Friday 28 February 2020

काश ऐसा हो पाता भाग-4

सुमन के मम्मीपापा को इस में आपत्ति नहीं थी मगर उन्होंने इस के पूर्व सुधाकर से मिलने की इच्छा जताई.

सुधाकर मथुरा जा कर सुमन के मम्मीपापा से मिल आया. सुमन के पापा तब तक नहीं जान पाए थे कि सुधाकर उन्हीं के मित्र विमल शर्मा का पुत्र है, जिन को लोग उन के शत्रु के रूप में जानते हैं. उन्हें अपनी बेटी के लिए एक सुयोग्य वर की तलाश थी, जो घरबैठे पूर्ण हो रही थी.

यह राज तो तब खुला जब सुधाकर के मम्मीपापा अपने बेटे के विवाह के लिए औपचारिक रस्म निभाने मथुरा आए.

थोड़ी देर के लिए तो वे दोनों अवाक् रह गए कि वे क्या देखसुन रहे हैं. और उन्हें क्या और कैसे बात करनी है.

‘मुझे माफ कर दो, विमल,’ आखिरकार सुमन के पापा रुंधे कंठ से बोले, ‘15 साल पहले की गई गलती का एहसास मुझे समय रहते हो गया था. मगर समय को वापस लौटाना कहां संभव है. अगर वह हादसा हो जाता जिसे करने की मैं ने कोशिश की थी, तो दोनों ही परिवार बरबाद हो जाते.’

‘अब उस बात को जाने भी दो.’

‘मैं सुमन का विवाह सुधाकर से करूं, यही मेरा प्रायश्चित्त होगा.’

‘अरे, यह प्रायश्चित्त की नहीं, प्रसन्नता की बात है. मैं अपने बेटे के लिए तुम्हारी बेटी का हाथ मांगने आया हूं,’ विमल शर्मा उन्हें गले लगाते हुए बोले, ‘उस दुस्वप्न को तो मैं कब का भूल चुका हूं.’

विवाह की रस्म पूर्ण होने के कुछ दिन बाद वह सुधाकर के घर चली आई थी.

‘‘अरे सुमन, कहां खो गईं,’’ सुधाकर बोला तो उस की तंद्रा टूटी, ‘‘जरा बाहर का नजारा तो देखो, कितना खूबसूरत है.’’

वह शीघ्रतापूर्वक संभल कर चैतन्य हुई. गाड़ी के शीशे से वह बाहर प्रकृति का नजारा देखने लगी. रास्ते की ढलान पर गाड़ी मंथर गति से आगे बढ़ रही थी. जरा सी फिसलन हुई नहीं, जरा सा चूके नहीं कि सैकड़ों फुट गहरी खाई में गिरने का खतरा था.

जैसा कि भय था, वही हुआ. बारिश अब बर्फबारी में बदल चुकी थी. रूई के फाहे के समान बर्फ के झोंके गिर रहे थे. देखते ही देखते पहाड़ों और घाटियों की हरियाली बर्फ की सफेद चादर से ढक गई थी. चारों तरफ दूरदूर तक निशब्द सन्नाटा था. वातावरण पर जैसे एक ही सफेद रंग पुत सा गया था. बर्फ की परत जमी कंक्रीट की सड़क पर गाडि़यों का काफिला बैलगाड़ी की गति से आगे बढ़ रहा था. जैसे किसी आसन्न खतरे का आभास हो, वैसी चुप्पी सब के चेहरे पर चस्पां थी. चूंकि गाडि़यों के ड्राइवर स्थानीय थे और एक्सपर्ट थे, यही एक बात आश्वस्त करने वाली थी कि दिक्कत नहीं आएगी.

रास्ते में कहींकहीं कुछ अर्द्धवृत्ताकार टिन के घर दिखे, जिन के बाहर सन्नाटा पसरा था. वहीं कहीं कुछ धर्मचक्र घुमाते बौद्ध भिक्षु दिखे. मंत्र लिखित सफेद पताकाओं की शृंखलाएं भी पहाड़ों और घाटियों के बीच दिख जाती थीं, जो हवाओं से लहराते हुए रहस्यमय वातावरण का सृजन करती प्रतीत होती थीं.

