Friday 26 February 2021

Valentine Special :हमेशा की तरह -सुमन का चेहरा क्यों मुरझा गया

सुबह जब गुलशन की आंख खुली तो सुमन मादक अंगड़ाई ले रही थी. पति को देख कर उस ने नशीली मुसकान फेंकी, जिस से कहते हैं कि समुद्र में ठहरे जहाज भी चल पड़ते हैं. अचानक गुलशन गहरी ठंडी सांस छोड़ने को मजबूर हो गया.

‘काश, पिछले 20 वर्ष लौट आते,’’ गुलशन ने सुमन का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

‘‘क्या करते तब?’’ सुमन ने हंस कर पूछा.

गुलशन ने शरारत से कहा, ‘‘किसी लालनीली परी को ले कर बहुत दूर उड़ जाता.’’

सुमन सोच रही थी कि शायद गुलशन उस के लिए कुछ रोमानी जुमले कहेगा. थोड़ी देर पहले जो सुबह सुहावनी लग रही थी और बहुतकुछ मनभावन आशाएं ले कर आई थी, अचानक फीकी सी लगने लगी.

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‘‘मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं?’’ सुमन ने शब्दों पर जोर देते हुए पूछा, ‘‘आज के दिन भी नहीं?’’

‘‘तुम ही तो मेरी लालनीली और सब्जपरी हो,’’ गुलशन अचानक सुमन को भूल कर चादर फेंक कर उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘अरे बाबा, मैं तो भूल ही गया था.’’

सुमन के मन में फिर से आशा जगी, ‘‘क्या भूल गए थे?’’

‘‘बड़ी जरूरी मीटिंग है. थोड़ा जल्दी जाना है,’’ कहतेकहते गुलशन स्नानघर में घुस गया.

सुमन का चेहरा फिर से मुरझा गया. गुलशन 50 करोड़ रुपए की संपत्ति वाले एक कारखाने का प्रबंध निदेशक था. बड़ा तनावभरा जीवन था. कभी हड़ताल, कभी बोनस, कभी मीटिंग तो कभी बोर्ड सदस्यों का आगमन. कभी रोजमर्रा की छोटीछोटी दिखने वाली बड़ी समस्याएं, कभी अधकारियों के घोटाले तो कभी यूनियन वालों की तंग करने वाली हरकतें. इतने सारे झमेलों में फंसा इंसान अकसर अपने अधीनस्थ अधिकारियों से भी परेशान हो जाता है. परामर्शदाताओं ने उसे यही समझाया है कि इतनी परेशानियों के लिए वह खुद जिम्मेदार है. वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों में पूरा विश्वास नहीं रखता. वह कार्यविभाजन में भी विश्वास नहीं रखता. जब तक स्वयं संतुष्ट नहीं हो जाता, किसी काम को आगे नहीं बढ़ने देता. यह अगर उस का गुण है तो एक बड़ी कमजोरी भी.

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जल्दीजल्दी उस ने एक टोस्ट खाया और एक गिलास दूध पी कर ब्रीफकेस उठाया. सुमन उस के चेहरे को देख रही थी शायद अभी भी कुछ कहे. पर पति के चेहरे पर केवल तनाव की रेखाएं थीं, कोमल भावनाओं का तो नामोनिशान तक न था. गलशन की कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. सुमन ने ठंडी सांस ली. जब गुलशन छोटा अधिकारी था और वेतन भी मामूली था, तब उन का जीवन कितना सुखी था. एक अव्यक्त प्यार का सुखद प्रतीक था, आत्मीयता का सागर था. परंतु आज सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं. दोपहर के 12 बजे थे. प्रेमलता ने घर का सारा काम निबटा दिया था. सुमन भी नहाधो कर बालकनी में बैठी एक पत्रिका देख रही थी. प्रेमलता ने कौफी का प्याला सामने मेज पर रख दिया था.

टैलीफोन की घंटी ने उसे चौंका तो दिया पर साथ ही चेहरे पर एक मुसकान भी ला दी. सोचा, शायद साहब को याद आ ही गया. सिवा गुलशन के और कौन करेगा फोन इस समय? पास रखे फोन को उठा कर मीठे स्वर में कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय, सुमन,’’ गुलशन ही था.

‘‘सुनो,’’ सुमन ने कहना चाहा.

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‘‘देखो, सुबह मैं भूल गया था. और अब मुझे समय नहीं मिलेगा. मिक्की को फोन कर देना. आज उस का जन्मदिन है न,’’ गुलशन ने प्यार से कहा, ‘‘तुम बहुत अच्छी हो.’’ गुलशन ने फोन रख दिया था. सुमन हाथ में पकड़ी उस निर्जीव वस्तु को देखते हुए सोचने लगी, ‘बस, इतना ही याद रहा कि मिक्की का जन्मदिन है.’ मिक्की गुलशन की बहन है. यह एक अजीब संयोग था कि आज सुमन का भी जन्मदिन था. दिन तो दोनों का एक ही था, बस साल अलगअलग थे. शुरू में कई वर्षों तक दोनों अपने जन्मदिन एकसाथ बड़ी धूमधाम से मनाती थीं. बाद में तो अपनअपने परिवारों में उलझती चली गईं. साल में एक यही ऐसा दिन आता है, जब कोई अकेला नहीं रहना चाहता. भीड़भाड़, शोरगुल और जश्न के लिए दिल मचलता है. मांबाप की तो बात ही और है, पर जब अपना परिवार हो तो हर इंसान आत्मीयता के क्षण सब के साथ बांटना चाहता है. गुलशन के साथ बिताए कई आरंभिक जन्मदिन जबजब याद आते, पिछले कुछ वर्षों से चली आ रही उपेक्षा बड़ी चोट करती.

