Monday 24 February 2020

इक सफर सुहाना

अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’

‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’

‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’

वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’

अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.

‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.

अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’

वीना का जोश झाग के समान बैठ गया, ‘‘मेरे पास कहां से आएंगे. तुम्हारे बैंक में कुछ तो होंगे ही. जाना तो बहुत जरूरी है.’’

‘‘यही तो चिंता है. अनु भी अब 14 वर्ष की होने वाली है, उस का भी पूरा टिकट लगेगा. मनु साढ़े 6 का हो गया है, इसलिए आधा टिकट उस का भी लेना पड़ेगा. आनेजाने का भाड़ा ही कितना हो जाएगा. कहां मेरठ और कहां बंबई, लिख देंगे रेल में आरक्षण नहीं मिला, इसलिए नहीं आ सकते. अब परिवार के साथ बिना आरक्षण के इतना लंबा सफर तो हो नहीं सकता या लिख देंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

वीना चुप हो गई. पति भी सच्चे थे. इतना खर्चा करना आजकल हर किसी के बूते की बात तो है नहीं, पर जाए बिना भी गुजारा नहीं था. वह सोचने लगी, दीदी का 1 ही तो बेटा है, उसी के ब्याह में न पहुंचे तो जीवनभर उलाहने सुनने पड़ेंगे. वैसे बंबई जाने का लोभ वह स्वयं भी संवरण नहीं कर पा रही थी. मेरठ में रहते हुए बंबई उस के लिए लंदन, न्यूयार्क से कम नहीं था.

‘‘किसी तरह खर्चा कम नहीं किया जा सकता?’’ वह ठुड्डी पर हाथ रखती हुई बोली.

‘‘अब रेल में दूसरे दरजे से तो कम कुछ है नहीं. हां, यह हो सकता है कि तुम अकेली ही हो आओ. मैं काम का बहाना कर लूंगा,’’ अजीत उस की उत्सुकता को भांपते हुए बोला.

अब तक दोनों बच्चों को बंबई जाने की भनक लग गई थी. अपने कमरे से ही चिल्लाए, ‘‘विनय भैया की शादी में हम जरूर जाएंगे.’’

‘‘काम की बात कभी सुनाई नहीं देती पर अपने मतलब की बात वहां बैठे भी सुनाई दे गई,’’ अजीत भन्नाया.

वीना के दिमाग में नएनए विचार आ कर उथलपुथल मचा रहे थे. अचानक अजीत के पास सरकती हुई फुसफुसाई, ‘ऐसा करते हैं, अनु का तो आधा टिकट ले लेते हैं और मनु का लेते ही नहीं. दोनों दुबलेपतले से तो हैं. अपनी उम्र से कम ही लगते हैं. अनु को साढ़े 11 वर्ष की बता देंगे और मनु को सवा 4 वर्ष का.’

अजीत ने हिसाब लगाया कि ऐसे फर्क तो काफी पड़ जाएगा. दो आधी टिकटें कम हो जाएंगी. आनेजाने का मिला कर 2 टिकटों के पैसे बच जाएंगे. वीना का विचार तो सही है.

‘‘पर अगर पकड़े गए तो?’’ उस ने धीरे से पूछा.

‘‘अरे, कैसे पकड़े जाएंगे?’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘गाड़ी में कोई प्रमाणपत्र थोड़े ही मांगता है. इस महंगाई के जमाने में सब लोग ऐसा ही करते हैं, हम कोई निराले थोड़े ही हैं. हमारे जरा से झूठ बोलने से कौन सी रेलें चलनी बंद हो जाएंगी.’’

अजीत को बात समझ में आ गई, ‘‘पर टिकट चैकर को तुम्हीं संभालना, मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा.’’

‘‘ठीक है, तुम पहले आरक्षण तो करवाओ. अरे, यही पैसा खरीदारी में काम आ जाएगा. सब जाएंगे तो दीदी भी खुश हो जाएंगी,’’ वीना चहकने लगी. आखिर उसे अपना बंबई घूमने का सपना साकार होता नजर आ रहा था.