रास्ते में छोटेनाटे, मगर हृष्टपुष्ट कदकाठी के स्थानीय स्त्रीपुरुष दिखे, जो सड़क के निर्माण कार्य में व्यस्त थे. रबर के गमबूट और दस्ताने पहने, पत्थर तोड़ते और बिछाते हुए स्थानीय लोग. कभी खाली हाथ तो कभी बेलचोंकांटों की मदद से काम करते. भीमकाय डोजरक्रशर आदि कहीं पत्थरों में छेद करते तो कहीं काटतेतोड़ते, कहीं हटाते और डंपरों में भरते अथवा खाली करते थे.

जीवन में रोमांच क्या होता है और हजारों फुट ऊपर बर्फ से ढके पहाड़ों का जीवन कितना कठिन होता होगा, यह उसे अब समझ में आने लगा था. रास्ते के किनारे पैरों में गमबूट और हाथों में रबर के दस्ताने पहने रास्ते को ठीक करने वाले स्थानीय मजदूर इस जोखिम भरे मौसम में भी काम कर रहे थे.

सड़क के कार्यरत स्थल पर पहाड़ी कुत्ते रास्ते की बर्फ में ही कुलेल कर रहे थे. एक स्थान पर भैंसे समान याक पर सामान लादे कुछ स्थानीय लोग उधर से गुजर गए.

ओ, तो यही याक है. इसे देखना भी एक सुखद संयोग था.

बादलों के बीच सूर्य पता नहीं कहां छिप गया था. बर्फबारी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. रास्ते की फिसलन बढ़ती जा रही थी. एक स्थान पर गाडि़यों का काफिला रुका तो सभी गाडि़यों के ड्राइवर गाड़ी के पिछले पहियों में लोहे की जंजीर पहनाने लगे ताकि फिसलन का दबाव कम हो. यह भी एक अलग रोमांचक अनुभव था.

लगभग 9 बजे रात में गाड़ी ने जब गंगटोक शहर की सीमा में प्रवेश किया तो सभी की जान में जान आई. इधर हिमपात के बजाय वर्षा हो रही थी. गाडि़यों की गति में अब तीव्रता आ गई थी. एक खतरनाक अनुभव से गुजर कर अब सभी जैसे चैन की सांस ले रहे थे.

होटल पहुंच कर उन्होंने कपड़े बदले. होटल का नौकर खाना लगाने लगा.

‘‘बहुत दिक्कत हुआ न साहेब,’’ वह बोला, ‘‘अचानक ही मौसम खराब

हो गया. यहां अकसर ही ऐसा हो

जाता है.’’

‘‘हां भई, बड़ी मुश्किल से जान बची,’’ सुधाकर बोला, ‘‘बर्फ भरे रास्ते पर गाड़ी का चलना बहुत मुश्किल था. मुझे लगा कि अब हमें वहीं सड़क के किनारे रात काटनी होगी. अगर ऐसा होता तो हमारी तो कुल्फी ही जम जाती.’’

वह चुपचाप बाहर का दृश्य देख रही थी. बारिश बंद हो चुकी थी और सितारों से सजे आकाश के नीचे गंगटोक शहर  कृत्रिम रोशनी में झिलमिला रहा था. वैसे भी पहाड़ी शहर होते ही ऐसे हैं कि हमेशा वहां दीवाली सी रोशनी का आभास होता है. मगर वहां का नजारा ही कुछ अलग था. वहां के ऊंचेऊंचे दरख्त हरियाली से भरे पड़े थे.

‘‘अरे, तुम कुछ बोलो भी,’’ सुधाकर बोला, ‘‘लगता है तुम काफी डर गई हो.’’

