Thursday 31 December 2020

New Year Special: एक नया सवेरा- रेणु को मुकेश की बहन से क्या दिक्कत था?

प्रधानाचार्या ने पठनपाठन को ले कर सभी शिक्षिकाओं से मीटिंग की थी. इसी कारण रेणु को स्कूल से निकलने में देर हो गई, घर पहुंचतेपहुंचते 5 बज गए. जैसे ही वह घर में घुसी तो देखा कि उस के महल्ले की औरतों के साथ उस की सास और ननदों की पंचायत चालू थी. उस ने मन ही मन सोचा कि सिवा इन के पास पंचायतबाजी और गपशप करने के, कोई काम भी तो नहीं है. सारा दिन दूसरों के घरों की बुराई, एकदूसरे की चुगली और महल्ले की खबरों का नमकमिर्च लगा कर बखान करना, बस यही काम था उन का. कपड़े बदल कर, हाथमुंह धो कर वह वापस कमरे में आई तो उस की नजर घड़ी पर पड़ी. शाम के 6 बज चुके थे. ‘मुकेश अब आते ही होंगे’ यह सोच कर वह रसोई में जा कर चाय बनाने लगी. साथसाथ चिप्स भी तलने लगी.

रेणु का विवाह उस परिवार के इकलौते लड़के मुकेश के साथ हुआ था. घर के खर्चों को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसे नौकरी भी करनी पड़ी थी और घर का भी सारा काम करना पड़ता था, जबकि ससुराल में 1 अविवाहित ननद थी और 2 विवाहित, जिन में से एक न एक घूमफिर कर मायके आती ही रहती थी. इन सब ने मिल कर रेणु का जीना हराम कर रखा था. सारा दिन बैठ कर गपें मारना, टीवी देखना और रेणु के खिलाफ मां के कान भरना, बस यही उन का काम होता था.

ये भी पढ़ें-बहुत देर कर दी-भाग 1: हानिया की दीवानी कौन थी?

अभी वह चाय कपों में डाल ही रही थी कि मुकेश आ गए. मेज पर चाय के कपों को देख कर बोले, ‘‘वाह, क्या बात है. ठीक समय पर आ गया मैं.’’

तभी चापलूसी के अंदाज में छोटी ननद बोली, ‘‘भैया, देखिए न आप के लिए मैं ने चिप्स भी तले हैं.’’

रेणु यह सुन मन ही मन कुढ़ कर रह गई. कुछ कह नहीं पाई क्योंकि सास जो सामने बैठी थी.

बहन की बात सुन कर मुकेश रेणु की ओर देख हंसते हुए बोले, ‘‘देखा, मेरी बहनें मेरे खानेपीने का कितना खयाल रखती हैं.’’

यह सुन कर रेणु के तनबदन में आग लग गई पर वह एक समझदार, शिक्षित युवती थी. घर के माहौल को तनावपूर्ण नहीं बनाना चाहती थी, अतएव चुप रही. मुकेश अपनी मां और बहनों से काफी प्रभावित रहते थे. य-पि रेणु के प्रति उन का रवैया खराब न था मगर उन की आदत कुछ ऐसी थी कि वे मां और बहन के विरुद्ध एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करते थे.

‘‘भैया, शाम के खाने में क्या बनाऊं?’’ छोटी ननद बोली.

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‘‘ऐसा करो कि आलू के परांठे और मटरपनीर की सब्जी बना लो,’’ मुकेश ने उत्तर दिया.

रेणु मन ही मन भन्ना गई कि बातें तो ये ऐसी करती हैं कि मानो सारा काम यही करती हों जबकि हकीकत तो यह थी कि इन को करनाधरना कुछ नहीं होता, सिवा मुकेश के सामने चापलूसी करने के.

चाय पी कर रेणु कपप्लेटें उठा कर रसोई में आ कर उन्हें साफ करने लगी. मगर किसी भी ननद से यह नहीं हुआ कि आखिर भाभी औफिस से थकहार कर आती हैं, उन की जरा सी मदद ही कर दें.

ननदों द्वारा उस के काम में छींटाकशी और नुक्ताचीनी करना प्रतिदिन का काम बन गया था. रेणु को अपमान का घूंट पी कर चुप रह जाना पड़ता था. मन ही मन सोचती कि मांजी का बस चले तो दोनों विवाहिता बेटियों को बुला कर यहीं रखें. उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं कि इस महंगाई के जमाने में, इस थोड़ी सी कमाई में अपना ही खर्च ठीक से नहीं चल पाता, ऊपर से ननदों का आनाजाना जो लगा रहता, सो अलग. पर इन सब बातों से उन्हें क्या मतलब?