आज भी हमेशा की तरह…

‘कोई बात नहीं. तरक्की और बहुत ऊंचा जाने की कामना अनेक त्याग मांगती है. इस त्याग का सब से पहला शिकार पत्नी तो होगी ही, और अगर स्त्री ऊंची उड़ान भरती है तो पति से दूर होने लगती है,’ सुमन कुछ ऐसी ही विचारधारा में खोई हुई थी कि फोन की घंटी ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

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‘‘हैलो,’’ उस ने उदास स्वर में कहा.

‘‘हाय, मां,’’ अलका ने खिलते फूल की तरह उत्साह से कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो.’’

बेटी अलका मसूरी में एक स्कूल में पढ़ती है और वहीं होस्टल में रहती है.

‘‘धन्यवाद, बेटी,’’ सुमन ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘कैसी है तू?’’

‘‘अरे, मुझे क्या होगा मां, पहले यह बताओ, क्या पक रहा है जन्मदिन की खुशी में?’’ अलका ने हंस कर पूछा, ‘‘आ जाऊं?’’

‘‘आजा, बहुत याद आ रही है तेरी,’’ सुमन ने प्यार से कहा.

‘‘मां, मुझे भी तुम्हारी दूरी अब अच्छी नहीं लग रही है,’’ अलका ने चौंकने के स्वर में कहा, ‘‘अरे, साढ़े 12 बजने वाले हैं. चलती हूं, मां. कक्षा में जाना है.’’

‘‘ठीक है, बेटी, अच्छी तरह पढ़ना. अच्छे नंबरों से पास होना. अपनी सेहत का ध्यान रखना और रुपयों की जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ सुमन ने जल्दीजल्दी से वह सब दोहरा दिया जिसे दोहराते वह कभी थकती नहीं.

अलका खिलखिला पड़ी, ‘‘मां, क्या सारी माएं तुम्हारी तरह ही होती हैं? कभी तो हम मूर्ख संतानों को अपने हाल पर छोड़ दिया करो.’’

‘‘अभी थोड़ी समझेगी तू…’’

अलका ने बात काटते हुए कहा, ‘‘जब मां बनेगी तो जानेगी. अरे मां, बाकी का संवाद मुंहजबानी याद है. ठीक है, जा रही हूं. देर हो रही है.’’ सुमन के चेहरे पर खिन्न मुसकान थी. ‘ये आजकल के बच्चे तो बस.’ धीरे से सोचते हुए फोन बंद कर के रख दिया, ‘कम से कम बेटी को तो याद आई. इतनी दूर है, पर मां का जन्मदिन नहीं भूलती.’ संध्या के 5 बज रहे थे. ‘क्या गुलशन को जल्दी आने के लिए फोन करे? पर नहीं,’ सुमन ने सोचा, ‘जब पति को न तो याद है और न ही इस के प्रति कोई भावना, तो उसे याद दिला कर अपनी मानहानि करवाएगी.’

दरवाजे की घंटी बजी. सुमन भी कभीकभी बौखला जाती है. दरवाजे की नहीं, फोन की घंटी थी. लपक कर रिसीवर उठाया.

‘‘हैलो,’’ सुमन का स्वर भर्रा गया.

‘‘हाय, मां, जन्मदिन मुबारक,’’ न्यूयार्क से बेटे मन्नू का फोन था.

सुमन की आंखों में आंसू आ गए और आवाज भी भीग गई, ‘‘बेटे, मां की याद आ गई?’’

‘‘क्यों मां?’’ मन्नू ने शिकायती स्वर में पूछा, ‘‘दूर होने से क्या तुम मां नहीं रहीं? अरे मां, मेरे जैसा बेटा तुम्हें कहां मिलेगा?’’

‘‘चल हट, झूठा कहीं का,’’ सुमन ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘शादी होने के बाद कोई बेटा मां का नहीं रहता.’’

‘‘मां,’’ मन्नू ने सुमन को सदा अच्छा लगने वाला संवाद दोहराया, ‘‘इसीलिए तो मैं ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है.’’

‘‘मूर्ख बनाने के लिए मां ही तो है न,’’ सुमन ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बजा है तेरे देश में?’’

‘‘समय पूछ कर क्या करोगी मां, यहां तो 24 घंटे बस काम का समय रहता है. अच्छा, पिताजी को प्रणाम कहना. और हां, मेरे लिए केक बचा कर रख लेना,’’ मन्नू जल्दीजल्दी बोल रहा था, ‘‘मां, एक बार फिर, तुम्हारा जन्मदिन हर साल आए और बस आता ही रहे,’’ कहते हुए मन्नू ने फोन बंद कर दिया था.

थोड़ी देर बाद फिर फोन बजा.

‘‘हैलो,’’ सुमन ने आशा से कहा.

‘‘मैडम, मैं हैनरीटा बोल रही हूं,’’ गुलशन की निजी सचिव ने कहा, ‘‘साहब को आने में बहुत देर हो जाएगी. आप इंतजार न करें.’’

‘‘क्यों?’’ सुमन लगभग चीख पड़ी.

‘‘जी, जरमनी से जो प्रतिनिधि आए हैं, उन के साथ रात्रिभोज है. पता नहीं कितनी देर लग जाए,’’ हैनरीटा ने अचानक चहक कर कहा, ‘‘क्षमा करें मैडम, आप को जन्मदिन की बधाई. मैं तो भूल ही गई थी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुमन ने निराशा से बुझे स्वर में पूछा, ‘‘साहब ने और कुछ कहा?’’

