Tuesday 30 June 2020

घर का चिराग-भाग 3: केशव बाबू की पत्नी से लड़ाई क्यों हो रही है?

अनिका और उस के पापा के बीच रोज फोन पर बातें होती थीं. अनिका मां से भी बातें करती थी. पहले तो मां ऐंठी रहती थी, परंतु धीरेधीरे वह सामान्य हो गई. जिंदगी की ऊंचीनीची डगर पर सब लोग हिचकोले खाते हुए यों ही आगे बढ़ रहे थे. घर का माहौल कुछ दिनों से सहमासहमा और डरावना सा था. केशव बाबू ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वे अपनी नित्य क्रियाओं में व्यस्त रहते. औफिस जाते और घर पर आ कर पढ़ने में व्यस्त रहते. नीता वैसे भी उन से खिचींखिचीं रहती थी, इसलिए वे उस के किसी प्रसंग में दखल नहीं देते थे. दफ्तर से आ कर वे ड्राइंगरूम में बैठे ही थे कि नीता अपना तमतमाया हुआ चेहरा ले कर उन के सामने खड़ी हो गई. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘आप को पता है, इस घर में क्या हो रहा है?’’

केशव बाबू ने इस तरह सिर उठा कर नीता को देखा, जैसे कह रहे हों, ‘मुझे कैसे पता चलेगा. घर में तो तुम रहती हो,’ फिर उपेक्षित भाव से बोले, ‘‘बताओ?’’

‘‘विप्लव एक सप्ताह से घर नहीं आया है.’’

‘‘अच्छा, मुझे तो वह कभी घर में नहीं दिखता. तुम्हें पता होगा, वह कहां होगा? न पता हो, फोन कर के पूछ लो.’’

‘‘पूछा है, कहता है कि अपनी गर्लफ्रैंड के साथ रहने लगा है, लिवइन रिलेशनशिप में.’’ केशव बाबू एक पल के लिए हतप्रभ रह गए. फिर एक व्यंग्यात्मक मुसकान उन के चेहरे पर दौड़ गई, ‘‘खुशी की बात है, उस ने मांबाप को शादी के झंझट से बचा लिया. सोचो, लाखों रुपए की बचत हो गई. तुम बेटी की शादी का खर्च बचाना चाहती थी. तुम्हारे बेटे ने स्वयं की शादी का खर्च बचा दिया.’’ नीता धम्म से सोफे के दूसरे किनारे पर गिर सी पड़ी. वह केशव बाबू के पैरों की तरफ झुकती हुई बोली, ‘‘आप को मजाक सूझ रहा है और मेरी जान निकली जा रही है. वह न तो कोई नौकरी कर रहा है, न उस का एमबीए पूरा हुआ है. ऐसे में वह बरबाद हो जाएगा. वह लड़की उसे बरबाद कर देगी.’’

केशव बाबू गंभीर हो गए. पत्नी के प्रति घृणा करते हुए भी उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण स्वयं में कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, लड़के के सिर पर अभी प्रेम का भूत सवार है. ऐसे प्रेम में गंभीरता और स्थायित्व नहीं होता. लिवइन रिलेशनशिप बंधनरहित होते हैं, इन में एक न एक दिन खटास अवश्य आती है, चाहे शादी को ले कर, चाहे बच्चों को ले कर या कमाई को ले कर या फिर उन के बीच में कोई तीसरा आ जाता है. जो रिश्ते शारीरिक आकर्षण पर आधारित होते हैं उन की नियति और परिणति यही होती है. जहां परिवार और समाज नहीं होता, वहां उच्छृंखलता और निरंकुशता होती है. देख लेना, एक दिन विप्लव और उस लड़की का रिश्ता टूट जाएगा.’’

‘‘परंतु वह कुछ करताधरता नहीं है. उस का भविष्य चौपट हो जाएगा.’’

‘‘वह तो होना ही है, जिस तरह की परवरिश और संस्कार तुम ने उस को दिए हैं, उस में उस का बिगड़ना आश्चर्यजनक नहीं है. न बिगड़ता तो आश्चर्य होता. अब हम कुछ नहीं कर सकते. ठोकर खा कर अगर वह सुधर गया, तो समझो सुबह का भूला शाम को घर वापस आ गया. वरना…’’

‘‘परंतु उस का खर्चा कहां से चलेगा?’’

