Wednesday 28 April 2021

बुरके के पीछे का दर्द- भाग 2 : नसीम के साथ अकरम ने ऐसा क्या किया

चंद मिनटों में ही वह अंदर आ गई. मैं तब तक खड़ा ही था और उस छोटे से घर को देख रहा था. पुराने ढंग का मकान था जो करीबकरीब खंडहर सा हो चला था. सिर्फ एक छोटा सा कमरा, उस से जुड़ा टौयलेट और दूसरी तरफ रसोई जो इतनी छोटी थी कि पैंट्री ही ज्यादा लगती थी. कमरे में 1 बैड, 2 कुरसियां, 1 मेज,

1 छोटी सी अलमारी और दीवार पर टंगा आईना. बस, कुल जमा यही था उस घर का जुगराफिया.

वह कुछ बात शुरू करे या मेरी उत्सुकताओं का जवाब दे, मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह घर तो डाक्टर के क्लीनिक के एकदम पीछे ही था, फिर गलियोंगलियों इतना घुमाफिरा कर तुम क्यों लाईं?’’

वह जवाब न दे कर सिर्फ मुसकराई, फिर बोली, ‘‘सर, आप खुद सब सम झ जाएंगे. फिलहाल मैं चाय बना कर लाती हूं. आप वहां बैठेबैठे बोर हो चुके होंगे और आगे भी जब मैं अपनी कहानी सुनाऊंगी तो और भी बोर होंगे.’’

बोर होने से कहीं ज्यादा मैं उत्सुकता के तूफान में घिरा हुआ था. पता नहीं वह कौन सी मजबूरी है जो वह इतने खुफिया तरीके से रह रही है.

चाय  बना कर लाने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. चाय की चुस्कियों के साथ हम आमनेसामने बैठ गए. मैं ने एक सवालिया निशान वाली नजर उस पर उछाली, जिसे उस ने भांप लिया.

नसीम ने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘2 साल मेरे ठीकठाक बीते. अकरम भी उसी अखबार में था, डेस्क पर नहीं, रिपोर्टर था. मु झे सिटी न्यूज संभालना था. हम जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. वह सजीला बांका जवान था. कोई भी उस से प्यार कर बैठता. एक दिन वह मेरे पास औफर ले कर आया कि मुंबई के सब से बड़े अखबार ने उसे बुलाया है और उस का एडिटर उस की पहचान का है. अगर हम दोनों ही मुंबई चलें तो हमारी जिंदगी ही बदल जाएगी. अपना कैरियर तो मैं भी बनाना चाहती थी, इसलिए उस की बात मु झे जंच रही थी, पर मेरा कहना था कि पहले हम निकाह कर लें, फिर मुंबई जाएं.’’

‘‘हां, तुम्हारा सोचना वाजिब था. पर वह उस पर क्या बोला?’’ मु झे भी अब उस की कहानी में रस आने लगा था.

‘‘पर वह हर बार यही कहता कि पहले हम नया जौब जौइन कर लें और मुंबई में सैटल हो लें, फिर वहीं निकाह कर लेंगे. मैं पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुकी थी, उस की बात मान कर हम लोग मुंबई चले आए. उसे तो औफर था ही, मु झे भी उसी अखबार में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली. वरली में हम ने एक फ्लैट भी ले लिया.’’

‘‘कैसे? इतनी जल्दी इतना पैसा कैसे आया?’’

‘‘यह सवाल मेरे मन में भी उठा था. उस ने कहा कि फ्लैट किराए पर लिया है. जब पैसा हो जाएगा, खरीद लेंगे. मैं उसे शिद्दत से प्यार करती थी, इसलिए सवालजवाब की गुंजाइश ही न थी. जो वह कहता, मैं उस पर यकीन कर लेती थी. वहां वह क्राइम बीट पर था. देर रात तक उस की ड्यूटी रहती. देर से लौटता और सुबह देर तक सोता रहता. तब तक मैं तो औफिस जा चुकी होती, पता नहीं, वह न जाने कितने बजे उठता. इस तरह जिंदगी चल रही थी. मैं बारबार निकाह जल्दी करने पर जोर देती पर वह हर बार टाल देता. हम लोग करीब होते जा रहे थे. एक रात नाजुक लमहों में मैं पूरी तरह समर्पित हो गई. तमाम प्रीकौशंस धरी की धरी रह गईं.’’

‘‘तुम ने किसी पल उसे रोका नहीं.’’

‘‘नहीं. मैं उस के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि मैं खुद अपने ऊपर काबू नहीं रख सकी. पर अगली सुबह मैं ने जिद पकड़ ली कि कल ही हम निकाह कर लेंगे. उस ने कहा कि मैं आज ही मौलवी से बात करता हूं, हम अगली जुमेरात को निकाह कर लेंगे पर वह अगली जुमेरात कभी नहीं आई.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता कि मौलवी नहीं मिला, एक बड़ी स्टोरी कर रहा हूं, सो वक्त नहीं मिल पा रहा है. वक्त मिलते ही जरूर सब इंतजाम कर डालूंगा…वगैरहवगैरह.

‘‘एक रोज मेरा औफ था. अकरम उस रात बहुत देर से लौटा था और ड्राइंगरूम में ही सोफे पर सो गया था, इसलिए उसे पता न था कि आज मैं घर पर हूं. करीब 11 बजे कौलबैल बजी. उस वक्त मैं किचन में थी और आटा गूंध रही थी. दरवाजा उसी ने खोला. जो आया था, उसे उस ने ड्राइंगरूम में बैठा लिया और देर तक वे आपस में बातें करते रहे. जब मैं खाली हुई तो देखने आई कि कौन आया है. यह भी कि उस के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करूं. मैं ने परदे की आड़ से ही देखा, आने वाला कोई शेख था और उस के सामने मेज पर नोटों की गड्डियां रखी थीं. मैं एकाएक सकते में आ गई, पर जब वह चला गया तो मैं सामने आई.

‘‘अकरम मु झे घर में पा कर कुछ चौंका, फिर पूछा कि मैं आज इस वक्त घर पर कैसे हूं. मैं ने बताया कि आज मेरा वीकली औफ है और मैं ने दरियाफ्त करनी चाही कि कौन आया था. उस ने बताया कि शेख शारजाह का एक बड़ा बिजनैसमैन है. मैं उस के कारोबार पर फीचर कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में आया था. वहां एक अखबार निकालना चाहता है, जिस का एडिटर मु झे

बनाएगा और तुम भी वहीं असिस्टेंट एडिटर बनोगी.

‘‘ ‘अच्छा,’ कह कर मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं. पर मैं ने पूछा कि इतने सारे रुपए किसलिए? क्या वह फीचर करने का नजराना दे रहा है?

‘‘‘नहीं, शारजाह जाने के टिकट, वीजा वगैरह के खर्च के मद में हैं ये रुपए.’

‘‘अब किसी तरह के शक की गुंजाइश न थी.

‘‘मैं खुद भी बहुत खुश थी कि नई जगह जाने से और ज्यादा आजादी से काम करने का मौका मिलेगा. आननफानन अकरम ने सब तैयारी कर ली और एक दिन कोरियर वाला दरवाजे पर खड़ा था, टिकट और पासपोर्ट लिए. मैं खुशीखुशी दरवाजे पर पहुंची. पर यह क्या? डिलीवरी बौय ने सिर्फ मेरा टिकट और पासपोर्ट दिया. मैं सकते में आ गई, क्या सिर्फ अकेले मु झे जाना है? पूरा दिन मैं अकरम का मोबाइल मिलाती रही, पर वह हमेशा बंद मिला और रात को वह इतनी देर से आया कि मु झे अपने सवालों और जिज्ञासाओं के साथ ही सोना पड़ा. सुबह मु झे ड्यूटी पर जाना था और वह जैसे घोड़े बेच कर सो रहा था. आखिर, मु झ से रहा न गया तो उसे  झं झोड़ कर जगाना पड़ा. वह आंखें मलता हुआ उठा. जब मैं ने बताया कि सिर्फ मेरा टिकट आया है, तुम्हारा क्यों नहीं. क्या मैं अकेली जाऊंगी?

‘‘उस ने उनींदे स्वर में ही कहा कि अभी तुम जा कर सब ठीकठाक करोगी, मैं बाद में आऊंगा.’’

‘‘अरे, तुम ने कहा नहीं कि ठीकठाक करने तो पहले उसे जाना चाहिए, तुम्हें तो बाद में जाना चाहिए,’’ मैं बोला.

‘‘जी हां सर, मैं ने उस से यही सवाल किया था, जिस का जवाब दिया कि उसे अभी यहां कई काम निबटाने हैं और दफ्तर वाले उसे एकदम छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उस ने आगे कहा कि मैं बेफिक्र हो कर जाऊं. वे लोग अच्छी तरह मेरा खयाल रखेंगे. और मैं निरुत्तर हो गई.’’

 

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चंद मिनटों में ही वह अंदर आ गई. मैं तब तक खड़ा ही था और उस छोटे से घर को देख रहा था. पुराने ढंग का मकान था जो करीबकरीब खंडहर सा हो चला था. सिर्फ एक छोटा सा कमरा, उस से जुड़ा टौयलेट और दूसरी तरफ रसोई जो इतनी छोटी थी कि पैंट्री ही ज्यादा लगती थी. कमरे में 1 बैड, 2 कुरसियां, 1 मेज,

1 छोटी सी अलमारी और दीवार पर टंगा आईना. बस, कुल जमा यही था उस घर का जुगराफिया.

वह कुछ बात शुरू करे या मेरी उत्सुकताओं का जवाब दे, मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह घर तो डाक्टर के क्लीनिक के एकदम पीछे ही था, फिर गलियोंगलियों इतना घुमाफिरा कर तुम क्यों लाईं?’’

वह जवाब न दे कर सिर्फ मुसकराई, फिर बोली, ‘‘सर, आप खुद सब सम झ जाएंगे. फिलहाल मैं चाय बना कर लाती हूं. आप वहां बैठेबैठे बोर हो चुके होंगे और आगे भी जब मैं अपनी कहानी सुनाऊंगी तो और भी बोर होंगे.’’

बोर होने से कहीं ज्यादा मैं उत्सुकता के तूफान में घिरा हुआ था. पता नहीं वह कौन सी मजबूरी है जो वह इतने खुफिया तरीके से रह रही है.

चाय  बना कर लाने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. चाय की चुस्कियों के साथ हम आमनेसामने बैठ गए. मैं ने एक सवालिया निशान वाली नजर उस पर उछाली, जिसे उस ने भांप लिया.

नसीम ने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘2 साल मेरे ठीकठाक बीते. अकरम भी उसी अखबार में था, डेस्क पर नहीं, रिपोर्टर था. मु झे सिटी न्यूज संभालना था. हम जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. वह सजीला बांका जवान था. कोई भी उस से प्यार कर बैठता. एक दिन वह मेरे पास औफर ले कर आया कि मुंबई के सब से बड़े अखबार ने उसे बुलाया है और उस का एडिटर उस की पहचान का है. अगर हम दोनों ही मुंबई चलें तो हमारी जिंदगी ही बदल जाएगी. अपना कैरियर तो मैं भी बनाना चाहती थी, इसलिए उस की बात मु झे जंच रही थी, पर मेरा कहना था कि पहले हम निकाह कर लें, फिर मुंबई जाएं.’’

‘‘हां, तुम्हारा सोचना वाजिब था. पर वह उस पर क्या बोला?’’ मु झे भी अब उस की कहानी में रस आने लगा था.

‘‘पर वह हर बार यही कहता कि पहले हम नया जौब जौइन कर लें और मुंबई में सैटल हो लें, फिर वहीं निकाह कर लेंगे. मैं पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुकी थी, उस की बात मान कर हम लोग मुंबई चले आए. उसे तो औफर था ही, मु झे भी उसी अखबार में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली. वरली में हम ने एक फ्लैट भी ले लिया.’’

‘‘कैसे? इतनी जल्दी इतना पैसा कैसे आया?’’

‘‘यह सवाल मेरे मन में भी उठा था. उस ने कहा कि फ्लैट किराए पर लिया है. जब पैसा हो जाएगा, खरीद लेंगे. मैं उसे शिद्दत से प्यार करती थी, इसलिए सवालजवाब की गुंजाइश ही न थी. जो वह कहता, मैं उस पर यकीन कर लेती थी. वहां वह क्राइम बीट पर था. देर रात तक उस की ड्यूटी रहती. देर से लौटता और सुबह देर तक सोता रहता. तब तक मैं तो औफिस जा चुकी होती, पता नहीं, वह न जाने कितने बजे उठता. इस तरह जिंदगी चल रही थी. मैं बारबार निकाह जल्दी करने पर जोर देती पर वह हर बार टाल देता. हम लोग करीब होते जा रहे थे. एक रात नाजुक लमहों में मैं पूरी तरह समर्पित हो गई. तमाम प्रीकौशंस धरी की धरी रह गईं.’’

‘‘तुम ने किसी पल उसे रोका नहीं.’’

‘‘नहीं. मैं उस के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि मैं खुद अपने ऊपर काबू नहीं रख सकी. पर अगली सुबह मैं ने जिद पकड़ ली कि कल ही हम निकाह कर लेंगे. उस ने कहा कि मैं आज ही मौलवी से बात करता हूं, हम अगली जुमेरात को निकाह कर लेंगे पर वह अगली जुमेरात कभी नहीं आई.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता कि मौलवी नहीं मिला, एक बड़ी स्टोरी कर रहा हूं, सो वक्त नहीं मिल पा रहा है. वक्त मिलते ही जरूर सब इंतजाम कर डालूंगा…वगैरहवगैरह.

‘‘एक रोज मेरा औफ था. अकरम उस रात बहुत देर से लौटा था और ड्राइंगरूम में ही सोफे पर सो गया था, इसलिए उसे पता न था कि आज मैं घर पर हूं. करीब 11 बजे कौलबैल बजी. उस वक्त मैं किचन में थी और आटा गूंध रही थी. दरवाजा उसी ने खोला. जो आया था, उसे उस ने ड्राइंगरूम में बैठा लिया और देर तक वे आपस में बातें करते रहे. जब मैं खाली हुई तो देखने आई कि कौन आया है. यह भी कि उस के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करूं. मैं ने परदे की आड़ से ही देखा, आने वाला कोई शेख था और उस के सामने मेज पर नोटों की गड्डियां रखी थीं. मैं एकाएक सकते में आ गई, पर जब वह चला गया तो मैं सामने आई.

‘‘अकरम मु झे घर में पा कर कुछ चौंका, फिर पूछा कि मैं आज इस वक्त घर पर कैसे हूं. मैं ने बताया कि आज मेरा वीकली औफ है और मैं ने दरियाफ्त करनी चाही कि कौन आया था. उस ने बताया कि शेख शारजाह का एक बड़ा बिजनैसमैन है. मैं उस के कारोबार पर फीचर कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में आया था. वहां एक अखबार निकालना चाहता है, जिस का एडिटर मु झे

बनाएगा और तुम भी वहीं असिस्टेंट एडिटर बनोगी.

‘‘ ‘अच्छा,’ कह कर मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं. पर मैं ने पूछा कि इतने सारे रुपए किसलिए? क्या वह फीचर करने का नजराना दे रहा है?

‘‘‘नहीं, शारजाह जाने के टिकट, वीजा वगैरह के खर्च के मद में हैं ये रुपए.’

‘‘अब किसी तरह के शक की गुंजाइश न थी.

‘‘मैं खुद भी बहुत खुश थी कि नई जगह जाने से और ज्यादा आजादी से काम करने का मौका मिलेगा. आननफानन अकरम ने सब तैयारी कर ली और एक दिन कोरियर वाला दरवाजे पर खड़ा था, टिकट और पासपोर्ट लिए. मैं खुशीखुशी दरवाजे पर पहुंची. पर यह क्या? डिलीवरी बौय ने सिर्फ मेरा टिकट और पासपोर्ट दिया. मैं सकते में आ गई, क्या सिर्फ अकेले मु झे जाना है? पूरा दिन मैं अकरम का मोबाइल मिलाती रही, पर वह हमेशा बंद मिला और रात को वह इतनी देर से आया कि मु झे अपने सवालों और जिज्ञासाओं के साथ ही सोना पड़ा. सुबह मु झे ड्यूटी पर जाना था और वह जैसे घोड़े बेच कर सो रहा था. आखिर, मु झ से रहा न गया तो उसे  झं झोड़ कर जगाना पड़ा. वह आंखें मलता हुआ उठा. जब मैं ने बताया कि सिर्फ मेरा टिकट आया है, तुम्हारा क्यों नहीं. क्या मैं अकेली जाऊंगी?

‘‘उस ने उनींदे स्वर में ही कहा कि अभी तुम जा कर सब ठीकठाक करोगी, मैं बाद में आऊंगा.’’

‘‘अरे, तुम ने कहा नहीं कि ठीकठाक करने तो पहले उसे जाना चाहिए, तुम्हें तो बाद में जाना चाहिए,’’ मैं बोला.

‘‘जी हां सर, मैं ने उस से यही सवाल किया था, जिस का जवाब दिया कि उसे अभी यहां कई काम निबटाने हैं और दफ्तर वाले उसे एकदम छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उस ने आगे कहा कि मैं बेफिक्र हो कर जाऊं. वे लोग अच्छी तरह मेरा खयाल रखेंगे. और मैं निरुत्तर हो गई.’’

 

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April 29, 2021 at 10:00AM

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