Thursday 21 April 2022

सही सलामत घर वापसी: आखिर रिंकू नादान थी या चालक

राइटर-  पूनम पाठक

दीपा बड़ी देर से अपनी भांजी रिंकू का इंतजार कर रही थी. पति सुशांत कंपनी के काम से चेन्नई गए हुए थे. रिंकू के मोबाइल पर उस ने बहुत बार ट्राई किया. रिंग पर रिंग जा रही थी पर रिंकू ने न फोन उठाया और न ही कौलबैक किया. उस के औफिस में भी कोई फोन नहीं उठ रहा था.

दीपा का मन आशंकाओं से घिरा जा रहा था. घर में 2 छोटे बच्चों को छोड़ कर इतने बड़े शहर में वह अपनी भांजी को ढूंढऩे आखिर कहां जाए. जवान भांजी के साथ कहीं कोई अनहोनी हो गई तो… इस शहर को रिंकू जानती ही कितना है. देवास जैसी छोटी जगह से चंद महीने पहले ही तो वह यहां पर रहने आई है. न तो दीपा सुशांत को फोन लगाना चाहती थी और न ही रिंकू के घर वालों को. दोनों ही दूसरे शहरों में बैठे हैं, बेवजह परेशान होंगे और इतनी दूर से कुछ कर भी नहीं पाएंगे.

दरअसल, आज रिंकू का बर्थडे भी था, इसलिए वह शाम को लकी बेकरी से उस का मनपसंद केक और एक सुंदर पर्स गिफ्ट के तौर पर ले कर आई थी. लेकिन अब साढ़े नौ बजने को थे. बच्चे भी अपना होमवर्क खत्म कर के केक कटने का इंतजार करतेकरते थक कर सो चुके थे. आखिरकार, हताश हो उस ने सुशांत को फोन लगाया. ‘‘अब बता रही हो मुझे?’’ छूटते ही सुशांत ने कहा.

‘‘क्या करती सुशांत, मुझे लगा वह आती ही होगी. मैं बेवजह तम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी,’’ दीपा रोंआसी हो उठी.

‘‘चलो, परेशान मत हो, मैं उसे फोन लगाकर देखता हूं और दीदी से भी बात करता हूं,’’ कह कर सुशांत ने फोन रख दिया. बीतते हर पल के साथ दीपा की चिंता बढ़ती जा रही थी. लगता है रिंकू को अपने घर रख कर उस ने कोई गलत निर्णय ले लिया है.

उसे याद आया कि रिंकू की जौब दिल्ली में लगने पर कितनी खुशी हुर्ई थी उसे. जीजाजी ने जब रिंकू के लिए एक अच्छा होस्टल देखने को कहा तो उस ने नाराज होते हुए कहा था कि जब रिंकू के मामीमामा दिल्ली में रहते हैं तो वह होस्टल में क्यों रहेगी. उस के लिए जैसे उस के बच्चे, वैसी ही रिंकू. बड़ी ही प्रसन्नता से उस ने आगे बढ़ कर रिंकू की देखभाल व उस की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. पर उसे नहीं मालूम था कि कुछ ही महीनों में रिंकू पर शहर की चमकधमक का वह रंग चढ़ेगा कि उस की आंखें चौंधिया जाएंगी. उस के लिए औफिस के कलीग्स के आगे मामीमामा का प्यार और समझाइश गौण हो जाएगी.

कुछ दिनों तक तो रिंकू औफिस से सही वक्त पर घर आ जाती थी. फिर ‘काम का प्रैशर ज्यादा है मामी, मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,’ कह कर वह थोड़ा लेट आने लगी. फिर भी साढ़े सातआठ बजे तक तो हर हालत में आ ही जाती थी. लेकिन आज तो लापरवाही की हद हो गई थी. आज वह जरूर उसे थोड़ी डांट लगाएगी, आखिर उसे भी तो समझ आए कि उस के कारण मुझे कितना परेशान होना पड़ा है. सोचती हुई दीपा उसे फिर से फोन लगाने को उद्यत हुई कि मोबाइल की घंटी घनघना उठी, ‘‘हैलो दीदी, चरणस्पर्श.’’ उस की ननद का फोन था.

‘‘खुश रहो दीपा, अभी रिंकू से बात हुई है मेरी, वह बस आधे घंटे में पहुंच रही है. तुम चिंता मत करना. दरअसल, उस के बर्थडे पर औफिस वालों ने एक पार्टी रखी थी तो वह उसी में बिजी थी.’’

‘‘ठीक है दीदी.’’ दीपा को बड़ा आश्चर्य हुआ. यह क्या तरीका है बर्थडे पार्टी मनाई जा रही है वह भी इतनी देर तक. और तो और, इस लडक़ी ने उसे बताना भी जरूरी नहीं समझा, जबकि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि मामा बाहर गए हुए है. अकेली मामी कितनी परेशान होंगी, उस ने यह भी न सोचा, ऊपर से उस का फोन भी नहीं उठा रही है. और दीदी को देखो इतनी देररात लडक़ी घर से बाहर है, यह जान कर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. अरे, अच्छी बात है कि आप लडक़ी को आजादी देने के पक्ष में हो. लेकिन यह क्या बात हुई कि जहां आप रह रहे हो उन्हें सूचित करना भी जरूरी नहीं समझते. दीपा की सोच से परे था यह सब.

उसे पड़ोसिन सेन भाभी की वह समझाइश याद आ रही थी जिस में उन्होंने साफ तौर पर उसे चेतावनी देते हुए कहा था कि दीपा, यह अच्छी बात है कि तुम अपनी भांजी को यहां रख कर अपने दीदीजीजाजी की मदद करना चाहती हो. परंतु यह काम इतना आसान नहीं. दूसरों के बच्चों को अपने पास रखना व उन की देखभाल करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिस में यदि सबकुछ अच्छा रहा तो कोर्ई बात नहीं लेकिन अगर कोई चूक हुई तो लोग आप को बुरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

उस वक्त उन की बातों को हलके में लेते हुए उस ने कहा था कि आप चिंता न करें भाभी, मैं सब संभाल लूंगी. मैं अपनी भांजी को इतने प्यार से रखूंगी की मामीभांजी का यह रिश्ता सब के लिए मिसाल बन जाएगा. आज उसे लग रहा था कि अपने अतिआत्मविश्वास के चलते भाभी की बात को अनसुनी कर के हंसी में उड़ा देना शायद एक भूल थी. क्योंकि बड़ों की तीक्ष्ण अनुभवी नजरें अधिक यथार्थवादी होती हैं.

वह जितना इस रिश्ते को सहेजने की कोशिश कर रही थी, यह उतना ही उलझता जा रहा था और आज हालात ये थे कि घर पर वह और बच्चे रिंकू का बर्थडे मनाने की तैयारी कर के बैठे थे और वह अपना बर्थडे औफिस वालों के साथ सैलिब्रेट करने में बिजी थी.

दीपा के मन में एक टीस उठी और गालों पर दो बूंद आंसुओं की टपक पड़ीं. रिंकू ने उस के घर को क्या होटल समझ रखा है जहां अपना लगेज रख कर इंसान सिर्फ खाने और आराम फरमाने ही आता है. समझदार सुशांत शायद इस स्थिति को पहले ही भांप चुके थे, तभी तो पहलेपहल वे उसे वहां रखने के पक्ष में नहीं थे. वे तो बाद में उस के काफी समझाने व जोर देने पर आखिरकार उन्हें इस निर्णय पर अपनी मूक सहमति दे दी थी.

वैसे तो 24 वर्षीय रिंकू बहुत भोली व प्यारी बच्ची थी. वह तो पहले भी उसे बहुत प्यार करती थी और बस, यह चाहती थी कि वह इतनी आसानी से किसी पर भी भरोसा न करे. अपने औफिस में भी थोड़ी सी होशियारी और समझदारी से चले ताकि कभी किसी परेशानी में न पड़े. क्योंकि आजकल किस के मन में क्या चल रहा है, यह समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है. अच्छाई व अपनेपन का दिखावा कर के लोग बड़ी आसानी से मासूमों को अपना शिकार बना लेते हैं. लेकिन शायद रिंकू पर पैसों की चकाचौंध और स्टेटस सिंबल का जनून धीरेधीरे सवार होता जा रहा था. इसलिए मामीमामा की हर समझाइश अब उसे अपनी पर्सनल लाइफ में दखलंदाजी लगने लगी थी.

