Thursday 31 December 2020

New Year Special: नया कलैंडर-आखिर आकाश क्यों गुस्सा होकर चला गया

नए साल की पहली सुबह थी. बच्चों ने बिस्तर छोड़ने के साथ ही मुझे और आकाश को नए साल की मुबारकबाद दी. रसोई में जा कर मैं ने नववर्ष का विशेष व्यंजन बनाने के लिए सामग्री का चुनाव किया. फिर चाय ले कर मैं बाबूजी के कमरे में गई. आकाश वहीं पिता से सट कर बैठे थे. मैं ने स्टूल पर चाय रखी और आकाश से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘चाय पी कर बाजार निकल जाइए, सब्जी वगैरह ले आइए.’’

‘‘नए साल की शुरुआत गुलामी से?’’ आकाश ने आंखें तरेर कर कहा.

मैं कुछ कहती इस से पूर्व ही बाबूजी ने कहा, ‘‘घर का काम करना खुशी की बात होती है, गुलामी की नहीं.’’चाय पी कर ज्यों ही मैं उठने को हुई, चंदनजी का स्कूटर सरसराता हुआ आ कर रुक गया.

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‘‘नए साल की बहुतबहुत बधाई हो,’’ कह कर उन्होंने आकाश, बाबूजी एवं मुझे नमस्कार किया.

बाबूजी ने कहा, ‘‘नए साल का पहला मेहमान आया है. मुंह मीठा कराओ, दुलहन.’’

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‘‘जी, बाबूजी, अभी लाई,’’ कह कर ज्यों ही मैं उठने लगी, चंदनजी ने 2 प्लास्टिक के थैले मुझे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘एक में मिठाई है बच्चों के लिए, दूसरे में चिकन है, आकाश साहब के लिए.’’

‘‘और मेरे लिए?’’ बाबूजी ने शरारती बच्चों की तरह पूछा.

‘‘नए साल का कलैंडर और डायरी लाया हूं चाचाजी,’’ कह कर चंदनजी ने भारतीय जीवन बीमा निगम का एक खूबसूरत कलैंडर अपने थैले से निकाल कर दीवार पर टांग दिया. राजस्थानी वेशभूषा से सुसज्जित 8-10 युवतियां, परंपरागत आभूषणों से लदी नृत्य कर रही थीं. पृष्ठभूमि में चमकीली रेत और रेत पर पड़ती सूर्य की सुनहरी किरणें बहुत आकर्षक लग रही थीं. डायरी भी बेहद खूबसूरत थी.

‘‘इतना सब करने की क्या जरूरत थी?’’ बाबूजी ने स्नेहपूर्वक कहा.

‘‘आप के प्यार और सहयोग से इस वर्ष मैं ने रिकौर्ड व्यवसाय दिया है. बोनस भी भरपूर मिला है. आप लोगों को पहले जानता नहीं था, कुछ खिलायापिलाया नहीं. इसे एक बेटे की कमाई समझ कर स्वीकार कीजिए.’’

‘‘अच्छी बात है बेटे. मगर आज दिन का खाना तुम मेरे साथ खाओ तब मुझे आनंद आएगा,’’ बाबूजी ने कहा.

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‘‘ऐसा है चाचाजी, मुझे आज 7-8 और घनिष्ठ मित्रों के घर मिठाई पहुंचानी है. सुप्रियाजी के ससुर के लिए मछली लेनी है. इसलिए आज आप मुझे क्षमा कर दें. मेरा लाया कलैंडर हर पल आप के साथ है न,’’ कह कर चंदनजी ने आज्ञा ली और हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार किया.उन के जाने के बाद बाबूजी ने कहा, ‘‘दुलहन का यह सहकर्मी भला इंसान है. देखो तो, सब की रुचि के अनुसार नववर्ष की भेंट दे कर चला गया. आजकल के युग में ऐसे भलेमानुष दुर्लभ हैं. आकाश बेटे, तुम्हारा क्या विचार है?’’

‘‘मैं आप से विपरीत विचार रखता हूं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अति विनम्रता, अकारण विनम्रता व्यक्ति की धूर्तता पर पड़ा आवरण है. मुझे यह व्यक्ति मतलबी, धोखेबाज और…’’

आकाश की बात बीच में ही काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘आप को तो हर बात में मनोविज्ञान नजर आने लगता है. अकारण किसी पर संदेह करना कौन सा बड़प्पन है? कालेज में वे सब के सुखदुख में शामिल रहने वाले आदमी हैं.’’

‘‘ओहो, आप दोनों बहस करने बैठ गए. देखिए, चंदन चाचा का दिया, कलैंडर कितना खूबसूरत है,’’ बेटे ने पिता के गले में बांहें डाल कर लाड़ जताते हुए कहा.