अगर कभी रेणु कुछ कहे भी, तो वे कहतीं, ‘मैं कौन सी तुम्हारी कमाई पर डाका डाल रही हूं, मैं तो अपने बेटे की कमाई खर्च करती हूं. आखिर वह मेरा बेटा है. उस पर मेरा अधिकार है.’

मुकेश तो इन मामलों में बोलते ही न थे, न ही वे जानते थे. वे तो मां के सामने हमेशा आज्ञाकारी बेटा बने रहते और मांजी उन की कमाई इसी तरह लुटाती रहतीं.

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रेणु ने रसोई में आ कर प्रैशरकुकर में आलू चढ़ा दिए. तभी छोटी ननद आ कर बोली, ‘‘भाभी, मैं भी सीरियल देखने जा रही हूं, बाकी काम आप निबटा लेना.’’

रेणु ने मन ही मन सोचा कि यह तो उन लोगों का रोज का काम है. बस, भैया या फिर उस के मायके से कोई आ जाए तो दिखावे के लिए उस के इर्दगिर्द घूमती रहेंगी. खैर, यह कोई एक दिन की समस्या नहीं है. और उस ने अपने विचारों को किनारे झटक कर एक चूल्हे पर सब्जी चढ़ा दी और दूसरे पर परांठे सेंकने लगी. इधर उस ने परांठे सेंक कर खत्म किए कि सब लोग खाने बैठ गए. सब को परोसनेखिलाने के बाद जो कुछ भी बचा, उसे खा कर वह उठ गई. रात काफी देर तक बरतन आदि साफ कर जब वह अपने कमरे में पहुंची तो मुकेश जाग ही रहे थे. वे कोई पत्रिका पढ़ने में तल्लीन थे. रेणु को देख कर बोले, ‘‘आज तो तुम ने काफी देर लगा दी?’’

‘‘जल्दी आ जाती तो घर के ये काम कौन करता?’’

‘‘क्या घर में मां और बहनें हाथ नहीं बंटातीं?’’

‘‘पहले कभी हाथ बंटाया है जो आज बंटाएं,’’ रेणु ने उत्तर दिया.

‘‘क्यों तुम हमेशा झूठ बात कहती हो, मेरे सामने तो वे सब तुम्हारी मदद करती रहती हैं?’’

‘‘बस, उतनी ही देर जितनी देर आप घर में रहते हैं.’’

‘‘मुझे तो ऐसा नहीं लगता,’’ मुकेश बोला.

बात को आगे न बढ़ने देने के उद्देश्य से रेणु चुप रही.

रेणु जब सुबह सो कर उठी तो देखा कि भोर की किरणें खिड़की के रास्ते कमरे में आहिस्ताआहिस्ता प्रवेश कर रही थीं. वह जल्दी से उठ कर स्नानघर की ओर चल दी, क्योंकि उसे मालूम था कि उस की सास और ननदों में से कोई भी जल्दी सो कर उठने वाला नहीं है. खाना बना कर उस दिन रेणु तैयार हो कर औफिस चल दी. तब तक उस की सास उठ गई थी, जबकि ननदें तब भी सो ही रही थीं. सुबह रेणु कपड़े धो कर छत पर सूखने के लिए डाल गई थी, सो, शाम को जब वह औफिस से लौटी तो उन्हें उठाने के लिए छत पर गई. कपड़ों को ले कर लौट ही रही थी कि न जाने कैसे उस का पैर फिसला और वह धड़ाम से 7-8 सीढि़यां लुढ़कती हुई आ कर आंगन में गिर गई. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गई थी. सास और ननदों के शोर मचाने पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. महल्ले के किसी व्यक्ति ने मुकेश को खबर कर दी थी. सो, वे भी बुरी तरह घबराए हुए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने तुरंत रेणु को आपातकालीन कक्ष में ले जा कर उस का इलाज शुरू कर दिया. उस के सिर में काफी चोट आ गई थी. 4-5 टांके लगाने पड़े. कुछ देर पश्चात सीनियर डाक्टर ने कहा, ‘‘दाहिने पैर की हड्डी टूट गई है. उस पर प्लास्टर चढ़ाना होगा.’’ काफी देर रात तक उस का उपचार चलता रहा. मुकेश ने पूरी रात जाग कर गुजार दी. जब रेणु को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पट्टियों से बंधा हुआ पाया. उस ने कराहते हुए पूछा, ‘‘मैं कहां हूं, और यह मुझे क्या हो गया है?’’

