Monday 31 May 2021

उस का हौसला : हर कोई सुधा की परवरिश पर दोष क्यों दे रहा था- भाग 3

लेखिका -डा. के रानी

“ऐसा नया जमाना तुम्हें ही मुबारक हो डिंपी जो तुम सब को इतनी बेशर्मी की छूट देता है.”
“आप को हमारी दोस्ती पर एतराज है ना मम्मी, तो ठीक है हम शादी कर लेंगे। तब तो किसी को कोई एतराज नहीं रहेगा। राहुल तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो?” डिंपी ने पूछा.

रमा के सामने मम्मीबेटी की बहस में राहुल चुप रहा। इस समय कुछ कह कर उन का गुस्सा बढ़ाना नहीं चाहता था। वह कभी सुधा आंटी का मुंह देख रहा था तो कभी रमा बुआ का.

“चुप कर। जो मुंह में आ रहा है वह बके जा रही है,”रमा जोर से बोली. “आंटी ठीक कह रही हैं. हमें बड़ों की इज्जत करनी चाहिए और उन का मान भी रहना रखना चाहिए,” कह कर राहुल दरवाजे से ही लौट गया.

डिंपी भी गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में आ गई. रमा ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और घर लौट गई. अगर वह कुछ देर और वहां रुकती तो शायद बात बहुत बढ़ जाती. डिंपी की हरकतें देख कर सुधा आज बहुत परेशान थी.

डिंपी के कहे शब्द सुधा के कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। वह बड़ी बेसब्री से परेश के औफिस से वापस आने का इंतजार कर रही थी. शाम को 6 बजे परेश घर आए। आते ही उन्होंने सुधा से पूछा,”तुम्हारा मुंह क्यों उतरा हुआ है?”

“यह तो तुम अपनी बेटी से पूछो.” “हुआ क्या है?” परेश बोले तो सुधा ने पूरी बात बता दी.
“डिंपी ने गुस्से में कह दिया होगा  मैं जानता हूं वह ऐसा नहीं कर सकती” “तुम उस से खुद ही पूछ लो,” कह कर पैर पटकते हुए सुधा वहां से हट गई.

सुधा के जाते ही डिंपी खुद ही पापा के पास आ गई। परेश ने पूछा,”यह मैं क्या सुन रहा हूं डिंपी?”
“आप ने ठीक सुना पापा.” “क्या कह रही हो तुम?” “पापा, मुझे राहुल पसंद है।”

“सबकुछ जान कर भी तुम ऐसी बात कर रही हो?”

“आप को समाज की परवाह है? मुझे नहीं.”

“तुम्हारे इस फैसले मे मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता.”

“साथ तो आप को देना ही होगा पापा। मैं शादी करूंगी तो सिर्फ राहुल से और वह भी आप की सहमति से,” कह कर डिंपी वहां से चली गई।

परेश को उस से ऐसी उम्मीद ना थी। इतना सब होने पर भी परेश ने धैर्य नहीं खोया।

सुधा बोली,”सुन ली अपनी लाड़ली की बातें.”

परेश ने समझाया,”हमें डिंपी को कुछ समय देना चाहिए। हो सकता है उस ने जज्बात मे बह कर ऐसा कह दिया हो।”

“मैं तो आप को शुरू से ही कह रही थी कि मुझे डिंपी का राहुल से मेलजोल कतई पसंद नहीं है.”

“मैं ने उससे इस बारे में बात की थी. उस ने राहुल को केवल अपना दोस्त बताया था.”

“पता नहीं आप उस की हर बात को आंख मूंद कर कैसे सच मान लेते हैं.”

“तुम थोड़ा सब्र रखो सुधा। देख लेना एक दिन सब ठीक हो जाएगा.”

“अब ठीक होने के लिए बचा ही क्या है?”

“डिंपी हमारी बेटी है दुश्मन नहीं।”

“लेकिन काम तो वह दुश्मनों से भी बुरा कर रही है,” कह कर सुधा किचन में आ गई।

उस दिन के बाद से राहुल कभी डिंपी को छोड़ने घर नहीं आया। अकसर डिंपी ही उस से मिलने चली जाती। परेश ने डिंपी को सोचने के लिए पूरा 1 साल इंतजार किया लेकिन डिंपी ने अपना फैसला नहीं बदला।

“पापा, मैं राहुल से ही शादी करूंगी.”

“मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता डिंपी। तुम चाहो तो कोर्ट मैरिज कर सकती हो.”

