता भेजा, तो हम सारे दोस्त उसे बधाई देने उस के बंगले पर पहुंचे. बंगले के सामने ही बड़ी सी विदेशी 2 करोड़ की गाड़ी खड़ी थी.

नमिता ने चहकते हुए कहा, ‘‘डैडीजी, यानी ससुरजी ने यह कार हमें तोहफे में दी है.’’

‘‘नमिता, तुम्हें तो जंगल ट्रैक में ले जाने लायक ओपन जीप पसंद है.’’

‘‘हां, मगर अजय कहते हैं ऐसी जीप में घूमना फूहड़ लगता है. यह रंग और मौडल अजय ने पसंद किया और डैडी ने खरीद ली. अच्छी है न?’’

पार्टी में ढेरों फोटो खींचे जा रहे थे. गौसिप मैगजीन में अब चर्चे होंगे. नमिता ने किस डिजाइनर की साड़ी पहनी थी, कौन से मेक के जूते पहने थे, कौन से डायमंड हाउस से उस का हीरों का सैट बन कर आया था वगैरहवगैरह…

मम्मीडैडी की पसंद ऐसी है, अजय ऐसा चाहते हैं, अजय वैसा सोचते हैं, पार्टी का आयोजन कैसा होगा, मेन्यू क्या होगा, यह सब कुछ जैसा अजय चाहते हैं वैसा होता है, हम ने नमिता से सुना.

दया आई नमिता पर. नमिता, एक बार अपने अंदर झांक कर तो देखो कि तुम क्या चाहती हो? तुम्हारा वजूद क्या है? तुम्हारी अपनी पहचान क्या है? तुम किस व्यक्तित्व की मलिका हो?

शादी के बाद मात्र एक दिखावटी गुडि़या बन कर रह गई हो. अच्छे कपड़े, भारी गहने, बेशकीमती गाडि़यों में घूमने वाली रईस. मंत्री की पत्नी तक पहुंचने का एक जरिया. यह सब जो तुम कर रही हो, इस में तुम्हारी सोच, चाहत, पसंदनापसंद कहां है? तुम तो एक नुमाइश की चीज बन कर रह गई हो.

फिर भी तुम खुश हो? इंसान पढ़लिख कर अपनी सोच से समाज में अपना स्थान, अपनी पहचान बनाना चाहता है. शादी के बाद अमीरी के साथसाथ समाज में रुतबा तो तुम्हें मिल गया. फिर अपने सोचविचारों से कुछ बनने की, अपना अस्तित्व, अपनी पहचान बनाने की तुम ने जरूरत ही नहीं समझी? दूसरों की सोच तुम्हारा दायरा बन कर रह गई. दूसरों का कहना व उन की पसंदनापसंद को मानते हुए तुम चारदीवारी में सिमट कर रह गईं.

चिडि़या जैसी चहकती हुई नमिता पार्टी में इधरउधर घूम रही थी. मोतियों का चारा पा कर यह चिडि़या बहुत खुश थी. चांदी की थाली में खाना खाते हुए उसे बड़ा आनंद आ रहा था.

अपनी उपलब्धि पर इतराती नमिता अपनेआप को बड़ी खुशकिस्मत समझती थी. नमिता को देख कर ऐसा लगता था, उस की खुशी व चहचहाना इसलिए है, क्योंकि वह समझ नहीं रही है कि वह सोने के पिंजरे की चिडि़या बन गई है. यहां उस के लिए अपनी सोच की उड़ान भरना नामुमकिन है.

अपनी पसंदनापसंद से जिंदगी जीने की उसे इजाजत नहीं है. खुद की जिंदगी पर वह अपने व्यक्तित्व की मुहर नहीं लगा सकती. अपनी जिंदगी पर उस का कोई अधिकार नहीं है.

सोने के पिंजरे में बंद वह बड़ी खुशहाल जिंदगी बिता रही है, लेकिन वह अपनी पहचान मिटा रही है. सोने के पिंजरे में यह चिडि़या इसलिए बहुत खुश है, क्योंकि इसे अपनी कैद का एहसास नहीं है.

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लेखिका- दीपा प्रभु 

नमिता और अजय की आज शादी है. हमारे शहर के सब से बड़े उद्योगी परिवार का बेटा है अजय, जो अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर के अपना कारोबार संभालने हिंदुस्तान आ गया है. अजय के बारे में अखबारों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला था. उस की उद्योग विस्तार की योजना, उस की सोच, उस की दूरदृष्टि वगैरहवगैरह और नमिता, हमारे साथ पढ़ने वाली बेहद खूबसूरत लड़की. नमिता की खूबसूरती और उस के कमिश्नर पापा का समाज में रुतबा, इसी के बलबूते पर तो यह शादी तय हुई थी.

