Thursday 25 February 2021

दोहरा चरित्र -भाग 3 : शादी के बाद कंचन के जीवन में क्या बदलाव आएं

‘‘क्या नहीं कर रहा है. कुछ भी तो नहीं छिपा है आप से. सुनीता को सिरमाथे पर बिठाया जा रहा है. वहीं मेरी तरफ ताकने तक की फुरसत नहीं है किसी के पास.’’

‘‘यह तुम्हारा वहम है.’’

‘‘हकीकत है, मांजी.’’

‘‘हकीकत ही सही. इस के लिए तुम जिम्मेदार हो.’’

‘‘सुनीता को मैं यहां लाई?’’

‘‘बेवजह उसे बीच में मत घसीटो. तुम अच्छी तरह जानती हो कि पतिपत्नी के बीच रिश्तों की डोर औलाद से मजबूत होती है.’’

‘‘तो क्या यह संभावना सुनीता में देखी जा रही है?’’

‘‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे.’’

‘‘बेशर्म तो आप हैं जो अपने बेटे को शह दे रही हैं,’’ मैं भी कुछ छिपाने के मूड में नहीं थी.

‘‘ऐसा ही सही. तुम्हें रहना हो तो रहो.’’

‘‘रहूंगी तो मैं यहीं. देखती हूं मुझे कोई मेरे हक से कैसे वंचित करता है,’’ अतिभावुकता के चलते मेरी रुलाई फूट गई. बिस्तर पर लेटेलेटे सोचने लगी, एक मैं थी जो यह जानते हुए भी कि सुधीर विकलांग है उसे अपनाना अपना धर्म समझा. वहीं सुधीर, मेरे बांझपन को इतनी बड़ी विकलांगता समझ रहा है कि मुझ से छुटकारा पाने तक की सोचने लगा है. इतनी जल्दी बदल सकता है सुधीर. यह वही सुधीर है जिस ने सुहागरात वाले दिन मेरे माथे को चूम कर कहा था, ‘यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे तुम जैसे विशाल हृदय वाली जीवनसंगिनी मिली. मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि कभी अपनी तरफ से तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा,’ आज सुधीर इतना गिर गया है कि उसे रिश्तों की मर्यादाओं का भी खयाल नहीं रहा. माना कि दूर के रिश्ते की मामी की लड़की है सुनीता, पर जब नाम दे दिया तो उसे निभाने का भी संस्कार हर मांबाप अपने बच्चों को देते हैं. पता नहीं, मेरी सास को क्या हो गया है कि सब  जानते हुए भी अनजान बनी हैं.

पापा की तबीयत ठीक नहीं थी. भैया ने बुलाया तो मायके जाना पड़ा. एक बार सोचा अपनी पीड़ा कह कर मन हलका कर लूं पर हिम्मत न पड़ी. पापा तनावग्रस्त होंगे. पर भाभी की नजरों से मेरी पीड़ा छिप न सकी. वे एकांत पा कर मुझ से पूछ बैठीं. पहले तो मैं ने टालमटोल किया. आखिर कब तक? मेरी हकीकत मेरे आंसुओं ने बेपरदा कर दी.

रात भैया से उन्होंने खुलासा किया. वे क्रोध से भर गए. उन का क्रोध करना वाजिब था. कोई भाई अपनी बहन का दुख नहीं देख सकता. रात ही वे मेरे कमरे में आने वाले थे पर भाभी ने मना कर दिया.

सुबह नाश्ते में उन्होंने सुधीर का जिक्र छेड़ा.

‘‘तू अब उस के पास नहीं जाएगी. फोन लगा मैं उस बेहूदे से अभी बात करता हूं.’’

मैं ने किसी तरह उन्हें मनाया.