अजीत ने भागदौड़ कर के सीटें आरक्षित करवा लीं. दीदी को देने के लिए सामान भी खरीद लिया. वीना सारी तैयारी खूब सोचसमझ कर कर रही थी.

सफर पर रवाना होने से पहले उस ने अनु को एक पुरानी, छोटी हो चुकी फ्रौक पहना दी और कानों के ऊपर कस कर 2 चोटियां बना दीं.

‘‘अब इसे 10 वर्ष के ऊपर कौन मान सकता है. मनु तो दुबलापतला सा है, सो जब टिकट चैकर आएगा तो उसे मैं गोद में ले लूंगी. किसी को शक तक नहीं होगा,’’ वीना ने पति से कहा.

अगले दिन शाम को सपरिवार बंबई के लिए निकल पड़े. स्टेशन पहुंचने के बाद थोड़ी देर इंतजार के बाद ट्रेन आ गई. ट्रेन आते ही एकएक कर सभी ट्रेन में बैठ गए.

टे्रन का सफर बड़ा अच्छा कट रहा था. 3 स्टेशन निकल चुके थे और कोई टिकट चैकर नहीं आया था.

‘‘रात में तो वैसे भी कोई नहीं आएगा,’’ वीना बोली, ‘‘फिर कल सुबह तक तो बंबई पहुंच ही जाएंगे. बाहर निकलते समय कौन पूछता है यह सब.’’

शाम की चाय पी कर दोनों बाहर डूबते हुए सूरज का दृश्य निहार रहे थे. हरेभरे खेतों और उन पर फैली हुई सूरज की लालिमा को देखते हुए दोनों मुग्ध हो रहे थे.

‘‘सब कितना सुंदर लग रहा है,’’ वीना पति के कंधे पर सिर टिकाती हुई बोली.

तभी डब्बे में कुछ हलचल होने लगी.

‘‘टिकट चैकर आ रहा है,’’ अजीत बोला और जल्दी से चादर ओढ़ कर लेट गया, ‘‘टिकटें तुम्हारे पर्स में ही हैं.’’

टिकट चैकर आया तो वीना ने तीनों टिकटें दिखा दीं. चैकर ने चारों के चेहरों को ध्यान से देखा. मनु को अजीत ने अपने साथ ही लिटा लिया था.

‘‘बेटा अभी सवा 4 साल का ही है,’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘यह इस बिटिया का आधा टिकट है.’’

अनु खिड़की से सिर टिकाए एक उपन्यास पढ़ रही थी. मां की बात सुन कर वह जरा सी हंसी और फिर अपनी पुस्तक में खो गई.

‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ती हो, बेटी?’’ टिकट चैकर ने उस के हाथ में पकड़े उपन्यास को घूरते हुए पूछा.

वीना हड़बड़ा गई कि अब अनु कहीं सब गुड़गोबर न कर दे.

‘‘यह छठी में पढ़ती है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘बड़ी होशियार है. पढ़ने का बहुत शौक है. सदा कुछ न कुछ पढ़ती रहती है. इस उम्र में ही इतनी बड़ीबड़ी पुस्तकें पढ़ने लगी है. अनु, जरा इन्हें अपना उपन्यास तो दिखाना. मैं तो मना करती रहती हूं कि चश्मा लग जाएगा. इतना मत पढ़, पर मानती ही नहीं है. आजकल के बच्चों को समझाना बड़ा कठिन है.’’

‘‘घरघर यही हाल है, बहनजी, आजकल के बच्चे किसी की नहीं सुनते. पर आप की बच्ची को अभी से पढ़ने का इतना शौक है वरना आजकल बच्चे तो पुस्तकों से कोसों दूर भागते हैं. मेरे तो तीनों बच्चे नालायक हैं. बस, फिल्मों की पूरी खबर रखते हैं. पता नहीं बड़े हो कर क्या करेंगे?’’

गाड़ी धीमी हो गई थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था. टिकट चैकर उठ कर दरवाजे के पास चला गया. वीना ने चैन की सांस ली. एक बड़ी मुसीबत से पार पा लिया था. ‘अब, वापसी में भी ऐसे ही आसानी से बात बन जाए तो

इस झंझट से छुटकारा मिले,’ वीना सोच रही थी.

अजीत हंसता हुआ उठ गया, ‘‘तुम ने तो उसे एकदम बुद्धू बना दिया. मुझ से न हो पाता.’’

डब्बे में एक चौकलेट बेचने वाला घूम रहा था.

‘‘मां, एक बड़ा वाला चौकलेट दिलवा दो,’’ मनु जिद करने लगा. पिता के उठते ही वह भी उठ कर बैठ गया.

‘‘अरे नहीं, बहुत महंगा है. यह ले, मैं तेरे लिए कितने बढि़या शक्करपारे बना कर लाई हूं. तुझे तो ये बहुत पसंद हैं,’’ वीना उसे प्यार से समझाती हुई बोली.

‘‘नहीं दिलाओगी क्या?’’ वह मां को घूरते हुए बोला, ‘‘ठीक है, तब मैं टिकट चैकर चाचा को बता दूंगा कि दीदी तो 14 साल की हैं और मैं 7 साल का. मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता हूं. फिर भी इन्होंने मेरा टिकट नहीं लिया.’’

अजीत ने जल्दी से उस के मुंह पर हाथ रख दिया. गनीमत थी कि उस समय किसी ने अनु की बात नहीं सुनी. कोई सुन लेता तो कितनी बेइज्जती होती.

‘‘इधर आना भई,’’ अजीत ने चौकलेट वाले को पुकारा. जिस महंगे चौकलेट की मनु फरमाइश कर रहा था, वह उसे दिलवा दिया.

‘‘इस शैतान को सब बताने की क्या आवश्यकता थी,’’ फिर वह वीना पर बिगड़ा.

‘‘अरे, मैं ने कब बताया. जाने चोरीछिपे क्याक्या सुनता रहता है,’’ वह परेशान हो कर बोली, फिर मनु को जोर से झिंझोड़ते हुए डांटा, ‘‘अब खबरदार जो तू ने मुंह खोला.’’

पर मनु को भला इन सब बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था हर स्टेशन पर किसी न किसी ऊलजलूल वस्तु की फरमाइश करता रहता. मना करने पर धौंस दिखाता, ‘अच्छा, मैं अभी टिकट चैकर चाचा को आप की सारी चालाकी बताता हूं.’

वीना और अजीत हार कर उस की हर फरमाइश पूरी करते जाते. उधर अनु अलग मुंह फुलाए भुनाभुना रही थी, ‘डब्बे में कहीं घूम भी नहीं सकती, इतनी छोटी सी फ्रौक पहना दी है. बाल भी गंवारों से गूंथ दिए हैं. टिकट नहीं खरीद सकते थे तो मुझे लाए ही क्यों? मेरठ में ही क्यों नहीं छोड़ दिया? आगे से आप लोगों के साथ कहीं नहीं जाऊंगी. हमें तो कहते रहते हैं कि झूठ मत बोलो और आप इतने बड़ेबड़े झूठ बोलते हैं.’

बंबई पहुंचने पर सामान उतरवाते ही अजीत बोला, ‘‘तुम लोग जरा यहां रुको, मैं अभी आया.’’

‘‘कहां भागे जा रहे हो?’’ वीना इतनी भीड़ देख कर घबरा गई, ‘‘अब तो पहले घर पहुंचने की बात करो. इतने लंबे सफर के बाद बुरी हालत हो गई है.’’

‘‘वापसी का सफर आराम से करो. उसी का प्रबंध करने जा रहा हूं. पहले इन बच्चों के टिकटे ठीक से बनवा लाऊं, हो गई बहुत बचत. आज से अपनी ‘सुपर’ योजनाएं अपने तक ही सीमित रखना, मुझे बीच में मत फंसाना.’’

वीना उत्तर में केवल सिर झुकाए खड़ी रही. इस से अधिक वह कर भी क्या सकती थी. जिस जोश से वह घर से निकली थी वह अब ठंडा पड़ चुका था.

