Thursday 31 December 2020

New Year Special: एक नई शुरुआत -निशा 30 साल तक साथ निभाने के बाद अचानक क्यों चली गई

बैंक के जोनल औफिस पहुंचा तो पता चला जोनल मैनेजर मीटिंग में व्यस्त हैं. उन के पीए ने बताया कि लगभग 3 घंटे बाद मैडम फ्री होंगी. उन के आते ही आप के मिलने की स्लिप उन तक पहुंचा दी जाएगी. मेरे पास सिवा इंतजार करने के और कोई चारा न था, इसलिए वहीं सोफे पर बैठ गया. जोनल औफिस, मैं अपनी नियुक्ति के सिलसिले में गया था. मेरा बैंक अधिकारी से शाखा प्रबंधक के लिए प्रमोशन हुआ था. मेरी नियुक्ति मेरे शहर से काफी दूर कर दी गई थी. मैं इतनी दूर जाना नहीं चाहता था क्योंकि पत्नी का देहांत हाल ही में हुआ था और मैं बिलकुल तनहा रह गया था. नए शहर जा कर मुझे और तनहाइयों से रूबरू होना पड़ता, सो स्थानीय नियुक्ति ही चाहता था. बेटाबहू आस्ट्रेलिया में थे. वे चाहते थे कि मैं वीआरएस ले कर उन के साथ रहूं लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. मेरी सर्विस के अभी 5 साल बाकी थे. दिन तो बैंक में कट जाता था लेकिन रात काटे नहीं कटती थी.

कुछ मित्रों ने दूसरी शादी की सलाह दी लेकिन इस के लिए मैं राजी न था क्योंकि इस उम्र में शादी के बारे में सोच कर ही शर्म सी महसूस होती थी. बेटेबहू क्या सोचेंगे? लोग क्या कहेंगे? और फिर मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था, उस ने मेरा इतना साथ निभाया और अब उम्र के इस मोड़ पर शादी, मेरी नजर में यह उस के साथ विश्वासघात जैसा था. हां, कुदरती जरूरतें पूरी न हो सकने के कारण मैं जिद्दी हो गया था. कामवाली बाई को मैं बिना वजह डांट देता था. वह पासपड़ोस वालों के बीच मुझे ‘सनकी’ कहती थी. अकसर सहकर्मियों और ग्राहकों से मेरी झड़प हो जाती. वे सब मुझे पीठपीछे न जाने क्याक्या कहते रहते.

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‘‘सर, मैडम आ चुकी हैं. प्लीज, अपना नाम बताइए,’’ पीए ने कहा तो मैं वर्तमान में लौट आया.

‘‘जी, शुभेंदु कुमार.’’ थोड़ा इंतजार करने के बाद जैसे ही घंटी बजी, चपरासी दौड़ कर मैडम के केबिन में गया. लौट कर आया तो पता चला मैडम ने मुझे बुलाया है. केबिन में प्रवेश करते ही मैडम को देखा तो ठगा सा रह गया. मेरी उम्र से लगभग 1-2 वर्ष ही छोटी होंगी. देखने में सौम्य और सुंदर. पद की गरिमा से उन का संपूर्ण व्यक्तित्व दमक रहा था.

‘‘आप किस काम से आए हैं?’’ बहुत ही संयमित स्वर में उन्होंने पूछा.

‘‘जी मैडम, मेरी नियुक्ति मेरे शहर से बहुत दूर कर दी गई है. मैं चाहता हूं मुझे स्थानीय नियुक्ति ही मिल जाए.’’

‘‘दूर न जाने की कोई तो वजह होगी शुभेंदुजी?’’

‘‘मैडम, मैं वहां बिलकुल अकेला पड़ जाऊंगा, न जान न पहचान,’’ मैं निरीहभाव से बोला.

‘‘जानपहचान तो धीरेधीरे बढ़ जाएगी, फिर आप अकेले कहां हैं, आप अपनी पत्नी को साथ ले जाइए,’’ मैडम ने हलकी सी मुसकराहट से कहा.

‘‘उन का देहांत हो चुका है,’’ मैं ने भरे स्वर में कहा तो मैडम असहज सी हो उठीं. ‘‘सौरी, शुभेंदुजी, मुझे मालूम नहीं था,’’ कहते हुए वे हलकी सी भावुक हो उठीं. उन की आंखों में मैं ने आंसुओं की नमी को देख लिया था जिसे उन्होंने बड़ी चतुराई से पसीना पोंछने के बहाने अपने रूमाल से पोंछ लिया. वास्तव में नारी बहुत संवेदनशील होती है. जरा सा भी दुख का झोंका उस के करीब से गुजर जाए तो वह सूखे पत्ते की तरह कंपकंपा उठती है, झट से आंखें भर आती हैं. जबकि पुरुष इस मामले में थोड़े अलग होते हैं. वे अपना दुखदर्द अपने अंदर इस तरह जब्त कर लेते हैं कि सामने वाले को इस का एहसास ही नहीं होता. बस, भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं, जैसे मैं घुट रहा था.

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फिर वे थोड़ा सहज हुईं. शायद, वे अपने औरत वाले खोल से बाहर आ कर एक अधिकारी वाली छवि से बोलीं, ‘‘शुभेंदुजी, आप के पास कोई ठोस वजह नहीं है कि जिस के आधार पर हम आप की नियुक्ति स्थानीय ही रहने दें. अगर आप प्रमोशन लेना चाहते हैं तो आप को बाहर जाना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैडम, गाजियाबाद जैसे शहर में तो मेरा अपना कोई है ही नहीं. अगर संभव हो तो मेरे शहर के आसपास ही मेरी नियुक्ति हो जाए जिस से मैं रोजाना अपडाउन कर सकूं,’’ मैं चापलूसीभरे स्वर में बोला. ‘‘गाजियाबाद में तो मैं भी रहती हूं. रोजाना दिल्ली आती हूं. मेरे फ्लैट की ऊपरी मंजिल खाली है, आप चाहें तो मेरे यहां बतौर पेइंगगैस्ट रह सकते हैं.’’ मैडम की आत्मीयता और अपनापन देख कर मैं गदगद हो उठा. भला कौन इतनी बड़ी अधिकारी अपने ब्रांच मैनेजर के लिए ऐसा सोच सकती है. जाने मुझे क्यों लगा, वे मुझ में दिलचस्पी ले रही हैं. सच कहूं तो वे मुझे अपनी अधिकारी से ज्यादा एक औरत लगीं और उन की गठी हुई देह देख कर इस उम्र में भी मैं रोमांचित हो उठा. जल्दी ही गाजियाबाद ब्रांच में जौइन करने के लिए उतावला हो गया. लेकिन मन में एक अज्ञात भय भी था, कहीं वहां रहते हुए मैं उन से कोई अमर्यादित या अशोभनीय हरकत न कर बैठूं जिस से मैं कहीं खुद अपनी नजरों में न गिर जाऊं.