‘‘जी नहीं, बहुत व्यस्त हैं. एक मिनट का भी समय नहीं मिला. जरमनी के प्रतिनिधियों से सहयोग के विषय में बड़ी महत्त्वपूर्ण बातें हो रही हैं,’’ हैनरीटा ने इस तरह कहा मानो ये बातें वह स्वयं कर रही हो.

‘‘ओह,’’ सुमन के हाथ से रिसीवर लगभग फिसल गया.

घंटी बजी. पर इस बार फोन की नहीं, दरवाजे की थी. प्रेमलता को जाते देखा. उसे बातें करते सुना. जब रहा नहीं गया तो सुमन ने ऊंचे स्वर में पूछा, ‘‘कौन है?’’ प्रेमलता जब आई तो उस के हाथ में फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता था. खिले गुलाब देख कर सुमन का चेहरा खिल उठा. चलो, इतना तो सोचा श्रीमान ने. गुलदस्ते के साथ एक कार्ड भी था, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम स्वरूप.’ स्वरूप गुलशन का मित्र था.

सुमन ने एक गहरी सांस ली और प्रेमलता को उस से मेज पर रखने का आदेश दिया. सुमन सोचने लगी, ‘आज स्वरूपजी को उस के जन्मदिन की याद कैसे आ गई?’ अधरों पर मुसकान आ गई, ‘अब फोन कर के उन्हें धन्यवाद देना पड़ेगा.’

कुछ ही देर बाद फिर दरवाजे की घंटी बजी. प्रेमलता ने आने वाले से कुछ वार्त्तालाप किया और फिर सुमन को एक बड़ा सा गुलदस्ता पेश किया, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम अनवर.’

गुलशन का एक और दोस्त. सुमन ने गहरी सांस ली और फिर वही आदेश प्रेमलता को. फिर जब घंटी बजी तो सुमन ने उठ कर स्वयं दरवाजा खोला. एक बहुत बड़ा गुलदस्ता, रात की रानी से महकता हुआ. गुलदस्ते के पीछे लाने वाले का मुंह छिपा हुआ था. ‘‘जन्मदिन मुबारक हो, भाभी,’’ केवलकिशन ने गुलदस्ता आगे बढ़ाते हुए कहा. गुलशन का एक और जिगरी दोस्त.

‘‘धन्यवाद,’’ निराशा के बावजूद मुसकान बिखेरते हुए सुमन ने कहा, ‘‘आइए, अंदर आइए.’’

‘‘नहीं भाभी, जल्दी में हूं. दफ्तर से सीधा आ रहा हूं. घर में मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं. महारानी का 2 बार फोन आ चुका है,’’ केवलकिशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करिए. फिर आऊंगा और पूरी पलटन के साथ.’’

यही बात अच्छी है केवलकिशन की. हमेशा हंसता रहता है. अब दूसरा भी कब तक चेहरा लटकाए बैठा रहे. रात की रानी को सुमन ने अपने हाथों से गुलदान में सजा कर रखा. खुशबू को गहरी सांस ले कर अंदर खींचा. फिर से घंटी बजी. सुमन हंस पड़ी. फिर से दरवाजा खोला. हरनाम सिंह गुलदाऊदी का गुलदस्ता हाथ में लिए हुए था.

‘‘जन्मदिन की बधाई, मैडम,’’ हरनाम सिंह ने गुलदस्ता पकड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी जाना है. मिठाई खाने कल आऊंगा.’’

इस से पहले कि वह कुछ कहती, हरनाम सिंह आंखों से ओझल हो गया. वह सोचने लगी, ‘क्लब में हमेशा मिलता है पर न जाने क्यों हमेशा शरमाता सा रहता है. हां, इस की पत्नी बड़ी बातूनी है. क्लब के सारे सदस्यों की पोल खोलती रहती है, टांग खींचती रहती है. उस के साथ बैठो तो पता ही नहीं लगता कि कितना समय निकल गया.’

गुलदस्ते को सजाते हुए सुमन सोच रही थी, ‘क्या उस के जन्मदिन की खबर सारे अखबारों में छपी है?’ इस बार यकीनन घंटी फोन की थी.

‘‘हैलो,’’ सुमन की आंखों में आशा की चमक थी.

‘‘क्षमा करना सुमनजी,’’ डेविड ने अंगरेजी में कहा, ‘‘जन्मदिन की बधाई हो. मैं खुद न आ सका. वैसे आप का तोहफा सुबह अखबार वाले से पहले पहुंच जाएगा. कृपया मेरी ओर से मुबारकबाद स्वीकार करें.’’

‘‘तोहफे की क्या जरूरत है,’’ सुमन ने संयत हो कर कहा, ‘‘आप ने याद किया, क्या यह कम है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर तोहफे की बात ही अलग है,’’ डेविड ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब देखिए, हमें तो कोई तोहफा देता नहीं, इसलिए बस तरसते रहते हैं.’’

‘‘अपना जन्मदिन बताइए,’’ सुमन ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘‘अगले 15 सालों के लिए बुक कर दूंगी.’’

