Sunday 17 April 2022

मधुर मिलन: भाग 1

Writer- रेणु गुप्त

“हैलो पापा, जल्दी घर आ जाइए. दादी को फिर से अस्थमा अटैक पड़ा है. वे बारबार आप को याद कर रही हैं,” तपन के बड़े बेटे रिदान ने अपने पिता तपन  से कहा, जो कंपनी के टूर पर पुणे गए हुए थे.

“बेटा, बहुत जरूरी मीटिंग है परसो, उसे अटेंड कर ही वापस आ पाऊंगा. तब तक ऐसा करो, डाक्टर सेन  को बुला लो. उन के इंजैक्शन से दादी को फौरन आराम हो जाएगा. घर मैनेज नहीं हो पा रहा हो, तो मेरे आने तक इनाया आंटी को बुला लो.”

“जी पापा, ठीक है. वैसे, दादू की तबीयत भी ठीक नहीं. उन के जोड़ों का दर्द उभर आया है. मेरा पूरा वक्त दादू  और दादी की देखभाल में ही बीत जाता है.  अगले हफ्ते मेरे टर्म एग्जाम हैं.”

“ठीक है बेटा, मैं संडे को आ रहा हूं.”

रिदान से बातें कर तपन कुछ परेशान सा हो गया. जब से उस की पत्नी मौनी की सालभर पहले कैंसर से मौत हुई है, घर घर न रहा था.  सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया था. तभी  उस के फोन पर औफिस का कोई मैसेज आया और वह अपने काम में व्यस्त हो गया.

उस के घर पर रिदान  और रूद्र उस के 2 बेटे दादी की देखभाल में व्यस्त थे, जिन्हें अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा था. उन के लिए फ़ैमिली डाक्टर बुलाया गया था. कुछ ही देर बाद दादी को देख कर वह  जा चुका था. डाक्टर के दिए  इंजैक्शन से दादी को आराम आ गया और वे शांत लेटी थीं.  लेकिन अब दादू  अपने जोड़ों के दर्द से कराहने लगे, रिदान  से बोले, “रिदान बेटा, जरा सेंक की बोतल में गरम पानी भर कर ले आ.”

रिदान सेंक  की बोतल लेने दूसरे कमरे में गया ही था कि तभी रुद्र वहां पहुंच गया और रिदान से बोला, “भैया, परसों मेरा फ़िजिक्स का टर्म एग्ज़ाम है, लेकिन बिलकुल पढ़ाई नहीं हो पा रही. दादी, दादू के साथ पढ़ाई करना बहुत मुश्किल हो रहा है. मम्मा कितनी अच्छी तरह से घर मैनेज कर लेती थी न. मम्मा  की बहुत याद आ रही है, भैया.  यह सबकुछ हमारे साथ ही क्यों हुआ?  हमारी मम्मा हमें छोड़ कर चली गई इतनी जल्दी. मेरे सब फ्रैंड्स की मम्मा हैं.  जब वे लोग अपनी अपनी मम्मा की बातें करते हैं, तब मुझे बहुत फील होता है.”

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“रुद्र, हम दोनों का समय ही खराब है.  चलो, जो चीज हमारे कंट्रोल में नहीं है, हमें उस के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए. बी थैंकफ़ुल, कि पापा और  दादू-दादी हमारे पास हैं. चिंता मत कर, अब सबकुछ मैनेज हो जाएगा. पापा ने इनाया आंटी को बुलाने के लिए कहा है.”

तभी रिदान ने इनाया को फोन कर के कहा, “हैलो इनाया आंटी, गुड आफ्टरनून. आंटी, पापा  टूर पर गए हुए हैं, और यहां दादी को अस्थमा का अटैक पड़ा है. अभी तो खैर डाक्टर ने इंजैक्शन लगा दिया है और उन को आराम आ गया है. दादू के जोड़ों का दर्द भी उभर आया है. इधर रामकली आंटी भी हम से मैनेज नहीं हो पा रहीं.  टाइमबे टाइम आती हैं और उन्हें कुछ कहो, तो जवाब देना शुरू कर देती हैं. दादीदादू भी कुछ कहते हैं, तो उन की भी नहीं सुनतीं. कुछ दिनों के लिए आप प्लीज़, अमायरा के साथ घर आ जाइए न.”