‘‘मुझे लगता है, वह लड़की कहीं न कहीं नौकरी अवश्य करती होगी. जब तक उस के मन में विप्लव के लिए प्रेम रहेगा, वह उस का खर्चा उठाती रहेगी. जिस दिन उसे लगा कि विप्लव उस के लिए बोझ है या कोई अन्य लड़का उस के जीवन में आ गया, वह विप्लव को ठोकर मार देगी.’’ नीता रोने लगी. केशव बाबू ने उसे चुप नहीं कराया. कोई फायदा नहीं था. यह नीता की नासमझी का परिणाम था, परंतु विप्लव के पतन के लिए वह अकेली दोषी नहीं थी. इस में विप्लव का भी बहुत बड़ा हाथ था. कोई भी युवक नासमझ नहीं होता कि उसे अपने कर्मों के परिणामों का पता नहीं होता. प्यार उस ने अपनी बुद्धि और विवेक से किया था और उस ने कुछ सोचसमझ कर अपनी प्रेमिका के साथ रहना स्वीकार किया होगा. पढ़ने में वह कमजोर था, तो इस में उस की नालायकी और कामचोरी थी. हम जो कर्म करते हैं, उन के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं. हम अपनी गलतियों के लिए किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते.

केशव बाबू के लिए यह चिंता का विषय था कि बेटा बिगड़ गया था, परंतु वे बहुत अधिक परेशान नहीं थे. पत्नी की हठधर्मी और मनमानी में उन का कोई हाथ नहीं था. उन्होंने तो हर कदम पर उसे रोकने और समझाने की कोशिश की, परंतु वह उलटी खोपड़ी की औरत थी. हर सही बात उसे गलत लगती और हर गलत काम अच्छा. उस का दुष्परिणाम एक न एक दिन सब के सामने आना ही था. कहां तो नीता को चिंता थी कि ज्यादा पढ़ाने से बेटी बिगड़ जाएगी, कहां बेटा बिगड़ गया. जिसे वंश आगे बढ़ाना था, खानदान का नाम रोशन करना था, वही घर के सारे चिराग बुझा कर खुद अंधेरे में गुम हो गया था. अनिका के बीटैक का यह अंतिम वर्ष था. एक दिन उस ने पापा को फोन किया, ‘‘पापा, एक खुशखबरी है.’’

‘‘क्या बेटा, बोलो?’’ केशव बाबू ने उल्लास से पूछा.

‘‘पापा, मेरा सेलैक्शन हो गया है,’’ अनिका खुशी से चहक रही थी. केशव बाबू का हृदय खुशी से झूम उठा. शरीर में एक झुरझुरी सी उठी. उन्हें लगा, जैसे तपती दोपहरी में पसीने से तरबतर शरीर के ऊपर किसी ने वर्षा की ठंडी बूंदें टपका दी हों. वे हर्षित होते हुए बोले, ‘‘मुबारक हो बेटा, कहां हुआ है सेलैक्शन? ले किन अभी तो तुम्हारी फाइनल की परीक्षाएं बाकी हैं.’’

‘‘हां, वो तो है, परंतु ये कैंपस सेलैक्शन है. पिछले अंकों के आधार पर हुआ है. परीक्षा के बाद ही नियुक्तिपत्र मिलेगा. परंतु अभी एक शर्त है कि पहली पोस्ंिटग मुंबई में होगी.’’

‘‘तो इस में परेशानी क्या है? तुम होस्टल में रह चुकी हो. मुंबई में भी तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.’’

‘‘हां, वह तो सही है. बस, मैं यह सोच रही थी कि आप अकेले हो जाएंगे.’’

‘‘नहीं, बेटा, पहले तुम अपने भविष्य की चिंता करो. वैसे भी शादी के बाद तुम हम सब को छोड़ कर चली जाओगी.’’

‘‘नहीं पापा, मैं आप को छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी.’’ केशव बाबू मन ही मन मुसकराए, परंतु आंतरिक खुशी के बावजूद उन की आंखों में आंसू छा गए. अपने को संभाल कर बोले, ‘‘अच्छा ठीक है. तुम अपना खयाल रखना.’’

‘‘ओके पापा.’’

‘‘मम्मी को बताया?’’

‘‘बता दूं, क्या?’’ अनिका ने पूछा.

‘‘बता दे तो अच्छा रहेगा, तुम्हारी मम्मी हैं, अच्छी हैं या बुरी, सदा तुम्हारी मां रहेंगी. वैसे भी आजकल उन के व्यवहार में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ है. मेरे साथ मीठा व्यवहार करती हैं. बेटे ने उन की आशाओं और अपेक्षाओं पर जो चोट की है, उस से उन का विश्वास डगमगा गया है. उन को अब कहीं कोई सहारा दिखाई नहीं देता.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी फोन करती हूं.’’

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अनिका और उस के पापा के बीच रोज फोन पर बातें होती थीं. अनिका मां से भी बातें करती थी. पहले तो मां ऐंठी रहती थी, परंतु धीरेधीरे वह सामान्य हो गई. जिंदगी की ऊंचीनीची डगर पर सब लोग हिचकोले खाते हुए यों ही आगे बढ़ रहे थे. घर का माहौल कुछ दिनों से सहमासहमा और डरावना सा था. केशव बाबू ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वे अपनी नित्य क्रियाओं में व्यस्त रहते. औफिस जाते और घर पर आ कर पढ़ने में व्यस्त रहते. नीता वैसे भी उन से खिचींखिचीं रहती थी, इसलिए वे उस के किसी प्रसंग में दखल नहीं देते थे. दफ्तर से आ कर वे ड्राइंगरूम में बैठे ही थे कि नीता अपना तमतमाया हुआ चेहरा ले कर उन के सामने खड़ी हो गई. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘आप को पता है, इस घर में क्या हो रहा है?’’

केशव बाबू ने इस तरह सिर उठा कर नीता को देखा, जैसे कह रहे हों, ‘मुझे कैसे पता चलेगा. घर में तो तुम रहती हो,’ फिर उपेक्षित भाव से बोले, ‘‘बताओ?’’

‘‘विप्लव एक सप्ताह से घर नहीं आया है.’’

‘‘अच्छा, मुझे तो वह कभी घर में नहीं दिखता. तुम्हें पता होगा, वह कहां होगा? न पता हो, फोन कर के पूछ लो.’’

‘‘पूछा है, कहता है कि अपनी गर्लफ्रैंड के साथ रहने लगा है, लिवइन रिलेशनशिप में.’’ केशव बाबू एक पल के लिए हतप्रभ रह गए. फिर एक व्यंग्यात्मक मुसकान उन के चेहरे पर दौड़ गई, ‘‘खुशी की बात है, उस ने मांबाप को शादी के झंझट से बचा लिया. सोचो, लाखों रुपए की बचत हो गई. तुम बेटी की शादी का खर्च बचाना चाहती थी. तुम्हारे बेटे ने स्वयं की शादी का खर्च बचा दिया.’’ नीता धम्म से सोफे के दूसरे किनारे पर गिर सी पड़ी. वह केशव बाबू के पैरों की तरफ झुकती हुई बोली, ‘‘आप को मजाक सूझ रहा है और मेरी जान निकली जा रही है. वह न तो कोई नौकरी कर रहा है, न उस का एमबीए पूरा हुआ है. ऐसे में वह बरबाद हो जाएगा. वह लड़की उसे बरबाद कर देगी.’’

केशव बाबू गंभीर हो गए. पत्नी के प्रति घृणा करते हुए भी उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण स्वयं में कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, लड़के के सिर पर अभी प्रेम का भूत सवार है. ऐसे प्रेम में गंभीरता और स्थायित्व नहीं होता. लिवइन रिलेशनशिप बंधनरहित होते हैं, इन में एक न एक दिन खटास अवश्य आती है, चाहे शादी को ले कर, चाहे बच्चों को ले कर या कमाई को ले कर या फिर उन के बीच में कोई तीसरा आ जाता है. जो रिश्ते शारीरिक आकर्षण पर आधारित होते हैं उन की नियति और परिणति यही होती है. जहां परिवार और समाज नहीं होता, वहां उच्छृंखलता और निरंकुशता होती है. देख लेना, एक दिन विप्लव और उस लड़की का रिश्ता टूट जाएगा.’’

‘‘परंतु वह कुछ करताधरता नहीं है. उस का भविष्य चौपट हो जाएगा.’’

‘‘वह तो होना ही है, जिस तरह की परवरिश और संस्कार तुम ने उस को दिए हैं, उस में उस का बिगड़ना आश्चर्यजनक नहीं है. न बिगड़ता तो आश्चर्य होता. अब हम कुछ नहीं कर सकते. ठोकर खा कर अगर वह सुधर गया, तो समझो सुबह का भूला शाम को घर वापस आ गया. वरना…’’

‘‘परंतु उस का खर्चा कहां से चलेगा?’’