‘‘डर तो गई ही थी, सुधाकर,’’ वह बोली, ‘‘फिलहाल मैं नाथुला की सीमाओं के बारे में सोच रही हूं, जहां भारतीय और चीनी सैनिक आमनेसामने खड़े थे. हम तो वहां से सुरक्षित निकल कर यहां आ गए. मगर उस बर्फबारी में भी वे अपनी सीमाओं पर डटे होंगे. मैं यह सोच रही हूं कि इस परिस्थिति में भी क्या उन्हें अपने परिवार की याद नहीं आती होगी, जैसे कि हमें आई थी?’’

‘‘क्यों नहीं याद आती होगी, सुमन,’’ सुधाकर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तमाम प्रशिक्षण के बावजूद आखिर वे भी मनुष्य हैं. उन के सीने में भी दिल धड़कते हैं. और उन के मन में भी मानवीय विचार अंगड़ाई लेते होंगे. उन के हृदय में भी भावनाएं हैं. मगर कर्तव्य सर्वोपरि होता है, इस का एहसास उन्हें है. इसी कारण हम यहां सुरक्षित हैं. देश और समाज इसी तरह आगे बढ़ता और सुरक्षित रहता है. तुम्हारे एक चाचाजी भी तो इसी प्रकार के सैनिक थे.’’

सुमन का मन एक गहरी टीस से

भर गया.

‘‘हमारे और तुम्हारे परिवार के बीच में भी एक खटास थी, जो हम ने खत्म कर दी. क्या इसी प्रकार राष्ट्रों के बीच की यह खटास खत्म नहीं हो सकती?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकती,’’ वह बोला, ‘‘स्वार्थ और संघर्ष की व्यर्थता का एहसास होते ही दूरियां खत्म होने लगती हैं,’’ सुधाकर उस की बगल में आ कर खड़ा हो गया था, ‘‘काश ऐसा हो पाता, जैसा कि तुम सोच रही हो.’’

बाहर बारिश थम गई थी. बादल छंट गए थे और आकाश सितारों से सज गया था. धुला हुआ गंगटोक शहर अब कृत्रिम प्रकाश से और चमक उठा था.

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सुमन के मम्मीपापा को इस में आपत्ति नहीं थी मगर उन्होंने इस के पूर्व सुधाकर से मिलने की इच्छा जताई.

सुधाकर मथुरा जा कर सुमन के मम्मीपापा से मिल आया. सुमन के पापा तब तक नहीं जान पाए थे कि सुधाकर उन्हीं के मित्र विमल शर्मा का पुत्र है, जिन को लोग उन के शत्रु के रूप में जानते हैं. उन्हें अपनी बेटी के लिए एक सुयोग्य वर की तलाश थी, जो घरबैठे पूर्ण हो रही थी.

यह राज तो तब खुला जब सुधाकर के मम्मीपापा अपने बेटे के विवाह के लिए औपचारिक रस्म निभाने मथुरा आए.

थोड़ी देर के लिए तो वे दोनों अवाक् रह गए कि वे क्या देखसुन रहे हैं. और उन्हें क्या और कैसे बात करनी है.

‘मुझे माफ कर दो, विमल,’ आखिरकार सुमन के पापा रुंधे कंठ से बोले, ‘15 साल पहले की गई गलती का एहसास मुझे समय रहते हो गया था. मगर समय को वापस लौटाना कहां संभव है. अगर वह हादसा हो जाता जिसे करने की मैं ने कोशिश की थी, तो दोनों ही परिवार बरबाद हो जाते.’

‘अब उस बात को जाने भी दो.’

‘मैं सुमन का विवाह सुधाकर से करूं, यही मेरा प्रायश्चित्त होगा.’

‘अरे, यह प्रायश्चित्त की नहीं, प्रसन्नता की बात है. मैं अपने बेटे के लिए तुम्हारी बेटी का हाथ मांगने आया हूं,’ विमल शर्मा उन्हें गले लगाते हुए बोले, ‘उस दुस्वप्न को तो मैं कब का भूल चुका हूं.’

विवाह की रस्म पूर्ण होने के कुछ दिन बाद वह सुधाकर के घर चली आई थी.