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अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’

‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’

‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’

वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’

अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.

‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.

अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’

वीना का जोश झाग के समान बैठ गया, ‘‘मेरे पास कहां से आएंगे. तुम्हारे बैंक में कुछ तो होंगे ही. जाना तो बहुत जरूरी है.’’

‘‘यही तो चिंता है. अनु भी अब 14 वर्ष की होने वाली है, उस का भी पूरा टिकट लगेगा. मनु साढ़े 6 का हो गया है, इसलिए आधा टिकट उस का भी लेना पड़ेगा. आनेजाने का भाड़ा ही कितना हो जाएगा. कहां मेरठ और कहां बंबई, लिख देंगे रेल में आरक्षण नहीं मिला, इसलिए नहीं आ सकते. अब परिवार के साथ बिना आरक्षण के इतना लंबा सफर तो हो नहीं सकता या लिख देंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

वीना चुप हो गई. पति भी सच्चे थे. इतना खर्चा करना आजकल हर किसी के बूते की बात तो है नहीं, पर जाए बिना भी गुजारा नहीं था. वह सोचने लगी, दीदी का 1 ही तो बेटा है, उसी के ब्याह में न पहुंचे तो जीवनभर उलाहने सुनने पड़ेंगे. वैसे बंबई जाने का लोभ वह स्वयं भी संवरण नहीं कर पा रही थी. मेरठ में रहते हुए बंबई उस के लिए लंदन, न्यूयार्क से कम नहीं था.

‘‘किसी तरह खर्चा कम नहीं किया जा सकता?’’ वह ठुड्डी पर हाथ रखती हुई बोली.

‘‘अब रेल में दूसरे दरजे से तो कम कुछ है नहीं. हां, यह हो सकता है कि तुम अकेली ही हो आओ. मैं काम का बहाना कर लूंगा,’’ अजीत उस की उत्सुकता को भांपते हुए बोला.

अब तक दोनों बच्चों को बंबई जाने की भनक लग गई थी. अपने कमरे से ही चिल्लाए, ‘‘विनय भैया की शादी में हम जरूर जाएंगे.’’

‘‘काम की बात कभी सुनाई नहीं देती पर अपने मतलब की बात वहां बैठे भी सुनाई दे गई,’’ अजीत भन्नाया.

वीना के दिमाग में नएनए विचार आ कर उथलपुथल मचा रहे थे. अचानक अजीत के पास सरकती हुई फुसफुसाई, ‘ऐसा करते हैं, अनु का तो आधा टिकट ले लेते हैं और मनु का लेते ही नहीं. दोनों दुबलेपतले से तो हैं. अपनी उम्र से कम ही लगते हैं. अनु को साढ़े 11 वर्ष की बता देंगे और मनु को सवा 4 वर्ष का.’

अजीत ने हिसाब लगाया कि ऐसे फर्क तो काफी पड़ जाएगा. दो आधी टिकटें कम हो जाएंगी. आनेजाने का मिला कर 2 टिकटों के पैसे बच जाएंगे. वीना का विचार तो सही है.

‘‘पर अगर पकड़े गए तो?’’ उस ने धीरे से पूछा.

‘‘अरे, कैसे पकड़े जाएंगे?’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘गाड़ी में कोई प्रमाणपत्र थोड़े ही मांगता है. इस महंगाई के जमाने में सब लोग ऐसा ही करते हैं, हम कोई निराले थोड़े ही हैं. हमारे जरा से झूठ बोलने से कौन सी रेलें चलनी बंद हो जाएंगी.’’

अजीत को बात समझ में आ गई, ‘‘पर टिकट चैकर को तुम्हीं संभालना, मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा.’’

‘‘ठीक है, तुम पहले आरक्षण तो करवाओ. अरे, यही पैसा खरीदारी में काम आ जाएगा. सब जाएंगे तो दीदी भी खुश हो जाएंगी,’’ वीना चहकने लगी. आखिर उसे अपना बंबई घूमने का सपना साकार होता नजर आ रहा था.

अजीत ने भागदौड़ कर के सीटें आरक्षित करवा लीं. दीदी को देने के लिए सामान भी खरीद लिया. वीना सारी तैयारी खूब सोचसमझ कर कर रही थी.

सफर पर रवाना होने से पहले उस ने अनु को एक पुरानी, छोटी हो चुकी फ्रौक पहना दी और कानों के ऊपर कस कर 2 चोटियां बना दीं.

‘‘अब इसे 10 वर्ष के ऊपर कौन मान सकता है. मनु तो दुबलापतला सा है, सो जब टिकट चैकर आएगा तो उसे मैं गोद में ले लूंगी. किसी को शक तक नहीं होगा,’’ वीना ने पति से कहा.

अगले दिन शाम को सपरिवार बंबई के लिए निकल पड़े. स्टेशन पहुंचने के बाद थोड़ी देर इंतजार के बाद ट्रेन आ गई. ट्रेन आते ही एकएक कर सभी ट्रेन में बैठ गए.

टे्रन का सफर बड़ा अच्छा कट रहा था. 3 स्टेशन निकल चुके थे और कोई टिकट चैकर नहीं आया था.

‘‘रात में तो वैसे भी कोई नहीं आएगा,’’ वीना बोली, ‘‘फिर कल सुबह तक तो बंबई पहुंच ही जाएंगे. बाहर निकलते समय कौन पूछता है यह सब.’’

शाम की चाय पी कर दोनों बाहर डूबते हुए सूरज का दृश्य निहार रहे थे. हरेभरे खेतों और उन पर फैली हुई सूरज की लालिमा को देखते हुए दोनों मुग्ध हो रहे थे.

‘‘सब कितना सुंदर लग रहा है,’’ वीना पति के कंधे पर सिर टिकाती हुई बोली.

तभी डब्बे में कुछ हलचल होने लगी.

‘‘टिकट चैकर आ रहा है,’’ अजीत बोला और जल्दी से चादर ओढ़ कर लेट गया, ‘‘टिकटें तुम्हारे पर्स में ही हैं.’’

टिकट चैकर आया तो वीना ने तीनों टिकटें दिखा दीं. चैकर ने चारों के चेहरों को ध्यान से देखा. मनु को अजीत ने अपने साथ ही लिटा लिया था.

‘‘बेटा अभी सवा 4 साल का ही है,’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘यह इस बिटिया का आधा टिकट है.’’

अनु खिड़की से सिर टिकाए एक उपन्यास पढ़ रही थी. मां की बात सुन कर वह जरा सी हंसी और फिर अपनी पुस्तक में खो गई.

‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ती हो, बेटी?’’ टिकट चैकर ने उस के हाथ में पकड़े उपन्यास को घूरते हुए पूछा.

वीना हड़बड़ा गई कि अब अनु कहीं सब गुड़गोबर न कर दे.

‘‘यह छठी में पढ़ती है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘बड़ी होशियार है. पढ़ने का बहुत शौक है. सदा कुछ न कुछ पढ़ती रहती है. इस उम्र में ही इतनी बड़ीबड़ी पुस्तकें पढ़ने लगी है. अनु, जरा इन्हें अपना उपन्यास तो दिखाना. मैं तो मना करती रहती हूं कि चश्मा लग जाएगा. इतना मत पढ़, पर मानती ही नहीं है. आजकल के बच्चों को समझाना बड़ा कठिन है.’’

‘‘घरघर यही हाल है, बहनजी, आजकल के बच्चे किसी की नहीं सुनते. पर आप की बच्ची को अभी से पढ़ने का इतना शौक है वरना आजकल बच्चे तो पुस्तकों से कोसों दूर भागते हैं. मेरे तो तीनों बच्चे नालायक हैं. बस, फिल्मों की पूरी खबर रखते हैं. पता नहीं बड़े हो कर क्या करेंगे?’’

गाड़ी धीमी हो गई थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था. टिकट चैकर उठ कर दरवाजे के पास चला गया. वीना ने चैन की सांस ली. एक बड़ी मुसीबत से पार पा लिया था. ‘अब, वापसी में भी ऐसे ही आसानी से बात बन जाए तो

इस झंझट से छुटकारा मिले,’ वीना सोच रही थी.

अजीत हंसता हुआ उठ गया, ‘‘तुम ने तो उसे एकदम बुद्धू बना दिया. मुझ से न हो पाता.’’

डब्बे में एक चौकलेट बेचने वाला घूम रहा था.

‘‘मां, एक बड़ा वाला चौकलेट दिलवा दो,’’ मनु जिद करने लगा. पिता के उठते ही वह भी उठ कर बैठ गया.

‘‘अरे नहीं, बहुत महंगा है. यह ले, मैं तेरे लिए कितने बढि़या शक्करपारे बना कर लाई हूं. तुझे तो ये बहुत पसंद हैं,’’ वीना उसे प्यार से समझाती हुई बोली.

‘‘नहीं दिलाओगी क्या?’’ वह मां को घूरते हुए बोला, ‘‘ठीक है, तब मैं टिकट चैकर चाचा को बता दूंगा कि दीदी तो 14 साल की हैं और मैं 7 साल का. मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता हूं. फिर भी इन्होंने मेरा टिकट नहीं लिया.’’

अजीत ने जल्दी से उस के मुंह पर हाथ रख दिया. गनीमत थी कि उस समय किसी ने अनु की बात नहीं सुनी. कोई सुन लेता तो कितनी बेइज्जती होती.

‘‘इधर आना भई,’’ अजीत ने चौकलेट वाले को पुकारा. जिस महंगे चौकलेट की मनु फरमाइश कर रहा था, वह उसे दिलवा दिया.

‘‘इस शैतान को सब बताने की क्या आवश्यकता थी,’’ फिर वह वीना पर बिगड़ा.

‘‘अरे, मैं ने कब बताया. जाने चोरीछिपे क्याक्या सुनता रहता है,’’ वह परेशान हो कर बोली, फिर मनु को जोर से झिंझोड़ते हुए डांटा, ‘‘अब खबरदार जो तू ने मुंह खोला.’’

पर मनु को भला इन सब बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था हर स्टेशन पर किसी न किसी ऊलजलूल वस्तु की फरमाइश करता रहता. मना करने पर धौंस दिखाता, ‘अच्छा, मैं अभी टिकट चैकर चाचा को आप की सारी चालाकी बताता हूं.’

वीना और अजीत हार कर उस की हर फरमाइश पूरी करते जाते. उधर अनु अलग मुंह फुलाए भुनाभुना रही थी, ‘डब्बे में कहीं घूम भी नहीं सकती, इतनी छोटी सी फ्रौक पहना दी है. बाल भी गंवारों से गूंथ दिए हैं. टिकट नहीं खरीद सकते थे तो मुझे लाए ही क्यों? मेरठ में ही क्यों नहीं छोड़ दिया? आगे से आप लोगों के साथ कहीं नहीं जाऊंगी. हमें तो कहते रहते हैं कि झूठ मत बोलो और आप इतने बड़ेबड़े झूठ बोलते हैं.’

बंबई पहुंचने पर सामान उतरवाते ही अजीत बोला, ‘‘तुम लोग जरा यहां रुको, मैं अभी आया.’’

‘‘कहां भागे जा रहे हो?’’ वीना इतनी भीड़ देख कर घबरा गई, ‘‘अब तो पहले घर पहुंचने की बात करो. इतने लंबे सफर के बाद बुरी हालत हो गई है.’’

‘‘वापसी का सफर आराम से करो. उसी का प्रबंध करने जा रहा हूं. पहले इन बच्चों के टिकटे ठीक से बनवा लाऊं, हो गई बहुत बचत. आज से अपनी ‘सुपर’ योजनाएं अपने तक ही सीमित रखना, मुझे बीच में मत फंसाना.’’

वीना उत्तर में केवल सिर झुकाए खड़ी रही. इस से अधिक वह कर भी क्या सकती थी. जिस जोश से वह घर से निकली थी वह अब ठंडा पड़ चुका था.

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February 25, 2020 at 09:50AM

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