Wednesday 30 December 2020

हम हिंदुस्तानी-भाग 2 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था

तभी हौल में खुसुरफुसुर शुरू हो गई. ‘‘आप गाइए, अरे, आप सुनाइए. आप तो कितना अच्छा गाती हैं.’’ सब एकदूसरे को आगे करने में लगे थे, तभी एक कमाल हो गया. हौल में उपस्थित अंगरेजी बैंड पार्टी हिंदी गीत की धुन बजाने को तैयार हो गई.

‘‘क्या, आप हिंदी धुन बजाएंगे? हिंदी गीत यहां भी इतने लोकप्रिय हैं क्या?’’सभी को बहुत आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी.

बैंड के ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी…’ गाने की धुन शुरू होते ही हौल में एक जोरदार हर्षध्वनि हुई और फिर रितु के नृत्य ने तो बस, समां ही बांध दिया.

उस के बाद तो कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं रही. बैंड एक के बाद एक हिंदी सुरसंगीत बजाता रहा, नएपुराने गानों की बौछार होने लगी.

बारबार सुनेसुनाए अपने ही गीत उस पराई धरती पर नएनिराले अर्थ और भाव दे रहे थे. गर्वगौरव, मानअभिमान हर हिंदुस्तानी अपने ऊपर नए सिरे से नाज कर उठा.

रात रंगीन हो चली. फरमाइशी गानों की झड़ी सी लग गई. लोग भूखप्यास भूल गए. डिनर सर्व करने का समय भी हो गया. होटल के कर्मचारी अनमने से दिखने लगे तो बैंड ने क्षमायाचना सहित रात की अंतिम धुन की घोषणा कर दी, ‘अलीशा चिनौय की मेड इन इंडिया.’

हौल में जैसे धमाका हो गया. धूमधड़ाका मच गया. तालियों और सीटियों की आवाज गूंज गई.‘दिल चाहिए बस मेड इन इंडिया, प्यारा सोणिया…’ संगीत की स्वरलहरियों के साथ लगे सभी झूमने.

अगले दिन पुरुष वर्ग की कौन्फ्रैंस थी. गोष्ठियों और सेमिनारों की व्यस्तताएं थीं. कारोबारी काम थे. व्यापारिक सौदे होने थे.महिला वर्ग को व्यस्त रखने के लिए, थेम्स नदी पर जलविहार, ट्यूब ट्रेन की सैर और खरीदारी का कार्यक्रम रखा गया था.

सभी स्त्रियां बहुत खुश थीं, क्योंकि खरीदारी पर पति लोग साथ न थे. अब न कोई अंकुश होगा न ही कोई कलह. मन को मौज, बस, मस्ती ही मस्ती.

‘‘और इतनी ठंड में नौका विहार? मरना है क्या हमें. नदियां हमारे देश में कम हैं क्या?’’ थेम्स नदी के तट पर खड़ेखड़े लगभग सभी ने एकमत हो कर जलविहार का कार्यक्रम रद्द कर दिया. जो इक्कादुक्का जाना भी चाहती थीं, मन मसोस कर उन्हें भी बहुमत के आगे झुकना पड़ा.

‘‘और यह ट्यूब ट्रेन की सवारी का क्या मतलब है? हम कोई बच्चे तो हैं नहीं और भूमिगत रेल क्या हमारे देश में नहीं चलती? कलकत्ता जा कर देखो कभी,’’ ज्यादातर महिलाओं का यही कहना था यानी जितना जल्दी हो सके, शौपिंग पर पहुंचना चाहिए. जो बेचारियां इस रद्दोबदल से आहत थीं वे अपना सा मुंह लिए रह गईं और महिला मंडल का वह कारवां सीधे एक विशाल गगनचुंबी शौपिंग कौंप्लैक्स में जा पहुंचा.

शौपिंग कौंप्लैक्स की तो जैसे अपनी एक अलग ही दुनिया थी. सभी जनसुविधाओं सहित अपनेआप में एक नया ही नगर बसा था अंदर.

इमारत के बेसमैंट से ले कर 7वीं मंजिल तक तो केवल कार पार्किंग की सुविधा थी. पारदर्शी शीशे की लिफ्टों में से घुमावदार ढलानों पर रेंगती कारें अनोखी दिख रही थीं.