कला, काव्य, संगीत आदि सारे रचनात्मक क्षेत्रों में रुचि रखने वाली और पढ़ाई कर के कुछ बनने की चाह रखने वाली नमिता ने अजय जैसा अमीर और पढ़ालिखा वर पाने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. रईस खानदान में शादी की तुलना में पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं रहा.

शादी में पानी की तरह पैसा बहाया गया. शादी के फोटो न केवल भारत में बल्कि विदेशी पत्रिकाओं में भी छपवाए गए. नमिता की खूबसूरती के बहुत चर्चे हुए. नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए कहां गया, इस के भी चर्चे अखबारों में हुए. फिर आए दिन नमिता की तसवीरें गौसिप पत्रिकाओं में छपने लगीं. लोग उसे रईस कहने लगे और वह पेज 3 की सदस्य बन गई.

एक दिन उस्ताद जाकिर हुसैन का तबलावादन का कार्यक्रम हमारे शहर में था. हम दोस्तों ने नमिता को फोन किया और पूछा, ‘‘चलोगी उस्ताद जाकिर हुसैन का तबला सुनने?’’

हंस कर वह बोली, ‘‘मैं तो कल शाम ही उन से मिलने होटल में गई थी. हमारे बिजनैस हाउस ने ही तो यह कार्यक्रम आयोजित किया है. आज रात उन का खाना हमारे घर पर है. अजय चाहते हैं घर की सजावट खास भारतीय ढंग से हो और व्यंजन भी लजीज हों. इसलिए आज मुझे घर पर रह कर सभी इंतजाम देखने होंगे. आप लोग तबलावादन सुन कर आओ न. हां, आप लोगों को फ्री पास चाहिए तो बताना, मैं इंतजाम कर दूंगी.’’

हम दोस्तों ने उस का आभार मानते हुए फोन रख दिया.

एक दिन पेज 3 पर हम ने उस की तसवीरें देखीं. बेशकीमती साड़ी पहने, मेकअप से सजीधजी गुडि़या जैसी नमिता अनाथालय के बच्चों को लड्डू बांट रही थी. ऐसे बच्चे, जो एक वक्त की रोटी के लिए किसी के एहसान के मुहताज हैं. उन के पास जाते हुए कीमती साड़ी व गहने पहन कर जाना कितना उचित था? वह चाहे गलत हो या सही, मगर बड़े उद्योगी परिवार की सोच शायद यही थी कि बहू की फोटो अनाथों के साथ छपेगी तो वह ऐसी ही दिखनी चाहिए.

उस के जन्मदिन पर बधाई देने के लिए हम ने उसे फोन मिलाना चाहा. काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला, तो हम ने सोचा नमिता अजय के साथ अपना जन्मदिन मना रही होगी. दोनों कहीं बाहर घूमने गए होंगे.

2 घंटे बाद उस का फोन आया, ‘‘मैं तो फलां मंत्रीजी की पत्नी के साथ चाय पार्टी में व्यस्त थी.’’

‘‘मगर उस मंत्री की बीवी के साथ तुम क्या कर रही थीं, वह भी आज के दिन? काफी देर तक तुम ने फोन नहीं उठाया, तो हमें लगा तुम और अजय कहीं घूमने गए होगे.’’

‘‘नहीं रे, अजय एक नई फैक्टरी शुरू करना चाहते हैं. कल उसी फैक्टरी के प्रोजैक्ट की फाइल मंत्रीजी के दफ्तर में जाने वाली है. सब काम सही ढंग से हो जाए, इस के लिए मंत्रीजी की पत्नी से मैं मिलने गई थी. जब पापा कमिश्नर थे, तब इन मंत्रीजी से थोड़ीबहुत जानपहचान थी. अजय कहते हैं, ऐसे निजी संबंध बड़े काम आते हैं.’’

‘‘फिर भी नमिता… शादी के बाद अजय के साथ यह तुम्हारा पहला जन्मदिन है?’’

‘‘अजय ने तो सवेरे ही मुझे सरप्राइज गिफ्ट दे कर मेरा जन्मदिन मनाया. पैरिस से मेरे लिए औरेंज कलर की साड़ी ले कर आए थे.’’

‘‘नमिता, औरेंज कलर तो तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं है. क्या वाकई तुम्हें वह साड़ी अच्छी लगी?’’ हम ने पूछा.