‘‘अरे सुमन, कहां खो गईं,’’ सुधाकर बोला तो उस की तंद्रा टूटी, ‘‘जरा बाहर का नजारा तो देखो, कितना खूबसूरत है.’’

वह शीघ्रतापूर्वक संभल कर चैतन्य हुई. गाड़ी के शीशे से वह बाहर प्रकृति का नजारा देखने लगी. रास्ते की ढलान पर गाड़ी मंथर गति से आगे बढ़ रही थी. जरा सी फिसलन हुई नहीं, जरा सा चूके नहीं कि सैकड़ों फुट गहरी खाई में गिरने का खतरा था.

जैसा कि भय था, वही हुआ. बारिश अब बर्फबारी में बदल चुकी थी. रूई के फाहे के समान बर्फ के झोंके गिर रहे थे. देखते ही देखते पहाड़ों और घाटियों की हरियाली बर्फ की सफेद चादर से ढक गई थी. चारों तरफ दूरदूर तक निशब्द सन्नाटा था. वातावरण पर जैसे एक ही सफेद रंग पुत सा गया था. बर्फ की परत जमी कंक्रीट की सड़क पर गाडि़यों का काफिला बैलगाड़ी की गति से आगे बढ़ रहा था. जैसे किसी आसन्न खतरे का आभास हो, वैसी चुप्पी सब के चेहरे पर चस्पां थी. चूंकि गाडि़यों के ड्राइवर स्थानीय थे और एक्सपर्ट थे, यही एक बात आश्वस्त करने वाली थी कि दिक्कत नहीं आएगी.

रास्ते में कहींकहीं कुछ अर्द्धवृत्ताकार टिन के घर दिखे, जिन के बाहर सन्नाटा पसरा था. वहीं कहीं कुछ धर्मचक्र घुमाते बौद्ध भिक्षु दिखे. मंत्र लिखित सफेद पताकाओं की शृंखलाएं भी पहाड़ों और घाटियों के बीच दिख जाती थीं, जो हवाओं से लहराते हुए रहस्यमय वातावरण का सृजन करती प्रतीत होती थीं.

रास्ते में छोटेनाटे, मगर हृष्टपुष्ट कदकाठी के स्थानीय स्त्रीपुरुष दिखे, जो सड़क के निर्माण कार्य में व्यस्त थे. रबर के गमबूट और दस्ताने पहने, पत्थर तोड़ते और बिछाते हुए स्थानीय लोग. कभी खाली हाथ तो कभी बेलचोंकांटों की मदद से काम करते. भीमकाय डोजरक्रशर आदि कहीं पत्थरों में छेद करते तो कहीं काटतेतोड़ते, कहीं हटाते और डंपरों में भरते अथवा खाली करते थे.

जीवन में रोमांच क्या होता है और हजारों फुट ऊपर बर्फ से ढके पहाड़ों का जीवन कितना कठिन होता होगा, यह उसे अब समझ में आने लगा था. रास्ते के किनारे पैरों में गमबूट और हाथों में रबर के दस्ताने पहने रास्ते को ठीक करने वाले स्थानीय मजदूर इस जोखिम भरे मौसम में भी काम कर रहे थे.

सड़क के कार्यरत स्थल पर पहाड़ी कुत्ते रास्ते की बर्फ में ही कुलेल कर रहे थे. एक स्थान पर भैंसे समान याक पर सामान लादे कुछ स्थानीय लोग उधर से गुजर गए.

ओ, तो यही याक है. इसे देखना भी एक सुखद संयोग था.

बादलों के बीच सूर्य पता नहीं कहां छिप गया था. बर्फबारी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. रास्ते की फिसलन बढ़ती जा रही थी. एक स्थान पर गाडि़यों का काफिला रुका तो सभी गाडि़यों के ड्राइवर गाड़ी के पिछले पहियों में लोहे की जंजीर पहनाने लगे ताकि फिसलन का दबाव कम हो. यह भी एक अलग रोमांचक अनुभव था.