लिफ्ट भी तरहतरह की थीं, हर तल पर रुकने वाली साधारण, हर दूसरे माले पर रुकने वाली फास्ट, प्रत्येक 5वीं मंजिल पर रुकने वाली सुपर फास्ट और सीधे 10-10 माले फलांगने वाली एक्सप्रैस लिफ्ट.8वें तल पर स्वागत कक्ष, रैस्तरां तथा आवश्यक जनसुविधाएं थीं. उस के बाद प्रत्येक तल पर एक ही प्रकार की वस्तुओं का बाजार. प्रत्येक तल पर लिफ्ट से निकलते ही संपूर्ण इमारत का मानचित्र भी आवश्यक संकेतों के साथ टंगा था. महिला मंडली के साथ तो होटल से 2 गाइड भी आए थे. सावधानीवश प्रत्येक महिला को होटल के नामपते वाला कार्ड भी दिया गया था ताकि बाजार की विशालता और भीड़भाड़ में यदि कोई भटक जाए तो वापस होटल पहुंच सके.

इस तरह की बड़ीबड़ी दुकानें और बाजार अब भारत के महानगरों में भी हैं, पर यहां की व्यवस्था और व्यवहार, अनुशासन और स्वच्छता तो बस, देखते ही बनती थी.

प्रत्येक दुकान पर सभी वस्तुएं कीमत के स्टीकर सहित प्रदर्शित थीं. मोलभाव का तो प्रश्न ही न था, फिर भी चीज पसंद करवाने के लिए कर्मचारी भी तैनात थे.

औरतें छोटेछोटे दलों में बंटी अपने अनुसार कुछ खरीदती रहीं, कुछ सिर्फ सराहतीनिहारती रहीं.रितु एक के बाद एक कर के गुड्डू की पसंद की चीजें खरीदती गई. कुछ प्रसाधन सामग्री भी ली. 1-2 नाइटी भी लीं. फिर यों ही देखतेचलते उस की दृष्टि चौड़े पट्टे वाले एक बैग पर जा अटकी. रितु ने उसे देखा तो बस देखती ही रह गई. चमकता चमड़ा ऊपर तितली के आकार का सुनहरा ब्रोच, बहुत सुंदर, बिलकुल उस का मनपसंद, पर कीमत पर नजर पड़ते ही उस का दिल बैठ गया, ‘इतना महंगा.’

अपने देश की मुद्रा में आंकने पर बात हजारों में बैठती थी. ‘इतना महंगा बैग रजत को दिखाएबताए बिना कैसे खरीदूं?’ उस ने सोचा. दुविधा एक और भी थी, साथ में जेबा, नरिंदर और सामरा भी तो खड़ी थीं. उन में से यदि किसी ने भी वैसा बैग पसंद कर लिया तो फिर वह बैग रितु के लिए बिलकुल बेकार था. उसे तो सब से अलग दिखने वाली चीजें ही पसंद थीं. चोर नजरों से बैग को निहारती, आंखों ही आंखों में उसे सराहती रितु दुकान से बाहर तो निकल गई पर उसे चैन कहां. बैग का चाव उसे अपनी ओर चुंबक की तरह खींच रहा था.

‘ले लूं? ले ही लूं क्या? पूछने पर रजत तो राजी होने से रहा… फिर दोबारा इधर आना हो न हो?’ मचलते मन को वह किसी भी तरह समझाने में असमर्थ रही. दूसरी औरतें थोड़ा आगे बढ़ीं तो वह जल्दी से वापस पलटी और दुकान में घुस कर धड़कते दिल से पैसे चुका कर उस ने वह हैंड बैग पैक करवा ही लिया.

दिन ढल गया, शाम होने को आई. गाइड का ड्यूटी टाइम समाप्त होने को था. वह अगर चलने की जल्दी न मचाता तो औरतें तो अभी और भटकतीं उस चक्रव्यूह में. कुछेक ही अपवाद रही होंगी वरना हर स्त्री सामान से लदीफदी थी, हरेक के हाथ में कईकई पैकेट थे.

वापस होटल तक की बस यात्रा में महिला मंडली को उलझाए रखने के लिए गाइड अगले दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा बताता रहा क्योंकि अगले दिन सैलानी स्थलों की सैर का आयोजन था.गाइड ने बताना शुरू किया, ‘‘थेम्स नदी पर बना लंदन ब्रिज जो विशाल जलयानों को रास्ता देने के लिए सिमट कर बंद हो जाता है.

‘‘राजमहल पर पहरेदार परिवर्तन का दृश्य (चेंज औफ गार्ड्स), मैडम तुसाद का मोम म्यूजियम, जहां जगप्रसिद्ध व्यक्तियों के हूबहू, सजीव से दिखते मोम के पुतले खड़े हैं.