‘‘वाहवाह, क्या खूब कहा,’’ डेविड ने भी हंस कर कहा, ‘‘पर मेरा जन्मदिन एक रहस्य है. आप को बताने से मजबूर हूं, अच्छा.’’ डेविड ने फोन रख दिया. वह एक सरकारी कारखाने का प्रबंध निदेशक था. हमेशा क्लब और औपचारिक दावतों में मिलता रहता था. गुलशन का घनिष्ठ मित्र था. रात्रि के 2 बज रहे थे. गुलशन घर लौट रहा था. आज वह बहुत संतुष्ट था. जरमन प्रतिनिधियों से सहयोग का ठेका पक्का हो गया था. वे 30 करोड़ डौलर का सामान और मशीनें देंगे. स्वयं उन के इंजीनियर कारखाने के विस्तार व नवीनीकरण में सहायता करेंगे. भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षण देंगे और 3 साल बाद जब माल बनना शुरू हो जाएगा तो सारा का सारा स्वयं खरीद लेंगे. कहीं और बेचने की आवश्यकता नहीं है. इस से बढि़या सौदा और क्या हो सकता है. अचानक गुलशन के मन में एक बिजली सी कौंध गई कि पता नहीं सुमन ने मिक्की को फोन किया या नहीं? उस के जन्मदिन पर वह सुबह उठ कर सब से पहले यही काम करता था. आज ही गलती हो गई थी. जरमन प्रतिनिधि मंडल उस के दिमाग पर भूत की तरह सवार था. जरूर ही मिक्की आज नाटक करेगी.

तभी एक और बिजली कड़क उठी. कितना मूर्ख है वह. अरे, सुमन का भी तो जन्मदिन है. आंख खुलते ही उस ने इतने सारे इशारे फेंके, पर वह तो जन्मजात मूर्ख है. बाप रे, इतनी बड़ी भूल कैसे कर दी. अब क्या करे? गुलशन ने फौरन कार को वापस होटल की ओर मोड़ दिया. जल्दीजल्दी कदम बढ़ाते हुए अंदर पहुंचा.

प्रबंधक ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कुछ भूल गए आप?’’

‘‘हां, जो काम सब से पहले करना था, वह सब से बाद में याद आया,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘मुझे एक बहुत अच्छा गुलदस्ता चाहिए और एक केक… जन्मदिन का.’’

‘‘किस का जन्मदिन है?’’ प्रबंधक ने पूछा.

गुलशन ने उदास हो कर कहा, ‘‘वैसे तो कल था, पर गलती सुधर जाए, कोशिश करूंगा.’’

‘‘फूलों की दुकान तो खुलवानी पड़ेगी,’’ प्रबंधक ने कहा, ‘‘इस समय तो कोई फूल लेता नहीं. वैसे किस का जन्मदिन है?’’

‘‘मेरी पत्नी का,’’ गुलशन के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘ओह, तब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा,’’ प्रबंधक ने कहा.

गुलशन इस होटल का पुराना ग्राहक था. साल में कई बार कंपनी का खानापीना यहां ही होता था. आधे घंटे बाद प्रबंधक बहुत बड़ा गुलदस्ता ले कर उपस्थित हुआ. सहायक के हाथ में केक था.

‘‘हमारी ओर से मैडम को भेंट,’’ प्रबंधक ने हंस कर कहा.

गुलशन का हाथ जेब में था. पर्स निकालता हुआ बोला, ‘‘नहीं, आप दाम ले लें.’’

‘‘शर्मिंदा न करें हम को,’’ प्रबंधक ने मुसकरा कर कहा.

घंटी की मधुर आवाज भी गहरी नींद में सोई सुमन को बड़ी कर्कश लगी. धीरेधीरे जैसे नींद की खुमारी की परतें उतरने लगीं तो उसे होश आने लगा. प्रेमलता तो बाहर पिछवाड़े में अपने कमरे में सो रही थी. वैसे भी उसे जाने के लिए कह रखा था. वह दरवाजा खोलने कहां से आएगी.

उसे अचानक हंसी भी आई, ‘‘लगता है, एक और गुलदस्ता आ गया.’’

दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘गुल्लर, तुम्हारा गुल्लर. देर आया, पर दुरुस्त आया,’’ गुलशन ने विनोद से कहा.

सुमन के चेहरे पर लकीरें तन गईं. हंसी लुप्त हो गई और क्रोध झलक आया. दरवाजा खोला तो गुलशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो. हर साल, हर साल, हर साल इसी तरह आता रहे. यह भेंट स्वीकार करिए.’’

सुमन ने मुंह बना दिया और बिना कुछ लिए अंदर आ गई. नाराजगी बढ़ती जा रही थी. इतनी देर से डब्बे में बंद गुबार बाहर आ गया.

‘‘भई, क्षमा कर दो, बड़ी भूल हो गई,’’ गुलशन ने केक मेज पर रखा और गुलदस्ता सुमन की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे,’’ सुमन ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘इतनी नाराज मत हो,’’ गुलशन ने खुशामदी स्वर में कहा, ‘‘जन्मदिन की खुशी में अगले महीने तुम्हें जरमनी की सैर कराने ले जाऊंगा.’’

‘‘कहा न, न मुझे कुछ चाहिए और न ही कहीं जाना है,’’ सुमन ने दूर हटते हुए कहा.

अचानक गुलशन की निगाह कार्निस व कोने में सजे हुए गुलदस्तों पर पड़ी. उस ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, इतने सारे गुलदस्ते… कहां से आए? किस ने दिए?’’

‘‘इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो तुम्हारी तरह लापरवाह और बेगैरत नहीं हैं,’’ सुमन ने कड़वाहट से कहा.

‘‘देखूं तो सही, वे महान लोग कौन हैं?’’ गुलशन पास जा कर कार्ड पढ़ने लगा…केवलकिशन…अनवर…हरनाम सिंह…स्वरूप…डेविड…’’

फिर गुलशन ठठा कर हंस पड़ा. सुमन आश्चर्य से उस को देखने लगी. जब वह हंसता ही रहा तो सुमन ने गुस्से से पूछा, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’

‘‘तुम्हें याद है, पिछले महीने हम कहां गए थे?’’ गुलशन ने पूछा.

