Sunday 27 December 2020

राज-भाग 2 : रचना और रेखा की दोस्ती से किसको परेशानी होने लगी थी

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

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रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

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December 28, 2020 at 10:00AM

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