“पापा, मुझे यह सब करना होता तो बहुत पहले कर लेती। मैं चाहती हूं कि आप सब मेरी खुशी में शामिल हों।”

“मुझ से नहीं होगा, बेटा।”

“अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर दुनिया में कोई और खुशी नहीं होती पापा।

“तुम्हारे इस फैसले से पूरा परिवार नाखुश है।”

“मुझे उन की नहीं आप की परवाह है पापा?” कह कर डिंपी वहां से चली गई।

इस बारे में सुधा से उस की पहले ही बहुत बहस हो गई थी। डिंपी जानती थी यदि पापा मान गए तो मम्मी को उन की बात माननी ही पड़ेगी। राहुल के घर वालों को इस रिश्ते पर एतराज ना था। उन सभी को डिंपी बहुत पसंद थी।

डिंपी के घर में सामाजिक मर्यादाओं को ले कर ही अड़चन थी परेश जानते थे कि अपनी बिरादरी में भी उन्हें राहुल जैसा नेक और सुलझा हुआ दामाद नहीं मिल सकता। डिंपी  ने भी हार नहीं मानी।

परेश ने जब भी उसे समझाना चाहा उस का एक ही जवाब होता,”मैं राहुल के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगी.”

बेटी की जिद के आगे आखिर परेश  और सुधा को झुकना पड़ा। रिश्तेदारी में बड़ी थूथू हुई। बेटी की खुशी की खातिर परेश ने सादे समारोह में डिंपी और राहुल की शादी करा दी।

हरकोई सुधा की परवरिश को ही दोष दे रहा था जिस में बेटी को इतनी छूट दे रखी थी. अच्छे प्रतिष्ठित ब्राह्मण खानदान की बेटी इस तरीके से जनजाति परिवार में चली जाएगी, यह बात उन के गले से नीचे ही नहीं उतर रही थी. पीठ पीछे सब चटकारे ले कर बातें बना रहे थे। रमा के लिए भी यह सब सहन करना बहुत मुश्किल हो रहा था।

रिश्तेदार परेश से तो कुछ ना कहते लेकिन रमा को खूब सुना कर चले जाते। रमा का मन इस शादी में शामिल होने का जरा भी नहीं था, मगर अमन की जिद के कारण रमा को भी इस शादी में शामिल होना पड़ा था।

परेश ने कुछ गिनेचुने लोगों को भी समारोह में बुलाया था. बिरादरी में बड़े दिनों तक इस की चर्चा होती रही और धीरेधीरे सब चुप हो गए थे।

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लेखिका -डा. के रानी

“ऐसा नया जमाना तुम्हें ही मुबारक हो डिंपी जो तुम सब को इतनी बेशर्मी की छूट देता है.”
“आप को हमारी दोस्ती पर एतराज है ना मम्मी, तो ठीक है हम शादी कर लेंगे। तब तो किसी को कोई एतराज नहीं रहेगा। राहुल तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो?” डिंपी ने पूछा.

रमा के सामने मम्मीबेटी की बहस में राहुल चुप रहा। इस समय कुछ कह कर उन का गुस्सा बढ़ाना नहीं चाहता था। वह कभी सुधा आंटी का मुंह देख रहा था तो कभी रमा बुआ का.

“चुप कर। जो मुंह में आ रहा है वह बके जा रही है,”रमा जोर से बोली. “आंटी ठीक कह रही हैं. हमें बड़ों की इज्जत करनी चाहिए और उन का मान भी रहना रखना चाहिए,” कह कर राहुल दरवाजे से ही लौट गया.

डिंपी भी गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में आ गई. रमा ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और घर लौट गई. अगर वह कुछ देर और वहां रुकती तो शायद बात बहुत बढ़ जाती. डिंपी की हरकतें देख कर सुधा आज बहुत परेशान थी.

डिंपी के कहे शब्द सुधा के कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। वह बड़ी बेसब्री से परेश के औफिस से वापस आने का इंतजार कर रही थी. शाम को 6 बजे परेश घर आए। आते ही उन्होंने सुधा से पूछा,”तुम्हारा मुंह क्यों उतरा हुआ है?”

“यह तो तुम अपनी बेटी से पूछो.” “हुआ क्या है?” परेश बोले तो सुधा ने पूरी बात बता दी.
“डिंपी ने गुस्से में कह दिया होगा  मैं जानता हूं वह ऐसा नहीं कर सकती” “तुम उस से खुद ही पूछ लो,” कह कर पैर पटकते हुए सुधा वहां से हट गई.

सुधा के जाते ही डिंपी खुद ही पापा के पास आ गई। परेश ने पूछा,”यह मैं क्या सुन रहा हूं डिंपी?”
“आप ने ठीक सुना पापा.” “क्या कह रही हो तुम?” “पापा, मुझे राहुल पसंद है।”

“सबकुछ जान कर भी तुम ऐसी बात कर रही हो?”

“आप को समाज की परवाह है? मुझे नहीं.”

“तुम्हारे इस फैसले मे मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता.”

“साथ तो आप को देना ही होगा पापा। मैं शादी करूंगी तो सिर्फ राहुल से और वह भी आप की सहमति से,” कह कर डिंपी वहां से चली गई।

परेश को उस से ऐसी उम्मीद ना थी। इतना सब होने पर भी परेश ने धैर्य नहीं खोया।

सुधा बोली,”सुन ली अपनी लाड़ली की बातें.”

परेश ने समझाया,”हमें डिंपी को कुछ समय देना चाहिए। हो सकता है उस ने जज्बात मे बह कर ऐसा कह दिया हो।”

“मैं तो आप को शुरू से ही कह रही थी कि मुझे डिंपी का राहुल से मेलजोल कतई पसंद नहीं है.”

“मैं ने उससे इस बारे में बात की थी. उस ने राहुल को केवल अपना दोस्त बताया था.”

“पता नहीं आप उस की हर बात को आंख मूंद कर कैसे सच मान लेते हैं.”

“तुम थोड़ा सब्र रखो सुधा। देख लेना एक दिन सब ठीक हो जाएगा.”

“अब ठीक होने के लिए बचा ही क्या है?”

“डिंपी हमारी बेटी है दुश्मन नहीं।”

“लेकिन काम तो वह दुश्मनों से भी बुरा कर रही है,” कह कर सुधा किचन में आ गई।

उस दिन के बाद से राहुल कभी डिंपी को छोड़ने घर नहीं आया। अकसर डिंपी ही उस से मिलने चली जाती। परेश ने डिंपी को सोचने के लिए पूरा 1 साल इंतजार किया लेकिन डिंपी ने अपना फैसला नहीं बदला।

“पापा, मैं राहुल से ही शादी करूंगी.”

“मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता डिंपी। तुम चाहो तो कोर्ट मैरिज कर सकती हो.”

“पापा, मुझे यह सब करना होता तो बहुत पहले कर लेती। मैं चाहती हूं कि आप सब मेरी खुशी में शामिल हों।”

“मुझ से नहीं होगा, बेटा।”

“अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर दुनिया में कोई और खुशी नहीं होती पापा।

“तुम्हारे इस फैसले से पूरा परिवार नाखुश है।”

“मुझे उन की नहीं आप की परवाह है पापा?” कह कर डिंपी वहां से चली गई।

इस बारे में सुधा से उस की पहले ही बहुत बहस हो गई थी। डिंपी जानती थी यदि पापा मान गए तो मम्मी को उन की बात माननी ही पड़ेगी। राहुल के घर वालों को इस रिश्ते पर एतराज ना था। उन सभी को डिंपी बहुत पसंद थी।

डिंपी के घर में सामाजिक मर्यादाओं को ले कर ही अड़चन थी परेश जानते थे कि अपनी बिरादरी में भी उन्हें राहुल जैसा नेक और सुलझा हुआ दामाद नहीं मिल सकता। डिंपी  ने भी हार नहीं मानी।

परेश ने जब भी उसे समझाना चाहा उस का एक ही जवाब होता,”मैं राहुल के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगी.”

बेटी की जिद के आगे आखिर परेश  और सुधा को झुकना पड़ा। रिश्तेदारी में बड़ी थूथू हुई। बेटी की खुशी की खातिर परेश ने सादे समारोह में डिंपी और राहुल की शादी करा दी।

हरकोई सुधा की परवरिश को ही दोष दे रहा था जिस में बेटी को इतनी छूट दे रखी थी. अच्छे प्रतिष्ठित ब्राह्मण खानदान की बेटी इस तरीके से जनजाति परिवार में चली जाएगी, यह बात उन के गले से नीचे ही नहीं उतर रही थी. पीठ पीछे सब चटकारे ले कर बातें बना रहे थे। रमा के लिए भी यह सब सहन करना बहुत मुश्किल हो रहा था।

रिश्तेदार परेश से तो कुछ ना कहते लेकिन रमा को खूब सुना कर चले जाते। रमा का मन इस शादी में शामिल होने का जरा भी नहीं था, मगर अमन की जिद के कारण रमा को भी इस शादी में शामिल होना पड़ा था।

परेश ने कुछ गिनेचुने लोगों को भी समारोह में बुलाया था. बिरादरी में बड़े दिनों तक इस की चर्चा होती रही और धीरेधीरे सब चुप हो गए थे।

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May 29, 2021 at 10:00AM

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