Friday 28 August 2020

कन्यादान-भाग 2 :मंजुला श्रेयसी की शादी से इतनी दुखी क्यों थी?

यह सब कहते हुए श्रेयसी की आंखें नम हो उठी थीं. तभी वह मंजुला से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, मेरा घर कहां है? आप अच्छी मम्मी हैं. वे गंदी अम्मा हैं, मुझे मारती हैं.’

‘‘मैडम, क्या बात है बड़ी अपसैट दिख रही हो?’’ अनिरुद्ध की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. ‘‘सुनिए जी, श्रेयसी अपनी ससुराल में खुश तो रहेगी न? मेरे मन में अपराधबोध है कि मैं ने उसे अपने से दूर कर के भाभी के पास क्यों भेजा?’’

‘‘तुम तो फुजूल की बात करती हो. वह उन की बेटी है, जैसा वे चाहें वैसा करें.’’

जैसेजैसे श्रेयसी बड़ी होती गई, गुमसुम और चुप होती गई. श्रेयसी की आंखों का सूनापन देख मंजुला अपराधबोध से भर जाती. वह सोचती कि यदि वह उसे अपने पास रख सकती तो शायद श्रेयसी खुश रहती. भाभी के कड़क और दकियानूसी स्वभाव के कारण श्रेयसी सब से दूर, अकेली खड़ी दिखाई पड़ती. हंसनेचहचहाने की उम्र में भी उस के चेहरे पर गंभीरता का आवरण होता था.

उन्मुक्त और आयुषी धीरेधीरे बड़े होते गए और भाईसाहब व भाभी ने अपने बच्चों को मंजुला के यहां भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

उन्मुक्त की शादी में श्रेयसी को बहुत दिनों बाद देखा था मंजुला ने. श्रेयसी के लिए फैशनेबल कपड़े पहनना मना था. उसे केवल सलवारकुरता पहनने की इजाजत थी. दुपट्टा हर समय पहनना जरूरी था. भाभी की हर समय की डांटफटकार से श्रेयसी को अकेले में आंसू बहाते हुए देख, वह भी रो पड़ी थी.

उस के आंसू देख भाभी गरम हो कर बोली थीं, ‘अपने टेसुए किसी और को दिखाना, अपनी चालचलन ठीक रखो. लड़कियों का जोरजोर से हंसना अच्छा नहीं होता. इतनी जोर के ठहाके क्यों लगाती हो? चल कर नाश्ता लगाओ.’

यदि वह उन्मुक्त से मजाक करती, तो भाभी जोर से डांट कर कहतीं, ‘लड़कों के बीच घुसी रहती हो, चलो, ढोलक बजाओ और औरतों के साथ बैठो.’

ऐसी बातें सुन कर सब का मन खराब हो गया था. भैयाभाभी के चले जाने के बाद सब ने चैन की सांस ली थी. सब अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो गए थे. प्यारी सी बहू छवि के आने के बाद घर में रौनक आ गई थी.

8 महीने बीते थे कि एक दिन मंजुला के मोबाइल पर भाभी का फोन आया, ‘जीजी, श्रेयसी रिसर्च करना चाहती है. इसलिए हम लोग आप पर विश्वास कर के उसे लखनऊ भेज रहे हैं. वह लड़कियों वाले होस्टल में रहेगी. आप लोगों के विश्वास पर ही उसे आगे पढ़ने के लिए भेज रहे हैं. मेरा तो बहुत जी घबरा रहा है. समय बहुत खराब है. आजकल लड़कियों के कदम बहकते देर नहीं लगती है.’

‘भाभी, घबराने की कोई बात नहीं है. श्रेयसी बहुत समझदार है. आप ठीक समझो तो श्रेयसी को मेरे घर पर ही रहने दो. मुझे अच्छा ही लगेगा. छवि और आयुषी के साथ उस को खूब अच्छा लगेगा.’