‘‘वाह, साल का नया कलैंडर. बेटे, यह तो मछली को फंसाने के लिए फेंका गया चारा है…चारा. चंदन बीमा एजेंट है और नएनए लोगों को येनकेन प्रकारेण आकर्षित करना उस का खास शगल है,’’ आकाश ने मुंह बनाते हुए कहा और उठ कर स्नानघर में चले गए.

कालेज में सुप्रिया से भेंट हुई. वह मेरी अंतरंग सहेली थी. उस से मैं ने चंदन वाली बात बताई तो उस ने भी मेरे विचारों से सहमत होते हुए कहा, ‘‘ये पति लोग भी बड़े अजीब होते हैं, हमारे मुंह से किसी की तारीफ सुन ही नहीं सकते. कोई न कोई मीनमेख जरूर निकाल लेंगे. न हुआ तो उसे आवारा, बदचलन ही साबित कर देंगे.’’

‘‘ठीक कहती हो तुम. आकाश को भी हर चीज में गड़बड़ नजर आती है. पर मेरे बाबूजी बहुत भले आदमी हैं. वे ही मेरे सब से बड़े हिमायती हैं.’’

‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’ दूर से आते हुए चंदनजी ने कहा.

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‘‘जी, कुछ नहीं, नई समयसारणी की चर्चा हो रही थी. 2-2 पीरियड खाली रहने के बाद शाम तक क्लास…’’ सुप्रिया ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘लाइए, समयसारणी मुझे दे दीजिए और कक्षाएं कैसेकैसे ऐडजस्ट करनी हैं, इस पर पीछे लिख दीजिए. मैं इंचार्ज से कह कर ठीक करवा दूंगा,’’ चंदन ने विनम्रता से कहा.

सुप्रिया ने समयसारणी निकाली और इच्छानुसार हम दोनों की कक्षाएं निर्धारित कर कागज के पीछे लिख दीं. फिर कागज चंदन को देते हुए कहा, ‘‘इंचार्ज तो बड़े टेढ़े आदमी हैं, संभव है, इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’’

‘‘उन्हें समझाना और मनाना मेरा काम है, आप निश्ंचत रहें.’’

‘‘लो, चंदन बहुत ही नेक इंसान है. मैं ने उसे एक झूठी बात कही तो उस ने उस मुश्किल को भी आसान कर दिया,’’ सुप्रिया ने कहा.

‘‘चल, कैंटीन में बैठ कर चाय पीते हैं,’’ कह कर मैं ने सुप्रिया का हाथ थामा और कैंटीन की ओर बढ़ गई.

20 जनवरी को चंदनजी हमारी पदोन्नति का आदेश ले कर रसायनशास्त्र विभाग में पधारे. हमारी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. घर बैठे, बिना कुलपति, कुलसचिव की जीहुजूरी किए पदोन्नति हमारी कल्पना से परे थी, अविश्वसनीय थी. सब ने हमें बधाई दी और एक स्वर में कहा, ‘‘चंदन ने आप दोनों के लिए बहुत परिश्रम किया, उसे तो इनाम मिलना चाहिए.’’

इनाम शब्द कह कर कुछ लोग बड़े अजीब ढंग से मुसकराए, जो हमें अजीब लगा.

बाबूजी को जब मैं ने अपनी पदोन्नति का कागज दिया तो वे बेहद खुश हुए और चंदनजी को मन ही मन शुभकामनाएं दीं. दिन बीतते रहे. फरवरी माह में आयकर की विवरणी के संबंध में कार्यालय से एक नोटिस मिला. उस में चेतावनी थी कि अगर हम ने 40 हजार रुपयों का राष्ट्रीय बचतपत्र अथवा अन्य उपाय नहीं किए तो लगभग 8 हजार रुपए आयकर के रूप में जमा करने होंगे. हर वर्ष इस प्रकार की स्थिति आती थी और सामान्यतया आकाश की इच्छानुसार मैं आयकर ही देती आई थी. इस बार भी मेरे जिक्र करने पर आकाश ने कहा, ‘‘8 हजार रुपए बचाने के लिए 40 हजार रुपए निवेश करना हमारे लिए मुश्किल है. हाउसिंग बोर्ड को पैसे देने हैं, बच्चों का दाखिला है…आयकर दे देना.’’

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अकसर मैं वही करती थी जो आकाश चाहते थे. इस से 2 लाभ होते, एक तो परिणाम से मैं निश्ंिचत रहती. जो भी होता, अच्छा या बुरा, आकाश के ऊपर उस की जवाबदेही होती. दूसरे, इस से परिवार में असीम सुख एवं शांति रहती थी. दूसरे दिन दोपहर में मैं अपने ससुर के साथ बैठी पुरानी तसवीरों का अलबम पलट रही थी कि चंदनजी आ गए. बाबूजी को प्रणाम किया और मगही पान का बीड़ा उन को दे कर बोले, ‘‘इस बेटे की ओर से.’’