‘‘तुम्हें कुछ नहीं हुआ है. बस, सिर व पैर में थोड़ी सी चोट आ गई है,’’ मुकेश ने उस के सिर पर अपनत्व के साथ हाथ फेरते हुए जवाब दिया.

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एक हफ्ते बाद रेणु को अस्पताल से छुट्टी देते हुए डाक्टर ने मुकेश और साथ में खड़ी उस की मां को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘मांजी, अब  बहू को 3 महीने के पूर्ण आराम की आवश्यकता है. और हां, मरीज को हर रोज दूध, फल, जूस आदि दिया जाए.’’

घर पहुंच कर मुकेश ने उस का बिस्तर खिड़की के किनारे लगा दिया, जिस से खुली हवा भी आती रहे और बाहर के दृश्य से रेणु का मन भी बहला रहे. इधर रेणु को 3 महीने तक लगातार पूर्ण आराम करने की बात सुन कर उस की सास छोटी बेटी से कहने लगी, ‘‘बेटी, अब घर का काम कैसे होगा? हम लोगों ने तो काम करना ही छोड़ दिया था. सारा काम बहू ही करती थी. फिर, मैं कुछ करना भी चाहती थी तो तू मना कर देती थी.’’

दूसरे दिन मुकेश को औफिस जाना था. उन्हें न समय से चाय मिल सकी और न ही नाश्ता. खाने की मेज पर पहुंचते ही उन की तबीयत खिन्न हो गई क्योंकि मां ने खिचड़ी बना कर रखी थी. मुकेश को खिचड़ी बिलकुल पसंद न थी. जैसेतैसे थोड़ी सी खिचड़ी खा कर मुकेश ने दफ्तर का रास्ता लिया. पिछले 15 दिनों से मुकेश देख रहे थे कि घर की सारी व्यवस्था बिलकुल चरमरा गई थी. घर में कोई भी काम समय से पूरा न होता था. न ढंग से नाश्ता बनता, न समय से चाय मिलती और न ही समय पर खाना मिलता. इधरउधर गंदे बरतन पड़े रहते. जबकि रेणु के ठीक रहने पर घर का कोई भी काम अधूरा न रहता था.

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आखिर एक दिन मुकेश ने गुस्से में आ कर मां के सामने ही कह दिया. छोटी बहन भी खड़ी सुन रही थी, ‘‘इन दिनों आखिर घर को क्या हो गया है? कोई भी काम समय पर, सलीके से क्यों नहीं होता? आखिर पहले इस घर का सारा काम कौन करता था? कैसे समय पर चायनाश्ता, समय पर खाना, कपड़ेलत्ते धुले हुए और सारे घर में झाड़ूपोंछा लगा होता था. हर सामान करीने से सजा और अपनी जगह मिलता था, जबकि अब पूरा घर कूड़ाघर में तबदील हो चुका है. हर सामान अपनी जगह से गायब, कपड़े गंदे, जहांतहां धूल की परतें और हर जगह मक्खियां भिनभिनाती हुईं. आखिर यह घर है या कबाड़खाना?’’

‘‘भैया, हम लोग पूरी कोशिश करते हैं, फिर भी थोड़ीबहुत कमी रह ही जाती है,’’ छोटी बहन बोली.

अब मां और छोटी बहन कहें तो क्या कहें? कैसे अपनी गलती स्वीकार करें? अपनी गलती स्वीकार करने का मतलब था कि इस से पहले वे रेणु के साथ दुर्व्यवहार करती थीं. मगर अब झूठ का परदाफाश होना ही था. आखिर कितने दिन सचाई को झुठलाया जाता.

एक दिन शाम को मां चौके में खाना बना रही थीं जबकि उन की उस दिन तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने छोटी बेटी को आवाज दे कर कहा, ‘‘बेटी, जरा मेरी मदद कर दे. आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ बेटी रानी आराम से लेट कर टीवी पर फिल्म देख रही थी, अतएव उस ने वहीं से लेटेलेटे उत्तर दिया, ‘‘क्या मां, थोड़े से काम के लिए भी पूरा घर सिर पर उठा रखा है. जरा सा काम क्या करना पड़ा कि मेरी नाक में दम कर दिया है.’’

