Sunday, 25 April 2021

लिव इन की इनिंग ओवर : भाग 3

‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, मैं तो चला. हां, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ डाक्टर रमेश के नर्सिंगहोम तक चल सकता हूं. ज्यादा समय नहीं लगेगा शाम तक फारिग हो कर घर आ जाओगी, और फिर अब तो गर्भपात वैध भी हो गया है,’’ सार्थक ने दुष्टता से मुसकराते हुए कहा और चला गया.

वह सोच में डूब गई, क्या करे क्या न करे, जो कुछ भी हुआ उस में इस बच्चे का क्या दोष. क्या वह भ्रूण हत्या का पाप भी अपने सिर पर ले. सार्थक तो पल्ला झाड़ कर किनारे हो गया. फंसी तो वह थी. यदि मातापिता की बात मान कर शादी कर ली होती, तो आज गर्व से सिर ऊंचा कर के रहती. वैसे भी सोसायटी में सब उसे अजीब नजरों से देखते थे. यों तो दिल्ली में यह कोई नई बात नहीं थी, लेकिन फिर भी अड़ोसपड़ोस में किसी से उस की बात शुरू से नहीं होती थी. फिर भी उस ने सामने वाले फ्लैट में रहने वाली मिसेज सुनीता से बातचीत करनी चाही, लेकिन उन्होंने एक अव्यक्त रुखाई का ही परिचय दिया और उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी. वह दिल्ली के मुकाबले कानपुर जैसे छोटे शहर से आई थी. वह भी सब से घुलमिल कर रहना चाहती थी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी और वह धीरेधीरे हीनता का शिकार होती गई, अब यदि उस की इस अवस्था की भनक किसी को लग गई तो क्या होगा? वह गहन सोच में डूब गई थी.

शाम को दोनों ने एकसाथ औफिस छोड़ा तो सार्थक ने थोड़ा शांत लहजे में कहा, ‘‘देखो ऋतु, अब भी समय है, मेरी बात मान लो, मैं डाक्टर से बात कर लूंगा. किसी को कानोंकान खबर तक न होगी और फिर सबकुछ यथावत हो जाएगा,’’ बहुत सोचविचार कर उस ने हामी भर दी. दूसरे दिन दोनों ने छुट्टी ले ली. सार्थक उसे नर्सिंगहोम ले गया. 3-4 घंटे की प्रक्रिया के बाद वह उसे ले कर घर आ गया. ऋतु का चेहरा एकदम पीला पड़ गया था, ग्लानि से उस का हृदय भरा हुआ था, सार्थक ने उसे गरम कौफी पिलाई, जब वह उठने लगी तो बोला, ‘लेटी रहो, खाना बाहर से ले आता हूं,’ और वह चला गया.

ऋतु को अचानक रोना आ गया. वह तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. आज उसे मातापिता, दीदी, सभी की बहुत याद आ रही थी. उसे लग रहा था कि उन की बात न मान कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी. काश, उस ने शादी कर ली होती तो आज वह अपने अजन्मे शिशु की हत्या के पाप की भागीदार तो न होती. उसे सार्थक के आने की आहट सुनाई दी तो वह चुपचाप शांत हो कर लेट गई. किसी प्रकार एकदो निवाले खा लिए और करवट बदल कर सोने की चेष्टा करने लगी. जब भी छुट्टियों में घर जाती, सभी पूछते, ‘‘कैसे मैनेज करती हो अकेले? कहां रहती हो?’’

‘‘गर्ल्स होस्टल में,’’ वह उत्तर देती, ‘‘बड़ा अच्छा है. आंटी बड़ा ध्यान रखती हैं, बस किसी को वहां आने की इजाजत नहीं है. यहां तक कि यदि घर वाले भी आना चाहें तो उन की व्यवस्था किसी होटल में करनी पड़ती है और दिल्ली के होटल, बाप रे बाप बड़े महंगे हैं,’’ और इस प्रकार वह अपने घर वालों को समझा देती थी. इस वर्ष जब वह दीवाली पर घर गई तो मां ने उसे विराज का फोटो दिखाया जो बेंगलुरु में सौफ्टवेयर इंजीनियर था, उन लोगों को बचपन से ही ऋतु बहुत पसंद थी. वे लोग मिलने भी आए थे. विराज आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था तथा पद की गरिमा उस के चेहरे पर झलक रही थी. एकांत में उस ने ऋतु से पूछा, ‘‘शादी के विषय में क्या सोचा?’’

वह सकपका गई इस आकस्मिक प्रश्न से, ‘‘शादी, नहीं करनी है,’’ उस ने लड़खड़ाते शब्दों में कहा.

‘‘जीवन का सफर बहुत लंबा है, उसे कैसे पूरा करोगी?’’ विराज ने मुसकराते हुए कहा. मानो उसे खिझा रहा हो, लेकिन ऋतु के चेहरे पर जो तटस्थता का भाव था उसे देख कर उस ने इतना ही कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं इंतजार कर लूंगा,’’ और ऋतु को अपना विजिटिंग कार्ड थमा कर चला गया. ऋतु भी दिल्ली लौट आई. समय फिर एक ढर्रे पर आ गया था. दोनों उसी प्रकार रहने लगे, हां, लेकिन अब ऋतु थोड़ी सतर्क रहने लगी, अब वह पिछली गलतियों को दोहराना नहीं चाहती थी.

आज जब वह औफिस से निकलने लगी तो सार्थक को उस के कैबिन में नहीं पाया. ‘कहां चला गया होगा?’ वह सोचने लगी, ‘कोई बात नहीं, किसी काम से चला गया होगा’ और वह औटो ले कर घर आ गई.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास भी थी. उस ने दरवाजा खोला. सामने टेबल पर चाय के 2 जूठे कप रखे थे, ‘कौन आया होगा,’ वह सोचने लगी तभी उसे बैडरूम से हंसी की आवाज आई. सार्थक के साथ किसी स्त्री का भी स्वर था, ‘‘हम लोग यहां ऐसी दशा में पड़े हैं, तुम्हारी पत्नी आ गई तो?’’ स्त्री का स्वर सुनाई दिया.

‘‘पत्नी? मेरी कोई पत्नी नहीं है वह तो मैं ने ऋतु के साथ फ्लैट शेयर किया है और साथ में रह रहे हैं, हां, हम दोनों में संबंध भी बने हैं, लेकिन वह तो इन बातों को सहज भाव से लेती ही नहीं है. पिछली बार मुझ से बोली, चलो शादी कर लें, नहीं तो बड़ी बदनामी होगी.

’’अब बच्चा ठहर गया तो इस में मैं क्या करूं. मैं ने तो नहीं कहा था बवाल पालने को. इन्हीं सब झंझटों से बचने के लिए ही मैं ने विवाह नहीं किया. मैं जीवन का पूरा लुत्फ उठाना चाहता हूं रश्मि, अगर तुम मेरा साथ दो तो हम दोनों इसी प्रकार रह सकते हैं. मैं अब उस के साथ रहना नहीं चाहता हूं, अब वह बासी हो गई है. हर समय संस्कारों की दुहाई देती रहती है, इतनी रूढि़वादिता मुझे बरदाश्त नहीं है. अब धीरेधीरे मैं उस से ऊब गया हूं.’’ ऋतु ने सब सुन लिया. उस का सर्वांग सुलग उठा. उस ने गुस्से में भड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल दिया, ‘‘तो यह बात है, तुम मुझे अपनी भोग्या समझते रहे और मैं तुम्हें अपना सच्चा हमदर्द.’’ उसे अचानक सामने देख कर दोनों चौंक गए, ‘‘ऋतु, तुम?’’

‘‘ हां, मैं. रश्मि मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी,’’ ऋतु अब रश्मि से मुखातिब थी. वह भी ऋतु के ही औफिस में काम करती थी, ‘‘मैं नहीं जानती कि तुम यह सब क्यों कर रही हो, जबकि तुम्हारा पूरा परिवार यहां दिल्ली में है, और तुम्हें इस प्रकार रहना भी नहीं है. बस, एक बात गांठ बांध लो, इस व्यक्ति का पल भर का भी विश्वास न करना. यह नारी को भोग्या समझता है. जितनी जल्दी तुम यह बात समझ लो, तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा. ‘‘हां सार्थक, मैं तुम्हारे साथ रही जरूर, हमारातुम्हारा संबंध भी बना लेकिन अमर्यादित संबंध मुझे पसंद नहीं. इसलिए मैं अभी इसी समय तुम से सारे रिश्ते तोड़ कर जा रही हूं, अपना त्यागपत्र मैं औफिस में भेज दूंगी, मुझे दिल्ली में अब रहना ही नहीं है. तुम कितने निकृष्ट हो, यह अब मुझे समझ आ गया है.

‘‘तुम्हारी आजादी, उन्मुक्तता तुम्हें ही मुबारक हो. तुम्हारे ही कारण मैं अपने ही अंश की हत्यारिन बनी, नहीं, बस अब और नहीं,’’ कहते हुए उस ने बैग में अपना सामान ठूंस लिया और फ्लैट से बाहर आ गई.

अब वह कानपुर वापस जा रही थी. ट्रेन में आरक्षण तो इतनी जल्दी मिलता नहीं, सो उस ने बस से ही यात्रा करने की ठानी. पापा को फोन कर के बता दिया, ‘‘मैं सबकुछ छोड़छाड़ कर आ रही हूं आप सब के पास, मेरे भविष्य का जो भी फैसला आप करेंगे मुझे स्वीकार होगा.’’ जब वह कानपुर बसस्टैंड पर उतरी तो उस ने विराज को प्रतीक्षा करते पाया. वह मुसकरा रहा था.

‘‘तुम यहां?’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘हां, मैं… मुझे अंकल ने फोन पर सब बता दिया था, बस अब घर चलो, परसों हमारी शादी है. अब तुम्हें बांधना जरूरी है. पता नहीं तुम कब फुर्र से उड़ जाओ,’’ विराज ने उस का सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘लेकिन विराज, तुम मेरे विषय में क्या जानते हो? मेरा दिल्ली में अपने एक पुरुष सहकर्मी के साथ प्रेम संबंध था. लेकिन अब ब्रेकअप हो गया है. एक भटके हुए पक्षी की तरह जिसे एक नीड़ की तलाश है,’’ ऋतु का गला भर आया.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम उस लड़के के साथ घूमतीफिरती रहती थी, बड़े मौडर्न खयालों की लड़की हो, लेकिन जिस प्रकार एक उफनती नदी को भी बांध कर एक ठहराव दिया जाता है, उसी प्रकार तुम्हें भी एक ठहराव की आवश्यकता है और अब तुम्हारी भटकन समाप्त हो गई है. वैसे भी सुबह का भूला यदि शाम को घर पर आ जाए तो वह भूला नहीं कहलाता. समझी मेरी भटकी गौरैया,’’ विराज ने शरारत से मुसकराते हुए उसे देख कर कहा और कार को तीव्र गति से घर की ओर बढ़ा दिया.

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‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, मैं तो चला. हां, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ डाक्टर रमेश के नर्सिंगहोम तक चल सकता हूं. ज्यादा समय नहीं लगेगा शाम तक फारिग हो कर घर आ जाओगी, और फिर अब तो गर्भपात वैध भी हो गया है,’’ सार्थक ने दुष्टता से मुसकराते हुए कहा और चला गया.

वह सोच में डूब गई, क्या करे क्या न करे, जो कुछ भी हुआ उस में इस बच्चे का क्या दोष. क्या वह भ्रूण हत्या का पाप भी अपने सिर पर ले. सार्थक तो पल्ला झाड़ कर किनारे हो गया. फंसी तो वह थी. यदि मातापिता की बात मान कर शादी कर ली होती, तो आज गर्व से सिर ऊंचा कर के रहती. वैसे भी सोसायटी में सब उसे अजीब नजरों से देखते थे. यों तो दिल्ली में यह कोई नई बात नहीं थी, लेकिन फिर भी अड़ोसपड़ोस में किसी से उस की बात शुरू से नहीं होती थी. फिर भी उस ने सामने वाले फ्लैट में रहने वाली मिसेज सुनीता से बातचीत करनी चाही, लेकिन उन्होंने एक अव्यक्त रुखाई का ही परिचय दिया और उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी. वह दिल्ली के मुकाबले कानपुर जैसे छोटे शहर से आई थी. वह भी सब से घुलमिल कर रहना चाहती थी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी और वह धीरेधीरे हीनता का शिकार होती गई, अब यदि उस की इस अवस्था की भनक किसी को लग गई तो क्या होगा? वह गहन सोच में डूब गई थी.

शाम को दोनों ने एकसाथ औफिस छोड़ा तो सार्थक ने थोड़ा शांत लहजे में कहा, ‘‘देखो ऋतु, अब भी समय है, मेरी बात मान लो, मैं डाक्टर से बात कर लूंगा. किसी को कानोंकान खबर तक न होगी और फिर सबकुछ यथावत हो जाएगा,’’ बहुत सोचविचार कर उस ने हामी भर दी. दूसरे दिन दोनों ने छुट्टी ले ली. सार्थक उसे नर्सिंगहोम ले गया. 3-4 घंटे की प्रक्रिया के बाद वह उसे ले कर घर आ गया. ऋतु का चेहरा एकदम पीला पड़ गया था, ग्लानि से उस का हृदय भरा हुआ था, सार्थक ने उसे गरम कौफी पिलाई, जब वह उठने लगी तो बोला, ‘लेटी रहो, खाना बाहर से ले आता हूं,’ और वह चला गया.

ऋतु को अचानक रोना आ गया. वह तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. आज उसे मातापिता, दीदी, सभी की बहुत याद आ रही थी. उसे लग रहा था कि उन की बात न मान कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी. काश, उस ने शादी कर ली होती तो आज वह अपने अजन्मे शिशु की हत्या के पाप की भागीदार तो न होती. उसे सार्थक के आने की आहट सुनाई दी तो वह चुपचाप शांत हो कर लेट गई. किसी प्रकार एकदो निवाले खा लिए और करवट बदल कर सोने की चेष्टा करने लगी. जब भी छुट्टियों में घर जाती, सभी पूछते, ‘‘कैसे मैनेज करती हो अकेले? कहां रहती हो?’’

‘‘गर्ल्स होस्टल में,’’ वह उत्तर देती, ‘‘बड़ा अच्छा है. आंटी बड़ा ध्यान रखती हैं, बस किसी को वहां आने की इजाजत नहीं है. यहां तक कि यदि घर वाले भी आना चाहें तो उन की व्यवस्था किसी होटल में करनी पड़ती है और दिल्ली के होटल, बाप रे बाप बड़े महंगे हैं,’’ और इस प्रकार वह अपने घर वालों को समझा देती थी. इस वर्ष जब वह दीवाली पर घर गई तो मां ने उसे विराज का फोटो दिखाया जो बेंगलुरु में सौफ्टवेयर इंजीनियर था, उन लोगों को बचपन से ही ऋतु बहुत पसंद थी. वे लोग मिलने भी आए थे. विराज आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था तथा पद की गरिमा उस के चेहरे पर झलक रही थी. एकांत में उस ने ऋतु से पूछा, ‘‘शादी के विषय में क्या सोचा?’’

वह सकपका गई इस आकस्मिक प्रश्न से, ‘‘शादी, नहीं करनी है,’’ उस ने लड़खड़ाते शब्दों में कहा.

‘‘जीवन का सफर बहुत लंबा है, उसे कैसे पूरा करोगी?’’ विराज ने मुसकराते हुए कहा. मानो उसे खिझा रहा हो, लेकिन ऋतु के चेहरे पर जो तटस्थता का भाव था उसे देख कर उस ने इतना ही कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं इंतजार कर लूंगा,’’ और ऋतु को अपना विजिटिंग कार्ड थमा कर चला गया. ऋतु भी दिल्ली लौट आई. समय फिर एक ढर्रे पर आ गया था. दोनों उसी प्रकार रहने लगे, हां, लेकिन अब ऋतु थोड़ी सतर्क रहने लगी, अब वह पिछली गलतियों को दोहराना नहीं चाहती थी.

आज जब वह औफिस से निकलने लगी तो सार्थक को उस के कैबिन में नहीं पाया. ‘कहां चला गया होगा?’ वह सोचने लगी, ‘कोई बात नहीं, किसी काम से चला गया होगा’ और वह औटो ले कर घर आ गई.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास भी थी. उस ने दरवाजा खोला. सामने टेबल पर चाय के 2 जूठे कप रखे थे, ‘कौन आया होगा,’ वह सोचने लगी तभी उसे बैडरूम से हंसी की आवाज आई. सार्थक के साथ किसी स्त्री का भी स्वर था, ‘‘हम लोग यहां ऐसी दशा में पड़े हैं, तुम्हारी पत्नी आ गई तो?’’ स्त्री का स्वर सुनाई दिया.

‘‘पत्नी? मेरी कोई पत्नी नहीं है वह तो मैं ने ऋतु के साथ फ्लैट शेयर किया है और साथ में रह रहे हैं, हां, हम दोनों में संबंध भी बने हैं, लेकिन वह तो इन बातों को सहज भाव से लेती ही नहीं है. पिछली बार मुझ से बोली, चलो शादी कर लें, नहीं तो बड़ी बदनामी होगी.

’’अब बच्चा ठहर गया तो इस में मैं क्या करूं. मैं ने तो नहीं कहा था बवाल पालने को. इन्हीं सब झंझटों से बचने के लिए ही मैं ने विवाह नहीं किया. मैं जीवन का पूरा लुत्फ उठाना चाहता हूं रश्मि, अगर तुम मेरा साथ दो तो हम दोनों इसी प्रकार रह सकते हैं. मैं अब उस के साथ रहना नहीं चाहता हूं, अब वह बासी हो गई है. हर समय संस्कारों की दुहाई देती रहती है, इतनी रूढि़वादिता मुझे बरदाश्त नहीं है. अब धीरेधीरे मैं उस से ऊब गया हूं.’’ ऋतु ने सब सुन लिया. उस का सर्वांग सुलग उठा. उस ने गुस्से में भड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल दिया, ‘‘तो यह बात है, तुम मुझे अपनी भोग्या समझते रहे और मैं तुम्हें अपना सच्चा हमदर्द.’’ उसे अचानक सामने देख कर दोनों चौंक गए, ‘‘ऋतु, तुम?’’

‘‘ हां, मैं. रश्मि मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी,’’ ऋतु अब रश्मि से मुखातिब थी. वह भी ऋतु के ही औफिस में काम करती थी, ‘‘मैं नहीं जानती कि तुम यह सब क्यों कर रही हो, जबकि तुम्हारा पूरा परिवार यहां दिल्ली में है, और तुम्हें इस प्रकार रहना भी नहीं है. बस, एक बात गांठ बांध लो, इस व्यक्ति का पल भर का भी विश्वास न करना. यह नारी को भोग्या समझता है. जितनी जल्दी तुम यह बात समझ लो, तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा. ‘‘हां सार्थक, मैं तुम्हारे साथ रही जरूर, हमारातुम्हारा संबंध भी बना लेकिन अमर्यादित संबंध मुझे पसंद नहीं. इसलिए मैं अभी इसी समय तुम से सारे रिश्ते तोड़ कर जा रही हूं, अपना त्यागपत्र मैं औफिस में भेज दूंगी, मुझे दिल्ली में अब रहना ही नहीं है. तुम कितने निकृष्ट हो, यह अब मुझे समझ आ गया है.

‘‘तुम्हारी आजादी, उन्मुक्तता तुम्हें ही मुबारक हो. तुम्हारे ही कारण मैं अपने ही अंश की हत्यारिन बनी, नहीं, बस अब और नहीं,’’ कहते हुए उस ने बैग में अपना सामान ठूंस लिया और फ्लैट से बाहर आ गई.

अब वह कानपुर वापस जा रही थी. ट्रेन में आरक्षण तो इतनी जल्दी मिलता नहीं, सो उस ने बस से ही यात्रा करने की ठानी. पापा को फोन कर के बता दिया, ‘‘मैं सबकुछ छोड़छाड़ कर आ रही हूं आप सब के पास, मेरे भविष्य का जो भी फैसला आप करेंगे मुझे स्वीकार होगा.’’ जब वह कानपुर बसस्टैंड पर उतरी तो उस ने विराज को प्रतीक्षा करते पाया. वह मुसकरा रहा था.

‘‘तुम यहां?’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘हां, मैं… मुझे अंकल ने फोन पर सब बता दिया था, बस अब घर चलो, परसों हमारी शादी है. अब तुम्हें बांधना जरूरी है. पता नहीं तुम कब फुर्र से उड़ जाओ,’’ विराज ने उस का सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘लेकिन विराज, तुम मेरे विषय में क्या जानते हो? मेरा दिल्ली में अपने एक पुरुष सहकर्मी के साथ प्रेम संबंध था. लेकिन अब ब्रेकअप हो गया है. एक भटके हुए पक्षी की तरह जिसे एक नीड़ की तलाश है,’’ ऋतु का गला भर आया.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम उस लड़के के साथ घूमतीफिरती रहती थी, बड़े मौडर्न खयालों की लड़की हो, लेकिन जिस प्रकार एक उफनती नदी को भी बांध कर एक ठहराव दिया जाता है, उसी प्रकार तुम्हें भी एक ठहराव की आवश्यकता है और अब तुम्हारी भटकन समाप्त हो गई है. वैसे भी सुबह का भूला यदि शाम को घर पर आ जाए तो वह भूला नहीं कहलाता. समझी मेरी भटकी गौरैया,’’ विराज ने शरारत से मुसकराते हुए उसे देख कर कहा और कार को तीव्र गति से घर की ओर बढ़ा दिया.

The post लिव इन की इनिंग ओवर : भाग 3 appeared first on Sarita Magazine.

April 26, 2021 at 10:00AM

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