Friday 26 June 2020

Short Story: अतीत की यादें

फोन की घंटी बजी तो चोंगा उठाने पर आवाज आई, ‘‘डायरैक्टर साहब हैं?’’

‘‘कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं रामनिवास बोल रहा हूं. जरा साहब से बात करा दीजिए.’’

‘‘कहिए, मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है. क्या मैं अभी 5 मिनट के लिए आ सकता हूं.’’

‘‘आप 3 बजे दफ्तर में आ जाइए.’’

‘‘अच्छी बात है. मैं 3 बजे आप के दफ्तर में हाजिर हो जाऊंगा.’’ चेतन ऊंचे पद पर हैं. उद्योग विभाग में निदेशक हैं. उन के पास नगर के बड़ेबड़े उद्योगपति और व्यापारी आते रहते हैं. रामनिवास शहर के बड़े व्यापारी हैं. कुछ  साल पहले मामूली हैसियत के थे, लेकिन अब वे करोड़पति हैं. शहर में उन की धाक है. चेतन इस नगर में 1 साल से हैं. वे सभी व्यापारियों को जानते हैं. उन्हें यह भी पता है कि कौन व्यापारी कैसा है. ठीक 3 बजे रामनिवास आ गए. चपरासी के द्वारा परची भेजी तो चेतन ने उन्हें फौरन बुला लिया. अभिवादन के बाद उन्होंने कहा, ‘‘आप से मिलने की बड़ी इच्छा थी. कई दिनों से आने की सोच रहा था. पर आप तो जानते ही हैं कि हम व्यापारियों की जिंदगी में बीसियों झंझट लगे रहते हैं.’’

ये भी पढ़ें-पश्चाताप- भाग 1: गार्गी मैरीन ड्राइव पर किसकी यादों में खोई थी?

चेतन ने उन की ओर देखा, फिर पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ उन के इस प्रश्न पर रामनिवास भीतर ही भीतर कुछ बुझ से गए. फिर संभल कर बोले, ‘‘आप की सालगिरह आ रही है, सोचा, मुबारकबाद दे दूं. आप जैसे अफसर मिलते कहां हैं. साहब, सारा शहर आप की बड़ी तारीफ करता है.’’ चेतन अकसर ऐसी बातें सुनते रहते हैं. जानते हैं कि इस के पीछे असलियत क्या है. उन्होंने कहा, ‘‘बोलिए, काम क्या है?’’

रामनिवास धीरे से बोले, ‘‘कोई खास काम तो नहीं है, आप के पास हमारी एक फाइल है. आप के दस्तखत होने हैं. उस पर दस्तखत कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

इतना कहतेकहते उन्होंने अपने बैग में से एक बड़ा लिफाफा निकाल कर चेतन के सामने रख दिया और बोले, ‘‘साहब, आप बुरा मत मानिए, हमारे घर में एक परंपरा है कि जब किसी से मिलने जाते हैं तो कुछ भेंट ले जाते हैं.’’ चेतन व्यापारियों के हथकंडे अच्छी तरह जानते हैं. मन ही मन उन्हें बड़ी खीझ हुई. आखिर सेठ ने यह जुर्रत कैसे की? क्या ये सोचते हैं कि मैं इतना भोला या मूढ़ हूं जो इन के जाल में फंस जाऊंगा? इन का लिफाफा मुझे खरीद लेगा? उसी समय एक आकृति उन के सामने आ खड़ी हुई. वह कह रही थी, पैसा हाथ का मैल है. आदमी की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है. यह आकृति चेतन की मां की थी. वह क्षणभर उस की ओर देखती रही और फिर गायब हो गई. चेतन ने मन के ज्वार को दबाने की कोशिश की. पर वे अपनी कोशिश में पृरी तरह सफल न हुए. उन्होंने लिफाफे को रामनिवास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप ने बड़ी कृपा की, जो मिलने आए. पर इतना याद रखिए कि सारे अफसर एक से नहीं होते. आप ने बहुत दुनिया देखी है, पर थोड़ाबहुत अनुभव हमें भी है.’’

तभी चपरासी ने एक चिट ला कर उन्हें दी. चिट देख कर चेतन ने कहा, ‘‘क्षमा कीजिए, मुझे एक मीटिंग में जाना है.’’

