Wednesday 30 December 2020

हम हिंदुस्तानी-भाग 3 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था

‘‘झुंड के झुंड कबूतरों से भरा ‘ट्राफलगर स्क्वायर,’ इस चौक स्थल में कबूतरों को दाना खिलाइए, उन्हें कंधे पर बिठाइए और फोटो खिंचवाइए.

‘‘थोड़ा आगे बढ़ने पर बिग बेल यानी घंटाघर की बड़ी सी घंटी और वह खेलतमाशों का चौराहा ‘पिकेडिली स्क्वायर. लंदन में देखने को और भी बहुत कुछ है, यहां के हरेभरे कंट्री साइड, लंबेलंबे मोटर ड्राइव…’’

गाइड अपने व्यवसाय के व्यवहार अनुरूप जानकारियां भी देता जा रहा था, पर स्त्रियां या तो थकान ?से निढाल थीं या फिर दिनभर किए खर्च के गुणाभाग में व्यस्त.

रितु का तो बुरा हाल था. हैंड बैग की खरीदारी से उस का सारा बजट गड़बड़ा गया था. ‘रजत कितना नाराज होगा,’ उसे धुकधुकी सी लग रही थी.

रजत काम से लौटा तो बहुत अच्छे मूड में था, ‘‘आज तो भई मजा आ गया. वह डील साइन हुई है कि समझ लो कंपनी के वारेन्यारे. चलो, अब जल्दी से चाय पिला दो. कपड़े बदल कर नीचे हौल में पहुंचना है. काम सफल होने पर एक छोटा सा आयोजन है.’’

केतली का प्लग लगाते हुए रितु को लगा, बस, यही समय है सबकुछ दिखाबता दो. रजत का मूड भी अच्छा है और कहनेसुनने और नाराज होने के लिए ज्यादा समय भी नहीं है उस के पास.

रितु ने अभी मुंह खोला भी न था कि रजत ही पूछ बैठा, ‘‘क्यों मैडम, तुम ने क्या किया? क्या लिया? कल के खानेपीने के लिए भी कुछ रख छोड़ा है कि सब स्वाहा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो बस गुड्डू का ही सामान लिया है… और रिश्तेदारों को देने के थोड़े से उपहार. अपने लिए तो बस, एक हैंड बैग ही लिया.’’

‘‘हैंड बैग?’’ रजत पूछ बैठा, ‘‘अरे यार, क्यों बोर करती हो. हैंड बैग पहले ही क्या कम थे तुम्हारे पास.’’

‘‘पर यह देखो तो कितना सुंदर है. एक तरफ यह तितली वाला ब्रोच. दूसरी तरफ बिलकुल प्लेन. साड़ी के साथ लो या सूट के साथ, सब पर फबेगा और जरा छू कर तो देखो.’’ रितु ने सफाई देते हुए कहा.

जरा से बैग की इतनी विस्तृत व्याख्या, रजत को कुछ खटका सा लगा. पुराने अनुभवों के आधार पर वह एकदम ही खास मुद्दे पर आ गया, ‘‘है कितने का, कितने पाउंड दिए?’’

रितु कुछ झिझकी, अचकचाई और फिर कोई भूमिका बांधना बेकार समझ झट से दाम उगल दिए.

‘‘क्या?’’ दाम सुन कर रजत मानो आसमान से गिरा, ‘‘इतने से बैग की इतनी कीमत?’’

‘‘चीज भी तो देखो, रजत. प्योर लैदर का है,’’ रितु बोली.

‘‘अरे, इतने पैसे दे कर अपने देश में तुम ऐसे 10 डिजाइनर बैग खरीद सकती थीं,’’ रजत ने कहा.

‘‘अपने देश में ऐसी चीजें बनती ही कहां हैं.’’ रितु उलाहना देते हुए बोली.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं.’’ रितु के वाक्य ने जैसे आग में घी का काम किया, ‘‘हम हिंदुस्तानी तो भड़भूजे, भाड़ झोंकना जानते हैं, बस.’’

रितु सहम कर चुप हो गई थी क्योंकि रजत के सामने गलत बात निकल गई थी उस के मुंह से. वह जानती थी कि उस की ऐसी बातों से रजत कितना खार खाता था.

‘‘और, और यह क्या है? ये इस में भरी हुई कागज की कतरनें भी साथ ले चलने का इरादा है क्या? क्यों? लंदन का कचरा है आखिर,’’ गुस्से से तिलमिला कर रजत पर्स में भरी कागज की कतरनें निकाल कर बाहर फेंकने लगा. तभी अचानक उस का हाथ रुका और वह ठठा कर हंस पड़ा. हंसी भी ऐसी कि रुकने का नाम नहीं.