‘‘मुझे लगता है, वह लड़की कहीं न कहीं नौकरी अवश्य करती होगी. जब तक उस के मन में विप्लव के लिए प्रेम रहेगा, वह उस का खर्चा उठाती रहेगी. जिस दिन उसे लगा कि विप्लव उस के लिए बोझ है या कोई अन्य लड़का उस के जीवन में आ गया, वह विप्लव को ठोकर मार देगी.’’ नीता रोने लगी. केशव बाबू ने उसे चुप नहीं कराया. कोई फायदा नहीं था. यह नीता की नासमझी का परिणाम था, परंतु विप्लव के पतन के लिए वह अकेली दोषी नहीं थी. इस में विप्लव का भी बहुत बड़ा हाथ था. कोई भी युवक नासमझ नहीं होता कि उसे अपने कर्मों के परिणामों का पता नहीं होता. प्यार उस ने अपनी बुद्धि और विवेक से किया था और उस ने कुछ सोचसमझ कर अपनी प्रेमिका के साथ रहना स्वीकार किया होगा. पढ़ने में वह कमजोर था, तो इस में उस की नालायकी और कामचोरी थी. हम जो कर्म करते हैं, उन के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं. हम अपनी गलतियों के लिए किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते.

केशव बाबू के लिए यह चिंता का विषय था कि बेटा बिगड़ गया था, परंतु वे बहुत अधिक परेशान नहीं थे. पत्नी की हठधर्मी और मनमानी में उन का कोई हाथ नहीं था. उन्होंने तो हर कदम पर उसे रोकने और समझाने की कोशिश की, परंतु वह उलटी खोपड़ी की औरत थी. हर सही बात उसे गलत लगती और हर गलत काम अच्छा. उस का दुष्परिणाम एक न एक दिन सब के सामने आना ही था. कहां तो नीता को चिंता थी कि ज्यादा पढ़ाने से बेटी बिगड़ जाएगी, कहां बेटा बिगड़ गया. जिसे वंश आगे बढ़ाना था, खानदान का नाम रोशन करना था, वही घर के सारे चिराग बुझा कर खुद अंधेरे में गुम हो गया था. अनिका के बीटैक का यह अंतिम वर्ष था. एक दिन उस ने पापा को फोन किया, ‘‘पापा, एक खुशखबरी है.’’

‘‘क्या बेटा, बोलो?’’ केशव बाबू ने उल्लास से पूछा.

‘‘पापा, मेरा सेलैक्शन हो गया है,’’ अनिका खुशी से चहक रही थी. केशव बाबू का हृदय खुशी से झूम उठा. शरीर में एक झुरझुरी सी उठी. उन्हें लगा, जैसे तपती दोपहरी में पसीने से तरबतर शरीर के ऊपर किसी ने वर्षा की ठंडी बूंदें टपका दी हों. वे हर्षित होते हुए बोले, ‘‘मुबारक हो बेटा, कहां हुआ है सेलैक्शन? ले किन अभी तो तुम्हारी फाइनल की परीक्षाएं बाकी हैं.’’

‘‘हां, वो तो है, परंतु ये कैंपस सेलैक्शन है. पिछले अंकों के आधार पर हुआ है. परीक्षा के बाद ही नियुक्तिपत्र मिलेगा. परंतु अभी एक शर्त है कि पहली पोस्ंिटग मुंबई में होगी.’’

‘‘तो इस में परेशानी क्या है? तुम होस्टल में रह चुकी हो. मुंबई में भी तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.’’

‘‘हां, वह तो सही है. बस, मैं यह सोच रही थी कि आप अकेले हो जाएंगे.’’

‘‘नहीं, बेटा, पहले तुम अपने भविष्य की चिंता करो. वैसे भी शादी के बाद तुम हम सब को छोड़ कर चली जाओगी.’’

‘‘नहीं पापा, मैं आप को छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी.’’ केशव बाबू मन ही मन मुसकराए, परंतु आंतरिक खुशी के बावजूद उन की आंखों में आंसू छा गए. अपने को संभाल कर बोले, ‘‘अच्छा ठीक है. तुम अपना खयाल रखना.’’

‘‘ओके पापा.’’

‘‘मम्मी को बताया?’’

‘‘बता दूं, क्या?’’ अनिका ने पूछा.

‘‘बता दे तो अच्छा रहेगा, तुम्हारी मम्मी हैं, अच्छी हैं या बुरी, सदा तुम्हारी मां रहेंगी. वैसे भी आजकल उन के व्यवहार में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ है. मेरे साथ मीठा व्यवहार करती हैं. बेटे ने उन की आशाओं और अपेक्षाओं पर जो चोट की है, उस से उन का विश्वास डगमगा गया है. उन को अब कहीं कोई सहारा दिखाई नहीं देता.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी फोन करती हूं.’’

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July 01, 2020 at 10:00AM

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