Tuesday 29 December 2020

दुस्वपन-भाग 3 : आखिर क्यों संविधा 30 साल बाद घर छोड़कर जानें लगी

राजेश की नजरें संविधा के ही चेहरे पर टिकी थीं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक संविधा एकदम से कैसे बदल गई. संविधा ने डाइनिंग टेबल पर रखे जग से गिलास में पानी लिया और पूरा गिलास खाली कर के आगे बोली, ‘‘दिन में नौकरी करने वाले कपल को अपने बच्चों की बड़ी चिंता रहती है. पर सुमन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में अपना बच्चा छोड़ कर वे निश्ंिचत हो जाते हैं, क्योंकि वहां उन की देखभाल के लिए दादादादी जो होते हैं.

‘‘इस के अलावा सुमन की उस कोठी में बच्चों को खेलने के लिए बड़ा सा लौन तो है ही, उन्होंने बच्चों के लिए तरहतरह के आधुनिक खिलौनों की भी व्यवस्था कर रखी है. दिन में बच्चों को दिया जाने वाला खाना भी शुद्ध और पौष्टिक होता है. इसलिए उन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चों की संख्या काफी है. जिस से उन्हें वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम चलाने में जरा भी दिक्कत नहीं होती.

‘‘आज सुबह मैं वहीं गई थी. वहां मुझे बहुत अच्छा लगा. इसलिए अब मैं वहीं जा कर सुमन के साथ उन बूढ़ों की और बच्चों की सेवा करना चाहती हूं, उन्हें प्यार देना चाहती हूं, जिन का अपना कोई नहीं है.’’ राजेश संविधा की बातें ध्यान से सुन रहा था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रहा है, वह सब कहने वाली उस की पत्नी संविधा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब सच है या कोई दुस्वप्न. उसे गुस्सा आ रहा था कि पूजापाठ, हवनकीर्तन, तीर्थयात्राओं के बाद भी संविधा कैसे ये सारे बंधन तोड़ रही है.द्य

एक समय था जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छा था. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी.

जीवन की मुसकान

यह घटना कुछ माह पहले की है. एक दिन मैं टिक्की खाने के लिए घर के कुछ दूर स्थित कुबेर आश्रम पर गया और टिक्की खा कर टिक्की वाले को पैसे दे कर घर आ गया. फिर रात को जब पापा ने कहा, ‘‘बेटा, शिवम साइकिल अंदर रख आओ’’ तो मैं चकरा सा गया क्योंकि मुझे ध्यान आया कि साइकिल तो मैं कुबेर आश्रम पर ही छोड़ आया था, लेकिन तभी साढ़े 8 बजे वह गरीब ठेले वाला मेरे घर आया और बोला, ‘‘बेटा, मैं ने समझा तुम कुछ लेने दुकान पर गए हो और मैं ने जब देखा कि 2 घंटे हो गए और तुम नहीं आए तो मैं तुम्हारा पता पूछते हुए यह साइकिल लौटाने आया हूं.’’

वह टिक्की वाला अब हमारे घर के पास रोज आता है. उसे पानी और चाय पिलाए बगैर हम उसे नहीं जाने देते.    शिवम चतुर्वेदी (सर्वश्रेष्ठ)

मुझे दिल्ली से कोटा आना था. ठीक समय मैं स्टेशन पहुंचा. प्लेटफौर्म पर आरक्षण चार्ट देख कर अपनी बोगी में घुसा. वह टू टायर बोगी थी जिस में मेरी बर्थ ऊपर वाली थी. चढ़ते समय मैं ने देखा, एक अधेड़ उम्र की महिला अपने बच्चे के साथ नीचे वाली बर्थ पर लेटी थी. थोड़ी देर के बाद मुझे नींद आ गई और गाड़ी कब अपने गंतव्य को चल दी, मुझे पता ही न लगा.

सुबह जैसे ही मेरी आंख खुली, मैं ने चाय वाले को आवाज दी. पैसे देने के लिए मेरा हाथ मेरी जेब पर गया. लेकिन बटुआ नदारद था. मैं घबरा कर नीचे उतरा और फर्श पर चारों तरफ खोजने लगा. उस समय मैं ने उस महिला को देखा, उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान थी. तभी चाय वाले ने कहा, ‘‘बाबूजी चाय.’’

मैं ने चाय वाले से कहा, ‘‘रहने दो.’’ मेरी परेशानी का कारण मात्र बटुए में रखे रुपए ही नहीं थे, बल्कि 2 बैंकों के एटीएम कार्ड्स तथा रेलवे टिकट भी पर्स में रखे थे. उसी समय उस महिला ने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया तथा चाय वाले को मुझे चाय देने को कहा. उस के बाद उस ने अपने थैले में से मेरा बटुआ निकाल कर कहा, ‘‘यह पर्स यहीं जमीन पर पड़ा मिला, शायद आप का हो.’’

पर्स देख कर मेरा चेहरा खिल सा गया था. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘आप पर्स में से बतौर इनाम जितने रुपए चाहें, ले लें.’’ उस महिला ने मात्र यही कहा, ‘‘तुम्हें तुम्हारा पर्स मिल गया और मुझे

मेरा इनाम.’’

