Monday 24 February 2020

आलिया

रहमान का नाम पूरे रैनावारी इलाके में मशहूर था. पीढ़ी दर पीढ़ी उस का दूध बेचने का काम था. उस के पिता व दादा की लोग आज भी मिसाल देते हैं. दूध में पानी मिलाना वे ठीक नहीं समझते थे. उस की दुकान का दही मानो मलाईयुक्त मक्खन हो. रहमान नमाजी था, पांचों वक्त की नमाज पढ़ता. सब से दुआसलाम करता था.

रहमान की आमदनी ज्यादा न थी. बस, रोजीरोटी ठीकठाक चल रही थी. उस के 2 बेटे, 3 बेटियां थीं. वह सभी को पढ़ाना चाहता था. रहमान को एहसास हो गया था कि आज के जमाने में दोनों बेटों में से कोई भी उस का हाथ नहीं थामेगा, उस का कारोबार उसी के साथ खत्म हो जाएगा. बड़ा बेटा परवेज यों तो पढ़नेलिखने में तेज दिमाग था लेकिन अमीर लड़कों की सोहबत के कारण बिगड़ने लगा था. कभीकभार जब भी दुकान पर आता, मौका मिलते ही गल्ले से पैसे साफ कर देता.

पहले रहमान ने सोचा कि परवेज ऐसा नहीं कर सकता. फिर एक दिन परीक्षा लेने के लिए उस ने कालेज से आते वक्त परवेज को बुलाया और कहा, ‘‘बेटे, जरा दुकान देखना, मैं सामने शाहमीरी के यहां से हिसाब कर के आता हूं.’’

पहले तो परवेज हैरान हुआ कि आज अचानक अब्बू दुकान पर उसे बैठा कर क्यों जा रहे हैं. लेकिन फिर उस ने इस खयाल को हवा में उड़ा दिया और फटाफट गल्ले से हजार रुपए निकाल लिए और दुकान के बाहर कुरसी पर बैठ गया.

अब्बू को आता देख कर फटाफट जाने के लिए उठ खड़ा हुआ और फिर चला गया.

रहमान भी जल्दी से देखने के लिए गल्ला खोल कर पैसे गिनने लगा, हजार रुपए कम देख कर उस को ठेस लगी कि उस का बेटा चोरी करने लगा है.

रहमान बुझे कदमों से रात को जब घर में घुसा, उस का चेहरा देखते ही पत्नी सलमा बोली, ‘‘क्या बात है, चेहरा क्यों उदास है?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘अरे, कुछ तो है. बताओ न, क्या बात है?’’

रहमान खामोश ही रहा. वह अंदर ही अंदर सोचता रहा कि कैसे परवेज को ठीक करे.

समय बीतता गया और परवेज का दुकान में आनाजाना जारी रहा. लेकिन अब रहमान ने गल्ले में ताला लगा दिया था. ताला देख कर परवेज चिढ़ जाता.

तभी एक दिन जमाते इसलामी वाले आए और एक बेटे को मांगने लगे. रहमान उन की मांग को सुन कर हैरान हो गया. वह फैसला ही नहीं कर पा रहा था कि अपने बेटे को धर्म के इन ठेकेदारों के हवाले करे कि नहीं.

पिछले कई महीनों से घाटी में कुछ हरकतें हो रही थीं. जिहाद के नाम पर जुलूस, नारेबाजी रोज की बातें हो गई थीं. कई जवान लड़के घाटी से कई महीनों के लिए गायब हो जाते, मांबाप उन्हें मुजाहिद का नाम दे देते और यही कहते कि उन्होंने अपना पुत्र जिहाद के लिए दे दिया. कई लड़के पाकिस्तानी इलाकों में ट्रेनिंग ले कर वापस आते, पैसों की चमक देख कर वे कुछ भी करने को तैयार रहते.

रहमान रोज रात में सब बच्चों को देख कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता, हमेशा दिल में खटका रहता कि कहीं उस के द्वार पर फिर कोई उस का बेटा मांगने न आ जाए.

आखिर कब तक रहमान बचा रहता, आज अचानक दुकान पर जब मुजाहिरों को आते देखा तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. दबी जबान में रहमान ने अनुरोध किया, ‘‘यहीं का कोई काम दे दो, बच्चे की पढ़ाई खराब हो जाएगी.’’

यूसुफ मौलवी ने कहा, ‘‘आखिर पढ़ कर पैसे ही कमाना है. हम भी इसे टे्रनिंग देंगे. रहा पैसों का सवाल, वे तो घर में इतने आएंगे कि तुम यह दुकान बदल कर  डेरी खोल लेना.’’

रहमान ने बुझे मन से हामी भर ली. अगले माह परवेज का निकाह हो जाने के बाद उस ने उसे ले जाने की बात कही.

अगले माह परवेज का निकाह हो गया.

शमीम दुलहन बन कर घर आ गई. शमीम चांद का टुकड़ा थी, उस का व्यवहार काफी मिलनसार था. कुछ ही दिनों में वह सब की आंखों का तारा बन गई. परवेज तो नजर बचाते ही कमरे में भाग जाता, रहमान देखदेख कर खुश होता लेकिन यूसुफ मौलवी की दी तारीख याद कर दुखी भी होता.

आखिरकार, वह दिन भी आ गया और परवेज को मुजाहिर बाजेगाजे के साथ ले गए.

कई दिनों तक घर में उदासी छाई रही. शमीम घर का सारा काम करती, सब की खिदमत करती. कभीकभार परवेज का फोन आता, सब के दिल को थोड़ी तसल्ली होती. एक दिन यूसुफ मौलवी ने एक व्यक्ति के जरिए कुछ पैसे घर भिजवाए. जाने क्यों रहमान को पैसे पा कर भी सुकून नहीं मिल रहा था, उसे लग रहा था कि जैसे हाथ पर पैसे नहीं अंगार रखे हों.