जल्दी ही अपनी ब्रांच से रिलीव हो कर मैं ने गाजियाबाद की शाखा में जौइन कर लिया. शाम को मैडम के घर पहुंचा तो वहां एक बुजुर्ग पुरुष ने मेरा स्वागत किया, ‘‘आप बैंक मैनेजर शुभेंदुजी हैं न?’’

‘‘जी हां, मैडम ने अपने यहां…’’ मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही वे बोले, ‘‘जी हां, वह मैडम, मेरी बेटी अपूर्वा है, जोनल मैनेजर है. अभी औफिस से आई नहीं है. बस, आने वाली होगी. तब तक हम दोनों एकएक कप चाय पीते हैं,’’ कहते हुए उन्होंने अपने नौकर से चाय के लिए कह दिया. तभी गाड़ी का हौर्न बजा. शायद, मैडम आ गई थीं. मैं ने खड़े हो कर उन का अभिवादन किया तो वे खिलखिला कर बोलीं, ‘‘शुभेंदुजी, यह औफिस नहीं, मेरा घर है. यहां आप मेरे मेहमान हैं. आप मुझे अपूर्वा कहेंगे

तो मुझे अच्छा लगेगा.’’ वे फ्रैश हो कर आईं तो तब तक चाय आ गई थी. फिर हम तीनों ने साथ बैठ कर चाय पी. उन के पिताजी ने जब यह बताया कि अपूर्वा के पति का निधन एक सड़क दुर्घटना में हो गया है तो मुझे उन के प्रति सहानुभूति उमड़ आई. उन की सिर्फ एक ही बेटी थी जो अमेरिका में जौब कर रही थी. मैं घर की ऊपरी मंजिल में पेइंगगैस्ट बन रहने लगा था. मेरा मन वहां लग गया था. उन के पिताजी बहुत सुलझे, समझदार और जिंदादिल इंसान थे. रात का खाना हम तीनों साथ ही खाते थे. एक रोज सब्जी सर्व करते वक्त अपूर्वा का हाथ मुझ से छू गया तो मेरा पूरा जिस्म झनझना उठा.

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बस, ट्रेन और भीड़भाड़ में न जाने कितनी बार स्त्रियों का शरीर मुझ से छुआ होगा लेकिन तब ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ. लेकिन अपूर्वा का क्षणिक स्पर्श मुझे अंदर तक बेचैन कर गया और मैं जल बिन मछली की तरह छटपटाने लगा. उस दिन से वे भी मुझे कुछ असहज सी दिखने लगीं. उस के बाद मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि हम दोनों के बीच कुछ ऐसा है जरूर जो अदृश्य तो है लेकिन हम दोनों को जोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है. वह जुड़ाव कुछ भी हो सकता है- मानसिक, शारीरिक या भावात्मक. लेकिन अपनी बेचैनी और छटपटाहट का राज मुझे मालूम था, झूठ नहीं बोलूंगा, मेरा मन उन से शारीरिक जुड़ाव चाहता था. शायद वे मेरी इस मंशा को भांप गई थीं. लेकिन मैं उन का मन नहीं जान पा रहा था. हम दोनों के मध्य चल रहे अंर्तद्वंद्वों को सुलझाने में उन के अनुभवी पिताजी ने पहल की, ‘‘शुभेंदुजी, बिना किसी भूमिका और लागलपेट के मैं आप से स्पष्ट रूप से पूछना चाहता हूं, क्या आप मेरी बेटी से विवाह करेंगे.’’

वे इतनी जल्दी स्पष्ट रूप से शादी की बात पर आ जाएंगे, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मैं थोड़ा डर सा गया. यह डर समाज का, बेटेबहू का या खुद अपने अंदर का था, मुझे नहीं मालूम. मैं उन के सामने चुप ही रहा. ‘‘मैं जानता हूं, इस सवाल का जवाब आप के लिए थोड़ा मुश्किल है, इसलिए आप वक्त ले सकते हो. मेरी बेटी और उस के अतीत से तो आप परिचित हैं ही, मेरी धेवती अमेरिका में जौब कर रही है, शादी कर के वहीं सैटल होने का इरादा है उस का. उस ने खुद कहा है, ‘नानू, मौम हमेशा के लिए अमेरिका नहीं आएंगी, इसलिए उन की शादी करा दीजिए.’ ‘‘और सच कहूं, तो मैं भी चाहता हूं उस की जल्दी से शादी हो जाए. मेरा बुलावा पता नहीं कब आ जाए,’’ कहते हुए उन का गला भर आया.

मैं खुद समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं, इसलिए उन से क्षमा मांग कर अपने कमरे में चला गया. इस उम्र में दूसरी शादी के बारे में सोचते हुए भी झिझक सी महसूस हुई. बेटेबहू के सामने शादी की बात करने की सोच कर तो शर्म सी महसूस हुई. लोग यही कहेंगे बीवी को मरे एक साल भी नहीं हुआ और दूसरा ब्याह रचा लिया और वह भी बुढ़ापे में. निशा ने पूरे 30 साल साथ निभाया, कितना खयाल रखती थी मेरा. मेरी छोटी से छोटी जरूरत पूरी करने के लिए पूरे दिन घर में चक्करघिन्नी की तरह घूमती रहती थी. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. और वह भी तो अकसर कहती थी, ‘आप सिर्फ मेरे हो, मेरे. मुझे वचन दो कि मेरे मरने के बाद आप दूसरी शादी नहीं करोगे.’ चाहे वह यह बात सीरियसली कहती हो या मजाक में, लेकिन मैं हंस कर हामी भर देता था. इन्हीं सब वजहों से मैं शादी करने से हिचकिचा रहा था. हां, अपूर्वा का साथ तो चाहता था लेकिन सिर्फ शारीरिक रूप से. 2-3 दिन बाद अपूर्वा के पिताजी बोले, ‘‘शुभेंदु, मैं आप का जवाब जानना चाहता हूं. अपूर्वा चाहती है कि पहले आप जवाब दें.’’ ‘‘बाबूजी, इस उम्र में शादी? थोड़ा सा अजीब सा लगता है. हां, मैं जब तक यहां हूं अपूर्वाजी का पूरा खयाल रखूंगा. उन्हें किसी चीज के लिए कोई परेशानी नहीं होगी,’’ मैं थोड़ा अटकते स्वर में बोला.