रिंकू को अपने घर पर अपनी जिम्मेदारी पर रखना दीपा के लिए कड़ी चुनौती बनता जा रहा था. लगभग हर हफ्ते छुट्टी वाले दिन उस के औफिस कलीग कहीं पिकनिक या फिल्म देखने का प्रोग्राम बना लेते थे और दसग्यारह बजे निकली रिंकू देररात घर आती थी. कभीकभार जब सुशांत कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते थे तो रिंकू साफ तौर पर आनाकानी करती नजर आती, इस से सुशांत स्वाभाविक रूप से चिढ़ जाते. फिर भी वह लगातार इसी कोशिश में लगी रहती कि सुशांत और उन की प्यारी भांजी के बीच कोई मनमुटाव न हो.

पर अब रिंकू को समझ पाना और उसे समझाना दीपा के लिए टेढ़ी खीर होता जा रहा था. बड़े होने के नाते वे जिन खतरों को आसानी से सूंघ पा रहे थे, रिंकू के लिए वह उन की बेवजह की चिंता थी. एक बार तो ‘मयंक ब्लू वाटर पार्क’ गई रिंकू दोस्तों के कहने पर जींस पहने ही पानी में उतर गई और दिनभर गीली जींस में घूमती रही. शाम को जब दीपा ने यह देखा, तो उसे डांटा, ‘‘यह क्या तरीका है रिंकू, पूरे दिन गीली जींस से क्या तुम बीमार नहीं होगी.’’

‘‘अरे कुछ नहीं होगा मामी, आप बेकार ही परेशान होती हो,’’ रिंकू ने लापरवाही से जवाब दिया. दीपा मन ही मन कुढ़ कर रह गई. यह क्या बात हुई, अभी बीमार हो जाएगी तो डाक्टर के पास तो मुझे ही ले कर भागना पड़ेगा. रिंकू की मनमरजी के आगे दीपा बेबस हो चुकी थी. अगर ये सभी बातें दीदी को बताती है तो उन्हें लगेगा की वे उन की बेटी को रखना नहीं चाहते, इसलिए उस की चुगली कर रहे हैं और बाद में कुछ ऊंचनीच हुई तो उसे यही सुनना पड़ेगा कि हमें पहले क्यों नहीं बताया, हम ने तो उसे तुम्हारे भरोसे छोड़ रखा था. अत्यधिक खुशी और जल्दबाजी में लिया निर्णय अब उस के गले की फांस बनता जा रहा था.

अचानक दीपा के विचारों की श्रंखला टूटी, बाहर से कोई हौर्न पर हौर्न दिए जा रहा था. उस ने दीवालघड़ी पर नजर डाली, 11 बजने को थे. उफ्फ… उठ कर गेट का लौक खोला तो बाहर खड़ी कार से उतरी रिंकू ने अपने बौस से उस का परिचय करवाया. गाड़ी में पिछली सीट पर 2 लडक़े और बैठे हुए थे. इतनी देर से आने पर भी रिंकू के चेहरे पर अफसोस का कोई भाव न था और न ही होंठों पर सौरी. वह गुनगुनाती हुई आते ही वाशरूम में घुस गई. दीपा का मन कसैला हो गया. माना कि वह रिंकू की मामी है, दीदी जीजाजी उस के मान्य हैं और इस नाते अपने मान्यों का मान रखना उस का कर्तव्य है. पर इस रिश्ते को निभाने का सारा दारोमदार क्या उसी पर है. क्या दूसरी ओर से कोई सार्थक पहल नहीं की जानी चाहिए. ये कैसे रिश्ते हैं जिन में, बस, चुप हो कर अपनी ड्यूटी करते रहो, दूसरा सही हो या गलत आप के मुंह से उफ नहीं निकलनी चाहिए. इस तरह एकतरफा रिश्ता वह आखिर कब तक निभा पाएगी.

चलो, माना कि रिंकू नादान है, पर दीदी को तो उसे सही सलाह देनी चाहिए, न कि उस की गलतियों को बढ़ावा. ऐसे में कल को रिकू की बेवकूफियों का खमियाजा उसे या सुशांत को ही भुगतना होगा क्योंकि दीदी तो यह कह कर छूट जाएंगी कि तुम ने हमें बताया क्यों नहीं. और कुछ बताने चलो, तो अभी उन के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा है.

2-3 महीने तक उसे उस ऊहापोह में रहना पड़ा पर फिर पता चला कि रिंकू को बेंगलुरु में एक और अच्छी नौकरी मिल गई. जब यह सूचना रिंकू ने दी तो दीपा जितनी खुश हुई वह महीनों तक सुशांत व रिंकू के मातापिता दोनों को समझ नहीं आया.

