Sunday 30 August 2020

मुखौटे-भाग 2 : निखिल किसकी आवाज से मदहोश हो जाता था?

नरेश ने घूर कर खालिद को देखा फिर अगले ही पल माहौल देखते हुए होंठों पर वही मुसकराहट ले आया.

‘‘पारुल, चिंटू को जरा गलत नजर वालों से बचा कर रखो,’’ आशा ने जया को घूरते हुए कहा. उन दोनों की बिलकुल नहीं पटती थी. दोनों के पति एक ही दफ्तर में काम करते थे. दोनों के आपस में मिलनेजुलने वाले करीबकरीब वही लोग होते थे.इसलिए अकसर इन दोनों का मिलनाजुलना होता और एक बार तो अवश्य तूतू, मैंमैं होती.

‘‘कैसी बातें करती हो, आशा? यहां कौन पराया है? सब अपने ही तो हैं. हम ने चुनचुन कर उन्हीं लोगों को बुलाया है जो हमारे खास दोस्त हैं,’’ पारुल ने हंसते हुए कहा.

तभी अचानक उसे याद आया कि पार्टी शुरू हो चुकी है और उस ने अब तक अपनी सास को बुलाया ही नहीं कि आ कर पार्टी में शामिल हो जाएं. वह अपनी सास के कमरे की ओर भागी. यह सब सास से प्यार या सम्मान न था बल्कि उसे चिंता थीकि मेहमान क्या सोचेंगे. उस ने देखा कि सास तैयार ही बैठी थीं मगर उन की आदत थी कि जब तक चार बार न बुलाया जाए, रोज के खाने के लिए भी नहीं आती थीं. कदमकदम पर उन्हें इन औपचारिकताओं का बहुत ध्यान रहता थादोनों बाहर निकलीं तो मेहमानों ने मांजी को बहुत सम्मान दिया. औरतों ने उन से निकटता जताते हुए उन की बहू के बारे में कुरेदना चाहा.मगर वे भी कच्ची खिलाड़ी न थीं. इधर पारुल भी ऐसे जता रही थी मानो वह अपनी सास से अपनी मां की तरह ही प्यार करती है. यह बात और है कि दोनों स्वच्छ पानी में प्रतिबिंब की तरह एकदूसरे के मन को साफ पढ़ सकती थीं

पार्टी समाप्त होने के बाद सब बारीबारी से विदा लेने लगे.

‘‘पारुल, बड़ा मजा आया, खासकर बच्चों ने तो बहुत ऐंजौय किया.  थैंक्यू फौर एवरीथिंग. हम चलें?’’

‘‘हांहां, मंजू ठीक कहती है. बहुत मजा आया. मैं तो कहती हूं कि कभीकभी इस तरह की पार्टियां होती रहें तो ही जिंदगी में कोई रस रहे. वरना रोजमर्रा की मशीनी जिंदगी से तो आदमी घुटघुट कर मर जाए,’’ आशा ने बड़ी गर्मजोशी से कहा.

सब ने हां में हां मिलाई.

‘‘आजकल इन पार्टियों का तो रिवाज सा चल पड़ा है. शादी की वर्षगांठ की पार्टी, जन्मदिन की पार्टी, बच्चा पैदा होने से ले कर उस की शादी, उस के भी बच्चे पैदा होने तक, अनगिनत पार्टियां, विदेश जाने की पार्टी, वापस आने की पार्टी, कोई अंत हैइन पार्टियों का? हर महीने इन पर हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा यों ही खर्च हो जाता है.

‘‘आशा की बातों का जया कोई तीखा सा जवाब देने वाली थी कि उस के पति ने उसे खींच कर रिकशे में बिठा दिया और सब ने उन को हाथ हिला कर विदा किया.‘‘तुम ठीक कहती हो, आशा. तंग आ गए इन पार्टियों से,’’ मोहिनी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा. उस का परिवार बड़ा था और खर्चा बहुत आता था

‘‘अरे, देखा नहीं उस अंगूठे भर के बच्चे को ले कर पारुल कैसे इतरा रही थी जैसे सचमुच सारे संसार में वही एक मां है और उस का बेटा ही दुनिया भर का निराला बेटा है.’’

‘‘सोचो जरा काली कजरारी आंखें, घुंघराले बाल और मस्तानी चाल, बड़ा हो कर भी यही रूप रहा तो कैसा लगेगा,’’ मोहिनी ने आंखें नचाते हुए कहा. उस का इशारा समझ कर सब ने जोरजोर से ठहाका लगाया.

‘‘भाभीजी, आप ने निखिल को देखा. वह अपने उसी अंगूठे भर के बेटे को देख कर ऐसा घमंड कर रहा था मानो वह दुनिया का नामीगिरामी फुटबाल का खिलाड़ी बन गया हो,’’ खालिद की बात पर फिर से ठहाके  गूंजे.

‘‘मगर खालिद भाई, तुम्हीं ने तो उसे चढ़ाया था कि उस का बेटा बहुत बड़ा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ आनंद ने चुटकी ली. आनंद और खालिद में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था. एकदूसरे को नीचा दिखाने का वे कोई भी मौका चूकते न थे.

‘‘कहा तो, क्या गलत किया. उन के यहां पेट भर खा कर उन के बच्चे की तारीफ में दो शब्द कह दिए तो क्या बुरा किया. कल किस ने देखा है,’’ रमेश भी कहां हाथ आने वाला था.

‘‘ऐसा उन्होंने क्या खिला दिया खालिद भाई कि आप आभार तले दबे जा रहे हैं?’’

रमेश की बात पर खालिद की जबान पर ताला लग गया. उस के आगे टिकने की शक्ति उस में न थी.

‘‘यह कैसा विधि का विधान है? मेरी बेटी तो अनाथ हो गई. मां तो मैं हूं पर सुशीला बहन ने उसे मां जैसा प्यार दिया. शादी के बाद तो वे ही उस की मां थीं. मेरी बेटी को मायके में आना ही पसंद नहीं था. पर आती थी तो उन की तारीफ करती नहींथकती थी. उन की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता. मेरी बेटी सच में दुखियारी है जो उस के सिर से ऐसी शीतल छाया उठ गई.’’

सुशीलाजी की मृत्यु की खबर मिलते ही वे (शीला) भरपेट नाश्ता कर के पति के साथ जो निकलीं तो 10 बजतेबजते बेटी की ससुराल में पहुंच गई थीं. कहने को दूसरा गांव था पर मुश्किल से40 मिनट का रास्ता था. तब से ले कर शव के घर से निकल कर अंतिम यात्रा के लिए जाने तक के रोनेधोने का यह सारांश था. कालोनी के एकत्रित लोग शीला के दुख को देख कर चकित रह गए थे. उस की आंखों से बहती अश्रुधारा ने लोगों क सहानुभूति लूट ली. सब की जबान पर एक ही बात थी, ‘दोनों में बहुत बनती थी. अपनी समधिन के लिए कोई इस तरह रोता है?

सारा कार्यक्रम पूरा होने तक शीला वहीं रहीं. पूरे घर को संभाला. दामाद सुनील तो पूरी तरह प्रभावित हो गया. उन्हें वापस भेजते समय उन के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आप हम लोगों से इतना प्यार करती हैं. अब आपही हम तीनों की मां हैं. हमारा खयाल रखिएगा.’’

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नरेश ने घूर कर खालिद को देखा फिर अगले ही पल माहौल देखते हुए होंठों पर वही मुसकराहट ले आया.

‘‘पारुल, चिंटू को जरा गलत नजर वालों से बचा कर रखो,’’ आशा ने जया को घूरते हुए कहा. उन दोनों की बिलकुल नहीं पटती थी. दोनों के पति एक ही दफ्तर में काम करते थे. दोनों के आपस में मिलनेजुलने वाले करीबकरीब वही लोग होते थे.इसलिए अकसर इन दोनों का मिलनाजुलना होता और एक बार तो अवश्य तूतू, मैंमैं होती.

‘‘कैसी बातें करती हो, आशा? यहां कौन पराया है? सब अपने ही तो हैं. हम ने चुनचुन कर उन्हीं लोगों को बुलाया है जो हमारे खास दोस्त हैं,’’ पारुल ने हंसते हुए कहा.

तभी अचानक उसे याद आया कि पार्टी शुरू हो चुकी है और उस ने अब तक अपनी सास को बुलाया ही नहीं कि आ कर पार्टी में शामिल हो जाएं. वह अपनी सास के कमरे की ओर भागी. यह सब सास से प्यार या सम्मान न था बल्कि उसे चिंता थीकि मेहमान क्या सोचेंगे. उस ने देखा कि सास तैयार ही बैठी थीं मगर उन की आदत थी कि जब तक चार बार न बुलाया जाए, रोज के खाने के लिए भी नहीं आती थीं. कदमकदम पर उन्हें इन औपचारिकताओं का बहुत ध्यान रहता थादोनों बाहर निकलीं तो मेहमानों ने मांजी को बहुत सम्मान दिया. औरतों ने उन से निकटता जताते हुए उन की बहू के बारे में कुरेदना चाहा.मगर वे भी कच्ची खिलाड़ी न थीं. इधर पारुल भी ऐसे जता रही थी मानो वह अपनी सास से अपनी मां की तरह ही प्यार करती है. यह बात और है कि दोनों स्वच्छ पानी में प्रतिबिंब की तरह एकदूसरे के मन को साफ पढ़ सकती थीं

पार्टी समाप्त होने के बाद सब बारीबारी से विदा लेने लगे.

‘‘पारुल, बड़ा मजा आया, खासकर बच्चों ने तो बहुत ऐंजौय किया.  थैंक्यू फौर एवरीथिंग. हम चलें?’’