अपनी ही जाई संतान का टके सा उत्तर सुन कर मां का चेहरा उतर गया. उन्हें अपनी बेटी से ऐसी आशा न थी. वे सोचने लगीं कि रेणु है तो बहू पर उस ने कभी भी उन की किसी बात का पलट कर जवाब नहीं दिया. हमेशा मांजीमांजी कहती उस की जबान नहीं थकती जबकि वे हमेशा उस के हर काम में नुक्ताचीनी करतीं. इन्हीं बेटियों के कहने पर वे रेणु के साथ दुर्व्यवहार करतीं, छींटाकशी करतीं. अब तो वह बिस्तर पर पड़ी है. उस के साथ ज्यादती करना गुनाह होगा. फिर बहू भी तो बेटी ही होती है.

मांजी खाना बनाते हुए सोचती जा रही थीं कि रेणु भी आखिर किसी की बेटी है. फिर उस ने इस घर को सजानेसंवारने में क्या कमी छोड़ी है. मुकेश तो सारा दिन घर पर रहता नहीं, और यह छुटकी सारा दिन इधरउधर कूदा करती है. कल को इस की शादी हुई नहीं कि फुर्र से चिडि़या की तरह उड़ जाएगी और रह जाऊंगी मैं अकेली. फिर मेरी सेवा कौन करेगा? बुढ़ापे में तो बहू को ही काम में आना है. कभी कोई हादसा हो गया तो सिवा बहू के, कोई देखभाल करने वाला न होगा. बेटियों का क्या, 2-4 दिनों के लिए आ कर खिसक लेंगी. काम तो आएगी बहू ही, तो फिर असली बेटी तो बहू ही हुई…एक के बाद एक विचार आजा रहे थे.

अब मांजी ने रेणु की देखभाल कायदे से करनी शुरू कर दी. उसे समय पर दवा देतीं, चाय देतीं, जूस देतीं और पास बैठ कर घंटों उस से बातचीत करती थीं.

तीसरा महीना खत्म होतेहोते रेणु का स्वास्थ्य काफी सुधर गया. अब उस के पैर का प्लास्टर भी काट दिया गया था. फिर भी डाक्टर ने उसे किसी भी प्रकार का काम करने के लिए मना किया था. रेणु ने सुबह उठ कर चाय बनाने की कोशिश की तो मांजी ने उस का हाथ पकड़ कर उसे कुरसी पर बिठा दिया. फिर उन्होंने छुटकी को बुला कर डांटते हुए चाय बनाने का आदेश दिया और बोलीं, ‘‘बहू कुछ दिन और आराम करेगी. चौके का काम अब तुझे संभालना है. बहुत हो चुकी पढ़ाईलिखाई और इधरउधर कूदना.’’

छुटकी ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘मां, जब मुझे कुछ बनाना ही नहीं आता तो कैसे करूंगी यह सब काम?’’

‘‘तुझे अब सबकुछ सीखना होगा, नहीं तो कल को तू भी बड़की की तरह कामकाज से बचने के लिए रोज ससुराल छोड़ कर आ जाया करेगी. यह बहानेबाजी अब और नहीं चलने वाली. तुम सब के चक्कर में ही बहू की यह दशा हुई है.’’

‘‘आखिर भाभी अगर सीढि़यों से गिर पड़ीं तो उस में मेरा क्या दोष?’’ छुटकी ने उत्तर दिया.

‘‘क्या सारे घर के कपड़े सुखानाउठाना उसी का काम है? तुम अगर इतनी ही लायक होतीं तो यह हादसा ही न होता,’’ मांजी बोलीं.

छुटकी हैरानपरेशान थी कि आखिर मां को यह क्या हो गया है जो वे एकदम से भाभी की तरफदारी में लग गईं. आखिर भाभी ने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी मां को.

शाम को खाने की मेज पर बड़ा ही खुशनुमा पारिवारिक माहौल था. सब खाने की मेज पर बैठे हुए थे. छुटकी सब को खाना परोस रही थी कि तभी मुकेश बोले, ‘‘मां, आज तो छुटकी बड़ी मेहनत कर रही है.’’

‘‘तो कौन सा हम पर एहसान कर रही है. इसे पराए घर जाना है. यह सब इसे सीखना ही चाहिए.’’

मांजी का उत्तर सुन कर मुकेश और रेणु एकदूसरे की ओर देख कर अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराए. रेणु समझ नहीं पा रही थी कि मां और ननद इतनी जल्दी कैसे बदल गईं.

उधर मां को रेणु की दुर्घटना से नसीहत के रूप में एक नई दृष्टि मिली थी. रेणु परिवार में परिवर्तन देख कर एक नए सवेरे का एहसास कर रही थी.