1 महीना रह कर मैं जब वापस भरे मन से ससुराल जाने लगी तो भाभी मुझे सीने से लगाते हुए बोलीं, ‘‘दीदी, चिंता की कोई जरूरत नहीं. आप के लिए इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले हैं. भाभी को मां का दरजा यों ही नहीं दिया गया है. मैं खुद नहीं खाऊंगी पर आप को भूखा नहीं रखूंगी. यह मेरा वादा है. नहीं पटे तो निसंकोच चली आइएगा.’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी भाभी कि मैं उसे सही रास्ते पर ले आऊं,’’ भरे कंठ से मैं बोली.

ससुराल में आ कर जो दृश्य मैं ने देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. सुनीता की मांग में सिंदूर भरा था. तो क्या सुधीर ने सुनीता से शादी कर ली? सोच कर मैं सिहर गई. मैं तेजी से चल कर अपने कमरे में आई. देखा सुधीर लेटा हुआ था. उसे झकझोर कर उठाया.

‘‘यह मैं क्या देख रही हूं. सुनीता की शादी कब हुई? कौन है उस का पति?’’ पहले तो सुधीर ने नजरें चुराने की कोशिश की पर ज्यादा देर तक हकीकत पर परदा न डाल सका. बेशर्मों की तरह बोला, ‘‘तुम जो समझ रही हो वह सच है.’’

‘‘सुनीता से तुम ने शादी कर ली?’’

‘‘हां.’’

‘‘मेरे रहते हुए तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘तुम इसे चाहे जिस रूप में लो पर यह अच्छी तरह जानती हो कि मुझे अपना बच्चा चाहिए.’’

‘‘मेरी सहमति लेना तुम ने मुनासिब नहीं समझा.’’

‘‘क्या तुम देतीं?’’

‘‘हो सकता था मैं दे देती.’’

सुन कर सुधीर खुश हो गया, ‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी,’’ कह कर जैसे ही सुधीर ने मेरे करीब आ मुझे अपनी बांहों में भर कर प्यार जताने का नाटक दिखाना चाहा, मैं ने उसे झटक दिया. मेरे क्रोध की सीमा न रही. मुझ से न रोते बन रहा था न हंसते. किसी तरह खुद को संभाला. अब जो हुआ उसे बदला तो नहीं जा सकता था. वैसे भी हमेशा पुरुषों की चली है. लिहाजा, मैं ने परिस्थिति से समझौता करना मुनासिब समझा. फिर भी सुधीर को औकात बताने से न चूकी.

ये भी पढ़ें- हाय बौस बाय बौस

‘‘सुधीर, तुम अच्छी तरह जानते हो कि बांझ शब्द एक स्त्री के लिए गाली से कम नहीं होता. फिर उस स्त्री के लिए तो और ज्यादा जो इस कलंक के साथ अभिशापित जीवन जीने के लिए मजबूर हो. मुझे दुख इस बात का नहीं है कि तुम ने सुनीता से शादी की, दुख इस बात का है कि तुम ने मेरी पीठ में छुरा भोंका. मेरे विश्वास का कत्ल किया. यही काम तुम मुझे विश्वास में ले कर कर सकते थे.

‘‘सुधीर, अगर तुम्हारी विकलांगता को खामी समझ कर मैं ने तुम से शादी से इनकार कर दिया होता तो तुम मुझे किस रूप में लेते?’’

सुधीर ने कोई जवाब नहीं दिया. मुझे लगा मैं ने व्यर्थ का सवाल उठा दिया. जिस का चरित्र दोगला हो वह भला यह सब सोचविचार क्यों करेगा? खैर, यह समाचार मेरे मायके तक पहुंचा. भैया मेरी ससुराल आते ही गरजे, ‘‘कहां है सुधीर, मैं उसे बरबाद कर के छोड़ूंगा. सरकारी कर्मचारी हो कर भी उस की हिम्मत कैसे हुई दूसरी शादी करने की?’’

मैं ने भैया को किसी तरह शांत करने की कोशिश की.