 

The post हम हिंदुस्तानी-भाग 2 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3aS9oC1

तभी हौल में खुसुरफुसुर शुरू हो गई. ‘‘आप गाइए, अरे, आप सुनाइए. आप तो कितना अच्छा गाती हैं.’’ सब एकदूसरे को आगे करने में लगे थे, तभी एक कमाल हो गया. हौल में उपस्थित अंगरेजी बैंड पार्टी हिंदी गीत की धुन बजाने को तैयार हो गई.

‘‘क्या, आप हिंदी धुन बजाएंगे? हिंदी गीत यहां भी इतने लोकप्रिय हैं क्या?’’सभी को बहुत आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी.

बैंड के ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी…’ गाने की धुन शुरू होते ही हौल में एक जोरदार हर्षध्वनि हुई और फिर रितु के नृत्य ने तो बस, समां ही बांध दिया.

उस के बाद तो कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं रही. बैंड एक के बाद एक हिंदी सुरसंगीत बजाता रहा, नएपुराने गानों की बौछार होने लगी.

बारबार सुनेसुनाए अपने ही गीत उस पराई धरती पर नएनिराले अर्थ और भाव दे रहे थे. गर्वगौरव, मानअभिमान हर हिंदुस्तानी अपने ऊपर नए सिरे से नाज कर उठा.

रात रंगीन हो चली. फरमाइशी गानों की झड़ी सी लग गई. लोग भूखप्यास भूल गए. डिनर सर्व करने का समय भी हो गया. होटल के कर्मचारी अनमने से दिखने लगे तो बैंड ने क्षमायाचना सहित रात की अंतिम धुन की घोषणा कर दी, ‘अलीशा चिनौय की मेड इन इंडिया.’

हौल में जैसे धमाका हो गया. धूमधड़ाका मच गया. तालियों और सीटियों की आवाज गूंज गई.‘दिल चाहिए बस मेड इन इंडिया, प्यारा सोणिया…’ संगीत की स्वरलहरियों के साथ लगे सभी झूमने.

अगले दिन पुरुष वर्ग की कौन्फ्रैंस थी. गोष्ठियों और सेमिनारों की व्यस्तताएं थीं. कारोबारी काम थे. व्यापारिक सौदे होने थे.महिला वर्ग को व्यस्त रखने के लिए, थेम्स नदी पर जलविहार, ट्यूब ट्रेन की सैर और खरीदारी का कार्यक्रम रखा गया था.

सभी स्त्रियां बहुत खुश थीं, क्योंकि खरीदारी पर पति लोग साथ न थे. अब न कोई अंकुश होगा न ही कोई कलह. मन को मौज, बस, मस्ती ही मस्ती.

‘‘और इतनी ठंड में नौका विहार? मरना है क्या हमें. नदियां हमारे देश में कम हैं क्या?’’ थेम्स नदी के तट पर खड़ेखड़े लगभग सभी ने एकमत हो कर जलविहार का कार्यक्रम रद्द कर दिया. जो इक्कादुक्का जाना भी चाहती थीं, मन मसोस कर उन्हें भी बहुमत के आगे झुकना पड़ा.

‘‘और यह ट्यूब ट्रेन की सवारी का क्या मतलब है? हम कोई बच्चे तो हैं नहीं और भूमिगत रेल क्या हमारे देश में नहीं चलती? कलकत्ता जा कर देखो कभी,’’ ज्यादातर महिलाओं का यही कहना था यानी जितना जल्दी हो सके, शौपिंग पर पहुंचना चाहिए. जो बेचारियां इस रद्दोबदल से आहत थीं वे अपना सा मुंह लिए रह गईं और महिला मंडल का वह कारवां सीधे एक विशाल गगनचुंबी शौपिंग कौंप्लैक्स में जा पहुंचा.

शौपिंग कौंप्लैक्स की तो जैसे अपनी एक अलग ही दुनिया थी. सभी जनसुविधाओं सहित अपनेआप में एक नया ही नगर बसा था अंदर.

इमारत के बेसमैंट से ले कर 7वीं मंजिल तक तो केवल कार पार्किंग की सुविधा थी. पारदर्शी शीशे की लिफ्टों में से घुमावदार ढलानों पर रेंगती कारें अनोखी दिख रही थीं.

