Wednesday 26 February 2020

अनाम रिश्ता: भाग-3

हमारी नजरें उत्सुकतावश द्वार पर ही लगी हुई थीं कि उधर से एक हाथ से लड़की की उंगली थामे और दूसरे से लड़के को गोद में उठाए कमला का पदार्पण हुआ. लड़के को देखते ही सब लोग मुसकराने लगे. भाभी ने फुसफुसा कर मां से कहा था, ‘यह तो गोपी का हमशक्ल है.’

अब की बार तो कमला में गजब का परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा था. आंखें तो पहले ही बड़ीबड़ी थीं, मां ने जो अपनी पुरानी लिपस्टिक और साड़ी दे दी थी, उन के इस्तेमाल के बाद तो उस का रूप ही निखर आया था. कोई नहीं कह सकता था कि यह किसी छोटी जाति के घर की बहू है. काले रंग में भी इतना आकर्षण होता है, यह इंदु ने उस दिन जाना था. अब समझ आया कि क्या था उस कालीकलूटी में जो गोपी जैसा बांका नौजवान उस पर मरता था.

एक दिन मां कुछ हलकेफुलके मूड में थीं. किसी काम से गोपी उन के पास आया तो बोलीं, ‘क्यों रे गोपी, तेरी उम्र निकली जा रही है, तू शादी कब करेगा?’

‘बीबीजी, शादी तो हमारी हो गई.’

‘शादी हो गई? और हमें पता भी नहीं चला?’ मां ने हैरानी से पूछा.

गोपी ने नजर उठा कर इंदु की तरफ देखा. वह समझ गई कि गोपी उस के सामने बात करने में झिझक रहा है, सो वह वहां से उठ तो गई पर बात सुनने का लोभ संवरण न कर पाई, इसलिए बराबर वाली कोठरी में छिप कर खड़ी हो गई.

‘हां, अब बोल,’ मां ने उस की ओर देखा.

‘तुम्हें मालूम नहीं चला तो मैं क्या करूं. तुम्हारे पास तो वह रोज आती है,’ गोपी सिर झुका कर बोला.

‘किस की बात कर रहा है तू?’ मां को समझ नहीं आया.

‘कमला की,’ गोपी धीरे से बोला, ‘हम तो उसे ही अपनी दुलहन मानते हैं. दुनिया के सामने सात फेरे नहीं हुए तो क्या, मन से तो हम दोनों एकदूजे को मियांबीवी समझते हैं.’

‘वह एक शादीशुदा औरत है. तुम्हारे गांव वाले उसे कुछ नहीं कहते? किसना भी जानता है यह सब?’

‘हां, जानता है. उस ने तो कई बार कमला को पीटा भी है पर उस ने भी साफसाफ कह दिया कि मैं गोपी को चाहती हूं, उसे नहीं छोड़ सकती, चाहे तो तू मुझे छोड़ दे. पर वह बेचारा भी क्या करे, एक तो गरीबी, ऊपर से शक्लसूरत भी मामूली. पहली शादी ही मुश्किल से हुई थी. इसे छोड़ दिया तो दूसरी तो होने से रही. सो, यही सोच कर चुप रह जाता है कि चलो, जैसी भी है, घर तो संभाल रही है, बच्चे पाल रही है.

पूरी बात सुनने पर भी मां कुछ  असंतुष्ट सी थीं. बोलीं, ‘वह औरत तो शहर की है, बड़ी चालाक है. एकसाथ दोदो आदमियों को बेवकूफ बना रही है. पर तू क्यों अक्ल के पीछे लट्ठ लिए भाग रहा है. उसे तो घर भी मिल गया. कहने को पति भी है, बच्चे भी हैं और पैसा लुटाने को तू है, पर तुझे क्या मिला? शादी कर ले तो तेरा भी घर बस जाएगा, बच्चे होंगे, समाज में इज्जत होगी,’ मां ने अपने स्तर पर उसे ऊंचनीच समझाने की चेष्टा की.

पर उस ने जो दलील पेश की उसे सुन कर तो मां के साथ इंदु का मुंह भी हैरानी से खुला का खुला रह गया. सिर झुकाएझुकाए ही वह बोला, ‘ठीक है, भाभी, तुम्हारी बात. चलो, हम शादी कर भी लें. पत्नी हमें पसंद न आई तो क्या होगा? किसी की जिंदगी खराब करने से क्या फायदा? कमला मुझे अच्छी लगती है, और मैं उसे. हमारे लिए तो इतना ही बहुत है. रहा सवाल बच्चों का, सो मुझे लगता ही नहीं कि वे बच्चे सिर्फ कमला के ही हैं. जब वह हमें अच्छी लगती है तो उस की हर चीज हमें प्यारी है.

‘तुम्हें लगता होगा कि हम अकेले हैं पर हमारी नजरों से देखो तो पता चलेगा कि हमारे पास सबकुछ है. मन का संतोष सब से बड़ी चीज है, बाकी तो सब दिखावा है.’

वह आगे बोला, ‘कमला के पास भी सबकुछ है, आदमी है, बच्चे हैं. अगर इन चीजों से खुशी मिलती तो वह हमें क्यों चाहती?’

मां को निरुत्तर कर गोपी चला गया. इंदु मन ही मन सोचती रही कि यह गांव का अनपढ़ आदमी कितनी सरल भाषा में जीवन की कितनी बड़ी सचाई कह गया है.

सब लोग सोचते थे कि यह कुछ दिन का खुमार है, समय बीततेबीतते उतर जाएगा. फिर यह भी अपना घर बसा लेगा और कमला को भूल जाएगा. कमला पर भी जब जिम्मेदारियों का बोझ पड़ेगा तो दुनियादारी समझने लगेगी. पर इन दोनों ने तो सब के गणित को अंगूठा दिखा दिया.

इसी बीच, इंदु का विवाह भी हो गया. वह जब भी मायके आती, कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर नजर आता. कभी भाभी के बच्चा होने को होता, कभी महल्ले में किसी की मृत्यु की खबर सुनने को मिलती तो कभी किसी की शादी की अथवा भागने की.

पर गोपी और कमला की प्रेम कहानी बिना किसी परिवर्तन के उसी प्रकार आगे बढ़ रही थी. हमेशा वह अपने बच्चों को साथ लिए गोपी से मिलने आती. उसी प्रकार गोपी उसे घुमाने ले जाता. कभी कपड़े दिलवाता और कभी खाने का सामान. इस नियम में जरा भी बदलाव नहीं आया था. हां, इतना जरूर हुआ था कि बच्चे अब

2 के स्थान पर 3 हो गए थे.

अब तो समाज ने भी उन के प्यार को स्वीकार कर लिया था. उन के उस रिश्ते को मान लिया था जिस का कोई नाम न था.

अचानक कोई कमरे में आया तो इंदु की विचारतंद्रा भंग हो गई और वह अतीत से वर्तमान में लौट आई. भाभी चायनाश्ता लाई थीं.

चाय पी कर उस ने भाभी से पूछा, ‘‘गोपी की खबर सुन कर कमला आई थी क्या?’’

‘‘हां, आई थी. आते ही उस की लाश पर गिर कर फूटफूट कर रोई, अपनी चूडि़यां भी तोड़ दीं, लोगों ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया. क्रियाकर्म का सारा खर्चा उसी ने किया. हालांकि पिताजी ने कहा था, ‘यह हमारे यहां इतने दिन से नौकरी कर रहा था, इतना तो हम इस के लिए कर ही सकते हैं.’

‘‘पर वह मानी नहीं. बोली, ‘मैं भी तो सारी उम्र इस की कमाई खाती रही. भैयाजी, मेरे पास तो जो कुछ है, सब इसी का दिया है. जब यही नहीं रहा तो मैं इन गहनों का क्या करूंगी,’ कह कर उस ने अपनी अंगूठी उतार कर पिताजी के हाथ में दे दी और कहा कि इसे बेच कर क्रियाकर्म कर दीजिए.

‘‘जब मुखाग्नि देने का समय आया तो वह बोली, ‘मेरा रामू यह काम करेगा. भैयाजी, आप सब को तो मालूम है, गोपी इसे कितना चाहता था और यह तो इस का फर्ज भी है.’

‘‘यह एक ऐसी सचाई थी जिसे सब जानते थे पर कहने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी, इसीलिए सब ने कमला की यह बात मान ली.’’

रात को भी मेरे दिमाग में बचपन की बातें घूमती रहीं. मैं सोचने लगी कि प्यार भी क्या चीज है. जो इनसान बाप की मार के डर से गांव छोड़ कर भागा था उसे गांव के नाम से ही नफरत हो गई थी. बहुत समझानेबुझाने के बाद कभीकभी मांबाप से मिलने चला जाता था. लेकिन रात को जाता था और सुबह ही वापस आ जाता था.

परंतु पता नहीं, कौन सी डोर थी जिस ने उसे ऐसे बांध लिया कि वह हर हफ्ते गांव जाने लगा. फिर धीरेधीरे यह अंतराल घटता ही गया. कभी 4 दिन में तो कभी

3 दिन में वह गांव जाने लगा. शाम को भी जल्दी चला जाता था और अगले दिन भी थोड़ी देर से आता था. बाप भी बूढ़ा हो चला था, सो उस की भी जिम्मेदारी सिर पर थी, इसलिए कोई कुछ नहीं कहता था.

गोपी का बाप अब बीमार भी रहने लगा था, सो उस के ब्याह के लिए जोर देने लगा. पर उस ने ब्याह के लिए इनकार कर दिया था. हां, यह जरूर कर दिया कि बापू की दोनों समय की रोटी का इंतजाम कमला को सौंप दिया. कुछ दिन तक तो पिता ने उस के घर का खाना खाने से मना कर दिया, पर अंत में परिस्थिति से उन्हें समझौता करना ही पड़ा.

इंदु की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या नाम दे उस रिश्ते को जिसे वे दोनों जिंदगीभर निभाते रहे. कितनी हिम्मती है वह औरत जो अपने प्यार के लिए दुनिया से लड़ती रही, हार न मानी.

आखिरी वक्त पर भी उस ने जिस बहादुरी से अपने बेटे का परिचय दिया, क्या वह पढ़ेलिखे और समझदार कहे जाने वाले लोगों के बस की बात है?

अगले दिन इंदु ने अपनी मां से पूछा कि क्या कमला अब भी आती है यहां? तो उत्तर मिला, ‘‘नहीं, अब नहीं आती.’’

‘‘मां, किसी दिन उसे बुलवा लो, बड़ा मन है उसे देखने का,’’ इंदु ने अपनी इच्छा मां के आगे व्यक्त की.

मां ने एक आदमी के जरिए गांव में खबर भेज कर कमला को बुलवा लिया.

हलके नीले रंग की किनारीदार सूती धोती, हाथों में कांच की दोदो चूडि़यां और मांग में सिंदूर की हलकी सी रेखा, बिंदी जो पहले चवन्नी के आकार की हुआ करती थी, अब एक बिंदु का आभास भर दे रही थी.

इंदु को देख कर अपनी वही मनमोहिनी हंसी हंस कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, इंदु बिटिया आई है. बड़े दिनों में आई बिटिया, अच्छी तो हो?’’

‘‘मैं तो अच्छी हूं पर तुम्हें क्या हो गया ?है? पहचानी ही नहीं जा रही हो. बड़ी कमजोर दिख रही हो,’’ इंदु बोली.

उस की आंखों में आंसू भर आए पर फिर भी हंस कर बोली, ‘‘तुम्हें सब पता चल गया होगा, बिटिया. अब बताओ, क्या अब हम वैसे ही रहेंगे?’’

उस का उत्तर सुन कर इंदु से कुछ कहते न बना. सिर झुका कर हाथ से यों ही निरुद्देश्य कुछ आड़ीतिरछी लकीरें बनाती रही. आंखें उस की भी भीग गईं. जिस औरत को लोग भलाबुरा कहते रहे, उस को ‘चालू’ समझ कर उस का अपमान, तिरस्कार करते रहे, उस को इस रूप में देख कर मन एक अनजानी श्रद्धा से भर गया और अपनी सोच से घृणा सी होने लगी.

कमला तो थोड़ी देर बाद उठ कर चली गई पर मन में हमेशा के लिए एक प्रश्न छोड़ गई कि क्या हम सभ्य, शिक्षित कहलाने वाले लोग प्यार की परिभाषा जानते हैं?

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हमारी नजरें उत्सुकतावश द्वार पर ही लगी हुई थीं कि उधर से एक हाथ से लड़की की उंगली थामे और दूसरे से लड़के को गोद में उठाए कमला का पदार्पण हुआ. लड़के को देखते ही सब लोग मुसकराने लगे. भाभी ने फुसफुसा कर मां से कहा था, ‘यह तो गोपी का हमशक्ल है.’

अब की बार तो कमला में गजब का परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा था. आंखें तो पहले ही बड़ीबड़ी थीं, मां ने जो अपनी पुरानी लिपस्टिक और साड़ी दे दी थी, उन के इस्तेमाल के बाद तो उस का रूप ही निखर आया था. कोई नहीं कह सकता था कि यह किसी छोटी जाति के घर की बहू है. काले रंग में भी इतना आकर्षण होता है, यह इंदु ने उस दिन जाना था. अब समझ आया कि क्या था उस कालीकलूटी में जो गोपी जैसा बांका नौजवान उस पर मरता था.

एक दिन मां कुछ हलकेफुलके मूड में थीं. किसी काम से गोपी उन के पास आया तो बोलीं, ‘क्यों रे गोपी, तेरी उम्र निकली जा रही है, तू शादी कब करेगा?’

‘बीबीजी, शादी तो हमारी हो गई.’

‘शादी हो गई? और हमें पता भी नहीं चला?’ मां ने हैरानी से पूछा.

गोपी ने नजर उठा कर इंदु की तरफ देखा. वह समझ गई कि गोपी उस के सामने बात करने में झिझक रहा है, सो वह वहां से उठ तो गई पर बात सुनने का लोभ संवरण न कर पाई, इसलिए बराबर वाली कोठरी में छिप कर खड़ी हो गई.

‘हां, अब बोल,’ मां ने उस की ओर देखा.

‘तुम्हें मालूम नहीं चला तो मैं क्या करूं. तुम्हारे पास तो वह रोज आती है,’ गोपी सिर झुका कर बोला.

‘किस की बात कर रहा है तू?’ मां को समझ नहीं आया.

‘कमला की,’ गोपी धीरे से बोला, ‘हम तो उसे ही अपनी दुलहन मानते हैं. दुनिया के सामने सात फेरे नहीं हुए तो क्या, मन से तो हम दोनों एकदूजे को मियांबीवी समझते हैं.’

‘वह एक शादीशुदा औरत है. तुम्हारे गांव वाले उसे कुछ नहीं कहते? किसना भी जानता है यह सब?’

‘हां, जानता है. उस ने तो कई बार कमला को पीटा भी है पर उस ने भी साफसाफ कह दिया कि मैं गोपी को चाहती हूं, उसे नहीं छोड़ सकती, चाहे तो तू मुझे छोड़ दे. पर वह बेचारा भी क्या करे, एक तो गरीबी, ऊपर से शक्लसूरत भी मामूली. पहली शादी ही मुश्किल से हुई थी. इसे छोड़ दिया तो दूसरी तो होने से रही. सो, यही सोच कर चुप रह जाता है कि चलो, जैसी भी है, घर तो संभाल रही है, बच्चे पाल रही है.

पूरी बात सुनने पर भी मां कुछ  असंतुष्ट सी थीं. बोलीं, ‘वह औरत तो शहर की है, बड़ी चालाक है. एकसाथ दोदो आदमियों को बेवकूफ बना रही है. पर तू क्यों अक्ल के पीछे लट्ठ लिए भाग रहा है. उसे तो घर भी मिल गया. कहने को पति भी है, बच्चे भी हैं और पैसा लुटाने को तू है, पर तुझे क्या मिला? शादी कर ले तो तेरा भी घर बस जाएगा, बच्चे होंगे, समाज में इज्जत होगी,’ मां ने अपने स्तर पर उसे ऊंचनीच समझाने की चेष्टा की.

पर उस ने जो दलील पेश की उसे सुन कर तो मां के साथ इंदु का मुंह भी हैरानी से खुला का खुला रह गया. सिर झुकाएझुकाए ही वह बोला, ‘ठीक है, भाभी, तुम्हारी बात. चलो, हम शादी कर भी लें. पत्नी हमें पसंद न आई तो क्या होगा? किसी की जिंदगी खराब करने से क्या फायदा? कमला मुझे अच्छी लगती है, और मैं उसे. हमारे लिए तो इतना ही बहुत है. रहा सवाल बच्चों का, सो मुझे लगता ही नहीं कि वे बच्चे सिर्फ कमला के ही हैं. जब वह हमें अच्छी लगती है तो उस की हर चीज हमें प्यारी है.

‘तुम्हें लगता होगा कि हम अकेले हैं पर हमारी नजरों से देखो तो पता चलेगा कि हमारे पास सबकुछ है. मन का संतोष सब से बड़ी चीज है, बाकी तो सब दिखावा है.’

वह आगे बोला, ‘कमला के पास भी सबकुछ है, आदमी है, बच्चे हैं. अगर इन चीजों से खुशी मिलती तो वह हमें क्यों चाहती?’

मां को निरुत्तर कर गोपी चला गया. इंदु मन ही मन सोचती रही कि यह गांव का अनपढ़ आदमी कितनी सरल भाषा में जीवन की कितनी बड़ी सचाई कह गया है.

सब लोग सोचते थे कि यह कुछ दिन का खुमार है, समय बीततेबीतते उतर जाएगा. फिर यह भी अपना घर बसा लेगा और कमला को भूल जाएगा. कमला पर भी जब जिम्मेदारियों का बोझ पड़ेगा तो दुनियादारी समझने लगेगी. पर इन दोनों ने तो सब के गणित को अंगूठा दिखा दिया.

इसी बीच, इंदु का विवाह भी हो गया. वह जब भी मायके आती, कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर नजर आता. कभी भाभी के बच्चा होने को होता, कभी महल्ले में किसी की मृत्यु की खबर सुनने को मिलती तो कभी किसी की शादी की अथवा भागने की.

पर गोपी और कमला की प्रेम कहानी बिना किसी परिवर्तन के उसी प्रकार आगे बढ़ रही थी. हमेशा वह अपने बच्चों को साथ लिए गोपी से मिलने आती. उसी प्रकार गोपी उसे घुमाने ले जाता. कभी कपड़े दिलवाता और कभी खाने का सामान. इस नियम में जरा भी बदलाव नहीं आया था. हां, इतना जरूर हुआ था कि बच्चे अब

2 के स्थान पर 3 हो गए थे.

अब तो समाज ने भी उन के प्यार को स्वीकार कर लिया था. उन के उस रिश्ते को मान लिया था जिस का कोई नाम न था.

अचानक कोई कमरे में आया तो इंदु की विचारतंद्रा भंग हो गई और वह अतीत से वर्तमान में लौट आई. भाभी चायनाश्ता लाई थीं.

चाय पी कर उस ने भाभी से पूछा, ‘‘गोपी की खबर सुन कर कमला आई थी क्या?’’

‘‘हां, आई थी. आते ही उस की लाश पर गिर कर फूटफूट कर रोई, अपनी चूडि़यां भी तोड़ दीं, लोगों ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया. क्रियाकर्म का सारा खर्चा उसी ने किया. हालांकि पिताजी ने कहा था, ‘यह हमारे यहां इतने दिन से नौकरी कर रहा था, इतना तो हम इस के लिए कर ही सकते हैं.’

‘‘पर वह मानी नहीं. बोली, ‘मैं भी तो सारी उम्र इस की कमाई खाती रही. भैयाजी, मेरे पास तो जो कुछ है, सब इसी का दिया है. जब यही नहीं रहा तो मैं इन गहनों का क्या करूंगी,’ कह कर उस ने अपनी अंगूठी उतार कर पिताजी के हाथ में दे दी और कहा कि इसे बेच कर क्रियाकर्म कर दीजिए.

‘‘जब मुखाग्नि देने का समय आया तो वह बोली, ‘मेरा रामू यह काम करेगा. भैयाजी, आप सब को तो मालूम है, गोपी इसे कितना चाहता था और यह तो इस का फर्ज भी है.’

‘‘यह एक ऐसी सचाई थी जिसे सब जानते थे पर कहने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी, इसीलिए सब ने कमला की यह बात मान ली.’’

रात को भी मेरे दिमाग में बचपन की बातें घूमती रहीं. मैं सोचने लगी कि प्यार भी क्या चीज है. जो इनसान बाप की मार के डर से गांव छोड़ कर भागा था उसे गांव के नाम से ही नफरत हो गई थी. बहुत समझानेबुझाने के बाद कभीकभी मांबाप से मिलने चला जाता था. लेकिन रात को जाता था और सुबह ही वापस आ जाता था.

परंतु पता नहीं, कौन सी डोर थी जिस ने उसे ऐसे बांध लिया कि वह हर हफ्ते गांव जाने लगा. फिर धीरेधीरे यह अंतराल घटता ही गया. कभी 4 दिन में तो कभी

3 दिन में वह गांव जाने लगा. शाम को भी जल्दी चला जाता था और अगले दिन भी थोड़ी देर से आता था. बाप भी बूढ़ा हो चला था, सो उस की भी जिम्मेदारी सिर पर थी, इसलिए कोई कुछ नहीं कहता था.

गोपी का बाप अब बीमार भी रहने लगा था, सो उस के ब्याह के लिए जोर देने लगा. पर उस ने ब्याह के लिए इनकार कर दिया था. हां, यह जरूर कर दिया कि बापू की दोनों समय की रोटी का इंतजाम कमला को सौंप दिया. कुछ दिन तक तो पिता ने उस के घर का खाना खाने से मना कर दिया, पर अंत में परिस्थिति से उन्हें समझौता करना ही पड़ा.

इंदु की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या नाम दे उस रिश्ते को जिसे वे दोनों जिंदगीभर निभाते रहे. कितनी हिम्मती है वह औरत जो अपने प्यार के लिए दुनिया से लड़ती रही, हार न मानी.

आखिरी वक्त पर भी उस ने जिस बहादुरी से अपने बेटे का परिचय दिया, क्या वह पढ़ेलिखे और समझदार कहे जाने वाले लोगों के बस की बात है?

अगले दिन इंदु ने अपनी मां से पूछा कि क्या कमला अब भी आती है यहां? तो उत्तर मिला, ‘‘नहीं, अब नहीं आती.’’

‘‘मां, किसी दिन उसे बुलवा लो, बड़ा मन है उसे देखने का,’’ इंदु ने अपनी इच्छा मां के आगे व्यक्त की.

मां ने एक आदमी के जरिए गांव में खबर भेज कर कमला को बुलवा लिया.

हलके नीले रंग की किनारीदार सूती धोती, हाथों में कांच की दोदो चूडि़यां और मांग में सिंदूर की हलकी सी रेखा, बिंदी जो पहले चवन्नी के आकार की हुआ करती थी, अब एक बिंदु का आभास भर दे रही थी.

इंदु को देख कर अपनी वही मनमोहिनी हंसी हंस कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, इंदु बिटिया आई है. बड़े दिनों में आई बिटिया, अच्छी तो हो?’’

‘‘मैं तो अच्छी हूं पर तुम्हें क्या हो गया ?है? पहचानी ही नहीं जा रही हो. बड़ी कमजोर दिख रही हो,’’ इंदु बोली.

उस की आंखों में आंसू भर आए पर फिर भी हंस कर बोली, ‘‘तुम्हें सब पता चल गया होगा, बिटिया. अब बताओ, क्या अब हम वैसे ही रहेंगे?’’

उस का उत्तर सुन कर इंदु से कुछ कहते न बना. सिर झुका कर हाथ से यों ही निरुद्देश्य कुछ आड़ीतिरछी लकीरें बनाती रही. आंखें उस की भी भीग गईं. जिस औरत को लोग भलाबुरा कहते रहे, उस को ‘चालू’ समझ कर उस का अपमान, तिरस्कार करते रहे, उस को इस रूप में देख कर मन एक अनजानी श्रद्धा से भर गया और अपनी सोच से घृणा सी होने लगी.

कमला तो थोड़ी देर बाद उठ कर चली गई पर मन में हमेशा के लिए एक प्रश्न छोड़ गई कि क्या हम सभ्य, शिक्षित कहलाने वाले लोग प्यार की परिभाषा जानते हैं?

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February 27, 2020 at 09:50AM

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