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‘‘यानी आप शादी नहीं करना चाहते,’’ उन के स्वर में भरपूर निराशा थी. मैं मन ही मन कुढ़ गया, ‘अजीब बुड्ढा है. शादी के पीछे ही पड़ गया है. बिना शादी के भी तो इस की बेटी खुश रह सकती है मेरे साथ. इस तरह एक पंथ दो काज हो जाएंगे. दोनों को अकेलेपन से छुटकारा मिल जाएगा और कुदरती जरूरत भी पूरी होती रहेगी.’ उसी रात अपूर्वा के पिताजी को हार्टअटैक आ गया तो मैं घबरा उठा, कहीं यह मेरी वजह से तो नहीं हुआ है. रात में ही उन्हें अस्पताल ले गए और उन का इलाज शुरू हो गया. दूसरी रात को उन के विश्वसनीय नौकर ने हम दोनों को घर भेज दिया, और खुद वहीं रुक गया. यह पहला मौका था जब पूरे घर में हम दोनों अकेले थे. कोई और वक्त होता तो शायद अपूर्वा से मैं कुछ कहता. अस्पताल में पूरा दिन हम दोनों ने काटा था, इसलिए थकान स्वभाविक थी. चायबिस्कुट के सिवा कुछ खाया भी नहीं था, इसलिए भूख भी महसूस हो रही थी लेकिन संकोचवश कुछ कह नहीं पा रहा था.

‘‘शुभेंदुजी, मुझे पता है इस वक्त हम दोनों पर थकान और भूख हावी है, इसलिए आप हाथमुंह धो कर जल्दी ही डाइनिंग हौल में आ जाइए, मैं तब तक खिचड़ी बना लेती हूं.’’ डाइनिंग टेबल पर गरमागरम खिचड़ी, साथ में दही, अचार और पापड़ भी थे. हम खिचड़ी खा रहे थे तभी अपूर्वा का मोबाइल बज गया, ‘‘ठीक है, मैं सुबह डाक्टर से बात कर लूंगी.’’

‘‘बाबूजी तो ठीक हैं न?’’ मैं ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा. गहरी सांस भर कर अपूर्वा बोलीं, ‘‘पिताजी कहां ठीक हैं? उन का ब्लडप्रैशर नौर्मल नहीं हो रहा, मुझे ले कर परेशान रहते हैं. बड़ी उम्मीद थी उन्हें आप से कि आप उन की बेटी से शादी कर लेंगे. आप का इनकार सह न सके वे.’’

‘‘अपूर्वाजी, मैं चाहता था…’’

‘‘मुझे पता है आप क्या चाहते थे और क्या चाहते हैं,’’ मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही वे बोल पड़ीं, ‘‘शुभेंदुजी, मैं एक औरत हूं, पूरे 50 वसंत काट चुकी हूं. अपने औफिस में काम के सिलसिले में रोज सैकड़ों पुरुषों से मिलना पड़ता है मुझे. चपरासी से ले कर मेरा पीए भी एक पुरुष है. मैं नादान टीनएजर नहीं हूं. ‘‘अरुण के जाने के बाद बाबूजी को सिर्फ मेरी चिंता खाए जा रही है. आप को देख कर उन्हें लगा, शायद आप उन की बेटी के अच्छे जीवनसाथी साबित हो सकते हो. यही सोच कर उन्होंने इस संबंध में आप से बात की थी. लेकिन अफसोस आप भी उन्हीं मर्दों की श्रेणी में आ गए जो सिर्फ अपने निजी स्वार्थ की खातिर मुझे अपनाना चाहते हैं.

‘‘मुझे से आधी उम्र के युवकों ने भी शादी के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन मैं जानती थी कि वे शादी क्यों करना चाहते हैं. सिर्फ मेरी दौलत की खातिर. कुछ ऐसे हमउम्रों ने भी मुझ से विवाह की इच्छा व्यक्त की जो मेरे पद और प्रतिष्ठा से काफी कम थे. वे समाज में अपना रुतबा बढ़ाना चाहते थे अपनी बीवी को ढाल बना कर. ‘‘लेकिन आप को मेरी न तो दौलत की चाह है न पदप्रतिष्ठा की. आप मेरा साथ चाहते हैं लेकिन सिर्फ एक औरत के रूप में, पत्नी के रूप में नहीं.’’ यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. उन्होंने जो कुछ भी कहा था वह बिलकुल सच कहा था. वास्तव में वे नादान नहीं थीं. ‘‘शुभेंदुजी, झूठ नहीं बोलूंगी, पहली बार जब अपने केबिन में आप को देखा था और आप ने अपनी पत्नी के विषय में बताया था तो मुझे ऐसा लगा था जैसे आप का और मेरा दर्द एकजैसा है, एकजैसी समस्याएं हैं. तभी से मेरे मन में आप के प्रति कुछ सुप्त भावनाएं जाग उठी थीं. इसलिए मैं ने आप को अपने यहां पेइंगगैस्ट के लिए कहा था. आप सोच रहे होंगे कि यह कैसी औरत है? शुभेंदुजी, औरत सिर्फ देह नहीं होती, एक मन भी होती है जहां उस के ढेरों सपने, इच्छाएं और जज्बात महफूज रहते हैं.

‘‘पर कभीकभी वह इन सपनों, भावनाओं और इच्छाओं को साकार करने और कुछ खास पाने की चाहत करने लगती है. अगर यह चाहत अनैतिक तरीके से पूरी होती है तो सारी जिंदगी आत्मग्लानि और अपराधबोध की भावना पनपती रहती है और अगर यही चाहत पूरी निष्ठा व पवित्रता से हासिल की जाती है तो वह औरत के जीवन का सब से सुंदर और अविस्मरणीय क्षण बन जाता है. ‘‘इसी विशुद्ध चाहत की खातिर मैं ने खुद बाबूजी से आप का जिक्र किया था. लेकिन आप की मंशा और नीयत को मैं ही नहीं, बाबूजी भी भांप गए थे. लेकिन मैं आप को बता देना चाहती हूं कि मैं सिर्फ एक औरत बन कर आप का साथ नहीं दे सकती चाहे कितनी भी कमजोर क्यों न पड़ जाऊं.’’ ‘‘अपूर्वाजी, सत्यता यह है कि मैं अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता था और उस के वचन का मान रखना चाहता हूं. बेटेबहू और लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर भी मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं.’’