‘‘मैं चुप रहने वाला नहीं. पुलिस में रिपोर्ट करूंगा. इस के अफसरों से शिकायत करूंगा. दरदर की ठोकर न खिलवाई तो मेरा नाम नहीं.’’

सुधीर चुपके से निकल कर बाहर चला गया. मेरी सास आईं, ‘‘भड़ास निकाल ली. अब मेरी भी सुनिए. सुनीता बिन बाप की बेटी थी. सुधीर ने सिर्फ सहारा दिया है,’’ वे बोलीं.

‘‘अपनी बेशर्मी को सहारे का नाम मत दीजिए. एक को सहारा दिया और दूसरे को बेसहारा किया,’’ भैया ने व्यंग्य किया.

‘‘आरती को क्या किसी ने घर से जाने के लिए कहा है?’’ सास बोलीं.

‘‘निकल ही जाएगी,’’ भैया बोले.

‘‘उस की मरजी. पर न मैं चाहूंगी न ही सुधीर कि वह इस घर से जाए. उस का जो दरजा है वह बना रहेगा.’’

‘‘मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए,’’ भैया मेरी तरफ मुखातिब हुए, ‘‘आरती, तुम सामान बांधो. अब मैं तुम्हें यहां एक पल भी न रहने दूंगा.’’

‘‘नहीं भैया, मैं ससुराल छोड़ने वाली नहीं. आज भी हमारा समाज किसी ब्याहता को मायके में स्वीकार नहीं करता,’’ मैं कहतेकहते भावुक हो गई, ‘‘मैं ससुराल की चौखट पर ही दम तोड़ना पसंद करूंगी मगर मायके नहीं जाऊंगी.’’

भैया की भी आंखें भर आईं. रूढि़वादी समाज से क्या लड़ना आसान है? गोत्र के नाम पर पतिपत्नी को भाईबहन बता दिया जाता है. ऐसे जड़ समाज से परिवर्तन की उम्मीद करना रेगिस्तान में पानी तलाशने जैसा है.

भैया की चरणधूलि लेते समय मैं ने उन्हें वचन दिया कि मैं कमजोर औरत नहीं हूं. अपने अस्तित्व के लिए कमजोर नहीं पड़ूंगी. फिर भी उन्होंने मुझे इस के लिए आश्वस्त किया कि जब चाहोगी तुम्हारे लिए मायके के दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहेंगे.

भैया के जाने के 2 घंटे बाद सुधीर आया. आते ही हेकड़ी दिखाने लगा. मैं ने भी जता दिया कि वह अपनी औकात में रहे. सुधीर ने मुझे अलग रहने के लिए एक फ्लैट खरीद कर दिया. पहले तो मैं ने सोचा कि यहीं रह कर अपने हक के लिए लड़ती रहूंगी. कभी उस के खिलाफ कोर्ट भी जाने की इच्छा हुई पर यह सोच कर कदम पीछे कर लेती कि उस से फायदा क्या होगा? बहुत हुआ उस की नौकरी जाएगी. जेल जाएगा. वह हर महीने मुझे इतने रुपए दे जाता था कि मेरा खर्च आसानी से चल जाता. सुनीता पर दया आती, सो अलग. उसे मेरी सास और सुधीर ने बरगलाया. बहरहाल, जो हुआ उसे मैं ने नियति का चक्र मान कर स्वीकार कर लिया. मैं ने समय काटने के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली.

