Friday 22 April 2022

तुम्हारी बेटी नेहा: क्या तलाक होने के बाद पुरुष अच्छा पति नहीं बन सकता?

 

सुबह किचन की खटरपटर से आंख खुली तो देखा, मेरी बेटी नेहा नाश्ता बना रही थी. मैं ने उसे मीठी झिड़की देते हुए कहा, “तूने मुझे उठाया क्यों नहीं, जा, बाकी का काम मैं करती हूं, तू औफिस के लिए तैयार हो जा.”

“मैं ने सोचा, आज अच्छा सा नाश्ता बना कर आप को सरप्राइज़ देती हूं. आप हमेशा चिंता  करती हैं न कि मैं खाना बनाने में रुचि नहीं लेती, तो ससुराल वालों को कैसे खुश रखूंगी…?”

“नहीं रे, मैं जानती हूं कि मेरी बेटी सिर पर पड़ेगा तो सब कर लेगी. वह कभी ससुराल वालों को शिकायत का मौका नहीं देगी,” गर्व से मैं ने यह कहा. फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बेटा, तुझे औफिस जाने में अभी एक घंटा बाकी है, मैं भी थोड़ा सा काम निबटा कर तैयार हो जाती हूं, तू मुझे निशा आंटी के घर पर छोड़ देना, ठीक है?”

मैं ने उस को मना करने का मौका ही नहीं दिया. वह मेरी बात सुन कर मुसकरा दी और बोली, “अच्छा वही, जो परसों पापा के साथ आप को मौल में मिली थीं. आप की बचपन की सहेली, जिन के बारे में बातें बताने में आप ने रात में बहुत देर तक मुझे और पापा को जगाए रखा था. अब समझी, इसीलिए इतना मस्का लगाया जा रहा था. अब आप को ले कर तो जाना ही पड़ेगा क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरी ममा कुछ मामलों में कभी समझौता नहीं करतीं.”

“हां रे, उस से मिलने के बाद उस के बदले रंगरूप को देख कर उस के बारे में जानने के लिए बेचैन हूं.”

कार में बैठ कर नेहा ने निशा से उस का पता पूछा. उस का घर उस के औफिस के रास्ते में ही था. नेहा ने चैन की सांस ली कि वह औफिस के लिए लेट नहीं होगी.

निशा अपने घर के दरवाज़े पर ही मेरी प्रतीक्षा कर रही थी. नेहा ने बाहर से ही विदा लेनी चाही तो निशा ने उस से कहा, ”नहीं, पहली बार घर आई है, थोड़ी देर तो रुकना ही पड़ेगा, अपनी प्यारी सहेली की बेटी को जीभर कर देख तो लूं.” और उस का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई. ड्राइंगरूम के अंदर घुसते ही मेरी निगाह दीवार पर लगी दिवाकर की माला पहने हुए बड़ी सी फोटो पर पड़ी, जैसे कि वह निशा की सूनी मांग की गवाही दे रही हो.

फोटो की ओर उंगली इंगित करते हुए सहसा मैं सकते की हालत में बोल पड़ी, “यह कब और कैसे हुआ?”

“मां…मां…” की आवाज़ लगाते हुए निशा के बेटे दिनेश के कमरे में प्रवेश करने के साथ ही मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया. वह अचानक हमें देख कर अचकचा कर झेंप गया.

मेरे पैर छूते हुए उस ने नेहा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए अचंभित हो कर बोला, “अरे, नेहा, तुम, यहां कैसे?”

वह फिर मेरी तरफ झेंपते हुए देख कर बोला, ”आंटी, यह आप की…?”

“मेरी बेटी है, तुम इसे कैसे जानते हो?” मैं ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

“अरे मां, यह मेरे ही औफ़िस में काम करता है. मुझे पता ही नहीं था कि यह निशा आंटी का बेटा है. व्हाट अ को- इंसिडेंस!” इस बार नेहा के जवाब देने की बारी थी.

“तुम्हें औफ़िस जाना है तो मेरी ही गाड़ी से चलो, लौटते में यहीं आ कर आंटी को अपने

साथ ले जाना,” उन के इस अप्रत्याशित, अनौपचारिक वार्त्तालाप को मैं ने और निशा ने अवाक हो कर मुसकरा कर देखते हुए, उन को जाने की मूक स्वीकृति दे दी.

उन दोनों के जाने के बाद मैं बोली, “ऐसे चमत्कार की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे बच्चे भी एकदूसरे को जानते हैं. ऐसा तो फिल्मों में ही देखा है. खैर, अब तू अपनी

सुना, तूने मुझे पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया? मैं ने इधर कुछ सालों से तुझे फ़ेसबुक पर

भी कितना ढूंढा, लेकिन सब व्यर्थ.”

