Monday 31 May 2021

उस का हौसला : हर कोई सुधा की परवरिश पर दोष क्यों दे रहा था- भाग 1

लेखिका -डा. के रानी

सुधा बहुत ध्यान से टीवी धारावाहिक देख रही थी. सामने सोफे पर बैठे परेश अखबार पढ़ रहे थे. टीवी की ऊंची आवाज उन के कानों में भी पड़ रही थी. बीचबीच में  अखबार से नजर हटा कर वे सुधा पर डाल लेते। सुधा के चेहरे पर चढ़तेउतरते भाव से साफ पता चल रहा था कि टीवी धारावाहिक का असर उस के दिमाग के साथ सीमित नहीं था वरन उस के अंदर भी हलचल मचा रहा था.

धारावाहिक की युवा नायिका अपनी मम्मी से सवालजवाब कर रही थी. सुधा को उस के डायलौग जरा भी पसंद नहीं आ रहे थे.

वह बोली,”देखो तो इस की जबान कितनी तेज चल रही है…”

“तुम किस की बात कर रही हो?”

“टीवी पर चल रहे धारावाहिक की.”

“तो इस में इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? सीरियल ही तो है.”

“देखा नहीं, इस की हरकतें अपनी डिंपी से कितनी मिलती हैं.”

“पता नहीं क्यों हर समय तुम्हारे दिल और दिमाग पर डिंपी सवार रहती है. तुम्हें तो हर जगह आवाज उठाने वाली लड़की डिंपी दिखाई देती है. लगता है, जैसे तुम हर नायिका में उसी का किरदार ढूंढ़ती रहती हो.”

“वह काम ही ऐसा कर रही है. खानदान की इज्जत उतार कर रखना चाहती है. भले ही तुम्हें उस की हरकतों पर एतराज न हो लेकिन मैं उसे ले कर बहुत परेशान हूं।”

“सुधा, डिंपी जो करने जा रही है आज वह समाज में आम बात हो गई है।”

“तुम्हारे लिए हो गई होगी. मेरे लिए नहीं. एक उच्च कुल की ब्राह्मण लड़की हो कर वह जनजाति समाज के लड़के से शादी करना चाहती है और तुम्हें इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही?”

“राहुल बहुत समझदार है। उस का पूरा परिवार पढ़ालिखा है. मानता हूं कि कभी वे जनजाति समाज में रहते थे लेकिन आज उन की स्थिति हम से किसी भी हालत में कम नहीं है। अगर डिंपी उस के साथ खुश रह सकती है तो हमें भी उस की खुशियों में शामिल हो जाना चाहिए.”

“जब पापा ही लड़की का इतना पक्ष ले तो बेटी को क्या चाहिए? वह तो कुछ भी कर सकती है.”

“तुम इस बात में मुझे क्यों दोष दे रही हो? डिंपी ने अपने लिए लड़का खुद चुना है लेकिन वह शादी भाग कर नहीं कर रही है.”

“इसी बात का तो मुझे दुख है. भाग कर चली जाती तो कोई परेशानी न होती. आज बाबूजी जिंदा होते तब देखती तुम इस रिश्ते के लिए कैसे राजी होते?”

“जो है नहीं उस के बारे में क्या सोचना? मैं तो वही करना चाहता हूं जो मेरे बच्चों के लिए ठीक हो. तुम केवल अपने तक ही सोच रही हो.”

“इस से पहले हमारे खानदान में किसी लड़की ने ऐसा काम नहीं किया। यह लड़की तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला कर रहेगी.”

“शायद पहले भी किसी में इतना हौसला होता तो वह भी कर लेता। इस के लिए भी सब्र और साहस दोनों ही चाहिए। हर किसी के बस का भी यह सब नहीं होता,” कह कर परेश वहां से उठ गए.

सुधा समझ गई थी कि परेश से इस बारे में कुछ कहना बेकार है. वह जब भी बेटी को ले कर कुछ कहना चाहती है, परेश उसे इसी तरह चुप करा देते.

सुधा आगे कुछ न कह कर इस समय अतीत में उतरने लगी. उसे अपनी बेटी डिंपी का बचपन याद आने लगा था. वह जानती थी कि डिंपी की हरकतें बचपन से हमेशा बहुत उच्छृंखल थी. पढ़ाईलिखाई में उस का जरा भी मन ना लगता था. घर में हरकोई उस की इस कमजोरी को जानता था. खासकर उस की बुआ रमा को तो उस की हरकतें जरा भी पसंद न थीं.

उस के मायके आते ही सुधा डिंपी को ढूंढ कर उसे पढ़ने बैठा देती,”चुपचाप बैठ कर पाठ याद करो.”

“मैं ने अपना सारा काम कर लिया है मम्मी.”

“तभी तो कह रही हूं बैठ कर पाठ याद करो.”

इस के आगे डिंपी की कुछ कहने की हिम्मत न पड़ती. उस की हरकतें देख कर रमा भी भाभी को सुना देती,”भाभी, तुम इस पर जरा भी ध्यान नहीं देती हो.”

“तू ही बता रमा मैं क्या करूं? मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करती हूं। मानती हूं कि वह पढ़नेलिखने में बहुत होशियार नहीं है. वह एक औसत लड़की है और हर इंसान की क्षमता अलगअलग होती है.”

“यह बात डिंपी को अभी से समझ लेनी चाहिए.”

“तुम कुछ समय के लिए मायके आई हो. यहां रह कर आराम करो. छोड़ो इन सब बातों को.”

सुधा बात को टालने की कोशिश करती। वह जानती थी कि डिंपी का पढ़ाईलिखाई में मन नहीं लगता पर खेलकूद में और अन्य गतिविधियों में वह बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है. खेलने के लिए भी जब वह दूसरे शहर जाना चाहती तो सुधा को यह बात बहुत अखरती थी.

“चुपचाप जो कुछ करना है घर में रह कर करो. इधरउधर जाने की कोई जरूरत नहीं है।”

“कैसी बातें करती हो मम्मी? मेरे साथ की सारी लड़कियां खेलने जा रही हैं. एक आप ही हो जो हर काम के लिए मना कर देती हो.”

“कौन सा तुझे खेल कर गोल्ड मैडल मिलने वाले हैं…”

“जब खेलने का मौका दोगी तो मैडल भी मिल जाएंगे. आप तो शुरुआत में ही साफ मना कर देती हो,” डिंपी अपना तर्क रखती.

हार कर सुधा परेश को समझाती, “परेश, डिंपी बड़ी हो रही है. इस तरह उस का घर से बाहर रहना मुझे ठीक नहीं लगता।”

“वह स्कूल की ओर से खेलने जाती है सुधा. उस के साथ मैडम और स्कूल की और भी लड़कियां हैं. वह अकेले थोड़ी ही है।”

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लेखिका -डा. के रानी

सुधा बहुत ध्यान से टीवी धारावाहिक देख रही थी. सामने सोफे पर बैठे परेश अखबार पढ़ रहे थे. टीवी की ऊंची आवाज उन के कानों में भी पड़ रही थी. बीचबीच में  अखबार से नजर हटा कर वे सुधा पर डाल लेते। सुधा के चेहरे पर चढ़तेउतरते भाव से साफ पता चल रहा था कि टीवी धारावाहिक का असर उस के दिमाग के साथ सीमित नहीं था वरन उस के अंदर भी हलचल मचा रहा था.

धारावाहिक की युवा नायिका अपनी मम्मी से सवालजवाब कर रही थी. सुधा को उस के डायलौग जरा भी पसंद नहीं आ रहे थे.

वह बोली,”देखो तो इस की जबान कितनी तेज चल रही है…”

“तुम किस की बात कर रही हो?”

“टीवी पर चल रहे धारावाहिक की.”

“तो इस में इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? सीरियल ही तो है.”

“देखा नहीं, इस की हरकतें अपनी डिंपी से कितनी मिलती हैं.”

“पता नहीं क्यों हर समय तुम्हारे दिल और दिमाग पर डिंपी सवार रहती है. तुम्हें तो हर जगह आवाज उठाने वाली लड़की डिंपी दिखाई देती है. लगता है, जैसे तुम हर नायिका में उसी का किरदार ढूंढ़ती रहती हो.”

“वह काम ही ऐसा कर रही है. खानदान की इज्जत उतार कर रखना चाहती है. भले ही तुम्हें उस की हरकतों पर एतराज न हो लेकिन मैं उसे ले कर बहुत परेशान हूं।”

“सुधा, डिंपी जो करने जा रही है आज वह समाज में आम बात हो गई है।”

“तुम्हारे लिए हो गई होगी. मेरे लिए नहीं. एक उच्च कुल की ब्राह्मण लड़की हो कर वह जनजाति समाज के लड़के से शादी करना चाहती है और तुम्हें इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही?”

“राहुल बहुत समझदार है। उस का पूरा परिवार पढ़ालिखा है. मानता हूं कि कभी वे जनजाति समाज में रहते थे लेकिन आज उन की स्थिति हम से किसी भी हालत में कम नहीं है। अगर डिंपी उस के साथ खुश रह सकती है तो हमें भी उस की खुशियों में शामिल हो जाना चाहिए.”

“जब पापा ही लड़की का इतना पक्ष ले तो बेटी को क्या चाहिए? वह तो कुछ भी कर सकती है.”

“तुम इस बात में मुझे क्यों दोष दे रही हो? डिंपी ने अपने लिए लड़का खुद चुना है लेकिन वह शादी भाग कर नहीं कर रही है.”

“इसी बात का तो मुझे दुख है. भाग कर चली जाती तो कोई परेशानी न होती. आज बाबूजी जिंदा होते तब देखती तुम इस रिश्ते के लिए कैसे राजी होते?”

“जो है नहीं उस के बारे में क्या सोचना? मैं तो वही करना चाहता हूं जो मेरे बच्चों के लिए ठीक हो. तुम केवल अपने तक ही सोच रही हो.”

“इस से पहले हमारे खानदान में किसी लड़की ने ऐसा काम नहीं किया। यह लड़की तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला कर रहेगी.”

“शायद पहले भी किसी में इतना हौसला होता तो वह भी कर लेता। इस के लिए भी सब्र और साहस दोनों ही चाहिए। हर किसी के बस का भी यह सब नहीं होता,” कह कर परेश वहां से उठ गए.

सुधा समझ गई थी कि परेश से इस बारे में कुछ कहना बेकार है. वह जब भी बेटी को ले कर कुछ कहना चाहती है, परेश उसे इसी तरह चुप करा देते.

सुधा आगे कुछ न कह कर इस समय अतीत में उतरने लगी. उसे अपनी बेटी डिंपी का बचपन याद आने लगा था. वह जानती थी कि डिंपी की हरकतें बचपन से हमेशा बहुत उच्छृंखल थी. पढ़ाईलिखाई में उस का जरा भी मन ना लगता था. घर में हरकोई उस की इस कमजोरी को जानता था. खासकर उस की बुआ रमा को तो उस की हरकतें जरा भी पसंद न थीं.

उस के मायके आते ही सुधा डिंपी को ढूंढ कर उसे पढ़ने बैठा देती,”चुपचाप बैठ कर पाठ याद करो.”

“मैं ने अपना सारा काम कर लिया है मम्मी.”

“तभी तो कह रही हूं बैठ कर पाठ याद करो.”

इस के आगे डिंपी की कुछ कहने की हिम्मत न पड़ती. उस की हरकतें देख कर रमा भी भाभी को सुना देती,”भाभी, तुम इस पर जरा भी ध्यान नहीं देती हो.”

“तू ही बता रमा मैं क्या करूं? मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करती हूं। मानती हूं कि वह पढ़नेलिखने में बहुत होशियार नहीं है. वह एक औसत लड़की है और हर इंसान की क्षमता अलगअलग होती है.”

“यह बात डिंपी को अभी से समझ लेनी चाहिए.”

“तुम कुछ समय के लिए मायके आई हो. यहां रह कर आराम करो. छोड़ो इन सब बातों को.”

सुधा बात को टालने की कोशिश करती। वह जानती थी कि डिंपी का पढ़ाईलिखाई में मन नहीं लगता पर खेलकूद में और अन्य गतिविधियों में वह बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है. खेलने के लिए भी जब वह दूसरे शहर जाना चाहती तो सुधा को यह बात बहुत अखरती थी.

“चुपचाप जो कुछ करना है घर में रह कर करो. इधरउधर जाने की कोई जरूरत नहीं है।”

“कैसी बातें करती हो मम्मी? मेरे साथ की सारी लड़कियां खेलने जा रही हैं. एक आप ही हो जो हर काम के लिए मना कर देती हो.”

“कौन सा तुझे खेल कर गोल्ड मैडल मिलने वाले हैं…”

“जब खेलने का मौका दोगी तो मैडल भी मिल जाएंगे. आप तो शुरुआत में ही साफ मना कर देती हो,” डिंपी अपना तर्क रखती.

हार कर सुधा परेश को समझाती, “परेश, डिंपी बड़ी हो रही है. इस तरह उस का घर से बाहर रहना मुझे ठीक नहीं लगता।”

“वह स्कूल की ओर से खेलने जाती है सुधा. उस के साथ मैडम और स्कूल की और भी लड़कियां हैं. वह अकेले थोड़ी ही है।”

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June 01, 2021 at 10:00AM

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