रहमान ने सलामदुआ कर मौलवी यूसुफ के व्यक्ति को विदा किया. देखतेदेखते 6 महीने बीत गए. एक रात परवेज वापस आया. उस का व्यक्तित्व पूरी तरह बदल चुका था. एके 47 उस के पास थी और बैग में नोटों की गड्डी.

रहमान ने किसी चीज की ओर ध्यान न दिया. वह सिर्फ अपने बेटे को सलामत देख कर खुश हो रहा था. उस की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उस ने सुना कि वह दादा बनने वाला है. वक्तबेवक्त परवेज कहीं जाता और कभी मीटिंग तो कभी ‘उन के’ द्वारा निर्देशित काम को अंजाम दे कर लौटता.

वक्त के साथसाथ घर की आर्थिक स्थिति भी बदलने लगी. परवेज का कमरा आधुनिक आरामदायक चीजों से सज गया. रहमान अपनी वही दूध की दुकान चला रहा था. कई बार परवेज ने उस दुकान को डेरी बनाने के लिए कहा लेकिन रहमान हमेशा टाल जाता. जाने क्यों जितना वह पहले चैन और सुकून से रहता था उतना ही अब वह हमेशा अशांत रहता. उसे लगता पता नहीं कब, क्या होगा. उसे अपनी 3 बेटियों की भी चिंता लगी रहती.

कुछ समय और बीता. शमीम ने बेटे को जन्म दिया. घर में खुशियां छा गईं. सलमा ने खूब मिठाइयां बांटीं. परवेज ने बहनों को सोने के टौप्स तोहफे में दिए. मां को सोने की चेन दी. अब्बू को भी तोहफा देना चाहता था पर रहमान टाल गया.

परवेज का बेटा आरिफ गोलमटोल, बड़ा ही सुंदर बच्चा था. आरिफ का पहला जन्मदिन परवेज ने बड़ी

धूमधाम से मनाया. कई दिनों तक दावतें चलती रहीं.

समय अपनी गति से चलता रहा. आरिफ अब खूब धमाचौकड़ी मचाता, खेलता. सलमा और शमीम देखदेख कर खुश होतीं.

परवेज आज अपने बच्चे का तीसरा जन्मदिन बड़े जोरशोर से मना रहा था. उस ने बहुत सारे दोस्तों को बुलाया था. सब के लिए तोहफे भी खरीदे थे. सभी मेहमान खापी कर अपने घर चले गए. आरिफ परवेज से नाराज था कि तोहफे में उस के लिए बड़ी सी बंदूक क्यों नहीं लाई गई. कई दिनों से वह बड़ी बंदूक की फरमाइश कर रहा था. लेकिन परवेज उसे टालता जा रहा था.

नाराज हो कर आरिफ कमरे में चला गया. बाकी लोग भी सामान उठानेरखने में व्यस्त हो गए. सुबह से सभी काम में लगे थे इसलिए सभी थक गए थे. तभी आरिफ हाथ में परवेज की एके 47 ले कर दौड़ता हुआ आया, ‘‘मुझे गन मिल गई.’’

परवेज और घर के अन्य लोगों ने ज्यों ही देखा, सब सकते में आ गए. हर कोई उस की तरफ बढ़ने लगा, परवेज भी बढ़ा, ‘‘आरिफ, मुझे गन दे दो. वह भरी हुई है. इसे हाथ मत लगाओ.’’

आरिफ भला कब किस की सुनने वाला था. वह बंदूक ताने हुए टेबल पर खड़ा हो गया. परवेज चिल्लाता रहा, ‘‘बेटे, यह असली बंदूक है, नकली नहीं.’’

आरिफ की उंगलियां ट्रिगर पर थीं. पास आते अपने पापा को देख कर उस ने ट्रिगर दबा दिया.

धांयधांय 2 गोलियां परवेज के सिर में घुस गईं. आरिफ खुद घबरा गया और रोने लगा. परवेज खून से लथपथ हो रहा था. रहमान दौड़ कर टैक्सी लाया और उसे अस्पताल पहुंचाया.

रातभर जिंदगी और मौत के बीच जद्दोजहद चलती रही. सुबह होने को थी कि परवेज हमेशा के लिए सो गया. घर में कोहराम मच गया. सलमा छाती पीटपीट कर रो रही थी. शमीम तो मानो बुत बन गई, सब ने उसे रुलाने की कोशिश की पर वह बुत सी बनी रही.

जमाते इसलामी वाले लोग आए और परवेज को ऐसे ले गए मानो देश का कोई बहुत बड़ा नेता हो, फूलों की बौछार के बीच लोगों का हुजूम कब्रिस्तान तक गया. सब ने उस पर मिट्टी डाली.

शमीम कई दिनों तक सदमे से बाहर न आ सकी. रहमान का किसी काम में दिल न लगता. सलमा बेटे के गम को अंदर ही अंदर सह रही थी. वह शमीम को हर तरह से सदमे से बाहर निकालने की कोशिश करती. तकरीबन 6 महीने के बाद सलमा अपनी बहू शमीम को रुलाने में कामयाब हुई. डाक्टरों ने कह दिया था कि शमीम का रोना बहुत जरूरी है.

घाटी में दिनोंदिन हालात खराब होते जा रहे थे. रहमान ने बहुत जल्द अपनी 2 बेटियों का निकाह खालाजाद भाइयों के साथ कर दिया. हालांकि वह लड़कियों को अभी और पढ़ाना चाहता था लेकिन शहर की हालत देख कर वह घबरा गया था. अब तीसरी बेटी की शादी के बारे में भी सोच रहा था, हालांकि वह अभी बहुत छोटी थी.

