Monday 24 February 2020

तौबा

शेयर ट्रेडिंग और सेंसैक्स की उछाल देख कर मणिचंद ने पैसा लगा कर थोड़ा सा मुनाफा क्या कमाया कि खुद को शेयर बाजार का ‘शेर’ ही समझने लगे. लेकिन मणिचंद को असली झटका मिलना तो बाकी था. ऐसा झटका जिस ने उन के तमाम सपनों को चकनाचूर कर दिया.

मणिचंद आज बहुत खुश हैं. खुशी की वजह है कि वे बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज को खरीदने, उन्हें मेंटेन करने से बच गए हैं. कैसे, यह जानने के लिए आप को 1 महीने पहले के फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा.

तो हुआ यों कि उन्होंने कंप्यूटर के माध्यम से ‘इंट्रा डे टे्रडिंग’ करना सीख लिया और पहले ही दिन उन्हें 2 हजार रुपए का फायदा हुआ. वैसे शाम को जब स्टेटमैंट आया तो इस 2 हजार रुपए में से 300 रुपए टैक्स, चार्ज, सरचार्ज आदि के कट गए थे और उन्हें मिलने थे 1,700 रुपए. पर यह भी घाटे का सौदा नहीं था. और घाटे का क्या, यह तो मुहावरे की भाषा हुई. इस में तो फायदा ही फायदा था. यदि मुहावरे की ही भाषा में कहें तो हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए. मात्र 30 हजार रुपए सिक्योरिटी टे्रडर के पास लिएन (शेयर के सौदों के लिए जमा रकम) रख कर वे 1,700 रुपए कमा रहे थे और वह भी पहले ही दिन.

उन्होंने फैसला किया कि आगे चल कर वे लिएन की रकम बढ़ा देंगे और साथ ही टे्रडिंग का वौल्यूम भी बढ़ाएंगे. उन के हिसाब से वे रोज 10 हजार रुपए और महीने में तकरीबन 2 लाख 20 हजार रुपए कमा लेंगे. यह हिसाब लगाने में उन्होंने बड़ी ही उदारतापूर्वक हफ्ते में 5 ही दिन जोड़े थे जिन दिनों शेयर बाजार खुले रहते हैं. इस तरह साल में रकम हो जाएगी करीब 25 लाख रुपए. फिर तो प्लौट खरीदा जाएगा, बिल्ंिडग बनेगी, खूब मौजमस्ती से जिंदगी कटेगी. कार भी नए मौडल की और कीमती ही आएगी. आखिर, आय के मुताबिक ही स्टैंडर्ड औफ लिविंग होना चाहिए न.

वैसे तो कई और भी चीजें हैं जो छिपाए नहीं छिपतीं लेकिन उन में एक अहम चीज है खुशी. लाभ की खुशी को वे छिपा नहीं पाए व अपने सहकर्मियों को इस के बारे में बताया. खुशी की बात बताएं और सहकर्मी पार्टी की फरमाइश न करें, यह कैसे हो सकता है? सो, पार्टी में भी 200-400 रुपए शहीद हो ही गए.

अगले 2 दिनों में लाभ कम सही, पर हुआ. लेकिन गुरुवार के दिन, जिसे वे अपने लिए न जाने किन कारणों से शुभ माना करते थे, बड़ी हानि हुई. दरअसल, पंडेपुरोहितों ने उन्हें उन की ग्रहदशा देख कर बताया था कि देवों के गुरु बृहस्पति की उन पर बड़ी कृपा है और उस दिन केले के वृक्ष में पानी देने, काली गाय को गुड़ खिलाने व पीले वस्त्र धारण करने से उन्हें काफी लाभ होगा. साथ ही, उन्हें अंगूठी, ताबीज भी हजार 2 हजार रुपए में दिए गए थे. परंतु पंडेपुरोहितों की बताई बातें उन के अनुकूल न बैठ कर प्रतिकूल साबित हुईं.

शुक्रवार को भी यही क्रम जारी रहा और इन 3 दिनों में उन्होंने जो भी कमाया था, उस पर पानी फिर गया, फ्लश चल गया यानी जो भी लाभ हुए थे वे हानि के चलते रद्द कर दिए गए.

वहीं, अगले 3 दिनों तक वे फिर 400-500 रुपए लाभ कमाते रहे. पर बुरा हो पंडों के बताए शुभ दिन गुरुवार का, ऐसा गच्चा लगा कि 10 हजार रुपए शहीद हो गए. शायद, उस दिन बजट प्रस्तुत किया गया था. इस के असर से सेंसैक्स यह गुनगुनाते हुए कि ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो’ ऐसा रपटा, ऐसा फिसला कि सचमुच उसे उठाने की कोई आशा नहीं रही. ऐसा लग रहा था मानो भारतीय क्रिकेट टीम बैटिंग कर रही हो और विकेट पतझड़ के पत्तों के समान गिर रहे हों. इतना ही नहीं, जंगल की आग की तरह खबर उन के औफिस में फैल गई कि आज मणिचंद को 10 हजार रुपए का गच्चा लगा है.

लोगों के पास वैसे भी आज अपने सुख पर खुश होेने का मौका कहां मिलता है, अगर मिलता भी है तो, सच पूछा जाए तो इस से सच्ची खुशी मिलती नहीं है. दूसरे के दुख से जो खुशी मिलती है उस से कोई वंचित नहीं रहना चाहता. सभी बारीबारी से मणिचंद के पास आते, उन से सहानुभूति जताते वक्त अपने चेहरे की खुशी को छिपाने की हरसंभव, पर नाकाम कोशिश करते.

मणिचंद समझते तो थे कि लोग उन के जले पर तेजाबयुक्त नमक का मरहम लगाने आए हैं पर करते क्या. इस पुनीत कार्य में वे लोग खासतौर से लगे हुए थे जो खुद कभी शेयर बाजार की बेवफाई से देवदास बन गए थे. जिस ने जितनी बड़ी बेवफाई झेली थी वह उतना ही मणिचंद के पास बैठ कर शेयर बाजार के चालचलन की निंदा करता.

मणिचंद जितना चाहते कि इस घटना पर चर्चा न की जाए उतना ही लोग उस पर चर्चा करते. बेचारे ऊपर से दिखलाने की कोशिश करते कि उन्हें ऐसी छोटीमोटी बातों की परवा नहीं होती. लाभहानि तो लगी रहती है.

लेकिन उन का दिल जानता था कि 10 हजार रुपयों का अर्थ है आधे महीने का वेतन. मन ही मन वे उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने शेयर के कारोबार में हाथ डालने का फैसला किया था. एक ओर उन का दिल कहता था कि शेयर बाजार से तौबा कर लें पर जो नुकसान हो चुका था उस की भरपाई वे कैसे करेंगे, इस चिंता में वे चिंतनशील होना चाहते थे लेकिन हितैषियों के ‘शुभ परामर्श’ की बौछार से ऐसे करने में खुद को असमर्थ पा रहे थे.

अब मणिचंद ने ठान लिया है कि वे टे्रडिंग नहीं करेंगे. इस का सब से बड़ा लाभ उन्हें यही दिख रहा है कि उन्हें बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज खरीदने, महंगी विदेशी कार खरीदने, नौकरचाकर रखने, सुरक्षा इंतजाम करने से छुट्टी मिल जाएगी और छुट्टी भी ऐनवक्त पर मिल जाएगी. उन्होंने इन प्रौपर्टीज के ऊपर किसी प्रकार का समय और धन अभी तक खर्च करना शुरू नहीं किया था. करते भी कैसे. जो 30 हजार रुपए की रूंजीपूंजी उन के पास थी, वह सिक्योरिटी टे्रडर के पास गिरवी पड़ी थी और उस में से 10 हजार रुपए तो घाटे वाले दिन कट गए थे.

इस के पहले के उन के तजरबों को जानना भी कम रुचिकर नहीं होगा. दरअसल, उन्होंने जब पहली बार डीमैट खाता खोला था और उन्हें पता चला था कि इंटरनैट बैंकिंग के जरिए शेयर खरीदेबेचे जा सकते हैं तो उन्हें लगा था कि बहुत बड़ी कला उन के हाथ लग गई है. आईपीओ के जितने भी औफर आते उन में वे मुक्तहस्त हो कर कोष लगा देते. एक आईपीओ में उन्होंने 6 हजार रुपए लगाए थे जो 3 महीनों के अंदर 15 हजार रुपए हो गए थे. अब तो उन के वारेन्यारे हो रहे थे. यह बात आज से तकरीबन

3 साल पहले की है. उस समय सेंसैक्स खुशहाल स्थिति में था. रोजाना ऐसे बढ़ रहा था मानो रुकने का नाम ही नहीं लेगा. ऐसी स्थिति में बेचारे मणिचंद बहती गंगा में हाथ कैसे न धोते. जब 6 हजार रुपए बढ़ कर 15 हजार हो सकते हैं तो क्यों न बड़ी रकम लगाई जाए. पीएफ फंड से कर्ज ले कर उन्होंने 1 लाख 25 हजार लगा दिए. उन के हिसाब से बहुत जल्द यह रकम दूनी होने वाली थी. लेकिन बुरा हो सेंसैक्स का, जिस तेजी से ऊपर की ओर गया था उसी तेजी से नीचे की ओर जाने लगा. घटतेघटते 16 हजार के आंकड़े के भी नीचे आ गया. उन के द्वारा लगाई गई रकम दूनी होने के स्थान पर आधी हो गई और उस में भी लगातार उतार जारी था. पीएफ पर लिए गए कर्ज पर सूद अलग से लग रहा था. घबराहट में उन्होंने सारे शेयर बेच दिए. उस दिन के बाद से उन्होंने शेयर बाजार की ओर रुख नहीं किया था.

लेकिन इधर, धीरेधीरे ही सही सेंसैक्स में सुधार हो रहा था. इसी बीच उन्होंने एक सहकर्मी को इंट्रा डे टे्रडिंग करते और उस में मुनाफा कमाते देखा था तो पुराने जख्म को भूल कर वे फिर से कमर कस कर तैयार हो गए थे और शुरुआती कामयाबी के बाद जो झटका लगा उस से उबरने में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी. लेकिन दिल को तसल्ली देने के लिए वे इस के लाभ देख रहे थे कि उन्हें बड़ी प्रौपर्टीज से संबंधित झंझटों से छुटकारा मिल गया था. इस प्रकार वे आज बड़े ही खुश हैं और आप भी उन्हें इतने बड़ेबड़े झंझटों से निजात पाने के ‘शुभ अवसर’ पर बधाई दे ही डालिए.

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शेयर ट्रेडिंग और सेंसैक्स की उछाल देख कर मणिचंद ने पैसा लगा कर थोड़ा सा मुनाफा क्या कमाया कि खुद को शेयर बाजार का ‘शेर’ ही समझने लगे. लेकिन मणिचंद को असली झटका मिलना तो बाकी था. ऐसा झटका जिस ने उन के तमाम सपनों को चकनाचूर कर दिया.

मणिचंद आज बहुत खुश हैं. खुशी की वजह है कि वे बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज को खरीदने, उन्हें मेंटेन करने से बच गए हैं. कैसे, यह जानने के लिए आप को 1 महीने पहले के फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा.

तो हुआ यों कि उन्होंने कंप्यूटर के माध्यम से ‘इंट्रा डे टे्रडिंग’ करना सीख लिया और पहले ही दिन उन्हें 2 हजार रुपए का फायदा हुआ. वैसे शाम को जब स्टेटमैंट आया तो इस 2 हजार रुपए में से 300 रुपए टैक्स, चार्ज, सरचार्ज आदि के कट गए थे और उन्हें मिलने थे 1,700 रुपए. पर यह भी घाटे का सौदा नहीं था. और घाटे का क्या, यह तो मुहावरे की भाषा हुई. इस में तो फायदा ही फायदा था. यदि मुहावरे की ही भाषा में कहें तो हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए. मात्र 30 हजार रुपए सिक्योरिटी टे्रडर के पास लिएन (शेयर के सौदों के लिए जमा रकम) रख कर वे 1,700 रुपए कमा रहे थे और वह भी पहले ही दिन.

उन्होंने फैसला किया कि आगे चल कर वे लिएन की रकम बढ़ा देंगे और साथ ही टे्रडिंग का वौल्यूम भी बढ़ाएंगे. उन के हिसाब से वे रोज 10 हजार रुपए और महीने में तकरीबन 2 लाख 20 हजार रुपए कमा लेंगे. यह हिसाब लगाने में उन्होंने बड़ी ही उदारतापूर्वक हफ्ते में 5 ही दिन जोड़े थे जिन दिनों शेयर बाजार खुले रहते हैं. इस तरह साल में रकम हो जाएगी करीब 25 लाख रुपए. फिर तो प्लौट खरीदा जाएगा, बिल्ंिडग बनेगी, खूब मौजमस्ती से जिंदगी कटेगी. कार भी नए मौडल की और कीमती ही आएगी. आखिर, आय के मुताबिक ही स्टैंडर्ड औफ लिविंग होना चाहिए न.

