Thursday 27 February 2020

सचाई की जीत

अपने हिस्से से ज्यादा लेने और ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाने के अशोक के स्वभाव ने अपने ही भाई मनोज के लिए अचानक एक मुसीबत खड़ी कर दी. ऐसे में मनोज ने क्या तरकीब अपनाई जिस से न केवल सचाई की जीत हुई बल्कि अशोक को शर्मिंदा भी होना पड़ा?

दरवाजे की घंटी बजी. मीना ने दरवाजे पर जा कर मैजिक आई से बाहर झांका. जमाने का माहौल अच्छा नहीं था, इसलिए सावधानी से काम लेना पड़ता था. बाहर खड़ा उस इलाके का डाकिया शिवलाल था. मीना ने दरवाजा खोला.

‘‘साहब के लिए रजिस्ट्री है, मैडम,’’ शिवलाल ने कहा और मीना को सरकारी किस्म का 1 लिफाफा पकड़ा दिया.

ये भी पढ़ें-अफसरी के चंद नुसखे

मीना ने रसीद पर हस्ताक्षर किए, उस के नीचे अपना टैलीफोन नंबर लिखा और शिवलाल को रसीद वापस दे दी. अंदर आ कर मीना ने लिफाफा टेबल पर रख दिया ताकि उस का पति मनोज जब शाम को दफ्तर से आएगा तब देख लेगा.

शाम को मनोज आया और उस ने लिफाफा खोला. अंदर जो कागजात थे, उन को पढ़ा. उस के माथे पर शिकन पड़ गई. उस ने कागजात दोबारा पढ़े.

‘‘मूर्ख कहीं का, गधा, बिलकुल पागल हो गया है,’’ मनोज ने नाराजगी भरे स्वर में जोर से कहा.

मीना चौंक उठी, ‘‘तुम किस के बारे में बोल रहे हो? मामला क्या है?’’

‘‘वह उल्लू, अशोक,’’ मनोज ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘उस ने मेरे खिलाफ अदालत में केस दर्ज किया है.’’

‘‘अदालत में केस?’’ मीना ने आश्चर्यजनक आवाज में पूछा, ‘‘कैसा केस? तुम ने क्या जुर्म किया है?’’

ये भी पढ़ें-दुर्घटना पर्यटन: भाग-2

‘‘अशोक ने शिकायत में लिखा है कि हमारे पिता ने, उसे और मुझे, वसीयत में यह दोमंजिला मकान सौंपा था. दोनों को आधाआधा मकान. उस ने लिखा है कि दोनों हिस्सों का एरिया बराबर है, पर निचले हिस्से में जहां हम रह रहे हैं, उस का मूल्य अधिक है, क्योंकि ग्राउंड फ्लोर का मूल्य हमेशा अधिक होता है. वह यह भी मानता है कि हम, पिताजी की मौत के पहले से उन के साथ ग्राउंड फ्लोर में रह रहे थे, पर उन के मरने के बाद भी ग्राउंड पर रह कर मैं ने अपने घर के 50 प्रतिशत से ज्यादा एरिया पर हक जमाया है. इसलिए मुझे उस की पूर्ति उसे देनी पड़ेगी. यह रकम, जिस का हिसाब उस ने 2 लाख रुपए सालाना बताया है, मुझे उसे पिछले 3 साल, यानी पिताजी की मौत के दिन से देनी होगी, ब्याज के साथ. और भविष्य में हर साल इसी हिसाब से 2 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘पर वह ऐसा कैसे कर सकता है?’’ मीना ने पूछा, ‘‘आप के पिताजी की मौत के बाद से ऊपरी मंजिल का किराया अशोक लेता रहा है, तो उस को तो काफी पैसे मिले हैं. हम ने अपना हिस्सा तो किराए पर कभी नहीं दिया, हमें तो किसी तरह का फायदा मिला नहीं. ऊपर से अशोक ने तो कभी नहीं कहा कि वह नीचे रहना चाहता है. वह आप पर अचानक केस कैसे कर सकता है? अदालत को यह केस मंजूर ही नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अफसोस तो इसी बात का है,’’ मनोज ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘अदालत ने उस का केस स्वीकार कर लिया है और मुझे कोर्ट में 3 हफ्ते बाद हाजिर होने का आदेश भेजा है.’’

