Sunday 30 May 2021

विश्वास का मोल : आशीष को अपने पैदा होने पर क्यों पछतावा हो रहा था– भाग 1

लेखिका-रेणु दीप

जैसे ही बड़े भैया का फोन आया कि फौरन दिल्ली जाना है, आशीष, मेरे भांजे, को किसी ने जहर खिला दिया है और उस की हालत गंभीर है, मेरे तो हाथपैर ठंडे हो गए. बारबार बस यही खयाल आया कि हो न हो चिन्मयानंद ने ही यह कांड किया होगा, नहीं तो सीधेसादे आशीष के पीछे कोई क्यों पड़ेगा? क्यों कोई उसे जहर खिलाएगा?

जब से चिन्मयानंद ने मेरी भांजी  झरना से शादी कर मेरी बहन के घर अपना अड्डा जमाया तभी से मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त था और आखिरकार मेरी आशंका सच साबित हुई.

हम सभी  झरना की शादी इस पाखंडी चिन्मयानंद से होने के खिलाफ थे.  झरना की मां यानी मेरी बड़ी बहन हमारे परिवार तथा परिचितों में ‘दिल्ली वाली’ के नाम से जानी जाती हैं. यह सब उन्हीं की करनी थी. उन्हें शुरू से साधुसंतों पर अटूट विश्वास था. आएदिन उन के घर न जाने कहांकहां के साधुसंतों का जमावड़ा रहता. जब से उन के यहां बद्रीनाथ के बाबा के आशीर्वाद से आशीष और  झरना का जन्म हुआ तब से वे साधुसंन्यासियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थीं. जब भी उन के घर जाओ, उन के मुंह से किसी न किसी आदर्श साधुसंत के गुणगान सुनने को मिलते.

मु झे उन की इस आदत से बहुत दुख होता और मैं उन्हें इस के लिए खरीखोटी सुनाती. लेकिन मेरा सारा कहनासुनना वे एक तरल मुसकराहट से पी जातीं और बहुत ही धैर्य व तसल्ली से सम झातीं, ‘देख लल्ली, तू ठहरी आजकल की पढ़ीलिखी छोरी. तु झे इन साधुसंतों के चमत्कारों का क्या ज्ञान. तू तो सदा खुशहाल रही है. मेरे जैसे दुखों की तो तु झ पर परछाईं भी नहीं पड़ी है. सो, तु झे इन साधुसंतों की शरण में जाने की क्या जरूरत? देख लल्ली, मैं कभी न चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी दुख या निराशा की बदली तेरे आंगन में छाए, लेकिन फिर भी मैं तु झ से कहे देती हूं कि कभी किसी तरह के दुख या विपरीत परिस्थितियों से तेरा सामना हो तो सीधे मेरे पास चली आना. इतने गुणी और चमत्कारी साधुमहात्माओं से मेरी पहचान है कि सारे कष्टों की बदली को वे अपने एक इशारे से हटा सकते हैं.

‘दिल्ली वाली कभी बड़े बोल नहीं बोलती लेकिन तू ही बता, साधुसंतों की बदौलत आज मु झे किस बात की कमी है? धनदौलत और औलद, सब से तो मेरा घरआंगन लबालब है.’

दीदी की यह गर्वोक्ति सुन कर मैं ने मन ही मन प्रकृति से यही मांगा कि मेरी बहन की खुशहाली को कभी किसी की नजर न लगे. हमेशा उन के घरचौबारे में खुशहाली रहे.

औलाद के अलावा उन को किसी चीज की कमी नहीं रही थी जिंदगी में. शादी से पहले से दीदी डीलडौल में कुछ ज्यादा ही इक्कीस थीं लेकिन भीमकाय काया के बावजूद अपने अच्छे कर्मों की बदौलत उन की शादी अच्छे मालदार घराने में बहुत ही छरहरे, सुदर्शन युवक से हुई.

जीजाजी दिल के इतने अच्छे कि दीदी के मुंह से कोईर् बात निकलती नहीं कि जीजाजी  झट उसे पूरा कर देते. जिंदगी में उन्हें बस एक कमी थी कि शादी के 15 वर्षों बाद तक उन के आंगन में कोई किलकारी नहीं गूंजी थी. जीजाजी को बच्चे न होने का कोई गम न था.

वे तो हमेशा दीदी से कहते, ‘अरे, अपना कोई बच्चा नहीं है तो अच्छा है न, तू मु झे कितना लाड़ लड़ाती है. अपने बीच बच्चे होते तो वह लाड़ बंट न जाता भला.’ लेकिन दीदी बच्चे के बिना जिंदगी कलपकलप कर गुजारतीं. वे तमाम मंदिरों, गुरुद्वारों, मजारों आदि पर बच्चा होने की मनौतियां मांग आई थीं. दिनभर साधुमहात्माओं के ठिकानों पर पड़ी रहतीं और उन के बताए व्रत, उपवास आदि पूरी निष्ठा से करतीं.

उसी दौरान दिल्ली में बद्रीबाबा नाम के एक साधु की बहुत धूम मची थी. दीदी उन के भक्तिभाव तथा चुंबकीय व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थीं. उन्होंने दीदी को एक अनुष्ठान करने के लिए कहा था. उन के कहे अनुसार लगातार 51 सोमवारों को यज्ञ करते ही दीदी गर्भवती हो गई थीं और नियत वक्त पर उन के यहां चांद सा सुंदर बेटा हुआ. बेटे के जन्म के बाद एक बेटी पाने को दीदी ने स्वामीजी द्वारा बताया अनुष्ठान दोबारा किया और फिर गर्भधारण करने पर नियत वक्त पर उन्होंने बहुत सुंदर कन्या को जन्म दिया. जैसेजैसे समय बीतता गया, साधुमहात्माओं में ‘दिल्ली वाली’ की निष्ठा बढ़ती ही गई.

अब तो पिछले कुछ सालों से उन के घर में बाकायदा चिन्मयानंद नाम के एक स्वामी ने घुसपैठ कर ली थी. वह स्वामी खुद को दिल्ली वाली का पिछले जन्म का बेटा बताता था. दीदी के घर में उसे दीदी और जीजाजी का अत्यधिक लाड़ मिलता. घर में उसे वे सारे अधिकार मिले थे जो उन के बेटे आशीष को थे. आशीष तो यहां तक कहने लगा था कि मां, उस से ज्यादा स्वामी चिन्मयानंद को चाहने लगी हैं. कभीकभी तो चिन्मयानंद को ले कर वह मां से  झगड़ बैठता और मां से चिन्मयानंद का पक्ष लेने की बाबत उन से हफ्तों रूठा रहता.

सरल स्वभाव के जीजाजी वही करते जो दीदी कहतीं. उन्होंने जिंदगी में कभी दीदी का सही या गलत किसी बात का विरोध नहीं किया. दीदी की खुशी में ही उन की खुशी थी. सो, उन्होंने चिन्मयानंद को बेटे की तरह रखा.

चिन्मयानंद भी पूरे अधिकारभाव से परिवार में रहता. उस ने सारे परिवार को अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के वश में कर रखा था.

चिन्मयानंद ने घर वालों को बताया था कि उस के असली मांबाप तो काशी में रहते हैं. उस के कई भाईबहन हुए, लेकिन सब बचपन में ही चल बसे. एक वही कुछ ज्यादा दिनों तक जिंदा रहा. सो

10-11 वर्ष का होते ही मातापिता ने उसे उसी साधु के सुपुर्द कर दिया जिस के आशीर्वाद से उस का जन्म हुआ था. वह साधु उसे अपने अन्य शागिर्दों की टोली के साथ हिमालय की तराइयों में ले गया था.

उस का बचपन स्वामीजी के साथ हिमालय की तराइयों में ही बीता. थोड़ा बड़ा होने पर उस ने स्वामीजी से दीक्षा ली थी.

चिन्मयानंद का स्वर बहुत ही मधुर था. स्वामीजी के ठिकाने पर कीर्तन का दायित्व उसी के कंधों पर था. जब भी वह अपने मधुर स्वरों में कोई भजन छेड़ता, कीर्तन में श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती.

एक दिन किसी प्रसिद्ध संगीत कंपनी के मालिक ने जब चिन्मयानंद का एक भजन सुना तो उस ने उस की गायन क्षमता से प्रभावित हो कर उस के भजनों के 2-3 कैसेट निकलवा दिए.

इधर यहां आने के कुछ ही दिनों बाद चिन्मयानंद ने इस घर से रिश्ता जोड़ने का पुख्ता इंतजाम कर लिया था. दीदी की एकलौती बेटी  झरना उस पर री झ कर उस के प्रेमपाश में जकड़ गई थी और उस की मंशा उस से विवाह करने की थी.

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जैसे ही बड़े भैया का फोन आया कि फौरन दिल्ली जाना है, आशीष, मेरे भांजे, को किसी ने जहर खिला दिया है और उस की हालत गंभीर है, मेरे तो हाथपैर ठंडे हो गए. बारबार बस यही खयाल आया कि हो न हो चिन्मयानंद ने ही यह कांड किया होगा, नहीं तो सीधेसादे आशीष के पीछे कोई क्यों पड़ेगा? क्यों कोई उसे जहर खिलाएगा?

जब से चिन्मयानंद ने मेरी भांजी  झरना से शादी कर मेरी बहन के घर अपना अड्डा जमाया तभी से मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त था और आखिरकार मेरी आशंका सच साबित हुई.

हम सभी  झरना की शादी इस पाखंडी चिन्मयानंद से होने के खिलाफ थे.  झरना की मां यानी मेरी बड़ी बहन हमारे परिवार तथा परिचितों में ‘दिल्ली वाली’ के नाम से जानी जाती हैं. यह सब उन्हीं की करनी थी. उन्हें शुरू से साधुसंतों पर अटूट विश्वास था. आएदिन उन के घर न जाने कहांकहां के साधुसंतों का जमावड़ा रहता. जब से उन के यहां बद्रीनाथ के बाबा के आशीर्वाद से आशीष और  झरना का जन्म हुआ तब से वे साधुसंन्यासियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थीं. जब भी उन के घर जाओ, उन के मुंह से किसी न किसी आदर्श साधुसंत के गुणगान सुनने को मिलते.

मु झे उन की इस आदत से बहुत दुख होता और मैं उन्हें इस के लिए खरीखोटी सुनाती. लेकिन मेरा सारा कहनासुनना वे एक तरल मुसकराहट से पी जातीं और बहुत ही धैर्य व तसल्ली से सम झातीं, ‘देख लल्ली, तू ठहरी आजकल की पढ़ीलिखी छोरी. तु झे इन साधुसंतों के चमत्कारों का क्या ज्ञान. तू तो सदा खुशहाल रही है. मेरे जैसे दुखों की तो तु झ पर परछाईं भी नहीं पड़ी है. सो, तु झे इन साधुसंतों की शरण में जाने की क्या जरूरत? देख लल्ली, मैं कभी न चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी दुख या निराशा की बदली तेरे आंगन में छाए, लेकिन फिर भी मैं तु झ से कहे देती हूं कि कभी किसी तरह के दुख या विपरीत परिस्थितियों से तेरा सामना हो तो सीधे मेरे पास चली आना. इतने गुणी और चमत्कारी साधुमहात्माओं से मेरी पहचान है कि सारे कष्टों की बदली को वे अपने एक इशारे से हटा सकते हैं.

‘दिल्ली वाली कभी बड़े बोल नहीं बोलती लेकिन तू ही बता, साधुसंतों की बदौलत आज मु झे किस बात की कमी है? धनदौलत और औलद, सब से तो मेरा घरआंगन लबालब है.’

दीदी की यह गर्वोक्ति सुन कर मैं ने मन ही मन प्रकृति से यही मांगा कि मेरी बहन की खुशहाली को कभी किसी की नजर न लगे. हमेशा उन के घरचौबारे में खुशहाली रहे.

औलाद के अलावा उन को किसी चीज की कमी नहीं रही थी जिंदगी में. शादी से पहले से दीदी डीलडौल में कुछ ज्यादा ही इक्कीस थीं लेकिन भीमकाय काया के बावजूद अपने अच्छे कर्मों की बदौलत उन की शादी अच्छे मालदार घराने में बहुत ही छरहरे, सुदर्शन युवक से हुई.

जीजाजी दिल के इतने अच्छे कि दीदी के मुंह से कोईर् बात निकलती नहीं कि जीजाजी  झट उसे पूरा कर देते. जिंदगी में उन्हें बस एक कमी थी कि शादी के 15 वर्षों बाद तक उन के आंगन में कोई किलकारी नहीं गूंजी थी. जीजाजी को बच्चे न होने का कोई गम न था.

वे तो हमेशा दीदी से कहते, ‘अरे, अपना कोई बच्चा नहीं है तो अच्छा है न, तू मु झे कितना लाड़ लड़ाती है. अपने बीच बच्चे होते तो वह लाड़ बंट न जाता भला.’ लेकिन दीदी बच्चे के बिना जिंदगी कलपकलप कर गुजारतीं. वे तमाम मंदिरों, गुरुद्वारों, मजारों आदि पर बच्चा होने की मनौतियां मांग आई थीं. दिनभर साधुमहात्माओं के ठिकानों पर पड़ी रहतीं और उन के बताए व्रत, उपवास आदि पूरी निष्ठा से करतीं.

उसी दौरान दिल्ली में बद्रीबाबा नाम के एक साधु की बहुत धूम मची थी. दीदी उन के भक्तिभाव तथा चुंबकीय व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थीं. उन्होंने दीदी को एक अनुष्ठान करने के लिए कहा था. उन के कहे अनुसार लगातार 51 सोमवारों को यज्ञ करते ही दीदी गर्भवती हो गई थीं और नियत वक्त पर उन के यहां चांद सा सुंदर बेटा हुआ. बेटे के जन्म के बाद एक बेटी पाने को दीदी ने स्वामीजी द्वारा बताया अनुष्ठान दोबारा किया और फिर गर्भधारण करने पर नियत वक्त पर उन्होंने बहुत सुंदर कन्या को जन्म दिया. जैसेजैसे समय बीतता गया, साधुमहात्माओं में ‘दिल्ली वाली’ की निष्ठा बढ़ती ही गई.

अब तो पिछले कुछ सालों से उन के घर में बाकायदा चिन्मयानंद नाम के एक स्वामी ने घुसपैठ कर ली थी. वह स्वामी खुद को दिल्ली वाली का पिछले जन्म का बेटा बताता था. दीदी के घर में उसे दीदी और जीजाजी का अत्यधिक लाड़ मिलता. घर में उसे वे सारे अधिकार मिले थे जो उन के बेटे आशीष को थे. आशीष तो यहां तक कहने लगा था कि मां, उस से ज्यादा स्वामी चिन्मयानंद को चाहने लगी हैं. कभीकभी तो चिन्मयानंद को ले कर वह मां से  झगड़ बैठता और मां से चिन्मयानंद का पक्ष लेने की बाबत उन से हफ्तों रूठा रहता.

सरल स्वभाव के जीजाजी वही करते जो दीदी कहतीं. उन्होंने जिंदगी में कभी दीदी का सही या गलत किसी बात का विरोध नहीं किया. दीदी की खुशी में ही उन की खुशी थी. सो, उन्होंने चिन्मयानंद को बेटे की तरह रखा.

चिन्मयानंद भी पूरे अधिकारभाव से परिवार में रहता. उस ने सारे परिवार को अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के वश में कर रखा था.

चिन्मयानंद ने घर वालों को बताया था कि उस के असली मांबाप तो काशी में रहते हैं. उस के कई भाईबहन हुए, लेकिन सब बचपन में ही चल बसे. एक वही कुछ ज्यादा दिनों तक जिंदा रहा. सो

10-11 वर्ष का होते ही मातापिता ने उसे उसी साधु के सुपुर्द कर दिया जिस के आशीर्वाद से उस का जन्म हुआ था. वह साधु उसे अपने अन्य शागिर्दों की टोली के साथ हिमालय की तराइयों में ले गया था.

उस का बचपन स्वामीजी के साथ हिमालय की तराइयों में ही बीता. थोड़ा बड़ा होने पर उस ने स्वामीजी से दीक्षा ली थी.

चिन्मयानंद का स्वर बहुत ही मधुर था. स्वामीजी के ठिकाने पर कीर्तन का दायित्व उसी के कंधों पर था. जब भी वह अपने मधुर स्वरों में कोई भजन छेड़ता, कीर्तन में श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती.

एक दिन किसी प्रसिद्ध संगीत कंपनी के मालिक ने जब चिन्मयानंद का एक भजन सुना तो उस ने उस की गायन क्षमता से प्रभावित हो कर उस के भजनों के 2-3 कैसेट निकलवा दिए.

इधर यहां आने के कुछ ही दिनों बाद चिन्मयानंद ने इस घर से रिश्ता जोड़ने का पुख्ता इंतजाम कर लिया था. दीदी की एकलौती बेटी  झरना उस पर री झ कर उस के प्रेमपाश में जकड़ गई थी और उस की मंशा उस से विवाह करने की थी.

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May 31, 2021 at 10:00AM

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