तमाम कश्मीरी जम्मू की ओर पलायन कर रहे थे. कई अमीर मुसलिम परिवारों ने अपनी बीवीबच्चों को दुबई, बेंगलुरु, दिल्ली रवाना कर दिया था. हिंदू कश्मीरी तो लगभग रोज ही निकल रहे थे.

रहमान सोचता रहता कि वह भी बीवीबच्चों को ले कर चला जाए पर न तो उस के पास पैसा था न कोई रिश्तेदार या जानने वाला, फिर उसे कश्मीरी भाषा के सिवा हिंदी बोलनी भी नहीं आती, तो जाए कहां.

वह अपनेआप से बड़बड़ाता, ‘अमीर तो कहीं भी जा सकते हैं पर गरीब कहां जाएगा, उसे तो यहीं मरना है.’

कश्मीर की हालत यह हो गई थी कि रातबेरात कोई भी मुजाहिद आ जाता. उस का खानापीना करना पड़ता. इस खातिरदारी से रहमान बेहद परेशान था. खानेपीने तक तो ठीक, पर वह मुजाहिद कब क्या कर बैठे, यह सोच कर रहमान परेशान रहता. जब भी घर में कोई मुजाहिद आता, सलमा ही खाना बनाती और परोसती. बहू शमीम और बेटी आलिया कमरे में ही रहतीं, उन्हें सख्ती से रहमान ने मना किया था कि बाहर न आएं.

लगभग सालभर के बाद रहमान ने चाहा कि उस का छोटा बेटा शब्बीर शमीम से निकाह कर ले ताकि शमीम का जीवन खराब न हो और आरिफ को बाप मिल जाए. पर शब्बीर इस रिश्ते के लिए तैयार न हुआ. सलमा और रहमान दोनों ने उसे बहुत समझाया पर वह टस से मस न हुआ और कुछ दिनों के बाद अपने दोस्तों के साथ जाने कहां गायब हो गया.

रहमान ने उसे ढूंढ़ने में कोई कसर न छोड़ी. जब उसे पता चला कि शब्बीर भी मुजाहिद बन गया है तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. सलमा रातदिन शब्बीर के वापस आने के लिए दुआएं मांगती. रहमान हर तरह से उसे वापस लाने की कोशिश करता. किसी के जरिए शब्बीर के पास संदेश भेजा कि जहां वह चाहेगा, वहीं उस का निकाह होगा. बस, वह वापस आ जाए.

शब्बीर अपने मरहूम भाई, परवेज की तरह रहना चाहता था. नेता की भांति सारे ऐशोआराम का लुत्फ उठाना चाहता था. रहमान की सारी कोशिशें बेकार गईं.

वक्त गुजरता गया. लोगों से कभी भरी रहने वाली कश्मीर घाटी लगभग अब सूनी सी हो गई थी. कोई कभीकभार ही जम्मू से ट्रक ले कर अपना सामान लेने आता था. अमीर मुसलिम घरानों ने भी अपनी बहूबेटियां महफूज जगहों पर भेज दी थीं. सिर्फ गरीब और मध्यवर्गीय परिवार ही इस आतंकवाद की आग को झेल रहे थे.

एक रात कई मुजाहिद रहमान के घर में ठहरे थे. सलमा ने खाना परोसा. उन में से एक को तन की भूख सताने लगी. उसे मालूम था कि परवेज की बेवा यहीं रहती है. बंदूक की नोक पर उस ने शमीम को हासिल कर लिया. सब के सामने उस ने शमीम के तन को तारतार कर दिया. रहमान कुछ न कर सका. सलमा छाती पीटपीट कर रोती रही. लेकिन वह मुजाहिद टस से मस न हुआ, तन की भूख मिटा कर ही उठा. शमीम अधमरी कितनी ही देर तक यों ही पड़ी रही.

रहमान खुदकुशी करना चाहता था पर बेटी आलिया का सहमा, डरा चेहरा देख कर रुक गया. शमीम की बिखरी हालत देख कर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कई दिनों तक वह दुकान भी न जा सका. सब पूछते तो वह क्या कहता कि मेरी आंखों के आगे बहू की अस्मत को एक मुजाहिद ने तारतार कर दिया और मैं कुछ न कर सका. लेकिन गरीब कितने दिन दुकान बंद रखता, मजबूर हो कर उसे दुकान पर जाना ही पड़ा. उसे अब अपनी जिंदगी जिंदा लाश सी लगती. हर वक्त उसे घर की फिक्र रहती.

रहमान कई बार सोचता कि वह भी परिवार को ले कर घाटी से निकल जाए लेकिन गरीबी उस के आड़े आ जाती. फिर उस ने कश्मीर में बस के सिवा कुछ न देखा था. रेलगाड़ी पर जाना तो उस के लिए अजूबा था. कभी सोचता कि सब को जहर दे दे और खुद भी खा ले पर हिम्मत न पड़ती.

अब उसे आलिया की फिक्र रहती. रातदिन उसे उस के रिश्ते की फिक्र रहती. उस की बहन एक दिन आलिया का हाथ मांगने आ गई. रहमान को मुंहमांगी मुराद मिल गई. उस ने फौरन हां कर दी,

और बहुत जल्द उस के निकाह का दिन निकाला.