वह मेरी उत्तेजना को शांत करते हुए बोली, “बैठ तो, मैं तुझे सब बताती हूं.

थोड़ी देर के लिए वह कुछ सोच में पड़ गई, जैसे समझ न पा रही हो कि वह कहां से बातों का सिलसिला शुरू करे. फिर अपने को थोड़ा संयत करते हुए बोली, “जयपुर में ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद तू तो दिल्ली चली गई, दिवाकर पिता के व्यवसाय में लग गया और मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का कार्य करने लगी.

“एक दिन अचानक मेरा एक पत्र दिवाकर के पिता के हाथ लग गया. उन्होंने उस से पूछताछ की तो उस ने मेरे बारे में उन्हें सबकुछ सचसच बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि वह मुझ से विवाह करना चाहता है, लेकिन मुझ से मिलने के बाद उस के मातापिता ने मुझ से विवाह की अनुमति देने से साफ़ इनकार कर दिया. मेरा साधारण सा घर और साधारण शक्लसूरत वाली मैं, दोनों ही उन के उच्चस्तरीय रहनसहन से मेल नहीं खा रहे थे. उन का कहना था कि वे बिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे? उन के लिए बेटे के सुख से अधिक महत्त्वपूर्ण बिरादरी थी. लेकिन दिवाकर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुआ तो इकलौते बेटे को खोने के डर से उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी.

विवाह तो हो गया, लेकिन उन्होंने मुझे कभी मन से स्वीकार नहीं किया. मैं ने हर तरीके से उन को खुश रखने की कोशिश की. लेकिन उन की कल्पना में बसी बहू का स्थान मैं कभी नहीं ले सकी.

विवाह के 2 साल के अंदर मेरी गोद में दिनेश आ गया. अभी हम उस का पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाए थे कि अचानक दिवाकर की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई.” यह सुनते ही मैं सकते में आ गई.

“ओह, इतनी जल्दी… यह तो बहुत बुरा हुआ,” मैं आंखें चौड़ी कर के हतप्रभ उस की ओर देख रही थी.

इतना बता कर निशा थोड़ी देर के लिए मौन हो गई, जैसे वह अतीत में पहुंच गई हो.

उस की आंखों में आंसू छलछला आए. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस को क्या कह कर सांत्वना दूं. मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में न थी.

उस ने तटस्थ हो कर आगे बताया, “उस के बाद तो मेरे सासससुर ने मुझे यह कह कर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया कि मेरा मनहूस साया पड़ने के कारण ही उन के बेटे की असमय मृत्यु हो गई है. मेरा ससुराल में रहना दूभर हो गया था, इसलिए मैं अपने मातापिता के पास लौट गई.

“मैं ने फिर से स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. मेरे मातापिता ने इकलौती संतान होने के कारण, मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी. दिवाकर की कमी की भरपाई करने के लिए भी उन्होंने मेरा दूसरा विवाह करने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं ने उन को अच्छी तरह समझा दिया कि दिवाकर का स्थान मेरे जीवन में कभी कोई नहीं ले सकता. अंत में उन को मेरे इस इरादे से समझौता करना ही पड़ा.

मेरे मातापिता मेरे दुख से अंदर ही अंदर घुल कर एक के बाद एक इस संसार से विदा हो गए. उस समय दिनेश की उम्र 14 वर्ष थी.

“समय बीतता गया और दिनेश की पिलानी से इंजीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी लग गई. दिनेश की नौकरी लगने के बाद मैं भी जयपुर छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए बेंगलुरु चली गई.”

थोड़ी देर के लिए उस की वाणी पर विराम लग गया था. मैं ने कहा, “मुझे अफ़सोस है कि मैं ने तुम्हारे घाव हरे कर दिए.”

“नहीं रे, तुझ से अपना दुख बांट कर तो मेरा मन हलका हो रहा है. अब तू ही बता इतना कुछ झेलते हुए, तुझे मैं कैसे पत्र लिखती. लेकिन यह सच है कि मैं तुझे कभी नहीं भूली,” उस ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

“तभी तो कुदरत ने हमें दोबारा मिला दिया,” मैं ने वातावरण को हलका करने के लिए कहा.

“थक गई होगी मेरी रामकहानी सुनतेसुनते, मैं चाय बना कर लाती हूं,” कह कर वह उठ कर चली गई.

चाय पीतेपीते मैं ने बातों का सिलसिला ज़ारी रखते हुए पूछा, “लेकिन बेंगलुरु से यहां पूना कब और क्यों आई?”

“इस के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है,” इतना बोलने के बाद क्षणभर के लिए वह चुप हो गई.