“पापा कहां गए हैं? कब लौटेंगे?”

“पापा संडे तक आएंगे. आंटी प्लीज, आ जाइए.  अमायरा  को साथ में जरूर लाइएगा.”

“ओके बेटा, चिंता मत करो. मैं आती हूं 5 बजे तक.”

5  बजते ही अपने वादे के मुताबिक इनाया तपन के घर अमायरा के साथ आ गई. आते ही उस ने बेहद कुशलता से घर संभाल लिया.

इनाया के सहज, मृदु व्यक्तित्व में अनोखी ऊष्मा थी, जिस से उस के संपर्क में आने वाला हर शख्स अनचाहे उस की ओर खिंचा चला आता और उस की सहृदयता का कायल हो उठता. लेकिन उस के ज़िंदादिल व्यक्तित्व के आवरण में दर्द का अथाह समंदर छिपा था, जो उसे उस के अपनों ने ही दिया था.

उस ने अपनी युवावस्था में अपने मातापिता की मरजी के विरुद्ध उन से विद्रोह कर के एक युवक से विवाह कर लिया था. लेकिन कैरियर में बेहतरी की अपेक्षा में वह उसे और नन्ही अमायरा को छोड़ कर दुबई चला गया. फिर वह कभी लौट कर नहीं आया. वहीं बस गया. सुनने में आया था कि उस ने वहीं किसी और युवती से निकाह  कर लिया था.

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इनाया रिदान और  रुद्र की मृत मां मौनी की कालेज के जमाने की बेस्ट फ्रैंड  थी. मौनी इनाया के जीवन के हर पल की साझेदार थी. मौनी से दांतकाटी दोस्ती के चलते दोनों का एकदूसरे के घर नियमित रूप से आनाजाना, उठनाबैठना था. सो, दोनों  एकदूसरे के पति से भी ख़ासी  करीब थीं  और खुली हुई थीं. इनाया के पति के दुबई चले जाने के बाद मौनी और तपन ने इनाया के  सच्चे दोस्तों की भूमिका निभाते हुए उसे बेइंतहा भावनात्मक सहारा दिया और उन दोनों की वजह से वह बहुत हद तक अपने पति के दिए हुए आघात  से उबर कर वापस सामान्य हो पाई थी.

शाम के 5  बज चुके थे. रिमझिम बारिश हो रही थी.

“इनाया आंटी,  इस सुहाने मौसम में कुछ बढ़िया चटपटा खाने का दिल कर रहा है. आंटी, आप  बहुत बढ़िया चाप बनाती हैं न. प्लीज,  रामकली आंटी से बनवा दीजिए न,” रुद्र ने इनाया से फ़रमाइश की.

“ओके बेटा, अभी बनवाती हूं.”

“इनाया, हम दोनों को तो तुम्हारा यह मरा  चाओ बिलकुल अच्छा न लगे है. कुछ बढ़िया जायकेदार देसी खाना हम दोनों के लिए बनवा दे.”

“अच्छा आंटी, नो प्रौब्लम.  आप दोनों के लिए पकौड़ी  बनवा देती हूं. साथ में, हलवा भी.”

“अरे वाह बेटा, नेकी और पूछपूछ?  तूने तो मेरे दिल की बात कह दी. प्रकृति तुझे सातों सुख दे.”

“अरे आंटी, प्रकृति आप की बात मान ले, तो बात ही क्या थी? सातों सुख तो दूर की बात है, एक सुख ही  दे दे, तो बात बन जाए.”

“इनाया बेटा, ऐसी मायूसी की बातें क्यों करती है. तुझ से तो मौनी कहतेकहते हार गई. उस ने अपने जीतेजी तेरे लिए गठबंधन डौट कौम से कितने रिश्ते ढूंढे, लेकिन तूने किसी रिश्ते के लिए हामी  ही नहीं भरी. और अब जब अकेले रहने का फैसला तेरा है, तो इस के लिए शिकायत कैसी?  हिम्मत से हंसीखुशी जिंदगी जी, बेटा.”

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Writer- रेणु गुप्त

“हैलो पापा, जल्दी घर आ जाइए. दादी को फिर से अस्थमा अटैक पड़ा है. वे बारबार आप को याद कर रही हैं,” तपन के बड़े बेटे रिदान ने अपने पिता तपन  से कहा, जो कंपनी के टूर पर पुणे गए हुए थे.

“बेटा, बहुत जरूरी मीटिंग है परसो, उसे अटेंड कर ही वापस आ पाऊंगा. तब तक ऐसा करो, डाक्टर सेन  को बुला लो. उन के इंजैक्शन से दादी को फौरन आराम हो जाएगा. घर मैनेज नहीं हो पा रहा हो, तो मेरे आने तक इनाया आंटी को बुला लो.”

“जी पापा, ठीक है. वैसे, दादू की तबीयत भी ठीक नहीं. उन के जोड़ों का दर्द उभर आया है. मेरा पूरा वक्त दादू  और दादी की देखभाल में ही बीत जाता है.  अगले हफ्ते मेरे टर्म एग्जाम हैं.”

“ठीक है बेटा, मैं संडे को आ रहा हूं.”

रिदान से बातें कर तपन कुछ परेशान सा हो गया. जब से उस की पत्नी मौनी की सालभर पहले कैंसर से मौत हुई है, घर घर न रहा था.  सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया था. तभी  उस के फोन पर औफिस का कोई मैसेज आया और वह अपने काम में व्यस्त हो गया.

उस के घर पर रिदान  और रूद्र उस के 2 बेटे दादी की देखभाल में व्यस्त थे, जिन्हें अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा था. उन के लिए फ़ैमिली डाक्टर बुलाया गया था. कुछ ही देर बाद दादी को देख कर वह  जा चुका था. डाक्टर के दिए  इंजैक्शन से दादी को आराम आ गया और वे शांत लेटी थीं.  लेकिन अब दादू  अपने जोड़ों के दर्द से कराहने लगे, रिदान  से बोले, “रिदान बेटा, जरा सेंक की बोतल में गरम पानी भर कर ले आ.”

रिदान सेंक  की बोतल लेने दूसरे कमरे में गया ही था कि तभी रुद्र वहां पहुंच गया और रिदान से बोला, “भैया, परसों मेरा फ़िजिक्स का टर्म एग्ज़ाम है, लेकिन बिलकुल पढ़ाई नहीं हो पा रही. दादी, दादू के साथ पढ़ाई करना बहुत मुश्किल हो रहा है. मम्मा कितनी अच्छी तरह से घर मैनेज कर लेती थी न. मम्मा  की बहुत याद आ रही है, भैया.  यह सबकुछ हमारे साथ ही क्यों हुआ?  हमारी मम्मा हमें छोड़ कर चली गई इतनी जल्दी. मेरे सब फ्रैंड्स की मम्मा हैं.  जब वे लोग अपनी अपनी मम्मा की बातें करते हैं, तब मुझे बहुत फील होता है.”

ये भी पढ़ें- साथी साथ निभाना: कैसे बदली नेहा की सोच

“रुद्र, हम दोनों का समय ही खराब है.  चलो, जो चीज हमारे कंट्रोल में नहीं है, हमें उस के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए. बी थैंकफ़ुल, कि पापा और  दादू-दादी हमारे पास हैं. चिंता मत कर, अब सबकुछ मैनेज हो जाएगा. पापा ने इनाया आंटी को बुलाने के लिए कहा है.”

तभी रिदान ने इनाया को फोन कर के कहा, “हैलो इनाया आंटी, गुड आफ्टरनून. आंटी, पापा  टूर पर गए हुए हैं, और यहां दादी को अस्थमा का अटैक पड़ा है. अभी तो खैर डाक्टर ने इंजैक्शन लगा दिया है और उन को आराम आ गया है. दादू के जोड़ों का दर्द भी उभर आया है. इधर रामकली आंटी भी हम से मैनेज नहीं हो पा रहीं.  टाइमबे टाइम आती हैं और उन्हें कुछ कहो, तो जवाब देना शुरू कर देती हैं. दादीदादू भी कुछ कहते हैं, तो उन की भी नहीं सुनतीं. कुछ दिनों के लिए आप प्लीज़, अमायरा के साथ घर आ जाइए न.”

“पापा कहां गए हैं? कब लौटेंगे?”

“पापा संडे तक आएंगे. आंटी प्लीज, आ जाइए.  अमायरा  को साथ में जरूर लाइएगा.”

“ओके बेटा, चिंता मत करो. मैं आती हूं 5 बजे तक.”

5  बजते ही अपने वादे के मुताबिक इनाया तपन के घर अमायरा के साथ आ गई. आते ही उस ने बेहद कुशलता से घर संभाल लिया.

इनाया के सहज, मृदु व्यक्तित्व में अनोखी ऊष्मा थी, जिस से उस के संपर्क में आने वाला हर शख्स अनचाहे उस की ओर खिंचा चला आता और उस की सहृदयता का कायल हो उठता. लेकिन उस के ज़िंदादिल व्यक्तित्व के आवरण में दर्द का अथाह समंदर छिपा था, जो उसे उस के अपनों ने ही दिया था.

उस ने अपनी युवावस्था में अपने मातापिता की मरजी के विरुद्ध उन से विद्रोह कर के एक युवक से विवाह कर लिया था. लेकिन कैरियर में बेहतरी की अपेक्षा में वह उसे और नन्ही अमायरा को छोड़ कर दुबई चला गया. फिर वह कभी लौट कर नहीं आया. वहीं बस गया. सुनने में आया था कि उस ने वहीं किसी और युवती से निकाह  कर लिया था.

ये भी पढ़ें- अलविदा काकुल: उसकी इस चाहत का परिणाम क्या निकला

इनाया रिदान और  रुद्र की मृत मां मौनी की कालेज के जमाने की बेस्ट फ्रैंड  थी. मौनी इनाया के जीवन के हर पल की साझेदार थी. मौनी से दांतकाटी दोस्ती के चलते दोनों का एकदूसरे के घर नियमित रूप से आनाजाना, उठनाबैठना था. सो, दोनों  एकदूसरे के पति से भी ख़ासी  करीब थीं  और खुली हुई थीं. इनाया के पति के दुबई चले जाने के बाद मौनी और तपन ने इनाया के  सच्चे दोस्तों की भूमिका निभाते हुए उसे बेइंतहा भावनात्मक सहारा दिया और उन दोनों की वजह से वह बहुत हद तक अपने पति के दिए हुए आघात  से उबर कर वापस सामान्य हो पाई थी.

शाम के 5  बज चुके थे. रिमझिम बारिश हो रही थी.

“इनाया आंटी,  इस सुहाने मौसम में कुछ बढ़िया चटपटा खाने का दिल कर रहा है. आंटी, आप  बहुत बढ़िया चाप बनाती हैं न. प्लीज,  रामकली आंटी से बनवा दीजिए न,” रुद्र ने इनाया से फ़रमाइश की.

“ओके बेटा, अभी बनवाती हूं.”

“इनाया, हम दोनों को तो तुम्हारा यह मरा  चाओ बिलकुल अच्छा न लगे है. कुछ बढ़िया जायकेदार देसी खाना हम दोनों के लिए बनवा दे.”

“अच्छा आंटी, नो प्रौब्लम.  आप दोनों के लिए पकौड़ी  बनवा देती हूं. साथ में, हलवा भी.”

“अरे वाह बेटा, नेकी और पूछपूछ?  तूने तो मेरे दिल की बात कह दी. प्रकृति तुझे सातों सुख दे.”

“अरे आंटी, प्रकृति आप की बात मान ले, तो बात ही क्या थी? सातों सुख तो दूर की बात है, एक सुख ही  दे दे, तो बात बन जाए.”

“इनाया बेटा, ऐसी मायूसी की बातें क्यों करती है. तुझ से तो मौनी कहतेकहते हार गई. उस ने अपने जीतेजी तेरे लिए गठबंधन डौट कौम से कितने रिश्ते ढूंढे, लेकिन तूने किसी रिश्ते के लिए हामी  ही नहीं भरी. और अब जब अकेले रहने का फैसला तेरा है, तो इस के लिए शिकायत कैसी?  हिम्मत से हंसीखुशी जिंदगी जी, बेटा.”

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April 17, 2022 at 09:15AM

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