घर में तैयारियां होने लगीं. शमीम पूरी तरह से शादी की तैयारियों में जुट गई. बुझीबुझी मरियल सी शमीम एक लाश बन कर सिर्फ आरिफ के लिए जी रही थी. उस भयानक हादसे के बाद सलमा और रहमान कई दिनों तक उस से आंखें न मिला सके. लेकिन शमीम ने एक दिन सब को बिठा कर कहा, ‘‘आप सब क्यों नजरें चुरा रहे हैं. यों भी मेरा जीवन अब बेकार है. मैं सिर्फ आरिफ के लिए जी रही हूं. ये तो अच्छा हुआ कि उस ने सिर्फ मुझे दागदार बनाया. मैं तो खुद बाहर आई थी क्योंकि आलिया मेरे साथ ही सो रही थी. मैं नहीं चाहती थी दरिंदे की नजर इस पर पड़े. इसलिए आप अपने को दोषी न मानें, मैं खुद बाहर आई थी.’’

रहमान और सलमा यह सुन कर हैरान रह गए. उस के बाद शमीम से उन का आमनासामना होता. उन की नजरों में वह आज भी पाकसाफ थी. हर तरह से वे कोशिश करते कि शमीम का दुख बांट सकें. शहर में रोज ही बम धमाके होते, रौकेट लौंचर चलते. कभी पुलिस गोलियां चलाती तो कभी मुजाहिद. कभीकभी शहर में मुजाहिदों के जुलूस भी निकलते जिन में बहुत लोग होते, हालांकि उतनी तो अब आबादी न बची थी पर पड़ोसी इलाकों से लोग आते और दहशतगर्दी कर के वापस चले जाते.

इधर, हफ्तेभर से शमीम को तेज बुखार था. रहमान ने कई डाक्टरों को दिखाया पर अभी तक खास आराम नहीं आ रहा था. सिरदर्द के मारे उस का बुरा हाल था. तभी पड़ोस की शाहिदा बानो ने कहा कि पंचरत्न तेल से मालिश कर दो. आलिया ने जैसे ही सुना, वह दौड़ कर दवा वाले की दुकान भागी. तेल ले कर वह आ ही रही थी कि उस के पास एक जीप रुकी और कुछ मुजाहिदों ने उसे जबरदस्ती उठा कर जीप में ठूंस दिया. वह रोतीचिल्लाती रही पर जीप दौड़ती रही. कुछ पल के बाद रुकी और आलिया को जिहादी घसीटते हुए एक मकान के अंदर ले गए और चिल्ला कर खुशी से बोले, ‘‘शाह साहब, देखिए, आप के लिए क्या गदराया मासूम माल लाया हूं. खुशियां मनाओ, मौज करो. शाह साहब, तेल इस के हाथ में है, काम आएगा.’’

वे ठहाके मार कर हंसने लगे और ‘हम भी कुछ ले आते हैं’ कह कर बाहर चले गए.

आलिया की नजर ज्यों ही सामने शाह साहब पर पड़ी, वह भौचक्की रह गई.

सामने अपने भाई शब्बीर को देख कर वह बिफर पड़ी, ‘‘आओ, ऐश करो, गौर से देखो, मैं तुम्हारी अपनी बहन हूं. इज्जत लूटना चाहते हो, आओ, मैं खुद कपड़े उतारती हूं.’’

शब्बीर ने हाथ पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ मारा, ‘‘आलिया, पीछे के दरवाजे से भाग जाओ.’’

‘‘क्यों, मुझे देख कर खून क्यों ठंडा पड़ गया? किसी न किसी को तो भोगोगे ही, तुम्हीं ने अपने इन लोगों को भेजा था.’’

‘‘आलिया, खुदा के लिए खामोश हो जाओ. मैं ने तुम को लाने के लिए नहीं कहा था. आलिया, तुम्हें अम्मीअब्बू का वास्ता, भाग जाओ.’’

उसी पल आलिया को शमीम की तबीयत की याद आ गई, वह पागलों की तरह बेतहाशा घर की ओर भागने लगी. रास्ते उसे ठीक से याद न थे. उन सुनसान सड़कों पर गहरा अंधेरा छाया था. पागलों की तरह वह दौड़ रही थी तभी उसे पीछे से किसी गाड़ी की रोशनी दिखाई दी. वह वहीं रुक गई और हाथ दे कर रोकने लगी.

गाड़ी रुकी, उस में शब्बीर था. उस ने आलिया को गाड़ी में बिठाया और उसे घर पहुंचाया. घर के बाहर रहमान और सलमा परेशान खड़े थे. गाड़ी से उतरती आलिया और शब्बीर को देख कर रहमान ठिठका. उस के कुछ कहने से पहले ही शब्बीर ने अब्बू से कहा, ‘‘रात में इसे अकेले कहां भेजा था. निकाह तक इसे बाहर मत आने देना.’’

रहमान सुन कर हैरान था, ‘‘क्या तुम्हें मालूम है कि इस का निकाह होने वाला है?’’

‘‘हां, मौलवी साहब ने खबर भेजी थी. इसलिए मैं आज यहां आया हूं.’’

आलिया को मां के हवाले कर शब्बीर जाने लगा, जातेजाते बहन को गले लगा कर कान में फुसफुसाने लगा, ‘मुझे माफ करना.’

शब्बीर जीप में बैठ कर चला गया. रहमान ने भी उसे रुकने को न कहा.

सभी घर वालों ने आलिया से पूछा, ‘‘आखिर कहां चली गई थी, शब्बीर कहां मिल गया?’’

आलिया 2 मिनट रुक कर बोली, ‘‘अब्बू, दवाई वाले की दुकान से निकल कर मैं आ ही रही थी कि भाईजान उस गली पर मिल गए. आप सब का हाल पूछ रहे थे, इसीलिए देर हो गई.’’

दरअसल, आलिया हकीकत बयान कर घर वालों को नया सदमा नहीं देना चाहती थी.

