Sunday 30 May 2021

मोहभंग : आंचल अपनी बेटी की शादी बड़े घराने में कराने से क्यों कतराती थी

5 साल पहले अंसल दंपती ने उस पौश कालोनी में यह विशाल बंगला खरीदा था. उन के आते ही कालोनी की महिलाएं उन को अपनी किट्टी पार्टी में शामिल करने पहुंच गई थीं. उस पहली मुलाकात में भी रागिनी ने बिदा करते समय सब को एकएक आयातित सेंट की बोतल दी थी और साथ में यह भी कहा था, ‘‘आप सब ने मुझे अपनी किट्टी पार्टी में शामिल कर जो एहसान किया है उस के बदले यह उपहार कुछ भी नहीं है.’’

आयातित उपहार पा कर महिलाएं खुश होती थीं, पर प्रेमा भगत कुछ ज्यादा ही खुश होती थी जो रागिनी अंसल की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं था. वह ताड़ गई थीं कि इस औरत में विदेशी सामान के प्रति मोह कुछ ज्यादा ही है. इस तरह रागिनी अंसल ने 5 साल की किट्टी पार्टी की हर सदस्य को 6 उपहार दे डाले थे, सेंट, म्यूजिकल गुडि़या, नेल पालिश, नाइटक्रीम, लिपस्टिक तथा एक शो पीस, जिस का अजीब सा जिगजैग आकार था. इस शो पीस को सब ने बड़े गर्व से अपने ड्राइंगरूम में सजा लिया था.

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उपहार देते हुए अकसर रागिनी अंसल कहतीं, ‘‘क्या करूं, इतना सबकुछ है पर भोगने वाला कोई नहीं. बस, एक भतीजा है, वह भी विवाह नहीं करता. कोई लड़की उसे पसंद ही नहीं आती. परिवार बढ़े तो कैसे बढ़े?’’

जब से रागिनी ने अपने कुंआरे भतीजे के बारे में महिलाओं को बताया है तब से प्रेमा भगत अपनी बेटी आंचल का उस के साथ विवाह करने का सपना देखने लगी. पर मन की बात नहीं कह पाती क्योंकि करोड़ों में खेलने वाली रागिनी अंसल के सामने वह अपनेआप को बौना समझती थी. यद्यपि रागिनी अंसल आंचल के रूपलावण्य पर मुग्ध थीं पर वह खुद आगे बढ़ कर लड़की वालों से बात चलाना हेय समझती थीं.

इन सब से बेखबर आंचल अपनी दुनिया में व्यस्त थी. वह अपनी मां के एकदम विपरीत थी. इंजीनियरिंग कर के वह बंगलौर की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत थी. उसे विदेश व विदेशी वस्तुएं तनिक भी नहीं लुभाती थीं.

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सादा जीवन उच्च विचार की सोच वाली आंचल के साथ की लड़कियों ने जहां बाल कटवाए हुए थे वहीं वह अपने लंबे काले घने केशों को एक चोटी में बांधे रखती थी.

प्रेमा भगत बेटी के इस तरह से रहने पर अकसर खीज उठती, ‘‘पता नहीं यह लड़की किस पर गई है. तनिक भी कपड़े पहनने का ढंग नहीं है. इस के साथ की सब लड़कियां इंजीनियर बन कर अपने सहयोगियों के साथ प्रेम विवाह कर विदेश चली गईं पर यह अभी तक यहीं बैठी हुई है.’’

आंचल मां की बातें सुन कर हंस देती. उस पर मां की बड़बड़ का तनिक भी असर नहीं होता.

इस बार की किट्टी पार्टी से लौट कर प्रेमा भगत ने ठान ली थी कि वह आज आंचल से बात कर के ही रहेगी. जैसे ही बेटी घर आई उस ने रागिनी अंसल से मिली लिपस्टिक को दिखाते हुए पूछा, ‘‘आंचल, इस का शेड कैसा है? आयातित है, रागिनी अंसल ने दी है.’’

आंचल ने लिपस्टिक बिना हाथ में लिए दूर से देख कर कहा, ‘‘अच्छा शेड है मां, आप पर खूब फबेगा.’’

‘‘मैं अपनी नहीं तेरी बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं तो लिपस्टिक नहीं लगाती.’’

‘‘क्यों नहीं लगाती? कब तक ऐसे चलेगा? दूसरी लड़कियों की तरह तू क्यों नहीं ओढ़तीपहनती और अपनी मार्केट वेल्यू बढ़ाती.’’

‘‘मार्केट वेल्यू? मां, मैं क्या कोई बेचने की वस्तु हूं?’’ नाराज हो गई आंचल.