समय धीरेधीरे सरकने लगा. सुधीर से मेरा संबंध सिर्फ महीने के खर्च लेने के अलावा कुछ नहीं रहा. सुनीता के मोहपाश में बंधे सुधीर को मेरी कोई फिक्र न थी, न ही मुझे ऐसे आदमी से कोई ताल्लुक रखना था. एक दिन उस ने बड़े भरे मन से खुलासा किया, ‘मेरे जीवन में बाप बनना ही नहीं लिखा है.’ जिस स्वर में उस ने कहा मुझे उस से सहानुभूति हो गई. जो भी हो वह मेरा पति है. चाहती तो व्यंग्यबाण से उस का हृदय छलनी कर सकती थी पर पीछे लौट कर मैं अपने ही जख्मों को कुरेदना नहीं चाहती थी. मेरे जीवन में नियति ने जो कुछ दिया वह मिला. अब मैं क्यों बेवजह किसी को कोसूं. फिर भी पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सुनीता के खून में इन्फैक्शन है. डाक्टर का कहना है कि अगर वह मां बनेगी तो निश्चय ही उसे विकलांग बच्चा पैदा होगा.’’

सुन कर मुझे अफसोस हुआ. सुधीर से ज्यादा दुख सुनीता के लिए हुआ. उस बेचारी का जीवन खराब हुआ. सुधीर ने 2-2 जिंदगियां बरबाद कीं. काश, वह मेरी बात मान कर किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेता तो हमें बुढ़ापे का सहारा मिल जाता और उस बच्चे का जीवन सुधर जाता. क्षणांश चुप्पी के बाद सुधीर आगे बोला, ‘‘आरती, किस मुंह से कहूं. कहने के लिए बचा ही क्या है.’’

मैं संशय में पड़ गई. सुधीर आखिर कहना क्या चाहता है. सुधीर के दोहरे चरित्र से तो मैं वाकिफ हो चुकी थी. इसलिए सजग थी. मैं ने ज्यादा जोर नहीं डाला. आखिरकार उसे ही कहना पड़ा, ‘‘क्या हम फिर से एकसाथ नहीं रह सकते?’’

सुनते ही मेरा पारा सातवें आसमान पर चला गया. जी में आया कि अभी धक्के मार कर बाहर निकाल दूं. मेरा अनुमान सही निकला. सुधीर का दोहरा चरित्र एक बार फिर से जाहिर हो गया. किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘इस हमदर्दी की वजह?’’

‘‘हमदर्दी नहीं हक,’’ यह सुधीर की बेशर्मी की पराकाष्ठा थी. स्त्री व पुरुष के मूल स्वभाव में यही तो फर्क होता है. तभी तो सारे व्रत जैसे करवाचौथ, तीज सिर्फ औरतों से करवाए जाते रहे. हमारे धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषों को खुला सांड़ बना दिया, वहीं औरतों की ममता को हजार बंधनों में बांध कर उन्हें पंगु कर दिया. पर मैं भावुकता में नहीं बही.

‘‘जब सुनीता को ले आए तब हक का खयाल नहीं आया?’’

‘‘मैं भटक गया था,’’ बड़ी मासूमियत से वह बोला.

‘‘अब गलती सुधारना चाहते हो.’’

वह चुप रहा. मैं उस के चेहरे के पलपल बदलते भावों को बखूबी पढ़ रही थी. व्यर्थ बहस में पड़ने से अच्छा मुझे सबकुछ जानना उचित लगा. वह बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम टैस्ट ट्यूब तकनीक से मां बन जाओ.’’

मुझे हंसी सूझी, साथ में रंज भी हुआ. वह हतप्रभ मुझे देखने लगा.

‘‘तीसरी शादी कर लो. मेरी राय में यही ठीक रहेगा.’’

‘‘आरती, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत नाइंसाफी की है.’’

‘‘माफ कर दिया.’’

‘‘तो क्या तुम…’’ उस का चेहरा खिल गया.

‘‘जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं होने वाला. अच्छा होगा तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’

तमाम कोशिशों के बाद भी जब उस की दाल नहीं गली तो भरे कदमों से चल कर फाटक की तरफ बढ़ा. मुझ से रहा न गया, अपने मन की बात कह दी.

‘‘सुधीर, सौतन ला कर तुम ने पत्नी के अस्तित्व को गाली दी है. तुम्हारे बाप बनने की हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’

उस के जाते ही बिस्तर पर पड़ कर मैं फूटफूट कर रोने लगी.