मैं अवाक सोच में पड़ गई कि अब पता नहीं वह और कौन से जीवन के दुखद राज़ खोलेगी. उस के चेहरे के भावों से यह तो ज्ञात हो ही रहा था कि उस का यह अनुभव भी सुखद नहीं होगा.

उस ने कहना शुरू किया, “दिनेश की अच्छी कंपनी में नौकरी लगने के बाद मैं उस के विवाह के सपने देखने लग गई थी. उस के विवाह के बारे में मैं सोचूं, इस के पहले ही उस ने बताया कि वह अपनी एक सहकर्मी को मेरी बहू बनाना चाहता है. मेरा मन खुशी से फूला नहीं समाया कि इस से अच्छा और क्या है कि मेरे बेटे ने स्वयं ही लड़की ढूंढ ली है. एक दिन वह नीरू को औफिस से अपने साथ ही मुझ से मिलाने ले आया.

“वह शक्लसूरत से प्यारी थी, पढ़ीलिखी थी और फिर मेरे बेटे को पसंद थी. सो, मुझे कुछ सोचने की आवश्यकता ही नहीं लगी.

“विवाह के बाद धीरेधीरे बहू की तुनकमिजाजी, हर बात में बहस करना, अपनी बात मनवा कर छोड़ना, छोटीछोटी बातों पर रूठ कर अपने मायके जा कर बैठ जाना… मुझे और दिनेश को अखरने लगा. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि विवाह एक समझौता होता है. लेकिन वह मेरी बात अनसुनी कर देती थी. उस की मां ने उस को कभी समझाने की कोशिश नहीं की. अंत में वही हुआ जिस की मैं ने कल्पना नहीं की थी, तलाक…

“उस के बाद हमारा मन बेंगलुरु में नहीं लगा. दिनेश ने यहां दूसरी नौकरी ढूंढ ली और 6

महीने पहले हम यहां आ गए. मैं न अच्छी बहू बन सकी और न अच्छी सास,” उस ने

एक सांस में सबकुछ कह दिया, गहरी उदासी उस के चेहरे से झलकने लगी.”

उस को सहज करने और हिम्मत देने के लिए मैं ने कहा, “अरे, ऐसा क्यों सोचती है? गलत लोगों से रिश्ता होने के कारण अपनेआप को कम मत आंक. यह तो उन लोगों की बेवकूफी है कि उन्होंने तेरी कद्र नहीं की. उसे एक दुर्घटना समझ कर भूल जा.

“दिवाकर और अपने मातापिता के जाने के बाद मैं अपने को बहुत अकेला महसूस कर रही थी, लेकिन अब तुझ से मिलने के बाद यह एहसास कम हो गया है. अब तू अपने तथा अपने परिवार के बारे में भी तो कुछ बता?” उस ने थोड़ा तटस्थ हो कर उत्सुकता से पूछा.

प्रत्युत्तर में मैं ने बताया, “मेरा तो जीवन सीधासपाट है. मेरे 2 बच्चे हैं. बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है. एक बेटी और पति हैं, उन से तो तू मिल ही चुकी है.”

मुझे निशा के घर आए कई घंटे हो गए थे. हम ने जीभर कर पुरानी यादों के समुद्र में गोते लगाए. निशा ने कहा कि आज पता नहीं कितने वर्षों बाद उसे हंसी आई है. अचानक नेहा के कार के हौर्न की आवाज़ बाहर से सुनाई दी तो मैं घर लौटने के लिए खड़ी हो गई. निशा ने खाना खा कर जाने का मुझ से बहुत आग्रह किया. लेकिन मैं ने  फिर कभी कह कर उस से जाने की अनुमति मांगी. 2 दिनों बाद ही रविवार था. निशा को अपने बेटे के साथ अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित कर के मैं ने विदा ली.

रविवार शाम को निशा अपने बेटे के साथ हमारे घर आ गई. आने के बाद वह बारबार कह रही थी कि मुझ से मिलने के बाद वह बेहद खुश है. इधर मेरा भी यही हाल था. खाते हुए उसे इस बात की बहुत खुशी हुई कि इतने सालों में भी मैं उस की पसंद को नहीं भूली हूं. खाना खाने के बाद बहुत देर तक बैठ कर बातें होती रहीं, कब रात के 11 बज गए, पता ही न चला.

इस के बाद आएदिन हम लोग एकदूसरे के घर जाने लगे थे. अकसर नेहा मुझे निशा के घर छोडती हुई दिनेश के साथ औफ़िस चली जाती और लौटते समय मुझे लेती हुई घर आ जाती.