‘‘शुभेंदुजी, औरत जिस से प्यार करती है, पूरी निष्ठा से करती है. वह बहुत ही भावुक, कोमल और संवेदनशील होती है. भावात्मक और अंतरंग क्षणों में अपने प्रिय से सिर्फ यही चाहती है, मांगती है कि वह सारी जिंदगी सिर्फ उस का हो कर ही रहे लेकिन उस वक्त यथार्थ से वह कोसों दूर होती है. इसी तरह आप की पत्नी भी आप को वचन से बांध गईं. लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि उन के न रहने पर उन के जीवनसाथी को कितने दुख, अकेलापन, तनाव झेलने के साथसाथ अनेक मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ेगा. इस तरह के वचन में बांधना, यह उन का प्यार नहीं, बल्कि एक ईर्ष्याभाव था कि दूसरी औरत उन के पति को छीन लेगी. जीतेजी तो यह चाहत ठीक है लेकिन मरने के बाद ऐसी चाहत क्यों?

‘‘मैं भी अपने पति से बहुत प्यार करती थी, दिल की गहराइयों से चाहती थी और अंतरंग क्षणों में उन से कहती भी थी, ‘अरुण, आप सिर्फ मेरे हो. मेरे रहते अगर किसी दूसरी औरत के बारे में सोचा भी तो जान दे दूंगी अपनी. लेकिन मेरे मरने के बाद आप दूसरी शादी जरूर कर लेना क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप मेरे बाद अकेलापन भोगने के साथसाथ तमाम समस्याओं से जूझें.’ ‘‘वे सिर्फ मुसकरा देते थे लेकिन कहते कुछ नहीं थे. पर वक्त की बात है. मुझे अकेले छोड़ कर चले गए. आखिरी वक्त उन्होंने पहली बार यह कहा था, ‘अपूर्वा, मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं लेकिन तुम शादी जरूर कर लेना क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं और सच्चा प्यार करने वाले कभी नहीं चाहते कि उन के जाने के बाद उन का जीवनसाथी दुखदर्द झेले.’ ‘‘वे जा चुके थे. मैं पत्थर बन गई थी, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. लेकिन धीरेधीरे जीवन रूटीन पर आने लगा और मैं इतने बड़े दुख से उबर कर संभल गई. और फिर से औफिस जौइन कर लिया.

‘‘ऐसा नहीं है कि मैं उन की इच्छा पूरी करने या उन की बात का मान रखने के लिए शादी करना चाहती हूं और यह भी नहीं है कि मैं ने उन्हें पूरी तरह भुला दिया है लेकिन शुभेंदुजी, हम ऊपर से जो सच और झूठ बोलते हैं उस के अलावा भी हमारे अंदर का एक सच होता है, वह कोई नहीं जानता, वह सिर्फ हम ही जानते हैं. वह सच होता है हमारे तनमन की इच्छाएं, जज्बात और तूफान जो प्राकृतिक हैं, कभी दबाए नहीं जा सकते. बेशक, हम उन्हें काबू में रखने के भरसक प्रयत्न करें, लेकिन कभीकभी वे बेकाबू हो ही जाते हैं तब उन के परिणाम खुद के लिए, समाज के लिए और परिवार के लिए बेहद घातक होते हैं. इस अप्रिय स्थिति से बचने के लिए हमें अपने अंदर के इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिए.

‘‘आप का कहना है कि अगर हम ऐसा कर लेंगे तो समाज और लोग क्या कहेंगे? अरे, वे कुछ न कुछ तो कहेंगे ही क्योंकि उन का तो काम ही कहना है. अगर हम नहीं भी करेंगे तो भी वे कुछ कहेंगे. ‘‘आप सोच रहे होंगे, मैं एक औरत हो कर कैसी बातें कर रही हूं, ऐसी बातें औरत को शोभा नहीं देतीं. लेकिन औरत जब पुरुषों से बराबरी कर रही है, वाहन चला रही है, औफिस व व्यवसाय संभाल रही है तो अपनी बात खुल कर क्यों नहीं कर सकती? ‘‘मैं सच बोलने से नहीं झिझकती. तनहाइयों में अकसर मेरे अंदर का सच मुझ पर हावी हो जाता है और मुझे बहुत मुश्किल, परेशानी, उलझनों व समस्याओं से जूझना पड़ता है. इन्हीं सब को मेरी युवा बेटी और अनुभवी पिता समझते हैं. और मुझ से दूसरी शादी करने के लिए कहते हैं.

‘‘अगर आप के बेटेबहू भी आप के अकेलेपन, तनाव और निजी समस्याओं को दिल से महसूस करते होंगे तो वे भी आप को यही सलाह देंगे.’’ तभी मेरा मोबाइल घनघना उठा. आस्ट्रेलिया से बहू का फोन था, ‘‘पापा, आप सारी जिंदगी इस तरह अकेले कैसे रहोगे? यह सोच कर मैं और सनी बेहद परेशान रहते हैं. इस समस्या का हल मेरी अमेरिका वाली फ्रैंड अक्षरा ने बताया है. उस ने अपनी विडो मौम का रिश्ता आप के लिए सुझाया है. आप उन से मिल लेना. उन का नाम अपूर्वा है. वे दिल्ली में बैंक की जोनल मैनेजर हैं. उन का पता आप को ईमेल कर दिया है. बात बन जाए तो प्लीज पापा, अपनी शादी में बुलाना न भूलना,’’ वह मुसकरा कर बोली तो मैं अचंभित हो उठा. मेरे बेटेबहू मेरे बारे में इतना सोचते हैं और मैं व्यर्थ ही परेशान था.

तभी थोड़ी देर बाद अपूर्वा का भी मोबाइल बज उठा. अमेरिका से उन की बेटी का फोन था. उस ने भी अपनी मां से वही कहा जो मेरी बहू ने मुझ से कहा. हम दोनों हैरानी से एकदूसरे को देखने लगे. यह सब भी अजीब संयोग था. हमारे बच्चे भी हमारे एक होने के बारे में सोच रहे थे. कौन कहता है आजकल के बच्चे अपने मांबाप की फीलिंग्स नहीं समझते, उन की केयर नहीं करते. मांबाप के पैर दबाने और उन की आज्ञा का पालन करने वाले बच्चे ही सिर्फ संस्कारी नहीं होते. अपने पेरैंट्स की प्रौब्लम्स, उन की निजी समस्याओं को समझने व उन के सुखदुख शेयर करने वाले हजारों मील दूर बैठे बच्चे भी स्मार्ट और संस्कारी होते हैं  बातोंबातों में रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. अपूर्वा अपने कमरे में जाने लगी तो मैं ने कहा, ‘‘अपूर्वा, अपने बेटेबहू को क्या जवाब दूं मैं?’’

