Wednesday 30 December 2020

हम हिंदुस्तानी-भाग 1 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था

पति के साथ औफिस टूर पर लंदन गई रितु ने वहां की जिंदगी का भरपूर मजा लिया लेकिन खरीदारी करते वक्त भारतीय वस्तुओं के कम स्तर की तुलना करतेकरते रितु ऐसा क्या ले आई कि सिर पकड़ कर बैठ गई?विमान लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा तो आसमान से बूंदें टपक रही थीं. नवंबर के अंतिम सप्ताह में बेमौसम की बौछारों से तापमान बहुत नीचे गिर गया था. विमान से निकल कर बस तक पहुंचतेपहुंचते हड्डियां ठंड से ठिठुर गईं.

सड़कें सुनसान पड़ी थीं. दूरदूर तक कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. केवल तृणविहीन पेड़ों की अंतहीन कतारों में भारत की भीड़भाड़ और गहमागहमी की आदी आंखों को यह सब बड़ा ही उजाड़ और असंगत सा लगा… ‘तो ऐसा है लंदन.’

यों लंदन का उत्तम सैलानी सत्र करीब डेढ़ महीने पहले बीत चुका था, पर भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशवासियों को लंदन की सैर की सूझे, वह भी कंपनी के खर्चे पर, तो त्याग परम आवश्यक बन जाता है. ठंड का क्या, थोड़ाबहुत ठिठुर लेंगे. होटल और जरूरी जनसुविधाएं तो सस्ती पड़ेंगी, बजट तो नहीं गड़बड़ाएगा.

रजत की कामकाजी यात्राओं में रितु भी दुबई, नेपाल, कोलंबो और सिंगापुर की सैर पहले ही कर चुकी थी. कभी कंपनी के खर्चे पर तो कभी अपने खर्चे से, पर यूरोप का यह पहला सफर था उस का.

इस बार की डीलर्स कौन्फ्रैंस लंदन में थी. लिहाजा लंबाचौड़ा दलबल जा रहा था. उच्च पदासीन अधिकारी पत्नियों को भी साथ ले जा सकते थे. 3 दिन का कामकाजी और सैरसपाटे का ट्रिप था. रितु तो मारे खुशी के उछल ही पड़ी थी. बच्चों को साथ ले जाना सदा की भांति वर्जित था. गुड्डु को साथ न ले जाने की मजबूरी रितु को ग्लानि से भर देती. बच्चे को छोड़ कर घूमनाफिरना उसे बिलकुल ही न भाता. मातापिता के विदेश जाने की बात सुन गुड्डू भी उदास हो जाता, पर फिर समय पर दादी बात संभाल लेतीं, ‘जाने दे मां को… हम दोनों मिल कर यहां खूब मजे करेंगे,’ वह पोते को बांहों में भर कर प्यार करतीं.

‘3 दिन तक मां का अनुशासन न होगा. होगा तो सिर्फ दादी का लाड़दुलार, सौदा बुरा तो नहीं.’ सोच कर गुड्डू जब मुसकरा पड़ता तो रितु निश्ंिचत हो कर निकल पाती. लेकिन लौटने पर वह उस के लिए खिलौने, कपड़े, जूते, मोजे, पेन, पैंसिल और भी न  जाने क्याक्या लाती.

यह देख कर रजत अकसर खीझ ही पड़ता, ‘ये सब क्या अनापशनाप चीजें खरीदती रहती हो? ये सब क्या हमारे देश में नहीं बनतीं, बिकतीं? जानती तो हो विदेशी मुद्रा का भाव, पढ़ीलिखी हो, फिर भी वही नादानी.’

रजत चाहे जितना भी झुंझलाए, रुपए की विनिमय दर चाहे कितनी भी कम क्यों न हो, रितु खरीदारी किए बिना नहीं रहती. लौटते समय वह इतनी लदफंद जाती कि कस्टम से क्लीयर होना मुश्किल हो जाता.

‘पाउंड की तुलना में हमारा रुपया  कहीं नहीं ठहरता, खर्च सोचसमझ  कर करना मैडम.’ इस बार भी घर से निकलतेनिकलते रजत ने उसे समझाया था.

