Monday 24 February 2020

दुर्घटना पर्यटन: भाग-3

कन्हैयालाल ने जब कहा कि उन की पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी तो वकील साहब ने फिर मुसकरा कर अनुरोध किया कि कन्हैयाजी इस मुकदमे के लिहाज से अपनी पत्नी उन्हें सौंप दें. कन्हैयालाल इस बेहूदी बात को सुन कर भड़क उठे तो वकील साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बात को सुधारते हुए उन्होंने कहना चाहा कि उन का मतलब यह था कि अपनी पत्नी का दिल उन्हें सौंप दें और चिंता न करें. पर यह कहने से पहले एक बार फिर वे स्वयं संभल गए और बात साफ की कि स्वस्थ पत्नी को अस्वस्थ कर देना उन के बाएं हाथ का खेल था, इसे वे अपनी पहचान के डाक्टरों की मदद से संभाल लेंगे, कन्हैयाजी चिंता न करें.

कन्हैयालाल ने कहा कि उत्तर वे सोच कर देंगे. पहले तो उन्हें कार को सिनेमा की पार्किंग से क्रेन द्वारा उठवा कर सर्विस स्टेशन पहुंचाने का काम करना था वरना कारपार्किंग का मीटर चलता रहेगा. वकील साहब ने फिर समझाया कि वे इस में भी जल्दबाजी से काम न लें, इंश्योरैंस वालों के बजाय कारनिर्माताओं से पहले बात कर लें फिर कार को बीमा वालों की जगह कार निर्माता स्वयं ले जाएंगे और उन्हें अपनी कंपनी की साख बचाने की जरा सी भी चिंता होगी तो सर्विस स्टेशन के बजाय कहीं अज्ञातवास में ले जाएंगे और तब तक उसे वहां गुप्त रूप से रखेंगे जब तक जनता की बदनाम स्मरणशक्ति अगले किसी राजनीतिक स्कैम में उलझ कर इस घटना को पूरी तरह भूल न जाए. बात धीरेधीरे कन्हैयालाल को जम रही थी. वैसे भी आज रविवार होने के कारण कागजी कार्यवाही कुछ आगे बढ़ने की आशा तो थी नहीं. पार्किंग वालों से ही कहना होगा कि कार अभी 1 दिन और वहीं रहेगी.

नाश्ता करने के बाद कन्हैयालाल मौल की कारपार्किंग में गए तो रास्तेभर सोचते गए कि 2 दिन लगातार पार्किंग में कार रखने के लिए वे पार्किंगचार्ज में डिस्काउंट मांगेंगे. पर जब पार्किंग वाले से बात हुई तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ जब उस ने कहा, ‘‘साहब, आप का पहले ही बहुत नुकसान हो गया है, अब आप से पैसे क्या मांगें. रखो कार, आप को जब तक रखना हो, हम पैसे नहीं लेंगे.’’

कन्हैयालाल तुरंत भांप गए कि दाल में कुछ काला है, इतनी मोहममता इस के दिल में कहां से उपज आई. उन्होंने थाह लेने के लिए कहा, ‘‘नहीं भाई, छोड़ो, मैं सोचता हूं इसे अब ले ही जाऊं,’’ तो पार्किंग वाला बिलकुल ही घबरा गया. बोला, ‘‘अरे नहीं साहब, ऐसा न करो, आज तो रहने दो, संडे का दिन है.’’

कन्हैयालाल को कोई शक बाकी नहीं रह गया कि दाल में कुछ काला नहीं था बल्कि पूरी दाल ही काली थी. अंत में उन्होंने बात खुलवा ही ली. और तय यह हुआ कि कार दिनभर वहां छोड़ने के वे पार्किंग वालों से 2 हजार रुपए लेंगे. हां, रुपए वे लेंगे, देंगे नहीं, यही तय हुआ. हुआ यह था कि पुलिस के द्वारा बाहर भगा दिए जाने के बाद भी कई लोगों ने फिर अंदर आ कर फूंकी हुई कार देखने की इच्छा प्रकट की थी तो पार्किंग वाले ने उन से कहा था कि बिना पार्किंगचार्ज लिए अंदर वह किसी को पैदल भी नहीं आने देगा और इस के बाद उस ने 40 लोगों से प्रतिव्यक्ति 20 रुपए वसूल कर के पिछली रात ही लगभग 800 रुपए बना लिए थे.

रात देर हो गई थी, इसलिए और लोग नहीं आए पर आज संडे होने के कारण रात वालों से आंखों देखा हाल सुन कर कम से कम 250-300 लोग तो उस कार को देखने आएंगे ही और उसे उम्मीद थी कि 20 रुपए के रेट से वह 5-7 हजार रुपए कमा ही लेगा. इसीलिए कन्हैयालाल को वह 2 हजार रुपए रौयल्टी के दे रहा था. सोमवार से शुक्रवार तक तो दर्शक कम आएंगे पर अगले सप्ताहांत तक गाड़ी छोड़ सकें तो कन्हैयालाल को उस के लिए अलग से वह 4 हजार रुपए पेशगी देने को तैयार था.

पार्किंग वाले से व्यापारवार्त्ता चल ही रही थी कि पार्किंग वाले और कन्हैयालाल का ध्यान एक आदमी ने अपनी तरफ खींचा. उस ने जेब से विजिटिंग कार्ड निकाल कर अपना परिचय दिया कि वह ‘दैनिक अफवाह’ समाचारपत्र का संवाददाता है और अपने समाचारपत्र के लिए जली हुई कार का फोटो खींचना चाहता है. पार्किंग वाले ने कन्हैयालाल को आंख मारी और कन्हैयालाल ने चौकन्ने हो कर उस से कहा, ‘‘इस के लिए आप को 5 हजार रुपए देने होंगे,’’ वह बेचारा बहुत गरीब अखबार का अत्यंत गरीब संवाददाता निकला. अभी वह रिरिया ही रहा था और कन्हैयालाल उसे कुछ छूट देने की सोच ही रहे थे कि पार्किंग गेट से दौड़ता हुआ एक लड़का आया और बेहद उत्तेजित हो कर खुशी से नाचते हुए बोला, ‘‘‘परसों तक’ टीवी चैनल वाले आए हैं और अपनी गाड़ी, जिस पर उन का बहुत बड़ा सा एरियल लगा हुआ है, अंदर लाने के लिए बैरियर का बांस हटाने को कह रहे हैं और इस के लिए बजाय 20 रुपए के 1 हजार रुपए देने को तैयार हैं.’’

कन्हैयालाल ने उसे जोर से डांट लगा कर कहा, ‘‘अबे, पागल हो गया है. मेरे पास भेज दे, 10 हजार से 1 रुपया कम न लेंगे हम,’’ अब तक पार्किंग के ठेकेदार के साथ उन्होंने आंखों ही आंखों में पार्टनरशिप का करार कर लिया था. लड़के को, जो वापस जा रहा था, पीछे से आवाज दे कर उन्होंने कहा, ‘‘और देख, बता दीजो कि कार मालिक और पार्किंग के ठेकेदार का इंटरव्यू करना हो तो उस के 10-10 हजार रुपए अलग से लगेंगे.’’

‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता, जो इतनी बड़ीबड़ी रकमों को सुन कर बेहोश होता सा लग रहा था, घिघियाता हुआ बोला, ‘‘सरजी, वे तो न्यूज चैनल वाले हैं, आप उन्हें स्टिल फोटोग्राफी के राइट्स मत देना. मैं अभी अपने संपादक से बात कर के बताता हूं कि मैं इस के लिए आप को कितने तक दे पाऊंगा,’’ और वह एक किनारे खड़ा हो कर अपने मोबाइल पर कोई नंबर मिलाने लगा.

तभी ‘परसों तक’ चैनल के आईडी कार्ड को गले में लटकाए चैनल की टीम का जो व्यक्ति वहां आया उस की ब्रैंडेड कंपनी की नीली जींस और धूप के चश्मे से सुसज्जित व्यक्तित्व के आगे ‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता बिलकुल फटेहाल सा लगने लगा.

आगे पढ़ें- कन्हैयालाल से उस ने शानदार अमेरिकन ऐक्सैंट वाली…

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कन्हैयालाल ने जब कहा कि उन की पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी तो वकील साहब ने फिर मुसकरा कर अनुरोध किया कि कन्हैयाजी इस मुकदमे के लिहाज से अपनी पत्नी उन्हें सौंप दें. कन्हैयालाल इस बेहूदी बात को सुन कर भड़क उठे तो वकील साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बात को सुधारते हुए उन्होंने कहना चाहा कि उन का मतलब यह था कि अपनी पत्नी का दिल उन्हें सौंप दें और चिंता न करें. पर यह कहने से पहले एक बार फिर वे स्वयं संभल गए और बात साफ की कि स्वस्थ पत्नी को अस्वस्थ कर देना उन के बाएं हाथ का खेल था, इसे वे अपनी पहचान के डाक्टरों की मदद से संभाल लेंगे, कन्हैयाजी चिंता न करें.

कन्हैयालाल ने कहा कि उत्तर वे सोच कर देंगे. पहले तो उन्हें कार को सिनेमा की पार्किंग से क्रेन द्वारा उठवा कर सर्विस स्टेशन पहुंचाने का काम करना था वरना कारपार्किंग का मीटर चलता रहेगा. वकील साहब ने फिर समझाया कि वे इस में भी जल्दबाजी से काम न लें, इंश्योरैंस वालों के बजाय कारनिर्माताओं से पहले बात कर लें फिर कार को बीमा वालों की जगह कार निर्माता स्वयं ले जाएंगे और उन्हें अपनी कंपनी की साख बचाने की जरा सी भी चिंता होगी तो सर्विस स्टेशन के बजाय कहीं अज्ञातवास में ले जाएंगे और तब तक उसे वहां गुप्त रूप से रखेंगे जब तक जनता की बदनाम स्मरणशक्ति अगले किसी राजनीतिक स्कैम में उलझ कर इस घटना को पूरी तरह भूल न जाए. बात धीरेधीरे कन्हैयालाल को जम रही थी. वैसे भी आज रविवार होने के कारण कागजी कार्यवाही कुछ आगे बढ़ने की आशा तो थी नहीं. पार्किंग वालों से ही कहना होगा कि कार अभी 1 दिन और वहीं रहेगी.

नाश्ता करने के बाद कन्हैयालाल मौल की कारपार्किंग में गए तो रास्तेभर सोचते गए कि 2 दिन लगातार पार्किंग में कार रखने के लिए वे पार्किंगचार्ज में डिस्काउंट मांगेंगे. पर जब पार्किंग वाले से बात हुई तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ जब उस ने कहा, ‘‘साहब, आप का पहले ही बहुत नुकसान हो गया है, अब आप से पैसे क्या मांगें. रखो कार, आप को जब तक रखना हो, हम पैसे नहीं लेंगे.’’

कन्हैयालाल तुरंत भांप गए कि दाल में कुछ काला है, इतनी मोहममता इस के दिल में कहां से उपज आई. उन्होंने थाह लेने के लिए कहा, ‘‘नहीं भाई, छोड़ो, मैं सोचता हूं इसे अब ले ही जाऊं,’’ तो पार्किंग वाला बिलकुल ही घबरा गया. बोला, ‘‘अरे नहीं साहब, ऐसा न करो, आज तो रहने दो, संडे का दिन है.’’

कन्हैयालाल को कोई शक बाकी नहीं रह गया कि दाल में कुछ काला नहीं था बल्कि पूरी दाल ही काली थी. अंत में उन्होंने बात खुलवा ही ली. और तय यह हुआ कि कार दिनभर वहां छोड़ने के वे पार्किंग वालों से 2 हजार रुपए लेंगे. हां, रुपए वे लेंगे, देंगे नहीं, यही तय हुआ. हुआ यह था कि पुलिस के द्वारा बाहर भगा दिए जाने के बाद भी कई लोगों ने फिर अंदर आ कर फूंकी हुई कार देखने की इच्छा प्रकट की थी तो पार्किंग वाले ने उन से कहा था कि बिना पार्किंगचार्ज लिए अंदर वह किसी को पैदल भी नहीं आने देगा और इस के बाद उस ने 40 लोगों से प्रतिव्यक्ति 20 रुपए वसूल कर के पिछली रात ही लगभग 800 रुपए बना लिए थे.

रात देर हो गई थी, इसलिए और लोग नहीं आए पर आज संडे होने के कारण रात वालों से आंखों देखा हाल सुन कर कम से कम 250-300 लोग तो उस कार को देखने आएंगे ही और उसे उम्मीद थी कि 20 रुपए के रेट से वह 5-7 हजार रुपए कमा ही लेगा. इसीलिए कन्हैयालाल को वह 2 हजार रुपए रौयल्टी के दे रहा था. सोमवार से शुक्रवार तक तो दर्शक कम आएंगे पर अगले सप्ताहांत तक गाड़ी छोड़ सकें तो कन्हैयालाल को उस के लिए अलग से वह 4 हजार रुपए पेशगी देने को तैयार था.

पार्किंग वाले से व्यापारवार्त्ता चल ही रही थी कि पार्किंग वाले और कन्हैयालाल का ध्यान एक आदमी ने अपनी तरफ खींचा. उस ने जेब से विजिटिंग कार्ड निकाल कर अपना परिचय दिया कि वह ‘दैनिक अफवाह’ समाचारपत्र का संवाददाता है और अपने समाचारपत्र के लिए जली हुई कार का फोटो खींचना चाहता है. पार्किंग वाले ने कन्हैयालाल को आंख मारी और कन्हैयालाल ने चौकन्ने हो कर उस से कहा, ‘‘इस के लिए आप को 5 हजार रुपए देने होंगे,’’ वह बेचारा बहुत गरीब अखबार का अत्यंत गरीब संवाददाता निकला. अभी वह रिरिया ही रहा था और कन्हैयालाल उसे कुछ छूट देने की सोच ही रहे थे कि पार्किंग गेट से दौड़ता हुआ एक लड़का आया और बेहद उत्तेजित हो कर खुशी से नाचते हुए बोला, ‘‘‘परसों तक’ टीवी चैनल वाले आए हैं और अपनी गाड़ी, जिस पर उन का बहुत बड़ा सा एरियल लगा हुआ है, अंदर लाने के लिए बैरियर का बांस हटाने को कह रहे हैं और इस के लिए बजाय 20 रुपए के 1 हजार रुपए देने को तैयार हैं.’’

कन्हैयालाल ने उसे जोर से डांट लगा कर कहा, ‘‘अबे, पागल हो गया है. मेरे पास भेज दे, 10 हजार से 1 रुपया कम न लेंगे हम,’’ अब तक पार्किंग के ठेकेदार के साथ उन्होंने आंखों ही आंखों में पार्टनरशिप का करार कर लिया था. लड़के को, जो वापस जा रहा था, पीछे से आवाज दे कर उन्होंने कहा, ‘‘और देख, बता दीजो कि कार मालिक और पार्किंग के ठेकेदार का इंटरव्यू करना हो तो उस के 10-10 हजार रुपए अलग से लगेंगे.’’

‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता, जो इतनी बड़ीबड़ी रकमों को सुन कर बेहोश होता सा लग रहा था, घिघियाता हुआ बोला, ‘‘सरजी, वे तो न्यूज चैनल वाले हैं, आप उन्हें स्टिल फोटोग्राफी के राइट्स मत देना. मैं अभी अपने संपादक से बात कर के बताता हूं कि मैं इस के लिए आप को कितने तक दे पाऊंगा,’’ और वह एक किनारे खड़ा हो कर अपने मोबाइल पर कोई नंबर मिलाने लगा.

तभी ‘परसों तक’ चैनल के आईडी कार्ड को गले में लटकाए चैनल की टीम का जो व्यक्ति वहां आया उस की ब्रैंडेड कंपनी की नीली जींस और धूप के चश्मे से सुसज्जित व्यक्तित्व के आगे ‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता बिलकुल फटेहाल सा लगने लगा.

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February 25, 2020 at 09:50AM

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