‘‘यही सवाल मैं आप से पूछती हूं, मैं अपनी बेटी से क्या कहूं?’’ अपनेअपने सवाल पर हम दोनों खुल कर हंस पड़े. मैं मुसकरा कर बोला, ‘‘मैं अपनी बेटी से बात करूंगा और तुम अपने बेटेबहू से बात करना और हां, बहू को विश जरूर करना वह जल्दी ही तुम्हें दादी बनाने वाली है.’’ यह सुन कर अपूर्वा थोड़ा लजा गई, ‘‘बाबूजी को यह खुशखबरी दे कर, हम अपने जीवन की एक नई शुरुआत करेंगे,’’ कहते हुए वे मेरे सीने से लग गई और मैं ने उसे अपनी बांहों के मजबूत घेरे में कैद कर लिया.

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कुछ मित्रों ने दूसरी शादी की सलाह दी लेकिन इस के लिए मैं राजी न था क्योंकि इस उम्र में शादी के बारे में सोच कर ही शर्म सी महसूस होती थी. बेटेबहू क्या सोचेंगे? लोग क्या कहेंगे? और फिर मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था, उस ने मेरा इतना साथ निभाया और अब उम्र के इस मोड़ पर शादी, मेरी नजर में यह उस के साथ विश्वासघात जैसा था. हां, कुदरती जरूरतें पूरी न हो सकने के कारण मैं जिद्दी हो गया था. कामवाली बाई को मैं बिना वजह डांट देता था. वह पासपड़ोस वालों के बीच मुझे ‘सनकी’ कहती थी. अकसर सहकर्मियों और ग्राहकों से मेरी झड़प हो जाती. वे सब मुझे पीठपीछे न जाने क्याक्या कहते रहते.

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‘‘सर, मैडम आ चुकी हैं. प्लीज, अपना नाम बताइए,’’ पीए ने कहा तो मैं वर्तमान में लौट आया.

‘‘जी, शुभेंदु कुमार.’’ थोड़ा इंतजार करने के बाद जैसे ही घंटी बजी, चपरासी दौड़ कर मैडम के केबिन में गया. लौट कर आया तो पता चला मैडम ने मुझे बुलाया है. केबिन में प्रवेश करते ही मैडम को देखा तो ठगा सा रह गया. मेरी उम्र से लगभग 1-2 वर्ष ही छोटी होंगी. देखने में सौम्य और सुंदर. पद की गरिमा से उन का संपूर्ण व्यक्तित्व दमक रहा था.

‘‘आप किस काम से आए हैं?’’ बहुत ही संयमित स्वर में उन्होंने पूछा.

‘‘जी मैडम, मेरी नियुक्ति मेरे शहर से बहुत दूर कर दी गई है. मैं चाहता हूं मुझे स्थानीय नियुक्ति ही मिल जाए.’’

‘‘दूर न जाने की कोई तो वजह होगी शुभेंदुजी?’’

‘‘मैडम, मैं वहां बिलकुल अकेला पड़ जाऊंगा, न जान न पहचान,’’ मैं निरीहभाव से बोला.

‘‘जानपहचान तो धीरेधीरे बढ़ जाएगी, फिर आप अकेले कहां हैं, आप अपनी पत्नी को साथ ले जाइए,’’ मैडम ने हलकी सी मुसकराहट से कहा.

‘‘उन का देहांत हो चुका है,’’ मैं ने भरे स्वर में कहा तो मैडम असहज सी हो उठीं. ‘‘सौरी, शुभेंदुजी, मुझे मालूम नहीं था,’’ कहते हुए वे हलकी सी भावुक हो उठीं. उन की आंखों में मैं ने आंसुओं की नमी को देख लिया था जिसे उन्होंने बड़ी चतुराई से पसीना पोंछने के बहाने अपने रूमाल से पोंछ लिया. वास्तव में नारी बहुत संवेदनशील होती है. जरा सा भी दुख का झोंका उस के करीब से गुजर जाए तो वह सूखे पत्ते की तरह कंपकंपा उठती है, झट से आंखें भर आती हैं. जबकि पुरुष इस मामले में थोड़े अलग होते हैं. वे अपना दुखदर्द अपने अंदर इस तरह जब्त कर लेते हैं कि सामने वाले को इस का एहसास ही नहीं होता. बस, भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं, जैसे मैं घुट रहा था.

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फिर वे थोड़ा सहज हुईं. शायद, वे अपने औरत वाले खोल से बाहर आ कर एक अधिकारी वाली छवि से बोलीं, ‘‘शुभेंदुजी, आप के पास कोई ठोस वजह नहीं है कि जिस के आधार पर हम आप की नियुक्ति स्थानीय ही रहने दें. अगर आप प्रमोशन लेना चाहते हैं तो आप को बाहर जाना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैडम, गाजियाबाद जैसे शहर में तो मेरा अपना कोई है ही नहीं. अगर संभव हो तो मेरे शहर के आसपास ही मेरी नियुक्ति हो जाए जिस से मैं रोजाना अपडाउन कर सकूं,’’ मैं चापलूसीभरे स्वर में बोला. ‘‘गाजियाबाद में तो मैं भी रहती हूं. रोजाना दिल्ली आती हूं. मेरे फ्लैट की ऊपरी मंजिल खाली है, आप चाहें तो मेरे यहां बतौर पेइंगगैस्ट रह सकते हैं.’’ मैडम की आत्मीयता और अपनापन देख कर मैं गदगद हो उठा. भला कौन इतनी बड़ी अधिकारी अपने ब्रांच मैनेजर के लिए ऐसा सोच सकती है. जाने मुझे क्यों लगा, वे मुझ में दिलचस्पी ले रही हैं. सच कहूं तो वे मुझे अपनी अधिकारी से ज्यादा एक औरत लगीं और उन की गठी हुई देह देख कर इस उम्र में भी मैं रोमांचित हो उठा. जल्दी ही गाजियाबाद ब्रांच में जौइन करने के लिए उतावला हो गया. लेकिन मन में एक अज्ञात भय भी था, कहीं वहां रहते हुए मैं उन से कोई अमर्यादित या अशोभनीय हरकत न कर बैठूं जिस से मैं कहीं खुद अपनी नजरों में न गिर जाऊं.

जल्दी ही अपनी ब्रांच से रिलीव हो कर मैं ने गाजियाबाद की शाखा में जौइन कर लिया. शाम को मैडम के घर पहुंचा तो वहां एक बुजुर्ग पुरुष ने मेरा स्वागत किया, ‘‘आप बैंक मैनेजर शुभेंदुजी हैं न?’’