होटल के स्वागत कक्ष में दल की औपचारिक आवभगत के बाद सब अपनाअपना सामान उठा कर अपनेअपने कमरे की तरफ चल दिए. यों कमरे तक सामान पहुंचाने के लिए बैलबौयज भी उपलब्ध थे जो प्रति सूटकेस एक पाउंड ही लेते थे.

‘एक पाउंड यानी 60 रुपए. नहींनहीं,’ सोच कर घबराते हुए रितु अपना सामान खुद ही उठाने लगी. ठिठुरती ठंड बाहर ही रह गई. होटल परिसर में गरमाहट थी. छोटा सा साफसुथरा कमरा सुरुचि से सजा था. कमरे में ही चाय की केतली, चीनी, दूध पाउडर और चायकौफी के डब्बे भी एक मेज पर रखे थे यानी अपना काम खुद करो.

थकान दूर करने के लिए अगर चायकौफी का और्डर भी करना हो तो प्रति कप ‘मात्र 3 पाउंड में मिलेगी. 3 पाउंड यानी… अपने इतने रुपए, सोच कर डूबते दिल से रितु ने केतली का प्लग लगा दिया और खुद ही चाय बनाने लगी.

अपने देश में तो वे ऐशोआराम से घूमते थे. जो चाहा, फोन उठाया और और्डर किया. लंचडिनर तक कमरे में पहुंच जाता. पर वही सुविधाएं यहां राजसी ऐश्वर्य के समान थीं, उन की पहुंच से परे. वह सोचती, ‘फिर ऐसे ही खर्च करने लगे तो शौपिंग क्या खाक होगी.’

‘‘अब जरा जल्दी करो, 8 बजने को हैं, 9 बजे तक हमें नीचे हौल में पहुंचना है. तुम्हें सजनेसंवरने में भी समय लगेगा. समय का भी ध्यान रखना है. अपनी देसी लेटलतीफी यहां नहीं चलेगी,’’ रजत बोला.

बादल छिटक चुके थे. आकाश निर्मल नीला निखर आया था. 8 बजने को थे, पर लंदन में बस, अभीअभी ही शाम गहराई थी.

औफ व्हाइट, लाल बौर्डर वाली कांजीवरम साड़ी, माथे पर बिंदिया, आंखों में कजरा, बालों में असली सा दिखता नाइलोन के नन्हेनन्हे फूलों का गजरा. रजत ने देखा तो बस, देखता ही रह गया. बोला, ‘‘बिलकुल ‘मेड इन इंडिया’ लग रही हो.’’

सुन कर रितु इतरा गई, मानो उस की  सारी सजधज सार्थक हो गई. यही सुनने की तो उस की इच्छा भी थी. साड़ी के जादुई आकर्षण को वह खूब जानती थी. विदेशों में तो लोग मुड़मुड़ कर देखते थे. अपने देश में अवसर मिलने पर वह भले ही जींस और जैकेट पहन ले, पर बाहर निकलने पर तो सिर्फ साड़ी और सलवारसूट ही साथ ले  जाती थी.

पार्टी कक्ष की ओर बढ़ते हुए रजत ने पत्नी को बांहों में घेरा तो वह खिलखिला कर बोली, ‘‘श्रीमान रजत, भारतीय हैं भारतीयों की तरह व्यवहार करें.’’

उस रात डिनरडांस का कार्यक्रम था. हौल में हलकाहलका और्केस्ट्रा बज रहा था. स्टेज के मंद प्रकाश में कुछ जोड़े हौलेहौले थिरक रहे थे. औपचारिक हायहैलो का दौर चला, फिर धीरेधीरे सब खुलने लगे. कुछ इधर की कुछ उधर की, हासपरिहास, ठिठोली और ठहाके. मेहमान, मेजबान सभी मौजमस्ती के मूड  में आ गए.

अपने झूमरझुमकों और विशुद्ध भारतीयपन के कारण सांवलीसलोनी रितु बिलकुल अलग ही लग रही थी. देशीविदेशी स्त्रियों के जमघट में सब, मुड़मुड़ कर बस, उसे ही देखे जा रहे थे.रजत का तो कहना ही क्या, उसे पत्नी पर इतना प्यार आ रहा था कि पूछो मत, ‘‘चलो न रितु, हम भी डांस करें.’’