लगभग 9 बजे रात में गाड़ी ने जब गंगटोक शहर की सीमा में प्रवेश किया तो सभी की जान में जान आई. इधर हिमपात के बजाय वर्षा हो रही थी. गाडि़यों की गति में अब तीव्रता आ गई थी. एक खतरनाक अनुभव से गुजर कर अब सभी जैसे चैन की सांस ले रहे थे.

होटल पहुंच कर उन्होंने कपड़े बदले. होटल का नौकर खाना लगाने लगा.

‘‘बहुत दिक्कत हुआ न साहेब,’’ वह बोला, ‘‘अचानक ही मौसम खराब

हो गया. यहां अकसर ही ऐसा हो

जाता है.’’

‘‘हां भई, बड़ी मुश्किल से जान बची,’’ सुधाकर बोला, ‘‘बर्फ भरे रास्ते पर गाड़ी का चलना बहुत मुश्किल था. मुझे लगा कि अब हमें वहीं सड़क के किनारे रात काटनी होगी. अगर ऐसा होता तो हमारी तो कुल्फी ही जम जाती.’’

वह चुपचाप बाहर का दृश्य देख रही थी. बारिश बंद हो चुकी थी और सितारों से सजे आकाश के नीचे गंगटोक शहर  कृत्रिम रोशनी में झिलमिला रहा था. वैसे भी पहाड़ी शहर होते ही ऐसे हैं कि हमेशा वहां दीवाली सी रोशनी का आभास होता है. मगर वहां का नजारा ही कुछ अलग था. वहां के ऊंचेऊंचे दरख्त हरियाली से भरे पड़े थे.

‘‘अरे, तुम कुछ बोलो भी,’’ सुधाकर बोला, ‘‘लगता है तुम काफी डर गई हो.’’

‘‘डर तो गई ही थी, सुधाकर,’’ वह बोली, ‘‘फिलहाल मैं नाथुला की सीमाओं के बारे में सोच रही हूं, जहां भारतीय और चीनी सैनिक आमनेसामने खड़े थे. हम तो वहां से सुरक्षित निकल कर यहां आ गए. मगर उस बर्फबारी में भी वे अपनी सीमाओं पर डटे होंगे. मैं यह सोच रही हूं कि इस परिस्थिति में भी क्या उन्हें अपने परिवार की याद नहीं आती होगी, जैसे कि हमें आई थी?’’

‘‘क्यों नहीं याद आती होगी, सुमन,’’ सुधाकर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तमाम प्रशिक्षण के बावजूद आखिर वे भी मनुष्य हैं. उन के सीने में भी दिल धड़कते हैं. और उन के मन में भी मानवीय विचार अंगड़ाई लेते होंगे. उन के हृदय में भी भावनाएं हैं. मगर कर्तव्य सर्वोपरि होता है, इस का एहसास उन्हें है. इसी कारण हम यहां सुरक्षित हैं. देश और समाज इसी तरह आगे बढ़ता और सुरक्षित रहता है. तुम्हारे एक चाचाजी भी तो इसी प्रकार के सैनिक थे.’’

सुमन का मन एक गहरी टीस से

भर गया.

‘‘हमारे और तुम्हारे परिवार के बीच में भी एक खटास थी, जो हम ने खत्म कर दी. क्या इसी प्रकार राष्ट्रों के बीच की यह खटास खत्म नहीं हो सकती?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकती,’’ वह बोला, ‘‘स्वार्थ और संघर्ष की व्यर्थता का एहसास होते ही दूरियां खत्म होने लगती हैं,’’ सुधाकर उस की बगल में आ कर खड़ा हो गया था, ‘‘काश ऐसा हो पाता, जैसा कि तुम सोच रही हो.’’

बाहर बारिश थम गई थी. बादल छंट गए थे और आकाश सितारों से सज गया था. धुला हुआ गंगटोक शहर अब कृत्रिम प्रकाश से और चमक उठा था.

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February 29, 2020 at 10:00AM

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