‘‘जी हां, मैडम ने अपने यहां…’’ मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही वे बोले, ‘‘जी हां, वह मैडम, मेरी बेटी अपूर्वा है, जोनल मैनेजर है. अभी औफिस से आई नहीं है. बस, आने वाली होगी. तब तक हम दोनों एकएक कप चाय पीते हैं,’’ कहते हुए उन्होंने अपने नौकर से चाय के लिए कह दिया. तभी गाड़ी का हौर्न बजा. शायद, मैडम आ गई थीं. मैं ने खड़े हो कर उन का अभिवादन किया तो वे खिलखिला कर बोलीं, ‘‘शुभेंदुजी, यह औफिस नहीं, मेरा घर है. यहां आप मेरे मेहमान हैं. आप मुझे अपूर्वा कहेंगे

तो मुझे अच्छा लगेगा.’’ वे फ्रैश हो कर आईं तो तब तक चाय आ गई थी. फिर हम तीनों ने साथ बैठ कर चाय पी. उन के पिताजी ने जब यह बताया कि अपूर्वा के पति का निधन एक सड़क दुर्घटना में हो गया है तो मुझे उन के प्रति सहानुभूति उमड़ आई. उन की सिर्फ एक ही बेटी थी जो अमेरिका में जौब कर रही थी. मैं घर की ऊपरी मंजिल में पेइंगगैस्ट बन रहने लगा था. मेरा मन वहां लग गया था. उन के पिताजी बहुत सुलझे, समझदार और जिंदादिल इंसान थे. रात का खाना हम तीनों साथ ही खाते थे. एक रोज सब्जी सर्व करते वक्त अपूर्वा का हाथ मुझ से छू गया तो मेरा पूरा जिस्म झनझना उठा.

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बस, ट्रेन और भीड़भाड़ में न जाने कितनी बार स्त्रियों का शरीर मुझ से छुआ होगा लेकिन तब ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ. लेकिन अपूर्वा का क्षणिक स्पर्श मुझे अंदर तक बेचैन कर गया और मैं जल बिन मछली की तरह छटपटाने लगा. उस दिन से वे भी मुझे कुछ असहज सी दिखने लगीं. उस के बाद मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि हम दोनों के बीच कुछ ऐसा है जरूर जो अदृश्य तो है लेकिन हम दोनों को जोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है. वह जुड़ाव कुछ भी हो सकता है- मानसिक, शारीरिक या भावात्मक. लेकिन अपनी बेचैनी और छटपटाहट का राज मुझे मालूम था, झूठ नहीं बोलूंगा, मेरा मन उन से शारीरिक जुड़ाव चाहता था. शायद वे मेरी इस मंशा को भांप गई थीं. लेकिन मैं उन का मन नहीं जान पा रहा था. हम दोनों के मध्य चल रहे अंर्तद्वंद्वों को सुलझाने में उन के अनुभवी पिताजी ने पहल की, ‘‘शुभेंदुजी, बिना किसी भूमिका और लागलपेट के मैं आप से स्पष्ट रूप से पूछना चाहता हूं, क्या आप मेरी बेटी से विवाह करेंगे.’’

वे इतनी जल्दी स्पष्ट रूप से शादी की बात पर आ जाएंगे, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मैं थोड़ा डर सा गया. यह डर समाज का, बेटेबहू का या खुद अपने अंदर का था, मुझे नहीं मालूम. मैं उन के सामने चुप ही रहा. ‘‘मैं जानता हूं, इस सवाल का जवाब आप के लिए थोड़ा मुश्किल है, इसलिए आप वक्त ले सकते हो. मेरी बेटी और उस के अतीत से तो आप परिचित हैं ही, मेरी धेवती अमेरिका में जौब कर रही है, शादी कर के वहीं सैटल होने का इरादा है उस का. उस ने खुद कहा है, ‘नानू, मौम हमेशा के लिए अमेरिका नहीं आएंगी, इसलिए उन की शादी करा दीजिए.’ ‘‘और सच कहूं, तो मैं भी चाहता हूं उस की जल्दी से शादी हो जाए. मेरा बुलावा पता नहीं कब आ जाए,’’ कहते हुए उन का गला भर आया.

मैं खुद समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं, इसलिए उन से क्षमा मांग कर अपने कमरे में चला गया. इस उम्र में दूसरी शादी के बारे में सोचते हुए भी झिझक सी महसूस हुई. बेटेबहू के सामने शादी की बात करने की सोच कर तो शर्म सी महसूस हुई. लोग यही कहेंगे बीवी को मरे एक साल भी नहीं हुआ और दूसरा ब्याह रचा लिया और वह भी बुढ़ापे में. निशा ने पूरे 30 साल साथ निभाया, कितना खयाल रखती थी मेरा. मेरी छोटी से छोटी जरूरत पूरी करने के लिए पूरे दिन घर में चक्करघिन्नी की तरह घूमती रहती थी. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. और वह भी तो अकसर कहती थी, ‘आप सिर्फ मेरे हो, मेरे. मुझे वचन दो कि मेरे मरने के बाद आप दूसरी शादी नहीं करोगे.’ चाहे वह यह बात सीरियसली कहती हो या मजाक में, लेकिन मैं हंस कर हामी भर देता था. इन्हीं सब वजहों से मैं शादी करने से हिचकिचा रहा था. हां, अपूर्वा का साथ तो चाहता था लेकिन सिर्फ शारीरिक रूप से. 2-3 दिन बाद अपूर्वा के पिताजी बोले, ‘‘शुभेंदु, मैं आप का जवाब जानना चाहता हूं. अपूर्वा चाहती है कि पहले आप जवाब दें.’’ ‘‘बाबूजी, इस उम्र में शादी? थोड़ा सा अजीब सा लगता है. हां, मैं जब तक यहां हूं अपूर्वाजी का पूरा खयाल रखूंगा. उन्हें किसी चीज के लिए कोई परेशानी नहीं होगी,’’ मैं थोड़ा अटकते स्वर में बोला.

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‘‘यानी आप शादी नहीं करना चाहते,’’ उन के स्वर में भरपूर निराशा थी. मैं मन ही मन कुढ़ गया, ‘अजीब बुड्ढा है. शादी के पीछे ही पड़ गया है. बिना शादी के भी तो इस की बेटी खुश रह सकती है मेरे साथ. इस तरह एक पंथ दो काज हो जाएंगे. दोनों को अकेलेपन से छुटकारा मिल जाएगा और कुदरती जरूरत भी पूरी होती रहेगी.’ उसी रात अपूर्वा के पिताजी को हार्टअटैक आ गया तो मैं घबरा उठा, कहीं यह मेरी वजह से तो नहीं हुआ है. रात में ही उन्हें अस्पताल ले गए और उन का इलाज शुरू हो गया. दूसरी रात को उन के विश्वसनीय नौकर ने हम दोनों को घर भेज दिया, और खुद वहीं रुक गया. यह पहला मौका था जब पूरे घर में हम दोनों अकेले थे. कोई और वक्त होता तो शायद अपूर्वा से मैं कुछ कहता. अस्पताल में पूरा दिन हम दोनों ने काटा था, इसलिए थकान स्वभाविक थी. चायबिस्कुट के सिवा कुछ खाया भी नहीं था, इसलिए भूख भी महसूस हो रही थी लेकिन संकोचवश कुछ कह नहीं पा रहा था.