भाईसाहब और भाभी श्रेयसी को ले कर आए. 3 दिन रह कर होस्टल में उस की सब व्यवस्था करवाई. चुपचुप, सहमी और गंभीर श्रेयसी को देख कर मन में प्रश्नचिह्न उठा, समझ में नहीं आया कि क्या बात है. एक रात अकेले में भाभी अपने मन का गुबार निकालते हुए बोली थीं, ‘जीजी, अब तुम से क्या छिपाएं. श्रेयसी के पीछे एक बदमाश लड़का पड़ा हुआ है, इसलिए इस को वहां से दूर भेजना आवश्यक हो गया था. हम लोगों ने बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कहीं भी रिश्ता तय नहीं हो पाया. इसलिए मजबूरी में यहां ऐडमिशन करवाना पड़ रहा है. इस की सुंदरता इस की दुश्मन बन बैठी है.’

सच ही श्रेयसी को कुदरत ने बड़े मन से गढ़ा था. दूध सा गोरा, सफेद संगमरमर सा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, लंबे व काले घुंघराले बाल. बिना मेकअप के भी वह परी सी दिखती थी.वे आगे बोली थीं, ‘जीजी, जीजाजी तो उसी कालेज में ही प्रोफैसर हैं. वे श्रेयसी पर निगाह रखेंगे. हम इस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. जैसे ही कहीं बात बनी, तुरंत शादी कर देंगे.’ भाभी अपने दिल का बोझ हलका कर के भाईसाहब के साथ अपने घर चली गई थीं.

श्रेयसी होस्टल में रह रही थी. उस की रूमपार्टनर जूली थी, जिस से उस की दोस्ती हो गई थी. उस का भाई रौबर्ट उसी कालेज में लैक्चरर था. जूली के साथ ही श्रेयसी उस के भाई से मिली. रौबर्ट पहली नजर में ही श्रेयसी की सुंदरता पर मर मिटा. शायद मन ही मन श्रेयसी को भी वह अच्छा लगा था.

रौबर्ट ईसाई था परंतु सुलझा और समझदार युवक था. वह अनिरुद्ध से कालेज में कई बार मिल चुका था. अनिरुद्ध उसे पसंद भी करते थे. भाईसाहब और भाभी के लिए उस का ईसाई होना सब से बड़ा दुर्गुण था. श्रेयसी छोटे शहर और भाभी के अनावश्यक प्रतिबंधों से आजाद होने के बाद होस्टल के रंगबिरंगे माहौल में जल्द ही रम गई. उस के तो पर ही निकल पड़े. पहले तो हर शनिवार की शाम को आती रही, फिर धीरेधीरे उस ने आना बंद कर दिया.

आयुषी और छवि जब भी उस से मिलने गए, वह उन्हें मिली नहीं. फोन पर कभीकभी बात हो जाती तो अब उस के सुर बदल चुके थे. अब वह हौलीवुड फिल्में, पिकनिक, पीजा, बर्गर और पार्टी की बातें करने लगी थी.

उस को घर आए बहुत दिन हो गए थे, इसलिए एक दिन मंजुला ने खुद फोन कर के उस से आने को कहा. वह आई, जींसटौप में बहुत स्मार्ट लग रही थी. अनिरुद्ध उसे देख कर बड़े खुश हुए, ‘श्रेयसी, तुम होस्टल में रह कर बिलकुल बदल गई हो.’

‘फूफाजी, मेरी रूममेट जूली कहती है, ‘जैसा देश वैसा भेस’ समय के साथ कदम मिला कर चलो, तभी आगे बढ़ पाओगी. मैं सलवारसूट पहनती थी तो पूरे डिपार्टमैंट में मेरा नाम बहनजी पड़ गया था. सैमिनार में जाती, तो क्लास के लड़केलड़कियां खीखी कर हंसते थे, और मुझे हूट करते थे. मैं ने अपने पुराने चोले को उतार फेंका. इस में जूली ने मेरी बहुत मदद की.’