एकाएक ही इस भावपरिवर्तन पर रितु  भी चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’

रजत था कि हंसता ही जा रहा था.

‘‘हुआ क्या, आखिर… कुछ बोलोगे भी,’’ रितु क्रीम की शीशी खोलते हुए बोली.

‘‘हैक्या, तुम्हारे बैग में एक डिफैक्ट है. नुक्स वाली चीज खरीद लाई हो तुम.’’ बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर रजत ने जवाब दिया, तो रितु तमक पड़ी, ‘‘इतने महंगे बैग में डिफैक्ट देख कर तुम हंस सकते हो? बहुत बुरे हो तुम, बहुत खराब,’’ हाथ की क्रीम रितु जल्दीजल्दी मुंह पर लगाती हुई बोली, ‘‘जिप टूटा है या अस्तर फटा है? क्या है अंदर, कुछ बोलोगे भी?’’

‘‘लो, तुम्हीं देख लो,’’ कहते हुए रजत फिर हंस पड़ा.

‘‘हांहां, हंस लो. जितना मरजी हंसो. मेरे पास भी ‘मनी बैक गारंटी कार्ड’ है, बैग का सारा पैसा वापस धरवा लूंगी,’’ रितु बोली.

‘‘पैसे तो वह वापस करने से रहा, डिफैक्ट ही ऐसा है,’’ रजत ने कहा.

‘‘हाय, ऐसा भी क्या नुक्स है,’’ रितु डर सी गई.

रितु ने जल्दीजल्दी क्रीम चुपड़े हाथों को तौलिए से रगड़ा और लपक कर बैग उठा लिया.

‘‘ओ मां.’’ अविश्वास और अचरज से उस की आंखें चौड़ी हो गईं, मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘ओह नो,’’ हार की सी हताशा से उस ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया.

‘‘ओह यस,’’ विजय जैसे उत्साह में रजत ने दोनों मुट्ठियां भींच लीं, क्योंकि बैग के अंदर एक पतली रेशमी पट्टी पर सुनहरे शब्दों में लिखा था, ‘मेड इन इंडिया.’

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‘‘झुंड के झुंड कबूतरों से भरा ‘ट्राफलगर स्क्वायर,’ इस चौक स्थल में कबूतरों को दाना खिलाइए, उन्हें कंधे पर बिठाइए और फोटो खिंचवाइए.

‘‘थोड़ा आगे बढ़ने पर बिग बेल यानी घंटाघर की बड़ी सी घंटी और वह खेलतमाशों का चौराहा ‘पिकेडिली स्क्वायर. लंदन में देखने को और भी बहुत कुछ है, यहां के हरेभरे कंट्री साइड, लंबेलंबे मोटर ड्राइव…’’

गाइड अपने व्यवसाय के व्यवहार अनुरूप जानकारियां भी देता जा रहा था, पर स्त्रियां या तो थकान ?से निढाल थीं या फिर दिनभर किए खर्च के गुणाभाग में व्यस्त.

रितु का तो बुरा हाल था. हैंड बैग की खरीदारी से उस का सारा बजट गड़बड़ा गया था. ‘रजत कितना नाराज होगा,’ उसे धुकधुकी सी लग रही थी.

रजत काम से लौटा तो बहुत अच्छे मूड में था, ‘‘आज तो भई मजा आ गया. वह डील साइन हुई है कि समझ लो कंपनी के वारेन्यारे. चलो, अब जल्दी से चाय पिला दो. कपड़े बदल कर नीचे हौल में पहुंचना है. काम सफल होने पर एक छोटा सा आयोजन है.’’

केतली का प्लग लगाते हुए रितु को लगा, बस, यही समय है सबकुछ दिखाबता दो. रजत का मूड भी अच्छा है और कहनेसुनने और नाराज होने के लिए ज्यादा समय भी नहीं है उस के पास.

रितु ने अभी मुंह खोला भी न था कि रजत ही पूछ बैठा, ‘‘क्यों मैडम, तुम ने क्या किया? क्या लिया? कल के खानेपीने के लिए भी कुछ रख छोड़ा है कि सब स्वाहा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो बस गुड्डू का ही सामान लिया है… और रिश्तेदारों को देने के थोड़े से उपहार. अपने लिए तो बस, एक हैंड बैग ही लिया.’’

‘‘हैंड बैग?’’ रजत पूछ बैठा, ‘‘अरे यार, क्यों बोर करती हो. हैंड बैग पहले ही क्या कम थे तुम्हारे पास.’’

‘‘पर यह देखो तो कितना सुंदर है. एक तरफ यह तितली वाला ब्रोच. दूसरी तरफ बिलकुल प्लेन. साड़ी के साथ लो या सूट के साथ, सब पर फबेगा और जरा छू कर तो देखो.’’ रितु ने सफाई देते हुए कहा.

जरा से बैग की इतनी विस्तृत व्याख्या, रजत को कुछ खटका सा लगा. पुराने अनुभवों के आधार पर वह एकदम ही खास मुद्दे पर आ गया, ‘‘है कितने का, कितने पाउंड दिए?’’

रितु कुछ झिझकी, अचकचाई और फिर कोई भूमिका बांधना बेकार समझ झट से दाम उगल दिए.

‘‘क्या?’’ दाम सुन कर रजत मानो आसमान से गिरा, ‘‘इतने से बैग की इतनी कीमत?’’

‘‘चीज भी तो देखो, रजत. प्योर लैदर का है,’’ रितु बोली.

‘‘अरे, इतने पैसे दे कर अपने देश में तुम ऐसे 10 डिजाइनर बैग खरीद सकती थीं,’’ रजत ने कहा.

‘‘अपने देश में ऐसी चीजें बनती ही कहां हैं.’’ रितु उलाहना देते हुए बोली.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं.’’ रितु के वाक्य ने जैसे आग में घी का काम किया, ‘‘हम हिंदुस्तानी तो भड़भूजे, भाड़ झोंकना जानते हैं, बस.’’

रितु सहम कर चुप हो गई थी क्योंकि रजत के सामने गलत बात निकल गई थी उस के मुंह से. वह जानती थी कि उस की ऐसी बातों से रजत कितना खार खाता था.

‘‘और, और यह क्या है? ये इस में भरी हुई कागज की कतरनें भी साथ ले चलने का इरादा है क्या? क्यों? लंदन का कचरा है आखिर,’’ गुस्से से तिलमिला कर रजत पर्स में भरी कागज की कतरनें निकाल कर बाहर फेंकने लगा. तभी अचानक उस का हाथ रुका और वह ठठा कर हंस पड़ा. हंसी भी ऐसी कि रुकने का नाम नहीं.

एकाएक ही इस भावपरिवर्तन पर रितु  भी चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’

रजत था कि हंसता ही जा रहा था.

‘‘हुआ क्या, आखिर… कुछ बोलोगे भी,’’ रितु क्रीम की शीशी खोलते हुए बोली.

‘‘हैक्या, तुम्हारे बैग में एक डिफैक्ट है. नुक्स वाली चीज खरीद लाई हो तुम.’’ बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर रजत ने जवाब दिया, तो रितु तमक पड़ी, ‘‘इतने महंगे बैग में डिफैक्ट देख कर तुम हंस सकते हो? बहुत बुरे हो तुम, बहुत खराब,’’ हाथ की क्रीम रितु जल्दीजल्दी मुंह पर लगाती हुई बोली, ‘‘जिप टूटा है या अस्तर फटा है? क्या है अंदर, कुछ बोलोगे भी?’’

‘‘लो, तुम्हीं देख लो,’’ कहते हुए रजत फिर हंस पड़ा.

‘‘हांहां, हंस लो. जितना मरजी हंसो. मेरे पास भी ‘मनी बैक गारंटी कार्ड’ है, बैग का सारा पैसा वापस धरवा लूंगी,’’ रितु बोली.

‘‘पैसे तो वह वापस करने से रहा, डिफैक्ट ही ऐसा है,’’ रजत ने कहा.

‘‘हाय, ऐसा भी क्या नुक्स है,’’ रितु डर सी गई.

रितु ने जल्दीजल्दी क्रीम चुपड़े हाथों को तौलिए से रगड़ा और लपक कर बैग उठा लिया.

‘‘ओ मां.’’ अविश्वास और अचरज से उस की आंखें चौड़ी हो गईं, मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘ओह नो,’’ हार की सी हताशा से उस ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया.

‘‘ओह यस,’’ विजय जैसे उत्साह में रजत ने दोनों मुट्ठियां भींच लीं, क्योंकि बैग के अंदर एक पतली रेशमी पट्टी पर सुनहरे शब्दों में लिखा था, ‘मेड इन इंडिया.’

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December 31, 2020 at 10:00AM

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