‘‘अजय चाहते थे कि मैं औरेंज कलर के कपड़े पहन कर मंत्रीजी की पत्नी से मिलने जाऊं. मंत्रीजी बीजेपी के हैं न.’’

शादी को 1 साल हो गया, तो नमिता के बंगले के लौन में ही बड़ी सी पार्टी का आयोजन था. हम दोस्तों को भी नमिता ने न्योता भेजा, तो हम सारे दोस्त उसे बधाई देने उस के बंगले पर पहुंचे. बंगले के सामने ही बड़ी सी विदेशी 2 करोड़ की गाड़ी खड़ी थी.

नमिता ने चहकते हुए कहा, ‘‘डैडीजी, यानी ससुरजी ने यह कार हमें तोहफे में दी है.’’

‘‘नमिता, तुम्हें तो जंगल ट्रैक में ले जाने लायक ओपन जीप पसंद है.’’

‘‘हां, मगर अजय कहते हैं ऐसी जीप में घूमना फूहड़ लगता है. यह रंग और मौडल अजय ने पसंद किया और डैडी ने खरीद ली. अच्छी है न?’’

पार्टी में ढेरों फोटो खींचे जा रहे थे. गौसिप मैगजीन में अब चर्चे होंगे. नमिता ने किस डिजाइनर की साड़ी पहनी थी, कौन से मेक के जूते पहने थे, कौन से डायमंड हाउस से उस का हीरों का सैट बन कर आया था वगैरहवगैरह…

मम्मीडैडी की पसंद ऐसी है, अजय ऐसा चाहते हैं, अजय वैसा सोचते हैं, पार्टी का आयोजन कैसा होगा, मेन्यू क्या होगा, यह सब कुछ जैसा अजय चाहते हैं वैसा होता है, हम ने नमिता से सुना.

दया आई नमिता पर. नमिता, एक बार अपने अंदर झांक कर तो देखो कि तुम क्या चाहती हो? तुम्हारा वजूद क्या है? तुम्हारी अपनी पहचान क्या है? तुम किस व्यक्तित्व की मलिका हो?

शादी के बाद मात्र एक दिखावटी गुडि़या बन कर रह गई हो. अच्छे कपड़े, भारी गहने, बेशकीमती गाडि़यों में घूमने वाली रईस. मंत्री की पत्नी तक पहुंचने का एक जरिया. यह सब जो तुम कर रही हो, इस में तुम्हारी सोच, चाहत, पसंदनापसंद कहां है? तुम तो एक नुमाइश की चीज बन कर रह गई हो.

फिर भी तुम खुश हो? इंसान पढ़लिख कर अपनी सोच से समाज में अपना स्थान, अपनी पहचान बनाना चाहता है. शादी के बाद अमीरी के साथसाथ समाज में रुतबा तो तुम्हें मिल गया. फिर अपने सोचविचारों से कुछ बनने की, अपना अस्तित्व, अपनी पहचान बनाने की तुम ने जरूरत ही नहीं समझी? दूसरों की सोच तुम्हारा दायरा बन कर रह गई. दूसरों का कहना व उन की पसंदनापसंद को मानते हुए तुम चारदीवारी में सिमट कर रह गईं.

चिडि़या जैसी चहकती हुई नमिता पार्टी में इधरउधर घूम रही थी. मोतियों का चारा पा कर यह चिडि़या बहुत खुश थी. चांदी की थाली में खाना खाते हुए उसे बड़ा आनंद आ रहा था.

अपनी उपलब्धि पर इतराती नमिता अपनेआप को बड़ी खुशकिस्मत समझती थी. नमिता को देख कर ऐसा लगता था, उस की खुशी व चहचहाना इसलिए है, क्योंकि वह समझ नहीं रही है कि वह सोने के पिंजरे की चिडि़या बन गई है. यहां उस के लिए अपनी सोच की उड़ान भरना नामुमकिन है.

अपनी पसंदनापसंद से जिंदगी जीने की उसे इजाजत नहीं है. खुद की जिंदगी पर वह अपने व्यक्तित्व की मुहर नहीं लगा सकती. अपनी जिंदगी पर उस का कोई अधिकार नहीं है.

सोने के पिंजरे में बंद वह बड़ी खुशहाल जिंदगी बिता रही है, लेकिन वह अपनी पहचान मिटा रही है. सोने के पिंजरे में यह चिडि़या इसलिए बहुत खुश है, क्योंकि इसे अपनी कैद का एहसास नहीं है.

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April 22, 2022 at 09:00AM

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