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राइटर-  पूनम पाठक

दीपा बड़ी देर से अपनी भांजी रिंकू का इंतजार कर रही थी. पति सुशांत कंपनी के काम से चेन्नई गए हुए थे. रिंकू के मोबाइल पर उस ने बहुत बार ट्राई किया. रिंग पर रिंग जा रही थी पर रिंकू ने न फोन उठाया और न ही कौलबैक किया. उस के औफिस में भी कोई फोन नहीं उठ रहा था.

दीपा का मन आशंकाओं से घिरा जा रहा था. घर में 2 छोटे बच्चों को छोड़ कर इतने बड़े शहर में वह अपनी भांजी को ढूंढऩे आखिर कहां जाए. जवान भांजी के साथ कहीं कोई अनहोनी हो गई तो… इस शहर को रिंकू जानती ही कितना है. देवास जैसी छोटी जगह से चंद महीने पहले ही तो वह यहां पर रहने आई है. न तो दीपा सुशांत को फोन लगाना चाहती थी और न ही रिंकू के घर वालों को. दोनों ही दूसरे शहरों में बैठे हैं, बेवजह परेशान होंगे और इतनी दूर से कुछ कर भी नहीं पाएंगे.

दरअसल, आज रिंकू का बर्थडे भी था, इसलिए वह शाम को लकी बेकरी से उस का मनपसंद केक और एक सुंदर पर्स गिफ्ट के तौर पर ले कर आई थी. लेकिन अब साढ़े नौ बजने को थे. बच्चे भी अपना होमवर्क खत्म कर के केक कटने का इंतजार करतेकरते थक कर सो चुके थे. आखिरकार, हताश हो उस ने सुशांत को फोन लगाया. ‘‘अब बता रही हो मुझे?’’ छूटते ही सुशांत ने कहा.

‘‘क्या करती सुशांत, मुझे लगा वह आती ही होगी. मैं बेवजह तम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी,’’ दीपा रोंआसी हो उठी.

‘‘चलो, परेशान मत हो, मैं उसे फोन लगाकर देखता हूं और दीदी से भी बात करता हूं,’’ कह कर सुशांत ने फोन रख दिया. बीतते हर पल के साथ दीपा की चिंता बढ़ती जा रही थी. लगता है रिंकू को अपने घर रख कर उस ने कोई गलत निर्णय ले लिया है.

उसे याद आया कि रिंकू की जौब दिल्ली में लगने पर कितनी खुशी हुर्ई थी उसे. जीजाजी ने जब रिंकू के लिए एक अच्छा होस्टल देखने को कहा तो उस ने नाराज होते हुए कहा था कि जब रिंकू के मामीमामा दिल्ली में रहते हैं तो वह होस्टल में क्यों रहेगी. उस के लिए जैसे उस के बच्चे, वैसी ही रिंकू. बड़ी ही प्रसन्नता से उस ने आगे बढ़ कर रिंकू की देखभाल व उस की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. पर उसे नहीं मालूम था कि कुछ ही महीनों में रिंकू पर शहर की चमकधमक का वह रंग चढ़ेगा कि उस की आंखें चौंधिया जाएंगी. उस के लिए औफिस के कलीग्स के आगे मामीमामा का प्यार और समझाइश गौण हो जाएगी.

कुछ दिनों तक तो रिंकू औफिस से सही वक्त पर घर आ जाती थी. फिर ‘काम का प्रैशर ज्यादा है मामी, मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,’ कह कर वह थोड़ा लेट आने लगी. फिर भी साढ़े सातआठ बजे तक तो हर हालत में आ ही जाती थी. लेकिन आज तो लापरवाही की हद हो गई थी. आज वह जरूर उसे थोड़ी डांट लगाएगी, आखिर उसे भी तो समझ आए कि उस के कारण मुझे कितना परेशान होना पड़ा है. सोचती हुई दीपा उसे फिर से फोन लगाने को उद्यत हुई कि मोबाइल की घंटी घनघना उठी, ‘‘हैलो दीदी, चरणस्पर्श.’’ उस की ननद का फोन था.

‘‘खुश रहो दीपा, अभी रिंकू से बात हुई है मेरी, वह बस आधे घंटे में पहुंच रही है. तुम चिंता मत करना. दरअसल, उस के बर्थडे पर औफिस वालों ने एक पार्टी रखी थी तो वह उसी में बिजी थी.’’