समय अपनी रफ़्तार से बीत रहा था. समय में बदलाव के अनुसार मैं ने एक दिन नेहा से पूछा, ”बेटा समय से सभी काम होने चाहिए. मैं चाहती हूं कि तू अगले महीने 25 वर्ष की हो जाएगी. अब तेरी शादी होनी चाहिए. तुझे कोई पसंद है तो बता दे, नहीं तो मैं कोशिश करूं.”

वह जैसे इसी मौके की ताक में ही थी. बिना किसी भूमिका के सपाट स्वर में बोली, “ममा, मैं और दिनेश आपस में शादी करना चाहते हैं.”

मैं अचानक इस अप्रत्याशित बात को सुन कर हतप्रभ रह गई. थोड़ी देर तो मैं अवाक रह कर सोच में पड़ गई, फिर चिल्ला कर बोली, “तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है, तुझे पता है न, कि वह तलाकशुदा है. फिर बिरादरी वाले क्या कहेंगे, यह भी तूने सोचा है? मेरी तो नाक ही कट जाएगी. तेरे विवाह के लिए मैं ने पता नहीं कितने सपने देखे हैं. ऐसी तुझ में क्या कमी है कि ऐसे लड़के से तू शादी करेगी?”

“तो क्या हुआ मां, तलाक होने के बाद कोई पुरुष भविष्य में क्या अच्छा पति नहीं बन सकता? इस में उस की कोई गलती नहीं है. यह उस के समय की विडंबना ही समझो. उस ने मुझ से कोई बात छिपाई नहीं. मुझे तो वह पहले ही बहुत पसंद था, लेकिन जब पता लगा कि उस की

मां आप की बचपन की सखी हैं, तो मुझे अपने रिश्ते पर गर्व होने लगा और क्या गारंटी है कि अविवाहित लड़के के साथ मैं खुश ही रहूंगी?”

मैं ने अपने पति को बुलाकर नेहा को समझाने की बात कही, तो मेरे पति सारी स्थिति समझ कर बोले, ”समय बहुत बदल गया है, नेहा पढ़ीलिखी लड़की है. इस को अपनी पसंद का जीवनसाथी ढूंढने का पूरा अधिकार है. जानापहचाना परिवार है. लड़का भी अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा है. जब उस के तलाकशुदा होने से नेहा को कोई एतराज़ नहीं, तो हमें क्यों है?”

मैं ने अमेरिका फोन कर के अपने बेटेबहू से भी सलाह ली, तो उन्होंने भी कहा कि जब नेहा राजी है, तो उन को भी कोई आपत्ति क्यों होगी. सब के तर्क के सामने मेरे लिए सोचने को कुछ बचा ही नहीं था. मैं ने फिर इस संबंध में गहराई से मनन किया तो मुझे भी लगा कि आजकल समय इतना बदल गया है कि अनजान परिवार में रिश्ता करना भी ठीक नहीं है. निशा को तो मैं बचपन से जानती हूं, इसलिए नेहा की पसंद पर मुहर लगा देना ही ठीक है.

अगले दिन मैं अपने पति के साथ बिना देर किए निशा के घर पहुंच गई. हमें अचानक आया देख कर वह अचंभित हो कर बोली, “अरे, आप लोग, अचानक कैसे?”

उस की बात पूरी भी नहीं हुई कि मैं बोली, “बात ही कुछ ऐसी है कि हम रुक नहीं पाए. हम अपनी बेटी को तुम्हें सौंपना चाहते हैं,” मैं ने बिना किसी भूमिका के एक सांस में बोल दिया, जैसे मुझे पूरा विश्वास था कि निशा इस रिश्ते के लिए एकदम तैयार हो जाएगी.

और वही हुआ. इस अप्रत्याशित प्रस्ताव की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह खुश हो कर बोली, “मेरे लिए इस से अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है. लेकिन नेहा को पता है न कि दिनेश… उस से तो पूछो?”

उस के कहने से ही तो हम यह प्रस्ताव ले कर यहां आए हैं. दिनेश और नेहा दोनों ही एकदूसरे को चाहते हैं. बस, तुम्हारी स्वीकृति मिलनी बाकी थी. और हर्षातिरेक में हम दोनों सखियां एकदूसरे से लिपट गईं. मैं ने हंसते हुए कहा, “निशा, तुझे याद है हम ने आपस में कई बार कहा था कि हम अपने बच्चों की शादी आपस में कर के एकदूसरे से रिश्तेदारी जोड़ लेंगे. हमारा इतने सालों बाद मिलना केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि कुदरत की ही सुनियोजित योजना है, कहते हैं जोड़े ऊपर से बन कर आते हैं. अच्छा, अब यह बता, दहेज़ में तुझे क्या चाहिए?”