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प्रधानाचार्या ने पठनपाठन को ले कर सभी शिक्षिकाओं से मीटिंग की थी. इसी कारण रेणु को स्कूल से निकलने में देर हो गई, घर पहुंचतेपहुंचते 5 बज गए. जैसे ही वह घर में घुसी तो देखा कि उस के महल्ले की औरतों के साथ उस की सास और ननदों की पंचायत चालू थी. उस ने मन ही मन सोचा कि सिवा इन के पास पंचायतबाजी और गपशप करने के, कोई काम भी तो नहीं है. सारा दिन दूसरों के घरों की बुराई, एकदूसरे की चुगली और महल्ले की खबरों का नमकमिर्च लगा कर बखान करना, बस यही काम था उन का. कपड़े बदल कर, हाथमुंह धो कर वह वापस कमरे में आई तो उस की नजर घड़ी पर पड़ी. शाम के 6 बज चुके थे. ‘मुकेश अब आते ही होंगे’ यह सोच कर वह रसोई में जा कर चाय बनाने लगी. साथसाथ चिप्स भी तलने लगी.

रेणु का विवाह उस परिवार के इकलौते लड़के मुकेश के साथ हुआ था. घर के खर्चों को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसे नौकरी भी करनी पड़ी थी और घर का भी सारा काम करना पड़ता था, जबकि ससुराल में 1 अविवाहित ननद थी और 2 विवाहित, जिन में से एक न एक घूमफिर कर मायके आती ही रहती थी. इन सब ने मिल कर रेणु का जीना हराम कर रखा था. सारा दिन बैठ कर गपें मारना, टीवी देखना और रेणु के खिलाफ मां के कान भरना, बस यही उन का काम होता था.

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अभी वह चाय कपों में डाल ही रही थी कि मुकेश आ गए. मेज पर चाय के कपों को देख कर बोले, ‘‘वाह, क्या बात है. ठीक समय पर आ गया मैं.’’

तभी चापलूसी के अंदाज में छोटी ननद बोली, ‘‘भैया, देखिए न आप के लिए मैं ने चिप्स भी तले हैं.’’

रेणु यह सुन मन ही मन कुढ़ कर रह गई. कुछ कह नहीं पाई क्योंकि सास जो सामने बैठी थी.

बहन की बात सुन कर मुकेश रेणु की ओर देख हंसते हुए बोले, ‘‘देखा, मेरी बहनें मेरे खानेपीने का कितना खयाल रखती हैं.’’

यह सुन कर रेणु के तनबदन में आग लग गई पर वह एक समझदार, शिक्षित युवती थी. घर के माहौल को तनावपूर्ण नहीं बनाना चाहती थी, अतएव चुप रही. मुकेश अपनी मां और बहनों से काफी प्रभावित रहते थे. य-पि रेणु के प्रति उन का रवैया खराब न था मगर उन की आदत कुछ ऐसी थी कि वे मां और बहन के विरुद्ध एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करते थे.

‘‘भैया, शाम के खाने में क्या बनाऊं?’’ छोटी ननद बोली.

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‘‘ऐसा करो कि आलू के परांठे और मटरपनीर की सब्जी बना लो,’’ मुकेश ने उत्तर दिया.

रेणु मन ही मन भन्ना गई कि बातें तो ये ऐसी करती हैं कि मानो सारा काम यही करती हों जबकि हकीकत तो यह थी कि इन को करनाधरना कुछ नहीं होता, सिवा मुकेश के सामने चापलूसी करने के.

चाय पी कर रेणु कपप्लेटें उठा कर रसोई में आ कर उन्हें साफ करने लगी. मगर किसी भी ननद से यह नहीं हुआ कि आखिर भाभी औफिस से थकहार कर आती हैं, उन की जरा सी मदद ही कर दें.

ननदों द्वारा उस के काम में छींटाकशी और नुक्ताचीनी करना प्रतिदिन का काम बन गया था. रेणु को अपमान का घूंट पी कर चुप रह जाना पड़ता था. मन ही मन सोचती कि मांजी का बस चले तो दोनों विवाहिता बेटियों को बुला कर यहीं रखें. उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं कि इस महंगाई के जमाने में, इस थोड़ी सी कमाई में अपना ही खर्च ठीक से नहीं चल पाता, ऊपर से ननदों का आनाजाना जो लगा रहता, सो अलग. पर इन सब बातों से उन्हें क्या मतलब?