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‘‘क्या नहीं कर रहा है. कुछ भी तो नहीं छिपा है आप से. सुनीता को सिरमाथे पर बिठाया जा रहा है. वहीं मेरी तरफ ताकने तक की फुरसत नहीं है किसी के पास.’’

‘‘यह तुम्हारा वहम है.’’

‘‘हकीकत है, मांजी.’’

‘‘हकीकत ही सही. इस के लिए तुम जिम्मेदार हो.’’

‘‘सुनीता को मैं यहां लाई?’’

‘‘बेवजह उसे बीच में मत घसीटो. तुम अच्छी तरह जानती हो कि पतिपत्नी के बीच रिश्तों की डोर औलाद से मजबूत होती है.’’

‘‘तो क्या यह संभावना सुनीता में देखी जा रही है?’’

‘‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे.’’

‘‘बेशर्म तो आप हैं जो अपने बेटे को शह दे रही हैं,’’ मैं भी कुछ छिपाने के मूड में नहीं थी.

‘‘ऐसा ही सही. तुम्हें रहना हो तो रहो.’’

‘‘रहूंगी तो मैं यहीं. देखती हूं मुझे कोई मेरे हक से कैसे वंचित करता है,’’ अतिभावुकता के चलते मेरी रुलाई फूट गई. बिस्तर पर लेटेलेटे सोचने लगी, एक मैं थी जो यह जानते हुए भी कि सुधीर विकलांग है उसे अपनाना अपना धर्म समझा. वहीं सुधीर, मेरे बांझपन को इतनी बड़ी विकलांगता समझ रहा है कि मुझ से छुटकारा पाने तक की सोचने लगा है. इतनी जल्दी बदल सकता है सुधीर. यह वही सुधीर है जिस ने सुहागरात वाले दिन मेरे माथे को चूम कर कहा था, ‘यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे तुम जैसे विशाल हृदय वाली जीवनसंगिनी मिली. मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि कभी अपनी तरफ से तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा,’ आज सुधीर इतना गिर गया है कि उसे रिश्तों की मर्यादाओं का भी खयाल नहीं रहा. माना कि दूर के रिश्ते की मामी की लड़की है सुनीता, पर जब नाम दे दिया तो उसे निभाने का भी संस्कार हर मांबाप अपने बच्चों को देते हैं. पता नहीं, मेरी सास को क्या हो गया है कि सब  जानते हुए भी अनजान बनी हैं.

पापा की तबीयत ठीक नहीं थी. भैया ने बुलाया तो मायके जाना पड़ा. एक बार सोचा अपनी पीड़ा कह कर मन हलका कर लूं पर हिम्मत न पड़ी. पापा तनावग्रस्त होंगे. पर भाभी की नजरों से मेरी पीड़ा छिप न सकी. वे एकांत पा कर मुझ से पूछ बैठीं. पहले तो मैं ने टालमटोल किया. आखिर कब तक? मेरी हकीकत मेरे आंसुओं ने बेपरदा कर दी.

रात भैया से उन्होंने खुलासा किया. वे क्रोध से भर गए. उन का क्रोध करना वाजिब था. कोई भाई अपनी बहन का दुख नहीं देख सकता. रात ही वे मेरे कमरे में आने वाले थे पर भाभी ने मना कर दिया.

सुबह नाश्ते में उन्होंने सुधीर का जिक्र छेड़ा.

‘‘तू अब उस के पास नहीं जाएगी. फोन लगा मैं उस बेहूदे से अभी बात करता हूं.’’

मैं ने किसी तरह उन्हें मनाया.