इधरउधर की बातें होने के बाद चाय की चुसकियों के साथ आयकर की चर्चा छिड़ गई. चंदन ने जीवन बीमा के सैकड़ों फायदों का बखान किया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरे पति आयकर देने के ही मूड में हैं.’’

‘‘वह तो ठीक है, परंतु आप सोचिए, सरकारी खजाने में 8 हजार रुपए जाने से सरकार को जो भी लाभ हो, हमें और आप को क्या लाभ है?’’ चंदन ने पूछा.

‘‘देखो बेटा, सरकार को जो पैसा आयकर के रूप में देते हैं, उसी से तो कल्याण कार्य होते हैं,’’ बाबूजी ने कहा.

‘‘पर चाचाजी, जो 8 हजार रुपए सपनाजी टैक्स के रूप में जमा करेंगी, केवल उतने का ही अगर बीमा करवा लें तो मालूम है, अगले 20 वर्षों में उन्हें लगभग 6 लाख रुपए बीमा कंपनी देगी.’’

‘‘हां, यह बात तो ठीक है, पर बाकी राशि तो टैक्स के रूप में भरनी ही होगी,’’ मैं ने 6 लाख रुपए का सपना देखते हुए कहा.

‘‘उस की चिंता आप मुझ पर छोड़ दें, मैं आप को कुछ ऋण दिला दूंगा. आप के आरडी अथवा बीमा के एवज में उन पैसों की अदायगी प्रतिमाह किस्त के रूप में हो जाएगी. पदोन्नति के बाद जो बढ़ोतरी हुई है, उन्हीं पैसों से वह सब हो जाएगा,’’ चंदनजी ने मुसकराते हुए आगे कहा, ‘‘तो लीजिए, यह फौर्म भर दीजिए, मुझे चार पैसे मिल जाएंगे कमीशन के रूप में और आप का भविष्य पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगा.’’

मैं ने ससुरजी से कहा, ‘‘जरा भीतर चलिए, बाबूजी.’’

‘‘क्या बात है, बेटी?’’ भीतर जा कर बाबूजी ने पूछा.

‘‘बाबूजी, मैं क्या करूं? आप के पुत्र टैक्स देने को कहते हैं, चंदनजी बीमा कराने को. चंदनजी के अलावा अन्य कोई ऐसा नहीं जो कालेज में हमारी समस्याओं को सुलझा सके.’’

‘‘तुम फौर्म पर दस्तखत कर दो, मैं आकाश को समझा दूंगा,’’ बाबूजी ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

मैं ने हस्ताक्षर कर फौर्म चंदनजी को लौटा दिया और बाकी कौलमों को उन्हें स्वयं भर देने का आग्रह किया. चंदनजी ने उन्हें भर दिया और प्रसन्न मन से चले गए. सबकुछ चंदनजी ने ही किया था. ऋण दिलाना, ऋण के पैसों से फिर बचतपत्र खरीद कर ला देना, बीमा की राशि जमा करवा देना वगैरहवगैरह. आकाश से हम ने न तो चर्चा की, न उन्होंने स्वयं कभी इस संबंध में पूछताछ की. एक दिन मैं कालेज से लौटी तो पितापुत्र दोनों मुंह फुलाए बैठे थे.

‘‘क्या बात है, आप लोग चुपचाप हैं?’’ मैं ने हिम्मत कर के पूछ लिया.

‘‘तो क्या जश्न मनाऊं? बीमा कराने का बड़ा शौक है न तुम्हें, पहले का कराया हुआ बीमा ही हम से नहीं संभल रहा है, ऊपर से यह सब…’’ कहते हुए उन्होंने बीमे का बौंड, जो रजिस्टर्ड डाक से आया था, मेरी ओर फेंक दिया.

पहले तो चोरी पकड़ी जाने के एहसास से मैं घबराई, फिर संभलते हुए कहा, ‘‘आप को तो मेरा लिया गया एक भी निर्णय सही नहीं लगता.’’

‘‘बकवास बंद करो, हमेशा उलटा सोचने की आदत है तुम्हारी. अरी पागल, बाबूजी तो सीधेसादे गृहस्थ ठहरे, ये क्या जानें आयकर और बीमावीमा को. इन्होंने इसलिए हां कर दी, क्योंकि तुम्हारे कथनानुसार चंदन तुम्हारी बहुत सहायता करता है. पर जान लो, तुम ने बीमा करा के उस का काम पूरा कर दिया. वह अब तुम से कोई भी मतलब नहीं रखेगा. बीमा न करातीं तो कम से कम वह मृगतृष्णा में ही तुम्हारी मदद करता रहता,’’ इतना कह कर आकाश मुसकरा दिए.