मांबेटी की बातचीत को ध्यान से सुन रहे पिता स्थिति बिगड़ती देख पत्नी को झिड़कने वाले अंदाज में बोले, ‘‘पढ़ीलिखी बेटी से कैसे बात करनी है इस की तुम्हें जरा भी तमीज नहीं,’’ और फिर बेटी को दुलार कर दूसरे कमरे में ले गए. पिता ने रात के एकांत में प्रेमा से पूछा, ‘‘क्यों, आंचल के लिए कोई लड़का ढूंढ़ रखा है क्या?’’

‘‘ढूंढ़ना क्या है, समझ लीजिए कि अपनी पकड़ के अंदर है. केवल आंचल को उस के अनुसार ढालना बाकी है.’’

फिर अपने पति को रागिनी अंसल के अमेरिका प्रवासी भतीजे तथा उन के विशालकाय बंगले के बारे में बता कर बोली, ‘‘रागिनी के न कोई आगे है न कोई पीछे. सबकुछ अपनी आंचल का होगा. ऐश करेगी वह अमेरिका में जा कर.’’

भारतीय संस्कृति के परिवेश में डूबे बापबेटी को विदेश में बसने के नाम से बड़ी कोफ्त होती थी. वैसे भी वह अपनी इकलौती बेटी को इतनी दूर भेजने के पक्ष में नहीं थे. बोले, ‘‘कोई यहीं का लड़का ढूंढ़ना चाहिए ताकि आंचल हमारी आंखों से ओझल न हो.’’

2 माह बाद रागिनी अंसल के यहां तीसरा चेहरा देख कर कालोनी के लोग चौंक उठे. एक नौजवान चोटियां बांधे अंसल दंपती के साथ कार में अकसर दिखाई देता. पता लगा कि वही उन का भतीजा देव अंसल है.

प्रेमा भगत उसे देख कर कुछ निराश हुई. बेटी आंचल को दिखाया तो वह बोली, ‘‘इस अजीबोगरीब चुटियाधारी जानवर को मुझ से दूर ही रखो मां, अन्यथा मैं इसे स्वयं खदेड़ दूंगी.’’

मां ने समझाया, ‘‘बेटी, आदमी का रूप नहीं, धन देखा जाता है.’’

आंचल ने मुंह बिचकाया, ‘‘ऊंह, पैसा तो मेरे पास भी बहुत है पर आकर्षक व्यक्तित्व पसंद है.’’

मां बेटी को समझाने में लगी ही थी कि रागिनी अंसल का निमंत्रण आ गया. अपने भतीजे से परिचय कराने के लिए सभी सपरिवार अगले दिन शाम पार्टी में आमंत्रित थे.

आंचल जाने को तैयार नहीं थी, पर मां के रोनेधोने के कारण तैयार हुई. पार्टी क्या थी, एक अच्छाखासा बड़ा आयोजन था जिस में शहर के तमाम बड़ेबड़े उद्योगपति, बड़ेबड़े नेता, सरकारी अफसर सपरिवार आए थे. उन के साथ उन के परिवार की बेटियां भी आई थीं जो एक से बढ़ कर एक डिजाइन की पोशाक पहने अपने शरीर की नुमाइश लगाने में लगी हुई थीं. आंचल सब से अलग कुरसी पर बैठी हाथ में ठंडा पेय ले कर उन्हें देखने में लगी हुई थी.

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अचानक देव अंसल ने आंचलके पास आ कर हाथ बढ़ाते हुए विनम्रता के साथ डांस के लिए आग्रह किया तो आंचल ने बेहद शालीनता से मना कर दिया. तभी प्रेमा भगत दनदनाती हुई आई और बोली, ‘‘यह आंचल है, मेरी बेटी. पसंद आई तुम्हें?’’

उस के इस बेतुके सवाल पर देव चौंक पड़ा और आंचल नाराज हो कर पिता के साथ घर चली आई.

अगले दिन अंसल दंपती के घर लड़कियों के मातापिता की ओर से देव के लिए विवाह प्रस्तावों की झड़ी

लग गई. रागिनी अंसल के जोर दे कर पूछने पर देव बोला, ‘‘मुझे आंचल पसंद है.’’

चौंक गईं रागिनी. क्योंकि भगत दंपती की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं आया था. एक सप्ताह के बाद रागिनी अंसल को भतीजे के लिए झुकना पड़ा. उन्होंने प्रेमा भगत को फोन लगाया और बोलीं, ‘‘आप ने मेरे भतीजे को देख कर अभी तक अपनी कोई राय नहीं दी.’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं रागिनीजी, मैं ने आप के भतीजे को देखा और पसंद भी किया पर आप को क्या बताऊं…’’ कहतेकहते प्रेमा रुक गई.

‘‘नहीं, आप को बात तो बतानी ही पड़ेगी,’’ श्रीमती अंसल की रौबीली आवाज सुन कर प्रेमा भगत का मुख अपनेआप खुल गया और वह बोल पड़ी, ‘‘आंचल को देव की चुटिया पसंद नहीं है.’’

आंचल की नापसंदगी सुन कर रागिनी को धक्का सा लगा और उन्होंने आहत हो कर फोन रख दिया.

यह पता चलते ही देव अंसल ने आम भारतीय युवाओं की तरह तुरंत बाल कटवा लिए और पहुंच गया आंचल के आफिस. देव को इस नए रूप में सामने खड़ा देख कर आंचल चौंक उठी.

देव बड़ी विनम्रता के साथ आंचल से बोला, ‘‘मिस, क्या आज शाम आफिस के बाद आप मेरे साथ एक कप चाय पीना पसंद करेंगी?’’

उस के निमंत्रण में एक अनोखी आतुरता का भाव देख कर आंचल मना नहीं कर सकी.

इस पहली मुलाकात के बाद तो दोनों की शामें एकसाथ गुजरने लगीं.

दोनों के ही घर वाले देव व आंचल की मुलाकातों से अनजान थे पर बाहर वालों की नजरों से कब तक बचे रहते, खासकर तब जब मामला अंसल परिवार से जुड़ा हो. दोनों के घर वालों को जब उन के आपस में मिलने की जानकारी हुई तो भगत परिवार बेहद खुश हुआ पर रागिनी अंसल के पैरों तले धरती खिसक गई.

इस बीच देव ने आंचल के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया. आंचल ने भी हां कर दी. बेटी के हां करने की बात सुन कर प्रेमा भगत ने उसे खुशी से चूमते हुए कहा, ‘‘आखिर बेटी किस की है.’’

एक भव्य समारोह में देव व आंचल का विवाह हो गया. चूंकि अंसल परिवार के साथ रिश्ता हुआ था और आंचल के मांबाप ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि देव अमेरिका के किस शहर में रहता है तथा वहां काम क्या कर रहा है. फिर भी आंचल के बौस केशवन ने उस का त्यागपत्र अस्वीकार करते हुए उसे समझाया, ‘‘आंचल, मैं तुम्हारे पिता समान हूं. बहुत अनुभवी हूं. अनजान देश में अनजान पुरुष के साथ जा रही हो. बेशक देव तुम्हारा पति है पर तुम उस के बारे में अधिक तो नहीं जानतीं इसलिए नौकरी मत छोड़ो. वहां न्यूयार्क में भी हमारी कंपनी की एक शाखा है, मैं तुम्हारी पोस्टिंग वहीं कर दे रहा हूं. अवश्य ज्वाइन कर लेना.’’

देव को बिना बताए आंचल ने वहां का नियुक्तिपत्र संभाल कर रख लिया था.

एअरपोर्ट पर विदा करने आए लोगों की भीड़ देख कर आंचल को अपने भाग्य पर रश्क होने लगा. लगभग 16 घंटे का हवाई सफर था पर देव अपने ही खयालों में खोया था. बड़ा विचित्र लगा आंचल को.

पहली बार आंचल को ध्यान आया कि देव ने अपने बिजनेस के बारे में उसे कुछ भी नहीं बताया था. पूछने पर बोला, ‘‘दूर जा रही हो तो खुद ही सब देख लेना. न्यूयार्क शहर की सीमा से लगा मेरा कारखाना है, कारों के कलपुर्जे बनते हैं.’’

आश्वस्त हुई आंचल जान कर.

न्यूयार्क पहुंच कर अगले ही दिन सुबह देव कारखाने चला गया तो उस विशालकाय बंगले में आंचल अकेली ही रह गई. देव जब तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो चौथे दिन बोर हो कर आंचल ने नौकरी ज्वाइन करने का मन बनाया.

कंपनी की न्यूयार्क शाखा के बौस रेमंड ने उस का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया. पूरे स्टाफ से परिचय करवाया. पति के रूप में देव अंसल का नाम सुनते ही वहां अचानक चुप्पी छा गई. आंचल ने चौंक कर रेमंड की ओर देखा तो उन्होंने इशारे से आंचल को अपने केबिन में बुलाया और पूछा, ‘‘क्या वास्तव में तुम्हारे पति देव अंसल ही हैं?’’

रेमंड के प्रश्न और स्टाफ के लोगों की चुप्पी को देख कर उसे किसी अनहोनी का पूर्वाभास हो रहा था.

कुछ रुक कर रेमंड ने फिर पूछा, ‘‘मैडम, देव अंसल से आप का विधिवत विवाह हुआ है? या आप दोनों की ‘लिव इन’ व्यवस्था है?’’

‘‘यह ‘लिव इन’ व्यवस्था क्या होती है, मैं समझी नहीं, सर. स्पष्ट बताइए,’’ आंचल कांपते हुए बोली.

‘‘जब बिना विवाह के लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगते हैं तो उसे ‘लिव इन’ व्यवस्था कहते हैं,’’  रेमंड बोले, ‘‘विश्वास नहीं होता कि देव अंसल जैसे व्यक्ति ने विवाह कैसे कर लिया. वह तो ‘लिव इन’ व्यवस्था का पक्षधर है. तकरीबन 2 साल पहले अरुणा नाम की एक लड़की देव के साथ ‘लिव इन’ थी. गर्भवती हो गई तो देव पर विवाह के लिए जोर डालने लगी तब देव ने उसे अपने घर से निकाल बाहर किया. सुनते हैं उस ने…’’

‘‘आत्महत्या कर ली,’’ आंचल ने उन का वाक्य पूरा किया.

चौंक कर रेमंड ने आंचल की ओर देखा और बोले, ‘‘नहीं, उस ने आत्महत्या नहीं की थी, उस की हत्या हुई थी. पुलिस को देव पर शक था. वह इस मामले में जेल भी गया था पर सुबूत के अभाव में छूट गया.’’

आंचल याद करने लगी अरुणा को, जो उस के साथ कालिज में पढ़ती थी और अचानक पता चला कि उस को किसी एन.आर.आई. से प्रेम हो गया था और वह हमेशा के लिए अमेरिका चली गई थी.

रेमंड ने बताया कि देव ने अपने कारखाने में ही एक छोटा सा बंगला बनवा रखा है. वहां आजकल मिली नाम की एक अमेरिकन लड़की ‘लिव इन’ व्यवस्था में देव के साथ रह रही है,’’ फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यहां आने वाले कुछ भारतीय पुरुष दोहरा मानदंड अपनाते हैं, अकेले में यहां कुछ और भारत में मातापिता तथा रिश्तेदारों के सामने कुछ अलग मुखौटा ओढ़े रहते हैं.’’

आंचल सोच रही थी कि देव का असली चेहरा सब के सामने लाना होगा ताकि वह आगे किसी लड़की की भावनाओं से खिलवाड़ न कर सके.

अपने दफ्तर के एक अमेरिकन सहयोगी के साथ वह अंसल के कारखाने की ओर चल पड़ी.

ठिकाने पर पहुंच कर आंचल ने देखा कि कारखाने के पश्चिमी छोर पर स्थित बंगला दूर से ही लुभा रहा था. वह कारखाने के सामने वाले दरवाजे से न जा कर बंगले की दूसरी तरफ वाले दरवाजे से अंदर घुसी. कुत्तों के भौंकने की आवाज सुन कर अंदर से एक बेहद खूबसूरत युवती बाहर निकली. बड़े ही सहज भाव से आंचल ने आगे बढ़ कर उस का अभिवादन किया और बोली, ‘‘मैं आंचल हूं. देव से मिलने के लिए भारत से यहां आई हूं.’’

उस लड़की ने अंगरेजी में कहा, ‘‘देव बाहर गया है. एक घंटे के बाद लौटेगा. आप यहां बैठ कर इंतजार कर सकती हैं.’’

आंचल यही तो चाहती थी. उसे अंदर ले जाते हुए मिली ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं देव की पत्नी मिली हूं.’’

तपाक से आंचल बोली, ‘‘मैं भी देव की कानूनन ब्याहता पत्नी हूं. उस ने 15 दिन पहले भारत में मुझ से विवाह किया था.’’

एक घंटे बाद जब देव लौटा तो मिली और आंचल को एकसाथ एक सोफे पर बैठा देख कर बौखला गया. वह घबरा कर उलटे पांव वापस लौटने ही वाला था कि दोनों ने उसे लपक कर पकड़ लिया और अंदर ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया.

इस के बाद आंचल और मिली ने फोन कर पुलिस को बुलाया और देव को धोखा दे कर विवाह करने के अपराध में पुलिस के हवाले कर दिया. यही नहीं दोनों ने मिल कर अरुणा की संदेहास्पद मौत की फाइल को दोबारा खुलवा दिया.

बेटी आंचल को सहीसलामत वापस पा कर प्रेमा भगत एक अलग ही सुकून महसूस कर रही थी. रागिनी अंसल ने किट्टी ग्रुप से हमेशा के लिए अपना नाता तोड़ लिया तथा उन की भव्य पार्टी में अपनीअपनी बेटियों को सजा कर लाए मातापिता एकदूसरे से यही कह रहे थे, अच्छा हुआ जो हम बालबाल बच गए.

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नलिनी शर्मा

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5 साल पहले अंसल दंपती ने उस पौश कालोनी में यह विशाल बंगला खरीदा था. उन के आते ही कालोनी की महिलाएं उन को अपनी किट्टी पार्टी में शामिल करने पहुंच गई थीं. उस पहली मुलाकात में भी रागिनी ने बिदा करते समय सब को एकएक आयातित सेंट की बोतल दी थी और साथ में यह भी कहा था, ‘‘आप सब ने मुझे अपनी किट्टी पार्टी में शामिल कर जो एहसान किया है उस के बदले यह उपहार कुछ भी नहीं है.’’

आयातित उपहार पा कर महिलाएं खुश होती थीं, पर प्रेमा भगत कुछ ज्यादा ही खुश होती थी जो रागिनी अंसल की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं था. वह ताड़ गई थीं कि इस औरत में विदेशी सामान के प्रति मोह कुछ ज्यादा ही है. इस तरह रागिनी अंसल ने 5 साल की किट्टी पार्टी की हर सदस्य को 6 उपहार दे डाले थे, सेंट, म्यूजिकल गुडि़या, नेल पालिश, नाइटक्रीम, लिपस्टिक तथा एक शो पीस, जिस का अजीब सा जिगजैग आकार था. इस शो पीस को सब ने बड़े गर्व से अपने ड्राइंगरूम में सजा लिया था.

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उपहार देते हुए अकसर रागिनी अंसल कहतीं, ‘‘क्या करूं, इतना सबकुछ है पर भोगने वाला कोई नहीं. बस, एक भतीजा है, वह भी विवाह नहीं करता. कोई लड़की उसे पसंद ही नहीं आती. परिवार बढ़े तो कैसे बढ़े?’’

जब से रागिनी ने अपने कुंआरे भतीजे के बारे में महिलाओं को बताया है तब से प्रेमा भगत अपनी बेटी आंचल का उस के साथ विवाह करने का सपना देखने लगी. पर मन की बात नहीं कह पाती क्योंकि करोड़ों में खेलने वाली रागिनी अंसल के सामने वह अपनेआप को बौना समझती थी. यद्यपि रागिनी अंसल आंचल के रूपलावण्य पर मुग्ध थीं पर वह खुद आगे बढ़ कर लड़की वालों से बात चलाना हेय समझती थीं.

इन सब से बेखबर आंचल अपनी दुनिया में व्यस्त थी. वह अपनी मां के एकदम विपरीत थी. इंजीनियरिंग कर के वह बंगलौर की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत थी. उसे विदेश व विदेशी वस्तुएं तनिक भी नहीं लुभाती थीं.

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सादा जीवन उच्च विचार की सोच वाली आंचल के साथ की लड़कियों ने जहां बाल कटवाए हुए थे वहीं वह अपने लंबे काले घने केशों को एक चोटी में बांधे रखती थी.

प्रेमा भगत बेटी के इस तरह से रहने पर अकसर खीज उठती, ‘‘पता नहीं यह लड़की किस पर गई है. तनिक भी कपड़े पहनने का ढंग नहीं है. इस के साथ की सब लड़कियां इंजीनियर बन कर अपने सहयोगियों के साथ प्रेम विवाह कर विदेश चली गईं पर यह अभी तक यहीं बैठी हुई है.’’

आंचल मां की बातें सुन कर हंस देती. उस पर मां की बड़बड़ का तनिक भी असर नहीं होता.

इस बार की किट्टी पार्टी से लौट कर प्रेमा भगत ने ठान ली थी कि वह आज आंचल से बात कर के ही रहेगी. जैसे ही बेटी घर आई उस ने रागिनी अंसल से मिली लिपस्टिक को दिखाते हुए पूछा, ‘‘आंचल, इस का शेड कैसा है? आयातित है, रागिनी अंसल ने दी है.’’

आंचल ने लिपस्टिक बिना हाथ में लिए दूर से देख कर कहा, ‘‘अच्छा शेड है मां, आप पर खूब फबेगा.’’

‘‘मैं अपनी नहीं तेरी बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं तो लिपस्टिक नहीं लगाती.’’

‘‘क्यों नहीं लगाती? कब तक ऐसे चलेगा? दूसरी लड़कियों की तरह तू क्यों नहीं ओढ़तीपहनती और अपनी मार्केट वेल्यू बढ़ाती.’’

‘‘मार्केट वेल्यू? मां, मैं क्या कोई बेचने की वस्तु हूं?’’ नाराज हो गई आंचल.

मांबेटी की बातचीत को ध्यान से सुन रहे पिता स्थिति बिगड़ती देख पत्नी को झिड़कने वाले अंदाज में बोले, ‘‘पढ़ीलिखी बेटी से कैसे बात करनी है इस की तुम्हें जरा भी तमीज नहीं,’’ और फिर बेटी को दुलार कर दूसरे कमरे में ले गए. पिता ने रात के एकांत में प्रेमा से पूछा, ‘‘क्यों, आंचल के लिए कोई लड़का ढूंढ़ रखा है क्या?’’

‘‘ढूंढ़ना क्या है, समझ लीजिए कि अपनी पकड़ के अंदर है. केवल आंचल को उस के अनुसार ढालना बाकी है.’’

फिर अपने पति को रागिनी अंसल के अमेरिका प्रवासी भतीजे तथा उन के विशालकाय बंगले के बारे में बता कर बोली, ‘‘रागिनी के न कोई आगे है न कोई पीछे. सबकुछ अपनी आंचल का होगा. ऐश करेगी वह अमेरिका में जा कर.’’

भारतीय संस्कृति के परिवेश में डूबे बापबेटी को विदेश में बसने के नाम से बड़ी कोफ्त होती थी. वैसे भी वह अपनी इकलौती बेटी को इतनी दूर भेजने के पक्ष में नहीं थे. बोले, ‘‘कोई यहीं का लड़का ढूंढ़ना चाहिए ताकि आंचल हमारी आंखों से ओझल न हो.’’

2 माह बाद रागिनी अंसल के यहां तीसरा चेहरा देख कर कालोनी के लोग चौंक उठे. एक नौजवान चोटियां बांधे अंसल दंपती के साथ कार में अकसर दिखाई देता. पता लगा कि वही उन का भतीजा देव अंसल है.

प्रेमा भगत उसे देख कर कुछ निराश हुई. बेटी आंचल को दिखाया तो वह बोली, ‘‘इस अजीबोगरीब चुटियाधारी जानवर को मुझ से दूर ही रखो मां, अन्यथा मैं इसे स्वयं खदेड़ दूंगी.’’

मां ने समझाया, ‘‘बेटी, आदमी का रूप नहीं, धन देखा जाता है.’’

आंचल ने मुंह बिचकाया, ‘‘ऊंह, पैसा तो मेरे पास भी बहुत है पर आकर्षक व्यक्तित्व पसंद है.’’

मां बेटी को समझाने में लगी ही थी कि रागिनी अंसल का निमंत्रण आ गया. अपने भतीजे से परिचय कराने के लिए सभी सपरिवार अगले दिन शाम पार्टी में आमंत्रित थे.

आंचल जाने को तैयार नहीं थी, पर मां के रोनेधोने के कारण तैयार हुई. पार्टी क्या थी, एक अच्छाखासा बड़ा आयोजन था जिस में शहर के तमाम बड़ेबड़े उद्योगपति, बड़ेबड़े नेता, सरकारी अफसर सपरिवार आए थे. उन के साथ उन के परिवार की बेटियां भी आई थीं जो एक से बढ़ कर एक डिजाइन की पोशाक पहने अपने शरीर की नुमाइश लगाने में लगी हुई थीं. आंचल सब से अलग कुरसी पर बैठी हाथ में ठंडा पेय ले कर उन्हें देखने में लगी हुई थी.

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अचानक देव अंसल ने आंचलके पास आ कर हाथ बढ़ाते हुए विनम्रता के साथ डांस के लिए आग्रह किया तो आंचल ने बेहद शालीनता से मना कर दिया. तभी प्रेमा भगत दनदनाती हुई आई और बोली, ‘‘यह आंचल है, मेरी बेटी. पसंद आई तुम्हें?’’

उस के इस बेतुके सवाल पर देव चौंक पड़ा और आंचल नाराज हो कर पिता के साथ घर चली आई.

अगले दिन अंसल दंपती के घर लड़कियों के मातापिता की ओर से देव के लिए विवाह प्रस्तावों की झड़ी

लग गई. रागिनी अंसल के जोर दे कर पूछने पर देव बोला, ‘‘मुझे आंचल पसंद है.’’

चौंक गईं रागिनी. क्योंकि भगत दंपती की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं आया था. एक सप्ताह के बाद रागिनी अंसल को भतीजे के लिए झुकना पड़ा. उन्होंने प्रेमा भगत को फोन लगाया और बोलीं, ‘‘आप ने मेरे भतीजे को देख कर अभी तक अपनी कोई राय नहीं दी.’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं रागिनीजी, मैं ने आप के भतीजे को देखा और पसंद भी किया पर आप को क्या बताऊं…’’ कहतेकहते प्रेमा रुक गई.

‘‘नहीं, आप को बात तो बतानी ही पड़ेगी,’’ श्रीमती अंसल की रौबीली आवाज सुन कर प्रेमा भगत का मुख अपनेआप खुल गया और वह बोल पड़ी, ‘‘आंचल को देव की चुटिया पसंद नहीं है.’’

आंचल की नापसंदगी सुन कर रागिनी को धक्का सा लगा और उन्होंने आहत हो कर फोन रख दिया.

यह पता चलते ही देव अंसल ने आम भारतीय युवाओं की तरह तुरंत बाल कटवा लिए और पहुंच गया आंचल के आफिस. देव को इस नए रूप में सामने खड़ा देख कर आंचल चौंक उठी.

देव बड़ी विनम्रता के साथ आंचल से बोला, ‘‘मिस, क्या आज शाम आफिस के बाद आप मेरे साथ एक कप चाय पीना पसंद करेंगी?’’

उस के निमंत्रण में एक अनोखी आतुरता का भाव देख कर आंचल मना नहीं कर सकी.

इस पहली मुलाकात के बाद तो दोनों की शामें एकसाथ गुजरने लगीं.

दोनों के ही घर वाले देव व आंचल की मुलाकातों से अनजान थे पर बाहर वालों की नजरों से कब तक बचे रहते, खासकर तब जब मामला अंसल परिवार से जुड़ा हो. दोनों के घर वालों को जब उन के आपस में मिलने की जानकारी हुई तो भगत परिवार बेहद खुश हुआ पर रागिनी अंसल के पैरों तले धरती खिसक गई.

इस बीच देव ने आंचल के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया. आंचल ने भी हां कर दी. बेटी के हां करने की बात सुन कर प्रेमा भगत ने उसे खुशी से चूमते हुए कहा, ‘‘आखिर बेटी किस की है.’’

एक भव्य समारोह में देव व आंचल का विवाह हो गया. चूंकि अंसल परिवार के साथ रिश्ता हुआ था और आंचल के मांबाप ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि देव अमेरिका के किस शहर में रहता है तथा वहां काम क्या कर रहा है. फिर भी आंचल के बौस केशवन ने उस का त्यागपत्र अस्वीकार करते हुए उसे समझाया, ‘‘आंचल, मैं तुम्हारे पिता समान हूं. बहुत अनुभवी हूं. अनजान देश में अनजान पुरुष के साथ जा रही हो. बेशक देव तुम्हारा पति है पर तुम उस के बारे में अधिक तो नहीं जानतीं इसलिए नौकरी मत छोड़ो. वहां न्यूयार्क में भी हमारी कंपनी की एक शाखा है, मैं तुम्हारी पोस्टिंग वहीं कर दे रहा हूं. अवश्य ज्वाइन कर लेना.’’

देव को बिना बताए आंचल ने वहां का नियुक्तिपत्र संभाल कर रख लिया था.

एअरपोर्ट पर विदा करने आए लोगों की भीड़ देख कर आंचल को अपने भाग्य पर रश्क होने लगा. लगभग 16 घंटे का हवाई सफर था पर देव अपने ही खयालों में खोया था. बड़ा विचित्र लगा आंचल को.

पहली बार आंचल को ध्यान आया कि देव ने अपने बिजनेस के बारे में उसे कुछ भी नहीं बताया था. पूछने पर बोला, ‘‘दूर जा रही हो तो खुद ही सब देख लेना. न्यूयार्क शहर की सीमा से लगा मेरा कारखाना है, कारों के कलपुर्जे बनते हैं.’’

आश्वस्त हुई आंचल जान कर.

न्यूयार्क पहुंच कर अगले ही दिन सुबह देव कारखाने चला गया तो उस विशालकाय बंगले में आंचल अकेली ही रह गई. देव जब तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो चौथे दिन बोर हो कर आंचल ने नौकरी ज्वाइन करने का मन बनाया.

कंपनी की न्यूयार्क शाखा के बौस रेमंड ने उस का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया. पूरे स्टाफ से परिचय करवाया. पति के रूप में देव अंसल का नाम सुनते ही वहां अचानक चुप्पी छा गई. आंचल ने चौंक कर रेमंड की ओर देखा तो उन्होंने इशारे से आंचल को अपने केबिन में बुलाया और पूछा, ‘‘क्या वास्तव में तुम्हारे पति देव अंसल ही हैं?’’

रेमंड के प्रश्न और स्टाफ के लोगों की चुप्पी को देख कर उसे किसी अनहोनी का पूर्वाभास हो रहा था.

कुछ रुक कर रेमंड ने फिर पूछा, ‘‘मैडम, देव अंसल से आप का विधिवत विवाह हुआ है? या आप दोनों की ‘लिव इन’ व्यवस्था है?’’

‘‘यह ‘लिव इन’ व्यवस्था क्या होती है, मैं समझी नहीं, सर. स्पष्ट बताइए,’’ आंचल कांपते हुए बोली.

‘‘जब बिना विवाह के लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगते हैं तो उसे ‘लिव इन’ व्यवस्था कहते हैं,’’  रेमंड बोले, ‘‘विश्वास नहीं होता कि देव अंसल जैसे व्यक्ति ने विवाह कैसे कर लिया. वह तो ‘लिव इन’ व्यवस्था का पक्षधर है. तकरीबन 2 साल पहले अरुणा नाम की एक लड़की देव के साथ ‘लिव इन’ थी. गर्भवती हो गई तो देव पर विवाह के लिए जोर डालने लगी तब देव ने उसे अपने घर से निकाल बाहर किया. सुनते हैं उस ने…’’

‘‘आत्महत्या कर ली,’’ आंचल ने उन का वाक्य पूरा किया.

चौंक कर रेमंड ने आंचल की ओर देखा और बोले, ‘‘नहीं, उस ने आत्महत्या नहीं की थी, उस की हत्या हुई थी. पुलिस को देव पर शक था. वह इस मामले में जेल भी गया था पर सुबूत के अभाव में छूट गया.’’

आंचल याद करने लगी अरुणा को, जो उस के साथ कालिज में पढ़ती थी और अचानक पता चला कि उस को किसी एन.आर.आई. से प्रेम हो गया था और वह हमेशा के लिए अमेरिका चली गई थी.

रेमंड ने बताया कि देव ने अपने कारखाने में ही एक छोटा सा बंगला बनवा रखा है. वहां आजकल मिली नाम की एक अमेरिकन लड़की ‘लिव इन’ व्यवस्था में देव के साथ रह रही है,’’ फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यहां आने वाले कुछ भारतीय पुरुष दोहरा मानदंड अपनाते हैं, अकेले में यहां कुछ और भारत में मातापिता तथा रिश्तेदारों के सामने कुछ अलग मुखौटा ओढ़े रहते हैं.’’

आंचल सोच रही थी कि देव का असली चेहरा सब के सामने लाना होगा ताकि वह आगे किसी लड़की की भावनाओं से खिलवाड़ न कर सके.

अपने दफ्तर के एक अमेरिकन सहयोगी के साथ वह अंसल के कारखाने की ओर चल पड़ी.

ठिकाने पर पहुंच कर आंचल ने देखा कि कारखाने के पश्चिमी छोर पर स्थित बंगला दूर से ही लुभा रहा था. वह कारखाने के सामने वाले दरवाजे से न जा कर बंगले की दूसरी तरफ वाले दरवाजे से अंदर घुसी. कुत्तों के भौंकने की आवाज सुन कर अंदर से एक बेहद खूबसूरत युवती बाहर निकली. बड़े ही सहज भाव से आंचल ने आगे बढ़ कर उस का अभिवादन किया और बोली, ‘‘मैं आंचल हूं. देव से मिलने के लिए भारत से यहां आई हूं.’’

उस लड़की ने अंगरेजी में कहा, ‘‘देव बाहर गया है. एक घंटे के बाद लौटेगा. आप यहां बैठ कर इंतजार कर सकती हैं.’’

आंचल यही तो चाहती थी. उसे अंदर ले जाते हुए मिली ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं देव की पत्नी मिली हूं.’’

तपाक से आंचल बोली, ‘‘मैं भी देव की कानूनन ब्याहता पत्नी हूं. उस ने 15 दिन पहले भारत में मुझ से विवाह किया था.’’

एक घंटे बाद जब देव लौटा तो मिली और आंचल को एकसाथ एक सोफे पर बैठा देख कर बौखला गया. वह घबरा कर उलटे पांव वापस लौटने ही वाला था कि दोनों ने उसे लपक कर पकड़ लिया और अंदर ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया.

इस के बाद आंचल और मिली ने फोन कर पुलिस को बुलाया और देव को धोखा दे कर विवाह करने के अपराध में पुलिस के हवाले कर दिया. यही नहीं दोनों ने मिल कर अरुणा की संदेहास्पद मौत की फाइल को दोबारा खुलवा दिया.

बेटी आंचल को सहीसलामत वापस पा कर प्रेमा भगत एक अलग ही सुकून महसूस कर रही थी. रागिनी अंसल ने किट्टी ग्रुप से हमेशा के लिए अपना नाता तोड़ लिया तथा उन की भव्य पार्टी में अपनीअपनी बेटियों को सजा कर लाए मातापिता एकदूसरे से यही कह रहे थे, अच्छा हुआ जो हम बालबाल बच गए.

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नलिनी शर्मा

The post मोहभंग : आंचल अपनी बेटी की शादी बड़े घराने में कराने से क्यों कतराती थी appeared first on Sarita Magazine.

May 31, 2021 at 10:00AM

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