‘‘शुभेंदुजी, मुझे पता है इस वक्त हम दोनों पर थकान और भूख हावी है, इसलिए आप हाथमुंह धो कर जल्दी ही डाइनिंग हौल में आ जाइए, मैं तब तक खिचड़ी बना लेती हूं.’’ डाइनिंग टेबल पर गरमागरम खिचड़ी, साथ में दही, अचार और पापड़ भी थे. हम खिचड़ी खा रहे थे तभी अपूर्वा का मोबाइल बज गया, ‘‘ठीक है, मैं सुबह डाक्टर से बात कर लूंगी.’’

‘‘बाबूजी तो ठीक हैं न?’’ मैं ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा. गहरी सांस भर कर अपूर्वा बोलीं, ‘‘पिताजी कहां ठीक हैं? उन का ब्लडप्रैशर नौर्मल नहीं हो रहा, मुझे ले कर परेशान रहते हैं. बड़ी उम्मीद थी उन्हें आप से कि आप उन की बेटी से शादी कर लेंगे. आप का इनकार सह न सके वे.’’

‘‘अपूर्वाजी, मैं चाहता था…’’

‘‘मुझे पता है आप क्या चाहते थे और क्या चाहते हैं,’’ मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही वे बोल पड़ीं, ‘‘शुभेंदुजी, मैं एक औरत हूं, पूरे 50 वसंत काट चुकी हूं. अपने औफिस में काम के सिलसिले में रोज सैकड़ों पुरुषों से मिलना पड़ता है मुझे. चपरासी से ले कर मेरा पीए भी एक पुरुष है. मैं नादान टीनएजर नहीं हूं. ‘‘अरुण के जाने के बाद बाबूजी को सिर्फ मेरी चिंता खाए जा रही है. आप को देख कर उन्हें लगा, शायद आप उन की बेटी के अच्छे जीवनसाथी साबित हो सकते हो. यही सोच कर उन्होंने इस संबंध में आप से बात की थी. लेकिन अफसोस आप भी उन्हीं मर्दों की श्रेणी में आ गए जो सिर्फ अपने निजी स्वार्थ की खातिर मुझे अपनाना चाहते हैं.

‘‘मुझे से आधी उम्र के युवकों ने भी शादी के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन मैं जानती थी कि वे शादी क्यों करना चाहते हैं. सिर्फ मेरी दौलत की खातिर. कुछ ऐसे हमउम्रों ने भी मुझ से विवाह की इच्छा व्यक्त की जो मेरे पद और प्रतिष्ठा से काफी कम थे. वे समाज में अपना रुतबा बढ़ाना चाहते थे अपनी बीवी को ढाल बना कर. ‘‘लेकिन आप को मेरी न तो दौलत की चाह है न पदप्रतिष्ठा की. आप मेरा साथ चाहते हैं लेकिन सिर्फ एक औरत के रूप में, पत्नी के रूप में नहीं.’’ यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. उन्होंने जो कुछ भी कहा था वह बिलकुल सच कहा था. वास्तव में वे नादान नहीं थीं. ‘‘शुभेंदुजी, झूठ नहीं बोलूंगी, पहली बार जब अपने केबिन में आप को देखा था और आप ने अपनी पत्नी के विषय में बताया था तो मुझे ऐसा लगा था जैसे आप का और मेरा दर्द एकजैसा है, एकजैसी समस्याएं हैं. तभी से मेरे मन में आप के प्रति कुछ सुप्त भावनाएं जाग उठी थीं. इसलिए मैं ने आप को अपने यहां पेइंगगैस्ट के लिए कहा था. आप सोच रहे होंगे कि यह कैसी औरत है? शुभेंदुजी, औरत सिर्फ देह नहीं होती, एक मन भी होती है जहां उस के ढेरों सपने, इच्छाएं और जज्बात महफूज रहते हैं.

‘‘पर कभीकभी वह इन सपनों, भावनाओं और इच्छाओं को साकार करने और कुछ खास पाने की चाहत करने लगती है. अगर यह चाहत अनैतिक तरीके से पूरी होती है तो सारी जिंदगी आत्मग्लानि और अपराधबोध की भावना पनपती रहती है और अगर यही चाहत पूरी निष्ठा व पवित्रता से हासिल की जाती है तो वह औरत के जीवन का सब से सुंदर और अविस्मरणीय क्षण बन जाता है. ‘‘इसी विशुद्ध चाहत की खातिर मैं ने खुद बाबूजी से आप का जिक्र किया था. लेकिन आप की मंशा और नीयत को मैं ही नहीं, बाबूजी भी भांप गए थे. लेकिन मैं आप को बता देना चाहती हूं कि मैं सिर्फ एक औरत बन कर आप का साथ नहीं दे सकती चाहे कितनी भी कमजोर क्यों न पड़ जाऊं.’’ ‘‘अपूर्वाजी, सत्यता यह है कि मैं अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता था और उस के वचन का मान रखना चाहता हूं. बेटेबहू और लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर भी मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं.’’

‘‘शुभेंदुजी, औरत जिस से प्यार करती है, पूरी निष्ठा से करती है. वह बहुत ही भावुक, कोमल और संवेदनशील होती है. भावात्मक और अंतरंग क्षणों में अपने प्रिय से सिर्फ यही चाहती है, मांगती है कि वह सारी जिंदगी सिर्फ उस का हो कर ही रहे लेकिन उस वक्त यथार्थ से वह कोसों दूर होती है. इसी तरह आप की पत्नी भी आप को वचन से बांध गईं. लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि उन के न रहने पर उन के जीवनसाथी को कितने दुख, अकेलापन, तनाव झेलने के साथसाथ अनेक मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ेगा. इस तरह के वचन में बांधना, यह उन का प्यार नहीं, बल्कि एक ईर्ष्याभाव था कि दूसरी औरत उन के पति को छीन लेगी. जीतेजी तो यह चाहत ठीक है लेकिन मरने के बाद ऐसी चाहत क्यों?