‘‘पर मुझे एक बात समझ में नहीं आई,’’ मीना ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि आप में और अशोक में कभी कोई खास बनती नहीं थी, पर वह आप से पैसे ऐंठने की कोशिश क्यों कर रहा है?’’

‘‘मैं जानता हूं कि वह यह क्यों कर रहा है,’’ मनोज ने जवाब दिया, ‘‘अशोक बचपन से लालची और स्वार्थी किस्म का इंसान है. जब भी हम दोनों को खिलौने या चौकलेट मिलते थे तो वह अपने हिस्से से ज्यादा लेने की कोशिश करता था. वह बड़ा हुआ, तो उस के जीवन का एक ही मकसद था कि वह ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाए, चाहे किसी भी तरीके से. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार है, चाहे झूठ बोलना हो या धोखाधड़ी का सहारा लेना पड़े. पर इस केस के बारे में मैं चिंतित हूं. मैं एक अच्छा वकील ढूंढ़ता हूं जो मेरी तरफ से केस लड़ेगा. मुझे पक्का यकीन है कि हम केस जीत जाएंगे. क्योंकि इस केस में खास दम नहीं है.

‘‘पर, मैं सोच रहा हूं कि हमारे परिवार की काफी बदनामी होगी जब हमारे रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को

ये भी पढ़ें-दुर्घटना पर्यटन: भाग-1

पता चलेगा कि हम 2 भाई एकदूसरे के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे हैं. पिताजी कितने बड़ेबड़े लोगों से मेलजोल रखते थे, और उन को लोग खूब सम्मान देते थे. अब उन का नाम मिट्टी में मिल जाएगा.’’

‘‘पर अशोक ने आप पर इस समय क्यों मुकदमा चलाया है?’’ मीना ने पूछा.

‘‘इसलिए, क्योंकि उस ने शायद सुन लिया होगा कि तुम्हें हाल ही में, तुम्हारी मां के देहांत के बाद, उन की वसीयत के मुताबिक, 5 लाख रुपए मिले हैं,’’ मनोज ने जवाब दिया, ‘‘अशोक हमेशा मुझ से जलता था क्योंकि मेरी आमदनी उस की आमदनी से हमेशा दोगुनी रही है, जिस की वजह से हम कई चीजें कर सके, जो वह नहीं कर सकता था, जैसे हमारी हाल ही में की गई सिंगापुर की सैर. मुझे तो लगता है कि तुम्हारी मां की तरफ से तुम्हें पैसे मिलने की बात सुन कर उस ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. अब उस का लक्ष्य हम से पैसा ऐंठना हो गया है.’’

‘‘उस ने कितनी नीच किस्म की हरकत की है,’’ मीना बोली, ‘‘उसे शर्म भी नहीं आती है, अपने ही बड़े भाई पर मुकदमा कर डाला, वह भी बेवजह.’’

‘‘एक बात का खयाल रखना,’’ मनोज ने मीना को सावधान किया, ‘‘सुनील को इस मामले के बारे में कुछ नहीं बताना. वह मुकदमे का नाम सुन कर कहीं घबरा न जाए, और इस वजह से उस के बोर्ड के इम्तिहान की तैयारी में कुछ विघ्न न पड़ जाए.’’

सुनील उन का 17 साल का बेटा था.

अशोक के मनोज के खिलाफ मुकदमे का हाल वही हुआ जो हमारे देश के ज्यादातर संपत्ति से जुड़े मुकदमों का होता है. दोनों तरफ के वकील उसे खींचते रहे, कभी स्थगन ले लेते, कभी बेमतलबी बहस में लगे रहते. कोर्ट में इसी तरह के सैकड़ों मुकदमे साथसाथ चल रहे थे. 3-4 महीने के बाद सुनवाई की बारी आती थी, पर नतीजा कुछ नहीं निकलता था. इसी तरह 7 साल बीत गए, पर मुकदमे का अंत नजर नहीं आ रहा था.

सुनील ने इस दौरान आईआईटी से डिगरी हासिल की, जिस के बाद उसे उसी शहर में एक अच्छी नौकरी मिल गई. मनोज और मीना उस की शादी के बारे में सोचने लगे.

समय के साथसाथ अशोक और भी उत्तेजित होता गया. उस की विफलता उसे अंदर ही अंदर खाने लगी. उस की अपने बडे़ भाई से लाखों रुपए ऐंठने की योजना पूरी तरह नाकाम हुई जा रही थी. एक तरफ वकील का खर्चा, दूसरी तरफ बढ़ती हुई महंगाई. उस की हालत काफी नाजुक हो गई थी. दिनरात एक ही बात सोचता कि वह मुकदमा कैसे जीते.

तकदीर ने उसे एक मौका दिया पर कुछ अजीब ही तरह का.

अशोक की एक लड़की थी, जिस का नाम सुमन था. सुमन मौडर्न किस्म की लड़की थी. कालेज में पढ़ती थी. उसे देर रात तक पार्टी में जाने, शराब पीने और लड़कों के साथ घूमने की आदत थी. मांबाप का उस पर कोई कंट्रोल नहीं था. एक शाम, जब वह एक कौकटेल पार्टी में नाच रही थी, कुछ लड़कों ने उस के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की. सुमन के साथ उस के कालेज के जो लड़के थे, उन लड़कों से भिड़ गए. काफी हाथापाई हुई. सुमन को भी चोट लगी और उस की नाक व माथे से खून निकला. माथे का घाव काफी गहरा था. लड़ाई तब बंद हुई जब किसी ने पुलिस को बुलाने की धमकी दी.

सुमन जब घर पहुंची तो उस की हालत देख कर अशोक और उस की पत्नी  काफी घबरा गए. अशोक ने उसी समय उस को अस्पताल ले जाने के लिए कार निकाली. पर फिर वह सोच में पड़ गया. वह जानता था कि अस्पताल का डाक्टर जरूर पूछेगा कि चोट कैसे लगी? अगर सुमन ने सच बता दिया कि मारपीट की वजह से चोट लगी, तो शायद डाक्टर उसे पुलिस केस बना दे.

फिर अचानक अशोक को एक तरकीब सूझी. एक ऐसी तरकीब जिस से वह मनोज से कई लाख रुपए उगलवा सकता था. उस ने सुमन से कहा, ‘‘बेटा, जब डाक्टर साहब तुम्हें पूछेंगे कि तुम्हें चोट कैसे लगी, तुम बता देना कि हमारे घर के सामने तुम सड़क पार कर रही थी कि एक तेज रफ्तार वाली मोटरसाइकिल ने तुम्हें टक्कर मारी. मोटरसाइकिल चालक रुका नहीं, वहां से भाग गया. डाक्टर जरूर पुलिस को बुलाएगा, एफआईआर लिखवाने. जब पुलिस आएगी, तुम उन को बताना कि तुम ने मोटरसाइकिल का नंबर देखा था, पर क्योंकि हादसे के कारण तुम्हें काफी झटका लगा है, इस कारण तुम उसे भूल गई हो. याद आते ही तुम पुलिस को सूचित कर दोगी. यह बयान देते समय तुम बिलकुल झिझकना मत. वैसे, मैं तो तुम्हारे साथ ही रहूंगा, तो तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं.’’

सुमन ने पुलिस को वैसा ही बयान दिया जैसा उस के पिता अशोक ने बताया था. ‘हिट ऐंड रन’ केस का मामला दर्ज हुआ और एफआईआर की एक कौपी अशोक को भी दी गई. उस में साफ लिखा था कि सुमन ने उस टक्कर मारने वाली मोटरसाइकिल का नंबर देख तो लिया था, पर सदमे की वजह से वह उसे याद नहीं.