‘‘अरे नहीं… मुझे आता ही कहां है ऐसे थिरकना,’’ रितु झिझकी तो रजत ने कहा, ‘‘आना न आना क्या? एक पैर आगे फिर एक पैर पीछे. एकदूसरे से लिपट कर बस, आगेपीछे हिलतेडुलते रहो.’’पर रितु फिर भी अपनी बात पर अड़ी रही, ‘‘न बाबा न, मुझ से नहीं होगा ऐसा हिलनाडुलना.’’

‘‘तो आप अपना भरतनाट्यम ही दिखा दीजिए, रितुजी,’’ पास खड़े रमेश की चुटकी पर कई लोग उस के साथ जुड़ गए.‘‘हां, हां, रितुजी आज तो हो ही जाए आप की कला का प्रदर्शन,’’ सुन कर रितु कुछकुछ सकपका सी गई.‘‘हां भई, रितु दिखा दो. इन अंगरेजों को भी कि नृत्य क्या होता है,’’ इस बार महिलाओं ने मित्रवत फरमाइश की. पर रितु अपनी जगह से हिली तक नहीं. उस की विवशता भी उचित ही थी.

‘‘संगीत की संगत के बिना भरतनाट्यम कैसे हो, तबले की ताल के बिना तो भरतनाट्यम असंभव है,’’ वह बोली.‘‘हां, यह तो है,’’ सब एकदम ही निराश, निरुत्साह हो गए. तभी रजत ने एक रास्ता सुझाया, ‘‘चलो, आज किसी फिल्मी गीत पर ही अपना नृत्य दिखा दो, गाने वाले यहां बहुत मिलेंगे.’’

सभी ने जोर से तालियां बजा कर इस प्रस्ताव का स्वागत किया. रितु ने थोड़ी आनाकानी की. रजत को देख अपनी आंखें भी तरेरीं, पर उस की एक न चली. रजत ने तो बाकायदा स्टेज पर जा कर उस के नृत्य की घोषणा ही कर दी. एक बार फिर जोर की करतल ध्वनि हुई और सभी की निगाहें रितु पर जा टिकीं, पर नृत्य तो तब शुरू हो न जब कोई आवाज उठाए, कोई सुरीला गीत गाए.

 

The post हम हिंदुस्तानी-भाग 1 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3o3n2pE

पति के साथ औफिस टूर पर लंदन गई रितु ने वहां की जिंदगी का भरपूर मजा लिया लेकिन खरीदारी करते वक्त भारतीय वस्तुओं के कम स्तर की तुलना करतेकरते रितु ऐसा क्या ले आई कि सिर पकड़ कर बैठ गई?विमान लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा तो आसमान से बूंदें टपक रही थीं. नवंबर के अंतिम सप्ताह में बेमौसम की बौछारों से तापमान बहुत नीचे गिर गया था. विमान से निकल कर बस तक पहुंचतेपहुंचते हड्डियां ठंड से ठिठुर गईं.

सड़कें सुनसान पड़ी थीं. दूरदूर तक कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. केवल तृणविहीन पेड़ों की अंतहीन कतारों में भारत की भीड़भाड़ और गहमागहमी की आदी आंखों को यह सब बड़ा ही उजाड़ और असंगत सा लगा… ‘तो ऐसा है लंदन.’

यों लंदन का उत्तम सैलानी सत्र करीब डेढ़ महीने पहले बीत चुका था, पर भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशवासियों को लंदन की सैर की सूझे, वह भी कंपनी के खर्चे पर, तो त्याग परम आवश्यक बन जाता है. ठंड का क्या, थोड़ाबहुत ठिठुर लेंगे. होटल और जरूरी जनसुविधाएं तो सस्ती पड़ेंगी, बजट तो नहीं गड़बड़ाएगा.

रजत की कामकाजी यात्राओं में रितु भी दुबई, नेपाल, कोलंबो और सिंगापुर की सैर पहले ही कर चुकी थी. कभी कंपनी के खर्चे पर तो कभी अपने खर्चे से, पर यूरोप का यह पहला सफर था उस का.