‘‘मैं भी अपने पति से बहुत प्यार करती थी, दिल की गहराइयों से चाहती थी और अंतरंग क्षणों में उन से कहती भी थी, ‘अरुण, आप सिर्फ मेरे हो. मेरे रहते अगर किसी दूसरी औरत के बारे में सोचा भी तो जान दे दूंगी अपनी. लेकिन मेरे मरने के बाद आप दूसरी शादी जरूर कर लेना क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप मेरे बाद अकेलापन भोगने के साथसाथ तमाम समस्याओं से जूझें.’ ‘‘वे सिर्फ मुसकरा देते थे लेकिन कहते कुछ नहीं थे. पर वक्त की बात है. मुझे अकेले छोड़ कर चले गए. आखिरी वक्त उन्होंने पहली बार यह कहा था, ‘अपूर्वा, मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं लेकिन तुम शादी जरूर कर लेना क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं और सच्चा प्यार करने वाले कभी नहीं चाहते कि उन के जाने के बाद उन का जीवनसाथी दुखदर्द झेले.’ ‘‘वे जा चुके थे. मैं पत्थर बन गई थी, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. लेकिन धीरेधीरे जीवन रूटीन पर आने लगा और मैं इतने बड़े दुख से उबर कर संभल गई. और फिर से औफिस जौइन कर लिया.

‘‘ऐसा नहीं है कि मैं उन की इच्छा पूरी करने या उन की बात का मान रखने के लिए शादी करना चाहती हूं और यह भी नहीं है कि मैं ने उन्हें पूरी तरह भुला दिया है लेकिन शुभेंदुजी, हम ऊपर से जो सच और झूठ बोलते हैं उस के अलावा भी हमारे अंदर का एक सच होता है, वह कोई नहीं जानता, वह सिर्फ हम ही जानते हैं. वह सच होता है हमारे तनमन की इच्छाएं, जज्बात और तूफान जो प्राकृतिक हैं, कभी दबाए नहीं जा सकते. बेशक, हम उन्हें काबू में रखने के भरसक प्रयत्न करें, लेकिन कभीकभी वे बेकाबू हो ही जाते हैं तब उन के परिणाम खुद के लिए, समाज के लिए और परिवार के लिए बेहद घातक होते हैं. इस अप्रिय स्थिति से बचने के लिए हमें अपने अंदर के इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिए.

‘‘आप का कहना है कि अगर हम ऐसा कर लेंगे तो समाज और लोग क्या कहेंगे? अरे, वे कुछ न कुछ तो कहेंगे ही क्योंकि उन का तो काम ही कहना है. अगर हम नहीं भी करेंगे तो भी वे कुछ कहेंगे. ‘‘आप सोच रहे होंगे, मैं एक औरत हो कर कैसी बातें कर रही हूं, ऐसी बातें औरत को शोभा नहीं देतीं. लेकिन औरत जब पुरुषों से बराबरी कर रही है, वाहन चला रही है, औफिस व व्यवसाय संभाल रही है तो अपनी बात खुल कर क्यों नहीं कर सकती? ‘‘मैं सच बोलने से नहीं झिझकती. तनहाइयों में अकसर मेरे अंदर का सच मुझ पर हावी हो जाता है और मुझे बहुत मुश्किल, परेशानी, उलझनों व समस्याओं से जूझना पड़ता है. इन्हीं सब को मेरी युवा बेटी और अनुभवी पिता समझते हैं. और मुझ से दूसरी शादी करने के लिए कहते हैं.

‘‘अगर आप के बेटेबहू भी आप के अकेलेपन, तनाव और निजी समस्याओं को दिल से महसूस करते होंगे तो वे भी आप को यही सलाह देंगे.’’ तभी मेरा मोबाइल घनघना उठा. आस्ट्रेलिया से बहू का फोन था, ‘‘पापा, आप सारी जिंदगी इस तरह अकेले कैसे रहोगे? यह सोच कर मैं और सनी बेहद परेशान रहते हैं. इस समस्या का हल मेरी अमेरिका वाली फ्रैंड अक्षरा ने बताया है. उस ने अपनी विडो मौम का रिश्ता आप के लिए सुझाया है. आप उन से मिल लेना. उन का नाम अपूर्वा है. वे दिल्ली में बैंक की जोनल मैनेजर हैं. उन का पता आप को ईमेल कर दिया है. बात बन जाए तो प्लीज पापा, अपनी शादी में बुलाना न भूलना,’’ वह मुसकरा कर बोली तो मैं अचंभित हो उठा. मेरे बेटेबहू मेरे बारे में इतना सोचते हैं और मैं व्यर्थ ही परेशान था.

तभी थोड़ी देर बाद अपूर्वा का भी मोबाइल बज उठा. अमेरिका से उन की बेटी का फोन था. उस ने भी अपनी मां से वही कहा जो मेरी बहू ने मुझ से कहा. हम दोनों हैरानी से एकदूसरे को देखने लगे. यह सब भी अजीब संयोग था. हमारे बच्चे भी हमारे एक होने के बारे में सोच रहे थे. कौन कहता है आजकल के बच्चे अपने मांबाप की फीलिंग्स नहीं समझते, उन की केयर नहीं करते. मांबाप के पैर दबाने और उन की आज्ञा का पालन करने वाले बच्चे ही सिर्फ संस्कारी नहीं होते. अपने पेरैंट्स की प्रौब्लम्स, उन की निजी समस्याओं को समझने व उन के सुखदुख शेयर करने वाले हजारों मील दूर बैठे बच्चे भी स्मार्ट और संस्कारी होते हैं  बातोंबातों में रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. अपूर्वा अपने कमरे में जाने लगी तो मैं ने कहा, ‘‘अपूर्वा, अपने बेटेबहू को क्या जवाब दूं मैं?’’

‘‘यही सवाल मैं आप से पूछती हूं, मैं अपनी बेटी से क्या कहूं?’’ अपनेअपने सवाल पर हम दोनों खुल कर हंस पड़े. मैं मुसकरा कर बोला, ‘‘मैं अपनी बेटी से बात करूंगा और तुम अपने बेटेबहू से बात करना और हां, बहू को विश जरूर करना वह जल्दी ही तुम्हें दादी बनाने वाली है.’’ यह सुन कर अपूर्वा थोड़ा लजा गई, ‘‘बाबूजी को यह खुशखबरी दे कर, हम अपने जीवन की एक नई शुरुआत करेंगे,’’ कहते हुए वे मेरे सीने से लग गई और मैं ने उसे अपनी बांहों के मजबूत घेरे में कैद कर लिया.

The post New Year Special: एक नई शुरुआत -निशा 30 साल तक साथ निभाने के बाद अचानक क्यों चली गई appeared first on Sarita Magazine.

January 01, 2021 at 10:00AM

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