अगले दिन सुबह, एफआईआर की कौपी ले कर अशोक, मनोज के घर गया. उस ने मनोज को एफआईआर दिखाई और धमकी दी कि अगर 7 दिन के अंदर मनोज ने उसे 5 लाख रुपए नहीं दिए तो सुमन पुलिस को बता देगी कि दोषी मोटरसाइकिल का नंबर उसे याद आ गया. और वह पुलिस को सुनील की मोटरसाइकिल का नंबर दे देगी. यह कह कर, मनोज को दुविधा में डाल कर, अशोक वहां से मन ही मन मुसकराता हुआ चला गया. मनोज जानता था कि अगर सुनील पर मुकदमा चला तो शायद उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े. और अगर वह अपनी बेकसूरी साबित न कर सके तो उस के जेल जाने की नौबत भी आ सकती है.

मनोज ने सुनील को बुला कर उस से पूछा कि पिछली रात तकरीबन 10 बजे, जोकि एफआईआर के मुताबिक हादसे का समय था, वह कहां था? सुनील ने बताया कि पिछली रात वह कुछ दोस्तों के साथ एक मौल में रात का शो देखने गया था. यानी रात के साढ़े 8 से ले कर पौने 12 बजे तक वह मौल में ही था.

मनोज जानता था कि सुनील सच बोल रहा है, और अगर उस पर मुकदमा चला तो उस के दोस्त उस की तरफदारी में गवाही जरूर देंगे. पर फिर भी बदनामी तो होगी. मनोज मुकदमा दर्ज होने से पहले ही मामले को समाप्त करवाना चाहता था, पर अशोक को पैसे दे कर नहीं.

ये भी पढ़ें-मुआवजा

जब मनोज के दिमाग में कुछ सूझ नहीं आई तो वह अपनी समस्या ले कर अपने वकील के पास गया. उस के वकील ने मामले पर थोड़ी देर विचार किया और फिर हल सोच लिया. वह कोर्ट गया और वहां से एक आदेशपत्र हासिल किया. आदेशपत्र ले कर वह पुलिस अफसर, सुनील और मनोज के साथ उस मौल में गया जहां सुनील ने हादसे की रात को फिल्म देखी थी. उन्होंने आदेशपत्र दिखा कर, मौल के सारे सीसीटीवी कैमरों की उस रात की रिकौर्डिंग की छानबीन की. रिकौर्डिंग से साफ पता चलता है कि सुनील, रात के 8 बज कर 22 मिनट पर मौल की पार्किंग में घुसा था अपनी मोटरसाइकिल के साथ. 5 मिनट बाद उस ने मौल में प्रवेश किया. फिर पौने 12 बजे तक न सुनील, न उस की मोटरसाइकिल मौल से निकले. सुनील

12 बज कर 10 मिनट पर मौल से निकला और 4 मिनट के बाद मोटरसाइकिल पर मौल की पार्किंग से बाहर गया. इस से साफ जाहिर होता था कि सुमन के साथ हादसे के कथित समय पर सुनील मौल के अंदर था. मनोज के वकील ने इस बात की एफिडेविट अगले दिन कोर्ट में दर्ज करा दी.

2 दिन बाद मनोज, एफिडेविट की कौपी ले कर अशोक के घर गया. वहां उस ने अशोक और उस की पत्नी व उन की बेटी के सामने एफिडेविट की कौपी दिखाई और चेतावनी दी कि अगर सुमन ने पुलिस को झूठी गवाही दी, तो वह जेल जा सकती है. सुमन और उस की मां हक्कीबक्की रह गईं. उन को अशोक की इस घटिया योजना के बारे में बिलकुल खबर नहीं थी.

10 दिन बाद अशोक के मुकदमे की अगली सुनवाई हुई. जज ने दोनों भाइयों को अपने चैंबर में बुलाया. वहां उन्होंने दोनों को सलाह दी कि वे अपना समय व पैसा और कोर्ट का समय बरबाद करना छोड़ दें, आपस में समझौता कर लें. जज ने यह भी कहा कि झगडे़ को सुलझाने का सब से आसान तरीका था घर को बेच देना और मिली हुई कीमत को आधाआधा बांट लेना. अशोक, जिसे अपनी बीवी और बेटी के सामने काफी शर्मिंदा होना पड़ा था, जिस के अपने भाई से पैसे ऐंठने के सपने चूरचूर हो चुके थे, ने सचाई के आगे घुटने टेक दिए.

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अपने हिस्से से ज्यादा लेने और ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाने के अशोक के स्वभाव ने अपने ही भाई मनोज के लिए अचानक एक मुसीबत खड़ी कर दी. ऐसे में मनोज ने क्या तरकीब अपनाई जिस से न केवल सचाई की जीत हुई बल्कि अशोक को शर्मिंदा भी होना पड़ा?

दरवाजे की घंटी बजी. मीना ने दरवाजे पर जा कर मैजिक आई से बाहर झांका. जमाने का माहौल अच्छा नहीं था, इसलिए सावधानी से काम लेना पड़ता था. बाहर खड़ा उस इलाके का डाकिया शिवलाल था. मीना ने दरवाजा खोला.

‘‘साहब के लिए रजिस्ट्री है, मैडम,’’ शिवलाल ने कहा और मीना को सरकारी किस्म का 1 लिफाफा पकड़ा दिया.

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मीना ने रसीद पर हस्ताक्षर किए, उस के नीचे अपना टैलीफोन नंबर लिखा और शिवलाल को रसीद वापस दे दी. अंदर आ कर मीना ने लिफाफा टेबल पर रख दिया ताकि उस का पति मनोज जब शाम को दफ्तर से आएगा तब देख लेगा.

शाम को मनोज आया और उस ने लिफाफा खोला. अंदर जो कागजात थे, उन को पढ़ा. उस के माथे पर शिकन पड़ गई. उस ने कागजात दोबारा पढ़े.

‘‘मूर्ख कहीं का, गधा, बिलकुल पागल हो गया है,’’ मनोज ने नाराजगी भरे स्वर में जोर से कहा.

मीना चौंक उठी, ‘‘तुम किस के बारे में बोल रहे हो? मामला क्या है?’’

‘‘वह उल्लू, अशोक,’’ मनोज ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘उस ने मेरे खिलाफ अदालत में केस दर्ज किया है.’’

‘‘अदालत में केस?’’ मीना ने आश्चर्यजनक आवाज में पूछा, ‘‘कैसा केस? तुम ने क्या जुर्म किया है?’’

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‘‘अशोक ने शिकायत में लिखा है कि हमारे पिता ने, उसे और मुझे, वसीयत में यह दोमंजिला मकान सौंपा था. दोनों को आधाआधा मकान. उस ने लिखा है कि दोनों हिस्सों का एरिया बराबर है, पर निचले हिस्से में जहां हम रह रहे हैं, उस का मूल्य अधिक है, क्योंकि ग्राउंड फ्लोर का मूल्य हमेशा अधिक होता है. वह यह भी मानता है कि हम, पिताजी की मौत के पहले से उन के साथ ग्राउंड फ्लोर में रह रहे थे, पर उन के मरने के बाद भी ग्राउंड पर रह कर मैं ने अपने घर के 50 प्रतिशत से ज्यादा एरिया पर हक जमाया है. इसलिए मुझे उस की पूर्ति उसे देनी पड़ेगी. यह रकम, जिस का हिसाब उस ने 2 लाख रुपए सालाना बताया है, मुझे उसे पिछले 3 साल, यानी पिताजी की मौत के दिन से देनी होगी, ब्याज के साथ. और भविष्य में हर साल इसी हिसाब से 2 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘पर वह ऐसा कैसे कर सकता है?’’ मीना ने पूछा, ‘‘आप के पिताजी की मौत के बाद से ऊपरी मंजिल का किराया अशोक लेता रहा है, तो उस को तो काफी पैसे मिले हैं. हम ने अपना हिस्सा तो किराए पर कभी नहीं दिया, हमें तो किसी तरह का फायदा मिला नहीं. ऊपर से अशोक ने तो कभी नहीं कहा कि वह नीचे रहना चाहता है. वह आप पर अचानक केस कैसे कर सकता है? अदालत को यह केस मंजूर ही नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अफसोस तो इसी बात का है,’’ मनोज ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘अदालत ने उस का केस स्वीकार कर लिया है और मुझे कोर्ट में 3 हफ्ते बाद हाजिर होने का आदेश भेजा है.’’

‘‘पर मुझे एक बात समझ में नहीं आई,’’ मीना ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि आप में और अशोक में कभी कोई खास बनती नहीं थी, पर वह आप से पैसे ऐंठने की कोशिश क्यों कर रहा है?’’

‘‘मैं जानता हूं कि वह यह क्यों कर रहा है,’’ मनोज ने जवाब दिया, ‘‘अशोक बचपन से लालची और स्वार्थी किस्म का इंसान है. जब भी हम दोनों को खिलौने या चौकलेट मिलते थे तो वह अपने हिस्से से ज्यादा लेने की कोशिश करता था. वह बड़ा हुआ, तो उस के जीवन का एक ही मकसद था कि वह ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाए, चाहे किसी भी तरीके से. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार है, चाहे झूठ बोलना हो या धोखाधड़ी का सहारा लेना पड़े. पर इस केस के बारे में मैं चिंतित हूं. मैं एक अच्छा वकील ढूंढ़ता हूं जो मेरी तरफ से केस लड़ेगा. मुझे पक्का यकीन है कि हम केस जीत जाएंगे. क्योंकि इस केस में खास दम नहीं है.

‘‘पर, मैं सोच रहा हूं कि हमारे परिवार की काफी बदनामी होगी जब हमारे रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को

ये भी पढ़ें-दुर्घटना पर्यटन: भाग-1

पता चलेगा कि हम 2 भाई एकदूसरे के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे हैं. पिताजी कितने बड़ेबड़े लोगों से मेलजोल रखते थे, और उन को लोग खूब सम्मान देते थे. अब उन का नाम मिट्टी में मिल जाएगा.’’

‘‘पर अशोक ने आप पर इस समय क्यों मुकदमा चलाया है?’’ मीना ने पूछा.

‘‘इसलिए, क्योंकि उस ने शायद सुन लिया होगा कि तुम्हें हाल ही में, तुम्हारी मां के देहांत के बाद, उन की वसीयत के मुताबिक, 5 लाख रुपए मिले हैं,’’ मनोज ने जवाब दिया, ‘‘अशोक हमेशा मुझ से जलता था क्योंकि मेरी आमदनी उस की आमदनी से हमेशा दोगुनी रही है, जिस की वजह से हम कई चीजें कर सके, जो वह नहीं कर सकता था, जैसे हमारी हाल ही में की गई सिंगापुर की सैर. मुझे तो लगता है कि तुम्हारी मां की तरफ से तुम्हें पैसे मिलने की बात सुन कर उस ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. अब उस का लक्ष्य हम से पैसा ऐंठना हो गया है.’’

‘‘उस ने कितनी नीच किस्म की हरकत की है,’’ मीना बोली, ‘‘उसे शर्म भी नहीं आती है, अपने ही बड़े भाई पर मुकदमा कर डाला, वह भी बेवजह.’’

‘‘एक बात का खयाल रखना,’’ मनोज ने मीना को सावधान किया, ‘‘सुनील को इस मामले के बारे में कुछ नहीं बताना. वह मुकदमे का नाम सुन कर कहीं घबरा न जाए, और इस वजह से उस के बोर्ड के इम्तिहान की तैयारी में कुछ विघ्न न पड़ जाए.’’

सुनील उन का 17 साल का बेटा था.

अशोक के मनोज के खिलाफ मुकदमे का हाल वही हुआ जो हमारे देश के ज्यादातर संपत्ति से जुड़े मुकदमों का होता है. दोनों तरफ के वकील उसे खींचते रहे, कभी स्थगन ले लेते, कभी बेमतलबी बहस में लगे रहते. कोर्ट में इसी तरह के सैकड़ों मुकदमे साथसाथ चल रहे थे. 3-4 महीने के बाद सुनवाई की बारी आती थी, पर नतीजा कुछ नहीं निकलता था. इसी तरह 7 साल बीत गए, पर मुकदमे का अंत नजर नहीं आ रहा था.

सुनील ने इस दौरान आईआईटी से डिगरी हासिल की, जिस के बाद उसे उसी शहर में एक अच्छी नौकरी मिल गई. मनोज और मीना उस की शादी के बारे में सोचने लगे.