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रहमान का नाम पूरे रैनावारी इलाके में मशहूर था. पीढ़ी दर पीढ़ी उस का दूध बेचने का काम था. उस के पिता व दादा की लोग आज भी मिसाल देते हैं. दूध में पानी मिलाना वे ठीक नहीं समझते थे. उस की दुकान का दही मानो मलाईयुक्त मक्खन हो. रहमान नमाजी था, पांचों वक्त की नमाज पढ़ता. सब से दुआसलाम करता था.

रहमान की आमदनी ज्यादा न थी. बस, रोजीरोटी ठीकठाक चल रही थी. उस के 2 बेटे, 3 बेटियां थीं. वह सभी को पढ़ाना चाहता था. रहमान को एहसास हो गया था कि आज के जमाने में दोनों बेटों में से कोई भी उस का हाथ नहीं थामेगा, उस का कारोबार उसी के साथ खत्म हो जाएगा. बड़ा बेटा परवेज यों तो पढ़नेलिखने में तेज दिमाग था लेकिन अमीर लड़कों की सोहबत के कारण बिगड़ने लगा था. कभीकभार जब भी दुकान पर आता, मौका मिलते ही गल्ले से पैसे साफ कर देता.

पहले रहमान ने सोचा कि परवेज ऐसा नहीं कर सकता. फिर एक दिन परीक्षा लेने के लिए उस ने कालेज से आते वक्त परवेज को बुलाया और कहा, ‘‘बेटे, जरा दुकान देखना, मैं सामने शाहमीरी के यहां से हिसाब कर के आता हूं.’’

पहले तो परवेज हैरान हुआ कि आज अचानक अब्बू दुकान पर उसे बैठा कर क्यों जा रहे हैं. लेकिन फिर उस ने इस खयाल को हवा में उड़ा दिया और फटाफट गल्ले से हजार रुपए निकाल लिए और दुकान के बाहर कुरसी पर बैठ गया.

अब्बू को आता देख कर फटाफट जाने के लिए उठ खड़ा हुआ और फिर चला गया.

रहमान भी जल्दी से देखने के लिए गल्ला खोल कर पैसे गिनने लगा, हजार रुपए कम देख कर उस को ठेस लगी कि उस का बेटा चोरी करने लगा है.

रहमान बुझे कदमों से रात को जब घर में घुसा, उस का चेहरा देखते ही पत्नी सलमा बोली, ‘‘क्या बात है, चेहरा क्यों उदास है?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘अरे, कुछ तो है. बताओ न, क्या बात है?’’

रहमान खामोश ही रहा. वह अंदर ही अंदर सोचता रहा कि कैसे परवेज को ठीक करे.

समय बीतता गया और परवेज का दुकान में आनाजाना जारी रहा. लेकिन अब रहमान ने गल्ले में ताला लगा दिया था. ताला देख कर परवेज चिढ़ जाता.

तभी एक दिन जमाते इसलामी वाले आए और एक बेटे को मांगने लगे. रहमान उन की मांग को सुन कर हैरान हो गया. वह फैसला ही नहीं कर पा रहा था कि अपने बेटे को धर्म के इन ठेकेदारों के हवाले करे कि नहीं.

पिछले कई महीनों से घाटी में कुछ हरकतें हो रही थीं. जिहाद के नाम पर जुलूस, नारेबाजी रोज की बातें हो गई थीं. कई जवान लड़के घाटी से कई महीनों के लिए गायब हो जाते, मांबाप उन्हें मुजाहिद का नाम दे देते और यही कहते कि उन्होंने अपना पुत्र जिहाद के लिए दे दिया. कई लड़के पाकिस्तानी इलाकों में ट्रेनिंग ले कर वापस आते, पैसों की चमक देख कर वे कुछ भी करने को तैयार रहते.

रहमान रोज रात में सब बच्चों को देख कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता, हमेशा दिल में खटका रहता कि कहीं उस के द्वार पर फिर कोई उस का बेटा मांगने न आ जाए.

आखिर कब तक रहमान बचा रहता, आज अचानक दुकान पर जब मुजाहिरों को आते देखा तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. दबी जबान में रहमान ने अनुरोध किया, ‘‘यहीं का कोई काम दे दो, बच्चे की पढ़ाई खराब हो जाएगी.’’

यूसुफ मौलवी ने कहा, ‘‘आखिर पढ़ कर पैसे ही कमाना है. हम भी इसे टे्रनिंग देंगे. रहा पैसों का सवाल, वे तो घर में इतने आएंगे कि तुम यह दुकान बदल कर  डेरी खोल लेना.’’

रहमान ने बुझे मन से हामी भर ली. अगले माह परवेज का निकाह हो जाने के बाद उस ने उसे ले जाने की बात कही.

अगले माह परवेज का निकाह हो गया.

शमीम दुलहन बन कर घर आ गई. शमीम चांद का टुकड़ा थी, उस का व्यवहार काफी मिलनसार था. कुछ ही दिनों में वह सब की आंखों का तारा बन गई. परवेज तो नजर बचाते ही कमरे में भाग जाता, रहमान देखदेख कर खुश होता लेकिन यूसुफ मौलवी की दी तारीख याद कर दुखी भी होता.

आखिरकार, वह दिन भी आ गया और परवेज को मुजाहिर बाजेगाजे के साथ ले गए.

कई दिनों तक घर में उदासी छाई रही. शमीम घर का सारा काम करती, सब की खिदमत करती. कभीकभार परवेज का फोन आता, सब के दिल को थोड़ी तसल्ली होती. एक दिन यूसुफ मौलवी ने एक व्यक्ति के जरिए कुछ पैसे घर भिजवाए. जाने क्यों रहमान को पैसे पा कर भी सुकून नहीं मिल रहा था, उसे लग रहा था कि जैसे हाथ पर पैसे नहीं अंगार रखे हों.

रहमान ने सलामदुआ कर मौलवी यूसुफ के व्यक्ति को विदा किया. देखतेदेखते 6 महीने बीत गए. एक रात परवेज वापस आया. उस का व्यक्तित्व पूरी तरह बदल चुका था. एके 47 उस के पास थी और बैग में नोटों की गड्डी.

रहमान ने किसी चीज की ओर ध्यान न दिया. वह सिर्फ अपने बेटे को सलामत देख कर खुश हो रहा था. उस की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उस ने सुना कि वह दादा बनने वाला है. वक्तबेवक्त परवेज कहीं जाता और कभी मीटिंग तो कभी ‘उन के’ द्वारा निर्देशित काम को अंजाम दे कर लौटता.

वक्त के साथसाथ घर की आर्थिक स्थिति भी बदलने लगी. परवेज का कमरा आधुनिक आरामदायक चीजों से सज गया. रहमान अपनी वही दूध की दुकान चला रहा था. कई बार परवेज ने उस दुकान को डेरी बनाने के लिए कहा लेकिन रहमान हमेशा टाल जाता. जाने क्यों जितना वह पहले चैन और सुकून से रहता था उतना ही अब वह हमेशा अशांत रहता. उसे लगता पता नहीं कब, क्या होगा. उसे अपनी 3 बेटियों की भी चिंता लगी रहती.

कुछ समय और बीता. शमीम ने बेटे को जन्म दिया. घर में खुशियां छा गईं. सलमा ने खूब मिठाइयां बांटीं. परवेज ने बहनों को सोने के टौप्स तोहफे में दिए. मां को सोने की चेन दी. अब्बू को भी तोहफा देना चाहता था पर रहमान टाल गया.

परवेज का बेटा आरिफ गोलमटोल, बड़ा ही सुंदर बच्चा था. आरिफ का पहला जन्मदिन परवेज ने बड़ी

धूमधाम से मनाया. कई दिनों तक दावतें चलती रहीं.

समय अपनी गति से चलता रहा. आरिफ अब खूब धमाचौकड़ी मचाता, खेलता. सलमा और शमीम देखदेख कर खुश होतीं.

परवेज आज अपने बच्चे का तीसरा जन्मदिन बड़े जोरशोर से मना रहा था. उस ने बहुत सारे दोस्तों को बुलाया था. सब के लिए तोहफे भी खरीदे थे. सभी मेहमान खापी कर अपने घर चले गए. आरिफ परवेज से नाराज था कि तोहफे में उस के लिए बड़ी सी बंदूक क्यों नहीं लाई गई. कई दिनों से वह बड़ी बंदूक की फरमाइश कर रहा था. लेकिन परवेज उसे टालता जा रहा था.

नाराज हो कर आरिफ कमरे में चला गया. बाकी लोग भी सामान उठानेरखने में व्यस्त हो गए. सुबह से सभी काम में लगे थे इसलिए सभी थक गए थे. तभी आरिफ हाथ में परवेज की एके 47 ले कर दौड़ता हुआ आया, ‘‘मुझे गन मिल गई.’’

परवेज और घर के अन्य लोगों ने ज्यों ही देखा, सब सकते में आ गए. हर कोई उस की तरफ बढ़ने लगा, परवेज भी बढ़ा, ‘‘आरिफ, मुझे गन दे दो. वह भरी हुई है. इसे हाथ मत लगाओ.’’

आरिफ भला कब किस की सुनने वाला था. वह बंदूक ताने हुए टेबल पर खड़ा हो गया. परवेज चिल्लाता रहा, ‘‘बेटे, यह असली बंदूक है, नकली नहीं.’’

आरिफ की उंगलियां ट्रिगर पर थीं. पास आते अपने पापा को देख कर उस ने ट्रिगर दबा दिया.

धांयधांय 2 गोलियां परवेज के सिर में घुस गईं. आरिफ खुद घबरा गया और रोने लगा. परवेज खून से लथपथ हो रहा था. रहमान दौड़ कर टैक्सी लाया और उसे अस्पताल पहुंचाया.

रातभर जिंदगी और मौत के बीच जद्दोजहद चलती रही. सुबह होने को थी कि परवेज हमेशा के लिए सो गया. घर में कोहराम मच गया. सलमा छाती पीटपीट कर रो रही थी. शमीम तो मानो बुत बन गई, सब ने उसे रुलाने की कोशिश की पर वह बुत सी बनी रही.

जमाते इसलामी वाले लोग आए और परवेज को ऐसे ले गए मानो देश का कोई बहुत बड़ा नेता हो, फूलों की बौछार के बीच लोगों का हुजूम कब्रिस्तान तक गया. सब ने उस पर मिट्टी डाली.

शमीम कई दिनों तक सदमे से बाहर न आ सकी. रहमान का किसी काम में दिल न लगता. सलमा बेटे के गम को अंदर ही अंदर सह रही थी. वह शमीम को हर तरह से सदमे से बाहर निकालने की कोशिश करती. तकरीबन 6 महीने के बाद सलमा अपनी बहू शमीम को रुलाने में कामयाब हुई. डाक्टरों ने कह दिया था कि शमीम का रोना बहुत जरूरी है.

घाटी में दिनोंदिन हालात खराब होते जा रहे थे. रहमान ने बहुत जल्द अपनी 2 बेटियों का निकाह खालाजाद भाइयों के साथ कर दिया. हालांकि वह लड़कियों को अभी और पढ़ाना चाहता था लेकिन शहर की हालत देख कर वह घबरा गया था. अब तीसरी बेटी की शादी के बारे में भी सोच रहा था, हालांकि वह अभी बहुत छोटी थी.