1 महीना रह कर मैं जब वापस भरे मन से ससुराल जाने लगी तो भाभी मुझे सीने से लगाते हुए बोलीं, ‘‘दीदी, चिंता की कोई जरूरत नहीं. आप के लिए इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले हैं. भाभी को मां का दरजा यों ही नहीं दिया गया है. मैं खुद नहीं खाऊंगी पर आप को भूखा नहीं रखूंगी. यह मेरा वादा है. नहीं पटे तो निसंकोच चली आइएगा.’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी भाभी कि मैं उसे सही रास्ते पर ले आऊं,’’ भरे कंठ से मैं बोली.

ससुराल में आ कर जो दृश्य मैं ने देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. सुनीता की मांग में सिंदूर भरा था. तो क्या सुधीर ने सुनीता से शादी कर ली? सोच कर मैं सिहर गई. मैं तेजी से चल कर अपने कमरे में आई. देखा सुधीर लेटा हुआ था. उसे झकझोर कर उठाया.

‘‘यह मैं क्या देख रही हूं. सुनीता की शादी कब हुई? कौन है उस का पति?’’ पहले तो सुधीर ने नजरें चुराने की कोशिश की पर ज्यादा देर तक हकीकत पर परदा न डाल सका. बेशर्मों की तरह बोला, ‘‘तुम जो समझ रही हो वह सच है.’’

‘‘सुनीता से तुम ने शादी कर ली?’’

‘‘हां.’’

‘‘मेरे रहते हुए तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘तुम इसे चाहे जिस रूप में लो पर यह अच्छी तरह जानती हो कि मुझे अपना बच्चा चाहिए.’’

‘‘मेरी सहमति लेना तुम ने मुनासिब नहीं समझा.’’

‘‘क्या तुम देतीं?’’

‘‘हो सकता था मैं दे देती.’’

सुन कर सुधीर खुश हो गया, ‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी,’’ कह कर जैसे ही सुधीर ने मेरे करीब आ मुझे अपनी बांहों में भर कर प्यार जताने का नाटक दिखाना चाहा, मैं ने उसे झटक दिया. मेरे क्रोध की सीमा न रही. मुझ से न रोते बन रहा था न हंसते. किसी तरह खुद को संभाला. अब जो हुआ उसे बदला तो नहीं जा सकता था. वैसे भी हमेशा पुरुषों की चली है. लिहाजा, मैं ने परिस्थिति से समझौता करना मुनासिब समझा. फिर भी सुधीर को औकात बताने से न चूकी.

ये भी पढ़ें- हाय बौस बाय बौस

‘‘सुधीर, तुम अच्छी तरह जानते हो कि बांझ शब्द एक स्त्री के लिए गाली से कम नहीं होता. फिर उस स्त्री के लिए तो और ज्यादा जो इस कलंक के साथ अभिशापित जीवन जीने के लिए मजबूर हो. मुझे दुख इस बात का नहीं है कि तुम ने सुनीता से शादी की, दुख इस बात का है कि तुम ने मेरी पीठ में छुरा भोंका. मेरे विश्वास का कत्ल किया. यही काम तुम मुझे विश्वास में ले कर कर सकते थे.

‘‘सुधीर, अगर तुम्हारी विकलांगता को खामी समझ कर मैं ने तुम से शादी से इनकार कर दिया होता तो तुम मुझे किस रूप में लेते?’’

सुधीर ने कोई जवाब नहीं दिया. मुझे लगा मैं ने व्यर्थ का सवाल उठा दिया. जिस का चरित्र दोगला हो वह भला यह सब सोचविचार क्यों करेगा? खैर, यह समाचार मेरे मायके तक पहुंचा. भैया मेरी ससुराल आते ही गरजे, ‘‘कहां है सुधीर, मैं उसे बरबाद कर के छोड़ूंगा. सरकारी कर्मचारी हो कर भी उस की हिम्मत कैसे हुई दूसरी शादी करने की?’’

मैं ने भैया को किसी तरह शांत करने की कोशिश की.

‘‘मैं चुप रहने वाला नहीं. पुलिस में रिपोर्ट करूंगा. इस के अफसरों से शिकायत करूंगा. दरदर की ठोकर न खिलवाई तो मेरा नाम नहीं.’’