समय के साथसाथ अशोक और भी उत्तेजित होता गया. उस की विफलता उसे अंदर ही अंदर खाने लगी. उस की अपने बडे़ भाई से लाखों रुपए ऐंठने की योजना पूरी तरह नाकाम हुई जा रही थी. एक तरफ वकील का खर्चा, दूसरी तरफ बढ़ती हुई महंगाई. उस की हालत काफी नाजुक हो गई थी. दिनरात एक ही बात सोचता कि वह मुकदमा कैसे जीते.

तकदीर ने उसे एक मौका दिया पर कुछ अजीब ही तरह का.

अशोक की एक लड़की थी, जिस का नाम सुमन था. सुमन मौडर्न किस्म की लड़की थी. कालेज में पढ़ती थी. उसे देर रात तक पार्टी में जाने, शराब पीने और लड़कों के साथ घूमने की आदत थी. मांबाप का उस पर कोई कंट्रोल नहीं था. एक शाम, जब वह एक कौकटेल पार्टी में नाच रही थी, कुछ लड़कों ने उस के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की. सुमन के साथ उस के कालेज के जो लड़के थे, उन लड़कों से भिड़ गए. काफी हाथापाई हुई. सुमन को भी चोट लगी और उस की नाक व माथे से खून निकला. माथे का घाव काफी गहरा था. लड़ाई तब बंद हुई जब किसी ने पुलिस को बुलाने की धमकी दी.

सुमन जब घर पहुंची तो उस की हालत देख कर अशोक और उस की पत्नी  काफी घबरा गए. अशोक ने उसी समय उस को अस्पताल ले जाने के लिए कार निकाली. पर फिर वह सोच में पड़ गया. वह जानता था कि अस्पताल का डाक्टर जरूर पूछेगा कि चोट कैसे लगी? अगर सुमन ने सच बता दिया कि मारपीट की वजह से चोट लगी, तो शायद डाक्टर उसे पुलिस केस बना दे.

फिर अचानक अशोक को एक तरकीब सूझी. एक ऐसी तरकीब जिस से वह मनोज से कई लाख रुपए उगलवा सकता था. उस ने सुमन से कहा, ‘‘बेटा, जब डाक्टर साहब तुम्हें पूछेंगे कि तुम्हें चोट कैसे लगी, तुम बता देना कि हमारे घर के सामने तुम सड़क पार कर रही थी कि एक तेज रफ्तार वाली मोटरसाइकिल ने तुम्हें टक्कर मारी. मोटरसाइकिल चालक रुका नहीं, वहां से भाग गया. डाक्टर जरूर पुलिस को बुलाएगा, एफआईआर लिखवाने. जब पुलिस आएगी, तुम उन को बताना कि तुम ने मोटरसाइकिल का नंबर देखा था, पर क्योंकि हादसे के कारण तुम्हें काफी झटका लगा है, इस कारण तुम उसे भूल गई हो. याद आते ही तुम पुलिस को सूचित कर दोगी. यह बयान देते समय तुम बिलकुल झिझकना मत. वैसे, मैं तो तुम्हारे साथ ही रहूंगा, तो तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं.’’

सुमन ने पुलिस को वैसा ही बयान दिया जैसा उस के पिता अशोक ने बताया था. ‘हिट ऐंड रन’ केस का मामला दर्ज हुआ और एफआईआर की एक कौपी अशोक को भी दी गई. उस में साफ लिखा था कि सुमन ने उस टक्कर मारने वाली मोटरसाइकिल का नंबर देख तो लिया था, पर सदमे की वजह से वह उसे याद नहीं.

अगले दिन सुबह, एफआईआर की कौपी ले कर अशोक, मनोज के घर गया. उस ने मनोज को एफआईआर दिखाई और धमकी दी कि अगर 7 दिन के अंदर मनोज ने उसे 5 लाख रुपए नहीं दिए तो सुमन पुलिस को बता देगी कि दोषी मोटरसाइकिल का नंबर उसे याद आ गया. और वह पुलिस को सुनील की मोटरसाइकिल का नंबर दे देगी. यह कह कर, मनोज को दुविधा में डाल कर, अशोक वहां से मन ही मन मुसकराता हुआ चला गया. मनोज जानता था कि अगर सुनील पर मुकदमा चला तो शायद उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े. और अगर वह अपनी बेकसूरी साबित न कर सके तो उस के जेल जाने की नौबत भी आ सकती है.

मनोज ने सुनील को बुला कर उस से पूछा कि पिछली रात तकरीबन 10 बजे, जोकि एफआईआर के मुताबिक हादसे का समय था, वह कहां था? सुनील ने बताया कि पिछली रात वह कुछ दोस्तों के साथ एक मौल में रात का शो देखने गया था. यानी रात के साढ़े 8 से ले कर पौने 12 बजे तक वह मौल में ही था.

मनोज जानता था कि सुनील सच बोल रहा है, और अगर उस पर मुकदमा चला तो उस के दोस्त उस की तरफदारी में गवाही जरूर देंगे. पर फिर भी बदनामी तो होगी. मनोज मुकदमा दर्ज होने से पहले ही मामले को समाप्त करवाना चाहता था, पर अशोक को पैसे दे कर नहीं.

ये भी पढ़ें-मुआवजा

जब मनोज के दिमाग में कुछ सूझ नहीं आई तो वह अपनी समस्या ले कर अपने वकील के पास गया. उस के वकील ने मामले पर थोड़ी देर विचार किया और फिर हल सोच लिया. वह कोर्ट गया और वहां से एक आदेशपत्र हासिल किया. आदेशपत्र ले कर वह पुलिस अफसर, सुनील और मनोज के साथ उस मौल में गया जहां सुनील ने हादसे की रात को फिल्म देखी थी. उन्होंने आदेशपत्र दिखा कर, मौल के सारे सीसीटीवी कैमरों की उस रात की रिकौर्डिंग की छानबीन की. रिकौर्डिंग से साफ पता चलता है कि सुनील, रात के 8 बज कर 22 मिनट पर मौल की पार्किंग में घुसा था अपनी मोटरसाइकिल के साथ. 5 मिनट बाद उस ने मौल में प्रवेश किया. फिर पौने 12 बजे तक न सुनील, न उस की मोटरसाइकिल मौल से निकले. सुनील

12 बज कर 10 मिनट पर मौल से निकला और 4 मिनट के बाद मोटरसाइकिल पर मौल की पार्किंग से बाहर गया. इस से साफ जाहिर होता था कि सुमन के साथ हादसे के कथित समय पर सुनील मौल के अंदर था. मनोज के वकील ने इस बात की एफिडेविट अगले दिन कोर्ट में दर्ज करा दी.

2 दिन बाद मनोज, एफिडेविट की कौपी ले कर अशोक के घर गया. वहां उस ने अशोक और उस की पत्नी व उन की बेटी के सामने एफिडेविट की कौपी दिखाई और चेतावनी दी कि अगर सुमन ने पुलिस को झूठी गवाही दी, तो वह जेल जा सकती है. सुमन और उस की मां हक्कीबक्की रह गईं. उन को अशोक की इस घटिया योजना के बारे में बिलकुल खबर नहीं थी.

10 दिन बाद अशोक के मुकदमे की अगली सुनवाई हुई. जज ने दोनों भाइयों को अपने चैंबर में बुलाया. वहां उन्होंने दोनों को सलाह दी कि वे अपना समय व पैसा और कोर्ट का समय बरबाद करना छोड़ दें, आपस में समझौता कर लें. जज ने यह भी कहा कि झगडे़ को सुलझाने का सब से आसान तरीका था घर को बेच देना और मिली हुई कीमत को आधाआधा बांट लेना. अशोक, जिसे अपनी बीवी और बेटी के सामने काफी शर्मिंदा होना पड़ा था, जिस के अपने भाई से पैसे ऐंठने के सपने चूरचूर हो चुके थे, ने सचाई के आगे घुटने टेक दिए.

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February 28, 2020 at 09:00AM

1 comment:

  1. As stated by Stanford Medical, It's in fact the one and ONLY reason this country's women get to live 10 years longer and weigh 19 KG less than us.

    (And realistically, it is not related to genetics or some secret-exercise and EVERYTHING around "how" they eat.)

    BTW, I said "HOW", not "WHAT"...

    Click on this link to find out if this quick quiz can help you discover your real weight loss possibility

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