वैसे तो कई और भी चीजें हैं जो छिपाए नहीं छिपतीं लेकिन उन में एक अहम चीज है खुशी. लाभ की खुशी को वे छिपा नहीं पाए व अपने सहकर्मियों को इस के बारे में बताया. खुशी की बात बताएं और सहकर्मी पार्टी की फरमाइश न करें, यह कैसे हो सकता है? सो, पार्टी में भी 200-400 रुपए शहीद हो ही गए.

अगले 2 दिनों में लाभ कम सही, पर हुआ. लेकिन गुरुवार के दिन, जिसे वे अपने लिए न जाने किन कारणों से शुभ माना करते थे, बड़ी हानि हुई. दरअसल, पंडेपुरोहितों ने उन्हें उन की ग्रहदशा देख कर बताया था कि देवों के गुरु बृहस्पति की उन पर बड़ी कृपा है और उस दिन केले के वृक्ष में पानी देने, काली गाय को गुड़ खिलाने व पीले वस्त्र धारण करने से उन्हें काफी लाभ होगा. साथ ही, उन्हें अंगूठी, ताबीज भी हजार 2 हजार रुपए में दिए गए थे. परंतु पंडेपुरोहितों की बताई बातें उन के अनुकूल न बैठ कर प्रतिकूल साबित हुईं.

शुक्रवार को भी यही क्रम जारी रहा और इन 3 दिनों में उन्होंने जो भी कमाया था, उस पर पानी फिर गया, फ्लश चल गया यानी जो भी लाभ हुए थे वे हानि के चलते रद्द कर दिए गए.

वहीं, अगले 3 दिनों तक वे फिर 400-500 रुपए लाभ कमाते रहे. पर बुरा हो पंडों के बताए शुभ दिन गुरुवार का, ऐसा गच्चा लगा कि 10 हजार रुपए शहीद हो गए. शायद, उस दिन बजट प्रस्तुत किया गया था. इस के असर से सेंसैक्स यह गुनगुनाते हुए कि ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो’ ऐसा रपटा, ऐसा फिसला कि सचमुच उसे उठाने की कोई आशा नहीं रही. ऐसा लग रहा था मानो भारतीय क्रिकेट टीम बैटिंग कर रही हो और विकेट पतझड़ के पत्तों के समान गिर रहे हों. इतना ही नहीं, जंगल की आग की तरह खबर उन के औफिस में फैल गई कि आज मणिचंद को 10 हजार रुपए का गच्चा लगा है.

लोगों के पास वैसे भी आज अपने सुख पर खुश होेने का मौका कहां मिलता है, अगर मिलता भी है तो, सच पूछा जाए तो इस से सच्ची खुशी मिलती नहीं है. दूसरे के दुख से जो खुशी मिलती है उस से कोई वंचित नहीं रहना चाहता. सभी बारीबारी से मणिचंद के पास आते, उन से सहानुभूति जताते वक्त अपने चेहरे की खुशी को छिपाने की हरसंभव, पर नाकाम कोशिश करते.

मणिचंद समझते तो थे कि लोग उन के जले पर तेजाबयुक्त नमक का मरहम लगाने आए हैं पर करते क्या. इस पुनीत कार्य में वे लोग खासतौर से लगे हुए थे जो खुद कभी शेयर बाजार की बेवफाई से देवदास बन गए थे. जिस ने जितनी बड़ी बेवफाई झेली थी वह उतना ही मणिचंद के पास बैठ कर शेयर बाजार के चालचलन की निंदा करता.

मणिचंद जितना चाहते कि इस घटना पर चर्चा न की जाए उतना ही लोग उस पर चर्चा करते. बेचारे ऊपर से दिखलाने की कोशिश करते कि उन्हें ऐसी छोटीमोटी बातों की परवा नहीं होती. लाभहानि तो लगी रहती है.

लेकिन उन का दिल जानता था कि 10 हजार रुपयों का अर्थ है आधे महीने का वेतन. मन ही मन वे उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने शेयर के कारोबार में हाथ डालने का फैसला किया था. एक ओर उन का दिल कहता था कि शेयर बाजार से तौबा कर लें पर जो नुकसान हो चुका था उस की भरपाई वे कैसे करेंगे, इस चिंता में वे चिंतनशील होना चाहते थे लेकिन हितैषियों के ‘शुभ परामर्श’ की बौछार से ऐसे करने में खुद को असमर्थ पा रहे थे.

अब मणिचंद ने ठान लिया है कि वे टे्रडिंग नहीं करेंगे. इस का सब से बड़ा लाभ उन्हें यही दिख रहा है कि उन्हें बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज खरीदने, महंगी विदेशी कार खरीदने, नौकरचाकर रखने, सुरक्षा इंतजाम करने से छुट्टी मिल जाएगी और छुट्टी भी ऐनवक्त पर मिल जाएगी. उन्होंने इन प्रौपर्टीज के ऊपर किसी प्रकार का समय और धन अभी तक खर्च करना शुरू नहीं किया था. करते भी कैसे. जो 30 हजार रुपए की रूंजीपूंजी उन के पास थी, वह सिक्योरिटी टे्रडर के पास गिरवी पड़ी थी और उस में से 10 हजार रुपए तो घाटे वाले दिन कट गए थे.

इस के पहले के उन के तजरबों को जानना भी कम रुचिकर नहीं होगा. दरअसल, उन्होंने जब पहली बार डीमैट खाता खोला था और उन्हें पता चला था कि इंटरनैट बैंकिंग के जरिए शेयर खरीदेबेचे जा सकते हैं तो उन्हें लगा था कि बहुत बड़ी कला उन के हाथ लग गई है. आईपीओ के जितने भी औफर आते उन में वे मुक्तहस्त हो कर कोष लगा देते. एक आईपीओ में उन्होंने 6 हजार रुपए लगाए थे जो 3 महीनों के अंदर 15 हजार रुपए हो गए थे. अब तो उन के वारेन्यारे हो रहे थे. यह बात आज से तकरीबन

3 साल पहले की है. उस समय सेंसैक्स खुशहाल स्थिति में था. रोजाना ऐसे बढ़ रहा था मानो रुकने का नाम ही नहीं लेगा. ऐसी स्थिति में बेचारे मणिचंद बहती गंगा में हाथ कैसे न धोते. जब 6 हजार रुपए बढ़ कर 15 हजार हो सकते हैं तो क्यों न बड़ी रकम लगाई जाए. पीएफ फंड से कर्ज ले कर उन्होंने 1 लाख 25 हजार लगा दिए. उन के हिसाब से बहुत जल्द यह रकम दूनी होने वाली थी. लेकिन बुरा हो सेंसैक्स का, जिस तेजी से ऊपर की ओर गया था उसी तेजी से नीचे की ओर जाने लगा. घटतेघटते 16 हजार के आंकड़े के भी नीचे आ गया. उन के द्वारा लगाई गई रकम दूनी होने के स्थान पर आधी हो गई और उस में भी लगातार उतार जारी था. पीएफ पर लिए गए कर्ज पर सूद अलग से लग रहा था. घबराहट में उन्होंने सारे शेयर बेच दिए. उस दिन के बाद से उन्होंने शेयर बाजार की ओर रुख नहीं किया था.

लेकिन इधर, धीरेधीरे ही सही सेंसैक्स में सुधार हो रहा था. इसी बीच उन्होंने एक सहकर्मी को इंट्रा डे टे्रडिंग करते और उस में मुनाफा कमाते देखा था तो पुराने जख्म को भूल कर वे फिर से कमर कस कर तैयार हो गए थे और शुरुआती कामयाबी के बाद जो झटका लगा उस से उबरने में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी. लेकिन दिल को तसल्ली देने के लिए वे इस के लाभ देख रहे थे कि उन्हें बड़ी प्रौपर्टीज से संबंधित झंझटों से छुटकारा मिल गया था. इस प्रकार वे आज बड़े ही खुश हैं और आप भी उन्हें इतने बड़ेबड़े झंझटों से निजात पाने के ‘शुभ अवसर’ पर बधाई दे ही डालिए.

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February 25, 2020 at 09:50AM

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