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वहां तुम तो अपनी महिला समिति में तल्लीन हो गईं और मैं अपने दोस्तों के साथ कौफी पी रहा था. अरे, यही लोग तो थे,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘तो फिर?’’

‘‘बस, बातों ही बातों में जन्मदिन की बात निकल आई. सब का एक ही मत था कि कभी न कभी ऐसी बात हो जाती है जब जन्मदिन, वह भी पत्नी का, बड़ा बदमजा हो जाता है,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘और मैं ने कहा कि मैं अकसर जन्मदिन भूल जाता हूं.’’

‘‘तो फिर?’’ सुमन ने दोहराया.

‘‘तो फिर क्या, मैं ने उन सब से तुम्हारा जन्मदिन उन की डायरी में लिखवाया और कहा कि अगर हमेशा की तरह मैं भूल जाऊं तो वे जरूर मेरी ओर से तोहफा भिजवा दें,’’ गुलशन ने स्पष्ट किया.

‘‘पर उन्होंने यह तो नहीं कहा,’’ सुमन ने शिकायत की.

‘‘यह उन की शरारत है,’’ गुलशन हंसा, ‘‘पर हम इतनी छोटी सी बात पर लड़ेंगे तो नहीं.’’

अब तो सिवा हंसने के सुमन के पास और कोई रास्ता न था.

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सुबह जब गुलशन की आंख खुली तो सुमन मादक अंगड़ाई ले रही थी. पति को देख कर उस ने नशीली मुसकान फेंकी, जिस से कहते हैं कि समुद्र में ठहरे जहाज भी चल पड़ते हैं. अचानक गुलशन गहरी ठंडी सांस छोड़ने को मजबूर हो गया.

‘काश, पिछले 20 वर्ष लौट आते,’’ गुलशन ने सुमन का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

‘‘क्या करते तब?’’ सुमन ने हंस कर पूछा.

गुलशन ने शरारत से कहा, ‘‘किसी लालनीली परी को ले कर बहुत दूर उड़ जाता.’’

सुमन सोच रही थी कि शायद गुलशन उस के लिए कुछ रोमानी जुमले कहेगा. थोड़ी देर पहले जो सुबह सुहावनी लग रही थी और बहुतकुछ मनभावन आशाएं ले कर आई थी, अचानक फीकी सी लगने लगी.

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‘‘तुम ही तो मेरी लालनीली और सब्जपरी हो,’’ गुलशन अचानक सुमन को भूल कर चादर फेंक कर उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘अरे बाबा, मैं तो भूल ही गया था.’’

सुमन के मन में फिर से आशा जगी, ‘‘क्या भूल गए थे?’’

‘‘बड़ी जरूरी मीटिंग है. थोड़ा जल्दी जाना है,’’ कहतेकहते गुलशन स्नानघर में घुस गया.

सुमन का चेहरा फिर से मुरझा गया. गुलशन 50 करोड़ रुपए की संपत्ति वाले एक कारखाने का प्रबंध निदेशक था. बड़ा तनावभरा जीवन था. कभी हड़ताल, कभी बोनस, कभी मीटिंग तो कभी बोर्ड सदस्यों का आगमन. कभी रोजमर्रा की छोटीछोटी दिखने वाली बड़ी समस्याएं, कभी अधकारियों के घोटाले तो कभी यूनियन वालों की तंग करने वाली हरकतें. इतने सारे झमेलों में फंसा इंसान अकसर अपने अधीनस्थ अधिकारियों से भी परेशान हो जाता है. परामर्शदाताओं ने उसे यही समझाया है कि इतनी परेशानियों के लिए वह खुद जिम्मेदार है. वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों में पूरा विश्वास नहीं रखता. वह कार्यविभाजन में भी विश्वास नहीं रखता. जब तक स्वयं संतुष्ट नहीं हो जाता, किसी काम को आगे नहीं बढ़ने देता. यह अगर उस का गुण है तो एक बड़ी कमजोरी भी.

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टैलीफोन की घंटी ने उसे चौंका तो दिया पर साथ ही चेहरे पर एक मुसकान भी ला दी. सोचा, शायद साहब को याद आ ही गया. सिवा गुलशन के और कौन करेगा फोन इस समय? पास रखे फोन को उठा कर मीठे स्वर में कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय, सुमन,’’ गुलशन ही था.

‘‘सुनो,’’ सुमन ने कहना चाहा.

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आज भी हमेशा की तरह…

‘कोई बात नहीं. तरक्की और बहुत ऊंचा जाने की कामना अनेक त्याग मांगती है. इस त्याग का सब से पहला शिकार पत्नी तो होगी ही, और अगर स्त्री ऊंची उड़ान भरती है तो पति से दूर होने लगती है,’ सुमन कुछ ऐसी ही विचारधारा में खोई हुई थी कि फोन की घंटी ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

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बेटी अलका मसूरी में एक स्कूल में पढ़ती है और वहीं होस्टल में रहती है.

‘‘धन्यवाद, बेटी,’’ सुमन ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘कैसी है तू?’’

‘‘अरे, मुझे क्या होगा मां, पहले यह बताओ, क्या पक रहा है जन्मदिन की खुशी में?’’ अलका ने हंस कर पूछा, ‘‘आ जाऊं?’’

‘‘आजा, बहुत याद आ रही है तेरी,’’ सुमन ने प्यार से कहा.

‘‘मां, मुझे भी तुम्हारी दूरी अब अच्छी नहीं लग रही है,’’ अलका ने चौंकने के स्वर में कहा, ‘‘अरे, साढ़े 12 बजने वाले हैं. चलती हूं, मां. कक्षा में जाना है.’’