लिफ्ट भी तरहतरह की थीं, हर तल पर रुकने वाली साधारण, हर दूसरे माले पर रुकने वाली फास्ट, प्रत्येक 5वीं मंजिल पर रुकने वाली सुपर फास्ट और सीधे 10-10 माले फलांगने वाली एक्सप्रैस लिफ्ट.8वें तल पर स्वागत कक्ष, रैस्तरां तथा आवश्यक जनसुविधाएं थीं. उस के बाद प्रत्येक तल पर एक ही प्रकार की वस्तुओं का बाजार. प्रत्येक तल पर लिफ्ट से निकलते ही संपूर्ण इमारत का मानचित्र भी आवश्यक संकेतों के साथ टंगा था. महिला मंडली के साथ तो होटल से 2 गाइड भी आए थे. सावधानीवश प्रत्येक महिला को होटल के नामपते वाला कार्ड भी दिया गया था ताकि बाजार की विशालता और भीड़भाड़ में यदि कोई भटक जाए तो वापस होटल पहुंच सके.

इस तरह की बड़ीबड़ी दुकानें और बाजार अब भारत के महानगरों में भी हैं, पर यहां की व्यवस्था और व्यवहार, अनुशासन और स्वच्छता तो बस, देखते ही बनती थी.

प्रत्येक दुकान पर सभी वस्तुएं कीमत के स्टीकर सहित प्रदर्शित थीं. मोलभाव का तो प्रश्न ही न था, फिर भी चीज पसंद करवाने के लिए कर्मचारी भी तैनात थे.

औरतें छोटेछोटे दलों में बंटी अपने अनुसार कुछ खरीदती रहीं, कुछ सिर्फ सराहतीनिहारती रहीं.रितु एक के बाद एक कर के गुड्डू की पसंद की चीजें खरीदती गई. कुछ प्रसाधन सामग्री भी ली. 1-2 नाइटी भी लीं. फिर यों ही देखतेचलते उस की दृष्टि चौड़े पट्टे वाले एक बैग पर जा अटकी. रितु ने उसे देखा तो बस देखती ही रह गई. चमकता चमड़ा ऊपर तितली के आकार का सुनहरा ब्रोच, बहुत सुंदर, बिलकुल उस का मनपसंद, पर कीमत पर नजर पड़ते ही उस का दिल बैठ गया, ‘इतना महंगा.’

अपने देश की मुद्रा में आंकने पर बात हजारों में बैठती थी. ‘इतना महंगा बैग रजत को दिखाएबताए बिना कैसे खरीदूं?’ उस ने सोचा. दुविधा एक और भी थी, साथ में जेबा, नरिंदर और सामरा भी तो खड़ी थीं. उन में से यदि किसी ने भी वैसा बैग पसंद कर लिया तो फिर वह बैग रितु के लिए बिलकुल बेकार था. उसे तो सब से अलग दिखने वाली चीजें ही पसंद थीं. चोर नजरों से बैग को निहारती, आंखों ही आंखों में उसे सराहती रितु दुकान से बाहर तो निकल गई पर उसे चैन कहां. बैग का चाव उसे अपनी ओर चुंबक की तरह खींच रहा था.

‘ले लूं? ले ही लूं क्या? पूछने पर रजत तो राजी होने से रहा… फिर दोबारा इधर आना हो न हो?’ मचलते मन को वह किसी भी तरह समझाने में असमर्थ रही. दूसरी औरतें थोड़ा आगे बढ़ीं तो वह जल्दी से वापस पलटी और दुकान में घुस कर धड़कते दिल से पैसे चुका कर उस ने वह हैंड बैग पैक करवा ही लिया.

दिन ढल गया, शाम होने को आई. गाइड का ड्यूटी टाइम समाप्त होने को था. वह अगर चलने की जल्दी न मचाता तो औरतें तो अभी और भटकतीं उस चक्रव्यूह में. कुछेक ही अपवाद रही होंगी वरना हर स्त्री सामान से लदीफदी थी, हरेक के हाथ में कईकई पैकेट थे.

वापस होटल तक की बस यात्रा में महिला मंडली को उलझाए रखने के लिए गाइड अगले दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा बताता रहा क्योंकि अगले दिन सैलानी स्थलों की सैर का आयोजन था.गाइड ने बताना शुरू किया, ‘‘थेम्स नदी पर बना लंदन ब्रिज जो विशाल जलयानों को रास्ता देने के लिए सिमट कर बंद हो जाता है.

‘‘राजमहल पर पहरेदार परिवर्तन का दृश्य (चेंज औफ गार्ड्स), मैडम तुसाद का मोम म्यूजियम, जहां जगप्रसिद्ध व्यक्तियों के हूबहू, सजीव से दिखते मोम के पुतले खड़े हैं.

 

The post हम हिंदुस्तानी-भाग 2 : रितू ने रजत के साथ क्यों बहाना किया था, जिससे वह परेशान हो गया था appeared first on Sarita Magazine.

December 31, 2020 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment