Tuesday 19 April 2022

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 1

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

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राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

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April 19, 2022 at 09:31AM

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