“तुम्हारी प्यारी सी बेटी नेहा,” निशा के इतना कहते ही हम सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

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सुबह किचन की खटरपटर से आंख खुली तो देखा, मेरी बेटी नेहा नाश्ता बना रही थी. मैं ने उसे मीठी झिड़की देते हुए कहा, “तूने मुझे उठाया क्यों नहीं, जा, बाकी का काम मैं करती हूं, तू औफिस के लिए तैयार हो जा.”

“मैं ने सोचा, आज अच्छा सा नाश्ता बना कर आप को सरप्राइज़ देती हूं. आप हमेशा चिंता  करती हैं न कि मैं खाना बनाने में रुचि नहीं लेती, तो ससुराल वालों को कैसे खुश रखूंगी…?”

“नहीं रे, मैं जानती हूं कि मेरी बेटी सिर पर पड़ेगा तो सब कर लेगी. वह कभी ससुराल वालों को शिकायत का मौका नहीं देगी,” गर्व से मैं ने यह कहा. फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बेटा, तुझे औफिस जाने में अभी एक घंटा बाकी है, मैं भी थोड़ा सा काम निबटा कर तैयार हो जाती हूं, तू मुझे निशा आंटी के घर पर छोड़ देना, ठीक है?”

मैं ने उस को मना करने का मौका ही नहीं दिया. वह मेरी बात सुन कर मुसकरा दी और बोली, “अच्छा वही, जो परसों पापा के साथ आप को मौल में मिली थीं. आप की बचपन की सहेली, जिन के बारे में बातें बताने में आप ने रात में बहुत देर तक मुझे और पापा को जगाए रखा था. अब समझी, इसीलिए इतना मस्का लगाया जा रहा था. अब आप को ले कर तो जाना ही पड़ेगा क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरी ममा कुछ मामलों में कभी समझौता नहीं करतीं.”

“हां रे, उस से मिलने के बाद उस के बदले रंगरूप को देख कर उस के बारे में जानने के लिए बेचैन हूं.”

कार में बैठ कर नेहा ने निशा से उस का पता पूछा. उस का घर उस के औफिस के रास्ते में ही था. नेहा ने चैन की सांस ली कि वह औफिस के लिए लेट नहीं होगी.

निशा अपने घर के दरवाज़े पर ही मेरी प्रतीक्षा कर रही थी. नेहा ने बाहर से ही विदा लेनी चाही तो निशा ने उस से कहा, ”नहीं, पहली बार घर आई है, थोड़ी देर तो रुकना ही पड़ेगा, अपनी प्यारी सहेली की बेटी को जीभर कर देख तो लूं.” और उस का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई. ड्राइंगरूम के अंदर घुसते ही मेरी निगाह दीवार पर लगी दिवाकर की माला पहने हुए बड़ी सी फोटो पर पड़ी, जैसे कि वह निशा की सूनी मांग की गवाही दे रही हो.

फोटो की ओर उंगली इंगित करते हुए सहसा मैं सकते की हालत में बोल पड़ी, “यह कब और कैसे हुआ?”

“मां…मां…” की आवाज़ लगाते हुए निशा के बेटे दिनेश के कमरे में प्रवेश करने के साथ ही मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया. वह अचानक हमें देख कर अचकचा कर झेंप गया.

मेरे पैर छूते हुए उस ने नेहा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए अचंभित हो कर बोला, “अरे, नेहा, तुम, यहां कैसे?”

वह फिर मेरी तरफ झेंपते हुए देख कर बोला, ”आंटी, यह आप की…?”

“मेरी बेटी है, तुम इसे कैसे जानते हो?” मैं ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

“अरे मां, यह मेरे ही औफ़िस में काम करता है. मुझे पता ही नहीं था कि यह निशा आंटी का बेटा है. व्हाट अ को- इंसिडेंस!” इस बार नेहा के जवाब देने की बारी थी.

“तुम्हें औफ़िस जाना है तो मेरी ही गाड़ी से चलो, लौटते में यहीं आ कर आंटी को अपने

साथ ले जाना,” उन के इस अप्रत्याशित, अनौपचारिक वार्त्तालाप को मैं ने और निशा ने अवाक हो कर मुसकरा कर देखते हुए, उन को जाने की मूक स्वीकृति दे दी.

उन दोनों के जाने के बाद मैं बोली, “ऐसे चमत्कार की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे बच्चे भी एकदूसरे को जानते हैं. ऐसा तो फिल्मों में ही देखा है. खैर, अब तू अपनी

सुना, तूने मुझे पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया? मैं ने इधर कुछ सालों से तुझे फ़ेसबुक पर

भी कितना ढूंढा, लेकिन सब व्यर्थ.”

वह मेरी उत्तेजना को शांत करते हुए बोली, “बैठ तो, मैं तुझे सब बताती हूं.

थोड़ी देर के लिए वह कुछ सोच में पड़ गई, जैसे समझ न पा रही हो कि वह कहां से बातों का सिलसिला शुरू करे. फिर अपने को थोड़ा संयत करते हुए बोली, “जयपुर में ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद तू तो दिल्ली चली गई, दिवाकर पिता के व्यवसाय में लग गया और मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का कार्य करने लगी.

“एक दिन अचानक मेरा एक पत्र दिवाकर के पिता के हाथ लग गया. उन्होंने उस से पूछताछ की तो उस ने मेरे बारे में उन्हें सबकुछ सचसच बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि वह मुझ से विवाह करना चाहता है, लेकिन मुझ से मिलने के बाद उस के मातापिता ने मुझ से विवाह की अनुमति देने से साफ़ इनकार कर दिया. मेरा साधारण सा घर और साधारण शक्लसूरत वाली मैं, दोनों ही उन के उच्चस्तरीय रहनसहन से मेल नहीं खा रहे थे. उन का कहना था कि वे बिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे? उन के लिए बेटे के सुख से अधिक महत्त्वपूर्ण बिरादरी थी. लेकिन दिवाकर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुआ तो इकलौते बेटे को खोने के डर से उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी.

विवाह तो हो गया, लेकिन उन्होंने मुझे कभी मन से स्वीकार नहीं किया. मैं ने हर तरीके से उन को खुश रखने की कोशिश की. लेकिन उन की कल्पना में बसी बहू का स्थान मैं कभी नहीं ले सकी.

विवाह के 2 साल के अंदर मेरी गोद में दिनेश आ गया. अभी हम उस का पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाए थे कि अचानक दिवाकर की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई.” यह सुनते ही मैं सकते में आ गई.

“ओह, इतनी जल्दी… यह तो बहुत बुरा हुआ,” मैं आंखें चौड़ी कर के हतप्रभ उस की ओर देख रही थी.

इतना बता कर निशा थोड़ी देर के लिए मौन हो गई, जैसे वह अतीत में पहुंच गई हो.

उस की आंखों में आंसू छलछला आए. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस को क्या कह कर सांत्वना दूं. मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में न थी.

उस ने तटस्थ हो कर आगे बताया, “उस के बाद तो मेरे सासससुर ने मुझे यह कह कर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया कि मेरा मनहूस साया पड़ने के कारण ही उन के बेटे की असमय मृत्यु हो गई है. मेरा ससुराल में रहना दूभर हो गया था, इसलिए मैं अपने मातापिता के पास लौट गई.

“मैं ने फिर से स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. मेरे मातापिता ने इकलौती संतान होने के कारण, मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी. दिवाकर की कमी की भरपाई करने के लिए भी उन्होंने मेरा दूसरा विवाह करने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं ने उन को अच्छी तरह समझा दिया कि दिवाकर का स्थान मेरे जीवन में कभी कोई नहीं ले सकता. अंत में उन को मेरे इस इरादे से समझौता करना ही पड़ा.

मेरे मातापिता मेरे दुख से अंदर ही अंदर घुल कर एक के बाद एक इस संसार से विदा हो गए. उस समय दिनेश की उम्र 14 वर्ष थी.

“समय बीतता गया और दिनेश की पिलानी से इंजीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी लग गई. दिनेश की नौकरी लगने के बाद मैं भी जयपुर छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए बेंगलुरु चली गई.”

थोड़ी देर के लिए उस की वाणी पर विराम लग गया था. मैं ने कहा, “मुझे अफ़सोस है कि मैं ने तुम्हारे घाव हरे कर दिए.”

“नहीं रे, तुझ से अपना दुख बांट कर तो मेरा मन हलका हो रहा है. अब तू ही बता इतना कुछ झेलते हुए, तुझे मैं कैसे पत्र लिखती. लेकिन यह सच है कि मैं तुझे कभी नहीं भूली,” उस ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

“तभी तो कुदरत ने हमें दोबारा मिला दिया,” मैं ने वातावरण को हलका करने के लिए कहा.

“थक गई होगी मेरी रामकहानी सुनतेसुनते, मैं चाय बना कर लाती हूं,” कह कर वह उठ कर चली गई.

चाय पीतेपीते मैं ने बातों का सिलसिला ज़ारी रखते हुए पूछा, “लेकिन बेंगलुरु से यहां पूना कब और क्यों आई?”

“इस के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है,” इतना बोलने के बाद क्षणभर के लिए वह चुप हो गई.

मैं अवाक सोच में पड़ गई कि अब पता नहीं वह और कौन से जीवन के दुखद राज़ खोलेगी. उस के चेहरे के भावों से यह तो ज्ञात हो ही रहा था कि उस का यह अनुभव भी सुखद नहीं होगा.

उस ने कहना शुरू किया, “दिनेश की अच्छी कंपनी में नौकरी लगने के बाद मैं उस के विवाह के सपने देखने लग गई थी. उस के विवाह के बारे में मैं सोचूं, इस के पहले ही उस ने बताया कि वह अपनी एक सहकर्मी को मेरी बहू बनाना चाहता है. मेरा मन खुशी से फूला नहीं समाया कि इस से अच्छा और क्या है कि मेरे बेटे ने स्वयं ही लड़की ढूंढ ली है. एक दिन वह नीरू को औफिस से अपने साथ ही मुझ से मिलाने ले आया.

“वह शक्लसूरत से प्यारी थी, पढ़ीलिखी थी और फिर मेरे बेटे को पसंद थी. सो, मुझे कुछ सोचने की आवश्यकता ही नहीं लगी.

“विवाह के बाद धीरेधीरे बहू की तुनकमिजाजी, हर बात में बहस करना, अपनी बात मनवा कर छोड़ना, छोटीछोटी बातों पर रूठ कर अपने मायके जा कर बैठ जाना… मुझे और दिनेश को अखरने लगा. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि विवाह एक समझौता होता है. लेकिन वह मेरी बात अनसुनी कर देती थी. उस की मां ने उस को कभी समझाने की कोशिश नहीं की. अंत में वही हुआ जिस की मैं ने कल्पना नहीं की थी, तलाक…

“उस के बाद हमारा मन बेंगलुरु में नहीं लगा. दिनेश ने यहां दूसरी नौकरी ढूंढ ली और 6

महीने पहले हम यहां आ गए. मैं न अच्छी बहू बन सकी और न अच्छी सास,” उस ने

एक सांस में सबकुछ कह दिया, गहरी उदासी उस के चेहरे से झलकने लगी.”

उस को सहज करने और हिम्मत देने के लिए मैं ने कहा, “अरे, ऐसा क्यों सोचती है? गलत लोगों से रिश्ता होने के कारण अपनेआप को कम मत आंक. यह तो उन लोगों की बेवकूफी है कि उन्होंने तेरी कद्र नहीं की. उसे एक दुर्घटना समझ कर भूल जा.

“दिवाकर और अपने मातापिता के जाने के बाद मैं अपने को बहुत अकेला महसूस कर रही थी, लेकिन अब तुझ से मिलने के बाद यह एहसास कम हो गया है. अब तू अपने तथा अपने परिवार के बारे में भी तो कुछ बता?” उस ने थोड़ा तटस्थ हो कर उत्सुकता से पूछा.

प्रत्युत्तर में मैं ने बताया, “मेरा तो जीवन सीधासपाट है. मेरे 2 बच्चे हैं. बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है. एक बेटी और पति हैं, उन से तो तू मिल ही चुकी है.”

मुझे निशा के घर आए कई घंटे हो गए थे. हम ने जीभर कर पुरानी यादों के समुद्र में गोते लगाए. निशा ने कहा कि आज पता नहीं कितने वर्षों बाद उसे हंसी आई है. अचानक नेहा के कार के हौर्न की आवाज़ बाहर से सुनाई दी तो मैं घर लौटने के लिए खड़ी हो गई. निशा ने खाना खा कर जाने का मुझ से बहुत आग्रह किया. लेकिन मैं ने  फिर कभी कह कर उस से जाने की अनुमति मांगी. 2 दिनों बाद ही रविवार था. निशा को अपने बेटे के साथ अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित कर के मैं ने विदा ली.

रविवार शाम को निशा अपने बेटे के साथ हमारे घर आ गई. आने के बाद वह बारबार कह रही थी कि मुझ से मिलने के बाद वह बेहद खुश है. इधर मेरा भी यही हाल था. खाते हुए उसे इस बात की बहुत खुशी हुई कि इतने सालों में भी मैं उस की पसंद को नहीं भूली हूं. खाना खाने के बाद बहुत देर तक बैठ कर बातें होती रहीं, कब रात के 11 बज गए, पता ही न चला.

इस के बाद आएदिन हम लोग एकदूसरे के घर जाने लगे थे. अकसर नेहा मुझे निशा के घर छोडती हुई दिनेश के साथ औफ़िस चली जाती और लौटते समय मुझे लेती हुई घर आ जाती.

समय अपनी रफ़्तार से बीत रहा था. समय में बदलाव के अनुसार मैं ने एक दिन नेहा से पूछा, ”बेटा समय से सभी काम होने चाहिए. मैं चाहती हूं कि तू अगले महीने 25 वर्ष की हो जाएगी. अब तेरी शादी होनी चाहिए. तुझे कोई पसंद है तो बता दे, नहीं तो मैं कोशिश करूं.”