‘‘ठीक है, बेटी, अच्छी तरह पढ़ना. अच्छे नंबरों से पास होना. अपनी सेहत का ध्यान रखना और रुपयों की जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ सुमन ने जल्दीजल्दी से वह सब दोहरा दिया जिसे दोहराते वह कभी थकती नहीं.

अलका खिलखिला पड़ी, ‘‘मां, क्या सारी माएं तुम्हारी तरह ही होती हैं? कभी तो हम मूर्ख संतानों को अपने हाल पर छोड़ दिया करो.’’

‘‘अभी थोड़ी समझेगी तू…’’

अलका ने बात काटते हुए कहा, ‘‘जब मां बनेगी तो जानेगी. अरे मां, बाकी का संवाद मुंहजबानी याद है. ठीक है, जा रही हूं. देर हो रही है.’’ सुमन के चेहरे पर खिन्न मुसकान थी. ‘ये आजकल के बच्चे तो बस.’ धीरे से सोचते हुए फोन बंद कर के रख दिया, ‘कम से कम बेटी को तो याद आई. इतनी दूर है, पर मां का जन्मदिन नहीं भूलती.’ संध्या के 5 बज रहे थे. ‘क्या गुलशन को जल्दी आने के लिए फोन करे? पर नहीं,’ सुमन ने सोचा, ‘जब पति को न तो याद है और न ही इस के प्रति कोई भावना, तो उसे याद दिला कर अपनी मानहानि करवाएगी.’

दरवाजे की घंटी बजी. सुमन भी कभीकभी बौखला जाती है. दरवाजे की नहीं, फोन की घंटी थी. लपक कर रिसीवर उठाया.

‘‘हैलो,’’ सुमन का स्वर भर्रा गया.

‘‘हाय, मां, जन्मदिन मुबारक,’’ न्यूयार्क से बेटे मन्नू का फोन था.

सुमन की आंखों में आंसू आ गए और आवाज भी भीग गई, ‘‘बेटे, मां की याद आ गई?’’

‘‘क्यों मां?’’ मन्नू ने शिकायती स्वर में पूछा, ‘‘दूर होने से क्या तुम मां नहीं रहीं? अरे मां, मेरे जैसा बेटा तुम्हें कहां मिलेगा?’’

‘‘चल हट, झूठा कहीं का,’’ सुमन ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘शादी होने के बाद कोई बेटा मां का नहीं रहता.’’

‘‘मां,’’ मन्नू ने सुमन को सदा अच्छा लगने वाला संवाद दोहराया, ‘‘इसीलिए तो मैं ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है.’’

‘‘मूर्ख बनाने के लिए मां ही तो है न,’’ सुमन ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बजा है तेरे देश में?’’

‘‘समय पूछ कर क्या करोगी मां, यहां तो 24 घंटे बस काम का समय रहता है. अच्छा, पिताजी को प्रणाम कहना. और हां, मेरे लिए केक बचा कर रख लेना,’’ मन्नू जल्दीजल्दी बोल रहा था, ‘‘मां, एक बार फिर, तुम्हारा जन्मदिन हर साल आए और बस आता ही रहे,’’ कहते हुए मन्नू ने फोन बंद कर दिया था.

थोड़ी देर बाद फिर फोन बजा.

‘‘हैलो,’’ सुमन ने आशा से कहा.

‘‘मैडम, मैं हैनरीटा बोल रही हूं,’’ गुलशन की निजी सचिव ने कहा, ‘‘साहब को आने में बहुत देर हो जाएगी. आप इंतजार न करें.’’

‘‘क्यों?’’ सुमन लगभग चीख पड़ी.

‘‘जी, जरमनी से जो प्रतिनिधि आए हैं, उन के साथ रात्रिभोज है. पता नहीं कितनी देर लग जाए,’’ हैनरीटा ने अचानक चहक कर कहा, ‘‘क्षमा करें मैडम, आप को जन्मदिन की बधाई. मैं तो भूल ही गई थी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुमन ने निराशा से बुझे स्वर में पूछा, ‘‘साहब ने और कुछ कहा?’’

‘‘जी नहीं, बहुत व्यस्त हैं. एक मिनट का भी समय नहीं मिला. जरमनी के प्रतिनिधियों से सहयोग के विषय में बड़ी महत्त्वपूर्ण बातें हो रही हैं,’’ हैनरीटा ने इस तरह कहा मानो ये बातें वह स्वयं कर रही हो.

‘‘ओह,’’ सुमन के हाथ से रिसीवर लगभग फिसल गया.

घंटी बजी. पर इस बार फोन की नहीं, दरवाजे की थी. प्रेमलता को जाते देखा. उसे बातें करते सुना. जब रहा नहीं गया तो सुमन ने ऊंचे स्वर में पूछा, ‘‘कौन है?’’ प्रेमलता जब आई तो उस के हाथ में फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता था. खिले गुलाब देख कर सुमन का चेहरा खिल उठा. चलो, इतना तो सोचा श्रीमान ने. गुलदस्ते के साथ एक कार्ड भी था, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम स्वरूप.’ स्वरूप गुलशन का मित्र था.

सुमन ने एक गहरी सांस ली और प्रेमलता को उस से मेज पर रखने का आदेश दिया. सुमन सोचने लगी, ‘आज स्वरूपजी को उस के जन्मदिन की याद कैसे आ गई?’ अधरों पर मुसकान आ गई, ‘अब फोन कर के उन्हें धन्यवाद देना पड़ेगा.’

