Sunday 28 February 2021

Women’s Day Special: -भाग 2-कागज का रिश्ता-विभा किसके खत को पढ़कर खुश हो जाती थी

इन पत्रों के सिलसिले ने विमला देवी के माथे पर अनायास ही बल डाल दिए. उन्होंने राकेश से पूछा, ‘‘पत्र कहां से आया है?’’

राकेश कंधे उचका कर बोला, ‘‘मुझे क्या मालूम? भाभी के किसी ‘पैन फ्रैंड’ का पत्र है.’’

‘‘ऐं, यह ‘पैन फ्रैंड’ क्या चीज होती है?’’ विमला देवी ने खोजी निगाहों से बेटे की तरफ देखा.

‘‘मां, पैन फ्रैंड यानी कि पत्र मित्र,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जब मुकेश छोटा था तब वह भी बाल पत्रिकाओं से बच्चों के पते ढूंढ़ढूंढ़ कर पत्र मित्र बनाया करता था और उन्हें पत्र भेजा करता था,’’ विमला देवी ने याद करते हुए कहा.

‘‘बचपन के औपचारिक पत्र मित्र समय के साथसाथ छूटते चले जाते हैं. भाभी की तरह उन के लगातार पत्र नहीं आते,’’ कहते हुए राकेश ने बाहर की राह ली और विमला देवी अकेली आंगन में बैठी रह गईं.

सर्दियों के गुनगुने दिन धूप ढलते ही बीत जाते हैं. विभा ने जब तक चायनाश्ते के बरतन समेटे, सांझ ढल चुकी थी. वह फिर रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मुकेश को बढि़या खाना खाने का शौक भी था और वह दफ्तर से लौट कर जल्दी ही रात का खाना खाने का आदी भी था.

दफ्तर से लौटते ही मुकेश ने विभा को बुला कर कहा, ‘‘सुनो, आज दफ्तर में तुम्हारे भैयाभाभी का फोन आया था. वे लोग परसों अहमदाबाद लौट रहे हैं, कल उन्होंने तुम्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा,’’ विभा ने मुकेश के हाथ से कोट ले कर अलमारी में टांगते हुए कहा.

अगले दिन सुबह मुकेश को दफ्तर भेज कर विभा अपने भैयाभाभी से मिलने तिलक नगर चली गई. वे दक्षिण भारत घूम कर लौटे थे और घर के सदस्यों के लिए तरहतरह के उपहार लाए थे. विभा अपने लिए लाई गई मैसूर जार्जेट की साड़ी देख कर खिल उठी थी.

विभा की मां को अचानक कुछ याद आया. वे अपनी मेज पर रखी चिट्ठियों में से एक कार्ड निकाल कर विभा को देते हुए बोलीं, ‘‘यह तेरे नाम का एक कार्ड आया था.’’

‘‘किस का कार्ड है?’’ विभा की भाभी शीला ने कार्ड की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘मेरे एक मित्र का कार्ड है, भाभी. नव वर्ष, दीवाली, होली, जन्मदिन आदि पर हम लोग कार्ड भेज कर एकदूसरे को बधाई देते हैं,’’ विभा ने कार्ड पढ़ते हुए कहा.

‘‘कभी मुलाकात भी होती है इन मित्रों से?’’ शीला भाभी ने तनिक सोचते हुए कहा.

‘‘कभी आमनेसामने तो मुलाकात नहीं हुई, न ऐसी जरूरत ही महसूस हुई,’’ विभा ने सहज भाव से कार्ड देखते हुए उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारे पास ससुराल में भी ऐसे बधाई कार्ड पहुंचते हैं?’’ शीला ने अगला प्रश्न किया.

‘‘हांहां, वहां भी मेरे कार्ड आते हैं,’’ विभा ने तनिक उत्साह से बताया.

‘‘क्या मुकेश भाई भी तुम्हारे इन पत्र मित्रों के बधाई कार्ड देखते हैं?’’ इस बार शीला भाभी ने सीधा सवाल किया.

‘‘क्यों? ऐसी क्या गलत बात है इन बधाई कार्डों में?’’ प्रत्युत्तर में विभा का स्वर भी बदल गया था.

‘‘अब तुम विवाहिता हो विभा और विवाहित जीवन में ये बातें कोई महत्त्व नहीं रखतीं. मैं मानती हूं कि तुम्हारा तनमन निर्मल है, लेकिन पतिपत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. अगर इस रिश्ते में एक बार शक का बीज पनप

गया तो सारा जीवन अपनी सफाई देते हुए ही नष्ट हो जाता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम यह पत्र मित्रता अब यहीं खत्म कर दो,’’ शीला ने समझाते हुए कहा.

‘‘भाभी, तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम लोग यह बधाई कार्ड सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से भेजते हैं. इतनी साधारण सी बात मुकेश और मेरे बीच में शक का कारण बन सकती है, मैं ऐसा नहीं मानती,’’ विभा तुनक कर बोली.

शाम ढल रही थी और विभा को घर लौटना था, इसलिए चर्चा वहीं खत्म हो गई. विभा अपना उपहार ले कर खुशीखुशी ससुराल लौट आई.

लगभग पूरा महीना सर्दी की चपेट में ठंड से ठिठुरते हुए कब बीत गया, कुछ पता ही न चला. गरमी की दस्तक देती एक दोपहर में जब विभा नहा कर अपने कमरे में आई तो देखा, मुकेश का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा है. वह मुसकरा कर अपनी साड़ी का पल्ला हवा में लहराते हुए बोली, ‘‘सुनिए.’’

 

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इन पत्रों के सिलसिले ने विमला देवी के माथे पर अनायास ही बल डाल दिए. उन्होंने राकेश से पूछा, ‘‘पत्र कहां से आया है?’’

राकेश कंधे उचका कर बोला, ‘‘मुझे क्या मालूम? भाभी के किसी ‘पैन फ्रैंड’ का पत्र है.’’

‘‘ऐं, यह ‘पैन फ्रैंड’ क्या चीज होती है?’’ विमला देवी ने खोजी निगाहों से बेटे की तरफ देखा.

‘‘मां, पैन फ्रैंड यानी कि पत्र मित्र,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जब मुकेश छोटा था तब वह भी बाल पत्रिकाओं से बच्चों के पते ढूंढ़ढूंढ़ कर पत्र मित्र बनाया करता था और उन्हें पत्र भेजा करता था,’’ विमला देवी ने याद करते हुए कहा.

‘‘बचपन के औपचारिक पत्र मित्र समय के साथसाथ छूटते चले जाते हैं. भाभी की तरह उन के लगातार पत्र नहीं आते,’’ कहते हुए राकेश ने बाहर की राह ली और विमला देवी अकेली आंगन में बैठी रह गईं.

सर्दियों के गुनगुने दिन धूप ढलते ही बीत जाते हैं. विभा ने जब तक चायनाश्ते के बरतन समेटे, सांझ ढल चुकी थी. वह फिर रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मुकेश को बढि़या खाना खाने का शौक भी था और वह दफ्तर से लौट कर जल्दी ही रात का खाना खाने का आदी भी था.

दफ्तर से लौटते ही मुकेश ने विभा को बुला कर कहा, ‘‘सुनो, आज दफ्तर में तुम्हारे भैयाभाभी का फोन आया था. वे लोग परसों अहमदाबाद लौट रहे हैं, कल उन्होंने तुम्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा,’’ विभा ने मुकेश के हाथ से कोट ले कर अलमारी में टांगते हुए कहा.

अगले दिन सुबह मुकेश को दफ्तर भेज कर विभा अपने भैयाभाभी से मिलने तिलक नगर चली गई. वे दक्षिण भारत घूम कर लौटे थे और घर के सदस्यों के लिए तरहतरह के उपहार लाए थे. विभा अपने लिए लाई गई मैसूर जार्जेट की साड़ी देख कर खिल उठी थी.

विभा की मां को अचानक कुछ याद आया. वे अपनी मेज पर रखी चिट्ठियों में से एक कार्ड निकाल कर विभा को देते हुए बोलीं, ‘‘यह तेरे नाम का एक कार्ड आया था.’’

‘‘किस का कार्ड है?’’ विभा की भाभी शीला ने कार्ड की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘मेरे एक मित्र का कार्ड है, भाभी. नव वर्ष, दीवाली, होली, जन्मदिन आदि पर हम लोग कार्ड भेज कर एकदूसरे को बधाई देते हैं,’’ विभा ने कार्ड पढ़ते हुए कहा.

‘‘कभी मुलाकात भी होती है इन मित्रों से?’’ शीला भाभी ने तनिक सोचते हुए कहा.

‘‘कभी आमनेसामने तो मुलाकात नहीं हुई, न ऐसी जरूरत ही महसूस हुई,’’ विभा ने सहज भाव से कार्ड देखते हुए उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारे पास ससुराल में भी ऐसे बधाई कार्ड पहुंचते हैं?’’ शीला ने अगला प्रश्न किया.

‘‘हांहां, वहां भी मेरे कार्ड आते हैं,’’ विभा ने तनिक उत्साह से बताया.

‘‘क्या मुकेश भाई भी तुम्हारे इन पत्र मित्रों के बधाई कार्ड देखते हैं?’’ इस बार शीला भाभी ने सीधा सवाल किया.

‘‘क्यों? ऐसी क्या गलत बात है इन बधाई कार्डों में?’’ प्रत्युत्तर में विभा का स्वर भी बदल गया था.

‘‘अब तुम विवाहिता हो विभा और विवाहित जीवन में ये बातें कोई महत्त्व नहीं रखतीं. मैं मानती हूं कि तुम्हारा तनमन निर्मल है, लेकिन पतिपत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. अगर इस रिश्ते में एक बार शक का बीज पनप

गया तो सारा जीवन अपनी सफाई देते हुए ही नष्ट हो जाता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम यह पत्र मित्रता अब यहीं खत्म कर दो,’’ शीला ने समझाते हुए कहा.

‘‘भाभी, तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम लोग यह बधाई कार्ड सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से भेजते हैं. इतनी साधारण सी बात मुकेश और मेरे बीच में शक का कारण बन सकती है, मैं ऐसा नहीं मानती,’’ विभा तुनक कर बोली.

शाम ढल रही थी और विभा को घर लौटना था, इसलिए चर्चा वहीं खत्म हो गई. विभा अपना उपहार ले कर खुशीखुशी ससुराल लौट आई.

लगभग पूरा महीना सर्दी की चपेट में ठंड से ठिठुरते हुए कब बीत गया, कुछ पता ही न चला. गरमी की दस्तक देती एक दोपहर में जब विभा नहा कर अपने कमरे में आई तो देखा, मुकेश का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा है. वह मुसकरा कर अपनी साड़ी का पल्ला हवा में लहराते हुए बोली, ‘‘सुनिए.’’

 

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March 01, 2021 at 10:00AM

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