ये भी पढ़ें-Short Story: फिर प्यार हो गया

वे उठ खड़े हुए. रामनिवास भी नमस्कार कर के चले गए. यह चेतन के जीवन की पहली घटना नहीं थी. अनेक बार उन के सामने ऐसे प्रलोभन आए थे, पर कभी उन्होंने एक पैसा तक न छुआ. इतना ही नहीं, अपना खर्चा निकाल कर जो बचता, उसे वे जरूरतमंदों को दे देते. आज जाने क्यों, मां की उन्हें बारबार याद आ रही थी. मां ने जिन बातों के बीज अपने लाड़ले बेटे के मन में सदा के लिए बो दिए थे उन बातों को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर के भी दिखा दिया था. उन की मां एक रियासत के दीवान की लड़की थीं. उन के चारों ओर बड़े ठाटबाट थे, लेकिन उन का तनिक भी उन में रस न था. उन का विवाह भी एक बड़े घराने में हुआ. वहां भी किसी तरह की कोई कमी न थी. पर मां उस सब के बीच ऐसे रहीं, जैसे कीचड़ के बीच कमल रहता है. चेतन उन का अकेला बेटा था, पर रिश्तेदारों के 1-2 बच्चे हमेशा उन के घर पर बने रहते थे. मां सब को खिला कर खातीं और सब को सुला कर सोतीं.

मां की मृत्यु हो गई पर चेतन को उन की एकएक बात याद है. घर में खूब पैसा था और मां का हाथ खुला था. जिसे तंगी होती, वही आ जाता और कभी खाली हाथ न लौटता. जाने कितने पैसे उन्होंने दूसरों को दिए, उस में से चौथाई भी वापस न आया.

चेतन कभीकभी उन से कहता, ‘मां, तुम यह क्या करती हो?’

तब उन का एक ही जवाब होता, ‘अरे, बड़ी परेशानी में है. पैसा न लौटा पाई तो क्या हुआ, हमारे यहां तो कोई कमी आने वाली है नहीं, उसे सहारा मिल जाएगा.’

ऐसी 1-2 नहीं, बीसियों घटनाएं चेतन अपनी आंखों देखता. पैसा न आता तो न आता, किंतु मां पर उस का कोई असर न होता.

देश आजाद हुआ. जमींदारी खत्म हो गई. लेकिन मां जैसी की तैसी बनी रहीं. उन्होंने पैसे पर कभी मुट्ठी नहीं बांधी. दिनभर काम में लगी रहतीं और रात को चैन से सोतीं.

वे लोग एक देहात में रहते थे. चेतन ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मां से कहा, ‘मैं आगे पढ़ना चाहता हूं.’

‘तो पढ़, तुझे रोकता कौन है?’ मां ने सहज भाव से उत्तर दिया.

चेतन ने कहा, ‘आप ने तो कह दिया कि पढ़. पर मां, शहर का खर्चा बहुत है.’

मां ने सहज भाव से कहा, ‘तू उस की चिंता क्यों करता है, उस का प्रबंध हम करेंगे.’

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चेतन उम्र के लिहाज से छोटे थे, पर बड़े समझदार थे. देखते थे, आमदनी कम हो गई है और खर्च बढ़ गया है. यही बात उन्होंने मां से कह दी तो वे खूब हंसीं, फिर बोलीं, ‘चेतन, तू हमेशा पागल ही रहेगा. अरे, तुझे क्या लेनादेना है आमदनी और खर्चे से. तुझे पढ़ना है, पढ़. इधरउधर की फालतू बातें क्यों करता है? मेरे पास बहुत जेवर हैं. वे किस दिन काम आएंगे? आखिर मांबाप अपने बच्चों के लिए नहीं करेंगे तो किस के लिए करेंगे?’