इस बार की डीलर्स कौन्फ्रैंस लंदन में थी. लिहाजा लंबाचौड़ा दलबल जा रहा था. उच्च पदासीन अधिकारी पत्नियों को भी साथ ले जा सकते थे. 3 दिन का कामकाजी और सैरसपाटे का ट्रिप था. रितु तो मारे खुशी के उछल ही पड़ी थी. बच्चों को साथ ले जाना सदा की भांति वर्जित था. गुड्डु को साथ न ले जाने की मजबूरी रितु को ग्लानि से भर देती. बच्चे को छोड़ कर घूमनाफिरना उसे बिलकुल ही न भाता. मातापिता के विदेश जाने की बात सुन गुड्डू भी उदास हो जाता, पर फिर समय पर दादी बात संभाल लेतीं, ‘जाने दे मां को… हम दोनों मिल कर यहां खूब मजे करेंगे,’ वह पोते को बांहों में भर कर प्यार करतीं.

‘3 दिन तक मां का अनुशासन न होगा. होगा तो सिर्फ दादी का लाड़दुलार, सौदा बुरा तो नहीं.’ सोच कर गुड्डू जब मुसकरा पड़ता तो रितु निश्ंिचत हो कर निकल पाती. लेकिन लौटने पर वह उस के लिए खिलौने, कपड़े, जूते, मोजे, पेन, पैंसिल और भी न  जाने क्याक्या लाती.

यह देख कर रजत अकसर खीझ ही पड़ता, ‘ये सब क्या अनापशनाप चीजें खरीदती रहती हो? ये सब क्या हमारे देश में नहीं बनतीं, बिकतीं? जानती तो हो विदेशी मुद्रा का भाव, पढ़ीलिखी हो, फिर भी वही नादानी.’

रजत चाहे जितना भी झुंझलाए, रुपए की विनिमय दर चाहे कितनी भी कम क्यों न हो, रितु खरीदारी किए बिना नहीं रहती. लौटते समय वह इतनी लदफंद जाती कि कस्टम से क्लीयर होना मुश्किल हो जाता.

‘पाउंड की तुलना में हमारा रुपया  कहीं नहीं ठहरता, खर्च सोचसमझ  कर करना मैडम.’ इस बार भी घर से निकलतेनिकलते रजत ने उसे समझाया था.

होटल के स्वागत कक्ष में दल की औपचारिक आवभगत के बाद सब अपनाअपना सामान उठा कर अपनेअपने कमरे की तरफ चल दिए. यों कमरे तक सामान पहुंचाने के लिए बैलबौयज भी उपलब्ध थे जो प्रति सूटकेस एक पाउंड ही लेते थे.

‘एक पाउंड यानी 60 रुपए. नहींनहीं,’ सोच कर घबराते हुए रितु अपना सामान खुद ही उठाने लगी. ठिठुरती ठंड बाहर ही रह गई. होटल परिसर में गरमाहट थी. छोटा सा साफसुथरा कमरा सुरुचि से सजा था. कमरे में ही चाय की केतली, चीनी, दूध पाउडर और चायकौफी के डब्बे भी एक मेज पर रखे थे यानी अपना काम खुद करो.

थकान दूर करने के लिए अगर चायकौफी का और्डर भी करना हो तो प्रति कप ‘मात्र 3 पाउंड में मिलेगी. 3 पाउंड यानी… अपने इतने रुपए, सोच कर डूबते दिल से रितु ने केतली का प्लग लगा दिया और खुद ही चाय बनाने लगी.

अपने देश में तो वे ऐशोआराम से घूमते थे. जो चाहा, फोन उठाया और और्डर किया. लंचडिनर तक कमरे में पहुंच जाता. पर वही सुविधाएं यहां राजसी ऐश्वर्य के समान थीं, उन की पहुंच से परे. वह सोचती, ‘फिर ऐसे ही खर्च करने लगे तो शौपिंग क्या खाक होगी.’

‘‘अब जरा जल्दी करो, 8 बजने को हैं, 9 बजे तक हमें नीचे हौल में पहुंचना है. तुम्हें सजनेसंवरने में भी समय लगेगा. समय का भी ध्यान रखना है. अपनी देसी लेटलतीफी यहां नहीं चलेगी,’’ रजत बोला.

बादल छिटक चुके थे. आकाश निर्मल नीला निखर आया था. 8 बजने को थे, पर लंदन में बस, अभीअभी ही शाम गहराई थी.

औफ व्हाइट, लाल बौर्डर वाली कांजीवरम साड़ी, माथे पर बिंदिया, आंखों में कजरा, बालों में असली सा दिखता नाइलोन के नन्हेनन्हे फूलों का गजरा. रजत ने देखा तो बस, देखता ही रह गया. बोला, ‘‘बिलकुल ‘मेड इन इंडिया’ लग रही हो.’’