वह जैसे इसी मौके की ताक में ही थी. बिना किसी भूमिका के सपाट स्वर में बोली, “ममा, मैं और दिनेश आपस में शादी करना चाहते हैं.”

मैं अचानक इस अप्रत्याशित बात को सुन कर हतप्रभ रह गई. थोड़ी देर तो मैं अवाक रह कर सोच में पड़ गई, फिर चिल्ला कर बोली, “तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है, तुझे पता है न, कि वह तलाकशुदा है. फिर बिरादरी वाले क्या कहेंगे, यह भी तूने सोचा है? मेरी तो नाक ही कट जाएगी. तेरे विवाह के लिए मैं ने पता नहीं कितने सपने देखे हैं. ऐसी तुझ में क्या कमी है कि ऐसे लड़के से तू शादी करेगी?”

“तो क्या हुआ मां, तलाक होने के बाद कोई पुरुष भविष्य में क्या अच्छा पति नहीं बन सकता? इस में उस की कोई गलती नहीं है. यह उस के समय की विडंबना ही समझो. उस ने मुझ से कोई बात छिपाई नहीं. मुझे तो वह पहले ही बहुत पसंद था, लेकिन जब पता लगा कि उस की

मां आप की बचपन की सखी हैं, तो मुझे अपने रिश्ते पर गर्व होने लगा और क्या गारंटी है कि अविवाहित लड़के के साथ मैं खुश ही रहूंगी?”

मैं ने अपने पति को बुलाकर नेहा को समझाने की बात कही, तो मेरे पति सारी स्थिति समझ कर बोले, ”समय बहुत बदल गया है, नेहा पढ़ीलिखी लड़की है. इस को अपनी पसंद का जीवनसाथी ढूंढने का पूरा अधिकार है. जानापहचाना परिवार है. लड़का भी अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा है. जब उस के तलाकशुदा होने से नेहा को कोई एतराज़ नहीं, तो हमें क्यों है?”

मैं ने अमेरिका फोन कर के अपने बेटेबहू से भी सलाह ली, तो उन्होंने भी कहा कि जब नेहा राजी है, तो उन को भी कोई आपत्ति क्यों होगी. सब के तर्क के सामने मेरे लिए सोचने को कुछ बचा ही नहीं था. मैं ने फिर इस संबंध में गहराई से मनन किया तो मुझे भी लगा कि आजकल समय इतना बदल गया है कि अनजान परिवार में रिश्ता करना भी ठीक नहीं है. निशा को तो मैं बचपन से जानती हूं, इसलिए नेहा की पसंद पर मुहर लगा देना ही ठीक है.

अगले दिन मैं अपने पति के साथ बिना देर किए निशा के घर पहुंच गई. हमें अचानक आया देख कर वह अचंभित हो कर बोली, “अरे, आप लोग, अचानक कैसे?”

उस की बात पूरी भी नहीं हुई कि मैं बोली, “बात ही कुछ ऐसी है कि हम रुक नहीं पाए. हम अपनी बेटी को तुम्हें सौंपना चाहते हैं,” मैं ने बिना किसी भूमिका के एक सांस में बोल दिया, जैसे मुझे पूरा विश्वास था कि निशा इस रिश्ते के लिए एकदम तैयार हो जाएगी.

और वही हुआ. इस अप्रत्याशित प्रस्ताव की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह खुश हो कर बोली, “मेरे लिए इस से अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है. लेकिन नेहा को पता है न कि दिनेश… उस से तो पूछो?”

उस के कहने से ही तो हम यह प्रस्ताव ले कर यहां आए हैं. दिनेश और नेहा दोनों ही एकदूसरे को चाहते हैं. बस, तुम्हारी स्वीकृति मिलनी बाकी थी. और हर्षातिरेक में हम दोनों सखियां एकदूसरे से लिपट गईं. मैं ने हंसते हुए कहा, “निशा, तुझे याद है हम ने आपस में कई बार कहा था कि हम अपने बच्चों की शादी आपस में कर के एकदूसरे से रिश्तेदारी जोड़ लेंगे. हमारा इतने सालों बाद मिलना केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि कुदरत की ही सुनियोजित योजना है, कहते हैं जोड़े ऊपर से बन कर आते हैं. अच्छा, अब यह बता, दहेज़ में तुझे क्या चाहिए?”

“तुम्हारी प्यारी सी बेटी नेहा,” निशा के इतना कहते ही हम सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

The post तुम्हारी बेटी नेहा: क्या तलाक होने के बाद पुरुष अच्छा पति नहीं बन सकता? appeared first on Sarita Magazine.

April 23, 2022 at 09:11AM

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