कुछ ही देर बाद फिर दरवाजे की घंटी बजी. प्रेमलता ने आने वाले से कुछ वार्त्तालाप किया और फिर सुमन को एक बड़ा सा गुलदस्ता पेश किया, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम अनवर.’

गुलशन का एक और दोस्त. सुमन ने गहरी सांस ली और फिर वही आदेश प्रेमलता को. फिर जब घंटी बजी तो सुमन ने उठ कर स्वयं दरवाजा खोला. एक बहुत बड़ा गुलदस्ता, रात की रानी से महकता हुआ. गुलदस्ते के पीछे लाने वाले का मुंह छिपा हुआ था. ‘‘जन्मदिन मुबारक हो, भाभी,’’ केवलकिशन ने गुलदस्ता आगे बढ़ाते हुए कहा. गुलशन का एक और जिगरी दोस्त.

‘‘धन्यवाद,’’ निराशा के बावजूद मुसकान बिखेरते हुए सुमन ने कहा, ‘‘आइए, अंदर आइए.’’

‘‘नहीं भाभी, जल्दी में हूं. दफ्तर से सीधा आ रहा हूं. घर में मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं. महारानी का 2 बार फोन आ चुका है,’’ केवलकिशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करिए. फिर आऊंगा और पूरी पलटन के साथ.’’

यही बात अच्छी है केवलकिशन की. हमेशा हंसता रहता है. अब दूसरा भी कब तक चेहरा लटकाए बैठा रहे. रात की रानी को सुमन ने अपने हाथों से गुलदान में सजा कर रखा. खुशबू को गहरी सांस ले कर अंदर खींचा. फिर से घंटी बजी. सुमन हंस पड़ी. फिर से दरवाजा खोला. हरनाम सिंह गुलदाऊदी का गुलदस्ता हाथ में लिए हुए था.

‘‘जन्मदिन की बधाई, मैडम,’’ हरनाम सिंह ने गुलदस्ता पकड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी जाना है. मिठाई खाने कल आऊंगा.’’

इस से पहले कि वह कुछ कहती, हरनाम सिंह आंखों से ओझल हो गया. वह सोचने लगी, ‘क्लब में हमेशा मिलता है पर न जाने क्यों हमेशा शरमाता सा रहता है. हां, इस की पत्नी बड़ी बातूनी है. क्लब के सारे सदस्यों की पोल खोलती रहती है, टांग खींचती रहती है. उस के साथ बैठो तो पता ही नहीं लगता कि कितना समय निकल गया.’

गुलदस्ते को सजाते हुए सुमन सोच रही थी, ‘क्या उस के जन्मदिन की खबर सारे अखबारों में छपी है?’ इस बार यकीनन घंटी फोन की थी.

‘‘हैलो,’’ सुमन की आंखों में आशा की चमक थी.

‘‘क्षमा करना सुमनजी,’’ डेविड ने अंगरेजी में कहा, ‘‘जन्मदिन की बधाई हो. मैं खुद न आ सका. वैसे आप का तोहफा सुबह अखबार वाले से पहले पहुंच जाएगा. कृपया मेरी ओर से मुबारकबाद स्वीकार करें.’’

‘‘तोहफे की क्या जरूरत है,’’ सुमन ने संयत हो कर कहा, ‘‘आप ने याद किया, क्या यह कम है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर तोहफे की बात ही अलग है,’’ डेविड ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब देखिए, हमें तो कोई तोहफा देता नहीं, इसलिए बस तरसते रहते हैं.’’

‘‘अपना जन्मदिन बताइए,’’ सुमन ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘‘अगले 15 सालों के लिए बुक कर दूंगी.’’

‘‘वाहवाह, क्या खूब कहा,’’ डेविड ने भी हंस कर कहा, ‘‘पर मेरा जन्मदिन एक रहस्य है. आप को बताने से मजबूर हूं, अच्छा.’’ डेविड ने फोन रख दिया. वह एक सरकारी कारखाने का प्रबंध निदेशक था. हमेशा क्लब और औपचारिक दावतों में मिलता रहता था. गुलशन का घनिष्ठ मित्र था. रात्रि के 2 बज रहे थे. गुलशन घर लौट रहा था. आज वह बहुत संतुष्ट था. जरमन प्रतिनिधियों से सहयोग का ठेका पक्का हो गया था. वे 30 करोड़ डौलर का सामान और मशीनें देंगे. स्वयं उन के इंजीनियर कारखाने के विस्तार व नवीनीकरण में सहायता करेंगे. भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षण देंगे और 3 साल बाद जब माल बनना शुरू हो जाएगा तो सारा का सारा स्वयं खरीद लेंगे. कहीं और बेचने की आवश्यकता नहीं है. इस से बढि़या सौदा और क्या हो सकता है. अचानक गुलशन के मन में एक बिजली सी कौंध गई कि पता नहीं सुमन ने मिक्की को फोन किया या नहीं? उस के जन्मदिन पर वह सुबह उठ कर सब से पहले यही काम करता था. आज ही गलती हो गई थी. जरमन प्रतिनिधि मंडल उस के दिमाग पर भूत की तरह सवार था. जरूर ही मिक्की आज नाटक करेगी.

तभी एक और बिजली कड़क उठी. कितना मूर्ख है वह. अरे, सुमन का भी तो जन्मदिन है. आंख खुलते ही उस ने इतने सारे इशारे फेंके, पर वह तो जन्मजात मूर्ख है. बाप रे, इतनी बड़ी भूल कैसे कर दी. अब क्या करे? गुलशन ने फौरन कार को वापस होटल की ओर मोड़ दिया. जल्दीजल्दी कदम बढ़ाते हुए अंदर पहुंचा.

प्रबंधक ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कुछ भूल गए आप?’’