The post दुस्वपन-भाग 3 : आखिर क्यों संविधा 30 साल बाद घर छोड़कर जानें लगी appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/38JeIEV

राजेश की नजरें संविधा के ही चेहरे पर टिकी थीं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक संविधा एकदम से कैसे बदल गई. संविधा ने डाइनिंग टेबल पर रखे जग से गिलास में पानी लिया और पूरा गिलास खाली कर के आगे बोली, ‘‘दिन में नौकरी करने वाले कपल को अपने बच्चों की बड़ी चिंता रहती है. पर सुमन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में अपना बच्चा छोड़ कर वे निश्ंिचत हो जाते हैं, क्योंकि वहां उन की देखभाल के लिए दादादादी जो होते हैं.

‘‘इस के अलावा सुमन की उस कोठी में बच्चों को खेलने के लिए बड़ा सा लौन तो है ही, उन्होंने बच्चों के लिए तरहतरह के आधुनिक खिलौनों की भी व्यवस्था कर रखी है. दिन में बच्चों को दिया जाने वाला खाना भी शुद्ध और पौष्टिक होता है. इसलिए उन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चों की संख्या काफी है. जिस से उन्हें वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम चलाने में जरा भी दिक्कत नहीं होती.

‘‘आज सुबह मैं वहीं गई थी. वहां मुझे बहुत अच्छा लगा. इसलिए अब मैं वहीं जा कर सुमन के साथ उन बूढ़ों की और बच्चों की सेवा करना चाहती हूं, उन्हें प्यार देना चाहती हूं, जिन का अपना कोई नहीं है.’’ राजेश संविधा की बातें ध्यान से सुन रहा था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रहा है, वह सब कहने वाली उस की पत्नी संविधा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब सच है या कोई दुस्वप्न. उसे गुस्सा आ रहा था कि पूजापाठ, हवनकीर्तन, तीर्थयात्राओं के बाद भी संविधा कैसे ये सारे बंधन तोड़ रही है.द्य

एक समय था जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छा था. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी.

जीवन की मुसकान

यह घटना कुछ माह पहले की है. एक दिन मैं टिक्की खाने के लिए घर के कुछ दूर स्थित कुबेर आश्रम पर गया और टिक्की खा कर टिक्की वाले को पैसे दे कर घर आ गया. फिर रात को जब पापा ने कहा, ‘‘बेटा, शिवम साइकिल अंदर रख आओ’’ तो मैं चकरा सा गया क्योंकि मुझे ध्यान आया कि साइकिल तो मैं कुबेर आश्रम पर ही छोड़ आया था, लेकिन तभी साढ़े 8 बजे वह गरीब ठेले वाला मेरे घर आया और बोला, ‘‘बेटा, मैं ने समझा तुम कुछ लेने दुकान पर गए हो और मैं ने जब देखा कि 2 घंटे हो गए और तुम नहीं आए तो मैं तुम्हारा पता पूछते हुए यह साइकिल लौटाने आया हूं.’’

वह टिक्की वाला अब हमारे घर के पास रोज आता है. उसे पानी और चाय पिलाए बगैर हम उसे नहीं जाने देते.    शिवम चतुर्वेदी (सर्वश्रेष्ठ)

मुझे दिल्ली से कोटा आना था. ठीक समय मैं स्टेशन पहुंचा. प्लेटफौर्म पर आरक्षण चार्ट देख कर अपनी बोगी में घुसा. वह टू टायर बोगी थी जिस में मेरी बर्थ ऊपर वाली थी. चढ़ते समय मैं ने देखा, एक अधेड़ उम्र की महिला अपने बच्चे के साथ नीचे वाली बर्थ पर लेटी थी. थोड़ी देर के बाद मुझे नींद आ गई और गाड़ी कब अपने गंतव्य को चल दी, मुझे पता ही न लगा.

सुबह जैसे ही मेरी आंख खुली, मैं ने चाय वाले को आवाज दी. पैसे देने के लिए मेरा हाथ मेरी जेब पर गया. लेकिन बटुआ नदारद था. मैं घबरा कर नीचे उतरा और फर्श पर चारों तरफ खोजने लगा. उस समय मैं ने उस महिला को देखा, उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान थी. तभी चाय वाले ने कहा, ‘‘बाबूजी चाय.’’

मैं ने चाय वाले से कहा, ‘‘रहने दो.’’ मेरी परेशानी का कारण मात्र बटुए में रखे रुपए ही नहीं थे, बल्कि 2 बैंकों के एटीएम कार्ड्स तथा रेलवे टिकट भी पर्स में रखे थे. उसी समय उस महिला ने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया तथा चाय वाले को मुझे चाय देने को कहा. उस के बाद उस ने अपने थैले में से मेरा बटुआ निकाल कर कहा, ‘‘यह पर्स यहीं जमीन पर पड़ा मिला, शायद आप का हो.’’

पर्स देख कर मेरा चेहरा खिल सा गया था. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘आप पर्स में से बतौर इनाम जितने रुपए चाहें, ले लें.’’ उस महिला ने मात्र यही कहा, ‘‘तुम्हें तुम्हारा पर्स मिल गया और मुझे

मेरा इनाम.’’

The post दुस्वपन-भाग 3 : आखिर क्यों संविधा 30 साल बाद घर छोड़कर जानें लगी appeared first on Sarita Magazine.

December 30, 2020 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment