Friday 26 February 2021

बर्फ का तूफान-भाग 3 : फ्लाइट में बैठे सभी यात्री अचानक क्यों डर गए

‘‘पता नहीं, शायद आल्प्स पर्वत की पहाडि़यों पर हैं.’’

‘‘और बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘पता नहीं. आओ उठो, देखते हैं.’’ सहारा दे कर उस ने रीना को खड़ा किया. फिर एकदूसरे का हाथ थामे एकदूसरे को सहारा दे चलने लगे. मगर किस तरफ जाएं. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी थी.

सूरज आसमान के बीचोंबीच था. पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर और दक्षिण दिशा किधर थी. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी. दूर तक ऊंचेऊंचे पहाड़ बर्फ से ढके थे.

ये भी पढ़ें- बेटा मेरा है तुम्हारा नहीं

पेड़पौधे, वनस्पति किसी का नामोनिशान नहीं था.

‘‘यहां भटकना ऐसा है जैसे किसी रेगिस्तान में भटकना,’’ रीना ने कहा.

‘‘आप का मोबाइल फोन कहां है?’’

रीना ने वक्षस्थल के बीच में हाथ डाला. छोटी पौकेट में उस का मोबाइल फोन था. वह भी जाम था. उस को सर्दी लग रही थी. साड़ीब्लाउज के ऊपर उस ने हलका स्वैटर डाला हुआ था. कैप्टन अक्षय चौहान सफेद पैंटशर्ट पर हलकी ऊनी जैकेट पहने था. उस ने रीना के शरीर की कंपकंपी को महसूस करते हुए अपनी जैकेट उतार कर उसे पहना दी.

‘‘यहां कहां और कब तक भटकेंगे?’’

‘‘एक जगह स्थिर बैठने के बजाय चलते रहना बेहतर है. बैठे रहने से शरीर सुन्न पड़ जाएगा.’’ कहते हुए कैप्टन ने अपना बायां बाजू उस की कमर में डाल दिया और उस को अपने साथ सटा धीरेधीरे चलने लगा.

आम हालत में अपने क्रू के किसी साथी या किसी अन्य को यों बांहों में लेना संभव नहीं था. मगर अब हालात जिंदगी और मौत के थे. रीना ने शरीर को ढीला छोड़ दिया.

लगभग एक फर्लांग चलने के बाद उन को हवाई जहाज का एक पंख बर्फ में धंसा मिला. इस से उन को आशा बंधी कि हवाई जहाज के बाकी हिस्से भी आसपास होंगे.

‘‘मुझे प्यास लगी है?’’ खुश्क होंठों पर जीभ फिराते रीना ने कहा.

कैप्टन ने इधरउधर देखा. बर्फ के रेगिस्तान में पानी कहां से मिलता. क्यों न बर्फ चूसी जाए. उस ने नीचे झुक कर बर्फ को हटाया, ऊपर की बर्फ कच्ची थी. नीचे की परत सख्त थी, जैसे जमी हुई सिल्ली हो. एक छोटा टुकड़ा उखाड़ कर उस ने रीना को थमा दिया, ‘‘इसे चूसो.’’

थोड़ा आगे हवाई जहाज की पूंछ का पंखा पड़ा था. उस से आगे छोटेबड़े टुकड़े, सीटें. कुछ सीटें सहीसलामत थीं. एक तरफ एक कार्टून पड़ा था. उस में खाने के पैकेट थे.

खाना देखते दोनों की आंखें चमक उठीं. बर्फ पर बैठ कर दोनों ने एकएक पैकेट खोल लिया. बर्फ से भी ठंडा चावल, रोटी, सब्जी, सलाद सब जमा हुआ. मगर पता नहीं कितने घंटों से भूखे थे.

ठंडा खाना दांत और मुंह को जमा रहा था मगर जैसेतैसे दांतों से कुचलकुचल कर गले से नीचे उतारा. खाना खा पानी के लिए इधरउधर देखा. थोड़ी दूर पर अनेक बोतलें यानी मिनरल वाटर, फ्रूट जूस, सब कुछ जमा हुआ.

‘‘इन सब को इकट्ठा कर लो. पता नहीं कब तक काम आए,’’ बिखरे पैकेट, बोतलें इकट्ठी कर एक तरफ ढेर लगा दीं.

‘‘हम दोनों के सिवा क्या और कोई…’’ रीना के कथन का मतलब समझते कैप्टन ने चारों तरफ देखा. पेट भर जाने से सुन्न पड़ा दिमाग भी चल पड़ा था.

पैरिस हवाई अड्डे के कंट्रोल टावर में भारत से आए अफसर फ्रांस के अन्य अफसरों से विचार कर रहे थे. प्लेन क्रैश होने से पहले लियारस एअरपोर्ट से  2 मिनट का संपर्क बना था. हवाई जहाज के कंप्यूटर सिस्टम ने फ्रांस के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते आमद दिखाई थी. चंद मिनटों बाद ही आपात स्थिति का रैड सिगनल भी दिया था. फिर इस के 2 मिनट बाद हवाई जहाज का संपर्क टूट गया था.

‘‘सैटेलाइट के कैमरे आल्प्स की पहाडि़यों में लगातार नजर डाल रहे थे. लेकिन लगातार जारी बर्फबारी के चलते साफ तसवीरें लेने में दिक्कत आ रही है,’’ एअर फ्रांस के डायरैक्टर शरीक फेरेस्टर ने कहा.

‘‘वहां हैलीकौप्टर से उतर कर देखा जाए तो?’’ अरविंद घोष, जो एअर इंडिया के आपात स्थिति कंट्रोलर थे, ने कहा.

‘‘प्लेन क्रैश होने से विस्फोट की भयंकर आवाज ने पहाड़ों पर जमी भारी बर्फ को थर्रा दिया, जिस से हिमस्खलन हो गया. भारी बर्फ में हवाई जहाज के टुकड़े दब गए हैं. मौसम लगातार साफ होने पर ही कुछ हो सकता है.’’

‘‘कितना समय लग सकता है?’’

‘‘लगभग 3 दिन.’’

3 दिन, इतनी भयानक ठंड में कौन बच सकता था. भारत से आया अधिकारियों का दल मायूसी से भर उठा.

‘‘दोपहर ढल रही है. सूरज भी बर्फबारी में छिप रहा है. यहां रात कहां बीतेगी,’’ कैप्टन ने कहा.

‘‘यहां कहां और क्या ठिकाना मिल सकता है?’’

‘‘जरा मोबाइल ट्राई करो.’’

दोनों ने अपनाअपना मोबाइल फोन फिर ट्राई किया, मगर नमी के कारण बैटरी जाम थी. धूप भी इतनी नहीं थी. बैटरी सुखाने के लिए साफ धूप भी जरूरी थी.

थोड़ा आगे एक बर्फ की पहाड़ी सी थी. हवाई जहाज के टूटे पंख का एक टुकड़ा उठा कर कैप्टन उस पहाड़ी के समीप पहुंचा.

‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘रात बिताने के लिए ठिकाना बनाना है. इस बर्फ की पहाड़ी के अंदर गुफा बनाते हैं,’’ कहते हुए अक्षय चौहान ने पहाड़ी के तल को खोदना शुरू किया.

1 घंटे की कोशिश के बाद 2 व्यक्तियों के लेटने लायक अर्ध गोलाकार गुफा बन गई.

खाने के पैकेट और पेय की बोतलें ले दोनों अंदर जा लेटे. अभी तक एस्कीमों लोगों द्वारा ही ऐसे बर्फ से बने घर या झोंपड़े (इगलू) सुने थे. आज दोनों को ऐसा बचाव का ठिकाना बनाना पड़ा था.

‘‘बर्फ से बना कमरा भी गरम है. ऐसे कैसे?’’ रीना ने पूछा.

‘‘सर्दीगरमी हवा के चलने से होती है. बाहर बर्फ है, हवा है इसलिए ठंड है. अंदर हवा नहीं है इसलिए गरमी है.’’

‘‘अगर यह बर्फ हम पर पड़ जाए तो?’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. बर्फ ठोस है, डरो मत.’’

थोड़ी देर खामोशी छाई रही. शाम ढल रही थी अंधेरा धीरेधीरे छा रहा था.

‘‘आप के पास लाइटर है?’’

‘‘हां है, सिगरेट भी है लेकिन यहां लाइट जलाना खतरनाक है.’’

अंधेरा छा गया. दोनों एकदूसरे से सटे थे. सांस से सांस टकरा रही थी. शरीर को शरीर का छूना एकदूसरे के बारे में बता रहा था.

‘‘खाना खा लें,’’ अधलेटे ही दोनों ने खाना खाया, फिर पेय की बोतलें चूसने लगे. रात गहराने लगी. सर्दी बढ़ गई. शरीर ही शरीर को गरम रख सकता था.

‘‘एकदम नजदीक आ जाओ. सर्दी से बचाव का यही रास्ता है.’’

रीना समझ गई. कैप्टन ने उसे बांहों में ले लिया. कभी सैक्स आनंद के लिए होता है. यहां जान बचाने के लिए शरीर में गरमी बनाए रखने के लिए जरूरी था.

दोनों सारी रात एकदूसरे को उकसाते रहे. शरीर से शरीर मिलता रहा. बर्फ बाहर गिरती रही, ठंड बढ़ती रही. अंदर गरमी रही. रात को पता नहीं कब दोनों सो गए.

सुबह की धूप काफी तीखी थी. हैलीकौप्टर की गड़गड़ाहट से उन की नींद खुली. रेंग कर बाहर निकले मगर तब तक हैलीकौप्टर दूर चला गया था.

दोनों एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़े. बर्फ के एक बड़े टुकड़े से कैप्टन का पैर टकराया. उस को बर्फ में दबा कुछ सख्त लगा. उस ने बर्फ को खुरचा. हवाई जहाज का कौकपिट बर्फ में दबा पड़ा था.

उत्साह से भर दोनों बर्फ हटाने लगे. कौकपिट का सारा केबिन सुरक्षित था. आधे से ज्यादा डैशबोर्ड चटक गया था. कैप्टन ने संचार प्रणाली को चैक किया. सिस्टम काम कर रहा था लेकिन टावर सप्लाई करने वाली बैटरी ठंड की वजह से जाम थी.

बाहर निकल कर दोनों आसपास कुछ तलाशने लगे. जल्द ही उन का उत्साह दुख में बदल गया. कौकपिट के पीछे को-पायलट रंजन की लाश पड़ी थी. उस के थोड़ा आगे क्रू के 2 अन्य साथियों की लाशें थीं. अधजली और ठंड से अकड़ी हालत में.

ये भी पढ़ें- दुख में अटकना नहीं

रीना की आंखों से आंसू बहने लगे. कैप्टन ने उस को सीने से लगा कर दिलासा दिया.

‘‘आओ, आगे चलें. तलाश करता हैलीकौप्टर सुबह आगे निकल गया. बाहर रहने से शायद हम पर निगाह पड़ जाए.’’

भारी मन से रीना साथसाथ चलती गई.

क्रैश हुए प्लेन के भग्नावशेषों और मृतकों की लाशों को ढूंढ़ने में तकरीबन 1 महीना लगा. अगले कई महीनों तक एक भयानक सपने के समान यह हादसा रीना और कैप्टन को डराता रहा.

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‘‘पता नहीं, शायद आल्प्स पर्वत की पहाडि़यों पर हैं.’’

‘‘और बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘पता नहीं. आओ उठो, देखते हैं.’’ सहारा दे कर उस ने रीना को खड़ा किया. फिर एकदूसरे का हाथ थामे एकदूसरे को सहारा दे चलने लगे. मगर किस तरफ जाएं. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी थी.

सूरज आसमान के बीचोंबीच था. पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर और दक्षिण दिशा किधर थी. सब तरफ बर्फ की चादर बिछी. दूर तक ऊंचेऊंचे पहाड़ बर्फ से ढके थे.

ये भी पढ़ें- बेटा मेरा है तुम्हारा नहीं

पेड़पौधे, वनस्पति किसी का नामोनिशान नहीं था.

‘‘यहां भटकना ऐसा है जैसे किसी रेगिस्तान में भटकना,’’ रीना ने कहा.

‘‘आप का मोबाइल फोन कहां है?’’

रीना ने वक्षस्थल के बीच में हाथ डाला. छोटी पौकेट में उस का मोबाइल फोन था. वह भी जाम था. उस को सर्दी लग रही थी. साड़ीब्लाउज के ऊपर उस ने हलका स्वैटर डाला हुआ था. कैप्टन अक्षय चौहान सफेद पैंटशर्ट पर हलकी ऊनी जैकेट पहने था. उस ने रीना के शरीर की कंपकंपी को महसूस करते हुए अपनी जैकेट उतार कर उसे पहना दी.

‘‘यहां कहां और कब तक भटकेंगे?’’

‘‘एक जगह स्थिर बैठने के बजाय चलते रहना बेहतर है. बैठे रहने से शरीर सुन्न पड़ जाएगा.’’ कहते हुए कैप्टन ने अपना बायां बाजू उस की कमर में डाल दिया और उस को अपने साथ सटा धीरेधीरे चलने लगा.

आम हालत में अपने क्रू के किसी साथी या किसी अन्य को यों बांहों में लेना संभव नहीं था. मगर अब हालात जिंदगी और मौत के थे. रीना ने शरीर को ढीला छोड़ दिया.

लगभग एक फर्लांग चलने के बाद उन को हवाई जहाज का एक पंख बर्फ में धंसा मिला. इस से उन को आशा बंधी कि हवाई जहाज के बाकी हिस्से भी आसपास होंगे.

‘‘मुझे प्यास लगी है?’’ खुश्क होंठों पर जीभ फिराते रीना ने कहा.

कैप्टन ने इधरउधर देखा. बर्फ के रेगिस्तान में पानी कहां से मिलता. क्यों न बर्फ चूसी जाए. उस ने नीचे झुक कर बर्फ को हटाया, ऊपर की बर्फ कच्ची थी. नीचे की परत सख्त थी, जैसे जमी हुई सिल्ली हो. एक छोटा टुकड़ा उखाड़ कर उस ने रीना को थमा दिया, ‘‘इसे चूसो.’’

थोड़ा आगे हवाई जहाज की पूंछ का पंखा पड़ा था. उस से आगे छोटेबड़े टुकड़े, सीटें. कुछ सीटें सहीसलामत थीं. एक तरफ एक कार्टून पड़ा था. उस में खाने के पैकेट थे.

खाना देखते दोनों की आंखें चमक उठीं. बर्फ पर बैठ कर दोनों ने एकएक पैकेट खोल लिया. बर्फ से भी ठंडा चावल, रोटी, सब्जी, सलाद सब जमा हुआ. मगर पता नहीं कितने घंटों से भूखे थे.

ठंडा खाना दांत और मुंह को जमा रहा था मगर जैसेतैसे दांतों से कुचलकुचल कर गले से नीचे उतारा. खाना खा पानी के लिए इधरउधर देखा. थोड़ी दूर पर अनेक बोतलें यानी मिनरल वाटर, फ्रूट जूस, सब कुछ जमा हुआ.

‘‘इन सब को इकट्ठा कर लो. पता नहीं कब तक काम आए,’’ बिखरे पैकेट, बोतलें इकट्ठी कर एक तरफ ढेर लगा दीं.

‘‘हम दोनों के सिवा क्या और कोई…’’ रीना के कथन का मतलब समझते कैप्टन ने चारों तरफ देखा. पेट भर जाने से सुन्न पड़ा दिमाग भी चल पड़ा था.

पैरिस हवाई अड्डे के कंट्रोल टावर में भारत से आए अफसर फ्रांस के अन्य अफसरों से विचार कर रहे थे. प्लेन क्रैश होने से पहले लियारस एअरपोर्ट से  2 मिनट का संपर्क बना था. हवाई जहाज के कंप्यूटर सिस्टम ने फ्रांस के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते आमद दिखाई थी. चंद मिनटों बाद ही आपात स्थिति का रैड सिगनल भी दिया था. फिर इस के 2 मिनट बाद हवाई जहाज का संपर्क टूट गया था.

‘‘सैटेलाइट के कैमरे आल्प्स की पहाडि़यों में लगातार नजर डाल रहे थे. लेकिन लगातार जारी बर्फबारी के चलते साफ तसवीरें लेने में दिक्कत आ रही है,’’ एअर फ्रांस के डायरैक्टर शरीक फेरेस्टर ने कहा.

‘‘वहां हैलीकौप्टर से उतर कर देखा जाए तो?’’ अरविंद घोष, जो एअर इंडिया के आपात स्थिति कंट्रोलर थे, ने कहा.

‘‘प्लेन क्रैश होने से विस्फोट की भयंकर आवाज ने पहाड़ों पर जमी भारी बर्फ को थर्रा दिया, जिस से हिमस्खलन हो गया. भारी बर्फ में हवाई जहाज के टुकड़े दब गए हैं. मौसम लगातार साफ होने पर ही कुछ हो सकता है.’’

‘‘कितना समय लग सकता है?’’

‘‘लगभग 3 दिन.’’

3 दिन, इतनी भयानक ठंड में कौन बच सकता था. भारत से आया अधिकारियों का दल मायूसी से भर उठा.

‘‘दोपहर ढल रही है. सूरज भी बर्फबारी में छिप रहा है. यहां रात कहां बीतेगी,’’ कैप्टन ने कहा.

‘‘यहां कहां और क्या ठिकाना मिल सकता है?’’

‘‘जरा मोबाइल ट्राई करो.’’

दोनों ने अपनाअपना मोबाइल फोन फिर ट्राई किया, मगर नमी के कारण बैटरी जाम थी. धूप भी इतनी नहीं थी. बैटरी सुखाने के लिए साफ धूप भी जरूरी थी.

थोड़ा आगे एक बर्फ की पहाड़ी सी थी. हवाई जहाज के टूटे पंख का एक टुकड़ा उठा कर कैप्टन उस पहाड़ी के समीप पहुंचा.

‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘रात बिताने के लिए ठिकाना बनाना है. इस बर्फ की पहाड़ी के अंदर गुफा बनाते हैं,’’ कहते हुए अक्षय चौहान ने पहाड़ी के तल को खोदना शुरू किया.

1 घंटे की कोशिश के बाद 2 व्यक्तियों के लेटने लायक अर्ध गोलाकार गुफा बन गई.

खाने के पैकेट और पेय की बोतलें ले दोनों अंदर जा लेटे. अभी तक एस्कीमों लोगों द्वारा ही ऐसे बर्फ से बने घर या झोंपड़े (इगलू) सुने थे. आज दोनों को ऐसा बचाव का ठिकाना बनाना पड़ा था.

‘‘बर्फ से बना कमरा भी गरम है. ऐसे कैसे?’’ रीना ने पूछा.

‘‘सर्दीगरमी हवा के चलने से होती है. बाहर बर्फ है, हवा है इसलिए ठंड है. अंदर हवा नहीं है इसलिए गरमी है.’’

‘‘अगर यह बर्फ हम पर पड़ जाए तो?’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. बर्फ ठोस है, डरो मत.’’

थोड़ी देर खामोशी छाई रही. शाम ढल रही थी अंधेरा धीरेधीरे छा रहा था.

‘‘आप के पास लाइटर है?’’

‘‘हां है, सिगरेट भी है लेकिन यहां लाइट जलाना खतरनाक है.’’

अंधेरा छा गया. दोनों एकदूसरे से सटे थे. सांस से सांस टकरा रही थी. शरीर को शरीर का छूना एकदूसरे के बारे में बता रहा था.

‘‘खाना खा लें,’’ अधलेटे ही दोनों ने खाना खाया, फिर पेय की बोतलें चूसने लगे. रात गहराने लगी. सर्दी बढ़ गई. शरीर ही शरीर को गरम रख सकता था.

‘‘एकदम नजदीक आ जाओ. सर्दी से बचाव का यही रास्ता है.’’

रीना समझ गई. कैप्टन ने उसे बांहों में ले लिया. कभी सैक्स आनंद के लिए होता है. यहां जान बचाने के लिए शरीर में गरमी बनाए रखने के लिए जरूरी था.

दोनों सारी रात एकदूसरे को उकसाते रहे. शरीर से शरीर मिलता रहा. बर्फ बाहर गिरती रही, ठंड बढ़ती रही. अंदर गरमी रही. रात को पता नहीं कब दोनों सो गए.

सुबह की धूप काफी तीखी थी. हैलीकौप्टर की गड़गड़ाहट से उन की नींद खुली. रेंग कर बाहर निकले मगर तब तक हैलीकौप्टर दूर चला गया था.

दोनों एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़े. बर्फ के एक बड़े टुकड़े से कैप्टन का पैर टकराया. उस को बर्फ में दबा कुछ सख्त लगा. उस ने बर्फ को खुरचा. हवाई जहाज का कौकपिट बर्फ में दबा पड़ा था.

उत्साह से भर दोनों बर्फ हटाने लगे. कौकपिट का सारा केबिन सुरक्षित था. आधे से ज्यादा डैशबोर्ड चटक गया था. कैप्टन ने संचार प्रणाली को चैक किया. सिस्टम काम कर रहा था लेकिन टावर सप्लाई करने वाली बैटरी ठंड की वजह से जाम थी.

बाहर निकल कर दोनों आसपास कुछ तलाशने लगे. जल्द ही उन का उत्साह दुख में बदल गया. कौकपिट के पीछे को-पायलट रंजन की लाश पड़ी थी. उस के थोड़ा आगे क्रू के 2 अन्य साथियों की लाशें थीं. अधजली और ठंड से अकड़ी हालत में.

ये भी पढ़ें- दुख में अटकना नहीं

रीना की आंखों से आंसू बहने लगे. कैप्टन ने उस को सीने से लगा कर दिलासा दिया.

‘‘आओ, आगे चलें. तलाश करता हैलीकौप्टर सुबह आगे निकल गया. बाहर रहने से शायद हम पर निगाह पड़ जाए.’’

भारी मन से रीना साथसाथ चलती गई.

क्रैश हुए प्लेन के भग्नावशेषों और मृतकों की लाशों को ढूंढ़ने में तकरीबन 1 महीना लगा. अगले कई महीनों तक एक भयानक सपने के समान यह हादसा रीना और कैप्टन को डराता रहा.

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February 27, 2021 at 10:00AM

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