उन का मुसकराना देख बाबूजी हंस पड़े और बोले, ‘‘अब तुम भी हंसो दुलहन. आकाश का गुस्सा जाड़े की धूप की तरह है, बैठो तो सरकता जाए.’’

बहरहाल, वह साल गुजर गया, नया साल फिर आ गया. पूरे दिन मैं मन ही मन चंदनजी का इंतजार करती रही. पुराना कलैंडर उतर चुका था. उस की जगह खाली पड़ी थी. बाबूजी ने शाम को कहा, ‘‘चंदन कहता था कि वह हर साल इतना ही खूबसूरत नया कलैंडर दीवार पर टांगता रहेगा…आया नहीं?’’

‘‘वह अब कभी नहीं आएगा बाबूजी, नया कलैंडर ले कर वह किसी नए शिकार की टोह में निकला होगा,’’ आकाश ने कहा.

‘इंसान भूल भी तो सकता है, व्यस्त भी तो हो सकता है, बीमार भी तो पड़ सकता है. आप को तो बस…’ मैं ने बुदबुदाते हुए कहा. तभी फोन की घंटी बजी. चंदन ने मुबारकबाद दे कर कहा कि इस वर्ष नया कलैंडर मिला ही नहीं.

2 जनवरी को कालेज के बाद सुप्रिया ने कहा, ‘‘मेरी एक सहपाठिन यहां डाक्टर बन कर आई है. उस ने फोन किया था. चलो, आज उस के घर चल कर उसे नए साल की बधाई दे आएं.’’

रास्ते में सुप्रिया मुझे अपनी सहेली के स्वभाव के बारे में बताती रही. उस ने कहा कि वह किसी सहपाठी से प्यार करती है, इसलिए अब तक कुंआरी है.

मैं ने कहा, ‘‘तो शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

‘‘कैसे करेगी, प्रेमी तो शादीशुदा है. इसे जब तक मालूम हुआ, पानी सिर से ऊपर पहुंच चुका था. अब यह बिहार में और वह गुजरात में, अपनेअपने दिलों में प्यार छिपाए बैठे हैं.’’

‘‘यह तो पागलपन है, छिछोरापन है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्या राधा पागल थी? कृष्ण छिछोरे थे?’’ उस ने पूछा.

‘‘अब मैं क्या कहूं. वह हमारी तरह साधारण…’’ बात बीच में ही रुक गई. डा. शोभना का निवास आ चुका था.

गैलरी में हम दोनों ठिठक गईं. चंदनजी, शोभना के पिताजी के लिए ताजी मछलियां, डायरी और कलैंडर ले कर हाजिर थे. सुप्रिया ने मुझे चुप रहने का संकेत किया.

चंदनजी कह रहे थे, ‘‘शोभनाजी, 2 माह पूर्व आप आईं, मगर समाजसेवा से मुझे फुरसत कहां जो इतनी महान त्याग की मूर्ति के दर्शन कर सकूं. आज सोचा आप के पिताजी मेरे पिताजी जैसे हैं. कोई ला कर दे, न दे, मैं हर साल पिताजी को पुत्र की तरह नया कलैंडर, नई डायरी और ताजी मछलियां दे कर बधाई दूंगा.’’

‘‘बड़ा सुंदर कलैंडर है,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘सीमित मिलता है, कल से ही खासखास मित्रों को बांट रहा हूं. यह अंतिम आप के घर की दीवार पर मेरी याद…’’

मैं ने कहा, ‘‘चंदनजी, हमारा कलैंडर कहां गया?’’

‘‘अरे, तुम दोनों कब आईं?’’ शोभना ने उठ कर स्वागत करते हुए कहा.

‘‘जब ये महोदय तुम्हें खास मित्र, त्याग की मूर्ति और न जाने क्याक्या कह रहे थे,’’ सुप्रिया ने कहा.

चंदनजी को काटो तो खून नहीं. दीवार पर कलैंडर टांगते हुए उन के हाथ रुक से गए. अचानक उन्होंने, ‘नमस्ते पिताजी, नमस्ते शोभनाजी,’ कहा और चले गए.