यह सुन कर चेतन का जी भर आया था. मां की गोद में सिर रख कर वे रो पड़े थे. बड़े प्यार से मां उस के सिर पर हाथ फेरती रही थीं. चेतन को लगा कि मां का हाथ आज भी उन के सिर को सहला रहा है. उन की  आंखें डबडबा आईं. चेतन शहर में पढ़ने चले गए. मां बराबर खर्चा भेजती रहीं. चेतन ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की. वजीफा मिला तो मां को सूचना दी. वे बड़ी खुश हुईं. उन्हें भरोसा था कि उन का बेटा आगे चल कर बहुत नाम कमाएगा.  धीरेधीरे समय गुजरता गया. चेतन की पढ़ाई का 1 साल रह गया कि अचानक एक दिन उन्हें घर से सूचना मिली, मां बीमार हैं. वे घर पहुंचे तो मां बिस्तर पर पड़ी थीं. उन का ज्वर विषम हो गया था. बहुत दुबली हो गई थीं. चेतन को देख कर उन की आंखें चमक उठीं. उन्होंने बैठने का प्रयत्न किया पर बैठ न पाईं. चेतन ने उन्हें सहारा दे कर बिठाया. मां का हाल देख कर उन्हें रोना आ गया.

मां ने एक बार पूरा जोर लगा कर कहा, ‘बेटा, तू रोता है? अरे, मैं जल्दी ही अच्छी हो जाऊंगी.’

पर मां अच्छी न हुईं, 2 दिन बाद ही उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. मां के प्यार से वंचित हो कर चेतन अपने को असहाय सा अनुभव करने लगे. साथ ही, उन्हें यह चिंता भी सताने लगी कि घर में पिताजी अकेले रह गए हैं, अब उन का क्या होगा. पर संयोग से घर में पुराना नौकर था, उस ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. चेतन पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर चले गए पर कई दिनों तक उन का मन बड़ा बेचैन रहा.

एक दिन जब वे होस्टल के कमरे में बैठे थे, उन्होंने देखा, दरवाजे पर कोई खड़ा है. वे उठ कर दरवाजे पर आए तो पाया कि क्लास की रंजना है. वे सकपका से गए और बोले, ‘कहिए.’

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रंजना ने मुसकराते हुए कहा, ‘क्यों, अंदर आने को नहीं कहेंगे?’

‘नहींनहीं, आइए,’ चेतन ने कमरे का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया. कमरे में एक ही कुरसी थी, वह उन्होंने रंजना को दे दी और स्वयं पलंग पर बैठ गए. थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर रंजना ने कहा, ‘मैं एक काम से आई हूं.’

‘बताइए?’ चेतन ने उत्सुकता से उस की ओर देखा.

‘मुझे एक निबंध लिखना है, लेकिन सूझता नहीं कि क्या लिखूं. आप की मदद चाहती हूं.’

इतना कह कर उस ने सारी बात विस्तार से बता दी और अंत में कहा, ‘यह निबंध एक प्रतियोगिता में जाएगा, पर समय कम है.’

चेतन का वह प्रिय विषय था. उन्होंने बिना समय खोए निबंध लिखवा दिया. रंजना तो यह सोच कर आई थी कि वे कुछ मोटीमोटी बातें बता देंगे और उन के आधार पर वह निबंध लिख डालेगी. लेकिन उन्होंने तो सारा निबंध स्वयं लिखवा दिया और ऐसा कि हजार कोशिश करने पर रंजना वैसा नहीं लिख सकती थी. उन का आभार मानते हुए वह चली गई.

कुछ समय बाद एक दिन पुस्कालय में रंजना मिल गई तो चेतन ने पूछा, ‘कहिए, उस निबंध का क्या हुआ?’

रंजना मारे शर्म के गड़ गई. बोली, ‘क्षमा कीजिए, मैं आप को बता नहीं पाई. वह निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आया और उस पर मुझे 100 रुपए का पुरस्कार मिला.’

‘बधाई,’ चेतन ने कहा, ‘आप को मिठाई खिलानी चाहिए.’

रंजना के अंदर का तार झंकृत हो उठा. बोली, वह निबंध तो आप का था, बधाई आप को मिलनी चाहिए.’

चेतन ने मुसकराते हुए कहा, ‘यह कह कर मेरी मिठाई मत मारिए, वह पक्की रही, क्यों?’

रंजना ने चेतन की ओर देख कर  निगाह नीची कर ली. पर वह मन ही  मन चाह रही थी कि वे कुछ कहें. लेकिन चेतन को किसी से मिलना था. वे चले आए और रंजना खोई सी खड़ी रही.

इस के तीसरे दिन रंजना की वर्षगांठ थी. अगले दिन वह कालेज से सीधी चेतन के होस्टल गई. चेतन वहां नहीं थे. थोड़ी देर उन्होंने राह देखी और फिर एक परचे पर लिखा, ‘कल मेरी वर्षगांठ है. आप जरूर आइएगा. मुझे बड़ी खुशी होगी. मुझे ही क्यों, सारे घर को अच्छा लगेगा. मैं राह देखूंगी, रंजना.’

उस के जाने के बाद चेतन लौटे तो उन्हें रंजना का नोट मिला, जिसे पढ़ कर उन्होंने रंजना के मन में झांकने के कोशिश की. थोड़ी ऊहापोह के बाद उन्होंने सोचा कि हो न हो, वह उन के नजदीक आना चाहती हो. क्या यह उचित होगा?

तभी उन्हें मां की बात याद आई, ‘इंसान की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है.’ वे सोचने लगे, लेकिन चरित्र का अर्थ क्या है? मन का संयम. चरित्रवान वही है जो अपने को वश में रखता है. उन्होंने अपने मन को टटोला. रंजना के प्रति उन के मन में सहानुभूति थी, वासना का लेशमात्र भी नहीं था. वे बुदबुदाए, ‘तब मुझे वहां जरूर जाना चाहिए.’

वर्षगांठ के दिन उपहार में एक पुस्तक ले कर वे रंजना के घर गए. रंजना उन्हें देख कर बड़ी खुश हुई. उस ने उन्हें अपने मातापिता से मिलवाया. चेतन जितनी देर रहे, रंजना उन के आसपास चक्कर लगाती रही. आयोजन छोटा सा था, ज्यादातर घर के लोग थे. खापी कर चेतन चले आए.

इस के बाद रंजना उन से 2-3 बार मिली. पर मारे संकोच के वह मन की बात उन से कह न पाई. उस के लिए जिस साहस की जरूरत थी वह रंजना में नहीं था.

चेतन की पढ़ाई पूरी हो गई. परीक्षा भी समाप्त हो गई. जिस शाम को वे घर के लिए रवाना होने वाले थे, रंजना उन के पास आई. उस ने चेतन के पैर छुए और बिना उस के कुछ कहे कुरसी पर बैठ गई. वह अपने मन को पूरी तरह खोल कर उन के सामने रख देने का संकल्प कर के आई थी. उस ने कहना आरंभ किया, ‘अब आगे आप का क्या विचार है?’

‘घर जा रहा हूं. जैसा पिताजी कहेंगे, करूंगा,’ चेतन ने मुसकरा कर कहा, ‘पर आप का इरादा क्या है?’

रंजना जानती थी कि पढ़ाई पूरी हो जाने पर लड़कियों का क्या भविष्य होता है. पर उस ने वह कहा नहीं. बस, इतना बोली, ‘अभी कुछ सोचा नहीं है.’

चेतन ने मुक्तभाव से कहा, ‘पढ़ाई पूरी हो गई. अब आप को क्या सोचना है. वह काम तो आप के मातापिता करेंगे.’

यह सुन कर रंजना का चेहरा आरक्त हो गया. धरती को पैर के नाखून से कुरेदती हुई बोली, ‘क्या यह संभव हो सकता है…?’ आगे के शब्द उस के होंठों के पीछे रह गए. चेतन ने उसे आगे कुछ भी कहने को मौका न दिया. बोले, ‘रंजनाजी, आप को एक भाई चाहिए था, मुझे एक बहन की जरूरत थी. हालात और वक्त ने दोनों की इच्छा पूरी कर दी. क्यों, है न?’ चेतन के चेहरे पर इतनी सात्विकता थी और शब्दों में इतनी निश्छलता कि रंजना भीतर से भीग सी गई. उसे ऐसा लगा, मानो चेतन ने उसे गंगा की निर्मल धारा मेें डुबकी लगवा कर उस के तप्त हृदय को शीतल कर दिया हो. वह भारी मन ले कर आई थी, हलका मन ले कर लौटी.

बात बहुत पुरानी थी, लेकिन शाम को अपने बंगले के बरामदे में कुरसी पर बैठे चेतन अतीत की याद में ऐसा खो गए कि उन्हें पता भी न चला कि कब शाम बीत गई और कब उन का सेवक आ कर बत्ती जला गया. उन के मन में आनंद हिलोरें ले रहा था. जीवन के रणक्षेत्र की इस विजय से उन का रोमरोम पुलकित हो रहा था.

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फोन की घंटी बजी तो चोंगा उठाने पर आवाज आई, ‘‘डायरैक्टर साहब हैं?’’

‘‘कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं रामनिवास बोल रहा हूं. जरा साहब से बात करा दीजिए.’’

‘‘कहिए, मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है. क्या मैं अभी 5 मिनट के लिए आ सकता हूं.’’

‘‘आप 3 बजे दफ्तर में आ जाइए.’’

‘‘अच्छी बात है. मैं 3 बजे आप के दफ्तर में हाजिर हो जाऊंगा.’’ चेतन ऊंचे पद पर हैं. उद्योग विभाग में निदेशक हैं. उन के पास नगर के बड़ेबड़े उद्योगपति और व्यापारी आते रहते हैं. रामनिवास शहर के बड़े व्यापारी हैं. कुछ  साल पहले मामूली हैसियत के थे, लेकिन अब वे करोड़पति हैं. शहर में उन की धाक है. चेतन इस नगर में 1 साल से हैं. वे सभी व्यापारियों को जानते हैं. उन्हें यह भी पता है कि कौन व्यापारी कैसा है. ठीक 3 बजे रामनिवास आ गए. चपरासी के द्वारा परची भेजी तो चेतन ने उन्हें फौरन बुला लिया. अभिवादन के बाद उन्होंने कहा, ‘‘आप से मिलने की बड़ी इच्छा थी. कई दिनों से आने की सोच रहा था. पर आप तो जानते ही हैं कि हम व्यापारियों की जिंदगी में बीसियों झंझट लगे रहते हैं.’’

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चेतन ने उन की ओर देखा, फिर पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ उन के इस प्रश्न पर रामनिवास भीतर ही भीतर कुछ बुझ से गए. फिर संभल कर बोले, ‘‘आप की सालगिरह आ रही है, सोचा, मुबारकबाद दे दूं. आप जैसे अफसर मिलते कहां हैं. साहब, सारा शहर आप की बड़ी तारीफ करता है.’’ चेतन अकसर ऐसी बातें सुनते रहते हैं. जानते हैं कि इस के पीछे असलियत क्या है. उन्होंने कहा, ‘‘बोलिए, काम क्या है?’’

रामनिवास धीरे से बोले, ‘‘कोई खास काम तो नहीं है, आप के पास हमारी एक फाइल है. आप के दस्तखत होने हैं. उस पर दस्तखत कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

इतना कहतेकहते उन्होंने अपने बैग में से एक बड़ा लिफाफा निकाल कर चेतन के सामने रख दिया और बोले, ‘‘साहब, आप बुरा मत मानिए, हमारे घर में एक परंपरा है कि जब किसी से मिलने जाते हैं तो कुछ भेंट ले जाते हैं.’’ चेतन व्यापारियों के हथकंडे अच्छी तरह जानते हैं. मन ही मन उन्हें बड़ी खीझ हुई. आखिर सेठ ने यह जुर्रत कैसे की? क्या ये सोचते हैं कि मैं इतना भोला या मूढ़ हूं जो इन के जाल में फंस जाऊंगा? इन का लिफाफा मुझे खरीद लेगा? उसी समय एक आकृति उन के सामने आ खड़ी हुई. वह कह रही थी, पैसा हाथ का मैल है. आदमी की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है. यह आकृति चेतन की मां की थी. वह क्षणभर उस की ओर देखती रही और फिर गायब हो गई. चेतन ने मन के ज्वार को दबाने की कोशिश की. पर वे अपनी कोशिश में पृरी तरह सफल न हुए. उन्होंने लिफाफे को रामनिवास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप ने बड़ी कृपा की, जो मिलने आए. पर इतना याद रखिए कि सारे अफसर एक से नहीं होते. आप ने बहुत दुनिया देखी है, पर थोड़ाबहुत अनुभव हमें भी है.’’

तभी चपरासी ने एक चिट ला कर उन्हें दी. चिट देख कर चेतन ने कहा, ‘‘क्षमा कीजिए, मुझे एक मीटिंग में जाना है.’’

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वे उठ खड़े हुए. रामनिवास भी नमस्कार कर के चले गए. यह चेतन के जीवन की पहली घटना नहीं थी. अनेक बार उन के सामने ऐसे प्रलोभन आए थे, पर कभी उन्होंने एक पैसा तक न छुआ. इतना ही नहीं, अपना खर्चा निकाल कर जो बचता, उसे वे जरूरतमंदों को दे देते. आज जाने क्यों, मां की उन्हें बारबार याद आ रही थी. मां ने जिन बातों के बीज अपने लाड़ले बेटे के मन में सदा के लिए बो दिए थे उन बातों को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर के भी दिखा दिया था. उन की मां एक रियासत के दीवान की लड़की थीं. उन के चारों ओर बड़े ठाटबाट थे, लेकिन उन का तनिक भी उन में रस न था. उन का विवाह भी एक बड़े घराने में हुआ. वहां भी किसी तरह की कोई कमी न थी. पर मां उस सब के बीच ऐसे रहीं, जैसे कीचड़ के बीच कमल रहता है. चेतन उन का अकेला बेटा था, पर रिश्तेदारों के 1-2 बच्चे हमेशा उन के घर पर बने रहते थे. मां सब को खिला कर खातीं और सब को सुला कर सोतीं.

मां की मृत्यु हो गई पर चेतन को उन की एकएक बात याद है. घर में खूब पैसा था और मां का हाथ खुला था. जिसे तंगी होती, वही आ जाता और कभी खाली हाथ न लौटता. जाने कितने पैसे उन्होंने दूसरों को दिए, उस में से चौथाई भी वापस न आया.

चेतन कभीकभी उन से कहता, ‘मां, तुम यह क्या करती हो?’

तब उन का एक ही जवाब होता, ‘अरे, बड़ी परेशानी में है. पैसा न लौटा पाई तो क्या हुआ, हमारे यहां तो कोई कमी आने वाली है नहीं, उसे सहारा मिल जाएगा.’

ऐसी 1-2 नहीं, बीसियों घटनाएं चेतन अपनी आंखों देखता. पैसा न आता तो न आता, किंतु मां पर उस का कोई असर न होता.

देश आजाद हुआ. जमींदारी खत्म हो गई. लेकिन मां जैसी की तैसी बनी रहीं. उन्होंने पैसे पर कभी मुट्ठी नहीं बांधी. दिनभर काम में लगी रहतीं और रात को चैन से सोतीं.

वे लोग एक देहात में रहते थे. चेतन ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मां से कहा, ‘मैं आगे पढ़ना चाहता हूं.’

‘तो पढ़, तुझे रोकता कौन है?’ मां ने सहज भाव से उत्तर दिया.

चेतन ने कहा, ‘आप ने तो कह दिया कि पढ़. पर मां, शहर का खर्चा बहुत है.’

मां ने सहज भाव से कहा, ‘तू उस की चिंता क्यों करता है, उस का प्रबंध हम करेंगे.’

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चेतन उम्र के लिहाज से छोटे थे, पर बड़े समझदार थे. देखते थे, आमदनी कम हो गई है और खर्च बढ़ गया है. यही बात उन्होंने मां से कह दी तो वे खूब हंसीं, फिर बोलीं, ‘चेतन, तू हमेशा पागल ही रहेगा. अरे, तुझे क्या लेनादेना है आमदनी और खर्चे से. तुझे पढ़ना है, पढ़. इधरउधर की फालतू बातें क्यों करता है? मेरे पास बहुत जेवर हैं. वे किस दिन काम आएंगे? आखिर मांबाप अपने बच्चों के लिए नहीं करेंगे तो किस के लिए करेंगे?’

यह सुन कर चेतन का जी भर आया था. मां की गोद में सिर रख कर वे रो पड़े थे. बड़े प्यार से मां उस के सिर पर हाथ फेरती रही थीं. चेतन को लगा कि मां का हाथ आज भी उन के सिर को सहला रहा है. उन की  आंखें डबडबा आईं. चेतन शहर में पढ़ने चले गए. मां बराबर खर्चा भेजती रहीं. चेतन ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की. वजीफा मिला तो मां को सूचना दी. वे बड़ी खुश हुईं. उन्हें भरोसा था कि उन का बेटा आगे चल कर बहुत नाम कमाएगा.  धीरेधीरे समय गुजरता गया. चेतन की पढ़ाई का 1 साल रह गया कि अचानक एक दिन उन्हें घर से सूचना मिली, मां बीमार हैं. वे घर पहुंचे तो मां बिस्तर पर पड़ी थीं. उन का ज्वर विषम हो गया था. बहुत दुबली हो गई थीं. चेतन को देख कर उन की आंखें चमक उठीं. उन्होंने बैठने का प्रयत्न किया पर बैठ न पाईं. चेतन ने उन्हें सहारा दे कर बिठाया. मां का हाल देख कर उन्हें रोना आ गया.

