Monday 31 May 2021

उस का हौसला : हर कोई सुधा की परवरिश पर दोष क्यों दे रहा था- भाग 4

लेखिका -डा. के रानी

डिंपी राहुल के साथ बहुत खुश थी।अब सुधा भी अपनी नाराजगी भूल कर उन की खुशियों में शामिल हो गई लेकिन रमा को यह बात बहुत अखर गई थी कि डिंपी ने अपनी बिरादरी से बाहर जा कर जनजाति समाज से ताल्लुक रखने वाले राहुल से शादी की थी. उसे अपने खानदान पर बहुत गुरूर था।

डिंपी ने राहुल को अपना कर उस के खानदान के मान को ठेस पहुंचाई थी जब कभी रमा इस बारे में सोचती तो उसे मन ही मन बहुत परेशानी होती.

डिंपी की शादी को पूरे 3 बरस हो गए थे। आज भी घर पर रमा से मिलने जो भी रिश्तेदार आता वह किसी न किसी बहाने उस का जिक्र जरूर छेड़ देता.

दोपहर में रमा के मामा आए थे। उन्होंने भी परेश और डिंपी को ले कर रमा को काफी कुछ कहा. वह चुपचाप रही. कुछ बोल कर वह अपनी खीज मामा के सामने नहीं उतारना चाहती थी लेकिन जब भी वह मायके जाती इस बात का जिक्र परेश भैया और सुधा भाभी से जरूर कर देती। रमा की जलीकटी बातें वे एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते.

मामाजी के जाने के बाद रमा के दिमाग में बहुत देर तक मायके की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमती रहीं और काफी समय तक वहां भटकने के बाद वह वर्तमान में लौट आई थी।

अमन उसे आवाज दे रहे थे,”कहां हो रमा? याद है, आज एक शादी के रिसेप्शन पर जाना है.”

“मुझे याद है लेकिन अभी तो उस में बहुत समय है,” कह कर रमा उठी और शादी में जाने की तैयारी करने लगी।

सारी पुरानी बातों को झटक कर वह तैयार होने में व्यस्त हो गई। रात के 8:00 बजे दोनों घर से निकले। संयोग से वैडिंग पौइंट में उन की मुलाकात सब से पहले परेश भैया और सुधा भाभी से हो गई।

रमा ने पूछा,”आप कब आईं भाभी?”

“बस अभी आई हूं। चलो, पहले दूल्हादुलहन को आशीर्वाद दे दें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे,” कह कर सुधा और रमा स्टैज की ओर बढ गए.

ग्रुप फोटो के बाद वे नीचे आए और एक किनारे बैठ गए। तभी वहां पर डिंपी और राहुल भी आ गए. उन्हें देख कर रमा बुरी तरह चौंकी. दोनों ने बढ़ कर बुआ का अभिवादन किया। बदले में रमा ने सिर पर हाथ रख कर उन्हें शुभकामनाएं दीं.

“तुम कब आईं?”

“कल रात आई थी और कल सुबह वापस जाना है। मम्मीपापा के कहने पर हम यहां आ गए,” बुआ के तेवर देख कर डिंपी ने अपनी सफाई दी.

रमा के चेहरे को देख कर साफ झलक कहा था कि उसे डिंपी और राहुल का इस तरह आना अच्छा नहीं लगा था.

“भाभी आप ने बताया नहीं?”

“हम अभी तो मिले हैं रमा बात करने की फुरसत कहां लगी जो तुम्हें घर के बारे में कुछ बताती, ” सुधा ने कहा.

राहुल के आगे बढ़ते ही रमा बोली,”सच में भाभी आप का दिल बहुत बड़ा है.”

“बच्चों के लिए दिल बड़ा रखना पड़ता है रमा। उन की खुशी से बढ़ कर हमारे लिए और कोई खुशी नहीं है,” बातों का रूख अपनी ओर होता देख डिंपी ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और वह बुआ और मम्मी के बीच से हट कर दूसरी ओर बढ़ गई.

डिंपी को जाते देख कर परेश ने अंदाजा लगा लिया कि रमा जरूर उसे आज फिर कुछ न कुछ सुनाने से बाज नहीं आएगी। वे झट से रमा के पास पहुंच गए और बोले,”मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था रमा.”

“क्यों भैया?”

“मेरे साथ आओ. आज मैं तुम्हें एक बहुत खास व्यक्ति से मिलाना चाहता हूं.”

“किस से भैया?”

“तुम खुद ही देख लेना.”

परेश के आग्रह पर रमा उन के साथ चली गई। सुधा भी डिंपी के साथ आ गई। परेश ने रमा को दीपक के सामने खड़ा कर दिया।

“कैसी हो रमा?” दीपक ने पूछा.

बरसों बाद उसे अचानक यों अपने सामने देख कर रमा को अपनी आंखों में विश्वास नहीं हुआ.

“तुम अचानक यहां?”

“अपने औफिस के सहयोगी की बेटी की शादी में आया हूं। भाई साहब को देख कर मैं ने तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने तुम से ही मिला दिया.”

“तुम भाई साहब को कैसे जानते हो? मैं ने तो तुम्हें कभी उन से नहीं मिलाया…”

“जरूरत इंसान से सब कुछ करा लेती है रमा। बस यही समझ लो, “कह कर दीपक ने इस बात को यहीं पर खत्म कर दिया।

वे दोनों बातें करने लगे. पुरानी यादों को ताजा कर के दोनों ही भावुक हो गए थे.

दीपक और रमा दोनों ग्रैजुएशन में एकसाथ पढ़ते थे। रमा ब्राह्मण परिवार से और दीपक राजपूत खानदान से ताल्लुक रखते थे। दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करते थे।

दीपक ने उसे जताया भी था,’रमा, मुझे तुम बहुत पसंद हो.’

लेकिन रमा अपनी जबान से कभी उसे कह नहीं पाई कि वह भी उसे बहुत चाहती है। दीपक की दिली इच्छा थी कि वे दोनों अपनी जिंदगी एकसाथ बिताएं। उस ने रमा से बहुत आग्रह किया कि वह इस सचाई को स्वीकार कर ले लेकिन समाज के डर से रमा अपनी भावनाओं को कभी इजहार ही नहीं कर पाई।

दीपक ने उसे समझाया,’हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं रमा तुम चाहो तो हम एक नई जिंदगी का आगाज कर सकते हैं.’

‘तुम तो मेरी पारिवारिक परिस्थितियों को जानते हो। बाबूजी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे,’रमा हर बार एक ही बात दोहरा देती।

वह जानती थी कि बाबूजी के सामने उस की पसंद का कोई मोल नहीं होगा।

दीपक भी इतनी आसानी से हार मानने वाला ना था। रमा को पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था। बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी इच्छा परेश भाई साहब से साझा की थी।

परेश ने भी अपनी मजबूरी बता दी थी,’दीपक, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छे लड़के हो पर इस बारे में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’

‘कोई तो रास्ता तो होगा।’

‘एक ही रास्ता है। यदि रमा बाबूजी के सामने अपनी पसंद का इजहार करे और अपने निर्णय पर अड़ी रहे तो हो सकता है बाबूजी मान जाएं।’

‘आप को लगता है कि रमा ऐसा करेगी?’

‘तुम उस से बात करके तो देखो। हो सकता है कि उस पर कुछ असर हो जाए,’परेश ने समझाया।

परेश दीपक की भावनाओं की बड़ी कद्र करते थे। उस ने समझदारी दिखाते हुए रमा से पहले उन्हें विश्वास में लिया था।

परेश के कहने पर दीपक ने अपनी भावनाओं का इजजहार रमा के सामने कर दिया था,’रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं।’

‘ऐसा नहीं हो सकता दीपक। बाबूजी कभी नहीं मानेंगे.’

‘तुम एक बार कोशिश कर के तो देखो.’

‘मैं अपने बाबूजी को अच्छी तरह जानती हूं. वह बिरादरी से बाहर मेरी शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’

‘रमा, मेरी खातिर एक बार फिर से सोच लो। यह हम दोनों की जिंदगी का सवाल है.’

‘दीपक, बाबूजी को बेटी से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी है। वह बेटी का दुख तो बरदाश्त कर सकते हैं पर इज्जत खोने का भय उन्हें जीने नहीं देगा.’

दीपक ने उसे बहुत समझाया लेकिन रमा परिवार के खिलाफ जा कर शादी के लिए तैयार नहीं हुई। दीपक ने यह बात परेश भाई को बता दी थी।

‘दीपक, मैं रमा का साथ जरूर देता यदि वह खुद अपना साथ देने के लिए तैयार हो जाती। मैं मजबूर हूं,’कह कर परेश ने दीपक को समझाया.

उस के बाद से वह शहर छोड़ कर ही चला गया। रमा के दिल में दीपक से बिछड़ने की बड़ी कसक थी पर वह किसी भी कीमत पर बगावत करने के लिए तैयार न थी।

बाबूजी ने अपनी बिरादरी में अच्छा लड़का देख कर अमन से उस की शादी करा दी थी। धीरेधीरे रमा के दिल से दीपक की यादें धूमिल सी हो गई थीं. आज वह सब फिर से ताजा हो गई। परेश भाई के आ जाने से वे दोनों अतीत से बाहर आ गए।

“दीपक, तुम ने अपनी घरगृहस्थी बसाई या नहीं?” परेश ने पूछा।

“गृहस्थी तो तब बसती जब आप मेरा साथ देते,” दीपक हंस कर बोला।

तभी किसी ने दीपक को आवाज लगाई और वह उन से विदा ले कर चला गया। दीपक की बात सुन कर रमा आसमान से जमीन पर गिर पड़ी। उस के चेहरे का रंग उड़ गया,’तो क्या, भाई साहब उस के बारे में सबकुछ जानते थे…’

रमा की हालत से परेश भी अनभिज्ञ ना थे। उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले,”जो कुछ तुम ने नहीं बताया मुझे वह सब दीपक ने बता दिया था। डिंपी में मुझे हमेशा तुम्हीं नजर आती रहीं रमा। बस, अंतर इतना था कि डिंपी में साहस के साथ बात मनवाने का हौसला था। उस ने बड़ी हिम्मत से सारी परिस्थिति का मुकाबला किया। आज हम सब खुश हैं। मुझे उस के निर्णय पर गर्व है। काश, तुम भी इतनी हिम्मत दिखा पाती…”

“भाई साहब, जो हो गया अब उस पर क्या पछताना… शायद वक्त को यही मंजूर था,”रमा सिर झुका कर बोली.

इस समय उस में इतना साहस ना था कि वह भाई साहब से गरदन उठा कर बात कर पाती। आज वह अपनेआप को डिंपी के सामने बहुत छोटा महसूस कर रही थी। किसी तरह रमा ने भाई के साथ खाना खाया और भाभी और डिंपी से मिले बगैर घर वापस लौट गई।

अमन महसूस कर रहे थे कि रमा आज बहुत चुपचुप सी है।

“क्या हुआ रमा?”

“कुछ नहीं.”

“लगता है, डिंपी के कारण तुम्हारा मूड खराब हो गया है,”अमन ने झिझकते हुए कहा।

उसे डर था कि कहीं डिंपी का नाम सुन कर रमा भड़क न जाए।

“नहीं ऐसी बात नहीं। उसे देख कर मुझे भी अच्छा लगा। अब सोचती हूं कि मेरी सोच कितनी संकुचित थी।”

“ऐसी बात सोच कर मन छोटा न करो।”

“इरादा पक्का हो तो इंसान एक दिन सब को मना ही लेता है। डिंपी ने यही सब तो किया. कितने लोग ऐसा कर पाते हैं,” कह कर रमा ने गहरी सांस ली।

परेश भैया के कहे हुए शब्द अभी तक उस के दिमाग में घूम रहे थे।
‘सच में भैया कितने महान हैं,’ वह बुदबुदाई।

आंसू की 2 बूंदें उस की आंखों के कोरों पर अटक गई, जिसे वह बड़ी सफाई से अमन से छिपाने की कोशिश करने लगी।

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लेखिका -डा. के रानी

डिंपी राहुल के साथ बहुत खुश थी।अब सुधा भी अपनी नाराजगी भूल कर उन की खुशियों में शामिल हो गई लेकिन रमा को यह बात बहुत अखर गई थी कि डिंपी ने अपनी बिरादरी से बाहर जा कर जनजाति समाज से ताल्लुक रखने वाले राहुल से शादी की थी. उसे अपने खानदान पर बहुत गुरूर था।

डिंपी ने राहुल को अपना कर उस के खानदान के मान को ठेस पहुंचाई थी जब कभी रमा इस बारे में सोचती तो उसे मन ही मन बहुत परेशानी होती.

डिंपी की शादी को पूरे 3 बरस हो गए थे। आज भी घर पर रमा से मिलने जो भी रिश्तेदार आता वह किसी न किसी बहाने उस का जिक्र जरूर छेड़ देता.

दोपहर में रमा के मामा आए थे। उन्होंने भी परेश और डिंपी को ले कर रमा को काफी कुछ कहा. वह चुपचाप रही. कुछ बोल कर वह अपनी खीज मामा के सामने नहीं उतारना चाहती थी लेकिन जब भी वह मायके जाती इस बात का जिक्र परेश भैया और सुधा भाभी से जरूर कर देती। रमा की जलीकटी बातें वे एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते.

मामाजी के जाने के बाद रमा के दिमाग में बहुत देर तक मायके की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमती रहीं और काफी समय तक वहां भटकने के बाद वह वर्तमान में लौट आई थी।

अमन उसे आवाज दे रहे थे,”कहां हो रमा? याद है, आज एक शादी के रिसेप्शन पर जाना है.”

“मुझे याद है लेकिन अभी तो उस में बहुत समय है,” कह कर रमा उठी और शादी में जाने की तैयारी करने लगी।

सारी पुरानी बातों को झटक कर वह तैयार होने में व्यस्त हो गई। रात के 8:00 बजे दोनों घर से निकले। संयोग से वैडिंग पौइंट में उन की मुलाकात सब से पहले परेश भैया और सुधा भाभी से हो गई।

रमा ने पूछा,”आप कब आईं भाभी?”

“बस अभी आई हूं। चलो, पहले दूल्हादुलहन को आशीर्वाद दे दें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे,” कह कर सुधा और रमा स्टैज की ओर बढ गए.

ग्रुप फोटो के बाद वे नीचे आए और एक किनारे बैठ गए। तभी वहां पर डिंपी और राहुल भी आ गए. उन्हें देख कर रमा बुरी तरह चौंकी. दोनों ने बढ़ कर बुआ का अभिवादन किया। बदले में रमा ने सिर पर हाथ रख कर उन्हें शुभकामनाएं दीं.

“तुम कब आईं?”

“कल रात आई थी और कल सुबह वापस जाना है। मम्मीपापा के कहने पर हम यहां आ गए,” बुआ के तेवर देख कर डिंपी ने अपनी सफाई दी.

रमा के चेहरे को देख कर साफ झलक कहा था कि उसे डिंपी और राहुल का इस तरह आना अच्छा नहीं लगा था.

“भाभी आप ने बताया नहीं?”

“हम अभी तो मिले हैं रमा बात करने की फुरसत कहां लगी जो तुम्हें घर के बारे में कुछ बताती, ” सुधा ने कहा.

राहुल के आगे बढ़ते ही रमा बोली,”सच में भाभी आप का दिल बहुत बड़ा है.”

“बच्चों के लिए दिल बड़ा रखना पड़ता है रमा। उन की खुशी से बढ़ कर हमारे लिए और कोई खुशी नहीं है,” बातों का रूख अपनी ओर होता देख डिंपी ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और वह बुआ और मम्मी के बीच से हट कर दूसरी ओर बढ़ गई.

डिंपी को जाते देख कर परेश ने अंदाजा लगा लिया कि रमा जरूर उसे आज फिर कुछ न कुछ सुनाने से बाज नहीं आएगी। वे झट से रमा के पास पहुंच गए और बोले,”मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था रमा.”

“क्यों भैया?”

“मेरे साथ आओ. आज मैं तुम्हें एक बहुत खास व्यक्ति से मिलाना चाहता हूं.”

“किस से भैया?”

“तुम खुद ही देख लेना.”

परेश के आग्रह पर रमा उन के साथ चली गई। सुधा भी डिंपी के साथ आ गई। परेश ने रमा को दीपक के सामने खड़ा कर दिया।

“कैसी हो रमा?” दीपक ने पूछा.

बरसों बाद उसे अचानक यों अपने सामने देख कर रमा को अपनी आंखों में विश्वास नहीं हुआ.

“तुम अचानक यहां?”

“अपने औफिस के सहयोगी की बेटी की शादी में आया हूं। भाई साहब को देख कर मैं ने तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने तुम से ही मिला दिया.”

“तुम भाई साहब को कैसे जानते हो? मैं ने तो तुम्हें कभी उन से नहीं मिलाया…”

“जरूरत इंसान से सब कुछ करा लेती है रमा। बस यही समझ लो, “कह कर दीपक ने इस बात को यहीं पर खत्म कर दिया।

वे दोनों बातें करने लगे. पुरानी यादों को ताजा कर के दोनों ही भावुक हो गए थे.

दीपक और रमा दोनों ग्रैजुएशन में एकसाथ पढ़ते थे। रमा ब्राह्मण परिवार से और दीपक राजपूत खानदान से ताल्लुक रखते थे। दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करते थे।

दीपक ने उसे जताया भी था,’रमा, मुझे तुम बहुत पसंद हो.’

लेकिन रमा अपनी जबान से कभी उसे कह नहीं पाई कि वह भी उसे बहुत चाहती है। दीपक की दिली इच्छा थी कि वे दोनों अपनी जिंदगी एकसाथ बिताएं। उस ने रमा से बहुत आग्रह किया कि वह इस सचाई को स्वीकार कर ले लेकिन समाज के डर से रमा अपनी भावनाओं को कभी इजहार ही नहीं कर पाई।

दीपक ने उसे समझाया,’हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं रमा तुम चाहो तो हम एक नई जिंदगी का आगाज कर सकते हैं.’

‘तुम तो मेरी पारिवारिक परिस्थितियों को जानते हो। बाबूजी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे,’रमा हर बार एक ही बात दोहरा देती।

वह जानती थी कि बाबूजी के सामने उस की पसंद का कोई मोल नहीं होगा।

दीपक भी इतनी आसानी से हार मानने वाला ना था। रमा को पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था। बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी इच्छा परेश भाई साहब से साझा की थी।

परेश ने भी अपनी मजबूरी बता दी थी,’दीपक, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छे लड़के हो पर इस बारे में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’

‘कोई तो रास्ता तो होगा।’

‘एक ही रास्ता है। यदि रमा बाबूजी के सामने अपनी पसंद का इजहार करे और अपने निर्णय पर अड़ी रहे तो हो सकता है बाबूजी मान जाएं।’

‘आप को लगता है कि रमा ऐसा करेगी?’

‘तुम उस से बात करके तो देखो। हो सकता है कि उस पर कुछ असर हो जाए,’परेश ने समझाया।

परेश दीपक की भावनाओं की बड़ी कद्र करते थे। उस ने समझदारी दिखाते हुए रमा से पहले उन्हें विश्वास में लिया था।

परेश के कहने पर दीपक ने अपनी भावनाओं का इजजहार रमा के सामने कर दिया था,’रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं।’

‘ऐसा नहीं हो सकता दीपक। बाबूजी कभी नहीं मानेंगे.’

‘तुम एक बार कोशिश कर के तो देखो.’

‘मैं अपने बाबूजी को अच्छी तरह जानती हूं. वह बिरादरी से बाहर मेरी शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’

‘रमा, मेरी खातिर एक बार फिर से सोच लो। यह हम दोनों की जिंदगी का सवाल है.’

‘दीपक, बाबूजी को बेटी से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी है। वह बेटी का दुख तो बरदाश्त कर सकते हैं पर इज्जत खोने का भय उन्हें जीने नहीं देगा.’

दीपक ने उसे बहुत समझाया लेकिन रमा परिवार के खिलाफ जा कर शादी के लिए तैयार नहीं हुई। दीपक ने यह बात परेश भाई को बता दी थी।

‘दीपक, मैं रमा का साथ जरूर देता यदि वह खुद अपना साथ देने के लिए तैयार हो जाती। मैं मजबूर हूं,’कह कर परेश ने दीपक को समझाया.

उस के बाद से वह शहर छोड़ कर ही चला गया। रमा के दिल में दीपक से बिछड़ने की बड़ी कसक थी पर वह किसी भी कीमत पर बगावत करने के लिए तैयार न थी।

बाबूजी ने अपनी बिरादरी में अच्छा लड़का देख कर अमन से उस की शादी करा दी थी। धीरेधीरे रमा के दिल से दीपक की यादें धूमिल सी हो गई थीं. आज वह सब फिर से ताजा हो गई। परेश भाई के आ जाने से वे दोनों अतीत से बाहर आ गए।

“दीपक, तुम ने अपनी घरगृहस्थी बसाई या नहीं?” परेश ने पूछा।

“गृहस्थी तो तब बसती जब आप मेरा साथ देते,” दीपक हंस कर बोला।

तभी किसी ने दीपक को आवाज लगाई और वह उन से विदा ले कर चला गया। दीपक की बात सुन कर रमा आसमान से जमीन पर गिर पड़ी। उस के चेहरे का रंग उड़ गया,’तो क्या, भाई साहब उस के बारे में सबकुछ जानते थे…’

रमा की हालत से परेश भी अनभिज्ञ ना थे। उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले,”जो कुछ तुम ने नहीं बताया मुझे वह सब दीपक ने बता दिया था। डिंपी में मुझे हमेशा तुम्हीं नजर आती रहीं रमा। बस, अंतर इतना था कि डिंपी में साहस के साथ बात मनवाने का हौसला था। उस ने बड़ी हिम्मत से सारी परिस्थिति का मुकाबला किया। आज हम सब खुश हैं। मुझे उस के निर्णय पर गर्व है। काश, तुम भी इतनी हिम्मत दिखा पाती…”

“भाई साहब, जो हो गया अब उस पर क्या पछताना… शायद वक्त को यही मंजूर था,”रमा सिर झुका कर बोली.

इस समय उस में इतना साहस ना था कि वह भाई साहब से गरदन उठा कर बात कर पाती। आज वह अपनेआप को डिंपी के सामने बहुत छोटा महसूस कर रही थी। किसी तरह रमा ने भाई के साथ खाना खाया और भाभी और डिंपी से मिले बगैर घर वापस लौट गई।

अमन महसूस कर रहे थे कि रमा आज बहुत चुपचुप सी है।

“क्या हुआ रमा?”

“कुछ नहीं.”

“लगता है, डिंपी के कारण तुम्हारा मूड खराब हो गया है,”अमन ने झिझकते हुए कहा।

उसे डर था कि कहीं डिंपी का नाम सुन कर रमा भड़क न जाए।

“नहीं ऐसी बात नहीं। उसे देख कर मुझे भी अच्छा लगा। अब सोचती हूं कि मेरी सोच कितनी संकुचित थी।”

“ऐसी बात सोच कर मन छोटा न करो।”

“इरादा पक्का हो तो इंसान एक दिन सब को मना ही लेता है। डिंपी ने यही सब तो किया. कितने लोग ऐसा कर पाते हैं,” कह कर रमा ने गहरी सांस ली।

परेश भैया के कहे हुए शब्द अभी तक उस के दिमाग में घूम रहे थे।
‘सच में भैया कितने महान हैं,’ वह बुदबुदाई।

आंसू की 2 बूंदें उस की आंखों के कोरों पर अटक गई, जिसे वह बड़ी सफाई से अमन से छिपाने की कोशिश करने लगी।

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May 31, 2021 at 10:00AM

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