‘‘हांहां, मंजू ठीक कहती है. बहुत मजा आया. मैं तो कहती हूं कि कभीकभी इस तरह की पार्टियां होती रहें तो ही जिंदगी में कोई रस रहे. वरना रोजमर्रा की मशीनी जिंदगी से तो आदमी घुटघुट कर मर जाए,’’ आशा ने बड़ी गर्मजोशी से कहा.

सब ने हां में हां मिलाई.

‘‘आजकल इन पार्टियों का तो रिवाज सा चल पड़ा है. शादी की वर्षगांठ की पार्टी, जन्मदिन की पार्टी, बच्चा पैदा होने से ले कर उस की शादी, उस के भी बच्चे पैदा होने तक, अनगिनत पार्टियां, विदेश जाने की पार्टी, वापस आने की पार्टी, कोई अंत हैइन पार्टियों का? हर महीने इन पर हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा यों ही खर्च हो जाता है.

‘‘आशा की बातों का जया कोई तीखा सा जवाब देने वाली थी कि उस के पति ने उसे खींच कर रिकशे में बिठा दिया और सब ने उन को हाथ हिला कर विदा किया.‘‘तुम ठीक कहती हो, आशा. तंग आ गए इन पार्टियों से,’’ मोहिनी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा. उस का परिवार बड़ा था और खर्चा बहुत आता था

‘‘अरे, देखा नहीं उस अंगूठे भर के बच्चे को ले कर पारुल कैसे इतरा रही थी जैसे सचमुच सारे संसार में वही एक मां है और उस का बेटा ही दुनिया भर का निराला बेटा है.’’

‘‘सोचो जरा काली कजरारी आंखें, घुंघराले बाल और मस्तानी चाल, बड़ा हो कर भी यही रूप रहा तो कैसा लगेगा,’’ मोहिनी ने आंखें नचाते हुए कहा. उस का इशारा समझ कर सब ने जोरजोर से ठहाका लगाया.

‘‘भाभीजी, आप ने निखिल को देखा. वह अपने उसी अंगूठे भर के बेटे को देख कर ऐसा घमंड कर रहा था मानो वह दुनिया का नामीगिरामी फुटबाल का खिलाड़ी बन गया हो,’’ खालिद की बात पर फिर से ठहाके  गूंजे.

‘‘मगर खालिद भाई, तुम्हीं ने तो उसे चढ़ाया था कि उस का बेटा बहुत बड़ा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ आनंद ने चुटकी ली. आनंद और खालिद में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था. एकदूसरे को नीचा दिखाने का वे कोई भी मौका चूकते न थे.

‘‘कहा तो, क्या गलत किया. उन के यहां पेट भर खा कर उन के बच्चे की तारीफ में दो शब्द कह दिए तो क्या बुरा किया. कल किस ने देखा है,’’ रमेश भी कहां हाथ आने वाला था.

‘‘ऐसा उन्होंने क्या खिला दिया खालिद भाई कि आप आभार तले दबे जा रहे हैं?’’

रमेश की बात पर खालिद की जबान पर ताला लग गया. उस के आगे टिकने की शक्ति उस में न थी.

‘‘यह कैसा विधि का विधान है? मेरी बेटी तो अनाथ हो गई. मां तो मैं हूं पर सुशीला बहन ने उसे मां जैसा प्यार दिया. शादी के बाद तो वे ही उस की मां थीं. मेरी बेटी को मायके में आना ही पसंद नहीं था. पर आती थी तो उन की तारीफ करती नहींथकती थी. उन की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता. मेरी बेटी सच में दुखियारी है जो उस के सिर से ऐसी शीतल छाया उठ गई.’’

सुशीलाजी की मृत्यु की खबर मिलते ही वे (शीला) भरपेट नाश्ता कर के पति के साथ जो निकलीं तो 10 बजतेबजते बेटी की ससुराल में पहुंच गई थीं. कहने को दूसरा गांव था पर मुश्किल से40 मिनट का रास्ता था. तब से ले कर शव के घर से निकल कर अंतिम यात्रा के लिए जाने तक के रोनेधोने का यह सारांश था. कालोनी के एकत्रित लोग शीला के दुख को देख कर चकित रह गए थे. उस की आंखों से बहती अश्रुधारा ने लोगों क सहानुभूति लूट ली. सब की जबान पर एक ही बात थी, ‘दोनों में बहुत बनती थी. अपनी समधिन के लिए कोई इस तरह रोता है?

सारा कार्यक्रम पूरा होने तक शीला वहीं रहीं. पूरे घर को संभाला. दामाद सुनील तो पूरी तरह प्रभावित हो गया. उन्हें वापस भेजते समय उन के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आप हम लोगों से इतना प्यार करती हैं. अब आपही हम तीनों की मां हैं. हमारा खयाल रखिएगा.’’

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August 31, 2020 at 10:00AM

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