मां ने एक बार पूरा जोर लगा कर कहा, ‘बेटा, तू रोता है? अरे, मैं जल्दी ही अच्छी हो जाऊंगी.’

पर मां अच्छी न हुईं, 2 दिन बाद ही उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. मां के प्यार से वंचित हो कर चेतन अपने को असहाय सा अनुभव करने लगे. साथ ही, उन्हें यह चिंता भी सताने लगी कि घर में पिताजी अकेले रह गए हैं, अब उन का क्या होगा. पर संयोग से घर में पुराना नौकर था, उस ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. चेतन पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर चले गए पर कई दिनों तक उन का मन बड़ा बेचैन रहा.

एक दिन जब वे होस्टल के कमरे में बैठे थे, उन्होंने देखा, दरवाजे पर कोई खड़ा है. वे उठ कर दरवाजे पर आए तो पाया कि क्लास की रंजना है. वे सकपका से गए और बोले, ‘कहिए.’

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रंजना ने मुसकराते हुए कहा, ‘क्यों, अंदर आने को नहीं कहेंगे?’

‘नहींनहीं, आइए,’ चेतन ने कमरे का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया. कमरे में एक ही कुरसी थी, वह उन्होंने रंजना को दे दी और स्वयं पलंग पर बैठ गए. थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर रंजना ने कहा, ‘मैं एक काम से आई हूं.’

‘बताइए?’ चेतन ने उत्सुकता से उस की ओर देखा.

‘मुझे एक निबंध लिखना है, लेकिन सूझता नहीं कि क्या लिखूं. आप की मदद चाहती हूं.’

इतना कह कर उस ने सारी बात विस्तार से बता दी और अंत में कहा, ‘यह निबंध एक प्रतियोगिता में जाएगा, पर समय कम है.’

चेतन का वह प्रिय विषय था. उन्होंने बिना समय खोए निबंध लिखवा दिया. रंजना तो यह सोच कर आई थी कि वे कुछ मोटीमोटी बातें बता देंगे और उन के आधार पर वह निबंध लिख डालेगी. लेकिन उन्होंने तो सारा निबंध स्वयं लिखवा दिया और ऐसा कि हजार कोशिश करने पर रंजना वैसा नहीं लिख सकती थी. उन का आभार मानते हुए वह चली गई.

कुछ समय बाद एक दिन पुस्कालय में रंजना मिल गई तो चेतन ने पूछा, ‘कहिए, उस निबंध का क्या हुआ?’

रंजना मारे शर्म के गड़ गई. बोली, ‘क्षमा कीजिए, मैं आप को बता नहीं पाई. वह निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आया और उस पर मुझे 100 रुपए का पुरस्कार मिला.’

‘बधाई,’ चेतन ने कहा, ‘आप को मिठाई खिलानी चाहिए.’

रंजना के अंदर का तार झंकृत हो उठा. बोली, वह निबंध तो आप का था, बधाई आप को मिलनी चाहिए.’

चेतन ने मुसकराते हुए कहा, ‘यह कह कर मेरी मिठाई मत मारिए, वह पक्की रही, क्यों?’

रंजना ने चेतन की ओर देख कर  निगाह नीची कर ली. पर वह मन ही  मन चाह रही थी कि वे कुछ कहें. लेकिन चेतन को किसी से मिलना था. वे चले आए और रंजना खोई सी खड़ी रही.

इस के तीसरे दिन रंजना की वर्षगांठ थी. अगले दिन वह कालेज से सीधी चेतन के होस्टल गई. चेतन वहां नहीं थे. थोड़ी देर उन्होंने राह देखी और फिर एक परचे पर लिखा, ‘कल मेरी वर्षगांठ है. आप जरूर आइएगा. मुझे बड़ी खुशी होगी. मुझे ही क्यों, सारे घर को अच्छा लगेगा. मैं राह देखूंगी, रंजना.’