सुन कर रितु इतरा गई, मानो उस की  सारी सजधज सार्थक हो गई. यही सुनने की तो उस की इच्छा भी थी. साड़ी के जादुई आकर्षण को वह खूब जानती थी. विदेशों में तो लोग मुड़मुड़ कर देखते थे. अपने देश में अवसर मिलने पर वह भले ही जींस और जैकेट पहन ले, पर बाहर निकलने पर तो सिर्फ साड़ी और सलवारसूट ही साथ ले  जाती थी.

पार्टी कक्ष की ओर बढ़ते हुए रजत ने पत्नी को बांहों में घेरा तो वह खिलखिला कर बोली, ‘‘श्रीमान रजत, भारतीय हैं भारतीयों की तरह व्यवहार करें.’’

उस रात डिनरडांस का कार्यक्रम था. हौल में हलकाहलका और्केस्ट्रा बज रहा था. स्टेज के मंद प्रकाश में कुछ जोड़े हौलेहौले थिरक रहे थे. औपचारिक हायहैलो का दौर चला, फिर धीरेधीरे सब खुलने लगे. कुछ इधर की कुछ उधर की, हासपरिहास, ठिठोली और ठहाके. मेहमान, मेजबान सभी मौजमस्ती के मूड  में आ गए.

अपने झूमरझुमकों और विशुद्ध भारतीयपन के कारण सांवलीसलोनी रितु बिलकुल अलग ही लग रही थी. देशीविदेशी स्त्रियों के जमघट में सब, मुड़मुड़ कर बस, उसे ही देखे जा रहे थे.रजत का तो कहना ही क्या, उसे पत्नी पर इतना प्यार आ रहा था कि पूछो मत, ‘‘चलो न रितु, हम भी डांस करें.’’

‘‘अरे नहीं… मुझे आता ही कहां है ऐसे थिरकना,’’ रितु झिझकी तो रजत ने कहा, ‘‘आना न आना क्या? एक पैर आगे फिर एक पैर पीछे. एकदूसरे से लिपट कर बस, आगेपीछे हिलतेडुलते रहो.’’पर रितु फिर भी अपनी बात पर अड़ी रही, ‘‘न बाबा न, मुझ से नहीं होगा ऐसा हिलनाडुलना.’’

‘‘तो आप अपना भरतनाट्यम ही दिखा दीजिए, रितुजी,’’ पास खड़े रमेश की चुटकी पर कई लोग उस के साथ जुड़ गए.‘‘हां, हां, रितुजी आज तो हो ही जाए आप की कला का प्रदर्शन,’’ सुन कर रितु कुछकुछ सकपका सी गई.‘‘हां भई, रितु दिखा दो. इन अंगरेजों को भी कि नृत्य क्या होता है,’’ इस बार महिलाओं ने मित्रवत फरमाइश की. पर रितु अपनी जगह से हिली तक नहीं. उस की विवशता भी उचित ही थी.

‘‘संगीत की संगत के बिना भरतनाट्यम कैसे हो, तबले की ताल के बिना तो भरतनाट्यम असंभव है,’’ वह बोली.‘‘हां, यह तो है,’’ सब एकदम ही निराश, निरुत्साह हो गए. तभी रजत ने एक रास्ता सुझाया, ‘‘चलो, आज किसी फिल्मी गीत पर ही अपना नृत्य दिखा दो, गाने वाले यहां बहुत मिलेंगे.’’

सभी ने जोर से तालियां बजा कर इस प्रस्ताव का स्वागत किया. रितु ने थोड़ी आनाकानी की. रजत को देख अपनी आंखें भी तरेरीं, पर उस की एक न चली. रजत ने तो बाकायदा स्टेज पर जा कर उस के नृत्य की घोषणा ही कर दी. एक बार फिर जोर की करतल ध्वनि हुई और सभी की निगाहें रितु पर जा टिकीं, पर नृत्य तो तब शुरू हो न जब कोई आवाज उठाए, कोई सुरीला गीत गाए.

 

The post हम हिंदुस्तानी-भाग 1 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था appeared first on Sarita Magazine.

December 31, 2020 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment