Thursday, 27 August 2020

मरीचिका-भाग 3: मोहनजी को कब आभास हुआ कि उनका एक बेटा होना चाहिए था?

‘‘कोई बात नहीं, बेटा. तुम लोग आराम से जाओ. एंजौय करो. मैं तुम्हारे घर में रह लूंगा और तुम्हारे घर की देखभाल भी कर लूंगा.’’

‘‘नहीं पापा, ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा घर है. एक से एक कीमती सामान है घर में. आप को पता भी है, इस घर के एकएक डैकोरेटिव आइटम 50-50 हजार रुपए के हैं. और ये जो पेंटिंग देख रहे हैं आप, लाखों की है. सौरभ इन्हें अपने हाथों से साफ करते हैं. किसी और मैंबर को छूने भी नहीं देते. वैसे भी यहां चोरीचकारी अकसर होती हैं. और आप ठहरे बूढ़े इंसान. क्या कर पाएंगे? आप को तो मारेंगे ही, घर के सारे सामान चोरी हुए तो करोड़ों गए. घर बंद कर के जाने में ही भलाई है. यहां के चोर लूटपाट तो करते ही हैं, जान भी ले लेते हैं. और वैसे भी हम लोग 3 महीने बाद लौट ही रहे हैं. तब तक आप अपनी व्यवस्था कहीं और कर लीजिए. चाहें तो रीति के यहां रह लीजिए. मैं वापस लौटते ही आप को अपने पास बुला लूंगी.’’

मोहनजी का सिर घूम गया. यह वही नीति है, जो सब से ज्यादा मम्मीपापा के लिए लड़ती थी. ससुराल में सब से बड़ा वाला कमरा मैं मम्मीपापा को दूंगी. सासससुर को घर से निकाल दूंगी पर पापामम्मी को कहीं नहीं जाने दूंगी. और आज पापा से कहीं ज्यादा कीमती घर और घर के निर्जीव सामान हैं. इसी नीति की शादी में घर गिरवी रख दिया था. किसी कीमत पर इंजीनियर लड़के को अपना दामाद बनाना चाहते थे, चाहे कितना भी दहेज देना पड़े. थके और लड़खड़ाते कदमों से वे बाहर आ गए. बड़ी उम्मीद और आशा के साथ वे रीति के घर पहुंचे. कम से कम उन्हें यहां तो एक कोने में जगह मिल जाएगी. उन की सब से छोटी बेटी, सब से लाड़ली बेटी, उन्हें निराश तो नहीं करेगी.

‘‘पापा, आप को जब तक यहां रहना है, रह सकते हैं. पर आप के रहते विवेक यहां नहीं रह सकते हैं.’’

मोहनजी यह सुन कर अवाक् रह गए. उन का दिल तेजी से धड़कने लगा, ‘‘क्यों, बेटी?’’

‘‘पापा, आप ने उन का जो अपमान किया था, वे अब तक नहीं भूले हैं.’’

मोहनजी को याद आया. रीति ने प्रेमविवाह किया है, जिसे मोहनजी ने कभी स्वीकार नहीं किया था. विवेक को दामाद जैसा प्यार और सम्मान देने की बात तो दूर, कभी सीधे मुंह बात तक नहीं की थी मोहनजी ने. पत्नी रागिनी ने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के कहने पर दोनों की शादी तो करवा दी थी पर किसी रस्म में शामिल होने से इनकार कर दिया था. मोहनजी लंबी गहरी सांस लेते हुए बोले, ‘‘नहीं, बेटा, मैं चलता हूं. मैं तुम दोनों के बीच कोई तनाव नहीं पैदा करना चाहता. पर जातेजाते एक बात जरूर पूछना चाहूंगा बेटा कि बचपन में तो तुम चारों मेरे और अपनी मां के लिए बहुत लड़ते थे कि हमें सहारा दोगे, बुढ़ापे की लाठी बनोगे, और आज तुम में से किसी में भी हिम्मत नहीं है कि अपने बाप को अपने घर में थोड़ी सी जगह दे सको?’’

रीति के मन में शायद बहुत दिनों से कोई गुबार भरा था. बिना एक पल की देर किए तपाक से थोड़े ऊंचे स्वर में बोली, ‘‘कहते तो आप भी थे हमेशा कि मैं अपनी बेटियों को कार में विदा करूंगा. बड़े घरों में जाएंगी मेरी बेटियां. रानियों की तरह ठाट से रहेंगी. क्या हुआ आप का वादा? हम ने जो कहा था वह तो बचपना था. हंसी, खेल, लड़ाई में कह गए. पर आप तो समझदार थे. जो कहते थे, वह कर पाने की हिम्मत थी आप में? सब से ज्यादा दहेज तो आप ने नीति दीदी को दिया. वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने लवमैरिज की, वरना दीदी की तरह सासजेठानी की गालियां और ताने सुनते दिन बीतता, या फिर दीप्ति दीदी की तरह अच्छा खाने और पहनने को तरस जाती.’’

मोहनजी को मानो सांप सूंघ गया. काटो तो खून नहीं. उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा मानो पूरी दुनिया का अंधकार सिमट कर उन की आंखों के सामने आ गया हो. अच्छा हुआ रागिनी यह सब देखने से पहले ही मर गई. उन का मन किया कि फूटफूट कर रोएं, जोरजोर से चिल्लाएं. मगर यह सब करने का क्या फायदा? न तो कोई उन के आंसू पोंछने वाला है और न ही कोई उन्हें सुनने वाला.

आज उन का विश्वास झूठा साबित हुआ. बेटियों के बाप का गर्व चकनाचूर हो गया. रागिनी का रोना, मां के ताने, पड़ोसियोंरिश्तेदारों के व्यंग्य सब सच हो गए. मां ने ठीक कहा था, ‘जिंदगी कब कहां किस मोड़ पर ले जाए, पता नहीं. घने अंधेरे में अपना साया भी साथ छोड़ देता है.’ इतने वर्षों में आज पहली बार मोहनजी को बेटा न होने की कसक हुई. उन का कलेजा जैसे छलनी हो गया. आज मोहनजी झूठे साबित हो गए. आज उन्हें आभास हुआ कि वे जीवन की किस मरीचिका में जी रहे थे. उन की चारों बेटियां 4 गहरी खाइयां नजर आने लगीं. हर तरफ गहन अंधकार. जीवन का सब से दुखद अध्याय उन के सामने था. अब इस से बुरा क्या हो सकता है. उन के सामने की सारी दुनिया जैसे घूमने लगी. वे गश खा कर नीचे गिर पड़े. होश आने पर देखा, लोग उन पर पानी के छींटे मार रहे हैं. उन के चारों तरफ बड़ी भीड़ जमा है. उस में से एक ने पूछा, ‘‘अंकलजी, क्या हुआ आप को?’’

‘‘कुछ नहीं, बेटा. ऐसे ही चक्कर आ गया था.’’

‘‘कौन हैं आप? कहां जाना है आप को?’’

मोहनजी ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘मुझे किसी वृद्धाश्रम पहुंचा दे, बेटा.’’

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‘‘कोई बात नहीं, बेटा. तुम लोग आराम से जाओ. एंजौय करो. मैं तुम्हारे घर में रह लूंगा और तुम्हारे घर की देखभाल भी कर लूंगा.’’

‘‘नहीं पापा, ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा घर है. एक से एक कीमती सामान है घर में. आप को पता भी है, इस घर के एकएक डैकोरेटिव आइटम 50-50 हजार रुपए के हैं. और ये जो पेंटिंग देख रहे हैं आप, लाखों की है. सौरभ इन्हें अपने हाथों से साफ करते हैं. किसी और मैंबर को छूने भी नहीं देते. वैसे भी यहां चोरीचकारी अकसर होती हैं. और आप ठहरे बूढ़े इंसान. क्या कर पाएंगे? आप को तो मारेंगे ही, घर के सारे सामान चोरी हुए तो करोड़ों गए. घर बंद कर के जाने में ही भलाई है. यहां के चोर लूटपाट तो करते ही हैं, जान भी ले लेते हैं. और वैसे भी हम लोग 3 महीने बाद लौट ही रहे हैं. तब तक आप अपनी व्यवस्था कहीं और कर लीजिए. चाहें तो रीति के यहां रह लीजिए. मैं वापस लौटते ही आप को अपने पास बुला लूंगी.’’

मोहनजी का सिर घूम गया. यह वही नीति है, जो सब से ज्यादा मम्मीपापा के लिए लड़ती थी. ससुराल में सब से बड़ा वाला कमरा मैं मम्मीपापा को दूंगी. सासससुर को घर से निकाल दूंगी पर पापामम्मी को कहीं नहीं जाने दूंगी. और आज पापा से कहीं ज्यादा कीमती घर और घर के निर्जीव सामान हैं. इसी नीति की शादी में घर गिरवी रख दिया था. किसी कीमत पर इंजीनियर लड़के को अपना दामाद बनाना चाहते थे, चाहे कितना भी दहेज देना पड़े. थके और लड़खड़ाते कदमों से वे बाहर आ गए. बड़ी उम्मीद और आशा के साथ वे रीति के घर पहुंचे. कम से कम उन्हें यहां तो एक कोने में जगह मिल जाएगी. उन की सब से छोटी बेटी, सब से लाड़ली बेटी, उन्हें निराश तो नहीं करेगी.

‘‘पापा, आप को जब तक यहां रहना है, रह सकते हैं. पर आप के रहते विवेक यहां नहीं रह सकते हैं.’’

मोहनजी यह सुन कर अवाक् रह गए. उन का दिल तेजी से धड़कने लगा, ‘‘क्यों, बेटी?’’

‘‘पापा, आप ने उन का जो अपमान किया था, वे अब तक नहीं भूले हैं.’’

मोहनजी को याद आया. रीति ने प्रेमविवाह किया है, जिसे मोहनजी ने कभी स्वीकार नहीं किया था. विवेक को दामाद जैसा प्यार और सम्मान देने की बात तो दूर, कभी सीधे मुंह बात तक नहीं की थी मोहनजी ने. पत्नी रागिनी ने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के कहने पर दोनों की शादी तो करवा दी थी पर किसी रस्म में शामिल होने से इनकार कर दिया था. मोहनजी लंबी गहरी सांस लेते हुए बोले, ‘‘नहीं, बेटा, मैं चलता हूं. मैं तुम दोनों के बीच कोई तनाव नहीं पैदा करना चाहता. पर जातेजाते एक बात जरूर पूछना चाहूंगा बेटा कि बचपन में तो तुम चारों मेरे और अपनी मां के लिए बहुत लड़ते थे कि हमें सहारा दोगे, बुढ़ापे की लाठी बनोगे, और आज तुम में से किसी में भी हिम्मत नहीं है कि अपने बाप को अपने घर में थोड़ी सी जगह दे सको?’’

रीति के मन में शायद बहुत दिनों से कोई गुबार भरा था. बिना एक पल की देर किए तपाक से थोड़े ऊंचे स्वर में बोली, ‘‘कहते तो आप भी थे हमेशा कि मैं अपनी बेटियों को कार में विदा करूंगा. बड़े घरों में जाएंगी मेरी बेटियां. रानियों की तरह ठाट से रहेंगी. क्या हुआ आप का वादा? हम ने जो कहा था वह तो बचपना था. हंसी, खेल, लड़ाई में कह गए. पर आप तो समझदार थे. जो कहते थे, वह कर पाने की हिम्मत थी आप में? सब से ज्यादा दहेज तो आप ने नीति दीदी को दिया. वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने लवमैरिज की, वरना दीदी की तरह सासजेठानी की गालियां और ताने सुनते दिन बीतता, या फिर दीप्ति दीदी की तरह अच्छा खाने और पहनने को तरस जाती.’’

मोहनजी को मानो सांप सूंघ गया. काटो तो खून नहीं. उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा मानो पूरी दुनिया का अंधकार सिमट कर उन की आंखों के सामने आ गया हो. अच्छा हुआ रागिनी यह सब देखने से पहले ही मर गई. उन का मन किया कि फूटफूट कर रोएं, जोरजोर से चिल्लाएं. मगर यह सब करने का क्या फायदा? न तो कोई उन के आंसू पोंछने वाला है और न ही कोई उन्हें सुनने वाला.

आज उन का विश्वास झूठा साबित हुआ. बेटियों के बाप का गर्व चकनाचूर हो गया. रागिनी का रोना, मां के ताने, पड़ोसियोंरिश्तेदारों के व्यंग्य सब सच हो गए. मां ने ठीक कहा था, ‘जिंदगी कब कहां किस मोड़ पर ले जाए, पता नहीं. घने अंधेरे में अपना साया भी साथ छोड़ देता है.’ इतने वर्षों में आज पहली बार मोहनजी को बेटा न होने की कसक हुई. उन का कलेजा जैसे छलनी हो गया. आज मोहनजी झूठे साबित हो गए. आज उन्हें आभास हुआ कि वे जीवन की किस मरीचिका में जी रहे थे. उन की चारों बेटियां 4 गहरी खाइयां नजर आने लगीं. हर तरफ गहन अंधकार. जीवन का सब से दुखद अध्याय उन के सामने था. अब इस से बुरा क्या हो सकता है. उन के सामने की सारी दुनिया जैसे घूमने लगी. वे गश खा कर नीचे गिर पड़े. होश आने पर देखा, लोग उन पर पानी के छींटे मार रहे हैं. उन के चारों तरफ बड़ी भीड़ जमा है. उस में से एक ने पूछा, ‘‘अंकलजी, क्या हुआ आप को?’’

‘‘कुछ नहीं, बेटा. ऐसे ही चक्कर आ गया था.’’

‘‘कौन हैं आप? कहां जाना है आप को?’’

मोहनजी ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘मुझे किसी वृद्धाश्रम पहुंचा दे, बेटा.’’

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August 28, 2020 at 10:00AM

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