Wednesday 26 February 2020

अनाम रिश्ता: भाग-1

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गरमियों की छुट्टियों में जब इंदु मायके आई तो सबकुछ सामान्य प्रतीत हो रहा था. बस, एक ही कमी नजर आ रही थी, गोपी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. वह इस घर का पुराना नौकर था. इंदु को तो उस ने गोद में खिलाया था, उस से वह कुछ अधिक ही स्नेह करता था.इंदु के आने की भनक पड़ते ही वह दौड़ा आता था. वह हंसीहंसी में छेड़ भी देती, ‘गोपी, जरा तसल्ली से आया कर… कहीं गिर गया तो मुझे ही मरहमपट्टी करनी पड़ेगी. वैसे ही इस समय मैं बहुत थकी हुई हूं.’

‘अरे बिटिया, हमें मालूम है तुम थकी होगी पर क्या करें, तुम्हारे आने की बात सुन कर हम से रहा नहीं जाता.’

इंदु मन ही मन पुरानी घटनाओं को दोहरा रही थी और सोच रही थी कि गोपी अब आया कि अब आया. परंतु उस के आने के आसार न देख कर वह मां से पूछ बैठी, ‘‘मां, गोपी दिखाई नहीं दे रहा, क्या कहीं गया है?’’

‘‘वह तो मर गया,’’ मां ने सीधे सपाट स्वर में कहा.

एक क्षण को तो वह सन्न रह गई. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, बोली, ‘‘पिछली बार जब मैं यहां आई थी तब तो अच्छाभला था. अचानक ऐसा कैसे हो गया, अभी उस की उम्र ही क्या थी?’’

‘‘दमे का मरीज तो था ही. एक रात को सांस रुक गई. किसी को कुछ पता नहीं चला. सुबह देखा तो सब खत्म हो चुका था.’’

गोपी के बारे में जान कर मन बड़ा अनमना सा हो उठा, सो वह थकान का बहाना कर के कमरे में जा कर लेट गई और गोपी की स्मृतियों में खो गई.

अभी गोपी की उम्र ही क्या थी, मुश्किल से 45 साल का था. 15-16 साल का था जब गांव से भाग कर आया था. खेतीबाड़ी में मन नहीं लगता था, इसलिए बाप रोज मारता था. एक दिन गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया. वह दादी के गांव के पास के ही गांव का था. सो, पिताजी ने जब बाजार में घूमते हुए देखा तो सारा किस्सा जान कर घर लिवा लाए. तब से वह इस घर में आया तो यहीं का हो कर रह गया. दादी ने उसे अपने बेटे की तरह रखा.

अतीत की घटनाएं चलचित्र की भांति इंदु की आंखों के आगे घूमने लगीं.

वह छोटी सी थी तो उस के सारे काम गोपी ही किया करता था, जैसे स्कूल छोड़ने जाना, खाना देने जाना, स्कूल से वापस घर ले कर आना, शाम को घुमाने ले जाना वगैरहवगैरह. अकसर खेलखेल में वह अध्यापिका बनती थी और गोपी उस का शिष्य. पढ़ाई ठीक से न करने पर वह उसे मुरगा भी बनाती थी और स्केल से हथेलियों पर मार भी लगाती थी.

इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. इस बीच इंदु के और बहनभाई भी हो गए थे, परंतु गोपी उसी से विशेष स्नेह करता था. इसलिए उस के सारे काम वह बड़ी मुस्तैदी और प्रेम से करता था. चाहे और किसी का कोई काम हो न हो, इंदु का हर काम वक्त पर होता था. वह नियम गोपी सालों से निभाता आ रहा था. उस के पीछे तो वह घरवालों से झगड़ भी लेता था.

अगर पिताजी कुछ कहते तो नाराज हो कर कहता, ‘तुम किसी को डांटो, चाहे मारो, मुझे कुछ नहीं, पर मेरी बिटिया को कुछ मत कहना, जो कहना हो मुझ से कहो.’

10वीं कक्षा में पहुंचने तक उस को कुछकुछ समझ आने लगी थी. चंचलता का स्थान गंभीरता ने ले लिया था. इसीलिए उड़तीउड़ती खबरों से समझ आने लगा था कि गोपी का अपने गांव की किसी कमला नाम की औरत से इश्क का चक्कर चल रहा है. पूरी बात तो उसे मालूम नहीं थी क्योंकि न तो वह किसी से कुछ पूछने की हिम्मत कर पाती थी, न ही उसे कोई कुछ बताता था.

एक दिन दोपहर में सब लोग बड़े वाले कमरे में लेटे हुए थे कि अचानक बाहर किसी के जूते चरमराने की आवाज आई. सब समझ गए कि गोपी होगा. जब वह परदा हटा कर अंदर आया तो उसे नए कुरतेपाजामे में देख कर सब समझ गए कि आज कमला आई होगी. उसी से मिलने जनाब जा रहे हैं, सजधज कर.

‘भाभी, ओ भाभी, जरा सा खुशबू वाला तेल तो देना,’ गोपी खुशामदी लहजे में बोला.

उसे जब कोई मतलब होता था तो मां को ‘भाभी’ कहता था वरना तो हमेशा ‘बीबीजी’ ही कहता. मतलब उसे तभी होता था जब कमला आती थी.

इंदु ने अलमारी से तेल की शीशी निकाल कर थोड़ा सा तेल उसे दे दिया जिसे उस ने बालों में चुपड़ लिया. फिर वहीं पास में रखे एक पुराने कंघे से खूब जमाजमा कर बाल संवारे और शीशे में स्वयं को अच्छी तरह निहार कर जांचापरखा कि सब ठीक है या कुछ कसर है. जब संतुष्ट हो गया तो बाहर की ओर चल दिया पर दरवाजे तक जा कर रुक गया.

हम सब समझ गए कि अब पैसों का नंबर है.

‘भाभी, सो गईं क्या?’ वह बड़े लाड़ से बोला.

‘नहीं, बोल, क्या है?’ मां ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘थोड़े से पैसे चाहिए थे,’ गोपी ने धीरेधीरे अपनी बात पूरी की.

‘क्यों, क्या करेगा पैसों का? अभी कल ही तो ले गया था हजामत बनवाने को. अब क्या जरूरत आन पड़ी?’ मां ने झुंझला कर कहा.

इस पर वह खुशामदी हंसी हंसने लगा और बोला, ‘तुम जानती तो हो भाभी, फिर क्यों हमारे मुंह से कहलवाना चाहती हो?’

उस की बात सुन कर मां को गुस्सा आ गया. वे बोलीं, ‘अब मेरे पास पैसे नहीं हैं. इस महीने तू 2 बार पैसे ले चुका है. अब क्या मुसीबत आ पड़ी? हजामत भी बनवा ली, अपनी चहेती को फिल्म भी दिखा लाया. अब क्या रह गया?’

मां को क्रोधित देख कर गोपी थोड़ा उदास हो गया, रुक कर बोला, ‘कमला का लड़का बीमार है, उसे डाक्टर को दिखाना है.’

‘तू तो पूरा पागल है. वह किसी न किसी बहाने तुझ से पैसे ऐंठती रहती है और तू भी मूर्ख बना उस की हर बात पर आंखें मूंद कर भरोसा कर के लुटता रहता है.’

‘नहीं, भाभी, वह सच कह रही है,’ गोपी दृढ़तापूर्वक बोला.

‘कितने पैसे चाहिए?’ मां ने हथियार डालते हुए पूछा क्योंकि मालूम था कि वह मानने वाला तो है नहीं.

‘बस, 20 रुपए दे दो, ज्यादा नहीं चाहिए,’ गोपी शीघ्रतापूर्वक बोला कि कहीं मां का इरादा न बदल जाए.

‘जा इंदु, इसे रुपए दे दे,’ मां बोलीं.

इंदु ने उसे 20 रुपए ला कर दे दिए और शरारत से बोली, ‘क्यों गोपी भैया, डाक्टर के यहां कौन से शो में जाओगे, दोपहर वाले या शाम वाले?’

आगे पढ़ें- वह हमेशा की तरह शाम को 6 बजे लौटा, कमला को

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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गरमियों की छुट्टियों में जब इंदु मायके आई तो सबकुछ सामान्य प्रतीत हो रहा था. बस, एक ही कमी नजर आ रही थी, गोपी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. वह इस घर का पुराना नौकर था. इंदु को तो उस ने गोद में खिलाया था, उस से वह कुछ अधिक ही स्नेह करता था.इंदु के आने की भनक पड़ते ही वह दौड़ा आता था. वह हंसीहंसी में छेड़ भी देती, ‘गोपी, जरा तसल्ली से आया कर… कहीं गिर गया तो मुझे ही मरहमपट्टी करनी पड़ेगी. वैसे ही इस समय मैं बहुत थकी हुई हूं.’

‘अरे बिटिया, हमें मालूम है तुम थकी होगी पर क्या करें, तुम्हारे आने की बात सुन कर हम से रहा नहीं जाता.’

इंदु मन ही मन पुरानी घटनाओं को दोहरा रही थी और सोच रही थी कि गोपी अब आया कि अब आया. परंतु उस के आने के आसार न देख कर वह मां से पूछ बैठी, ‘‘मां, गोपी दिखाई नहीं दे रहा, क्या कहीं गया है?’’

‘‘वह तो मर गया,’’ मां ने सीधे सपाट स्वर में कहा.

एक क्षण को तो वह सन्न रह गई. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, बोली, ‘‘पिछली बार जब मैं यहां आई थी तब तो अच्छाभला था. अचानक ऐसा कैसे हो गया, अभी उस की उम्र ही क्या थी?’’

‘‘दमे का मरीज तो था ही. एक रात को सांस रुक गई. किसी को कुछ पता नहीं चला. सुबह देखा तो सब खत्म हो चुका था.’’

गोपी के बारे में जान कर मन बड़ा अनमना सा हो उठा, सो वह थकान का बहाना कर के कमरे में जा कर लेट गई और गोपी की स्मृतियों में खो गई.

अभी गोपी की उम्र ही क्या थी, मुश्किल से 45 साल का था. 15-16 साल का था जब गांव से भाग कर आया था. खेतीबाड़ी में मन नहीं लगता था, इसलिए बाप रोज मारता था. एक दिन गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया. वह दादी के गांव के पास के ही गांव का था. सो, पिताजी ने जब बाजार में घूमते हुए देखा तो सारा किस्सा जान कर घर लिवा लाए. तब से वह इस घर में आया तो यहीं का हो कर रह गया. दादी ने उसे अपने बेटे की तरह रखा.

अतीत की घटनाएं चलचित्र की भांति इंदु की आंखों के आगे घूमने लगीं.

वह छोटी सी थी तो उस के सारे काम गोपी ही किया करता था, जैसे स्कूल छोड़ने जाना, खाना देने जाना, स्कूल से वापस घर ले कर आना, शाम को घुमाने ले जाना वगैरहवगैरह. अकसर खेलखेल में वह अध्यापिका बनती थी और गोपी उस का शिष्य. पढ़ाई ठीक से न करने पर वह उसे मुरगा भी बनाती थी और स्केल से हथेलियों पर मार भी लगाती थी.

इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. इस बीच इंदु के और बहनभाई भी हो गए थे, परंतु गोपी उसी से विशेष स्नेह करता था. इसलिए उस के सारे काम वह बड़ी मुस्तैदी और प्रेम से करता था. चाहे और किसी का कोई काम हो न हो, इंदु का हर काम वक्त पर होता था. वह नियम गोपी सालों से निभाता आ रहा था. उस के पीछे तो वह घरवालों से झगड़ भी लेता था.

अगर पिताजी कुछ कहते तो नाराज हो कर कहता, ‘तुम किसी को डांटो, चाहे मारो, मुझे कुछ नहीं, पर मेरी बिटिया को कुछ मत कहना, जो कहना हो मुझ से कहो.’

10वीं कक्षा में पहुंचने तक उस को कुछकुछ समझ आने लगी थी. चंचलता का स्थान गंभीरता ने ले लिया था. इसीलिए उड़तीउड़ती खबरों से समझ आने लगा था कि गोपी का अपने गांव की किसी कमला नाम की औरत से इश्क का चक्कर चल रहा है. पूरी बात तो उसे मालूम नहीं थी क्योंकि न तो वह किसी से कुछ पूछने की हिम्मत कर पाती थी, न ही उसे कोई कुछ बताता था.

एक दिन दोपहर में सब लोग बड़े वाले कमरे में लेटे हुए थे कि अचानक बाहर किसी के जूते चरमराने की आवाज आई. सब समझ गए कि गोपी होगा. जब वह परदा हटा कर अंदर आया तो उसे नए कुरतेपाजामे में देख कर सब समझ गए कि आज कमला आई होगी. उसी से मिलने जनाब जा रहे हैं, सजधज कर.

‘भाभी, ओ भाभी, जरा सा खुशबू वाला तेल तो देना,’ गोपी खुशामदी लहजे में बोला.

उसे जब कोई मतलब होता था तो मां को ‘भाभी’ कहता था वरना तो हमेशा ‘बीबीजी’ ही कहता. मतलब उसे तभी होता था जब कमला आती थी.

इंदु ने अलमारी से तेल की शीशी निकाल कर थोड़ा सा तेल उसे दे दिया जिसे उस ने बालों में चुपड़ लिया. फिर वहीं पास में रखे एक पुराने कंघे से खूब जमाजमा कर बाल संवारे और शीशे में स्वयं को अच्छी तरह निहार कर जांचापरखा कि सब ठीक है या कुछ कसर है. जब संतुष्ट हो गया तो बाहर की ओर चल दिया पर दरवाजे तक जा कर रुक गया.

हम सब समझ गए कि अब पैसों का नंबर है.

‘भाभी, सो गईं क्या?’ वह बड़े लाड़ से बोला.

‘नहीं, बोल, क्या है?’ मां ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘थोड़े से पैसे चाहिए थे,’ गोपी ने धीरेधीरे अपनी बात पूरी की.

‘क्यों, क्या करेगा पैसों का? अभी कल ही तो ले गया था हजामत बनवाने को. अब क्या जरूरत आन पड़ी?’ मां ने झुंझला कर कहा.

इस पर वह खुशामदी हंसी हंसने लगा और बोला, ‘तुम जानती तो हो भाभी, फिर क्यों हमारे मुंह से कहलवाना चाहती हो?’

उस की बात सुन कर मां को गुस्सा आ गया. वे बोलीं, ‘अब मेरे पास पैसे नहीं हैं. इस महीने तू 2 बार पैसे ले चुका है. अब क्या मुसीबत आ पड़ी? हजामत भी बनवा ली, अपनी चहेती को फिल्म भी दिखा लाया. अब क्या रह गया?’

मां को क्रोधित देख कर गोपी थोड़ा उदास हो गया, रुक कर बोला, ‘कमला का लड़का बीमार है, उसे डाक्टर को दिखाना है.’

‘तू तो पूरा पागल है. वह किसी न किसी बहाने तुझ से पैसे ऐंठती रहती है और तू भी मूर्ख बना उस की हर बात पर आंखें मूंद कर भरोसा कर के लुटता रहता है.’

‘नहीं, भाभी, वह सच कह रही है,’ गोपी दृढ़तापूर्वक बोला.

‘कितने पैसे चाहिए?’ मां ने हथियार डालते हुए पूछा क्योंकि मालूम था कि वह मानने वाला तो है नहीं.

‘बस, 20 रुपए दे दो, ज्यादा नहीं चाहिए,’ गोपी शीघ्रतापूर्वक बोला कि कहीं मां का इरादा न बदल जाए.

‘जा इंदु, इसे रुपए दे दे,’ मां बोलीं.

इंदु ने उसे 20 रुपए ला कर दे दिए और शरारत से बोली, ‘क्यों गोपी भैया, डाक्टर के यहां कौन से शो में जाओगे, दोपहर वाले या शाम वाले?’

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February 27, 2020 at 09:50AM

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