‘‘ठीक है दीदी.’’ दीपा को बड़ा आश्चर्य हुआ. यह क्या तरीका है बर्थडे पार्टी मनाई जा रही है वह भी इतनी देर तक. और तो और, इस लडक़ी ने उसे बताना भी जरूरी नहीं समझा, जबकि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि मामा बाहर गए हुए है. अकेली मामी कितनी परेशान होंगी, उस ने यह भी न सोचा, ऊपर से उस का फोन भी नहीं उठा रही है. और दीदी को देखो इतनी देररात लडक़ी घर से बाहर है, यह जान कर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. अरे, अच्छी बात है कि आप लडक़ी को आजादी देने के पक्ष में हो. लेकिन यह क्या बात हुई कि जहां आप रह रहे हो उन्हें सूचित करना भी जरूरी नहीं समझते. दीपा की सोच से परे था यह सब.

उसे पड़ोसिन सेन भाभी की वह समझाइश याद आ रही थी जिस में उन्होंने साफ तौर पर उसे चेतावनी देते हुए कहा था कि दीपा, यह अच्छी बात है कि तुम अपनी भांजी को यहां रख कर अपने दीदीजीजाजी की मदद करना चाहती हो. परंतु यह काम इतना आसान नहीं. दूसरों के बच्चों को अपने पास रखना व उन की देखभाल करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिस में यदि सबकुछ अच्छा रहा तो कोर्ई बात नहीं लेकिन अगर कोई चूक हुई तो लोग आप को बुरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

उस वक्त उन की बातों को हलके में लेते हुए उस ने कहा था कि आप चिंता न करें भाभी, मैं सब संभाल लूंगी. मैं अपनी भांजी को इतने प्यार से रखूंगी की मामीभांजी का यह रिश्ता सब के लिए मिसाल बन जाएगा. आज उसे लग रहा था कि अपने अतिआत्मविश्वास के चलते भाभी की बात को अनसुनी कर के हंसी में उड़ा देना शायद एक भूल थी. क्योंकि बड़ों की तीक्ष्ण अनुभवी नजरें अधिक यथार्थवादी होती हैं.

वह जितना इस रिश्ते को सहेजने की कोशिश कर रही थी, यह उतना ही उलझता जा रहा था और आज हालात ये थे कि घर पर वह और बच्चे रिंकू का बर्थडे मनाने की तैयारी कर के बैठे थे और वह अपना बर्थडे औफिस वालों के साथ सैलिब्रेट करने में बिजी थी.

दीपा के मन में एक टीस उठी और गालों पर दो बूंद आंसुओं की टपक पड़ीं. रिंकू ने उस के घर को क्या होटल समझ रखा है जहां अपना लगेज रख कर इंसान सिर्फ खाने और आराम फरमाने ही आता है. समझदार सुशांत शायद इस स्थिति को पहले ही भांप चुके थे, तभी तो पहलेपहल वे उसे वहां रखने के पक्ष में नहीं थे. वे तो बाद में उस के काफी समझाने व जोर देने पर आखिरकार उन्हें इस निर्णय पर अपनी मूक सहमति दे दी थी.

वैसे तो 24 वर्षीय रिंकू बहुत भोली व प्यारी बच्ची थी. वह तो पहले भी उसे बहुत प्यार करती थी और बस, यह चाहती थी कि वह इतनी आसानी से किसी पर भी भरोसा न करे. अपने औफिस में भी थोड़ी सी होशियारी और समझदारी से चले ताकि कभी किसी परेशानी में न पड़े. क्योंकि आजकल किस के मन में क्या चल रहा है, यह समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है. अच्छाई व अपनेपन का दिखावा कर के लोग बड़ी आसानी से मासूमों को अपना शिकार बना लेते हैं. लेकिन शायद रिंकू पर पैसों की चकाचौंध और स्टेटस सिंबल का जनून धीरेधीरे सवार होता जा रहा था. इसलिए मामीमामा की हर समझाइश अब उसे अपनी पर्सनल लाइफ में दखलंदाजी लगने लगी थी.