सुधीर चुपके से निकल कर बाहर चला गया. मेरी सास आईं, ‘‘भड़ास निकाल ली. अब मेरी भी सुनिए. सुनीता बिन बाप की बेटी थी. सुधीर ने सिर्फ सहारा दिया है,’’ वे बोलीं.

‘‘अपनी बेशर्मी को सहारे का नाम मत दीजिए. एक को सहारा दिया और दूसरे को बेसहारा किया,’’ भैया ने व्यंग्य किया.

‘‘आरती को क्या किसी ने घर से जाने के लिए कहा है?’’ सास बोलीं.

‘‘निकल ही जाएगी,’’ भैया बोले.

‘‘उस की मरजी. पर न मैं चाहूंगी न ही सुधीर कि वह इस घर से जाए. उस का जो दरजा है वह बना रहेगा.’’

‘‘मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए,’’ भैया मेरी तरफ मुखातिब हुए, ‘‘आरती, तुम सामान बांधो. अब मैं तुम्हें यहां एक पल भी न रहने दूंगा.’’

‘‘नहीं भैया, मैं ससुराल छोड़ने वाली नहीं. आज भी हमारा समाज किसी ब्याहता को मायके में स्वीकार नहीं करता,’’ मैं कहतेकहते भावुक हो गई, ‘‘मैं ससुराल की चौखट पर ही दम तोड़ना पसंद करूंगी मगर मायके नहीं जाऊंगी.’’

भैया की भी आंखें भर आईं. रूढि़वादी समाज से क्या लड़ना आसान है? गोत्र के नाम पर पतिपत्नी को भाईबहन बता दिया जाता है. ऐसे जड़ समाज से परिवर्तन की उम्मीद करना रेगिस्तान में पानी तलाशने जैसा है.

भैया की चरणधूलि लेते समय मैं ने उन्हें वचन दिया कि मैं कमजोर औरत नहीं हूं. अपने अस्तित्व के लिए कमजोर नहीं पड़ूंगी. फिर भी उन्होंने मुझे इस के लिए आश्वस्त किया कि जब चाहोगी तुम्हारे लिए मायके के दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहेंगे.

भैया के जाने के 2 घंटे बाद सुधीर आया. आते ही हेकड़ी दिखाने लगा. मैं ने भी जता दिया कि वह अपनी औकात में रहे. सुधीर ने मुझे अलग रहने के लिए एक फ्लैट खरीद कर दिया. पहले तो मैं ने सोचा कि यहीं रह कर अपने हक के लिए लड़ती रहूंगी. कभी उस के खिलाफ कोर्ट भी जाने की इच्छा हुई पर यह सोच कर कदम पीछे कर लेती कि उस से फायदा क्या होगा? बहुत हुआ उस की नौकरी जाएगी. जेल जाएगा. वह हर महीने मुझे इतने रुपए दे जाता था कि मेरा खर्च आसानी से चल जाता. सुनीता पर दया आती, सो अलग. उसे मेरी सास और सुधीर ने बरगलाया. बहरहाल, जो हुआ उसे मैं ने नियति का चक्र मान कर स्वीकार कर लिया. मैं ने समय काटने के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली.

समय धीरेधीरे सरकने लगा. सुधीर से मेरा संबंध सिर्फ महीने के खर्च लेने के अलावा कुछ नहीं रहा. सुनीता के मोहपाश में बंधे सुधीर को मेरी कोई फिक्र न थी, न ही मुझे ऐसे आदमी से कोई ताल्लुक रखना था. एक दिन उस ने बड़े भरे मन से खुलासा किया, ‘मेरे जीवन में बाप बनना ही नहीं लिखा है.’ जिस स्वर में उस ने कहा मुझे उस से सहानुभूति हो गई. जो भी हो वह मेरा पति है. चाहती तो व्यंग्यबाण से उस का हृदय छलनी कर सकती थी पर पीछे लौट कर मैं अपने ही जख्मों को कुरेदना नहीं चाहती थी. मेरे जीवन में नियति ने जो कुछ दिया वह मिला. अब मैं क्यों बेवजह किसी को कोसूं. फिर भी पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सुनीता के खून में इन्फैक्शन है. डाक्टर का कहना है कि अगर वह मां बनेगी तो निश्चय ही उसे विकलांग बच्चा पैदा होगा.’’

