Sunday 28 February 2021

लाचार : गणपत टेलर सो लोगों की क्या दुश्मनी थी

घर से अचानक गायब हुए गणपत टेलर के कपड़े 2-3 दिन के बाद गांव से 2 कोस की दूरी पर नदी के किनारे मिलने से जैसे गांव में हड़कंप मच गया. गणपत टेलर के घर में इस खबर के पहुंचते ही उस की बूढ़ी मां शेवंताबाई छाती पीटने लगी, तो बीवी अनुसूया अपने दोनों बच्चों को गले लगा कर रोने लगी. गणपत टेलर हंसमुख और नेक इंसान था. उस के बारे में उक्त खबर पूरे गांव में फैल गई. लोग अपनेअपने तर्क देने लगे. कोई कह रहा था कि गणपत नहाने के लिए उतरा होगा तभी पैर फिसलने से गिर गया होगा. तो कोई कह रहा था कि नहाने के लिए भला वह इतनी दूर क्यों जाएगा. उन्हीं में से एक ने कहा, गणपत तो अच्छा तैराक था. कई बार बाढ़ के पानी में भी उतर कर उस ने लोगों को बचाया था. इन तर्कों में कुछ भी तथ्य नहीं है, यह बात जल्द ही सब की समझ में आ गई.

घर में गणपत जैसा सुखी आदमी ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलने वाला था. बहू, बेटा और पोतेपोतियों से प्रेम करने वाली मां, अनुसूया जैसी सुंदर और मेहनती पत्नी, 2 सुंदर बच्चे और खापी कर आराम से जिंदगी जीने के लिए पैसा देने वाला टेलरिंग का कारोबार. ऐसा आदमी कैसे और क्यों अपनी जान देगा? जितने मुंह उतनी बातें.गांव के बड़ेबुजुर्गों ने थाने में गणपत के गायब होने की रपट लिखा दी. पुलिस वालों ने खोजबीन शुरू कर दी. तैराक बुला कर नदी में खोजा गया लेकिन कोई सुराग भी न मिला.10-15 दिन ऐसे ही बीत गए. गणपत को जमीन निगल गई या आकाश खा गया, किसी को कुछ पता नहीं. जाने वाला तो चला गया लेकिन अपने पीछे वाले लोगों के सिर पर जिम्मेदारी व चिंता का बोझ छोड़ गया.

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अनुसूया अकेली पड़ गई थी. वह दिनरात यह सोचती कि बच्चों का क्या होगा, गृहस्थी कैसे चलेगी वगैरह. अनुसूया को लगने लगा था कि बच्चों का भविष्य अब अंधकार में डूब गया है. रातरातभर उसे नींद नहीं आती थी. आधी रात को वह चारपाई से उठ कर बैठ जाती और रोने लगती. उसे देख उस की सास शेवंताबाई की भी आंखों से आंसू बह जाते लेकिन अपनी बहू को वह अकसर ढाढ़स बंधाती रहती. आज तक मांबेटी जैसी रहने वाली बहूसास ऊपर से शांत रहने का दिखावा कर अपना दुख छिपा रही थीं.

लेकिन कहते हैं न कि समय सबकुछ सिखा देता है. अब उन के दुख की तीव्रता कम होने लगी थी. एक तरफ शेवंताबाई लोगों के खेतों पर काम करने के लिए जाने लगी तो दूसरी ओर अनुसूया लोगों की सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी.  लेकिन इतने भर से काम चलने वाला नहीं था. सिलाईकढ़ाई करने के लिए पूरा कोर्स करना जरूरी था. बच्चे जब थोड़े बड़े हो गए तो उस ने एक सरकारी संस्थान में टेलरिंग कोर्स में दाखिला ले लिया. कुछ ही महीने में वह सिलाईकढ़ाई में ट्रेंड हो गई. अब उस का कोर्स भी पूरा हो गया था. कोर्स पूरा होने के बाद वह गणपत की बंद पड़ी दुकान को बड़ी कुशलता से संभालने लगी.

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बच्चे बड़े हो गए थे. गणपत की मां शेवंताबाई जिम्मेदारियों का बोझा उठाउठा कर अब पूरी तरह थक चुकी थी. गणपत का बेटा आनंदा 24 साल का नौजवान हो चुका था. वह ग्रेजुएट हो कर नौकरी ढूंढ़ रहा था. रंजना ने बीएड कर लिया था.दोनों भाईबहन अब अपने पैरों पर खडे़ हो कर मां का किस तरह हाथ बटाएं, इसी चिंता में थे. लेकिन अनुसूया को तो बेटी की नौकरी से ज्यादा उस की शादी की चिंता सता रही थी. वह चाह रही थी कि सासूमां के जिंदा रहते कम से कम रंजना के हाथ पीले हो जाते तो अच्छा रहता. उस ने अपने रिश्तेदारों से कह भी रखा था कि कोई अच्छा लड़का हो तो बताना. बहुत खोजबीन के बाद आखिरकार दूर के रिश्ते के एक लड़के के साथ उस ने रंजना की शादी तय कर दी. लड़का टीचर  था. खातेपीते घर के लोग थे. खुद की खेतीबाड़ी थी, घर अपना था. और क्या चाहिए था.

लड़के वालों को शादी की जल्दी थी. उन लोगों ने कह दिया था कि शादी में देर नहीं होनी चाहिए. इसलिए शादी की तारीख भी जल्द ही पक्की हो गई.अनुसूया ने पहले से ही सोच रखा था इसलिए अपने सामर्थ्य के अनुरूप उस ने शादी की थोड़ीबहुत तैयारी भी कर रखी थी. जल्द ही वह समय भी आ गया. नातेरिश्तेदार घर में जुटने लगे. शादी को अब 4 दिन ही बचे थे. हलवाई वाले भी आ चुके थे. घर में चहलपहल शुरू हो चुकी थी. मिठाई बननी शुरू हो गई थी. शादी के दिन अनुसूया भी इधरउधर भाग कर थक चुकी थी, इसलिए थोड़ी देर के लिए वह अपने कमरे में लेटने के लिए चली गई.

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उस ने आंखें बंद ही की थीं कि उस की बेटी उस को उठाते हुए बोली, ‘‘मां, बाहर कोई साधुभेष में आया है. देख, अपने बाबा के बारे में पूछ रहा है,’’ रंजना अपने पिता गणपत को बाबा कह कर बुलाती थी. बहुत साल के बाद पति के बारे में पूछने वाला कोई आया था इसलिए अनुसूया भाग कर उन के पास गई और देखा कि कोई सचमुच एक अधेड़ साधु के भेष में खड़ा है. अनुसूया ने विनम्रता से उन से पूछा, ‘‘क्या चाहिए महाराज आप को?’’ वह कुछ न बोल कर सिर्फ उस के चेहरे को देखता रहा. अनुसूया ने उस से दोबारा पूछा, ‘‘क्या चाहिए आप को?’’ लेकिन उस ने कुछ भी जवाब नहीं दिया. अनुसूया को लगा शायद इन्हें खाना चाहिए, इसलिए वह बोली, ‘‘ठहरिए, मैं आप के लिए खाना ले कर आती हूं.’’

तभी वह अधेड़ बोला, ‘‘नहीं, खाना नहीं चाहिए.’’ और उस ने उस को पुकारा ‘‘अनुसूया.’’ यह सुनते ही अनुसूया का रोमरोम खड़ा हो गया. उस ने उन की ओर अपनी आंखें गड़ा दीं और कुछ देर तक देखती रही. यह आवाज तो गणपत की है. तभी उस का ध्यान उस के माथे पर गया. उस के माथे पर वही कैंची से लगा हुआ निशान था. उस ने उसे तुरंत पहचान लिया. अनुसूया को शांत देख वह फिर से बोला, ‘‘अब तक पहचाना नहीं, अनुसूया?’’

‘‘आप? इतने दिन तक कहां थे आप?’’ आगे वह कुछ बोल न सकी.

कुछ भी न बोलते हुए गणपत ने शौल के अंदर से अपने हाथ बाहर निकाले. उस की उंगलियां कटी हुई थीं. यह देख कर अनुसूया स्तब्ध रह गई. उस की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे. बड़ी मुश्किल से उस ने अपनेआप को संभाला और थोड़ी देर रुक कर पूछा, ‘‘तुम कहां चले गए थे? इतनी बड़ी घटना हो गई और तुम ने मुझे कुछ नहीं बताया. मुझे अकेला छोड़ खुद निकल गए,’’ यह कहतेकहते वह फूटफूट कर रोने लगी. पिछले 15 सालों से उसे सता रहा सवाल एक ही क्षण में खत्म हो गया था. क्याक्या नहीं सहा 15 सालों में. पति के जिंदा रहते हुए भी एक विधवा की जिंदगी जी रही थी वह. पिता हो कर भी बच्चे अनाथ की सी जिंदगी जी रहे थे.

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अभी दोनों के बीच की बात भी खत्म नहीं हुई थी कि रंजना ‘मांमां’ कहती हुई उस के सामने खड़ी हो गई. अनुसूया अजीब दुविधा में फंस गई थी. उसे एक तरफ गम था तो दूसरी तरफ खुशी भी. बरात आ चुकी थी. सभी रिश्तेदार अनुसूया को पूछ रहे थे. अनुसूया मां का फर्ज निभाने के लिए पति का साथ छोड़ बरात के स्वागत में लग गई. लेकिन मन में वह बारबार गणपत के हालात के बारे में सोच रही थी. धूमधाम से शादी संपन्न हुई और गणपत एक जगह खड़ा अकेला अपनी बेटी को विदा होते देखता रहा. गले लगा कर बेटी को विदा करने का एक पिता का सपना सपना ही रह गया.

अनुसूया ने इन कुछ ही घंटों में एक दृढ़ फैसला ले लिया था. बेटी के विदा होने के बाद अनुसूया रसोई में गई और वहां से 4 लड्डू उठा, थैली में डाल कर गणपत के सामने रख कर बोली, ‘‘लीजिए बाबा, बेटी की शादी के लड्डू हैं,’’ बोल कर दृढ़ता से वह उस की तरफ पीठ फिरा कर पीछे मुड़ कर न देखते हुए अंदर चली गई. अब न उस की आंखों में आंसू थे न मन में उमड़ता तूफान. गणपत टेलर तो 15 साल पहले ही मर गया था. उस का अब आना क्या माने रखता था. जीवन के वे 15 साल, जो उस ने अकेले, बेबसी, मुश्किलों के साथ काटे थे, जो सिर्फ उस ने भोगे थे, पति के साथ की जरूरत तो तब थी उसे, उस के बच्चों को. अब उस का आना…नहीं, अब तन्हा जिंदगी जी लेगी वह

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घर से अचानक गायब हुए गणपत टेलर के कपड़े 2-3 दिन के बाद गांव से 2 कोस की दूरी पर नदी के किनारे मिलने से जैसे गांव में हड़कंप मच गया. गणपत टेलर के घर में इस खबर के पहुंचते ही उस की बूढ़ी मां शेवंताबाई छाती पीटने लगी, तो बीवी अनुसूया अपने दोनों बच्चों को गले लगा कर रोने लगी. गणपत टेलर हंसमुख और नेक इंसान था. उस के बारे में उक्त खबर पूरे गांव में फैल गई. लोग अपनेअपने तर्क देने लगे. कोई कह रहा था कि गणपत नहाने के लिए उतरा होगा तभी पैर फिसलने से गिर गया होगा. तो कोई कह रहा था कि नहाने के लिए भला वह इतनी दूर क्यों जाएगा. उन्हीं में से एक ने कहा, गणपत तो अच्छा तैराक था. कई बार बाढ़ के पानी में भी उतर कर उस ने लोगों को बचाया था. इन तर्कों में कुछ भी तथ्य नहीं है, यह बात जल्द ही सब की समझ में आ गई.

घर में गणपत जैसा सुखी आदमी ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलने वाला था. बहू, बेटा और पोतेपोतियों से प्रेम करने वाली मां, अनुसूया जैसी सुंदर और मेहनती पत्नी, 2 सुंदर बच्चे और खापी कर आराम से जिंदगी जीने के लिए पैसा देने वाला टेलरिंग का कारोबार. ऐसा आदमी कैसे और क्यों अपनी जान देगा? जितने मुंह उतनी बातें.गांव के बड़ेबुजुर्गों ने थाने में गणपत के गायब होने की रपट लिखा दी. पुलिस वालों ने खोजबीन शुरू कर दी. तैराक बुला कर नदी में खोजा गया लेकिन कोई सुराग भी न मिला.10-15 दिन ऐसे ही बीत गए. गणपत को जमीन निगल गई या आकाश खा गया, किसी को कुछ पता नहीं. जाने वाला तो चला गया लेकिन अपने पीछे वाले लोगों के सिर पर जिम्मेदारी व चिंता का बोझ छोड़ गया.

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अनुसूया अकेली पड़ गई थी. वह दिनरात यह सोचती कि बच्चों का क्या होगा, गृहस्थी कैसे चलेगी वगैरह. अनुसूया को लगने लगा था कि बच्चों का भविष्य अब अंधकार में डूब गया है. रातरातभर उसे नींद नहीं आती थी. आधी रात को वह चारपाई से उठ कर बैठ जाती और रोने लगती. उसे देख उस की सास शेवंताबाई की भी आंखों से आंसू बह जाते लेकिन अपनी बहू को वह अकसर ढाढ़स बंधाती रहती. आज तक मांबेटी जैसी रहने वाली बहूसास ऊपर से शांत रहने का दिखावा कर अपना दुख छिपा रही थीं.

लेकिन कहते हैं न कि समय सबकुछ सिखा देता है. अब उन के दुख की तीव्रता कम होने लगी थी. एक तरफ शेवंताबाई लोगों के खेतों पर काम करने के लिए जाने लगी तो दूसरी ओर अनुसूया लोगों की सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी.  लेकिन इतने भर से काम चलने वाला नहीं था. सिलाईकढ़ाई करने के लिए पूरा कोर्स करना जरूरी था. बच्चे जब थोड़े बड़े हो गए तो उस ने एक सरकारी संस्थान में टेलरिंग कोर्स में दाखिला ले लिया. कुछ ही महीने में वह सिलाईकढ़ाई में ट्रेंड हो गई. अब उस का कोर्स भी पूरा हो गया था. कोर्स पूरा होने के बाद वह गणपत की बंद पड़ी दुकान को बड़ी कुशलता से संभालने लगी.

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बच्चे बड़े हो गए थे. गणपत की मां शेवंताबाई जिम्मेदारियों का बोझा उठाउठा कर अब पूरी तरह थक चुकी थी. गणपत का बेटा आनंदा 24 साल का नौजवान हो चुका था. वह ग्रेजुएट हो कर नौकरी ढूंढ़ रहा था. रंजना ने बीएड कर लिया था.दोनों भाईबहन अब अपने पैरों पर खडे़ हो कर मां का किस तरह हाथ बटाएं, इसी चिंता में थे. लेकिन अनुसूया को तो बेटी की नौकरी से ज्यादा उस की शादी की चिंता सता रही थी. वह चाह रही थी कि सासूमां के जिंदा रहते कम से कम रंजना के हाथ पीले हो जाते तो अच्छा रहता. उस ने अपने रिश्तेदारों से कह भी रखा था कि कोई अच्छा लड़का हो तो बताना. बहुत खोजबीन के बाद आखिरकार दूर के रिश्ते के एक लड़के के साथ उस ने रंजना की शादी तय कर दी. लड़का टीचर  था. खातेपीते घर के लोग थे. खुद की खेतीबाड़ी थी, घर अपना था. और क्या चाहिए था.

लड़के वालों को शादी की जल्दी थी. उन लोगों ने कह दिया था कि शादी में देर नहीं होनी चाहिए. इसलिए शादी की तारीख भी जल्द ही पक्की हो गई.अनुसूया ने पहले से ही सोच रखा था इसलिए अपने सामर्थ्य के अनुरूप उस ने शादी की थोड़ीबहुत तैयारी भी कर रखी थी. जल्द ही वह समय भी आ गया. नातेरिश्तेदार घर में जुटने लगे. शादी को अब 4 दिन ही बचे थे. हलवाई वाले भी आ चुके थे. घर में चहलपहल शुरू हो चुकी थी. मिठाई बननी शुरू हो गई थी. शादी के दिन अनुसूया भी इधरउधर भाग कर थक चुकी थी, इसलिए थोड़ी देर के लिए वह अपने कमरे में लेटने के लिए चली गई.

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उस ने आंखें बंद ही की थीं कि उस की बेटी उस को उठाते हुए बोली, ‘‘मां, बाहर कोई साधुभेष में आया है. देख, अपने बाबा के बारे में पूछ रहा है,’’ रंजना अपने पिता गणपत को बाबा कह कर बुलाती थी. बहुत साल के बाद पति के बारे में पूछने वाला कोई आया था इसलिए अनुसूया भाग कर उन के पास गई और देखा कि कोई सचमुच एक अधेड़ साधु के भेष में खड़ा है. अनुसूया ने विनम्रता से उन से पूछा, ‘‘क्या चाहिए महाराज आप को?’’ वह कुछ न बोल कर सिर्फ उस के चेहरे को देखता रहा. अनुसूया ने उस से दोबारा पूछा, ‘‘क्या चाहिए आप को?’’ लेकिन उस ने कुछ भी जवाब नहीं दिया. अनुसूया को लगा शायद इन्हें खाना चाहिए, इसलिए वह बोली, ‘‘ठहरिए, मैं आप के लिए खाना ले कर आती हूं.’’

तभी वह अधेड़ बोला, ‘‘नहीं, खाना नहीं चाहिए.’’ और उस ने उस को पुकारा ‘‘अनुसूया.’’ यह सुनते ही अनुसूया का रोमरोम खड़ा हो गया. उस ने उन की ओर अपनी आंखें गड़ा दीं और कुछ देर तक देखती रही. यह आवाज तो गणपत की है. तभी उस का ध्यान उस के माथे पर गया. उस के माथे पर वही कैंची से लगा हुआ निशान था. उस ने उसे तुरंत पहचान लिया. अनुसूया को शांत देख वह फिर से बोला, ‘‘अब तक पहचाना नहीं, अनुसूया?’’

‘‘आप? इतने दिन तक कहां थे आप?’’ आगे वह कुछ बोल न सकी.

कुछ भी न बोलते हुए गणपत ने शौल के अंदर से अपने हाथ बाहर निकाले. उस की उंगलियां कटी हुई थीं. यह देख कर अनुसूया स्तब्ध रह गई. उस की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे. बड़ी मुश्किल से उस ने अपनेआप को संभाला और थोड़ी देर रुक कर पूछा, ‘‘तुम कहां चले गए थे? इतनी बड़ी घटना हो गई और तुम ने मुझे कुछ नहीं बताया. मुझे अकेला छोड़ खुद निकल गए,’’ यह कहतेकहते वह फूटफूट कर रोने लगी. पिछले 15 सालों से उसे सता रहा सवाल एक ही क्षण में खत्म हो गया था. क्याक्या नहीं सहा 15 सालों में. पति के जिंदा रहते हुए भी एक विधवा की जिंदगी जी रही थी वह. पिता हो कर भी बच्चे अनाथ की सी जिंदगी जी रहे थे.

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अभी दोनों के बीच की बात भी खत्म नहीं हुई थी कि रंजना ‘मांमां’ कहती हुई उस के सामने खड़ी हो गई. अनुसूया अजीब दुविधा में फंस गई थी. उसे एक तरफ गम था तो दूसरी तरफ खुशी भी. बरात आ चुकी थी. सभी रिश्तेदार अनुसूया को पूछ रहे थे. अनुसूया मां का फर्ज निभाने के लिए पति का साथ छोड़ बरात के स्वागत में लग गई. लेकिन मन में वह बारबार गणपत के हालात के बारे में सोच रही थी. धूमधाम से शादी संपन्न हुई और गणपत एक जगह खड़ा अकेला अपनी बेटी को विदा होते देखता रहा. गले लगा कर बेटी को विदा करने का एक पिता का सपना सपना ही रह गया.

अनुसूया ने इन कुछ ही घंटों में एक दृढ़ फैसला ले लिया था. बेटी के विदा होने के बाद अनुसूया रसोई में गई और वहां से 4 लड्डू उठा, थैली में डाल कर गणपत के सामने रख कर बोली, ‘‘लीजिए बाबा, बेटी की शादी के लड्डू हैं,’’ बोल कर दृढ़ता से वह उस की तरफ पीठ फिरा कर पीछे मुड़ कर न देखते हुए अंदर चली गई. अब न उस की आंखों में आंसू थे न मन में उमड़ता तूफान. गणपत टेलर तो 15 साल पहले ही मर गया था. उस का अब आना क्या माने रखता था. जीवन के वे 15 साल, जो उस ने अकेले, बेबसी, मुश्किलों के साथ काटे थे, जो सिर्फ उस ने भोगे थे, पति के साथ की जरूरत तो तब थी उसे, उस के बच्चों को. अब उस का आना…नहीं, अब तन्हा जिंदगी जी लेगी वह

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March 01, 2021 at 10:00AM

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