रिंकू को अपने घर पर अपनी जिम्मेदारी पर रखना दीपा के लिए कड़ी चुनौती बनता जा रहा था. लगभग हर हफ्ते छुट्टी वाले दिन उस के औफिस कलीग कहीं पिकनिक या फिल्म देखने का प्रोग्राम बना लेते थे और दसग्यारह बजे निकली रिंकू देररात घर आती थी. कभीकभार जब सुशांत कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते थे तो रिंकू साफ तौर पर आनाकानी करती नजर आती, इस से सुशांत स्वाभाविक रूप से चिढ़ जाते. फिर भी वह लगातार इसी कोशिश में लगी रहती कि सुशांत और उन की प्यारी भांजी के बीच कोई मनमुटाव न हो.

पर अब रिंकू को समझ पाना और उसे समझाना दीपा के लिए टेढ़ी खीर होता जा रहा था. बड़े होने के नाते वे जिन खतरों को आसानी से सूंघ पा रहे थे, रिंकू के लिए वह उन की बेवजह की चिंता थी. एक बार तो ‘मयंक ब्लू वाटर पार्क’ गई रिंकू दोस्तों के कहने पर जींस पहने ही पानी में उतर गई और दिनभर गीली जींस में घूमती रही. शाम को जब दीपा ने यह देखा, तो उसे डांटा, ‘‘यह क्या तरीका है रिंकू, पूरे दिन गीली जींस से क्या तुम बीमार नहीं होगी.’’

‘‘अरे कुछ नहीं होगा मामी, आप बेकार ही परेशान होती हो,’’ रिंकू ने लापरवाही से जवाब दिया. दीपा मन ही मन कुढ़ कर रह गई. यह क्या बात हुई, अभी बीमार हो जाएगी तो डाक्टर के पास तो मुझे ही ले कर भागना पड़ेगा. रिंकू की मनमरजी के आगे दीपा बेबस हो चुकी थी. अगर ये सभी बातें दीदी को बताती है तो उन्हें लगेगा की वे उन की बेटी को रखना नहीं चाहते, इसलिए उस की चुगली कर रहे हैं और बाद में कुछ ऊंचनीच हुई तो उसे यही सुनना पड़ेगा कि हमें पहले क्यों नहीं बताया, हम ने तो उसे तुम्हारे भरोसे छोड़ रखा था. अत्यधिक खुशी और जल्दबाजी में लिया निर्णय अब उस के गले की फांस बनता जा रहा था.

अचानक दीपा के विचारों की श्रंखला टूटी, बाहर से कोई हौर्न पर हौर्न दिए जा रहा था. उस ने दीवालघड़ी पर नजर डाली, 11 बजने को थे. उफ्फ… उठ कर गेट का लौक खोला तो बाहर खड़ी कार से उतरी रिंकू ने अपने बौस से उस का परिचय करवाया. गाड़ी में पिछली सीट पर 2 लडक़े और बैठे हुए थे. इतनी देर से आने पर भी रिंकू के चेहरे पर अफसोस का कोई भाव न था और न ही होंठों पर सौरी. वह गुनगुनाती हुई आते ही वाशरूम में घुस गई. दीपा का मन कसैला हो गया. माना कि वह रिंकू की मामी है, दीदी जीजाजी उस के मान्य हैं और इस नाते अपने मान्यों का मान रखना उस का कर्तव्य है. पर इस रिश्ते को निभाने का सारा दारोमदार क्या उसी पर है. क्या दूसरी ओर से कोई सार्थक पहल नहीं की जानी चाहिए. ये कैसे रिश्ते हैं जिन में, बस, चुप हो कर अपनी ड्यूटी करते रहो, दूसरा सही हो या गलत आप के मुंह से उफ नहीं निकलनी चाहिए. इस तरह एकतरफा रिश्ता वह आखिर कब तक निभा पाएगी.

चलो, माना कि रिंकू नादान है, पर दीदी को तो उसे सही सलाह देनी चाहिए, न कि उस की गलतियों को बढ़ावा. ऐसे में कल को रिकू की बेवकूफियों का खमियाजा उसे या सुशांत को ही भुगतना होगा क्योंकि दीदी तो यह कह कर छूट जाएंगी कि तुम ने हमें बताया क्यों नहीं. और कुछ बताने चलो, तो अभी उन के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा है.

2-3 महीने तक उसे उस ऊहापोह में रहना पड़ा पर फिर पता चला कि रिंकू को बेंगलुरु में एक और अच्छी नौकरी मिल गई. जब यह सूचना रिंकू ने दी तो दीपा जितनी खुश हुई वह महीनों तक सुशांत व रिंकू के मातापिता दोनों को समझ नहीं आया.

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April 22, 2022 at 09:14AM

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