फिर वह होस्टल चली गई. एक शाम कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘मंजुला, तुम श्रेयसी को बुला कर एक दिन बात करो. आज स्टाफरूम में रौबर्ट के साथ श्रेयसी का नाम जोड़ कर लोग खुसुरफुसुर कर रहे थे. ये दोनों यहांवहां अकसर साथ में दिखाई भी पड़ जाते हैं.’

मंजुला परेशान हो उठी थी. उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘भाईसाहब और भाभी तो ये सब बातें सुन कर आपे से बाहर हो जाएंगे. उन्होंने तो हमीं लोगों की जिम्मेदारी पर उसे यहां छोड़ा था.’

‘हां, मैं भी यह सब देखसुन कर परेशान हूं. श्रेयसी के तो रंगढंग ही बदल गए हैं.’

वह मन ही मन सोचती रह गई कि एक शाम श्रेयसी अपनी दोस्त जूली के साथ उस की स्कूटी पर आ गई. सब की प्रश्नवाचक निगाहों का जवाब दे कर बोली, ‘बूआ, यह जूली है. इसे हिंदी नहीं आती, इसलिए यह मुझ से हिंदी सीख रही है. और यह मुझे फ्रैंच सिखा रही है. हम लोग लाइब्रेरी में पढ़तेपढ़ते बोर हो गए थे, तो जूली बोली कि चलो, अपनी फैमिली से मिलवाओ. बस, मैं इसे ले कर यहां आ गई.’

‘अच्छा किया, जो तुम आ गईं. मुझे तुम से कुछ बात भी करनी है. तुम्हारी यह दोस्त हम लोगों का खाना पसंद करे तो खाना खा कर जाना.’

जूली खाने की बात सुन कर खिल उठी, ‘मुझे इंडियन खाना बहुत पसंद है. मेरी मां भी इंडियन खाना कभीकभी बनाती हैं. मेरे पापा तो इंडिया में रहते हुए पूरे शाकाहारी बन गए हैं.’

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यह सब कहते हुए श्रेयसी की आंखें नम हो उठी थीं. तभी वह मंजुला से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, मेरा घर कहां है? आप अच्छी मम्मी हैं. वे गंदी अम्मा हैं, मुझे मारती हैं.’

‘‘मैडम, क्या बात है बड़ी अपसैट दिख रही हो?’’ अनिरुद्ध की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. ‘‘सुनिए जी, श्रेयसी अपनी ससुराल में खुश तो रहेगी न? मेरे मन में अपराधबोध है कि मैं ने उसे अपने से दूर कर के भाभी के पास क्यों भेजा?’’

‘‘तुम तो फुजूल की बात करती हो. वह उन की बेटी है, जैसा वे चाहें वैसा करें.’’

जैसेजैसे श्रेयसी बड़ी होती गई, गुमसुम और चुप होती गई. श्रेयसी की आंखों का सूनापन देख मंजुला अपराधबोध से भर जाती. वह सोचती कि यदि वह उसे अपने पास रख सकती तो शायद श्रेयसी खुश रहती. भाभी के कड़क और दकियानूसी स्वभाव के कारण श्रेयसी सब से दूर, अकेली खड़ी दिखाई पड़ती. हंसनेचहचहाने की उम्र में भी उस के चेहरे पर गंभीरता का आवरण होता था.

उन्मुक्त और आयुषी धीरेधीरे बड़े होते गए और भाईसाहब व भाभी ने अपने बच्चों को मंजुला के यहां भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

उन्मुक्त की शादी में श्रेयसी को बहुत दिनों बाद देखा था मंजुला ने. श्रेयसी के लिए फैशनेबल कपड़े पहनना मना था. उसे केवल सलवारकुरता पहनने की इजाजत थी. दुपट्टा हर समय पहनना जरूरी था. भाभी की हर समय की डांटफटकार से श्रेयसी को अकेले में आंसू बहाते हुए देख, वह भी रो पड़ी थी.

उस के आंसू देख भाभी गरम हो कर बोली थीं, ‘अपने टेसुए किसी और को दिखाना, अपनी चालचलन ठीक रखो. लड़कियों का जोरजोर से हंसना अच्छा नहीं होता. इतनी जोर के ठहाके क्यों लगाती हो? चल कर नाश्ता लगाओ.’

यदि वह उन्मुक्त से मजाक करती, तो भाभी जोर से डांट कर कहतीं, ‘लड़कों के बीच घुसी रहती हो, चलो, ढोलक बजाओ और औरतों के साथ बैठो.’

ऐसी बातें सुन कर सब का मन खराब हो गया था. भैयाभाभी के चले जाने के बाद सब ने चैन की सांस ली थी. सब अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो गए थे. प्यारी सी बहू छवि के आने के बाद घर में रौनक आ गई थी.

8 महीने बीते थे कि एक दिन मंजुला के मोबाइल पर भाभी का फोन आया, ‘जीजी, श्रेयसी रिसर्च करना चाहती है. इसलिए हम लोग आप पर विश्वास कर के उसे लखनऊ भेज रहे हैं. वह लड़कियों वाले होस्टल में रहेगी. आप लोगों के विश्वास पर ही उसे आगे पढ़ने के लिए भेज रहे हैं. मेरा तो बहुत जी घबरा रहा है. समय बहुत खराब है. आजकल लड़कियों के कदम बहकते देर नहीं लगती है.’

‘भाभी, घबराने की कोई बात नहीं है. श्रेयसी बहुत समझदार है. आप ठीक समझो तो श्रेयसी को मेरे घर पर ही रहने दो. मुझे अच्छा ही लगेगा. छवि और आयुषी के साथ उस को खूब अच्छा लगेगा.’

भाईसाहब और भाभी श्रेयसी को ले कर आए. 3 दिन रह कर होस्टल में उस की सब व्यवस्था करवाई. चुपचुप, सहमी और गंभीर श्रेयसी को देख कर मन में प्रश्नचिह्न उठा, समझ में नहीं आया कि क्या बात है. एक रात अकेले में भाभी अपने मन का गुबार निकालते हुए बोली थीं, ‘जीजी, अब तुम से क्या छिपाएं. श्रेयसी के पीछे एक बदमाश लड़का पड़ा हुआ है, इसलिए इस को वहां से दूर भेजना आवश्यक हो गया था. हम लोगों ने बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कहीं भी रिश्ता तय नहीं हो पाया. इसलिए मजबूरी में यहां ऐडमिशन करवाना पड़ रहा है. इस की सुंदरता इस की दुश्मन बन बैठी है.’

सच ही श्रेयसी को कुदरत ने बड़े मन से गढ़ा था. दूध सा गोरा, सफेद संगमरमर सा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, लंबे व काले घुंघराले बाल. बिना मेकअप के भी वह परी सी दिखती थी.वे आगे बोली थीं, ‘जीजी, जीजाजी तो उसी कालेज में ही प्रोफैसर हैं. वे श्रेयसी पर निगाह रखेंगे. हम इस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. जैसे ही कहीं बात बनी, तुरंत शादी कर देंगे.’ भाभी अपने दिल का बोझ हलका कर के भाईसाहब के साथ अपने घर चली गई थीं.

श्रेयसी होस्टल में रह रही थी. उस की रूमपार्टनर जूली थी, जिस से उस की दोस्ती हो गई थी. उस का भाई रौबर्ट उसी कालेज में लैक्चरर था. जूली के साथ ही श्रेयसी उस के भाई से मिली. रौबर्ट पहली नजर में ही श्रेयसी की सुंदरता पर मर मिटा. शायद मन ही मन श्रेयसी को भी वह अच्छा लगा था.

रौबर्ट ईसाई था परंतु सुलझा और समझदार युवक था. वह अनिरुद्ध से कालेज में कई बार मिल चुका था. अनिरुद्ध उसे पसंद भी करते थे. भाईसाहब और भाभी के लिए उस का ईसाई होना सब से बड़ा दुर्गुण था. श्रेयसी छोटे शहर और भाभी के अनावश्यक प्रतिबंधों से आजाद होने के बाद होस्टल के रंगबिरंगे माहौल में जल्द ही रम गई. उस के तो पर ही निकल पड़े. पहले तो हर शनिवार की शाम को आती रही, फिर धीरेधीरे उस ने आना बंद कर दिया.

आयुषी और छवि जब भी उस से मिलने गए, वह उन्हें मिली नहीं. फोन पर कभीकभी बात हो जाती तो अब उस के सुर बदल चुके थे. अब वह हौलीवुड फिल्में, पिकनिक, पीजा, बर्गर और पार्टी की बातें करने लगी थी.

उस को घर आए बहुत दिन हो गए थे, इसलिए एक दिन मंजुला ने खुद फोन कर के उस से आने को कहा. वह आई, जींसटौप में बहुत स्मार्ट लग रही थी. अनिरुद्ध उसे देख कर बड़े खुश हुए, ‘श्रेयसी, तुम होस्टल में रह कर बिलकुल बदल गई हो.’

‘फूफाजी, मेरी रूममेट जूली कहती है, ‘जैसा देश वैसा भेस’ समय के साथ कदम मिला कर चलो, तभी आगे बढ़ पाओगी. मैं सलवारसूट पहनती थी तो पूरे डिपार्टमैंट में मेरा नाम बहनजी पड़ गया था. सैमिनार में जाती, तो क्लास के लड़केलड़कियां खीखी कर हंसते थे, और मुझे हूट करते थे. मैं ने अपने पुराने चोले को उतार फेंका. इस में जूली ने मेरी बहुत मदद की.’

फिर वह होस्टल चली गई. एक शाम कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘मंजुला, तुम श्रेयसी को बुला कर एक दिन बात करो. आज स्टाफरूम में रौबर्ट के साथ श्रेयसी का नाम जोड़ कर लोग खुसुरफुसुर कर रहे थे. ये दोनों यहांवहां अकसर साथ में दिखाई भी पड़ जाते हैं.’

मंजुला परेशान हो उठी थी. उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘भाईसाहब और भाभी तो ये सब बातें सुन कर आपे से बाहर हो जाएंगे. उन्होंने तो हमीं लोगों की जिम्मेदारी पर उसे यहां छोड़ा था.’

‘हां, मैं भी यह सब देखसुन कर परेशान हूं. श्रेयसी के तो रंगढंग ही बदल गए हैं.’

वह मन ही मन सोचती रह गई कि एक शाम श्रेयसी अपनी दोस्त जूली के साथ उस की स्कूटी पर आ गई. सब की प्रश्नवाचक निगाहों का जवाब दे कर बोली, ‘बूआ, यह जूली है. इसे हिंदी नहीं आती, इसलिए यह मुझ से हिंदी सीख रही है. और यह मुझे फ्रैंच सिखा रही है. हम लोग लाइब्रेरी में पढ़तेपढ़ते बोर हो गए थे, तो जूली बोली कि चलो, अपनी फैमिली से मिलवाओ. बस, मैं इसे ले कर यहां आ गई.’

‘अच्छा किया, जो तुम आ गईं. मुझे तुम से कुछ बात भी करनी है. तुम्हारी यह दोस्त हम लोगों का खाना पसंद करे तो खाना खा कर जाना.’

जूली खाने की बात सुन कर खिल उठी, ‘मुझे इंडियन खाना बहुत पसंद है. मेरी मां भी इंडियन खाना कभीकभी बनाती हैं. मेरे पापा तो इंडिया में रहते हुए पूरे शाकाहारी बन गए हैं.’

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August 29, 2020 at 10:00AM

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