तमाम कश्मीरी जम्मू की ओर पलायन कर रहे थे. कई अमीर मुसलिम परिवारों ने अपनी बीवीबच्चों को दुबई, बेंगलुरु, दिल्ली रवाना कर दिया था. हिंदू कश्मीरी तो लगभग रोज ही निकल रहे थे.

रहमान सोचता रहता कि वह भी बीवीबच्चों को ले कर चला जाए पर न तो उस के पास पैसा था न कोई रिश्तेदार या जानने वाला, फिर उसे कश्मीरी भाषा के सिवा हिंदी बोलनी भी नहीं आती, तो जाए कहां.

वह अपनेआप से बड़बड़ाता, ‘अमीर तो कहीं भी जा सकते हैं पर गरीब कहां जाएगा, उसे तो यहीं मरना है.’

कश्मीर की हालत यह हो गई थी कि रातबेरात कोई भी मुजाहिद आ जाता. उस का खानापीना करना पड़ता. इस खातिरदारी से रहमान बेहद परेशान था. खानेपीने तक तो ठीक, पर वह मुजाहिद कब क्या कर बैठे, यह सोच कर रहमान परेशान रहता. जब भी घर में कोई मुजाहिद आता, सलमा ही खाना बनाती और परोसती. बहू शमीम और बेटी आलिया कमरे में ही रहतीं, उन्हें सख्ती से रहमान ने मना किया था कि बाहर न आएं.

लगभग सालभर के बाद रहमान ने चाहा कि उस का छोटा बेटा शब्बीर शमीम से निकाह कर ले ताकि शमीम का जीवन खराब न हो और आरिफ को बाप मिल जाए. पर शब्बीर इस रिश्ते के लिए तैयार न हुआ. सलमा और रहमान दोनों ने उसे बहुत समझाया पर वह टस से मस न हुआ और कुछ दिनों के बाद अपने दोस्तों के साथ जाने कहां गायब हो गया.

रहमान ने उसे ढूंढ़ने में कोई कसर न छोड़ी. जब उसे पता चला कि शब्बीर भी मुजाहिद बन गया है तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. सलमा रातदिन शब्बीर के वापस आने के लिए दुआएं मांगती. रहमान हर तरह से उसे वापस लाने की कोशिश करता. किसी के जरिए शब्बीर के पास संदेश भेजा कि जहां वह चाहेगा, वहीं उस का निकाह होगा. बस, वह वापस आ जाए.

शब्बीर अपने मरहूम भाई, परवेज की तरह रहना चाहता था. नेता की भांति सारे ऐशोआराम का लुत्फ उठाना चाहता था. रहमान की सारी कोशिशें बेकार गईं.

वक्त गुजरता गया. लोगों से कभी भरी रहने वाली कश्मीर घाटी लगभग अब सूनी सी हो गई थी. कोई कभीकभार ही जम्मू से ट्रक ले कर अपना सामान लेने आता था. अमीर मुसलिम घरानों ने भी अपनी बहूबेटियां महफूज जगहों पर भेज दी थीं. सिर्फ गरीब और मध्यवर्गीय परिवार ही इस आतंकवाद की आग को झेल रहे थे.

एक रात कई मुजाहिद रहमान के घर में ठहरे थे. सलमा ने खाना परोसा. उन में से एक को तन की भूख सताने लगी. उसे मालूम था कि परवेज की बेवा यहीं रहती है. बंदूक की नोक पर उस ने शमीम को हासिल कर लिया. सब के सामने उस ने शमीम के तन को तारतार कर दिया. रहमान कुछ न कर सका. सलमा छाती पीटपीट कर रोती रही. लेकिन वह मुजाहिद टस से मस न हुआ, तन की भूख मिटा कर ही उठा. शमीम अधमरी कितनी ही देर तक यों ही पड़ी रही.

रहमान खुदकुशी करना चाहता था पर बेटी आलिया का सहमा, डरा चेहरा देख कर रुक गया. शमीम की बिखरी हालत देख कर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कई दिनों तक वह दुकान भी न जा सका. सब पूछते तो वह क्या कहता कि मेरी आंखों के आगे बहू की अस्मत को एक मुजाहिद ने तारतार कर दिया और मैं कुछ न कर सका. लेकिन गरीब कितने दिन दुकान बंद रखता, मजबूर हो कर उसे दुकान पर जाना ही पड़ा. उसे अब अपनी जिंदगी जिंदा लाश सी लगती. हर वक्त उसे घर की फिक्र रहती.

रहमान कई बार सोचता कि वह भी परिवार को ले कर घाटी से निकल जाए लेकिन गरीबी उस के आड़े आ जाती. फिर उस ने कश्मीर में बस के सिवा कुछ न देखा था. रेलगाड़ी पर जाना तो उस के लिए अजूबा था. कभी सोचता कि सब को जहर दे दे और खुद भी खा ले पर हिम्मत न पड़ती.

अब उसे आलिया की फिक्र रहती. रातदिन उसे उस के रिश्ते की फिक्र रहती. उस की बहन एक दिन आलिया का हाथ मांगने आ गई. रहमान को मुंहमांगी मुराद मिल गई. उस ने फौरन हां कर दी,

और बहुत जल्द उस के निकाह का दिन निकाला.