अगर कभी रेणु कुछ कहे भी, तो वे कहतीं, ‘मैं कौन सी तुम्हारी कमाई पर डाका डाल रही हूं, मैं तो अपने बेटे की कमाई खर्च करती हूं. आखिर वह मेरा बेटा है. उस पर मेरा अधिकार है.’

मुकेश तो इन मामलों में बोलते ही न थे, न ही वे जानते थे. वे तो मां के सामने हमेशा आज्ञाकारी बेटा बने रहते और मांजी उन की कमाई इसी तरह लुटाती रहतीं.

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रेणु ने रसोई में आ कर प्रैशरकुकर में आलू चढ़ा दिए. तभी छोटी ननद आ कर बोली, ‘‘भाभी, मैं भी सीरियल देखने जा रही हूं, बाकी काम आप निबटा लेना.’’

रेणु ने मन ही मन सोचा कि यह तो उन लोगों का रोज का काम है. बस, भैया या फिर उस के मायके से कोई आ जाए तो दिखावे के लिए उस के इर्दगिर्द घूमती रहेंगी. खैर, यह कोई एक दिन की समस्या नहीं है. और उस ने अपने विचारों को किनारे झटक कर एक चूल्हे पर सब्जी चढ़ा दी और दूसरे पर परांठे सेंकने लगी. इधर उस ने परांठे सेंक कर खत्म किए कि सब लोग खाने बैठ गए. सब को परोसनेखिलाने के बाद जो कुछ भी बचा, उसे खा कर वह उठ गई. रात काफी देर तक बरतन आदि साफ कर जब वह अपने कमरे में पहुंची तो मुकेश जाग ही रहे थे. वे कोई पत्रिका पढ़ने में तल्लीन थे. रेणु को देख कर बोले, ‘‘आज तो तुम ने काफी देर लगा दी?’’

‘‘जल्दी आ जाती तो घर के ये काम कौन करता?’’

‘‘क्या घर में मां और बहनें हाथ नहीं बंटातीं?’’

‘‘पहले कभी हाथ बंटाया है जो आज बंटाएं,’’ रेणु ने उत्तर दिया.

‘‘क्यों तुम हमेशा झूठ बात कहती हो, मेरे सामने तो वे सब तुम्हारी मदद करती रहती हैं?’’

‘‘बस, उतनी ही देर जितनी देर आप घर में रहते हैं.’’

‘‘मुझे तो ऐसा नहीं लगता,’’ मुकेश बोला.

बात को आगे न बढ़ने देने के उद्देश्य से रेणु चुप रही.

रेणु जब सुबह सो कर उठी तो देखा कि भोर की किरणें खिड़की के रास्ते कमरे में आहिस्ताआहिस्ता प्रवेश कर रही थीं. वह जल्दी से उठ कर स्नानघर की ओर चल दी, क्योंकि उसे मालूम था कि उस की सास और ननदों में से कोई भी जल्दी सो कर उठने वाला नहीं है. खाना बना कर उस दिन रेणु तैयार हो कर औफिस चल दी. तब तक उस की सास उठ गई थी, जबकि ननदें तब भी सो ही रही थीं. सुबह रेणु कपड़े धो कर छत पर सूखने के लिए डाल गई थी, सो, शाम को जब वह औफिस से लौटी तो उन्हें उठाने के लिए छत पर गई. कपड़ों को ले कर लौट ही रही थी कि न जाने कैसे उस का पैर फिसला और वह धड़ाम से 7-8 सीढि़यां लुढ़कती हुई आ कर आंगन में गिर गई. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गई थी. सास और ननदों के शोर मचाने पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. महल्ले के किसी व्यक्ति ने मुकेश को खबर कर दी थी. सो, वे भी बुरी तरह घबराए हुए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने तुरंत रेणु को आपातकालीन कक्ष में ले जा कर उस का इलाज शुरू कर दिया. उस के सिर में काफी चोट आ गई थी. 4-5 टांके लगाने पड़े. कुछ देर पश्चात सीनियर डाक्टर ने कहा, ‘‘दाहिने पैर की हड्डी टूट गई है. उस पर प्लास्टर चढ़ाना होगा.’’ काफी देर रात तक उस का उपचार चलता रहा. मुकेश ने पूरी रात जाग कर गुजार दी. जब रेणु को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पट्टियों से बंधा हुआ पाया. उस ने कराहते हुए पूछा, ‘‘मैं कहां हूं, और यह मुझे क्या हो गया है?’’

‘‘तुम्हें कुछ नहीं हुआ है. बस, सिर व पैर में थोड़ी सी चोट आ गई है,’’ मुकेश ने उस के सिर पर अपनत्व के साथ हाथ फेरते हुए जवाब दिया.

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एक हफ्ते बाद रेणु को अस्पताल से छुट्टी देते हुए डाक्टर ने मुकेश और साथ में खड़ी उस की मां को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘मांजी, अब  बहू को 3 महीने के पूर्ण आराम की आवश्यकता है. और हां, मरीज को हर रोज दूध, फल, जूस आदि दिया जाए.’’

घर पहुंच कर मुकेश ने उस का बिस्तर खिड़की के किनारे लगा दिया, जिस से खुली हवा भी आती रहे और बाहर के दृश्य से रेणु का मन भी बहला रहे. इधर रेणु को 3 महीने तक लगातार पूर्ण आराम करने की बात सुन कर उस की सास छोटी बेटी से कहने लगी, ‘‘बेटी, अब घर का काम कैसे होगा? हम लोगों ने तो काम करना ही छोड़ दिया था. सारा काम बहू ही करती थी. फिर, मैं कुछ करना भी चाहती थी तो तू मना कर देती थी.’’

दूसरे दिन मुकेश को औफिस जाना था. उन्हें न समय से चाय मिल सकी और न ही नाश्ता. खाने की मेज पर पहुंचते ही उन की तबीयत खिन्न हो गई क्योंकि मां ने खिचड़ी बना कर रखी थी. मुकेश को खिचड़ी बिलकुल पसंद न थी. जैसेतैसे थोड़ी सी खिचड़ी खा कर मुकेश ने दफ्तर का रास्ता लिया. पिछले 15 दिनों से मुकेश देख रहे थे कि घर की सारी व्यवस्था बिलकुल चरमरा गई थी. घर में कोई भी काम समय से पूरा न होता था. न ढंग से नाश्ता बनता, न समय से चाय मिलती और न ही समय पर खाना मिलता. इधरउधर गंदे बरतन पड़े रहते. जबकि रेणु के ठीक रहने पर घर का कोई भी काम अधूरा न रहता था.

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आखिर एक दिन मुकेश ने गुस्से में आ कर मां के सामने ही कह दिया. छोटी बहन भी खड़ी सुन रही थी, ‘‘इन दिनों आखिर घर को क्या हो गया है? कोई भी काम समय पर, सलीके से क्यों नहीं होता? आखिर पहले इस घर का सारा काम कौन करता था? कैसे समय पर चायनाश्ता, समय पर खाना, कपड़ेलत्ते धुले हुए और सारे घर में झाड़ूपोंछा लगा होता था. हर सामान करीने से सजा और अपनी जगह मिलता था, जबकि अब पूरा घर कूड़ाघर में तबदील हो चुका है. हर सामान अपनी जगह से गायब, कपड़े गंदे, जहांतहां धूल की परतें और हर जगह मक्खियां भिनभिनाती हुईं. आखिर यह घर है या कबाड़खाना?’’

‘‘भैया, हम लोग पूरी कोशिश करते हैं, फिर भी थोड़ीबहुत कमी रह ही जाती है,’’ छोटी बहन बोली.

अब मां और छोटी बहन कहें तो क्या कहें? कैसे अपनी गलती स्वीकार करें? अपनी गलती स्वीकार करने का मतलब था कि इस से पहले वे रेणु के साथ दुर्व्यवहार करती थीं. मगर अब झूठ का परदाफाश होना ही था. आखिर कितने दिन सचाई को झुठलाया जाता.

एक दिन शाम को मां चौके में खाना बना रही थीं जबकि उन की उस दिन तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने छोटी बेटी को आवाज दे कर कहा, ‘‘बेटी, जरा मेरी मदद कर दे. आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ बेटी रानी आराम से लेट कर टीवी पर फिल्म देख रही थी, अतएव उस ने वहीं से लेटेलेटे उत्तर दिया, ‘‘क्या मां, थोड़े से काम के लिए भी पूरा घर सिर पर उठा रखा है. जरा सा काम क्या करना पड़ा कि मेरी नाक में दम कर दिया है.’’

अपनी ही जाई संतान का टके सा उत्तर सुन कर मां का चेहरा उतर गया. उन्हें अपनी बेटी से ऐसी आशा न थी. वे सोचने लगीं कि रेणु है तो बहू पर उस ने कभी भी उन की किसी बात का पलट कर जवाब नहीं दिया. हमेशा मांजीमांजी कहती उस की जबान नहीं थकती जबकि वे हमेशा उस के हर काम में नुक्ताचीनी करतीं. इन्हीं बेटियों के कहने पर वे रेणु के साथ दुर्व्यवहार करतीं, छींटाकशी करतीं. अब तो वह बिस्तर पर पड़ी है. उस के साथ ज्यादती करना गुनाह होगा. फिर बहू भी तो बेटी ही होती है.

मांजी खाना बनाते हुए सोचती जा रही थीं कि रेणु भी आखिर किसी की बेटी है. फिर उस ने इस घर को सजानेसंवारने में क्या कमी छोड़ी है. मुकेश तो सारा दिन घर पर रहता नहीं, और यह छुटकी सारा दिन इधरउधर कूदा करती है. कल को इस की शादी हुई नहीं कि फुर्र से चिडि़या की तरह उड़ जाएगी और रह जाऊंगी मैं अकेली. फिर मेरी सेवा कौन करेगा? बुढ़ापे में तो बहू को ही काम में आना है. कभी कोई हादसा हो गया तो सिवा बहू के, कोई देखभाल करने वाला न होगा. बेटियों का क्या, 2-4 दिनों के लिए आ कर खिसक लेंगी. काम तो आएगी बहू ही, तो फिर असली बेटी तो बहू ही हुई…एक के बाद एक विचार आजा रहे थे.

अब मांजी ने रेणु की देखभाल कायदे से करनी शुरू कर दी. उसे समय पर दवा देतीं, चाय देतीं, जूस देतीं और पास बैठ कर घंटों उस से बातचीत करती थीं.

तीसरा महीना खत्म होतेहोते रेणु का स्वास्थ्य काफी सुधर गया. अब उस के पैर का प्लास्टर भी काट दिया गया था. फिर भी डाक्टर ने उसे किसी भी प्रकार का काम करने के लिए मना किया था. रेणु ने सुबह उठ कर चाय बनाने की कोशिश की तो मांजी ने उस का हाथ पकड़ कर उसे कुरसी पर बिठा दिया. फिर उन्होंने छुटकी को बुला कर डांटते हुए चाय बनाने का आदेश दिया और बोलीं, ‘‘बहू कुछ दिन और आराम करेगी. चौके का काम अब तुझे संभालना है. बहुत हो चुकी पढ़ाईलिखाई और इधरउधर कूदना.’’

छुटकी ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘मां, जब मुझे कुछ बनाना ही नहीं आता तो कैसे करूंगी यह सब काम?’’

‘‘तुझे अब सबकुछ सीखना होगा, नहीं तो कल को तू भी बड़की की तरह कामकाज से बचने के लिए रोज ससुराल छोड़ कर आ जाया करेगी. यह बहानेबाजी अब और नहीं चलने वाली. तुम सब के चक्कर में ही बहू की यह दशा हुई है.’’

‘‘आखिर भाभी अगर सीढि़यों से गिर पड़ीं तो उस में मेरा क्या दोष?’’ छुटकी ने उत्तर दिया.

‘‘क्या सारे घर के कपड़े सुखानाउठाना उसी का काम है? तुम अगर इतनी ही लायक होतीं तो यह हादसा ही न होता,’’ मांजी बोलीं.

छुटकी हैरानपरेशान थी कि आखिर मां को यह क्या हो गया है जो वे एकदम से भाभी की तरफदारी में लग गईं. आखिर भाभी ने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी मां को.

शाम को खाने की मेज पर बड़ा ही खुशनुमा पारिवारिक माहौल था. सब खाने की मेज पर बैठे हुए थे. छुटकी सब को खाना परोस रही थी कि तभी मुकेश बोले, ‘‘मां, आज तो छुटकी बड़ी मेहनत कर रही है.’’

‘‘तो कौन सा हम पर एहसान कर रही है. इसे पराए घर जाना है. यह सब इसे सीखना ही चाहिए.’’

मांजी का उत्तर सुन कर मुकेश और रेणु एकदूसरे की ओर देख कर अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराए. रेणु समझ नहीं पा रही थी कि मां और ननद इतनी जल्दी कैसे बदल गईं.

उधर मां को रेणु की दुर्घटना से नसीहत के रूप में एक नई दृष्टि मिली थी. रेणु परिवार में परिवर्तन देख कर एक नए सवेरे का एहसास कर रही थी.

The post New Year Special: एक नया सवेरा- रेणु को मुकेश की बहन से क्या दिक्कत था? appeared first on Sarita Magazine.

January 01, 2021 at 10:00AM

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