सुन कर मुझे अफसोस हुआ. सुधीर से ज्यादा दुख सुनीता के लिए हुआ. उस बेचारी का जीवन खराब हुआ. सुधीर ने 2-2 जिंदगियां बरबाद कीं. काश, वह मेरी बात मान कर किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेता तो हमें बुढ़ापे का सहारा मिल जाता और उस बच्चे का जीवन सुधर जाता. क्षणांश चुप्पी के बाद सुधीर आगे बोला, ‘‘आरती, किस मुंह से कहूं. कहने के लिए बचा ही क्या है.’’

मैं संशय में पड़ गई. सुधीर आखिर कहना क्या चाहता है. सुधीर के दोहरे चरित्र से तो मैं वाकिफ हो चुकी थी. इसलिए सजग थी. मैं ने ज्यादा जोर नहीं डाला. आखिरकार उसे ही कहना पड़ा, ‘‘क्या हम फिर से एकसाथ नहीं रह सकते?’’

सुनते ही मेरा पारा सातवें आसमान पर चला गया. जी में आया कि अभी धक्के मार कर बाहर निकाल दूं. मेरा अनुमान सही निकला. सुधीर का दोहरा चरित्र एक बार फिर से जाहिर हो गया. किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘इस हमदर्दी की वजह?’’

‘‘हमदर्दी नहीं हक,’’ यह सुधीर की बेशर्मी की पराकाष्ठा थी. स्त्री व पुरुष के मूल स्वभाव में यही तो फर्क होता है. तभी तो सारे व्रत जैसे करवाचौथ, तीज सिर्फ औरतों से करवाए जाते रहे. हमारे धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषों को खुला सांड़ बना दिया, वहीं औरतों की ममता को हजार बंधनों में बांध कर उन्हें पंगु कर दिया. पर मैं भावुकता में नहीं बही.

‘‘जब सुनीता को ले आए तब हक का खयाल नहीं आया?’’

‘‘मैं भटक गया था,’’ बड़ी मासूमियत से वह बोला.

‘‘अब गलती सुधारना चाहते हो.’’

वह चुप रहा. मैं उस के चेहरे के पलपल बदलते भावों को बखूबी पढ़ रही थी. व्यर्थ बहस में पड़ने से अच्छा मुझे सबकुछ जानना उचित लगा. वह बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम टैस्ट ट्यूब तकनीक से मां बन जाओ.’’

मुझे हंसी सूझी, साथ में रंज भी हुआ. वह हतप्रभ मुझे देखने लगा.

‘‘तीसरी शादी कर लो. मेरी राय में यही ठीक रहेगा.’’

‘‘आरती, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत नाइंसाफी की है.’’

‘‘माफ कर दिया.’’

‘‘तो क्या तुम…’’ उस का चेहरा खिल गया.

‘‘जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं होने वाला. अच्छा होगा तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’

तमाम कोशिशों के बाद भी जब उस की दाल नहीं गली तो भरे कदमों से चल कर फाटक की तरफ बढ़ा. मुझ से रहा न गया, अपने मन की बात कह दी.

‘‘सुधीर, सौतन ला कर तुम ने पत्नी के अस्तित्व को गाली दी है. तुम्हारे बाप बनने की हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’

उस के जाते ही बिस्तर पर पड़ कर मैं फूटफूट कर रोने लगी.

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February 26, 2021 at 10:00AM

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