घर में तैयारियां होने लगीं. शमीम पूरी तरह से शादी की तैयारियों में जुट गई. बुझीबुझी मरियल सी शमीम एक लाश बन कर सिर्फ आरिफ के लिए जी रही थी. उस भयानक हादसे के बाद सलमा और रहमान कई दिनों तक उस से आंखें न मिला सके. लेकिन शमीम ने एक दिन सब को बिठा कर कहा, ‘‘आप सब क्यों नजरें चुरा रहे हैं. यों भी मेरा जीवन अब बेकार है. मैं सिर्फ आरिफ के लिए जी रही हूं. ये तो अच्छा हुआ कि उस ने सिर्फ मुझे दागदार बनाया. मैं तो खुद बाहर आई थी क्योंकि आलिया मेरे साथ ही सो रही थी. मैं नहीं चाहती थी दरिंदे की नजर इस पर पड़े. इसलिए आप अपने को दोषी न मानें, मैं खुद बाहर आई थी.’’

रहमान और सलमा यह सुन कर हैरान रह गए. उस के बाद शमीम से उन का आमनासामना होता. उन की नजरों में वह आज भी पाकसाफ थी. हर तरह से वे कोशिश करते कि शमीम का दुख बांट सकें. शहर में रोज ही बम धमाके होते, रौकेट लौंचर चलते. कभी पुलिस गोलियां चलाती तो कभी मुजाहिद. कभीकभी शहर में मुजाहिदों के जुलूस भी निकलते जिन में बहुत लोग होते, हालांकि उतनी तो अब आबादी न बची थी पर पड़ोसी इलाकों से लोग आते और दहशतगर्दी कर के वापस चले जाते.

इधर, हफ्तेभर से शमीम को तेज बुखार था. रहमान ने कई डाक्टरों को दिखाया पर अभी तक खास आराम नहीं आ रहा था. सिरदर्द के मारे उस का बुरा हाल था. तभी पड़ोस की शाहिदा बानो ने कहा कि पंचरत्न तेल से मालिश कर दो. आलिया ने जैसे ही सुना, वह दौड़ कर दवा वाले की दुकान भागी. तेल ले कर वह आ ही रही थी कि उस के पास एक जीप रुकी और कुछ मुजाहिदों ने उसे जबरदस्ती उठा कर जीप में ठूंस दिया. वह रोतीचिल्लाती रही पर जीप दौड़ती रही. कुछ पल के बाद रुकी और आलिया को जिहादी घसीटते हुए एक मकान के अंदर ले गए और चिल्ला कर खुशी से बोले, ‘‘शाह साहब, देखिए, आप के लिए क्या गदराया मासूम माल लाया हूं. खुशियां मनाओ, मौज करो. शाह साहब, तेल इस के हाथ में है, काम आएगा.’’

वे ठहाके मार कर हंसने लगे और ‘हम भी कुछ ले आते हैं’ कह कर बाहर चले गए.

आलिया की नजर ज्यों ही सामने शाह साहब पर पड़ी, वह भौचक्की रह गई.

सामने अपने भाई शब्बीर को देख कर वह बिफर पड़ी, ‘‘आओ, ऐश करो, गौर से देखो, मैं तुम्हारी अपनी बहन हूं. इज्जत लूटना चाहते हो, आओ, मैं खुद कपड़े उतारती हूं.’’

शब्बीर ने हाथ पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ मारा, ‘‘आलिया, पीछे के दरवाजे से भाग जाओ.’’

‘‘क्यों, मुझे देख कर खून क्यों ठंडा पड़ गया? किसी न किसी को तो भोगोगे ही, तुम्हीं ने अपने इन लोगों को भेजा था.’’

‘‘आलिया, खुदा के लिए खामोश हो जाओ. मैं ने तुम को लाने के लिए नहीं कहा था. आलिया, तुम्हें अम्मीअब्बू का वास्ता, भाग जाओ.’’

उसी पल आलिया को शमीम की तबीयत की याद आ गई, वह पागलों की तरह बेतहाशा घर की ओर भागने लगी. रास्ते उसे ठीक से याद न थे. उन सुनसान सड़कों पर गहरा अंधेरा छाया था. पागलों की तरह वह दौड़ रही थी तभी उसे पीछे से किसी गाड़ी की रोशनी दिखाई दी. वह वहीं रुक गई और हाथ दे कर रोकने लगी.

गाड़ी रुकी, उस में शब्बीर था. उस ने आलिया को गाड़ी में बिठाया और उसे घर पहुंचाया. घर के बाहर रहमान और सलमा परेशान खड़े थे. गाड़ी से उतरती आलिया और शब्बीर को देख कर रहमान ठिठका. उस के कुछ कहने से पहले ही शब्बीर ने अब्बू से कहा, ‘‘रात में इसे अकेले कहां भेजा था. निकाह तक इसे बाहर मत आने देना.’’

रहमान सुन कर हैरान था, ‘‘क्या तुम्हें मालूम है कि इस का निकाह होने वाला है?’’

‘‘हां, मौलवी साहब ने खबर भेजी थी. इसलिए मैं आज यहां आया हूं.’’

आलिया को मां के हवाले कर शब्बीर जाने लगा, जातेजाते बहन को गले लगा कर कान में फुसफुसाने लगा, ‘मुझे माफ करना.’

शब्बीर जीप में बैठ कर चला गया. रहमान ने भी उसे रुकने को न कहा.

सभी घर वालों ने आलिया से पूछा, ‘‘आखिर कहां चली गई थी, शब्बीर कहां मिल गया?’’

आलिया 2 मिनट रुक कर बोली, ‘‘अब्बू, दवाई वाले की दुकान से निकल कर मैं आ ही रही थी कि भाईजान उस गली पर मिल गए. आप सब का हाल पूछ रहे थे, इसीलिए देर हो गई.’’

दरअसल, आलिया हकीकत बयान कर घर वालों को नया सदमा नहीं देना चाहती थी.

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February 25, 2020 at 09:50AM

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