‘‘बड़ा अजीब आदमी है. अभी साथ में खाना खाने का प्रोग्राम बना रहा था, तुम्हें देखते ही…’’

शोभना की बात बीच में ही काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘दुम दबा कर भाग गया.’’ और फिर वहां समवेत ठहाका गूंज उठा

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नए साल की पहली सुबह थी. बच्चों ने बिस्तर छोड़ने के साथ ही मुझे और आकाश को नए साल की मुबारकबाद दी. रसोई में जा कर मैं ने नववर्ष का विशेष व्यंजन बनाने के लिए सामग्री का चुनाव किया. फिर चाय ले कर मैं बाबूजी के कमरे में गई. आकाश वहीं पिता से सट कर बैठे थे. मैं ने स्टूल पर चाय रखी और आकाश से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘चाय पी कर बाजार निकल जाइए, सब्जी वगैरह ले आइए.’’

‘‘नए साल की शुरुआत गुलामी से?’’ आकाश ने आंखें तरेर कर कहा.

मैं कुछ कहती इस से पूर्व ही बाबूजी ने कहा, ‘‘घर का काम करना खुशी की बात होती है, गुलामी की नहीं.’’चाय पी कर ज्यों ही मैं उठने को हुई, चंदनजी का स्कूटर सरसराता हुआ आ कर रुक गया.

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‘‘नए साल की बहुतबहुत बधाई हो,’’ कह कर उन्होंने आकाश, बाबूजी एवं मुझे नमस्कार किया.

बाबूजी ने कहा, ‘‘नए साल का पहला मेहमान आया है. मुंह मीठा कराओ, दुलहन.’’

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‘‘जी, बाबूजी, अभी लाई,’’ कह कर ज्यों ही मैं उठने लगी, चंदनजी ने 2 प्लास्टिक के थैले मुझे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘एक में मिठाई है बच्चों के लिए, दूसरे में चिकन है, आकाश साहब के लिए.’’

‘‘और मेरे लिए?’’ बाबूजी ने शरारती बच्चों की तरह पूछा.

‘‘नए साल का कलैंडर और डायरी लाया हूं चाचाजी,’’ कह कर चंदनजी ने भारतीय जीवन बीमा निगम का एक खूबसूरत कलैंडर अपने थैले से निकाल कर दीवार पर टांग दिया. राजस्थानी वेशभूषा से सुसज्जित 8-10 युवतियां, परंपरागत आभूषणों से लदी नृत्य कर रही थीं. पृष्ठभूमि में चमकीली रेत और रेत पर पड़ती सूर्य की सुनहरी किरणें बहुत आकर्षक लग रही थीं. डायरी भी बेहद खूबसूरत थी.

‘‘इतना सब करने की क्या जरूरत थी?’’ बाबूजी ने स्नेहपूर्वक कहा.

‘‘आप के प्यार और सहयोग से इस वर्ष मैं ने रिकौर्ड व्यवसाय दिया है. बोनस भी भरपूर मिला है. आप लोगों को पहले जानता नहीं था, कुछ खिलायापिलाया नहीं. इसे एक बेटे की कमाई समझ कर स्वीकार कीजिए.’’

‘‘अच्छी बात है बेटे. मगर आज दिन का खाना तुम मेरे साथ खाओ तब मुझे आनंद आएगा,’’ बाबूजी ने कहा.

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‘‘ऐसा है चाचाजी, मुझे आज 7-8 और घनिष्ठ मित्रों के घर मिठाई पहुंचानी है. सुप्रियाजी के ससुर के लिए मछली लेनी है. इसलिए आज आप मुझे क्षमा कर दें. मेरा लाया कलैंडर हर पल आप के साथ है न,’’ कह कर चंदनजी ने आज्ञा ली और हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार किया.उन के जाने के बाद बाबूजी ने कहा, ‘‘दुलहन का यह सहकर्मी भला इंसान है. देखो तो, सब की रुचि के अनुसार नववर्ष की भेंट दे कर चला गया. आजकल के युग में ऐसे भलेमानुष दुर्लभ हैं. आकाश बेटे, तुम्हारा क्या विचार है?’’

‘‘मैं आप से विपरीत विचार रखता हूं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अति विनम्रता, अकारण विनम्रता व्यक्ति की धूर्तता पर पड़ा आवरण है. मुझे यह व्यक्ति मतलबी, धोखेबाज और…’’

आकाश की बात बीच में ही काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘आप को तो हर बात में मनोविज्ञान नजर आने लगता है. अकारण किसी पर संदेह करना कौन सा बड़प्पन है? कालेज में वे सब के सुखदुख में शामिल रहने वाले आदमी हैं.’’

‘‘ओहो, आप दोनों बहस करने बैठ गए. देखिए, चंदन चाचा का दिया, कलैंडर कितना खूबसूरत है,’’ बेटे ने पिता के गले में बांहें डाल कर लाड़ जताते हुए कहा.

‘‘वाह, साल का नया कलैंडर. बेटे, यह तो मछली को फंसाने के लिए फेंका गया चारा है…चारा. चंदन बीमा एजेंट है और नएनए लोगों को येनकेन प्रकारेण आकर्षित करना उस का खास शगल है,’’ आकाश ने मुंह बनाते हुए कहा और उठ कर स्नानघर में चले गए.

कालेज में सुप्रिया से भेंट हुई. वह मेरी अंतरंग सहेली थी. उस से मैं ने चंदन वाली बात बताई तो उस ने भी मेरे विचारों से सहमत होते हुए कहा, ‘‘ये पति लोग भी बड़े अजीब होते हैं, हमारे मुंह से किसी की तारीफ सुन ही नहीं सकते. कोई न कोई मीनमेख जरूर निकाल लेंगे. न हुआ तो उसे आवारा, बदचलन ही साबित कर देंगे.’’

‘‘ठीक कहती हो तुम. आकाश को भी हर चीज में गड़बड़ नजर आती है. पर मेरे बाबूजी बहुत भले आदमी हैं. वे ही मेरे सब से बड़े हिमायती हैं.’’

‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’ दूर से आते हुए चंदनजी ने कहा.

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‘‘जी, कुछ नहीं, नई समयसारणी की चर्चा हो रही थी. 2-2 पीरियड खाली रहने के बाद शाम तक क्लास…’’ सुप्रिया ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘लाइए, समयसारणी मुझे दे दीजिए और कक्षाएं कैसेकैसे ऐडजस्ट करनी हैं, इस पर पीछे लिख दीजिए. मैं इंचार्ज से कह कर ठीक करवा दूंगा,’’ चंदन ने विनम्रता से कहा.

सुप्रिया ने समयसारणी निकाली और इच्छानुसार हम दोनों की कक्षाएं निर्धारित कर कागज के पीछे लिख दीं. फिर कागज चंदन को देते हुए कहा, ‘‘इंचार्ज तो बड़े टेढ़े आदमी हैं, संभव है, इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’’

‘‘उन्हें समझाना और मनाना मेरा काम है, आप निश्ंचत रहें.’’

‘‘लो, चंदन बहुत ही नेक इंसान है. मैं ने उसे एक झूठी बात कही तो उस ने उस मुश्किल को भी आसान कर दिया,’’ सुप्रिया ने कहा.

‘‘चल, कैंटीन में बैठ कर चाय पीते हैं,’’ कह कर मैं ने सुप्रिया का हाथ थामा और कैंटीन की ओर बढ़ गई.

20 जनवरी को चंदनजी हमारी पदोन्नति का आदेश ले कर रसायनशास्त्र विभाग में पधारे. हमारी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. घर बैठे, बिना कुलपति, कुलसचिव की जीहुजूरी किए पदोन्नति हमारी कल्पना से परे थी, अविश्वसनीय थी. सब ने हमें बधाई दी और एक स्वर में कहा, ‘‘चंदन ने आप दोनों के लिए बहुत परिश्रम किया, उसे तो इनाम मिलना चाहिए.’’

इनाम शब्द कह कर कुछ लोग बड़े अजीब ढंग से मुसकराए, जो हमें अजीब लगा.

बाबूजी को जब मैं ने अपनी पदोन्नति का कागज दिया तो वे बेहद खुश हुए और चंदनजी को मन ही मन शुभकामनाएं दीं. दिन बीतते रहे. फरवरी माह में आयकर की विवरणी के संबंध में कार्यालय से एक नोटिस मिला. उस में चेतावनी थी कि अगर हम ने 40 हजार रुपयों का राष्ट्रीय बचतपत्र अथवा अन्य उपाय नहीं किए तो लगभग 8 हजार रुपए आयकर के रूप में जमा करने होंगे. हर वर्ष इस प्रकार की स्थिति आती थी और सामान्यतया आकाश की इच्छानुसार मैं आयकर ही देती आई थी. इस बार भी मेरे जिक्र करने पर आकाश ने कहा, ‘‘8 हजार रुपए बचाने के लिए 40 हजार रुपए निवेश करना हमारे लिए मुश्किल है. हाउसिंग बोर्ड को पैसे देने हैं, बच्चों का दाखिला है…आयकर दे देना.’’

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अकसर मैं वही करती थी जो आकाश चाहते थे. इस से 2 लाभ होते, एक तो परिणाम से मैं निश्ंिचत रहती. जो भी होता, अच्छा या बुरा, आकाश के ऊपर उस की जवाबदेही होती. दूसरे, इस से परिवार में असीम सुख एवं शांति रहती थी. दूसरे दिन दोपहर में मैं अपने ससुर के साथ बैठी पुरानी तसवीरों का अलबम पलट रही थी कि चंदनजी आ गए. बाबूजी को प्रणाम किया और मगही पान का बीड़ा उन को दे कर बोले, ‘‘इस बेटे की ओर से.’’

इधरउधर की बातें होने के बाद चाय की चुसकियों के साथ आयकर की चर्चा छिड़ गई. चंदन ने जीवन बीमा के सैकड़ों फायदों का बखान किया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरे पति आयकर देने के ही मूड में हैं.’’

‘‘वह तो ठीक है, परंतु आप सोचिए, सरकारी खजाने में 8 हजार रुपए जाने से सरकार को जो भी लाभ हो, हमें और आप को क्या लाभ है?’’ चंदन ने पूछा.

‘‘देखो बेटा, सरकार को जो पैसा आयकर के रूप में देते हैं, उसी से तो कल्याण कार्य होते हैं,’’ बाबूजी ने कहा.

‘‘पर चाचाजी, जो 8 हजार रुपए सपनाजी टैक्स के रूप में जमा करेंगी, केवल उतने का ही अगर बीमा करवा लें तो मालूम है, अगले 20 वर्षों में उन्हें लगभग 6 लाख रुपए बीमा कंपनी देगी.’’

‘‘हां, यह बात तो ठीक है, पर बाकी राशि तो टैक्स के रूप में भरनी ही होगी,’’ मैं ने 6 लाख रुपए का सपना देखते हुए कहा.

‘‘उस की चिंता आप मुझ पर छोड़ दें, मैं आप को कुछ ऋण दिला दूंगा. आप के आरडी अथवा बीमा के एवज में उन पैसों की अदायगी प्रतिमाह किस्त के रूप में हो जाएगी. पदोन्नति के बाद जो बढ़ोतरी हुई है, उन्हीं पैसों से वह सब हो जाएगा,’’ चंदनजी ने मुसकराते हुए आगे कहा, ‘‘तो लीजिए, यह फौर्म भर दीजिए, मुझे चार पैसे मिल जाएंगे कमीशन के रूप में और आप का भविष्य पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगा.’’

मैं ने ससुरजी से कहा, ‘‘जरा भीतर चलिए, बाबूजी.’’

‘‘क्या बात है, बेटी?’’ भीतर जा कर बाबूजी ने पूछा.

‘‘बाबूजी, मैं क्या करूं? आप के पुत्र टैक्स देने को कहते हैं, चंदनजी बीमा कराने को. चंदनजी के अलावा अन्य कोई ऐसा नहीं जो कालेज में हमारी समस्याओं को सुलझा सके.’’

‘‘तुम फौर्म पर दस्तखत कर दो, मैं आकाश को समझा दूंगा,’’ बाबूजी ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

मैं ने हस्ताक्षर कर फौर्म चंदनजी को लौटा दिया और बाकी कौलमों को उन्हें स्वयं भर देने का आग्रह किया. चंदनजी ने उन्हें भर दिया और प्रसन्न मन से चले गए. सबकुछ चंदनजी ने ही किया था. ऋण दिलाना, ऋण के पैसों से फिर बचतपत्र खरीद कर ला देना, बीमा की राशि जमा करवा देना वगैरहवगैरह. आकाश से हम ने न तो चर्चा की, न उन्होंने स्वयं कभी इस संबंध में पूछताछ की. एक दिन मैं कालेज से लौटी तो पितापुत्र दोनों मुंह फुलाए बैठे थे.

‘‘क्या बात है, आप लोग चुपचाप हैं?’’ मैं ने हिम्मत कर के पूछ लिया.

‘‘तो क्या जश्न मनाऊं? बीमा कराने का बड़ा शौक है न तुम्हें, पहले का कराया हुआ बीमा ही हम से नहीं संभल रहा है, ऊपर से यह सब…’’ कहते हुए उन्होंने बीमे का बौंड, जो रजिस्टर्ड डाक से आया था, मेरी ओर फेंक दिया.

पहले तो चोरी पकड़ी जाने के एहसास से मैं घबराई, फिर संभलते हुए कहा, ‘‘आप को तो मेरा लिया गया एक भी निर्णय सही नहीं लगता.’’

‘‘बकवास बंद करो, हमेशा उलटा सोचने की आदत है तुम्हारी. अरी पागल, बाबूजी तो सीधेसादे गृहस्थ ठहरे, ये क्या जानें आयकर और बीमावीमा को. इन्होंने इसलिए हां कर दी, क्योंकि तुम्हारे कथनानुसार चंदन तुम्हारी बहुत सहायता करता है. पर जान लो, तुम ने बीमा करा के उस का काम पूरा कर दिया. वह अब तुम से कोई भी मतलब नहीं रखेगा. बीमा न करातीं तो कम से कम वह मृगतृष्णा में ही तुम्हारी मदद करता रहता,’’ इतना कह कर आकाश मुसकरा दिए.

उन का मुसकराना देख बाबूजी हंस पड़े और बोले, ‘‘अब तुम भी हंसो दुलहन. आकाश का गुस्सा जाड़े की धूप की तरह है, बैठो तो सरकता जाए.’’

बहरहाल, वह साल गुजर गया, नया साल फिर आ गया. पूरे दिन मैं मन ही मन चंदनजी का इंतजार करती रही. पुराना कलैंडर उतर चुका था. उस की जगह खाली पड़ी थी. बाबूजी ने शाम को कहा, ‘‘चंदन कहता था कि वह हर साल इतना ही खूबसूरत नया कलैंडर दीवार पर टांगता रहेगा…आया नहीं?’’

‘‘वह अब कभी नहीं आएगा बाबूजी, नया कलैंडर ले कर वह किसी नए शिकार की टोह में निकला होगा,’’ आकाश ने कहा.

‘इंसान भूल भी तो सकता है, व्यस्त भी तो हो सकता है, बीमार भी तो पड़ सकता है. आप को तो बस…’ मैं ने बुदबुदाते हुए कहा. तभी फोन की घंटी बजी. चंदन ने मुबारकबाद दे कर कहा कि इस वर्ष नया कलैंडर मिला ही नहीं.

2 जनवरी को कालेज के बाद सुप्रिया ने कहा, ‘‘मेरी एक सहपाठिन यहां डाक्टर बन कर आई है. उस ने फोन किया था. चलो, आज उस के घर चल कर उसे नए साल की बधाई दे आएं.’’

रास्ते में सुप्रिया मुझे अपनी सहेली के स्वभाव के बारे में बताती रही. उस ने कहा कि वह किसी सहपाठी से प्यार करती है, इसलिए अब तक कुंआरी है.

मैं ने कहा, ‘‘तो शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

‘‘कैसे करेगी, प्रेमी तो शादीशुदा है. इसे जब तक मालूम हुआ, पानी सिर से ऊपर पहुंच चुका था. अब यह बिहार में और वह गुजरात में, अपनेअपने दिलों में प्यार छिपाए बैठे हैं.’’

‘‘यह तो पागलपन है, छिछोरापन है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्या राधा पागल थी? कृष्ण छिछोरे थे?’’ उस ने पूछा.

‘‘अब मैं क्या कहूं. वह हमारी तरह साधारण…’’ बात बीच में ही रुक गई. डा. शोभना का निवास आ चुका था.

गैलरी में हम दोनों ठिठक गईं. चंदनजी, शोभना के पिताजी के लिए ताजी मछलियां, डायरी और कलैंडर ले कर हाजिर थे. सुप्रिया ने मुझे चुप रहने का संकेत किया.

चंदनजी कह रहे थे, ‘‘शोभनाजी, 2 माह पूर्व आप आईं, मगर समाजसेवा से मुझे फुरसत कहां जो इतनी महान त्याग की मूर्ति के दर्शन कर सकूं. आज सोचा आप के पिताजी मेरे पिताजी जैसे हैं. कोई ला कर दे, न दे, मैं हर साल पिताजी को पुत्र की तरह नया कलैंडर, नई डायरी और ताजी मछलियां दे कर बधाई दूंगा.’’

‘‘बड़ा सुंदर कलैंडर है,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘सीमित मिलता है, कल से ही खासखास मित्रों को बांट रहा हूं. यह अंतिम आप के घर की दीवार पर मेरी याद…’’

मैं ने कहा, ‘‘चंदनजी, हमारा कलैंडर कहां गया?’’

‘‘अरे, तुम दोनों कब आईं?’’ शोभना ने उठ कर स्वागत करते हुए कहा.

‘‘जब ये महोदय तुम्हें खास मित्र, त्याग की मूर्ति और न जाने क्याक्या कह रहे थे,’’ सुप्रिया ने कहा.

चंदनजी को काटो तो खून नहीं. दीवार पर कलैंडर टांगते हुए उन के हाथ रुक से गए. अचानक उन्होंने, ‘नमस्ते पिताजी, नमस्ते शोभनाजी,’ कहा और चले गए.

‘‘बड़ा अजीब आदमी है. अभी साथ में खाना खाने का प्रोग्राम बना रहा था, तुम्हें देखते ही…’’

शोभना की बात बीच में ही काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘दुम दबा कर भाग गया.’’ और फिर वहां समवेत ठहाका गूंज उठा

The post New Year Special: नया कलैंडर-आखिर आकाश क्यों गुस्सा होकर चला गया appeared first on Sarita Magazine.

January 01, 2021 at 10:00AM

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