उस के जाने के बाद चेतन लौटे तो उन्हें रंजना का नोट मिला, जिसे पढ़ कर उन्होंने रंजना के मन में झांकने के कोशिश की. थोड़ी ऊहापोह के बाद उन्होंने सोचा कि हो न हो, वह उन के नजदीक आना चाहती हो. क्या यह उचित होगा?

तभी उन्हें मां की बात याद आई, ‘इंसान की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है.’ वे सोचने लगे, लेकिन चरित्र का अर्थ क्या है? मन का संयम. चरित्रवान वही है जो अपने को वश में रखता है. उन्होंने अपने मन को टटोला. रंजना के प्रति उन के मन में सहानुभूति थी, वासना का लेशमात्र भी नहीं था. वे बुदबुदाए, ‘तब मुझे वहां जरूर जाना चाहिए.’

वर्षगांठ के दिन उपहार में एक पुस्तक ले कर वे रंजना के घर गए. रंजना उन्हें देख कर बड़ी खुश हुई. उस ने उन्हें अपने मातापिता से मिलवाया. चेतन जितनी देर रहे, रंजना उन के आसपास चक्कर लगाती रही. आयोजन छोटा सा था, ज्यादातर घर के लोग थे. खापी कर चेतन चले आए.

इस के बाद रंजना उन से 2-3 बार मिली. पर मारे संकोच के वह मन की बात उन से कह न पाई. उस के लिए जिस साहस की जरूरत थी वह रंजना में नहीं था.

चेतन की पढ़ाई पूरी हो गई. परीक्षा भी समाप्त हो गई. जिस शाम को वे घर के लिए रवाना होने वाले थे, रंजना उन के पास आई. उस ने चेतन के पैर छुए और बिना उस के कुछ कहे कुरसी पर बैठ गई. वह अपने मन को पूरी तरह खोल कर उन के सामने रख देने का संकल्प कर के आई थी. उस ने कहना आरंभ किया, ‘अब आगे आप का क्या विचार है?’

‘घर जा रहा हूं. जैसा पिताजी कहेंगे, करूंगा,’ चेतन ने मुसकरा कर कहा, ‘पर आप का इरादा क्या है?’

रंजना जानती थी कि पढ़ाई पूरी हो जाने पर लड़कियों का क्या भविष्य होता है. पर उस ने वह कहा नहीं. बस, इतना बोली, ‘अभी कुछ सोचा नहीं है.’

चेतन ने मुक्तभाव से कहा, ‘पढ़ाई पूरी हो गई. अब आप को क्या सोचना है. वह काम तो आप के मातापिता करेंगे.’

यह सुन कर रंजना का चेहरा आरक्त हो गया. धरती को पैर के नाखून से कुरेदती हुई बोली, ‘क्या यह संभव हो सकता है…?’ आगे के शब्द उस के होंठों के पीछे रह गए. चेतन ने उसे आगे कुछ भी कहने को मौका न दिया. बोले, ‘रंजनाजी, आप को एक भाई चाहिए था, मुझे एक बहन की जरूरत थी. हालात और वक्त ने दोनों की इच्छा पूरी कर दी. क्यों, है न?’ चेतन के चेहरे पर इतनी सात्विकता थी और शब्दों में इतनी निश्छलता कि रंजना भीतर से भीग सी गई. उसे ऐसा लगा, मानो चेतन ने उसे गंगा की निर्मल धारा मेें डुबकी लगवा कर उस के तप्त हृदय को शीतल कर दिया हो. वह भारी मन ले कर आई थी, हलका मन ले कर लौटी.

बात बहुत पुरानी थी, लेकिन शाम को अपने बंगले के बरामदे में कुरसी पर बैठे चेतन अतीत की याद में ऐसा खो गए कि उन्हें पता भी न चला कि कब शाम बीत गई और कब उन का सेवक आ कर बत्ती जला गया. उन के मन में आनंद हिलोरें ले रहा था. जीवन के रणक्षेत्र की इस विजय से उन का रोमरोम पुलकित हो रहा था.

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June 27, 2020 at 10:00AM

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