‘‘हां, जो काम सब से पहले करना था, वह सब से बाद में याद आया,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘मुझे एक बहुत अच्छा गुलदस्ता चाहिए और एक केक… जन्मदिन का.’’

‘‘किस का जन्मदिन है?’’ प्रबंधक ने पूछा.

गुलशन ने उदास हो कर कहा, ‘‘वैसे तो कल था, पर गलती सुधर जाए, कोशिश करूंगा.’’

‘‘फूलों की दुकान तो खुलवानी पड़ेगी,’’ प्रबंधक ने कहा, ‘‘इस समय तो कोई फूल लेता नहीं. वैसे किस का जन्मदिन है?’’

‘‘मेरी पत्नी का,’’ गुलशन के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘ओह, तब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा,’’ प्रबंधक ने कहा.

गुलशन इस होटल का पुराना ग्राहक था. साल में कई बार कंपनी का खानापीना यहां ही होता था. आधे घंटे बाद प्रबंधक बहुत बड़ा गुलदस्ता ले कर उपस्थित हुआ. सहायक के हाथ में केक था.

‘‘हमारी ओर से मैडम को भेंट,’’ प्रबंधक ने हंस कर कहा.

गुलशन का हाथ जेब में था. पर्स निकालता हुआ बोला, ‘‘नहीं, आप दाम ले लें.’’

‘‘शर्मिंदा न करें हम को,’’ प्रबंधक ने मुसकरा कर कहा.

घंटी की मधुर आवाज भी गहरी नींद में सोई सुमन को बड़ी कर्कश लगी. धीरेधीरे जैसे नींद की खुमारी की परतें उतरने लगीं तो उसे होश आने लगा. प्रेमलता तो बाहर पिछवाड़े में अपने कमरे में सो रही थी. वैसे भी उसे जाने के लिए कह रखा था. वह दरवाजा खोलने कहां से आएगी.

उसे अचानक हंसी भी आई, ‘‘लगता है, एक और गुलदस्ता आ गया.’’

दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘गुल्लर, तुम्हारा गुल्लर. देर आया, पर दुरुस्त आया,’’ गुलशन ने विनोद से कहा.

सुमन के चेहरे पर लकीरें तन गईं. हंसी लुप्त हो गई और क्रोध झलक आया. दरवाजा खोला तो गुलशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो. हर साल, हर साल, हर साल इसी तरह आता रहे. यह भेंट स्वीकार करिए.’’

सुमन ने मुंह बना दिया और बिना कुछ लिए अंदर आ गई. नाराजगी बढ़ती जा रही थी. इतनी देर से डब्बे में बंद गुबार बाहर आ गया.

‘‘भई, क्षमा कर दो, बड़ी भूल हो गई,’’ गुलशन ने केक मेज पर रखा और गुलदस्ता सुमन की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे,’’ सुमन ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘इतनी नाराज मत हो,’’ गुलशन ने खुशामदी स्वर में कहा, ‘‘जन्मदिन की खुशी में अगले महीने तुम्हें जरमनी की सैर कराने ले जाऊंगा.’’

‘‘कहा न, न मुझे कुछ चाहिए और न ही कहीं जाना है,’’ सुमन ने दूर हटते हुए कहा.

अचानक गुलशन की निगाह कार्निस व कोने में सजे हुए गुलदस्तों पर पड़ी. उस ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, इतने सारे गुलदस्ते… कहां से आए? किस ने दिए?’’

‘‘इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो तुम्हारी तरह लापरवाह और बेगैरत नहीं हैं,’’ सुमन ने कड़वाहट से कहा.

‘‘देखूं तो सही, वे महान लोग कौन हैं?’’ गुलशन पास जा कर कार्ड पढ़ने लगा…केवलकिशन…अनवर…हरनाम सिंह…स्वरूप…डेविड…’’

फिर गुलशन ठठा कर हंस पड़ा. सुमन आश्चर्य से उस को देखने लगी. जब वह हंसता ही रहा तो सुमन ने गुस्से से पूछा, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’

‘‘तुम्हें याद है, पिछले महीने हम कहां गए थे?’’ गुलशन ने पूछा.

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वहां तुम तो अपनी महिला समिति में तल्लीन हो गईं और मैं अपने दोस्तों के साथ कौफी पी रहा था. अरे, यही लोग तो थे,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘तो फिर?’’

‘‘बस, बातों ही बातों में जन्मदिन की बात निकल आई. सब का एक ही मत था कि कभी न कभी ऐसी बात हो जाती है जब जन्मदिन, वह भी पत्नी का, बड़ा बदमजा हो जाता है,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘और मैं ने कहा कि मैं अकसर जन्मदिन भूल जाता हूं.’’

‘‘तो फिर?’’ सुमन ने दोहराया.

‘‘तो फिर क्या, मैं ने उन सब से तुम्हारा जन्मदिन उन की डायरी में लिखवाया और कहा कि अगर हमेशा की तरह मैं भूल जाऊं तो वे जरूर मेरी ओर से तोहफा भिजवा दें,’’ गुलशन ने स्पष्ट किया.

‘‘पर उन्होंने यह तो नहीं कहा,’’ सुमन ने शिकायत की.

‘‘यह उन की शरारत है,’’ गुलशन हंसा, ‘‘पर हम इतनी छोटी सी बात पर लड़ेंगे तो नहीं.’’

अब तो सिवा हंसने के सुमन के पास और कोई रास्ता न था.

The post Valentine Special :हमेशा की तरह -सुमन का चेहरा क्यों मुरझा गया appeared first on Sarita Magazine.

February 27, 2021 at 10:00AM

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